मंगलवार, 31 मार्च 2015

कौआ चला हंस की चाल

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये!

हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ?? यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं  यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा ! भटकते भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !

रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था। वह जोर से चिल्लाने लगा।
हंसिनी ने हंस से कहा- अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते। ये उल्लू चिल्ला रहा है। हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ?? ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।

पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था। सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ कर दो।
हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद! यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा I  पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।
हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी ?? अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है, मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है!
उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।
दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये। कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी। पंच लोग भी आ गये!
बोले- भाई किस बात का विवाद है ??

लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है! लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे। हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है। इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना चाहिए! फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है!

यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया। उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली!

रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको! हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ?? पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ?

उल्लू ने कहा- नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी! लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है!  मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है। यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं!

शायद 65 साल की आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने उम्मीदवार की योग्यता न देखते हुए, हमेशा ये हमारी जाति का है. ये हमारी बिरादरी का है यही आधार पर अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है, देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैँ!

घोड़ा और बकरा

एक बार
एक किसान का
घोडा बीमार हो गया।
उसने उसके इलाज के लिए
डॉक्टर को बुलाया

डॉक्टर ने घोड़े का अच्छे से
मुआयना किया और बोल|

"आपके घोड़े को
काफी गंभीर बीमारी है।
हम तीन दिन तक इसे
दवाई देकर देखते हैं,
अगर यह ठीक हो गया तो
ठीक नहीं तो हमें
इसे मारना होगा।
क्योंकि
यह बीमारी
दूसरे जानवरों में
भी फ़ैल सकती है।"

यह सब बातें पास में खड़ा
एक बकरा भी सुन रहा था।

अगले दिन डॉक्टर आया,
उसने घोड़े को
दवाई दी चला गया।

उसके जाने के बाद
बकरा घोड़े के
पास गया और बोला,
"उठो दोस्त, हिम्मत करो,
नहीं तो यह तुम्हें मार देंगे।"

दूसरे दिन
डॉक्टर फिर आया
और दवाई देकर चला गया।
बकरा फिर घोड़े के पास आया
और बोला,
"दोस्त
तुम्हें उठना ही होगा।
हिम्मत करो
नहीं तो तुम मारे जाओगे।
मैं तुम्हारी मदद करता हूँ।
चलो उठो"

तीसरे दिन
जब डॉक्टर आया तो
किसान से बोला,
"मुझे अफ़सोस है कि
हमें इसे मारना पड़ेगा
क्योंकि कोई भी सुधार
नज़र नहीं आ रहा।"

जब वो वहाँ से गए तो
बकरा घोड़े के पास
फिर आया और बोला,
"देखो दोस्त,
तुम्हारे लिए अब
करो या मरो वाली
स्थिति बन गयी है।

अगर तुम आज भी नहीं उठे
तो कल तुम मर जाओगे।
इसलिए हिम्मत करो।
हाँ, बहुत अच्छे।
थोड़ा सा और,
तुम कर सकते हो।
शाबाश,
अब भाग कर देखो,
तेज़ और तेज़।"

इतने में किसान
वापस आया तो उसने देखा कि
उसका घोडाभाग रहा है।

वो ख़ुशी से झूम उठा
और सब घर वालों को
इकट्ठा कर के चिल्लाने लगा,

"चमत्कार हो गया,
मेरा घोडा ठीक हो गया।
हमें जश्न मनाना चाहिए
आज बकरे का गोश्त खायेंगे।"

शिक्षा :
Management को
कभी नही पता होता कि
कौन employee
काम कर रहा है ...

अकेलापन

          

मेरी पत्नी ने कुछ दिनों पहले घर की छत पर कुछ गमले रखवा दिए और एक छोटा सा गार्डन बना लिया।

पिछले दिनों मैं छत पर गया तो ये देख कर हैरान रह गया कि कई गमलों में फूल खिल गए हैं, नींबू के पौधे में दो नींबू भी लटके हुए हैं और दो चार हरी मिर्च भी लटकी हुई नज़र आई।
मैंने देखा कि पिछले हफ्ते उसने बांस का जो पौधा गमले में लगाया था, उस गमले को घसीट कर दूसरे गमले के पास कर रही थी।

मैंने कहा तुम इस भारी गमले को क्यों घसीट रही हो? पत्नी ने मुझसे कहा कि यहां ये बांस का पौधा सूख रहा है, इसे खिसका कर इस पौधे के पास कर देते हैं।

मैं हंस पड़ा और कहा अरे पौधा सूख रहा है तो खाद डालो, पानी डालो। इसे खिसका कर किसी और पौधे
के पास कर देने से क्या होगा?"

पत्नी ने मुस्कुराते हुए कहा ये पौधा यहां अकेला है इसलिए मुर्झा रहा है। इसे इस पौधे के पास कर देंगे तो ये फिर लहलहा उठेगा। पौधे अकेले में सूख जाते हैं, लेकिन उन्हें अगर किसी और पौधे का साथ मिल जाए तो जी उठते हैं।"

यह बहुत अजीब सी बात थी। एक-एक कर कई तस्वीरें आखों के आगे बनती चली गईं। मां की मौत के बाद पिताजी कैसे एक ही रात में बूढ़े, बहुत बूढ़े हो गए थे। हालांकि मां के जाने के बाद सोलह साल तक वो रहे, लेकिन सूखते हुए पौधे की तरह। मां के रहते हुए जिस
पिताजी को मैंने कभी उदास नहीं देखा था, वो मां के जाने के बाद खामोश से हो गए थे।

मुझे पत्नी के विश्वास पर पूरा विश्वास हो रहा था। लग रहा था कि सचमुच पौधे अकेले में सूख जाते होंगे। बचपन में मैं
एक बार बाज़ार से एक छोटी सी रंगीन मछली खरीद कर लाया था और उसे शीशे के
जार में पानी भर कर रख दिया था। मछली सारा दिन गुमसुम रही। मैंने उसके लिए खाना भी डाला, लेकिन वो चुपचाप इधर-उधर पानी में अनमना सा घूमती रही। सारा खाना जार की तलहटी में जाकर बैठ
गया, मछली ने कुछ नहीं खाया। दो दिनों तक वो ऐसे ही रही, और एक सुबह मैंने देखा कि वो पानी की सतह पर उल्टी पड़ी थी। आज मुझे घर में पाली वो छोटी सी मछली याद आ रही थी।

बचपन में किसी ने मुझे ये नहीं बताया था, अगर मालूम होता तो कम से कम दो, तीन या ढ़ेर सारी मछलियां खरीद लाता और मेरी वो प्यारी मछली यूं तन्हा न मर जाती।
बचपन में मेरी माँ से
सुना था कि लोग मकान बनवाते थे और रौशनी के लिए कमरे में दीपक रखने के लिए दीवार में इसलिए दो मोखे बनवाते थे क्योंकि माँ का कहना था कि बेचारा अकेला मोखा गुमसुम और उदास हो जाता है।

मुझे लगता है कि संसार में
किसी को अकेलापन पसंद नहीं। आदमी हो या पौधा, हर किसी को किसी न किसी के साथ की ज़रुरत होती है।

आप अपने आसपास झांकिए, अगर कहीं कोई अकेला दिखे तो उसे अपना साथ दीजिए, उसे मुरझाने से बचाइए। अगर आप अकेले हों, तो आप भी किसी का साथ लीजिए, आप खुद को भी मुरझाने से रोकिए।

अकेलापन संसार में सबसे बड़ी सजा है। गमले के पौधे को तो हाथ से खींच कर एक
दूसरे पौधे के पास किया जा सकता है, लेकिन आदमी को करीब लाने के लिए जरुरत
होती है रिश्तों को समझने की, सहेजने की और समेटने की।

अगर मन के किसी कोने में आपको लगे कि ज़िंदगी का रस सूख रहा है, जीवन मुरझा रहा है तो उस पर रिश्तों के प्यार का रस डालिए। खुश रहिए और मुस्कुराइए। कोई यूं ही किसी और की गलती से आपसे दूर हो गया हो तो उसे अपने करीब लाने की कोशिश कीजिए और हो जाइए हरा-भरा।

सोमवार, 30 मार्च 2015

बेटी के लिए खड्डा

एक दिन की बात है , लड़की की माँ खूब
परेशान होकर अपने पति को बोली की एक
तो हमारा एक समय
का खाना पूरा नहीं होता और बेटी साँप
की तरह बड़ी होती जा रही है .

गरीबी की हालत में इसकी शादी केसे
करेंगे ?

बाप भी विचार में पड़ गया . दोनों ने दिल
पर पत्थर रख कर एक फेसला किया की कल
बेटी को मार कर गाड़ देंगे .

दुसरे दिन का सूरज निकला , माँ ने
लड़की को खूब लाड प्यार किया , अच्छे से
नहलाया , बार - बार उसका सर चूमने लगी .

यह सब देख कर लड़की बोली : माँ मुझे
कही दूर भेज रहे हो क्या ?

वर्ना आज तक आपने
मुझे ऐसे कभी प्यार नहीं किया ,
माँ केवल चुप रही और रोने लगी ,

तभी उसका बाप हाथ में फावड़ा और चाकू
लेकर
आया , माँ ने लड़की को सीने से लगाकर
बाप के साथ रवाना कर दिया .
रस्ते में चलते - चलते बाप के पैर में कांटा चुभ
गया , बाप एक दम से निचे बेथ गया ,

बेटी से
देखा नहीं गया उसने तुरंत कांटा निकालकर
फटी चुनरी का एक हिस्सा पैर पर बांध
दिया .

बाप बेटी दोनों एक जंगल में पहुचे बाप ने
फावड़ा लेकर एक गढ़ा खोदने
लगा बेटी सामने बेठे - बेठे देख रही थी ,
थोड़ी देर बाद गर्मी के कारण बाप
को पसीना आने
लगा .

बेटी बाप के पास गयी और
पसीना पोछने के लिए अपनी चुनरी दी .
बाप ने धक्का देकर बोला तू दूर जाकर बेठ।
थोड़ी देर बाद जब बाप गडा खोदते - खोदते
थक गया ,

बेटी दूर से बैठे -बैठे देख रही थी, जब
उसको लगा की पिताजी शायद थक गये
तो पास आकर बोली पिताजी आप थक गये
है .

लाओ फावड़ा में खोद देती हु आप
थोडा आराम कर लो . मुझसे आप
की तकलीफ नहीं देखि जाती .
यह सुनकर बाप ने अपनी बेटी को गले
लगा लिया, उसकी आँखों में आंसू
की नदिया बहने लगी , उसका दिल पसीज
गया ,

बाप बोला : बेटा मुझे माफ़ कर दे , यह
गढ़ा में तेरे लिए ही खोद रहा था . और तू
मेरी चिंता करती है , अब
जो होगा सो होगा तू हमेशा मेरे
कलेजा का टुकड़ा बन कर रहेगी में खूब मेहनत
करूँगा और तेरी शादी धूम धाम से करूँगा -

सारांश : बेटी तो भगवान की अनमोल भेंट
है ,इसलिए कहते हे बेटा भाग्य से मिलता हे और बेटी सौभाग्य से।।

रविवार, 29 मार्च 2015

मां तुझे सलाम


एक 16 के लड़के ने
अपनी मम्मी से कहा की "
मम्मी मुझे मेरे 18 सालवे के
जन्मदिन पर क्या गिफ्ट
दोगी ?
.
तो उस लड़के की मम्मी ने
उस से कहा की जब
तेरा 18
सालवा आएगा तो अलमारी के
ऊपर देख लेना उसमे
तेरा गिफ्ट
रहेगा अभी बता दूंगी तो
गिफ्ट
का मज़ा नहीं आएगा। .
कुछ दिन बाद
वो लड़का बीमार
हो गया उसके
मम्मी पापा उसको अस्पताल
लेकर गए
.
जाँच के बाद डॉक्टर ने
लड़के के माता पिता से
कहा की इसके दिल मै छेद
है ये अब २ महीने से
जयादा नही जी पायेगा
.
साल भर बाद लड़का ठीक
होकर घर गया
घर जाते ही उसने
अलमारी पर एक गिफ्ट
देखा उसने जल्दी से
वो गिफ्ट खोला
उस गिफ्ट में एक
चिठ्ठी थी उस चिट्टी में
लिखा था की
.
" मेरे जिगर के टुकड़े अगर तू
ये चिठ्ठी पढ़ रहा है
तो तू बिलकुल ठीक
होगा तुजे याद है जब तू
बीमार हुआ था तब हम तुजे
अस्पताल लेकर गए थे
डॉक्टर ने कहा की तेरे
दिल में छेद है तो उस दिन
मै बहुत रोई और
फैसला किया की मेरा दिल
तुजे दूंगी याद है एक दिन
तूने कहा था की मम्मी मुझे
18 साल्वे जन्मदिन पर
क्या दोगी तो बेटा मै तुजे
अपना दिल दे रही हु
उसको हमेशा संभाल कर
रखना। …… हैप्पी बर्थडे
बेटा '
.
.
सार : एक माँ इसलिए मर
गयी क्यों की उसका बेटा जी सके। ....
दुनिया में माँ से बड़ा दिल
किसी का नही!
.
माँ के दिल जैसा दुनिया मेँ
कोई दिल नहीँ।
.

शुक्रवार, 27 मार्च 2015

उल्लू ....उल्लू ही रहेगा

मोरक्को के छोटे से गावं में एक बच्चा हामिद रहता था... उसके स्कूल के बच्चे उसको हमेशा "उल्लू" बोलकर चिढाते थे और उसकी टीचर उस की बेवकूफियों से हमेशा बहुत परेशान रहती थी..

एक दिन उसकी माँ उसका रिजल्ट जानने उसके स्कूल गयी और टीचर से हामिद के बारे में पूछा.. टीचर ने कहा कि "अपने जीवन के पचीस साल के कार्यकाल में उसने पहली बार ऐसा बेवकूफ लड़का देखा है, ये जीवन में कुछ न कर पायेगा"

यह सुनकर हामिद की माँ बहुत आहात हो गयी और उसने शर्म के मारे वो गाँव छोड़कर एक शहर में चली गयी हामिद को लेकर..

बीस साल बाद जब उस टीचर को दिल की बिमारी हुई तो सबने उसे शहर के एक डॉक्टर का नाम सुझाया जो ओपन हार्ट सर्जरी करने में माहिर था.. टीचर ने जा कर सर्जरी करवाई और ऑपरेशन कामयाब रहा..

जब वो बेहोशी से वापस आई और आँख खोली तो टीचर ने एक सुदर और सुडौल नौजवान डॉक्टर को अपने बेड के बगल खड़े हो कर मुस्कुराते हुवे देखा.. वो टीचर डॉक्टर को शुक्रिया बोलने ही वाली थी अचानक उसका चेहरा नीला पड़ गया और जब तक डॉक्टर कुछ समझें समझें.. वो टीचर मर गयी..

डॉक्टर अचम्भे से देख रहे थे और समझने की कोशिश कर रहे थे की आखिर हुवा क्या है.. तभी वो पीछे मुड़े और देखा कि हामिद, जो की उसी अस्पताल में एक सफाई कर्मचारी था, उसने वेंटीलेटर का प्लग हटा के अपना वैक्यूम क्लीनर का प्लग लगा दिया था..

अब अगर आप लोग ये सोच रहे थे कि हामिद डॉक्टर बन गया था.. तो इसका मतलब ये है की आप हिंदी/तमिल/तेलुगु फ़िल्में बहुत ज्यादा देखते हैं.. या फिर बहुत ज्यादा प्रेरणादायक कहानियां पढ़ते हैं..

हामिद उल्लू था और उल्लू ही रहेगा 

Story of Bhagat singh

23 मार्च का दिन उन आम दिनों की तरह ही शुरू हुआ जब सुबह के समय राजनीतिक बंदियों को उनके बैरक से बाहर निकाला जाता था। आम तौर पर वे दिन भर बाहर रहते थे और सूरज ढलने के बाद वापस अपने बैरकों में चले जाते थे। लेकिन आज वार्डन चरत सिंह शाम करीब चार बजे ही सभी कैदियों को अंदर जाने को कह रहा था। सभी हैरान थे, आज इतनी जल्दी क्यों। पहले तो वार्डन की डांट के बावजूद सूर्यास्त के काफी देर बाद तक वे बाहर रहते थे। लेकिन आज वह आवाज काफी कठोर और दृढ़ थी। उन्होंने यह नहीं बताया कि क्यों? बस इतना कहा, ऊपर से ऑर्डर है।
चरत सिंह द्वारा क्रांतिकारियों के प्रति नरमी और माता-पिता की तरह देखभाल उन्हें दिल तक छू गई थी। वे सभी उसकी इज्जत करते थे। इसलिए बिना किसी बहस के सभी आम दिनों से चार घंटे पहले ही अपने-अपने बैरकों में चले गए। लेकिन सभी कौतूहल से सलाखों के पीछे से झांक रहे थे। तभी उन्होंने देखा बरकत नाई एक के बाद कोठरियों में जा रहा था और बता रहा था कि आज भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।
हमेशा की तरह मुस्कुराने वाला बरकत आज काफी उदास था। सभी कैदी खामोश थे, कोई कुछ भी बात नहीं कर पा रहा था। सभी अपनी कोठरियों के बाहर से जाते रास्ते की ओर देख रहे थे। वे उम्मीद कर रहे थे कि शायद इसी रास्ते से भगत सिंह और उनके साथी गुजरेंगे।
फांसी के दो घंटे पहले भगत सिंह के वकील मेहता को उनसे मिलने की इजाजत मिल गई। उन्होंने अपने मुवक्किल की आखिरी इच्छा जानने की दरखास्त की थी और उसे मान लिया गया। भगत सिंह अपनी कोठरी में ऐसे आगे-पीछे घूम रहे थे जैसे कि पिंजरे में कोई शेर घूम रहा हो। उन्होंने मेहता का मुस्कुराहट के साथ स्वागत किया और उनसे पूछा कि क्या वे उनके लिए 'दि रेवोल्यूशनरी लेनिन' नाम की किताब लाए हैं। भगत सिंह ने मेहता से इस किताब को लाने का अनुरोध किया था। जब मेहता ने उन्हें किताब दी, वे बहुत खुश हुए और तुरंत पढ़ना शुरू कर दिया, जैसे कि उन्हें मालूम था कि उनके पास वक्त ज्यादा नहीं है। मेहता ने उनसे पूछा कि क्या वे देश को कोई संदेश देना चाहेंगे, अपनी निगाहें किताब से बिना हटाए भगत सिंह ने कहा, मेरे दो नारे उन तक पहुंचाएं..इंकलाब जिंदाबाद, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद। मेहता ने भगत सिंह से पूछा आज तुम कैसे हो? उन्होंने कहा, हमेशा की तरह खुश हूं। मेहता ने फिर पूछा, तुम्हें किसी चीज की इच्छा है? भगत सिंह ने कहा, हां मैं दुबारा इस देश में पैदा होना चाहता हूं ताकि इसकी सेवा कर सकूं । भगत ने कहा, सरदार पटेल और सुभाष चंद्र बोस ने जो रुचि उनके मुकदमे में दिखाई उसके लिए दोनों का धन्यवाद करें ।
मेहता के जाने के तुरंत बाद अधिकारियों ने भगत सिंह और उनके साथियों को बताया कि उन्हें फांसी का समय 11 घंटा घटाकर कल सुबह छह बजे की बजाए आज साम सात बजे कर दिया गया है। भगत सिंह ने मुश्किल से किताब के कुछ पन्ने ही पढ़े थे। उन्होंने कहा, क्या आप मुझे एक अध्याय पढ़ने का भी वक्त नहीं देंगे? बदले में अधिकारी ने उनसे फांसी के तख्ते की तरफ चलने को कहा। एक-एक करके तीनों का वजन किया गया। फिर वे नहाए और कपड़े पहने। वार्डन चतर सिंह ने भगत सिंह के कान में कहा, वाहे गुरु से प्रार्थना कर ले। वे हंसे और कहा, मैंने पूरी जिंदगी में भगवान को कभी याद नहीं किया, बल्कि दुखों और गरीबों की वजह से कोसा जरूर हूं। अगर अब मैं उनसे माफी मांगूगा तो वे कहेंगे कि यह डरपोक है जो माफी चाहता है क्योंकि इसका अंत करीब आ गया है।
तीनों के हाथ बंधे थे और वे संतरियों के पीछे एक-दूसरे से ठिठोली करते हुए सूली की तरफ बढ़ रहे थे। उन्होंने फिर गाना शुरू कर दिया-'कभी वो दिन भी आएगा कि जब आजाद हम होंगे, ये अपनी ही जमीं होगी ये अपना आसमां होगा। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का बाकी यही नाम-ओ-निशां होगा।'
जेल की घड़ी में साढ़े छह बज रहे थे। कैदियों ने थोड़ी दूरी पर, भारी जूतों की आवाज और जाने-पहचाने गीत, 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है' की आवाज सुनी। उन्होंने एक और गीत गाना शुरू कर दिया, 'माई रंग दे मेरा बसंती चोला' और इसके बाद वहां 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'हिंदुस्तान आजाद हो' के नारे लगने लगे। सभी कैदी भी जोर-जोर से नारे लगाने लगे।
तीनों को फांसी के तख्ते तक ले जाया गया। भगत सिंह बीच में थे। तीनों से आखिरी इच्छा पूछी गई तो भगत सिंह ने कहा वे आखिरी बार दोनों साथियों से गले लगना चाहते हैं और ऐसा ही हुआ। फिर तीनों ने रस्सी को चूमा और अपने गले में खुद पहन लिए। फिर उनके हाथ-पैर बांध दिए गए। जल्लाद ने ठीक शाम 7:33 बजे रस्सी खींच दी और उनके पैरों के नीचे से तख्ती हटा दी गई। उनके दुर्बल शरीर काफी देर तक सूली पर लटकते रहे फिर उन्हें नीचे उतारा और जांच के बाद डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
सब कुछ शांत हो चुका था। फांसी के बाद चरत सिंह वार्ड की तरफ आया और फूट-फूट कर रोने लगा। उसने अपनी तीस साल की नौकरी में बहुत सी फांसियां देखी थीं, लेकिन किसी को भी हंसते-मुस्कराते सूली पर चढ़ते नहीं देखा था, जैसा कि उन तीनों ने किया था ।

मंगलवार, 24 मार्च 2015

Story of Bhagat singh

23 मार्च का दिन उन आम दिनों की तरह ही शुरू हुआ जब सुबह के समय राजनीतिक बंदियों को उनके बैरक से बाहर निकाला जाता था। आम तौर पर वे दिन भर बाहर रहते थे और सूरज ढलने के बाद वापस अपने बैरकों में चले जाते थे। लेकिन आज वार्डन चरत सिंह शाम करीब चार बजे ही सभी कैदियों को अंदर जाने को कह रहा था। सभी हैरान थे, आज इतनी जल्दी क्यों। पहले तो वार्डन की डांट के बावजूद सूर्यास्त के काफी देर बाद तक वे बाहर रहते थे। लेकिन आज वह आवाज काफी कठोर और दृढ़ थी। उन्होंने यह नहीं बताया कि क्यों? बस इतना कहा, ऊपर से ऑर्डर है।
चरत सिंह द्वारा क्रांतिकारियों के प्रति नरमी और माता-पिता की तरह देखभाल उन्हें दिल तक छू गई थी। वे सभी उसकी इज्जत करते थे। इसलिए बिना किसी बहस के सभी आम दिनों से चार घंटे पहले ही अपने-अपने बैरकों में चले गए। लेकिन सभी कौतूहल से सलाखों के पीछे से झांक रहे थे। तभी उन्होंने देखा बरकत नाई एक के बाद कोठरियों में जा रहा था और बता रहा था कि आज भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।
हमेशा की तरह मुस्कुराने वाला बरकत आज काफी उदास था। सभी कैदी खामोश थे, कोई कुछ भी बात नहीं कर पा रहा था। सभी अपनी कोठरियों के बाहर से जाते रास्ते की ओर देख रहे थे। वे उम्मीद कर रहे थे कि शायद इसी रास्ते से भगत सिंह और उनके साथी गुजरेंगे।
फांसी के दो घंटे पहले भगत सिंह के वकील मेहता को उनसे मिलने की इजाजत मिल गई। उन्होंने अपने मुवक्किल की आखिरी इच्छा जानने की दरखास्त की थी और उसे मान लिया गया। भगत सिंह अपनी कोठरी में ऐसे आगे-पीछे घूम रहे थे जैसे कि पिंजरे में कोई शेर घूम रहा हो। उन्होंने मेहता का मुस्कुराहट के साथ स्वागत किया और उनसे पूछा कि क्या वे उनके लिए 'दि रेवोल्यूशनरी लेनिन' नाम की किताब लाए हैं। भगत सिंह ने मेहता से इस किताब को लाने का अनुरोध किया था। जब मेहता ने उन्हें किताब दी, वे बहुत खुश हुए और तुरंत पढ़ना शुरू कर दिया, जैसे कि उन्हें मालूम था कि उनके पास वक्त ज्यादा नहीं है। मेहता ने उनसे पूछा कि क्या वे देश को कोई संदेश देना चाहेंगे, अपनी निगाहें किताब से बिना हटाए भगत सिंह ने कहा, मेरे दो नारे उन तक पहुंचाएं..इंकलाब जिंदाबाद, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद। मेहता ने भगत सिंह से पूछा आज तुम कैसे हो? उन्होंने कहा, हमेशा की तरह खुश हूं। मेहता ने फिर पूछा, तुम्हें किसी चीज की इच्छा है? भगत सिंह ने कहा, हां मैं दुबारा इस देश में पैदा होना चाहता हूं ताकि इसकी सेवा कर सकूं । भगत ने कहा, सरदार पटेल और सुभाष चंद्र बोस ने जो रुचि उनके मुकदमे में दिखाई उसके लिए दोनों का धन्यवाद करें ।
मेहता के जाने के तुरंत बाद अधिकारियों ने भगत सिंह और उनके साथियों को बताया कि उन्हें फांसी का समय 11 घंटा घटाकर कल सुबह छह बजे की बजाए आज साम सात बजे कर दिया गया है। भगत सिंह ने मुश्किल से किताब के कुछ पन्ने ही पढ़े थे। उन्होंने कहा, क्या आप मुझे एक अध्याय पढ़ने का भी वक्त नहीं देंगे? बदले में अधिकारी ने उनसे फांसी के तख्ते की तरफ चलने को कहा। एक-एक करके तीनों का वजन किया गया। फिर वे नहाए और कपड़े पहने। वार्डन चतर सिंह ने भगत सिंह के कान में कहा, वाहे गुरु से प्रार्थना कर ले। वे हंसे और कहा, मैंने पूरी जिंदगी में भगवान को कभी याद नहीं किया, बल्कि दुखों और गरीबों की वजह से कोसा जरूर हूं। अगर अब मैं उनसे माफी मांगूगा तो वे कहेंगे कि यह डरपोक है जो माफी चाहता है क्योंकि इसका अंत करीब आ गया है।
तीनों के हाथ बंधे थे और वे संतरियों के पीछे एक-दूसरे से ठिठोली करते हुए सूली की तरफ बढ़ रहे थे। उन्होंने फिर गाना शुरू कर दिया-'कभी वो दिन भी आएगा कि जब आजाद हम होंगे, ये अपनी ही जमीं होगी ये अपना आसमां होगा। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का बाकी यही नाम-ओ-निशां होगा।'
जेल की घड़ी में साढ़े छह बज रहे थे। कैदियों ने थोड़ी दूरी पर, भारी जूतों की आवाज और जाने-पहचाने गीत, 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है' की आवाज सुनी। उन्होंने एक और गीत गाना शुरू कर दिया, 'माई रंग दे मेरा बसंती चोला' और इसके बाद वहां 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'हिंदुस्तान आजाद हो' के नारे लगने लगे। सभी कैदी भी जोर-जोर से नारे लगाने लगे।
तीनों को फांसी के तख्ते तक ले जाया गया। भगत सिंह बीच में थे। तीनों से आखिरी इच्छा पूछी गई तो भगत सिंह ने कहा वे आखिरी बार दोनों साथियों से गले लगना चाहते हैं और ऐसा ही हुआ। फिर तीनों ने रस्सी को चूमा और अपने गले में खुद पहन लिए। फिर उनके हाथ-पैर बांध दिए गए। जल्लाद ने ठीक शाम 7:33 बजे रस्सी खींच दी और उनके पैरों के नीचे से तख्ती हटा दी गई। उनके दुर्बल शरीर काफी देर तक सूली पर लटकते रहे फिर उन्हें नीचे उतारा और जांच के बाद डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
सब कुछ शांत हो चुका था। फांसी के बाद चरत सिंह वार्ड की तरफ आया और फूट-फूट कर रोने लगा। उसने अपनी तीस साल की नौकरी में बहुत सी फांसियां देखी थीं, लेकिन किसी को भी हंसते-मुस्कराते सूली पर चढ़ते नहीं देखा था, जैसा कि उन तीनों ने किया था ।