रविवार, 26 जुलाई 2015

करोड़पति का धन

एक करोड़पति मर गया और स्वर्ग का दरवाजा खटखटाने लगा. देव: कौन हो तुम..? करोड़पति- मैं धरती पर करोड़पति था..!! मुझे स्वर्ग में प्रवेश चाहिए..! देव- स्वर्ग में रहने लायक तुमने कौन सा काम किया है..? करोड़पति- एक बार मैंने भूखी भिखारिन को दो रूपये दिये थे..। एक बार मेरी कार से टकराकर घायल हुए एक बच्चे को एक रूपया दिया था.. देव- और कुछ किया ? करोड़पति- और कुछ तो याद नही आता.. देव (दूसरे देव से) भाई क्या करे इसका..? दूसरे देव – इसके तीन रूपये लौटाकर इसे नरक भेज दो..।।

शनिवार, 18 जुलाई 2015

"गोल गप्पे वाला"

"गोल गप्पे वाला"

रविवार का दिन था, पत्नी जी की डिमांड हुई की आज गोल गप्पे खाने की इच्छा है । मैंने भी कह दिया चलो शाम को 6 बजे चलते है ।

शाम के 6 बजे गोलगप्पे का ठेला जो की हमारी कॉलोनी के बहार रोड पर ही खड़ा रहता है वहीँ चले गए और देखा तो वहाँ काफी भीड़ थी...लोग हाथ में प्लेट लेकर line में लगे हुए थे।

तकरीबन 15 मिनिट के बाद हमारा भी नम्बर आ गया.... लेकिन उस 15 मिनिट के दौरान में यह सोचता रहा की बेचारा क्या कमाता होगा ??
बेचारा बड़ी मेहनत करता है ??
बेचारा घर का गुजारा कैसे चलाता होगा ??

जब हमारी बारी आई तो मैंने गोल गप्पे वाले से यूँही पूछ लिया -" भाई क्या कमा लेते हो दिन भर में" (मुझे यह उम्मीद थी की 300-400₹ बन जाता होगा गरीब आदमी का )

गोल गप्पे वाला - "साहब जी भगवान की कृपा से माल पूरा लग जाता है "

मैंने पुछा - "में समझा नही भाई, मतलब जरा अच्छे से समझाओ"

गोल गप्पे वाला - " साहब हम सुबह में 7 बजे घर से 3000 खाली गोलगप्पे की पूरिया लेकर के निकलते है और शाम को 7 बजने से पहले भगवान की किरपा से सब माल लग जाता है "

मैंने हिसाब लगाया की यह 10 ₹ में 6 गोल गप्पे खिलाता है मतलब की 3000 गोल गप्पे बिकने पर उसको 5000 ₹ मिलते होंगे और अगर 50 % उसका प्रॉफिट समझे तो वह दिन के 2500 ₹ या उससे भी ज्यादा कमा लेता है...!!!

यानी की महीने के 75,000 ₹ !!!

यह सोचकर तो मेरा दिमाग चकराने लगा.... अब मुझे गोलगप्पे वाला बेचारा नजर नही आ रहा था...बेचारा तो में हो गया था...!!

एक 7-8 क्लास पढ़ा इन्सान इज्जत के साथ महीने के 75,000 ₹ कमा रहा है... उसने अपना 45 लाख का घर ले लिया है...और 4 दुकाने खरीद कर किराये पर दे रखी है जिनका महीने का किराया 30,000₹ आता है...।

और हमने बरशों तक पढ़ाई की, उसके बाद 20-25 हजार की नौकरी कर रहे है.... किराये के मकान में रह रहे है... यूँही टाई बांधकर झुठी शानमें घूम रहे हैं...

दिल तो किया की उसी गोलगप्पे में कूदकर डूब जाऊं...

किसी ने सही कहा है ...
"DON'T UNDER ESTIMATE POWER OF THE COMMON MAN "

बुधवार, 8 जुलाई 2015

Nanha krishna

बहुत समय पहले की बात है वृन्दावन में
श्रीबांके
बिहारी जी के मंदिर में रोज
पुजारी जी बड़े भाव से सेवा
करते थे। वे रोज बिहारी जी की
आरती करते , भोग
लगाते और उन्हें शयन कराते और रोज चार लड्डू
भगवान के बिस्तर के पास रख देते थे। उनका यह भाव
था कि बिहारी जी को यदि रात में भूख
लगेगी तो वे उठ
कर खा लेंगे। और जब वे सुबह मंदिर के पट खोलते थे
तो भगवान के बिस्तर पर प्रसाद बिखरा मिलता था।
इसी भाव से वे रोज ऐसा करते थे।
एक दिन बिहारी जी को शयन कराने के बाद
वे चार
लड्डू रखना भूल गए। उन्होंने पट बंद किए और चले
गए। रात में करीब एक-दो बजे , जिस दुकान से वे
बूंदी
के लड्डू आते थे , उन बाबा की दुकान
खुली थी। वे घर
जाने ही वाले थे तभी एक छोटा सा बालक
आया और
बोला बाबा मुझे बूंदी के लड्डू चाहिए।
बाबा ने कहा - लाला लड्डू तो सारे ख़त्म हो गए। अब
तो मैं दुकान बंद करने जा रहा हूँ। वह बोला आप अंदर
जाकर देखो आपके पास चार लड्डू रखे हैं। उसके हठ
करने पर बाबा ने अंदर जाकर देखा तो उन्हें चार लड्डू
मिल गए क्यों कि वे आज मंदिर नहीं गए थे। बाबा ने
कहा - पैसे दो।
बालक ने कहा - मेरे पास पैसे तो नहीं हैं और तुरंत
अपने हाथ से सोने का कंगन उतारा और बाबा को देने
लगे। तो बाबा ने कहा - लाला पैसे नहीं हैं तो रहने दो
,
कल अपने बाबा से कह देना , मैं उनसे ले लूँगा। पर वह
बालक नहीं माना और कंगन दुकान में फैंक कर भाग
गया। सुबह जब पुजारी जी ने पट खोला तो
उन्होंने देखा
कि बिहारी जी के हाथ में कंगन
नहीं है। यदि चोर भी
चुराता तो केवल कंगन ही क्यों चुराता। थोड़ी
देर बाद
ये बात सारे मंदिर में फ़ैल गई।
जब उस दुकान वाले को पता चला तो उसे रात की बात
याद आई। उसने अपनी दुकान में कंगन ढूंढा और
पुजारी
जी को दिखाया और सारी बात सुनाई। तब
पुजारी जी
को याद आया कि रात में , मैं लड्डू रखना ही भूल गया
था। इसलिए बिहारी जी स्वयं लड्डू लेने
गए थे।
��यदि भक्ति में भक्त कोई सेवा भूल भी जाता है तो
भगवान अपनी तरफ से पूरा कर लेते हैं।
शुभ-दिवस
राधे-राधे.
मांगी थी इक कली उतार कर
हार दे दिया
चाही थी एक धुन अपना सितार दे दिया
झोली बहुत ही छोटी
थी मेरी "कृष्णा"
तुमने तो कन्हैया हंस कर सारा संसार दे दिया
"""""""जय जय श्री राधे कृष्णा"""""

रविवार, 5 जुलाई 2015

श्रीनाथजी

Really Touching...
श्रीनाथजी :  - "जय श्री कृष्ण.....
माखनचोर नटखट श्री कृष्ण को रंगे हाथों पकड़ने के लिये एक ग्वालिन ने एक अनोखी जुगत भिड़ाई।उसने माखन की मटकी के साथ एक घंटी बाँध दी कि जैसे ही बाल कृष्ण माखन-मटकी को हाथ लगायेगा,घंटी बज उठेगी और मैं उसे रंगे हाथों पकड़ लूँगी।
बाल कृष्ण अपने सखाओं के साथ दबे पाँव घर में घुसे। श्री दामा की दृष्टि तुरन्त घंटी पर पड़ गई और उन्होंने बाल कृष्ण को संकेत किया। बाल कृष्ण ने सभी को निश्चिंत रहने का संकेत करते हुये, घंटी से फुसफसाते हुये कहा-'देखो घंटी, हम माखन चुरायेंगे, तुम बिल्कुल मत बजना।,
घंटी बोली-'जैसी आज्ञा प्रभु, नहीं बजूँगी।'
बाल कृष्ण ने ख़ूब माखन चुराया, अपने सखाओं को खिलाया-घंटी नहीं बजी। ख़ूब बंदरों को खिलाया- घंटी नहीं बजी। अंत में ज्यों हीं बाल कृष्ण ने माखन से भरा हाथ अपने मुँह से लगाया, त्यों ही घंटी बज उठी। घंटी की आवाज़ सुन कर ग्वालिन दौड़ी आई। ग्वाल बालों में भगदड़ मच गई। सारे भाग गये बस श्री कृष्ण पकड़ाई में आ गये।
बाल कृष्ण बोले-'तनिक ठहर गोपी,तुझे जो सज़ा देनी है वो दे दीजो, पर उससे पहले मैं ज़रा इस घंटी से निबट लूँ। क्यों री घंटी! तू बजी क्यो? मैंने मना किया था न।'
घंटी क्षमा माँगती हुई बोली-'प्रभु आपके सखाओं ने माखन खाया, मैं नहीं बजी। आपने बंदरों को ख़ूब माखन खिलाया, मैं नहीं बजी, किन्तु जैसे ही आपने माखन खाया तब तो मुझे बजना ही था,मुझे आदत पड़ी हुई है प्रभु! मंदिर में जब पुजारी भगवान को भोग लगाते हैं तब घंटियाँ बजाते हैं। इसलिये प्रभु मैं आदतन बज उठी।

श्री गिरिराज धरण की जय .....