गुरुवार, 27 जुलाई 2017

चश्मा

बाहर बारिश हो रही थी और
अन्दर क्लास चल रही थी ,
.
तभी टीचर ने बच्चों से
पूछा कि अगर तुम
सभी को 100-100 रुपये दिए जाए
तो तुम सब क्या क्या खरीदोगे ?
.
किसी ने कहा कि मैं
वीडियो गेम खरीदुंगा, किसी
ने
कहा मैं क्रिकेट का बेट
खरीदुंगा , किसी ने कहा कि मैं अपने लिए
प्यारी सी गुड़िया खरीदुंगी,
.
तो किसी ने कहा मैं बहुत
सी चॉकलेट्स
खरीदुंगी |
एक बच्चा कुछ सोचने में डुबा हुआ था,
टीचर ने उससे पुछा कि तुम
क्या सोच रहे हो ?
तुम क्या खरीदोगे ?
.
बच्चा बोला कि टीचर जी,
मेरी माँ को थोड़ा कम दिखाई देता है
तो मैं अपनी माँ के लिए एक
चश्मा खरीदूंगा ‌।
.
टीचर ने पूछाः तुम्हारी माँ के
लिए चश्मा तो तुम्हारे
पापा भी खरीद सकते है, तुम्हें अपने
लिए कुछ नहीं खरीदना ?
बच्चे ने जो जवाब दिया उससे
टीचर का भी गला भर आया |
बच्चे
ने कहा कि मेरे पापा अब इस दुनिया में नहीं है |
मेरी माँ लोगों के कपड़े सिलकर
मुझे पढ़ाती है और कम दिखाई
देने
की वजह
से वो ठीक से कपड़े नहीं सिल पाती है इसीलिए मैं
मेरी माँ को चश्मा देना
चाहता हुँ
ताकि मैं अच्छे से पढ़ सकूँ,
बड़ा आदमी बन सकूँ और
माँ को सारे सुख दे सकूँ !
टीचर:-बेटा तेरी सोच ही तेरी कमाई है। ये 100 रूपये मेरे वादे
के अनुसार और ये 100 रूपये और उधार दे रहा हूँ। जब कभी
कमाओ तो लौटा देना। और मेरी इच्छा है तू इतना बड़ा
आदमी बने कि तेरे सर पे हाथ फेरते वक्त मैं धन्य हो जाऊं।
15 वर्ष बाद......
बाहर बारिश हो रही है,
अंदर क्लास चल रही है।
अचानक स्कूल के आगे जिला कलेक्टर की बत्ती वाली
गाड़ी आकर रूकती है।
स्कूल स्टाफ चौकन्ना हो जाता हैं।
स्कूल में सन्नाटा छा जाता है।
मगर ये क्या ?
जिला कलेक्टर एक वृद्ध टीचर के पैरों में गिर जाते हैं
और कहते हैं:-" सर मैं दामोदर दास उर्फ़ झंडू!! आपके उधार के
100 रूपये लौटाने आया हूँ"
पूरा स्कूल स्टॉफ स्तब्ध!!!
वृद्ध टीचर झुके हुए नौजवान कलेक्टर को उठाकर भुजाओं में
कस लेता है और रो पड़ता हैं। ..

अमर शहीद श्री चन्द्रशेखर आज़ाद

मुछों पर ताव,
कमर में पिस्टल,
कांधे पर जनेऊ,
शेर सी शख्सियत...
वो याद थे वो याद हैं वो याद रहेंगे,
आज़ाद थे आज़ाद है आज़ाद रहेंगे..
घेर लेँगी जब मुझे चारो तरफ से गोलियाँ
छोड़कर चल देगी जब मुझे दोस्तो की
टोलियाँ
ऐ वतन, उस वक्त भी मैँ तेरे नगमे गाऊगाँ
"आजाद" ही जिंदा रहा "आजाद" ही मर
जाऊँगा।
#मैं_हूँ_आजाद
" सीने में जोश भर जाता है सिर्फ नाम लबों पे आने से "अमर शहीद श्री चन्द्रशेखर आज़ाद का

सोमवार, 24 जुलाई 2017

प्रेरक प्रसंग

*प्रेरक प्रसंग*

यह बात गौतम बुद्ध के समय की है। एक बार वह कुरु नगर गए। वहां की रानी के बारे में लोगों का कहना था कि वह बहुत क्रूर है। जब रानी को पता चला कि गौतम बुद्ध कुरु आ रहे है तो उसने सेवकों से उनका अनादर करने के लिए कहा।

जैसे ही बुद्ध ने कुरु नगर में प्रवेश किया तो सेवकों ने अपशब्द कहे। लेकिन बुद्ध शांत रहे। यह बात उनके शिष्य आनंद को अच्छी नहीं लगी।

वह उनसे बोले, 'हमें यहां से किसी ऐसे स्थान पर चले जाना चाहिए, जहां कोई हमारे साथ दुर्व्‍यवहार न करे।' बुद्ध ने कहा, 'यह जरूरी नहीं है कि हम जहां जाएंगे, वहां जरूरी नहीं हमारा आदर हो। लेकिन यदि कोई अनादर कर रहा है तो उस स्थान को जब तक नहीं छोड़ना चाहिए तब तक वहां शांति स्थापित न हो जाए।'

व्यक्ति का व्यवहार युद्ध में बढ़ते हुए उस हाथी की तरह होना चाहिए जो चारों ओर के तीरों को सहता रहता है, उसी तरह हमें दुष्ट पुरुषों के अपशब्दों को सहन करते रहना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि सबसे उत्तम तो वह है, जो स्वयं को वश में रखे। किसी भी बात पर कभी भी उत्तेजित न हो।

संक्षेप में

*अपमान पर उत्तेजित होने की बजाय स्वयं को संतुलित रखना बुद्धिमानी है।*

*शैक्षिक समाचार राजस्थान*

शुक्रवार, 21 जुलाई 2017

गणित का सूत्र

एक राजा ने बहुत ही सुंदर ''महल'' बनावाया और महल के मुख्य द्वार पर एक ''गणित का सूत्र'' लिखवाया और एक घोषणा की कि इस सूत्र से यह 'द्वार खुल जाएगा और जो भी इस ''सूत्र'' को ''हल'' कर के ''द्वार'' खोलेगा में उसे अपना उत्तराधीकारी घोषित कर दूंगा।
राज्य के बड़े बड़े गणितज्ञ आये और सूत्र देखकर लोट गए, किसी को कुछ समझ नहीं आया। आख़री दिन आ चुका था उस दिन 3 लोग आये और कहने लगे हम इस सूत्र को हल कर देंगे। उसमे 2 तो दूसरे राज्य के बड़े गणितज्ञ अपने साथ बहुत से पुराने गणित के सूत्रो की पुस्तकों सहित आये। लेकिन एक व्यक्ति जो ''साधक'' की तरह नजर आ रहा था सीधा साधा कुछ भी साथ नहीं लाया था। उसने कहा मै यहां बैठा हूँ पहले इन्हें मौक़ा दिया जाए। दोनों गहराई से सूत्र हल करने में लग गए लेकिन द्वार नहीं खोल पाये और अपनी हार मान ली। अंत में उस साधक को बुलाया गया और कहा कि आपका सूत्र हल करिये समय शुरू हो चुका है। साधक ने आँख खोली और सहज मुस्कान के साथ 'द्वार' की ओर गया। साधक ने धीरे से द्वार को धकेला और यह क्या? द्वार खुल गया, राजा ने साधक से पूछा - आप ने ऐसा क्या किया? साधक ने बताया जब में 'ध्यान' में बैठा तो सबसे पहले अंतर्मन से आवाज आई, कि पहले ये जाँच तो कर ले कि सूत्र है भी या नहीं। इसके बाद इसे हल ''करने की सोचना'' और मैंने वही किया! कई बार जिंदगी में कोई ''समस्या'' होती ही नहीं और हम ''विचारो'' में उसे बड़ा बना लेते हैं।
*जीएसटी लगने तो दीजिये अभी अपना ब्लड प्रेशर मत बढाइये*

वसीयत और नसीहत

.            *"वसीयत और नसीहत"*

एक दौलतमंद इंसान ने अपने बेटे को वसीयत देते हुए कहा,

*"बेटा मेरे मरने के बाद मेरे पैरों में ये फटे हुऐ मोज़े (जुराबें) पहना देना, मेरी यह इक्छा जरूर पूरी करना ।*

पिता के मरते ही नहलाने के बाद, बेटे ने पंडितजी से पिता की आखरी इक्छा बताई ।

*पंडितजी ने कहा: हमारे धर्म में कुछ भी पहनाने की इज़ाज़त नही है।*

पर बेटे की ज़िद थी कि पिता की आखरी इक्छ पूरी हो ।

बहस इतनी बढ़ गई की शहर के पंडितों को जमा किया गया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला ।

*इसी माहौल में एक व्यक्ति आया, और आकर बेटे के हाथ में पिता का लिखा हुआ खत दिया, जिस में पिता की नसीहत लिखी थी*

_*"मेरे प्यारे बेटे"*_

*देख रहे हो..? दौलत, बंगला, गाड़ी और बड़ी-बड़ी फैक्ट्री और फॉर्म हाउस के बाद भी, मैं एक फटा हुआ मोजा तक नहीं ले जा सकता ।*

*एक रोज़ तुम्हें भी मृत्यु आएगी, आगाह हो जाओ, तुम्हें भी एक सफ़ेद कपडे में ही जाना पड़ेगा ।*

*लिहाज़ा कोशिश करना,पैसों के लिए किसी को दुःख मत देना, ग़लत तरीक़े से पैसा ना कमाना, धन को धर्म के कार्य में ही लगाना ।*

*सबको यह जानने का हक है कि शरीर छूटने के बाद सिर्फ कर्म ही साथ जाएंगे"। लेकिन फिर भी आदमी तब तक धन के पीछे भागता रहता है जब तक उसका निधन नहीं हो जाता।*

* 1) जो आपसे दिल से बात करता है उसे कभी दिमाग से जवाब मत देना।*

* 2) एक साल मे 50 मित्र बनाना आम बात है। 50 साल तक एक मित्र से मित्रता निभाना खास बात है।*

* 3) एक वक्त था जब हम सोचते थे कि हमारा भी वक्त आएगा और एक ये वक्त है कि हम सोचते हैं कि वो भी क्या वक्त था।*

* 4) एक मिनट मे जिन्दगी नहीं बदलती पर एक मिनट सोच कर लिखा फैसला पूरी जिन्दगी बदल देता है।*

* 5) आप जीवन में कितने भी ऊॅचे क्यों न उठ जाएं, पर अपनी गरीबी और कठिनाई को कभी मत भूलिए।*

* 6) वाणी में भी अजीब शक्ति होती है। कड़वा बोलने वाले का शहद भी नहीं बिकता और मीठा बोलने वाले की मिर्ची भी बिक जाती है।*

* 7) जीवन में सबसे बड़ी खुशी उस काम को करने में है जिसे लोग कहते हैं कि तुम नही कर सकते हो।*

* 8) इंसान एक दुकान है और जुबान उसका ताला। ताला खुलता है, तभी मालूम होता है कि दुकान सोने की है या कोयले की।*

* 9) कामयाब होने के लिए जिन्दगी में कुछ ऐसा काम करो कि लोग आपका नाम Face book पे नही Google पे सर्च करें।*

* 10) दुनिया विरोध करे तुम डरो मत, क्योंकि जिस पेङ पर फल लगते है दुनिया उसे ही पत्थर मारती है।*

* 11) जीत और हार आपकी सोच पर ही निर्भर है। मान लो तो हार होगी और ठान लो तो जीत होगी।*

* 12) दुनिया की सबसे सस्ती चीज है सलाह, एक से मांगो हजारो से मिलती है। सहयोग हजारों से मांगो एक से मिलता है।*

* 13) मैने धन से कहा कि तुम एक कागज के टुकड़े हो। धन मुस्कराया और बोला बिल्कुल मैं एक कागज का टुकड़ा हूँ, लेकिन मैने आज तक जिंदगी में कूड़ेदान का मुंह नहीं देखा।*

* 14) आंधियों ने लाख बढ़ाया हौसला धूल का, दो बूंद बारिश ने औकात बता दी।*

* 15) जब एक रोटी के चार टुकड़े हों और खाने वाले पांच हों, तब मुझे भूख नहीं है, ऐसा कहने वाला कौन है.? सिर्फ "माँ"।*

* 16) जब लोग आपकी नकल करने लगें तो समझ लेना चाहिए कि आप जीवन में सफल हो रहे हैं।*

* 17) मत फेंक पत्थर पानी में, उसे भी कोई पीता है।*
*मत रहो यूं उदास जिन्दगी में, तुम्हें देखकर भी कोई जीता है।।।

सोमवार, 17 जुलाई 2017

दो    भक्त

एक बार एक संत ने अपने दो
     भक्तों को बुलाया और कहा आप
     को यहाँ से पचास कोस जाना है।
एक भक्त को एक बोरी खाने के
     समान से भर कर दी और कहा जो
     लायक मिले उसे देते जाना
और एक को ख़ाली बोरी दी उससे
      कहा रास्ते मे जो उसे अच्छा मिले
      उसे बोरी मे भर कर ले जाए।
दोनो निकल पड़े जिसके कंधे पर
     समान था वो धीरे चल पा रहा था
ख़ाली बोरी वाला भक्त आराम से
      जा रहा था
थोड़ी दूर उसको एक सोने की ईंट
     मिली उसने उसे बोरी मे डाल
     लिया
थोड़ी दूर चला फिर ईंट मिली उसे
     भी उठा लिया
जैसे जैसे चलता गया उसे सोना
     मिलता गया और वो बोरी मे भरता
     हुआ चल रहा था
और बोरी का वज़न। बड़ता गया
      उसका चलना मुश्किल होता गया
     और साँस भी चढ़ने लग गई
एक एक क़दम मुश्किल होता
     गया ।
दूसरा भक्त जैसे जैसे चलता गया
     रास्ते मै जो भी मिलता उसको
     बोरी मे से खाने का कुछ समान
     देता गया धीरे धीरे बोरी का वज़न
     कम होता गया
और उसका चलना आसान होता
     गया।
जो बाँटता गया उसका मंज़िल
     तक पहुँचना आसान होता गया
जो ईकठा करता रहा वो रास्ते मे
     ही दम तोड़ गया
दिल से सोचना हमने जीवन मे
     क्या बाँटा और क्या इकट्ठा किया
     हम मंज़िल तक कैसे पहुँच पाएँगे।

जिन्दगी का कडवा सच...
आप को 60 साल की उम्र के बाद
     कोई यह नहीं पूछेंगा कि आप का
     बैंक बैलेन्स कितना है या आप के
     पास कितनी गाड़ियाँ हैं....?

दो ही प्रश्न पूछे जाएंगे ...
     1-आप का स्वास्थ्य कैसा है.....?
         और
     2-आप के बच्चे क्या करते हैं....?

*किसी और का भेजा हुआ यह मैसेज*
    आपको भी अच्छा लगे तो
         ओरो को भी भेजें

क्या पता किसी की कुछ सोच
     बदल जाये।

प्यार बाटते रहो यही विनती है।

बुधवार, 12 जुलाई 2017

LADY COURAGEOUS...

If this doesn't inspire, nothing will!!
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Hats off to the tigresses in olive !   
      This anecdote narrated by Maj Gen Raj Mehta as a salute to our lady doctors who serve selflessly on the front will make your chest swell with pride.

LADY COURAGEOUS...
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The true life war zone incident involving a lady doctor of rare grit which follows - if it has humour - has black humour as well as the disciplining of a man about Hippocrates Oath that Doctors serve under.

It was past the witching hour in Baramula, where militancy in Kashmir began in 1988 and still goes on...I must have dozed off in the first interlude of sleep in an active, 18 hour day when I got a call on the phone...The operator displayed his urgency by prefacing the call as Urgent...IED phata hai, Sahib, Capt Devika Gupta aap se baat karna chahti hain...MI Room se bol rahi hain...
People in Kashmir sleep with their weapons and I was no different...In two minutes, I was in uniform...the QRT was ready too and we were racing out of the GOC's Bungalow nestling on the banks of the Jehlum, ...on one dark, rainy, May night over 2300 years ago...
The MI Room was close by and when I arrived, there was subdued activity...The RR soldier was part of a Unit crossing Baramula for a night domination patrol when he had stepped on an IED disguised as a transistor...His intestines had spilt out and his team had rushed him to the MI Room, where the Medical Officer, Capt Devika Gupta her hands encased in bloodied white gloves right up to her shoulders started stitching him skillfully to stop his intense bleeding...It was touch and go. My staff had reacted fast and placed a Armoured Car - a South African made mine proof bullet proof Casiper- and a three vehicle duty Gurkha QRT to escort the lady doctor and patient to the Base Hospital at Srinagar 60 kms away if that was needed...All Standard Operating Procedure during my time as GOC.
Sir, Dipika told me on arrival...It is touch and go. Have put almost 150 stitches on him...He has to reach the ICU at Srinagar for immediate operating as his vitals are collapsing. I need to monitor him and hold a drip otherwise he will die on my hands...Need an open jeep, not this "tank" she called the narrow ceilinged Casiper that was meant for war, not casualty evacuation.
It was past 1 AM now and the Baramula-Pattan road was notorious for terrorist fire on our convoys because the road was cut through low hills and gullies near Pattan, a very trouble prone area...I was the GOC and was morally responsible for any orders I gave. In this case, I felt that she had to go in a Casiper if she was not to lose her and the patients life in an ambulance Gypsy and told her the same in no uncertain terms.
Generals are trained to anticipate trouble and the moment I said what I had to and my men started jumping to respond, a quiet, firm, authoratative voice intervened...Just a minute General sir...That was Devika in a voice that wasnt hers...so my mind registered. She was dressed in a blood spattered Green military Sari and had just got up from her stitching of the soldiers abdomen...She was actually just five feet tall, soft, petite, mannered, very good in her job but for some reason, when she pulled herself up and snapped her beret on over her short hair that dark night, with about 50 odd soldiers and officers watching, she seemed to me to be taller than I.
She was.
She walked up to me close enough for I to see her angry, flashy, blazing eyes...Sir whose the GOC?  you any doubt? I asked her? No, she said, I have no doubt. Now tell me, who is the doctor whose treating the soldier? I understood...GOC's arent stupid. Anyone would understand and I certainly did. Sir, the boy is my patient. Do not interfere. If you do, you will carry the responsibility for his death. I will carry him in the open Gypsy, NOT the Casiper. If I die, my husband will grieve for me. You need not bother (he was a Medical Specialist at the Base Hospital, a great lad whom I had met at the BH while looking up my wounded soldiers)...and sir, you can later court martial me if you wish but let me go now...
With all my men waiting for my reaction at being "dressed  down" by this chit of a girl with three years service to my 36 years...I did the only thing any officer and gentleman would have in a war zone...I saluted her.
Devika, I am sorry I interfered. Go. God is with you....There were at least two people hiding their tears that dark night and she was just one of them...
The drama had yet not unfolded...At Pattan, the area I was most worried about, one of her Gurkha escort vehicles broke down at about 2.30 AM... The brave gutsy doctor asked her escort to catch up after repairing the broken down vehicle and proceeded the last 30 kilometers unescorted in her open Gypsy unescorted by other than her courage and God who was with her...
On the terror grid, no one is given special privileges, man or woman as everyone is committed to specific jobs so it was with enormous relief when Devika called me up at 4.30 AM...Sir, the soldier has been operated upon and will make it...I joined in the operation... It is Sunday. Can I have half a day off? You are aware I am 6 months pregnant and my hubby has arranged for my term tests...
That morning I called up the Corps Commander...The Army Commander was in station and was spoken to...So was the Chief...Three days later, she was awarded the Chief of Army Staff's Commendation Card for her heroism and devotion to duty...a rare honour. Months later this Tigress had delivered a baby...A child who would one day hear about a great, fiesty Mum...a woman who sorted out a protective General...and won...
When some of my peers say or write that women are not suited for the Uniform, I react very strongly in their favour because the women I have seen and interacted with were Tigresses in the main...

सम्मान

सुकरात के समय की बात है, उस समय उनके शहर में एक प्रदर्शनी लगी हुई थी। प्रदर्शनी में ग्रीक देवता अपोलो की भव्य मूर्ति स्थापित की गई थी। इस मूर्ति को देखने के लिए यूनान के प्रमुख व्यक्ति जिनमें राजा पैरीक्लीज, रानी एस्पेसिया, विद्वान सोफोक्लीज और स्वयं सुकरात वहां आए हुए थे।
मूर्ति इतनी सुंदर थी कि जो भी उसे देखता तो मूर्ति बनाने वाले कलाकार की प्रशंसा जरूर करता। लेकिन जब कलाकार का नाम राजा पैरीक्लीज ने जानना चाहा। तब वहां उपस्थित लोगों में सन्नाटा सा छा गया। सब हैरान थे। इतनी सुंदर मूर्ति बनाने वाला कलाकार कहां गुम था।
राजा के आदेश पर कलाकार को खोजने के लिए काफी मशक्कत की गई। बड़ी ही कोशिश करने के बाद सैनिकों ने कलाकार को खोज निकाला, वह एक अश्वेत रंग का व्यक्ति था और वह गुलाम था। इस गुलाम ने भगवान अपोलो की पवित्र मूर्ति को बनाया था।
दर्शक दीर्घा में कुछ धर्मगुरु भी खड़े हुए थे। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगे। यह अनर्थ हो गया है। कोई गुलाम भगवान अपोलो की मूर्ति को कैसे बना सकता है? इसे तो दंड मिलना चाहिए। इसके हाथ शरीर से अलग कर देना चाहिए।
राजा को धर्मगुरुओं की यह बात बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी। उन्होंने कहा, 'भगवान की इतनी सुंदर मूर्ति बनाने वाले के साथ इतना क्रूर में नहीं हो सकता।' राजा पैरीक्लीज आगे बड़े और उस अश्वेत गुलाम के दोनों हाथों को पकड़कर उसकी हथेलियों को चूम लिया।
इस तरह चाटूकार धर्मगुरु अपनी बात से तुरंत पलट गए और राजा के न्याय की प्रशंसा करने लगे। इस तरह उस कलावान गुलाम को सम्मानित और गुलामी की दास्तां से हमेशा-हमेशा के लिए मुक्त कर दिया गया।
संक्षेप में:-
*सम्मान हमेशा कला और ज्ञान का होता है। और राजा पैरीक्लीज ने ऐसा ही किया वह एक महान न्याय प्रिय राजा थे।*

परोपकार


            

बरगद का पेड़ को हिंदू धर्म में पवित्र वृक्ष मना गया है। ऐसा ही एक बरगद का वृक्ष एक गांव में था। स्त्री हों या पुरुष त्योहारों पर उसकी पूजा करते थे। समय बीतता गया और वृक्ष बढ़ता गया। बरगद का वृक्ष बहुत पुराना हो गया तो उसकी डालियां सूखने लगीं और टूटकर बिखरने लगीं।
बरगद के वृक्ष की हालत को मद्देनजर ऱखते हुए गांव में पंच बैठे, तय हुआ कि वृक्ष को काट दिया जाए और लकड़ियों को घरेलू उपयोग में लाया जाए। पंच ने इस बात को सहमति दे दी।
अगले दिन सुबह से ही गांव वाले बरगद के वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी लेकर पहुंचे। बरगद के पेड़ के नजदीक ही एक ओर पेड़ था, वह बरगद से बोला, 'मान्यवर ! आपको क्रोध नहीं आ रहा है। ये मनुष्य कितना स्वार्थी है। जब आपकी आवश्यकता थी तो ये सभी आपको पूजते थे। और जब आप बूढ़े हो गए हैं तो ये आपका अंत कर रहे हैं।'
बरगद के वृक्ष ने कहा, 'नहीं दोस्त! मैं प्रसन्न हूं। कि मरने के बाद भी इनके काम आ सकूंगा। यह परोपकार है।'
संक्षेप में:-
*परोपकार करना हमारे जीवन का पहला उद्देश्य होना चाहिए।*

गधे की मां

किसी मंदीर में एक पंडित रहते थे। पंडित के पास 1गधा भी था

सैकड़ों भक्त उस मंदीर पर आकर दान-दक्षिणा चढ़ाते थे❗

उन भक्तों में एक बंजारा भी था।
वह बहुत गरीब था ,
फिर भी, नियमानुसार आकर माथा टेकता,

पंडित की सेवा करता,
और
फिर अपने काम पर जाता,

उसका कपड़े का व्यवसाय था,
कपड़ों की भारी पोटली कंधों पर लिए सुबह से लेकर शाम तक गलियों में फेरी लगाता,
कपड़े बेचता❗

एक दिन उस पंडित को उस
पर दया आ गई,
उसने अपना गधा उसे भेंट कर दिया❗

अब तो बंजारे की आधी समस्याएं हल हो गईं।

वह सारे कपड़े गधे पर लादता और जब थक जाता
तो
खुद भी गधे पर बैठ जाता

इसी बीच गधा भी अपने नये मालीक से काफी घूलमील गया था

यूं ही कुछ महीने बीत गए,,
एक दिन गधे की मृत्यु हो गई❗

बंजारा बहुत दुखी हुआ,
उसने गधे को उचित स्थान पर दफनाया,
और उसकी समाधी बनाई
और
फूट-फूट कर रोने लगा❗

समीप से जा रहे किसी व्यक्ति ने
जब यह दृश्य देखा,
तो सोचा
जरूर किसी संत की समाधी होगी❗
तभी यह
बंजारा यहां बैठकर अपना दुख रो रहा है❗

यह सोचकर उस व्यक्ति ने समाधी पर
माथा टेका और अपनी मनोकामना हेतु वहां प्रार्थना की कुछ पैसे चढ़ाकर वहां से चला गया❗

कुछ दिनों के उपरांत ही उस
व्यक्ति की कामना पूर्ण हो गई❗

उसने
खुशी के मारे सारे गांव में
डंका बजाया कि अमुक स्थान पर एक पूर्ण संत की समाधी है❗

वहां जाकर जो मनोकामना मांगो वह पूर्ण होती है।
मनचाही मुरादे बख्शी जाती हैं

उस दिन से उस समाधी पर
भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया❗

दूर-दराज से भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु आने लगे।

बंजारे की तो चांदी हो गई,
बैठे-बैठे उसे कमाई
का साधन मिल गया था❗

और धीरे धीरे वह समाधी भी पूरी तरह से मंदीर का आकार ले चुकी थी❗

एक दिन वही पूराने पंडित
जिन्होंने बंजारे
को अपना गधा भेंट स्वरूप
दिया था वहां से गुजर रहे थे❗

उन्हें देखते ही बंजारे ने उनके चरण पकड़ लिए और बोला-
"आपके गधे ने
तो मेरी जिंदगी बना दी❗

जब तक जीवित था
तब तक मेरे रोजगार में मेरी मदद करता था
और
मरने के बाद
मेरी जीविका का साधन उसका मंदीर बन
गया है❗"

पंडित हंसते हुए बोले,
"बच्चा!
जिस मंदीर में
तू नित्य माथा टेकने आता था,
वह मंदीर इस गधे की मां का था❗"

यूही चल रहा है भारत.....

*इस प्रसंग का......*

*G*  -  *गधे की*
*S*  -  *समाधी पे*
*T*  -  *टेको माथा*

  *से कुछ लेना देना नही है*