शनिवार, 29 अक्तूबर 2016

चार मोमबत्तियां

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रात का समय था, चारों तरफ
सन्नाटा पसरा हुआ था , नज़दीक
ही एक कमरे में
चार मोमबत्तियां जल
रही थीं। एकांत पा कर
आज वे एक दुसरे से दिल की बात कर
रही थीं।

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पहली मोमबत्ती बोली,
” मैं शांति हूँ ,
पर मुझे लगता है अब इस
दुनिया को मेरी ज़रुरत
नहीं है , हर तरफ
आपाधापी और लूट-मार
मची हुई है, मैं यहाँ अब और
नहीं रह सकती। …”
और ऐसा कहते हुए , कुछ देर में
वो मोमबत्ती बुझ
गयी।
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दूसरी मोमबत्ती बोली ,
” मैं विश्वास हूँ , और
मुझे लगता है झूठ और फरेब के बीच
मेरी भी यहाँ कोई ज़रुरत
नहीं है , मैं भी यहाँ से
जा रही हूँ …” , और
दूसरी मोमबत्ती भी बुझ
गयी।
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तीसरी मोमबत्ती भी दुखी होते
हुए बोली , ”
मैं प्रेम हूँ, मेरे पास जलते रहने की ताकत है, पर
आज हर कोई इतना व्यस्त है कि मेरे लिए
किसी के पास वक्त
ही नहीं, दूसरों से तो दूर
लोग अपनों से भी प्रेम करना भूलते जा रहे हैं ,मैं
ये सब और नहीं सह सकती मैं
भी इस दुनिया से
जा रही हूँ….” और ऐसा कहते हुए
तीसरी मोमबत्ती भी बुझ
गयी।
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वो अभी बुझी ही थी कि एक
मासूम बच्चा उस
कमरे में दाखिल हुआ।
मोमबत्तियों को बुझे देख वह घबरा गया ,
उसकी आँखों से आंसू टपकने लगे और वह
रुंआसा होते
हुए बोला ,
“अरे , तुम मोमबत्तियां जल
क्यों नहीं रही ,
तुम्हे तो अंत तक जलना है ! तुम इस तरह बीच
में
हमें कैसे छोड़ के जा सकती हो ?”

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तभी चौथी मोमबत्ती बोली ,
” प्यारे बच्चे
घबराओ नहीं, मैं आशा हूँ और जब तक मैं जल
रही हूँ
हम बाकी मोमबत्तियों को फिर से
जला सकते हैं।

यह सुन बच्चे की आँखें चमक उठीं,
और उसने आशा के
बल पे शांति, विश्वास, और प्रेम को फिर से
प्रकाशित कर दिया।

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जब सबकुछ बुरा होते दिखे ,चारों तरफ
अन्धकार ही अन्धकार नज़र आये , अपने
भी पराये
लगने लगें तो भी उम्मीद मत
छोड़िये….आशा मत
छोड़िये , क्योंकि इसमें इतनी शक्ति है
कि ये हर
खोई हुई चीज आपको वापस दिल
सकती है।
अपनी आशा की मोमबत्ती को जलाये
रखिये ,बस
अगर ये जलती रहेगी तो आप
किसी भी और
मोमबत्ती को प्रकाशित कर सकते हैं।

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उजाले के इस त्योहार पर आपको यही पंक्तियां भेंट कर के एक छोटी सी कोशिश कर रहा हूं ताकि आपकी जिंदगी में इन चारों मोमबत्तीयों की रौशनी हमेशा फैली रहे |

शुभ दिपावलीin advance ✨✨✨

बुधवार, 26 अक्तूबर 2016

सब्र

एक फकीर बहुत दिनों तक बादशाह के साथ रहा
बादशाह का बहुत प्रेम उस फकीर पर हो गया। प्रेम
भी इतना कि बादशाह रात को भी उसे अपने कमरे में
सुलाता।

कोई भी काम होता, दोनों साथ-साथ ही
करते।

एक दिन दोनों शिकार खेलने गए और रास्ता भटक
गए। भूखे-प्यासे एक पेड़ के नीचे पहुंचे। पेड़ पर एक
ही फल लगा था।

बादशाह ने घोड़े पर चढ़कर फल को
अपने हाथ से तोड़ा। बादशाह ने फल के छह टुकड़े
किए और अपनी आदत के मुताबिक पहला टुकड़ा
फकीर को दिया।

फकीर ने टुकड़ा खाया और बोला,
'बहुत स्वादिष्ट! ऎसा फल कभी नहीं खाया। एक
टुकड़ा और दे दें। दूसरा टुकड़ा भी फकीर को मिल
गया।

फकीर ने एक टुकड़ा और बादशाह से मांग
लिया। इसी तरह फकीर ने पांच टुकड़े मांग कर खा
लिए।

जब फकीर ने आखिरी टुकड़ा मांगा, तो बादशाह ने
कहा, 'यह सीमा से बाहर है। आखिर मैं भी तो भूखा
हूं।

मेरा तुम पर प्रेम है, पर तुम मुझसे प्रेम नहीं
करते।' और सम्राट ने फल का टुकड़ा मुंह में रख
लिया।

मुंह में रखते ही राजा ने उसे थूक दिया, क्योंकि वह
कड़वा था।
राजा बोला,
'तुम पागल तो नहीं, इतना कड़वा फल कैसे खा गए?

'
उस फकीर का उत्तर था,
'जिन हाथों से बहुत मीठे फल खाने को मिले, एक
कड़वे फल की शिकायत कैसे करूं?

सब टुकड़े इसलिए
लेता गया ताकि आपको पता न चले।

दोस्तों जँहा मित्रता हो वँहा संदेह न हो, आओ
कुछ ऐसे रिश्ते रचे...

कुछ हमसे सीखें , कुछ हमे
सिखाएं. अपने इस ग्रुप को कारगर बनायें।

किस्मत की एक आदत है कि
वो पलटती जरुर है

और जब पलटती है,

तब सब कुछ पलटकर रख देती है।

इसलिये अच्छे दिनों मे अहंकार
न करो और

खराब समय में थोड़ा सब्र करो.

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

साधु और एक कुत्ता

एक साधु ने एक कुत्ते से कहा कि "तू है तो बहुत वफादार, परन्तु तेरे में तीन कमियां हैं ।"

1-- तू पेशाब हमेशा दीवार पे ही करता है ।
2-- तू भिखारी को देखकर बिना बात के ही भौंकता है ।
3-- तू रात को भौंक भौंक के लोगों की नींद खराब करता है ।

इस पर कुत्ते ने बहुत ही बढिया जवाब दिया,,, कुत्ता बोला- ऐ साधु ! सुन !
1-- जमीन पर पेशाब इसलिए नहीं करता कि कही किसी ने वहाँ बैठकर पूजा की हो।
2-- भिखारी पर इसलिए भौंकता हूँ कि वो भगवान को छोड़ कर लोगों से क्यों मांगता है,,
जो कि खुद भिखारी हैं । भगवान से क्यों नहीं मांगता ।
3-- और रात को इसलिए भौंकता हूँ कि हे पापी मनुष्य तू इस भ्रम की नींद में क्यों सोया हुआ है। उठ अपने उस प्रभु को याद कर जिसने तुझे इतना सब कुछ दिया है ।
        

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

दही का इन्तजाम

दही का इन्तजाम
गुप्ता जी जब लगभग पैंतालीस वर्ष के थे तब उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया था। लोगों ने दूसरी शादी की सलाह दी परन्तु गुप्ता जी ने यह कहकर मना कर दिया कि पुत्र के रूप में पत्नी की दी हुई भेंट मेरे पास हैं, इसी के साथ पूरी जिन्दगी अच्छे से कट जाएगी।
पुत्र जब वयस्क हुआ तो गुप्ता जी ने पूरा कारोबार पुत्र के हवाले कर दिया। स्वयं कभी मंदिर और आॅफिस में बैठकर समय व्यतीत करने लगे। पुत्र की शादी के बाद गुप्ता जी और अधिक निश्चित हो गये। पूरा घर बहू को सुपुर्द कर दिया।
पुत्र की शादी के लगभग एक वर्ष बाद दुपहरी में गुप्ता जी खाना खा रहे थे, पुत्र भी ऑफिस से आ गया था और हाथ–मुँह धोकर खाना खाने की तैयारी कर रहा था। उसने सुना कि पिता जी ने बहू से खाने के साथ दही माँगा और बहू ने जवाब दिया कि आज घर में दही उपलब्ध नहीं है। खाना खाकर पिताजी ऑफिस चले गये। पुत्र अपनी पत्नी के साथ खाना खाने बैठा। खाने में प्याला भरा हुआ दही भी था। पुत्र ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और खाना खाकर स्वयं भी ऑफिस चला गया।
लगभग दस दिन बाद पुत्र ने गुप्ता जी से कहा- ‘‘ पापा आज आपको कोर्ट चलना है,आज आपका विवाह होने जा रहा है।’’ पिता ने आश्चर्य से पुत्र की तरफ देखा और कहा-‘‘बेटा मुझे पत्नी की आवश्यकता नही है और मैं तुझे इतना स्नेह देता हूँ कि शायद तुझे भी माँ की जरूरत नहीं है, फिर दूसरा विवाह क्यों?’’
पुत्र ने कहा ‘‘ पिता जी, न तो मै अपने लिए माँ ला रहा हूँ न आपके लिए पत्नी,मैं तो
केवल आपके लिये दही का इन्तजाम कर रहा हूँ। कल से मै किराए के मकान मे आपकी बहू के साथ रहूँगा तथा ऑफिस मे एक कर्मचारी की तरह वेतन लूँगा ताकि आपकी बहू को दही की कीमत का पता चले।’’

सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

आम का पेड

एक छोटे बालक को आम का पेड बहोत पसंद था। जब भी फुर्सत मिलती वो तुरंत आम के पेड के पास पहुंच जाता। पेड के उपर चढना, आम खाना और खेलते हुए थक जाने पर आम की छाया मे ही सो जाना। बालक और उस पेड के बीच एक अनोखा संबंध बंध गया था।
*
बच्चा जैसे जैसे बडा होता गया वैसे वैसे उसने पेड के पास आना कम कर दिया।
कुछ समय बाद तो बिल्कुल ही बंद हो गया।
आम का पेड उस बालक को याद करके अकेला रोता रहता।
एक दिन अचानक पेड ने उस बच्चे को अपनी और आते देखा। आम का पेड खुश हो गया।
*
बालक जैसे ही पास आया  तुरंत पेड ने कहा, "तु कहां चला गया था? मै रोज़ तुम्हे याद किया करता था। चलो आज दोनो खेलते है।"
बच्चा अब बडा हो चुका था, उसने आम के पेड से कहा, अब मेरी खेलने की उम्र नही है। मुझे पढना है,
पर मेरे पास फी भरने के लिए पैसे नही है।"
पेड ने कहा, "तु मेरे आम लेकर बाजार मे जा और बेच दे,
इससे जो पैसे मिले अपनी फीस भर देना।"
*
उस बच्चे ने आम के पेड से सारे आम उतार लिए, पेड़ ने भी ख़ुशी ख़ुशी दे दिए,और वो बालक उन सब आमो को लेकर वहा से चला गया।
*
उसके बाद फिर कभी वो दिखाई नही दिया।
आम का पेड उसकी राह देखता रहता।
एक दिन अचानक फिर वो आया और कहा,
अब मुझे नौकरी मिल गई है, मेरी शादी हो चुकी है, मेरा संसार तो चल रहा है पर मुझे मेरा अपना घर बनाना है इसके लिए मेरे पास अब पैसे नही है।"
*
आम के पेड ने कहा, " तू चिंता मत कर अभी में हूँ न,
तुम मेरी सभी डाली को काट कर ले जा,
उसमे से अपना घर बना ले।"
उस जवान ने पेड की सभी डाली काट ली और ले के चला गया।
*
आम का पेड के पास कुछ नहीं था वो  अब बिल्कुल बंजर हो गया था।
कोई उसके सामने भी नही देखता था।
पेड ने भी अब वो बालक/ जवान उसके पास फिर आयेगा यह आशा छोड दी थी।
*
फिर एक दिन एक वृद्ध वहां आया। उसने आम के पेड से कहा,
तुमने मुझे नही पहचाना, पर मै वही बालक हूं जो बारबार आपके पास आता और आप उसे हमेशा अपने टुकड़े काटकर भी मेरी मदद करते थे।"
आम के पेड ने दु:ख के साथ कहा,
"पर बेटा मेरे पास अब ऐसा कुछ भी नही जो मै तुझे दे सकु।"
वृद्ध ने आंखो मे आंसु के साथ कहा,
"आज मै कुछ लेने नही आया हूं, आज तो मुझे तुम्हारे साथ जी भरके खेलना है, तुम्हारी गोद मे सर रखकर सो जाना है।"
*
ईतना कहते वो रोते रोते आम के पेड से लिपट गया और आम के पेड की सुखी हुई डाली फिर से अंकुरित हो उठी।
*
वो वृक्ष हमारे माता-पिता समान है, जब छोटे थे उनके साथ खेलना अच्छा लगता था।
जैसे जैसे बडे होते गये उनसे दुर होते गये।
पास तब आये जब जब कोई जरूरत पडी, कोई समस्या खडी हुई।
आज भी वे माँ बाप उस बंजर पेड की तरह अपने बच्चों की राह देख रहे है।
आओ हम जाके उनको लिपटे उनके गले लग जाये जिससे उनकी वृद्धावस्था फिर से अंकुरित हो जाये।
यह कहानी पढ कर थोडा सा भी किसी को एहसास हुआ हो औरअगर अपने माता-पिता से थोडा भी प्यार करते हो तो...
माँ बाप आपको सिर्फ प्यार प्यार प्यार  देंगे

हथौड़ा


एक सुनार था, उसकी दुकान से मिली हुई एक लोहार की दुकान थी।
सुनार जब काम करता तो उसकी दुकान से बहुत धीमी आवाज़ आती, किन्तु जब लोहार काम करता तो उसकी दुकान से कानों को फाड़ देने वाली आवाज़ सुनाई देती।
एक दिन एक सोने का कण छिटक कर लोहार की दुकान में आ गिरा। वहाँ उसकी भेंट लोहार के एक कण के साथ हुई।
सोने के कण ने लोहे के कण से पूछा- भाई हम दोनों का दुख एक समान है, हम दोनों को ही एक समान आग में तपाया जाता है और समान रूप ये हथौड़े की चोट
सहनी पड़ती है।
मैं ये सब यातना चुपचाप सहता हूँ, पर तुम बहुत चिल्लाते हो, क्यों?
लोहे के कण ने मन भारी करते हुऐ कहा-
तुम्हारा कहना सही है, किन्तु तुम पर चोट करने वाला हथौड़ा तुम्हारा सगा भाई नहीं है।
मुझ पर चोट करने वाला लोहे का हथौड़ा मेरा सगा भाई है।
परायों की अपेक्षा अपनों द्वारा दी गई चोट अधिक पीड़ा पहुचाँती है।

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

Earn upto 15000 pm , no investment

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संस्कार

श्रीकृष्ण ने एक रात को स्वप्न में देखा कि, एक गाय अपने नवजात बछड़े को प्रेम से चाट रही है।  चाटते-चाटते वह गाय, उस बछड़े की कोमल खाल को छील देती है । उसके शरीर से रक्त निकलने लगता है । और वह बेहोश होकर, नीचे गिर जाता है। श्रीकृष्ण प्रातः यह स्वप्न,जब भगवान श्री नेमिनाथ को बताते हैं । तो, भगवान कहते हैं कि :-

यह स्वप्न, पंचमकाल (कलियुग) का लक्षण है ।

कलियुग में माता-पिता, अपनी संतान को,इतना प्रेम करेंगे, उन्हें सुविधाओं का इतना व्यसनी बना देंगे कि, वे उनमें डूबकर, अपनी ही हानि कर बैठेंगे। सुविधा, भोगी और कुमार्ग - गामी बनकर विभिन्न अज्ञानताओं में फंसकर अपने होश गँवा देंगे।

आजकल हो भी यही रहा है। माता पिता अपने बच्चों को, मोबाइल, बाइक, कार, कपड़े, फैशन की सामग्री और पैसे उपलब्ध करा देते हैं । बच्चों का चिंतन, इतना विषाक्त हो जाता है कि, वो माता-पिता से झूठ बोलना, बातें छिपाना,बड़ों का अपमान करना आदि सीख जाते
हैं ।

☝ *याद रखियेगा* !

संस्कार दिये बिना सुविधायें देना, पतन का कारण है।

चूना

एक राजा को मलाई रबड़ी खाने का शौक था ।
उसे रात में सोने से पहले मलाई रबड़ी खाए बिना नीद नहीं आती थी ।
इसके लिए राजा ने सुनिश्चित किया कि *खजांची* (जो राज्य के धन का लेखा जोखा रखता है) एक नौकर को रोजाना चार आने दे मलाई लाने के लिए ।
यह क्रम कई दिनों तक चलता रहा ।
कुछ समय बाद खजांची को शक हुआ कि कहीं *नौकर* चार आने की मलाई में गड़बड़ तो नहीं कर रहा ।
उसने चुपचाप नौकर पर नजर रखनी शुरू कर दी ।
खजांची ने पाया कि नौकर केवल तीन आने की मलाई लाता है और एक आना बचा लेता है ।
अपनी चोरी पकड़ी जाने पर नौकर ने खजांची को एक आने की रिश्वत देना शुरू कर दिया ।
अब राजा को दो आने की मलाई रबड़ी मिलती जिसे वह *चार आने* की समझ कर खाता ।
कुछ दिन बाद राजा को शक हुआ कि मलाई की मात्रा में कमी हो रही है ।
राजा ने अपने *खास मंत्री* को अपनी शंका बतलाई और असलियत पता करने को कहा ।
मंत्री ने पूछताछ शुरू की । खजांची ने एक आने का प्रस्ताव मंत्री को दे दिया ।
अब हालात ये हुए कि नौकर को केवल दो आने मिलते जिसमें से एक आना नौकर रख लेता और केवल एक आने की मलाई रबड़ी राजा के लिए ले जाता ।
कुछ दिन बीते । इधर हलवाई जिसकी दुकान से रोजाना मलाई रबड़ी जाती थी उसे संदेह हुआ कि पहले चार आने की मलाई जाती थी अब घटते घटते एक आने की रह गई ।
*हलवाई* ने नौकर को पूछना शुरू किया और राजा को बतलाने की धमकी दी ।
नौकर ने पूरी बात खजांची को बतलाई और खजांची ने मंत्री को ।
अंत में यह तय हुआ कि एक आना हलवाई को भी दे दिया जाए ।
अब *समस्या* यह हुई कि मलाई कहां से आएगी और राजा को क्या बताया जाएगा ।
इसकी जिम्मेदारी मंत्री ने ले ली।
इस घटना के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि राजा को मलाई की प्रतीक्षा करते नींद आ गयी ।
इसी समय मंत्री ने राजा की मूछों पर सफेद चाक(खड़िया) का घोल लगा दिया ।
अगले दिन राजा ने उठते ही नौकर को बुलाया तो मंत्री और खजांची भी दौड़े आए।
राजा ने पूछा -कल मलाई क्यों नही लाऐ ।
नौकर ने खजांची और मंत्री की ओर देखा ।
मंत्री बोला - हुजर यह लाया था, आप सो गए थे इसलिए मैने आपको सोते में ही खिला दी।
देखिए अभी तक आपकी मूछों में भी लगी है।
यह कहकर उसने राजा को आईना दिखाया।
मूछों पर लगी सफेदी को देखकर राजा को विश्वास हो गया कि उसने मलाई खाई थी।
अब यह रोज का क्रम हो गया, खजाने से चार आने निकलते और बंट जाते।
राजा के मुंह पर सफेदी लग जाती

*बचपन की सुनी यह कहानी* आज के समय में भी सामयिक है ।
आप कल्पना करें कि *आम जनता राजा* है, *मंत्री हमारे नेता* हैं और *अधिकारी व ठेकेदार क्रमश: खजांची और हलवाई* हैं ।पैसा भले कामों के लिए निकल रहा है और आम आदमी को चूना दिखाकर संतुष्ट किया जा रहा है।

चांद- सितारे

गैरहाज़िर और गैरजिंमेदार कन्धे----

विश्वास साहब अपने आपको भाग्यशाली मानते थे। कारण यह था कि उनके दोनो पुत्र आई.आई.टी. करने के बाद लगभग एक करोड़ रुपये का वेतन अमेरिका में प्राप्त कर रहे थे। विश्वास साहब जब सेवा निवृत्त हुए तो उनकी इच्छा हुई कि उनका एक पुत्र भारत लौट आए और उनके साथ ही रहे ; परन्तु अमेरिका जाने के बाद कोई पुत्र भारत आने को तैयार नहीं हुआ, उल्टे उन्होंने विश्वास साहब को अमेरिका आकर बसने की सलाह दी। विश्वास साहब अपनी पत्नी भावना के साथ अमेरिका गये ; परन्तु उनका मन वहाँ पर बिल्कुल नहीं लगा और वे भारत लौट आए।
दुर्भाग्य से विश्वास साहब की पत्नी को लकवा हो गया और पत्नी पूर्णत: पति की सेवा पर निर्भर हो गई। प्रात: नित्यकर्म से लेकर खिलाने–पिलाने, दवाई देने आदि का सम्पूर्ण कार्य विश्वास साहब के भरोसे पर था। पत्नी की जुबान भी लकवे के कारण चली गई थी। विश्वास साहब पूर्ण निष्ठा और स्नेह से पति धर्म का निर्वहन कर रहे थे।
एक रात्रि विश्वास साहब ने दवाई वगैरह देकर भावना को सुलाया और स्वयं भी पास लगे हुए पलंग पर सोने चले गए। रात्रि के लगभग दो बजे हार्ट अटैक से विश्वास साहब की मौत हो गई। पत्नी प्रात: 6 बजे जब जागी तो इन्तजार करने लगी कि पति आकर नित्य कर्म से निवृत्त होने मे उसकी मदद करेंगे। इन्तजार करते करते पत्नी को किसी अनिष्ट की आशंका हुई। चूँकि पत्नी स्वयं चलने में असमर्थ थी , उसने अपने आपको पलंग से नीचे गिराया और फिर घसीटते हुए अपने पति के पलंग के पास पहुँची। उसने पति को हिलाया–डुलाया पर कोई हलचल नहीं हुई। पत्नी समझ गई कि विश्वास साहब नहीं रहे। पत्नी की जुबान लकवे के कारण चली गई थी ; अत: किसी को आवाज देकर बुलाना भी पत्नी के वश में नहीं था। घर पर और कोई सदस्य भी नहीं था। फोन बाहर ड्राइंग रूम मे लगा हुआ था। पत्नी ने पड़ोसी को सूचना देने के लिए घसीटते हुए फोन की तरफ बढ़ना शुरू किया। लगभग चार घण्टे की मशक्कत के बाद वह फोन तक पहुँची और उसने फोन के तार को खींचकर उसे नीचे गिराया। पड़ोसी के नंबर जैसे तैसे लगाये। पड़ौसी भला इंसान था, फोन पर कोई बोल नहीं रहा था, पर फोन आया था, अत: वह समझ गया कि मामला गंभीर है। उसने आस–पड़ोस के लोगों को सूचना देकर इकट्ठा किया, दरवाजा तोड़कर सभी लोग घर में घुसे। उन्होने देखा -विश्वास साहब पलंग पर मृत पड़े थे तथा पत्नी भावना टेलीफोन के पास मृत पड़ी थी। पहले *विश्वास और फिर भावना की मौत* हुई। जनाजा दोनों का साथ–साथ निकला। *पूरा मोहल्ला कंधा दे रहा था परन्तु दो कंधे मौजूद नहीं थे जिसकी माँ–बाप को उम्मीद थी। शायद वे कंधे करोड़ो रुपये की कमाई के भार के साथ अति महत्वकांक्षा से पहले ही दबे हुए थे।*
लोग बाग लगाते हैं फल के लिए
औलाद पालते हैं बुढापे के लिए
लेकिन ...... कुछ ही औलाद अपना फर्ज निभा पाते हैं ।।

अति सुन्दर कहा है एक कवि ने....

"मत शिक्षा दो इन बच्चों को चांद- सितारे छूने की।
चांद- सितारे छूने वाले छूमंतर हो जाएंगे।
अगर दे सको, शिक्षा दो तुम इन्हें चरण छू लेने की,
जो मिट्टी से जुङे रहेंगे, रिश्ते वही निभाएंगे....।

पिता

एक बहुत ही श्रीमन्त उद्योगपति का पुत्र कॉलेज में अंतिम वर्ष की परीक्षा की तैयारी में लगा रहता है,
तो उसके पिता उसकी परीक्षा के विषयमें पूछते है तो वो जवाब में कहता है की हो सकता है कॉलेज में अव्वल आऊँ,
अगर मै अव्वल आया तो मुझे वो महंगी वाली कार ला दोगे जो मुझे बहुत पसन्द है..

तो पिता खुश होकर कहते हैं क्यों नहीं अवश्य ला दूंगा.
ये तो उनके लिए आसान था. उनके पास पैसो की कोई कमी नहीं थी।

जब पुत्र ने सुना तो वो दुगुने उत्साह से पढाई में लग गया। रोज कॉलेज आते जाते वो शो रुम में रखी कार को निहारता और मन ही मन कल्पना करता की वह अपनी मनपसंद कार चला रहा है।

दिन बीतते गए और परीक्षा खत्म हुई। परिणाम आया वो कॉलेज में अव्वल आया उसने कॉलेज से ही पिता को फोन लगाकर बताया की वे उसका इनाम कार तैयार रखे मै घर आ रहा हूं।

घर आते आते वो ख्यालो में गाडी को घर के आँगन में खड़ा देख रहा था। जैसे ही घर पंहुचा उसे वहाँ कोई कार नही दिखी.
वो बुझे मन से पिता के कमरे में दाखिल हुआ.

उसे देखते ही पिता ने गले लगाकर बधाई दी और उसके हाथ में कागज में लिपटी एक वस्तु थमाई और कहा लो ये तुम्हारा गिफ्ट।

पुत्र ने बहुत ही अनमने दिल से गिफ्ट हाथ में लिया और अपने कमरे में चला गया। मन ही मन पिता को कोसते हुए उसने कागज खोल कर देखा उसमे सोने के कवर में रामायण दिखी ये देखकर अपने पिता पर बहुत गुस्सा आया.. 

लेकिन उसने अपने गुस्से को संयमित कर एक चिठ्ठी अपने पिता के नाम लिखी की पिता जी आपने मेरी कार गिफ्ट न देकर ये रामायण दी शायद इसके पीछे आपका कोई अच्छा राज छिपा होगा.. लेकिन मै यह घर छोड़ कर जा रहा हु और तबतक वापस नही आऊंगा जब तक मै बहुत पैसा ना कमा लू।और चिठ्ठी रामायण के साथ पिता के कमरे में रख कर घर छोड कर चला गया।

समय बीतता गया..
पुत्र होशयार था होनहार था जल्दी ही बहुत धनवान बन गया.   शादी की और शान से अपना जीवन जीने लगा कभी कभी उसे अपने पिता की याद आ जाती तो उसकी चाहत पर पिता से गिफ्ट ना पाने की खीज हावी हो जाती,  वो सोचता माँ के जाने के बाद मेरे सिवा उनका कौन था इतना पैसा रहने के बाद भी मेरी छोटीसी इच्छा भी पूरी नहीं की.
यह सोचकर वो पिता से मिलने से कतराता था।

एक  दिन उसे अपने पिता की बहुत याद आने लगी.
उसने सोचा क्या छोटी सी बात को लेकर अपने पिता से नाराज हुआ अच्छा नहीं हुआ.
ये सोचकर उसने पिता को फोन लगाया बहुत दिनों बाद पिता से बात कर रहा हु.
ये सोच धड़कते दिल से रिसीवर थामे खड़ा रहा.

तभी सामने से पिता के नौकर ने फ़ोन उठाया और उसे बताया की मालिक तो दस दिन पहले स्वर्ग सिधार गए और अंत तक तुम्हे याद करते रहे और रोते हुए चल बसे.

जाते जाते कह गए की मेरे बेटे का फोन आया तो उसे कहना की आकर अपना व्यवसाय सम्भाल ले.
तुम्हारा कोई पता नही होनेसे तुम्हे सूचना नहीं दे पाये।

यह जानकर पुत्र को गहरा दुःख हुआ और दुखी मन से अपने पिता के घर रवाना हुआ.

घर पहुच कर पिता के कमरे जाकर उनकी तस्वीर के सामने रोते हुए रुंधे गले से उसने पिता का दिया हुआ गिफ्ट रामायण को उठाकर माथे पर लगाया और उसे खोलकर देखा.

पहले पन्ने पर पिता द्वारा लिखे वाक्य पढ़ा जिसमे लिखा था "मेरे प्यारे पुत्र,  तुम दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की करो और साथ ही साथ मै तुम्हे कुछ अच्छे संस्कार दे पाऊं..  ये सोचकर ये रामायण दे रहा हु",
पढ़ते वक्त उस रामायण से एक लिफाफा सरक कर नीचे गिरा जिसमे उसी गाड़ी की चाबी और नगद भुगतान वाला बिल रखा हुआ था।

ये देखकर उस पुत्र को बहुत दुख हुआ और धड़ाम से जमींन पर गिर रोने लगा।

हम हमारा मनचाहा उपहार हमारी पैकिंग में ना पाकर उसे अनजाने में खो देते है।

पिता तो ठीक है.
इश्वर भी हमे अपार गिफ्ट देते है,  लेकिन हम अज्ञानी हमारे मनपसन्द पैकिंग में ना देखकर, पा कर भी खो देते है।

हमे अपने माता पिता के प्रेम से दिये ऐसेे अनगिनत उपहारों का प्रेम का सम्मान करना चाहिए और उनका धन्यवाद करना चाहिये।

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हो सकता है और कोई पुत्र ऐसे ही अपने पिता के गिफ्ट से वंचित ना रहे उनके प्रेम से वंचित ना रहे।।