शनिवार, 22 अप्रैल 2017

संगत का प्रभाव

संगत का प्रभाव

एक राजा का तोता मर गया। उन्होंने अपने मंत्री से कहा-- मंत्रीवर हमारा पिंजरा सूना हो गया इसमें पालने के लिए एक तोता लाओ। तोते सदैव तो मिलते नहीं। राजा पीछे पड़ गये तो मंत्री एक संत के पास गये और कहा-- भगवन्! राजा साहब एक तोता लाने की जिद कर रहे हैं। आप अपना तोता दे दें तो बड़ी कृपा होगी। संत ने कहा- ठीक है, ले जाओ।

         राजा ने सोने के पिंजरे में बड़े स्नेह से तोते की सुख-सुविधा का प्रबन्ध किया। ब्रह्ममुहूर्त में तोता बोलने लगा-- ओम् तत्सत्....ओम् तत्सत् ... उठो राजा! उठो महारानी! दुर्लभ मानव-तन मिला है। यह सोने के लिए नहीं, भजन करने के लिए मिला है।

'चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर। तुलसीदास चंदन घिसै तिलक देत रघुबीर।।'

         कभी रामायण की चौपाई तो कभी गीता के श्लोक उसके मुँह से निकलते। पूरा राजपरिवार बड़े सवेरे उठकर उसकी बातें सुना करता था। राजा कहते थे कि सुग्गा क्या मिला, एक संत मिल गये।

       हर जीव‍‍‍ की एक निश्चित आयु होती है। एक दिन वह सुग्गा मर गया। राजा, रानी, राजपरिवार और पूरे राष्ट्र ने हफ़्तों शोक मनाया। झण्डा झुका दिया गया। किसी प्रकार राजपरिवार ने शोक संवरण किया और राजकाज में लग गये। पुनः राजा साहब ने कहा-- मंत्रीवर! खाली पिंजरा सूना-सूना लगता है, एक तोते की व्यवस्था हो जाती!

      मंत्री ने इधर-उधर देखा, एक कसाई के यहाँ वैसा ही तोता एक पिंजरे में टँगा था। मंत्री ने कहा कि इसे राजा साहब चाहते हैं। कसाई ने कहा कि आपके राज्य में ही तो हम रहते हैं। हम नहीं देंगे तब भी आप उठा के  ले जायेंगे। मंत्री ने कहा-- नहीं, हम तो प्रार्थना करेंगे। कसाई ने बताया कि किसी बहेलिये ने एक वृक्ष से दो सुग्गे पकड़े थे। एक को उसने महात्माजी को दे दिया था और दूसरा मैंने खरीद लिया था। राजा को चाहिये तो आप ले जायँ।

         अब कसाईवाला तोता राजा के पिंजरे में पहुँच गया। राजपरिवार बहुत प्रसन्न हुआ। सबको लगा कि वही तोता जीवित होकर चला आया है। दोनों की नासिका, पंख, आकार, चितवन सब एक जैसे थे। लेकिन बड़े सवेरे तोता उसी प्रकार राजा को बुलाने लगा जैसे वह कसाई अपने नौकरों को उठाता था कि उठ! आलसी कामचोर ! राजा बन बैठा है। मेरे लिए ला अण्डे, नहीं तो पड़ेंगे डण्डे!

       राजा को इतना क्रोध आया कि उसने तोते को पिंजरे से निकाला और गर्दन मरोड़कर किले से बाहर फेंक दिया।

        दोनों सुग्गे सगे भाई थे। एक की गर्दन मरोड़ दी गयी, तो दूसरे के लिए झण्डे झुक गये, भण्डारा किया गया, शोक मनाया गया। आखिर भूल कहाँ   हो गयी? अन्तर था तो संगति का! सत्संगकी कमी थी।

*'संगत ही गुण होत है, संगत ही गुण जाय।*

बाँस फाँस अरु मीसरी, एकै भाव बिकाय।।'

बाबा(paramatma)कहते है कि संग तारे कुसंग बोरे   
सत्य☑ क्या है और असत्य✖ क्या है? उस सत्य की संगति कैसे करें? यही सब समझने‍♀की बात है

                 ॐशांति.
*जय श्री राधे कृष्णा*

उपकार

जंगल में शेर शेरनी शिकार के लिये दूर तक गये अपने बच्चों को अकेला छोडकर।
देर तक नही लौटे तो बच्चे भूख से छटपटाने लगे उसी समय एक बकरी आई उसे दया आई और उन बच्चों को दूध पिलाया फिर बच्चे मस्ती करने लगे तभी शेर शेरनी आये बकरी को देख लाल पीले होकर हमला करता उससे पहले बच्चों ने कहा इसने हमें दूध पिलाकर बड़ा उपकार किया है नही तो हम मर जाते।
अब शेर खुश हुआ और कृतज्ञता के भाव से बोला हम तुम्हारा उपकार कभी नही भूलेंगे जाओ आजादी के साथ जंगल मे घूमो फिरो मौज करो।
अब बकरी जंगल में निर्भयता के साथ रहने लगी यहाँ तक कि शेर के पीठ पर बैठकर भी कभी कभी पेडो के पत्ते खाती थी।
यह दृश्य चील ने देखा तो हैरानी से बकरी को पूछा तब उसे पता चला कि उपकार का कितना महत्व है।
चील ने यह सोचकर कि एक प्रयोग मैं भी करता हूँ चूहों के छोटे छोटे बच्चे दलदल मे फंसे थे निकलने का प्रयास करते पर कोशिश बेकार ।
चील ने उनको पकड पकड कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया बच्चे भीगे थे सर्दी से कांप रहे थे तब चील ने अपने पंखों में छुपाया, बच्चों को बेहद राहत मिली
काफी समय बाद चील उडकर जाने लगी तो हैरान हो उठी चूहों के बच्चों ने उसके पंख कुतर डाले थे।
चील ने यह घटना बकरी को सुनाई तुमने भी उपकार किया और मैंने भी फिर यह फल अलग क्यों? ?
बकरी हंसी फिर गंभीरता से कहा
उपकार भी शेर जैसो पर किया जाए चूहों पर नही।
चूहों (कायर) हमेशा उपकार को स्मरण नही रखेंगे वो तो भूलना बहादुरी समझते है और शेर(बहादुर )उपकार कभी नही भूलेंगे ।
सनद रहे की पिछले वर्ष कश्मीरियों को सेना ने बाढ़ में डूबने से बचाया था और आज वो ही एहसान फरामोश सेना पे पत्थर और ग्रेनेड फेंक रहे हे ।
बहुत ही विचारणीय है

रविवार, 2 अप्रैल 2017

कर्म की गत न्यारी

"" कर्म की गत न्यारी ""❗❗
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एक बार एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों और ज्योतिष प्रेमियों की सभा बुलाकर प्रश्न किया !!!

मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था,मैं राजा बना, किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होगा जो राजा नहीं  बन सके क्यों..........❓❓❓

इसका क्या कारण है●●●●❓❓❓

राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर हो गये.
क्या जबाब दें कि एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके
भाग्य अलग अलग क्यों हैं ।

सब सोच में पड़ गये ।

अचानक एक वृद्ध खड़े हुये...?

और बोले महाराज की जय हो !
आपके प्रश्न का उत्तर भला कौन
दे सकता है,
आप यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में यदि जाएँ तो वहां पर आपको एक महात्मा मिलेंगे उनसे आपको उत्तर मिल सकता है ।
राजा की जिज्ञासा बढ़ी............★★
घनघोर जंगल में जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठ कर अंगार (गरमा गरम कोयला ) खाने में
व्यस्त हैं,
सहमे हुए राजा ने......
महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा महात्मा ने क्रोधित होकर कहा,
तेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए मेरे पास समय नहीं है ...?
मैं भूख से पीड़ित हूँ ।
तेरे प्रश्न का उत्तर यहां से कुछ आगे पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा हैं,बह दे सकते हैं ।

राजा की जिज्ञासा बढ़ गयी,
पुनः अंधकार और पहाड़ी मार्ग पार कर बड़ी कठिनाइयों से चलते-चलते,
राजा दूसरे महात्मा के पास
पहुंचा किन्तु यह क्या महात्मा को देखकर राजा हक्का बक्का रह गया,
दृश्य ही कुछ ऐसा था,

वे महात्मा अपना ही माँस चिमटे
से नोच नोच कर खा रहे थे ।

राजा को देखते ही महात्मा ने डांटते हुए कहा,
मैं भूख से बेचैन हूँ मेरे पास इतना समय नहीं है,
आगे जाओ पहाड़ियों के उस
पार एक आदिवासी गाँव में एक
बालक जन्म लेने वाला है,
जो कुछ ही देर तक जिन्दा रहेगा सूर्योदय से पूर्व वहाँ पहुँचो वह बालक तेरे प्रश्न का उत्तर का दे सकता है......?

सुन कर राजा बड़ा बेचैन हुआ बड़ी अजब पहेली बन गया मेरा प्रश्न, उत्सुकता प्रबल थी,कुछ भी हो यहाँ तक पहुँच चुका हूँ वहाँ भी जाकर देखता हूँ क्या होता है ।

राजा पुनः कठिन मार्ग पार कर
किसी तरह प्रातः होने तक  उस गाँव में पहुंचा, गाँव में पता किया,
उस दंपति के घर पहुंचकर सारी बात कही और शीघ्रता से बच्चा लाने को  कहा जैसे ही बच्चा हुआ  दम्पत्ति ने नाल सहित बालक राजा के सम्मुख उपस्थित किया ।

राजा को देखते ही बालक ने हँसते हुए कहा हे ! राजन्
मेरे पास भी समय नहीं है,
किन्तु अपना उत्तर सुनो लो

तुम,मैं और दोनों महात्मा पूर्व जन्म में हम चारों भाई व राजकुमार थे ।

एकबार शिकार खेलते खेलते हम जंगल में भटक गए।
तीन दिन तक भूखे प्यासे भटकते रहे ।
अचानक हम चारों  भाइयों को आटे की एक पोटली मिली जैसे-तैसे हमने चार बाटी सेकीं और अपनी अपनी बाटी लेकर खाने बैठे ही थे, कि भूख प्यास से तड़पते हुए एक महात्मा आ गये ।

अंगार खाने वाले भइया से उन्होंने कहा " बेटा " मैं दस दिन से भूखा हूँ,
अपनी बाटी में से मुझे भी कुछ
दे दो, मुझ पर दया करो....?जिससे मेरा भी जीवन बच जाय, इस घोर जंगल से पार निकलने की मुझमेंभी कुछ सामर्थ्य आ जायेगी
इतना सुनते ही भइया गुस्से से
भड़क उठे और बोले,
तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या आग
खाऊंगा......?
चलो भागो यहां से ! ! !

वे महात्मा जी फिर मांस खाने वाले भइया के निकट आये,

उनसे भी अपनी बात कही किन्तु उन भइया ने भी महात्मा से गुस्से में आकर कहा,
कि  बड़ी मुश्किल से प्राप्त ये बाटी तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या अपना मांस नोचकर खाऊंगा........! ! !

भूख से लाचार वे महात्मा  मेरे
पास भी आये,
मुझसे भी बाटी मांगी,

तथा दया करने को कहा किन्तु मैंने भी भूख में धैर्य खोकर कह
दिया,
कि चलो आगे बढ़ो मैं क्या भूखा
मरुँ.......! ! !

बालक बोला " अंतिम "आशा लिये
वो महात्मा हे ! राजन !
आपके पास आये,
आपसे भी दया की याचना की,
सुनते ही आपने उनकी दशा पर दया करते हुये हिस्से से अपनी बाटी में से आधी बाटी आदर सहित उन महात्मा को दे दी..........! ! !

बाटी पाकर महात्मा बड़े खुश
हुए और जाते हुए बोले ! ! !
"" तुम्हारा भविष्य "" तुम्हारे कर्म और व्यवहार से फलेगा ! ! !

बालक ने कहा इस प्रकार हे ! राजन !
उस घटना के आधार पर हम अपना भोग, भोग रहे हैं.....
धरती पर एक समय में अनेकों फूल  खिलते हैं ! !
किन्तु सबके फल  रूप, गुण, आकार-प्रकार, स्वाद  में भिन्न होते हैं ! ! !

इतना कहकर वह बालक मर गया !
राजा अपने महल में पहुंचा और माना कि ज्योतिष शास्त्र, कर्तव्य शास्त्र और व्यवहार शास्त्र है ! ! !

एक ही मुहूर्त में अनेकों जातक जन्म लेते हैं, किन्तु सब अपना  किया, दिया, लिया ही पाते हैं ! ! !

जैसा भोग भोगना होगा वैसे ही
योग बनेंगे ! ! !
जैसा योग  होगा वैसा ही भोग भोगना पड़ेगा,

शांत समय मे एक बार पुनः पड़ें  ! ! !