बुधवार, 28 दिसंबर 2016

चमकौर युद्ध- श्री गुरुगोबिंद सिंह

क्या आप जानते हैं विश्व की सबसे मंहंगी जगह ( ज़मीन ) 'सरहिंद' (पंजाब), जिला फतेहगढ़ साहब में है - जो मात्र 4 स्क्वेयर मीटर है।

क्यों हुई ये छोटी सी ज़मीन सबसे महंगी जरूर जानिये - रोंगटे खड़े कर देनें वाली ऐतिहासिक घटना।

यहां पर श्री गुरुगोबिंद सिंह जी के छोटे
साहिबजादों का अंतिम संस्कार
किया गया था।

सेठ दीवान टोंडर मल ने
यह जगह 78000 सोने की मोहरे (सिक्के)
जमीन पर फैला कर मुस्लिम बादशाह से ज़मीन खरीदी थी।

सोने की कीमत के मुताबिक इस 4 स्कवेयर मीटर जमीन
की कीमत 2500000000 (दो अरब पचास
करोड़) बनती है।

दुनिया की सबसे मंहंगी जगह खरीदने का रिकॉर्ड आज सिख धर्म के इतिहास में दर्ज करवाया गया है।

आजतक दुनिया के
इतिहास में इतनी मंहंगी जगह
कही नही खरीदी गयी।

दुनिया के इतिहास में ऐसा युद्ध ना कभी किसी ने पढ़ा होगा ना ही सोचा होगा, जिसमे 10 लाख
की फ़ौज का सामना महज 42 लोगों के साथ हुआ था
और जीत
किसकी होती है..??

उन 42 सूरमो की !

यह युद्ध 'चमकौर युद्ध' (Battle of Chamkaur) के नाम
से भी जाना जाता है जो कि मुग़ल योद्धा वज़ीर खान
की अगवाई में 10 लाख की फ़ौज का सामना सिर्फ 42
सिखों के सामने 6 दिसम्बर 1704 को हुआ जो की गुरु
गोबिंद सिंह जी की अगवाई में तैयार हुए थे !

नतीजा यह निकलता है की उन 42 शूरवीर की जीत होती है
जो की मुग़ल हुकूमत की नीव जो की बाबर ने रखी थी , उसे जड़ से उखाड़ दिया और भारत को आज़ाद भारत का दर्ज़ा दिया।

औरंगज़ेब ने भी उस वक़्त गुरु गोबिंद सिंह जी के आगे
घुटने टेके और मुग़ल राज का अंत हुआ हिन्दुस्तान से ।

तभी औरंगजेब ने एक प्रश्न किया गुरुगोबिंद सिंह जी के सामने। कि यह कैसी फ़ौज तैयार की आपने जिसने 10 लाख की फ़ौज को उखाड़ फेंका।

गुरु गोबिंद सिंह जी ने जवाब दिया
"चिड़ियों से मैं बाज लडाऊं ,
गीदड़ों को मैं शेर बनाऊ।"
"सवा लाख से एक लडाऊं
तभी गोबिंद सिंह नाम कहाउँ !!"

गुरु गोबिंद सिंह जी ने जो कहा वो किया, जिन्हे आज हर कोई
शीश झुकता है , यह है हमारे भारत की अनमोल विरासत जिसे हमने कभी पढ़ा ही नहीं !

अगर आपको यकीन नहीं होता तो एक बार जरूर गूगल
में लिखे 'बैटल ऑफ़ चमकौर' और सच आपको पता लगेगा ,

आपको अगर थोड़ा सा भी अच्छा लगा और आपको भारतीय होने का गर्व है
तो जरूर इसे आगे शेयर करे जिससे की हमारे भारत के
गौरवशाली इतिहास के बारे में दुनिया को पता लगे !

***कुछ आगे ***चमकौर साहिब की जमीन आगे चलकर एक सिख परिवार ने खरीदी उनको इसके इतिहास का कुछ पता नहीं था ।

इस परिवार में आगे चलकर जब उनको पता चला के यहाँ गुरु गोबिंद सिंह जी के दो बेटे शहीद हुए है तो उन्हों ने यह जमीन गुरु जी के बेटो की यादगार ( गुरुद्वारा साहिब) के लिए देने का मन बनाया ....

जब अरदास करने के समय उस सिख से पूछा गया के अरदास में उनके लिए गुरु साहिब से क्या बेनती करनी है ....

तो उस सिख ने कहा के गुरु जी से बेनती करनी है के मेरे घर कोई औलाद ना हो ताकि मेरे वंश में कोई भी यह कहने वाला ना हो के यह जमीन मेरे बाप दादा ने दी है।

वाहेगुरु....और यही अरदास हुई और बिलकुल ऐसा ही हुआ उन सिख के घर कोई औलाद नहीं हुई......

अब हम अपने बारे में सोचे 50....100 रु. दे कर क्या माँगते है ।
वाहे गुरु....

वाहेगुरु जी का खालसा,
वाहेगुरु जी की फतेह जी

प्रेरणादायक कहानी

प्रेरणादायक कहानी

एक राजा था जिसे राज भोगते काफी समय हो गया था बाल भी सफ़ेद होने लगे थे ।
एक दिन उसने अपने दरबार मे उत्सव रखा ।
उत्सव मे मुजरा करने वाली और अपने गुरु को बुलाया ।
दूर देश के राजाओं को भी ।
राजा ने कुछ मुद्राए अपने गुरु को दी जो बात मुजरा करने वाली की अच्छी लगेगी वह मुद्रा गुरु देगा।

सारी रात मुजरा चलता रहा । सुबह होने वाली थीं, मुज़रा करने वाली ने देखा मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है उसको जगाने के लियें मुज़रा करने वाली ने एक दोहा पढ़ा ,

*"बहु बीती, थोड़ी रही, पल पल गयी बिहाई ।*
*एक पलक के कारने, ना कलंक लग जाए।"*

अब इस दोहे का अलग अलग व्यक्तियों ने अलग अलग अपने अपने अनुरूप अर्थ निकाला ।

*तबले वाला सतर्क हो  बजाने लगा।*
*जब ये बात गुरु ने सुनी,  गुरु ने सारी मोहरे उस मुज़रा करने वाली को दे दी*

वही दोहा उसने फिर पढ़ा तो राजा के लड़की ने अपना नवलखा हार दे दिया ।

उसने फिर वही दोहा दोहराया तो राजा के लड़के ने अपना मुकट उतारकर दे दिया ।

वही दोहा दोहराने लगी राजा ने कहा बस कर एक दोहे से तुमने वेश्या होकर सबको लूट लिया है ।

जब ये बात राजा के गुरु ने सुनी गुरु के नेत्रो मे जल आ गया और कहने लगा, "  राजा इसको तू वेश्या न कह, ये मेरी गुरू है।
*इसने मुझें मत दी है कि मै सारी उम्र जंगलो मे भक्ति करता रहा और आखरी समय मे मुज़रा देखने आ गया हूँ। भाई मै तो चला।*

*राजा की लड़की ने कहा, " आप मेरी शादी नहीं कर रहे थे,  आज मैंने आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद कर लेना था । इसनें मुझे सुमति दी है कि कभी तो तेरी शादी होगी । क्यों अपने पिता को कलंकित करती है ? "*

*राजा के लड़के ने कहा, " आप मुझे राज नहीं दे रहे थे । मैंने आपके सिपाहियो से मिलकर आपका क़त्ल करवा देना था । इसने समझाया है कि आखिर राज तो तुम्हे ही मिलना है । क्यों अपने पिता के खून का इलज़ाम अपने सर लेते हो?*

जब ये बातें राजा ने सुनी तो राजा ने सोचा क्यों न मै अभी राजतिलक कर दूँ , गुरु भी मौजूद है ।
उसी समय राजतिलक कर दिया और लड़की से कहा बेटा, " मैं आपकी शादी जल्दी कर दूँगा। "

*मुज़रा करने वाली कहती है , " मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, मै तो ना सुधरी। आज से मै अपना धंधा बंद करती हूँ।*
*हे प्रभु! आज से मै भी तेरा नाम सुमिरन करुँगी ।*

समझ आने की बात है, दुनिया बदलते देर नहीं लगती। एक दोहे की दो लाईनों में इतना सामर्थ्य जुट सकता है। थोड़ा धैर्य रखने की ज़रूरत है।
"प्रशंसा" से "पिंघलना" मत,
"आलोचना" से "उबलना" मत,
निस्वार्थ भाव से कर्म कर
क्योंकि इस "धरा" का, इस "धरा" पर,
सब "धरा रह जाऐगा
"मनुष्य कितना भी गोरा क्यों ना हो
परंतु उसकी परछाई सदैव काली होती है !
"मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ" यह आत्मविश्वास है
लेकिन
"सिर्फ मैं ही सर्वश्रेष्ठ हूँ" यह अहंकार है..
अहंकार से जिनका, मन मैला है ,
करोड़ों की भीड़ में भी, वह अकेला है !

सोमवार, 26 दिसंबर 2016

एहसास

*रामायण कथा का एक अंश*
जिससे हमे *सीख* मिलती है *"एहसास"* की...
   

*श्री राम, लक्ष्मण एवम् सीता' मैया* चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे,
राह बहुत *पथरीली और कंटीली* थी !
की यकायक *श्री राम* के चरणों मे *कांटा* चुभ गया !

श्रीराम *रूष्ट या क्रोधित* नहीं हुए, बल्कि हाथ जोड़कर धरती माता से *अनुरोध* करने लगे !
बोले- "माँ, मेरी एक *विनम्र प्रार्थना* है आपसे, क्या आप *स्वीकार* करेंगी ?"

*धरती* बोली- "प्रभु प्रार्थना नहीं, आज्ञा दीजिए !"

प्रभु बोले, "माँ, मेरी बस यही विनती है कि जब भरत मेरी खोज मे इस पथ से गुज़रे, तो आप *नरम* हो जाना !
कुछ पल के लिए अपने आँचल के ये पत्थर और कांटे छुपा लेना !
मुझे कांटा चुभा सो चुभा, पर मेरे भरत के पाँव मे *आघात* मत करना"

श्री राम को यूँ व्यग्र देखकर धरा दंग रह गई !
पूछा- "भगवन, धृष्टता क्षमा हो ! पर क्या भरत आपसे अधिक सुकुमार है ?
जब आप इतनी सहजता से सब सहन कर गए, तो क्या कुमार भरत सहन नही कर पाँएगें ?
फिर उनको लेकर आपके चित मे ऐसी *व्याकुलता* क्यों ?"

*श्री राम* बोले- "नही...नही माते, आप मेरे कहने का अभिप्राय नही समझीं ! भरत को यदि कांटा चुभा, तो वह उसके पाँव को नही, उसके *हृदय* को विदीर्ण कर देगा !"

*"हृदय विदीर्ण* !! ऐसा क्यों प्रभु ?",
*धरती माँ* जिज्ञासा भरे स्वर में बोलीं !

"अपनी पीड़ा से नहीं माँ, बल्कि यह सोचकर कि...इसी *कंटीली राह* से मेरे भैया राम गुज़रे होंगे और ये *शूल* उनके पगों मे भी चुभे होंगे !
मैया, मेरा भरत कल्पना मे भी मेरी *पीड़ा* सहन नहीं कर सकता, इसलिए उसकी उपस्थिति मे आप *कमल पंखुड़ियों सी कोमल* बन जाना..!!"

अर्थात
*रिश्ते* अंदरूनी एहसास, आत्मीय अनुभूति के दम पर ही टिकते हैं ।
जहाँ *गहरी आत्मीयता* नही, वो रिश्ता शायद नही परंतु *दिखावा* हो सकता है ।

इसीलिए कहा गया है कि...
*रिश्ते*खून से नहीं, *परिवार* से नही,
*मित्रता* से नही, *व्यवहार* से नही,
बल्कि...
सिर्फ और सिर्फ *आत्मीय "एहसास"* से ही बनते और *निर्वहन* किए जाते हैं।
जहाँ *एहसास* ही नहीं,
*आत्मीयता* ही नहीं ..
वहाँ *अपनापन* कहाँ से आएगा l
         
*हम सबके लिए प्रेरणास्पद लघुकथा*

अनमोल

*जिन्दगीं में किसी का साथ काफी हैं,*
*कंधे पर किसी का हाथ काफी हैं,*
*दूर हो या पास...क्या फर्क पड़ता हैं,*

*"अनमोल रिश्तों"*
*का तो बस "एहसास" ही काफी ह*ैं !
*बहुत ही खूबसूरत लाईनें..*

*किसी की मजबूरियाँ पे न हँसिये*,
*कोई मजबूरियाँ ख़रीद कर नही* *लाता..*!

*डरिये वक़्त की मार से,*
*बुरा वक़्त किसीको बताकर नही आता..*!

*अकल कितनी भी तेज ह़ो,*
*नसीब के बिना नही जीत सकती..*

*बीरबल अकलमंद होने के बावजूद,*
*कभी बादशाह नही बन सका...!!"*

*"ना तुम अपने आप को गले लगा सकते हो,*
*ना ही तुम अपने कंधे पर सर*
*रखकर रो सकते हो* !

*एक दूसरे के लिये जीने का नाम* *ही जिंदगी है! इसलिये वक़्त उन्हें दो जो*
*तुम्हे चाहते हों दिल से!*

*रिश्ते पैसो के मोहताज़ नहीं होते* *क्योकिकुछ रिश्ते मुनाफा नहीं देते पर*
*जीवन अमीर जरूर बना देते है* "

*आपके पास मारुति हो या बीएमडब्ल्यू* -
*सड़क वही रहेगी* |

*आप टाइटन पहने या रोलेक्स* -
*समय वही रहेगा* |

*आपके पास मोबाइल एप्पल का हो या सेमसंग* -
*आपको कॉल करने वाले लोग नहीं बदलेंग*े |

*आप इकॉनामी क्लास में सफर करे*ं
*या बिज़नस में* -
*आपका समय तो उतना ही लगेगा* |

*भव्य जीवन की लालसा रखने या जीने में कोई बुराई नहीं हैं, लेकिन सावधान रहे क्योंकि आवश्यकताएँ पूरी हो सकती है, तृष्णा नहीं* |

*एक सत्य ये भी है कि*
*धनवानो का आधा धन*
*तो ये जताने में चला जाता है*
*की वे भी धनवान है*

*कमाई छोटी या बड़ी हो*
*सकती है*....
*पर रोटी की साईज़ लगभग*
*सब घर में एक जैसी ही होती है।*

: *शानदार बात*

*बदला लेने में क्या मजा है*
*मजा तो तब है जब तुम*
*सामने वाले को बदल डालो..*||

*इन्सान की चाहत है कि उड़ने को पर मिले,*
*और परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले...*

बुधवार, 21 दिसंबर 2016

सफलता और प्रेम

एक औरत ने तीन संतों को अपने घर के सामने
देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी।

औरत ने कहा –
“कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।”

संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?”

औरत – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।”

संत –“हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर
हों।”

शाम को उस औरत का पति घर आया और
औरत ने उसे यह सब बताया।

पति – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर
आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।”

औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के
लिए कहा।

संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ
नहीं जाते।”

“पर क्यों?” – औरत ने पूछा।

उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है”

फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा –
“इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं।

हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है।

आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर
लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।”

औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब
बताया।

उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और

बोला –“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित
करना चाहिए।
हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।”

पत्नी – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को
आमंत्रित करना चाहिए।”

उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी।
वह उनके पास आई और बोली –
“मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना
चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।”

“तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम
को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने
कहा।

औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा –
“आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में
प्रवेश कर भोजन गृहण करें।”

प्रेम घर की ओर बढ़ चले।

बाकी के दो संत भी उनके
पीछे चलने लगे।

औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा –
“मैंने
तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था। आप लोग
भीतर क्यों जा रहे हैं?”

उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और
सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता
तो केवल वही भीतर जाता।

आपने प्रेम को आमंत्रित किया है।

प्रेम कभी अकेला नहीं जाता।
प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता
उसके पीछे जाते हैं।

इस कहानी को एक बार, 2 बार, 3 बार
पढ़ें ........

अच्छा लगे तो प्रेम के साथ रहें,

प्रेम बाटें, प्रेम दें और प्रेम लें

क्यों कि प्रेम ही
सफल जीवन का राज है। :)
...
नोट : लेख अगर अच्छा लगा हो तो शेयर जरूर करे ☝.

सोमवार, 19 दिसंबर 2016

POWER OF POSITIVE THOUGHT


*POWER OF POSITIVE THOUGHT*

*एक व्यक्ति काफी दिनों से चिंतित चल रहा था जिसके कारण वह काफी चिड़चिड़ा तथा तनाव में रहने लगा था। वह इस बात से परेशान था कि घर के सारे खर्चे उसे ही उठाने पड़ते हैं, पूरे परिवार की जिम्मेदारी उसी के ऊपर है, किसी ना किसी रिश्तेदार का उसके यहाँ आना जाना लगा ही रहता है, उसे बहुत ज्यादा INCOME TAX देना पड़ता है आदि - आदि*।

*इन्ही बातों को सोच सोच कर वह काफी परेशान रहता था तथा बच्चों को अक्सर डांट देता था तथा अपनी पत्नी से भी ज्यादातर उसका किसी न किसी बात पर झगड़ा चलता रहता था*।

*एक दिन उसका बेटा उसके पास आया और बोला पिताजी मेरा स्कूल का होमवर्क करा दीजिये, वह व्यक्ति पहले से ही तनाव में था तो उसने बेटे को डांट कर भगा दिया लेकिन जब थोड़ी देर बाद उसका गुस्सा शांत हुआ तो वह बेटे के पास गया तो देखा कि बेटा सोया हुआ है और उसके हाथ में उसके होमवर्क की कॉपी है। उसने कॉपी लेकर देखी और जैसे ही उसने कॉपी नीचे रखनी चाही, उसकी नजर होमवर्क के टाइटल पर पड़ी*।

*होमवर्क का टाइटल था* *********************

*वे चीजें जो हमें शुरू में अच्छी नहीं लगतीं लेकिन बाद में वे अच्छी ही होती हैं*।

*इस टाइटल पर बच्चे को एक पैराग्राफ लिखना था जो उसने लिख लिया था। उत्सुकतावश उसने बच्चे का लिखा पढना शुरू किया बच्चे ने लिखा था* •••

● *मैं अपने फाइनल एग्जाम को बहुंत धन्यवाद् देता हूँ क्योंकि शुरू में तो ये बिलकुल अच्छे नहीं लगते लेकिन इनके बाद स्कूल की छुट्टियाँ पड़ जाती हैं*।

● *मैं ख़राब स्वाद वाली कड़वी दवाइयों को बहुत धन्यवाद् देता हूँ क्योंकि शुरू में तो ये कड़वी लगती हैं लेकिन ये मुझे बीमारी से ठीक करती हैं*।

● *मैं सुबह - सुबह जगाने वाली उस अलार्म घड़ी को बहुत धन्यवाद् देता हूँ जो मुझे हर सुबह बताती है कि मैं जीवित हूँ*।

● *मैं ईश्वर को भी बहुत धन्यवाद देता हूँ जिसने मुझे इतने अच्छे पिता दिए क्योंकि उनकी डांट मुझे शुरू में तो बहुत बुरी लगती है लेकिन वो मेरे लिए खिलौने लाते हैं, मुझे घुमाने ले जाते हैं और मुझे अच्छी अच्छी चीजें खिलाते हैं और मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मेरे पास पिता हैं क्योंकि मेरे दोस्त सोहन के तो पिता ही नहीं हैं*।

*बच्चे का होमवर्क पढने के बाद वह व्यक्ति जैसे अचानक नींद से जाग गया हो। उसकी सोच बदल सी गयी। बच्चे की लिखी बातें उसके दिमाग में बार बार घूम रही थी। खासकर वह last वाली लाइन। उसकी नींद उड़ गयी थी। फिर वह व्यक्ति थोडा शांत होकर बैठा और उसने अपनी परेशानियों के बारे में सोचना शुरू किया*।

●● *मुझे घर के सारे खर्चे उठाने पड़ते हैं, इसका मतलब है कि मेरे पास घर है और ईश्वर की कृपा से मैं उन लोगों से बेहतर स्थिति में हूँ जिनके पास घर नहीं है*।

●● *मुझे पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है, इसका मतलब है कि मेरा परिवार है, बीवी बच्चे हैं और ईश्वर की कृपा से मैं उन लोगों से ज्यादा खुशनसीब हूँ जिनके पास परिवार नहीं हैं और वो दुनियाँ में बिल्कुल अकेले हैं*।

●● *मेरे यहाँ कोई ना कोई मित्र या रिश्तेदार आता जाता रहता है, इसका मतलब है कि मेरी एक सामाजिक हैसियत है और मेरे पास मेरे सुख दुःख में साथ देने वाले लोग हैं*।

●● *मैं बहुत ज्यादा INCOME TAX भरता हूँ, इसका मतलब है कि मेरे पास अच्छी नौकरी/व्यापार है और मैं उन लोगों से बेहतर हूँ जो बेरोजगार हैं या पैसों की वजह से बहुत सी चीजों और सुविधाओं से वंचित हैं*।

*हे ! मेरे भगवान् ! तेरा बहुंत बहुंत शुक्रिया ••• मुझे माफ़ करना, मैं तेरी कृपा को पहचान नहीं पाया।*

_*इसके बाद उसकी सोच एकदम से बदल गयी, उसकी सारी परेशानी, सारी चिंता एक दम से जैसे ख़त्म हो गयी। वह एकदम से बदल सा गया। वह भागकर अपने बेटे के पास गया और सोते हुए बेटे को गोद में उठाकर उसके माथे को चूमने लगा और अपने बेटे को तथा ईश्वर को धन्यवाद देने लगा*।_

*हमारे सामने जो भी परेशानियाँ हैं, हम जब तक उनको नकारात्मक नज़रिये से देखते रहेंगे तब तक हम परेशानियों से घिरे रहेंगे लेकिन जैसे ही हम उन्हीं चीजों को, उन्ही परिस्तिथियों को सकारात्मक नज़रिये से देखेंगे, हमारी सोच एकदम से बदल जाएगी, हमारी सारी चिंताएं, सारी परेशानियाँ, सारे तनाव एक दम से ख़त्म हो जायेंगे और हमें मुश्किलों से निकलने के नए - नए रास्ते दिखाई देने लगेंगे।*

*अगर आपको अज्ञात व्यक्तिने लिखी हुई बात अच्छी लगे तो उसका अनुकरण करके जिन्दगीको खुशहाल बनाइये*.और हमेशा सकारात्मक सोच रखे  धन्यवाद

रविवार, 18 दिसंबर 2016

गलतफहमी


.
एक जौहरी के निधन के बाद उसका
परिवार संकट में पड़ गया।
,
खाने के भी लाले पड़ गए।
,
एक दिन उसकी पत्नी ने अपने बेटे
को नीलम का एक हार
देकर कहा- 'बेटा, इसे अपने चाचा की
दुकान पर ले जाओ।
,
कहना इसे बेचकर कुछ रुपये दे दें।
,
बेटा वह हार लेकर चाचा जी के पास गया।
,
चाचा ने हार को अच्छी तरह से देख
परखकर कहा- बेटा,
मां से कहना कि अभी बाजार
बहुत मंदा है।
,
थोड़ा रुककर बेचना,
अच्छे दाम मिलेंगे।
,
उसे थोड़े से रुपये देकर कहा कि
तुम कल से दुकान पर आकर बैठना।
,
अगले दिन से वह लड़का रोज दुकान
पर जाने लगा और वहां हीरों
रत्नो की परख का काम सीखने लगा।
,
एक दिन वह बड़ा पारखी बन गया।
लोग दूर-दूर से अपने हीरे की परख कराने
आने लगे।
,
एक दिन उसके चाचा ने कहा, बेटा अपनी
मां से वह हार लेकर आना और कहना
कि अब बाजार बहुत तेज है,
,
उसके अच्छे दाम मिल जाएंगे।
,
मां से हार लेकर उसने परखा तो
पाया कि वह तो नकली है।
,
वह उसे घर पर ही छोड़ कर
दुकान लौट आया।
,
चाचा ने पूछा, हार नहीं लाए?
,
उसने कहा, वह तो नकली था।
,
तब चाचा ने कहा- जब तुम पहली बार
हार लेकर आये थे, तब मैं उसे
नकली बता देता तो तुम सोचते कि
आज हम पर बुरा वक्त आया तो चाचा
हमारी चीज को भी नकली
बताने लगे।
,
आज जब तुम्हें खुद ज्ञान हो गया तो
पता चल गया कि हार सचमुच नकली है।
,
सच यह है कि ज्ञान के बिना इस संसार में
हम जो भी सोचते, देखते और जानते हैं,
सब गलत है।
,
और ऐसे ही गलतफहमी का शिकार
होकर रिश्ते बिगडते है।
Think and Live Long Relationship
ज़रा सी रंजिश पर ,ना छोड़
किसी अपने का दामन.
,
ज़िंदगी बीत जाती है
अपनो को अपना बनाने में..!

 

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

चाबी दिल की

*चाबी दिल की।*

*किसी गाँव में एक ताले वाले की दुकान थी।ताले वाला रोजाना अनेकों चाबियाँ बनाया करता था। ताले वाले की दुकान में एक हथौड़ा भी था| वो हथौड़ा रोज देखा करता कि ये चाभी इतने मजबूत ताले को भी कितनी आसानी से खोल देती है।एक दिन हथौड़े ने चाभी से पूछा कि मैं तुमसे ज्यादा शक्तिशाली हूँ,मेरे अंदर लोहा भी तुमसे ज्यादा है और आकार में भी तुमसे बड़ा हूँ लेकिन फिर भी मुझे ताला तोड़ने में बहुत समय लगता है और तुम इतनी छोटी हो फिर भी इतनी आसानी से मजबूत ताला कैसे खोल देती हो।चाभी ने मुस्कुराकर कहा ताले से,तुम ताले पर ऊपर से प्रहार करते हो और उसे तोड़ने की कोशिश करते हो लेकिन मैं ताले के अंदर तक जाती हूँ,उसके अंतर्मन को छूती हूँ और घूमकर ताले से निवेदन करती हूँ और ताला खुल जाया करता है। वाह।कितनी गूढ़ बात कही है, चाभी ने कि,मैं ताले के अंतर्मन को छूती हूँ और वो खुल जाया करता है।आप कितने भी शक्तिशाली हो कितनी भी आपके पास ताकत हो, लेकिन,जब तक आप लोगों के दिल में नहीं उतरेंगे,उनके अंतर्मन को नहीं छुयेंगे,तब तक कोई आपकी इज्जत नहीं करेगा।हथौड़े के प्रहार से ताला खुलता नहीं,बल्कि टूट जाता है।ठीक वैसे ही अगर आप शक्ति के बल पर कुछ काम करना चाहते हैं तो आप 100% नाकामयाब रहेंगे क्योंकि शक्ति से आप किसी के दिल को नहीं छू सकते।चाभी बन जाएं,सबके दिल की चाभी।हम सब भी बाहर चोट करते है। जिससे शरीर रूपी ताला टूट जाता है।चाबी की तरह बने और सभी के दिल में उतर जाएँ तभी हमारा जीवन सफल होगा।*

गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

बनिया

एक बनिए  से लक्ष्मी  जी  रूठ गई ।जाते वक्त  बोली मैं जा रही  हूँ और मेरी जगह  टोटा (नुकसान ) आ रहा है ।तैयार  हो जाओ।लेकिन  मै तुम्हे अंतिम भेट जरूर देना चाहती हूँ।मांगो जो भी इच्छा  हो।
बनिया बहुत समझदार  था ।उसने विनती  की टोटा आए तो आने  दो ।लेकिन  उससे कहना की मेरे परिवार  में आपसी  प्रेम  बना रहे ।बस मेरी यही इच्छा  है।
लक्ष्मी  जी  ने  तथास्तु  कहा।

कुछ दिन के बाद :-

बनिए की सबसे छोटी  बहू  खिचड़ी बना रही थी ।उसने नमक आदि  डाला  और अन्य  काम  करने लगी ।तब दूसरे  लड़के की  बहू आई और उसने भी बिना चखे नमक डाला और चली गई ।इसी प्रकार  तीसरी , चौथी  बहुएं  आई और नमक डालकर  चली गई ।उनकी सास ने भी ऐसा किया ।

शाम  को सबसे पहले बनिया  आया ।पहला निवाला  मुह में लिया ।देखा बहुत ज्यादा  नमक  है।लेकिन  वह समझ गया  टोटा(हानि)  आ चुका है।चुपचाप खिचड़ी खाई और चला गया ।इसके बाद  बङे बेटे का नम्बर आया ।पहला निवाला  मुह में लिया ।पूछा पिता जी  ने खाना खा लिया ।क्या कहा उन्होंने ?
सभी ने उत्तर दिया-" हाँ खा लिया  ,कुछ नही बोले।"
अब लड़के ने सोचा जब पिता जी ही कुछ  नही  बोले तो मै भी चुपचाप खा लेता हूँ।
इस प्रकार घर के अन्य  सदस्य  एक -एक आए ।पहले वालो के बारे में पूछते और चुपचाप खाना खा कर चले गए ।

रात  को टोटा (हानि) हाथ जोड़कर  बनिए से कहने लगा  -,"मै जा रहा हूँ।"
बनिए ने पूछा- क्यों ?
तब टोटा (हानि ) कहता है, " आप लोग एक किलो तो नमक खा गए  ।लेकिन  बिलकुल  भी  झगड़ा  नही हुआ । मेरा यहाँ कोई काम नहीं।"

निचौङ

⭐झगड़ा कमजोरी ,  टोटा ,नुकसान  की पहचान है।

जहाँ प्रेम है ,वहाँ लक्ष्मी  का वास है।

सदा प्यार -प्रेम  बांटते रहे।छोटे -बङे  की कदर करे ।
जो बङे हैं ,वो बङे ही रहेंगे ।चाहे आपकी कमाई उसकी कमाई   से बङी हो।