मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

परनिंदा के दुष्परिणाम

परनिंदा के दुष्परिणाम

दूसरे की निंदा करिए और अपना घड़ा भरिए
हम जाने-अनजाने अपने आसपास के व्यक्तियों की निंदा करते रहते हैं: जबकि हमें उनकी वास्तविक परिस्थितियों का तनिक भी ज्ञान नही होता। निंदा रस का स्वाद बहुत ही रुचिकर होता है सो लगभग हर व्यक्ति इस स्वाद लेने को आतुर रहता है।
वास्तव में निंदा एक ऐसा  मानवीय गुण है जो सभी व्यक्तियों में कुछ न कुछ मात्रा में अवश्य पाया जाता है। यदि हमें ज्ञान हो जाये कि पर निंदा का परिणाम कितना भयानक होता है तो हम इस पाप से आसानी से बच सकते हैं।
राजा पृथु एक दिन सुबह सुबह घोड़ों के तबेलें में जा पहुंचे। तभी वहीं एक साधु भिक्षा मांगने आ पहुंचा। सुबह सुबह साधु को भिक्षा मांगते देख पृथु क्रोध से भर उठे। उन्होंने साधु की निंदा करते हुए बिना विचारे तबेलें से घोडें की लीद उठाई और उसके पात्र में डाल दी। साधु भी शांत स्वभाव का था सो भिक्षा ले वहाँ से चला गया और वह लीद कुटिया के बाहर एक कोने में डाल दी। कुछ समय उपरान्त राजा पृथु शिकार के लिए गए। पृथु ने जब जंगल में देखा एक कुटिया के बाहर घोड़े की लीद का बड़ा सा ढेर लगा हुआ है उन्होंने देखा कि यहाँ तो न कोई तबेला है और न ही दूर-दूर तक कोई घोडें दिखाई दे रहे हैं। वह आश्चर्यचकित हो कुटिया में गए और साधु से बोले "महाराज! आप हमें एक बात बताइए यहाँ कोई घोड़ा भी नहीं न ही तबेला है तो यह इतनी सारी घोड़े की लीद कहा से आई !" साधु ने कहा " राजन्! यह लीद मुझे एक राजा ने भिक्षा में दी है अब समय आने पर यह लीद उसी को खाना पड़ेगी। यह सुन राजा पृथु को पूरी घटना याद आ गई। वे साधु के पैरों में गिर क्षमा मांगने लगे। उन्होंने साधु से प्रश्न किया हमने तो थोड़ी-सी लीद दी थी पर यह तो बहुत अधिक हो गई? साधु ने कहा "हम किसी को जो भी देते है वह दिन-प्रतिदिन प्रफुल्लित होता जाता है और समय आने पर हमारे पास लौट कर आ जाता है, यह उसी का परिणाम है।" यह सुनकर पृथु की आँखों में अश्रु भर आये। वे साधु से विनती कर बोले "महाराज! मुझे क्षमा कर दीजिए मैं आइन्दा मैं ऐसी गलती कभी नहीं करूँगा।" कृपया कोई ऐसा उपाय बता दीजिए! जिससे मैं अपने दुष्ट कर्मों का प्रायश्चित कर सकूँ!" राजा की ऐसी दुखमयी हालात देख कर साधु बोला- "राजन्! एक उपाय है आपको कोई ऐसा कार्य करना है जो देखने मे तो गलत हो पर वास्तव में गलत न हो। जब लोग आपको गलत देखेंगे तो आपकी निंदा करेंगे जितने ज्यादा लोग आपकी निंदा करेंगे आपका पाप उतना हल्का होता जाएगा। आपका अपराध निंदा करने वालों के हिस्से में आ जायेगा।
यह सुन राजा पृथु ने महल में आ काफी सोच-विचार किया और अगले दिन सुबह  से शराब की बोतल लेकर चौराहे पर बैठ गए। सुबह सुबह राजा को इस हाल में देखकर सब लोग आपस में राजा की निंदा करने लगे कि कैसा राजा है कितना निंदनीय कृत्य कर रहा है क्या यह शोभनीय है ??  आदि आदि!! निंदा की परवाह किये बिना राजा पूरे दिन शराबियों की तरह अभिनय करते रहे।
इस पूरे कृत्य के पश्चात जब राजा पृथु पुनः साधु के पास पहुंचे तो लीद का ढेर के स्थान पर एक मुट्ठी लीद देख आश्चर्य से बोले "महाराज! यह कैसे हुआ? इतना बड़ा ढेर कहाँ गायब हो गया!!"
साधू ने कहा "यह आप की अनुचित निंदा के कारण हुआ है राजन्। जिन जिन लोगों ने आपकी अनुचित निंदा की है, आप का पाप उन सबमे बराबर बराबर बट गया है।
  जब हम किसी की बेवजह निंदा करते है तो हमें उसके पाप का बोझ भी उठाना पड़ता है तथा हमे अपना किये गए कर्मो का फल तो भुगतना ही पड़ता है, अब चाहे हँस के भुगतें  या रो कर। हम जैसा देंगें वैसा ही लौट कर वापिस आएगा!

सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

मन का राजा....

मन का राजा....
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राजा भोज वन में शिकार करने गए लेकिन घूमते हुए अपने सैनिकों से बिछुड़ गए और अकेले पड़ गए।
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वह एक वृक्ष के नीचे बैठकर सुस्ताने लगे।  तभी उनके सामने से एक लकड़हारा सिर पर बोझा उठाए गुजरा।
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वह अपनी धुन में मस्त था। उसने राजा भोज को देखा पर प्रणाम करना तो दूर, तुरंत मुंह फेरकर जाने लगा।
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भोज को उसके व्यवहार पर आश्चर्य हुआ। उन्होंने लकड़हारे को रोककर पूछा,
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तुम कौन हो ?
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लकड़हारे ने कहा, मैं अपने मन का राजा हूं।
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भोज ने पूछा, अगर तुम राजा हो तो तुम्हारी आमदनी भी बहुत होगी। कितना कमाते हो ?
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लकड़हारा बोला, मैं छह स्वर्ण मुद्राएं रोज कमाता हूं और आनंद से रहता हूं।
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भोज ने पूछा, तुम इन मुद्राओं को खर्च कैसे करते हो ?
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लकड़हारे ने उत्तर दिया, मैं प्रतिदिन एक मुद्रा अपने ऋणदाता को देता हूं। वह हैं मेरे माता पिता। उन्होंने मुझे पाल पोस कर बड़ा किया, मेरे लिए हर कष्ट सहा।
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दूसरी मुद्रा मैं अपने ग्राहक असामी को देता हूं, वह हैं मेरे बालक। मैं उन्हें यह ऋण इसलिए देता हूं ताकि मेरे बूढ़े हो जाने पर वह मुझे इसे लौटाएं।
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तीसरी मुद्रा मैं अपने मंत्री को देता हूं। भला पत्नी से अच्छा मंत्री कौन हो सकता है, जो राजा को उचित सलाह देता है, सुख दुख का साथी होता है।
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चौथी मुद्रा मैं खजाने में देता हूं।
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पांचवीं मुद्रा का उपयोग स्वयं के खाने पीने पर खर्च करता हूं क्योंकि मैं अथक परिश्रम करता हूं।
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छठी मुद्रा मैं अतिथि सत्कार के लिए सुरक्षित रखता हूं क्योंकि अतिथि कभी भी किसी भी समय आ सकता है। उसका सत्कार करना हमारा परम धर्म है।
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राजा भोज सोचने लगे, मेरे पास तो लाखों मुद्राएं है पर जीवन के आनंद से वंचित हूं।
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लकड़हारा जाने लगा तो बोला, राजन् मैं पहचान गया था कि तुम राजा भोज हो पर मुझे तुमसे क्या सरोकार। भोज दंग रह गए।

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

धैर्य की पराकाष्ठा

धैर्य की पराकाष्ठा

बाल गंगाधर तिलक भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी थे पर साथ ही साथ वे अद्वितीय कीर्तन कार, तत्वचिंतक, गणितज्ञ, धर्म प्रवर्तक और दार्शनिक भी थे। हिंदुस्तान में राजकीय असंतोष मचाने वाले इस करारी और निग्रही महापुरुष को अंग्रेज़ सरकार ने मंडाले के कारागृह में छह साल के लिए भेज दिया। यहीं से उनके तत्व चिंतन का प्रारंभ हुआ।

दुख और यातना सहते-सहते शरीर को व्याधियों ने घेर लिया था। ऐसे में ही उन्हें अपने पत्नी के मृत्यु की ख़बर मिली। उन्होंने अपने घर एक खत लिखा "आपका तार मिला। मन को धक्का तो ज़रूर लगा है। हमेशा आए हुए संकटों का सामना मैंने धैर्य के साथ किया है। लेकिन इस ख़बर से मैं थोड़ा उदास ज़रूर हो गया हूँ। हम हिंदू लोग मानते हैं कि पति से पहले पत्नी को मृत्यु आती है तो वह भाग्यवान है, उसके साथ भी ऐसे ही हुआ है।

उसकी मृत्यु के समय मैं वहाँ उसके क़रीब नहीं था इसका मुझे बहुत अफ़सोस है। होनी को कौन टाल सकता है? परंतु मैं अपने दुख भरे विचार सुनाकर आप सबको और दुखी करना नहीं चाहता। मेरी ग़ैरमौजूदगी में बच्चों को ज़्यादा दुख होना स्वाभाविक है। उन्हें मेरा संदेशा पहुँचा दीजिए कि जो होना था वह हो चुका है। इस दुख से अपनी और किसी तरह की हानि न होने दें l

पढ़ने में ध्यान दें, विद्या ग्रहण करने में कोई कसर ना छोड़ें। मेरे माता पिता के देहांत के समय मैं उनसे भी कम उम्र का था। संकटों की वजह से ही स्वावलंबन सीखने में सहायता मिलती है। दुख करने में समय का दुरुपयोग होता है। जो हुआ है उस परिस्थिति का धीरज का सामना करें।"अत्यंत कष्ट के समय पर भी पत्नी के निधन का समाचार एक कठिन परीक्षा के समान था।

किंतु बाल गंगाधर तिलक ने अपना धीरज न खोते हुए परिवार वालों को धैर्य बँधाया व इस परीक्षा को सफलता से पार किया। जीवन भर उन्होंने कर्मयोग का चिंतन किया था वो ऐसे ही तो नहीं! 'गीता' जैसे तात्विक और अलौकिक ग्रंथ पर आधारित 'गीता रहस्य' उन्होंने इसी मंडाले के कारागृह में लिखा था |

🏆➡ *शिक्षा*  ~
*उपर्युक्त कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती हैं कि जब हम मुसीबतों या परेशानियों में हो तब हमें धैर्य व साहस से काम लेना चाहियें l संकट के समय धैर्य बनाये रखना चाहियें l यही इस कहानी का सार हैं ll*

बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

पहचाने खुद को

पहचाने खुद को
       
  एक योद्धा, जिसे उसके शौर्य ,निष्ठा और साहस के लिए जाना जाता था, कुछ समय से वह स्वयं को कुछ निराश सा अनुभव करने लगा था।
         एक दिन वह एक सन्यासी के पास अपनी निराशा पर सलाह लेने पहुँचा।
           सैनिक ने उससे पूछा,"मैं इतना हीन क्यों महसूस करता हूँ ? मैंने कितनी ही लड़ाइयाँ जीती हैं ,कितने ही असहाय लोगों की मदद की है। पर जब मैं और लोगों को देखता हूँ तो लगता है कि मैं उनके सामने कुछ नहीं हूँ, मेरे जीवन का कोई महत्त्व ही नहीं है।"
          सन्यासी ने कहा,अभी मेरे विश्राम का समय है कुछ इंतज़ार करो।" 
           योद्धा  इंतज़ार करता रहा,शाम ढलने लगी थी अचानक सन्यासी कुटिया से बाहर आए और  इशारे से उसे अपने पीछे आने को कहा।
           चाँद की रोशनी में सबकुछ बड़ा शांत और सौम्य था, सारा वातावरण बड़ा ही मोहक प्रतीत हो रहा था।
          सन्यासी बोले "तुम चाँद को देख रहे हो,कितना खूबसूरत है ! सारी रात इसी तरह चमकता रहेगा, हमें शीतलता पहुंचाएगा, लेकिन कल सुबह फिर सूर्योदय होगा,और सूर्य का प्रकाश तो चाँद के प्रकाश से कहीं अधिक है,उसी के कारण हम दिन में खूबसूरत पेड़ों , पहाड़ों और पूरी प्रकृति को साफ़ साफ़ देख पाते हैं,हैं ना! मैं तो कहूँगा कि चाँद की कोई ज़रुरत ही नहीं है….उसका अस्तित्व ही बेकार है !!"
          योद्धा बोला,"अरे ! यह आप क्या कह रहे हैं जी? ऐसा कतई नहीं है, चाँद और सूर्य अलग अलग हैं, दोनों की अपनी अपनी उपयोगिता है, आप इस तरह दोनों की तुलना नहीं कर सकते।"
            "तो इसका मतलब तुम्हे अपनी समस्या का हल  मालूम है।अपनी समस्या का हल तुम अपने ही उत्तर में खोजो।" यह कह कर सन्यासी ने अपनी बात पूरी की और चल दिए पुनः अपनी कुटिया की ओर।
              योद्धा को भी अपने प्रश्न का जवाब मिल चुका था।
        *✅सही है न✅*
           अक्सर हम अपने गुणों को कम और दूसरों के गुणों को अधिक आंकते हैं। लेकिन यदि दूसरों में विशेष गुणवत्ता है तो हमारे अन्दर भी कई गुण मौजूद हैं। यह बात हमें भूलनी नहीं चाहिए।
           पहचाने खुद को अपनी ताकत को,अपनी खूबी को,अपने गुणों को अपनी विशेषता,योग्यता को।
        विकास करें अपने कौशल का,अपने व्यक्तित्व का।
        अहमियत दें, खुद को।
        समय निकालें अपने लिए।
         केवल हम ही हैं  वह शख्श हैं जो हमें हमारी मनचाही खुशी, आनन्द, प्रेम और आत्मिक सुख दे सकेगा।
            

जल्दबाजी

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दूसरों को सही-गलत साबित करने में  न करें
ट्रेन में एक पिता-पुत्र सफर कर रहे थे.
24 वर्षीय पुत्र खिड़की से बाहर देख रहा था, अचानक वो चिल्लाया – पापा देखो पेड़ पीछे की ओर भाग रहे हैं !
पिता कुछ बोला नहीं, बस सुनकर मुस्कुरा दिया. ये देखकर बगल में बैठे एक युवा दम्पति को अजीब लगा और उस लड़के के बचकाने व्यवहार पर दया भी आई.
तब तक वो लड़का फिर से बोला – पापा देखो बादल हमारे साथ दौड़ रहे हैं !
युवा दम्पति से रहा नहीं गया और वो उसके पिता से बोल पड़े – आप अपने लड़के को किसी अच्छे डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते ?
लड़के का पिता मुस्कुराया और बोला – हमने दिखाया था और हम अभी सीधे हॉस्पिटल से ही आ रहे हैं. मेरा लड़का जन्म से अंधा था और आज वो यह दुनिया पहली बार देख रहा है.
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दूसरी कहानी :
एक प्रोफेसर अपनी क्लास में कहानी सुना रहे थे, जोकि इस प्रकार है –
एक बार समुद्र के बीच में एक बड़े जहाज पर बड़ी दुर्घटना हो गयी. कप्तान ने शिप खाली करने का आदेश दिया. जहाज पर एक युवा दम्पति थे. जब लाइफबोट पर चढ़ने का उनका नम्बर आया तो देखा गया नाव पर केवल एक व्यक्ति के लिए ही जगह है. इस मौके पर आदमी ने औरत को धक्का दिया और नाव पर कूद गया.
डूबते हुए जहाज पर खड़ी औरत ने जाते हुए अपने पति से चिल्लाकर एक वाक्य कहा.
अब प्रोफेसर ने रुककर स्टूडेंट्स से पूछा – तुम लोगों को क्या लगता है, उस स्त्री ने अपने पति से क्या कहा होगा ?
ज्यादातर विद्यार्थी फ़ौरन चिल्लाये – स्त्री ने कहा – मैं तुमसे नफरत करती हूँ ! I hate you !
प्रोफेसर ने देखा एक स्टूडेंट एकदम शांत बैठा हुआ था, प्रोफेसर ने उससे पूछा कि तुम बताओ तुम्हे क्या लगता है ?
वो लड़का बोला – मुझे लगता है, औरत ने कहा होगा – हमारे बच्चे का ख्याल रखना !
प्रोफेसर को आश्चर्य हुआ, उन्होंने लडके से पूछा – क्या तुमने यह कहानी पहले सुन रखी थी ?
लड़का बोला- जी नहीं, लेकिन यही बात बीमारी से मरती हुई मेरी माँ ने मेरे पिता से कही थी.
प्रोफेसर ने दुखपूर्वक कहा – तुम्हारा उत्तर सही है !
प्रोफेसर ने कहानी आगे बढ़ाई – जहाज डूब गया, स्त्री मर गयी, पति किनारे पहुंचा और उसने अपना बाकि जीवन अपनी एकमात्र पुत्री के समुचित लालन-पालन में लगा दिया. कई सालों बाद जब वो व्यक्ति मर गया तो एक दिन सफाई करते हुए उसकी लड़की को अपने पिता की एक डायरी मिली.
डायरी से उसे पता चला कि जिस समय उसके माता-पिता उस जहाज पर सफर कर रहे थे तो उसकी माँ एक जानलेवा बीमारी से ग्रस्त थी और उनके जीवन के कुछ दिन ही शेष थे.
ऐसे कठिन मौके पर उसके पिता ने एक कड़ा निर्णय लिया और लाइफबोट पर कूद गया. उसके पिता ने डायरी में लिखा था – तुम्हारे बिना मेरे जीवन को कोई मतलब नहीं, मैं तो तुम्हारे साथ ही समंदर में समा जाना चाहता था. लेकिन अपनी संतान का ख्याल आने पर मुझे तुमको अकेले छोड़कर जाना पड़ा.
जब प्रोफेसर ने कहानी समाप्त की तो, पूरी क्लास में शांति थी.
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इस संसार में कईयों सही गलत बातें हैं लेकिन उसके अतिरिक्त भी कई जटिलतायें हैं, जिन्हें समझना आसान नहीं. इसीलिए ऊपरी सतह से देखकर बिना गहराई को जाने-समझे हर परिस्थिति का एकदम सही आकलन नहीं किया जा सकता.
– कलह होने पर जो पहले माफ़ी मांगे, जरुरी नहीं उसी की गलती हो. हो सकता है वो रिश्ते को बनाये रखना ज्यादा महत्वपूर्ण समझता हो.
– दोस्तों के साथ खाते-पीते, पार्टी करते समय जो दोस्त बिल पे करता है, जरुरी नहीं उसकी जेब नोटों से ठसाठस भरी हो. हो सकता है उसके लिए दोस्ती के सामने पैसों की अहमियत कम हो.
– जो लोग आपकी मदद करते हैं, जरुरी नहीं वो आपके एहसानों के बोझ तले दबे हों. वो आपकी मदद करते हैं क्योंकि उनके दिलों में दयालुता और करुणा का निवास है.
आजकल जीवन कठिन इसीलिए हो गया है क्योंकि हमने लोगो को समझना कम कर दिया और फौरी तौर पर judge करना शुरू कर दिया है. थोड़ी सी समझ और थोड़ी सी मानवता ही आपको सही रास्ता दिखा सकती है. जीवन में निर्णय लेने के कई ऐसे पल आयेंगे, सो अगली बार किसी पर भी अपने पूर्वाग्रह का ठप्पा लगाने से पहले विचार अवश्य करें.

मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

समस्या

समस्या
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एक राजा ने बहुत ही सुंदर ''महल'' बनावाया और महल के मुख्य द्वार पर एक ''गणित का सूत्र'' लिखवाया..
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और एक घोषणा की कि इस सूत्र से यह 'द्वार खुल जाएगा और जो भी इस ''सूत्र'' को ''हल'' कर के ''द्वार'' खोलेगा में उसे अपना उत्तराधीकारी घोषित कर दूंगा !
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राज्य के बड़े बड़े गणितज्ञ आये और 'सूत्र देखकर लोट गए, किसी को कुछ समझ नहीं आया !
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आख़री दिन आ चुका था उस दिन 3 लोग आये और कहने लगे हम इस सूत्र को हल कर देंगे
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उसमे 2 तो दूसरे राज्य के बड़े गणितज्ञ अपने साथ बहुत से पुराने गणित के सूत्रो की पुस्तकों सहित आये !
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लेकिन एक व्यक्ति जो ''साधक'' की तरह नजर आ रहा था सीधा साधा कुछ भी साथ नहीं लाया था !
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उसने कहा मै यहां बैठा हूँ पहले इन्हें मौक़ा दिया जाए !
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दोनों गहराई से सूत्र हल करने में लग गए लेकिन द्वार नहीं खोल पाये और अपनी हार मान ली
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अंत में उस साधक को बुलाया गया और कहा कि आप सूत्र हल करिये समय शुरू हो चुका है
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साधक ने आँख खोली और सहज मुस्कान के साथ 'द्वार' की ओर गया !
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साधक ने धीरे से द्वार को धकेला और यह क्या ? द्वार खुल गया..
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राजा ने साधक से पूछा -- आप ने ऐसा क्या किया ?
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साधक ने बताया जब में 'ध्यान' में बैठा तो सबसे पहले अंतर्मन से आवाज आई, कि पहले ये जाँच तो कर ले कि सूत्र है भी या नहीं..
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इसके बाद इसे हल ''करने की सोचना'' और मैंने वही किया !
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कई बार जिंदगी में कोई ''समस्या'' होती ही नहीं और हम ''विचारो'' में उसे बड़ा बना लेते है
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मित्रों, हर समस्या का उचित इलाज आपकी ''आत्मा'' की आवाज है !

आदतें नस्लों का पता देती हैं...

आदतें नस्लों का पता देती हैं...
एक बादशाह के दरबार मे एक अजनबी नौकरी  के लिए हाज़िर हुआ ।
क़ाबलियत पूछी गई, कहा, "सियासी हूँ ।" ( अरबी में सियासी , अक्ल से मामला हल करने वाले को कहते हैं ।)
बादशाह के पास राजदरबारियों की भरमार थी, उसे खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना लिया।
चंद दिनों बाद बादशाह ने उस से अपने सब से महंगे और अज़ीज़ घोड़े के बारे में पूछा,
उसने कहा, "नस्ली नही  हैं ।"
बादशाह को ताज्जुब हुआ, उसने जंगल से घोड़े की जानकारी वालो को बुला कर जांच कराई..
उसने बताया, घोड़ा नस्ली हैं, लेकिन इसकी पैदायश पर इसकी मां मर गई थी, ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला है।
बादशाह ने अपने सियासी को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं ?"
""उसने कहा "जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता हैं ।"""
बादशाह उसकी परख से बहुत खुश हुआ, उसने सियासी के घर अनाज ,घी, भुने और अच्छा मांस बतौर इनाम भिजवाया।
और उसे रानी के महल में तैनात कर दिया।
चंद दिनो बाद , बादशाह ने उस से बेगम के बारे में राय मांगी, उसने कहा, "तौर तरीके तो रानी जैसे हैं लेकिन राजकुमारी नहीं हैं ।"
बादशाह के पैरों तले जमीन निकल गई, हवास दुरुस्त हुए तो अपनी सास को बुलाया, मामला उसको बताया, सास ने कहा "हक़ीक़त ये हैं,  कि आपके पिता ने मेरे पति से हमारी बेटी की पैदायश पर ही रिश्ता मांग लिया था, लेकिन हमारी बेटी 6 माह में ही मर गई थी, लिहाज़ा हम ने आपकी बादशाहत से करीबी रिश्ते क़ायम करने के लिए किसी और कि बच्ची को अपनी बेटी बना लिया।"
बादशाह ने अपने सियासी से पूछा "तुम को कैसे जानकारी हुई ?"
""उसने कहा, "उसका नौकरोंं के साथ सुलूक मूर्खो से भी बदतर हैं । एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का एक तरीका एक शिष्टाचार होता हैं, जो रानी में बिल्कुल नहीं । """
बादशाह फिर उसकी परख से खुश हुआ और बहुत से अनाज , भेड़ बकरियां बतौर इनाम दीं साथ ही उसे अपने दरबार मे शामिल कर लिया।
कुछ वक्त गुज़रा, सियासी को बुलाया,अपने बारे में जानकारी चाही।
सियासी ने कहा "जान की खैर हो तो बताऊ ।"
बादशाह ने वादा किया । उसने कहा, "न तो आप बादशाह के पुत्र हो न आपका चलन बादशाहों वाला है।"
बादशाह को ताव आया, मगर जान की खैर दे चुका था, सीधा अपनी माँ के महल पहुंचा ।
माँ ने कहा, "ये सच है, तुम एक चरवाहे के बेटे हो, हमारी औलाद नहीं थी तो तुम्हे लेकर हम ने पाला ।"
बादशाह ने सियासी को बुलाया और पूछा , बता, "तुझे कैसे पता हुआ ????"
उसने कहा "बादशाह जब किसी को "इनाम " दिया करते हैं, तो हीरे मोती जवाहरात की शक्ल में देते हैं....लेकिन आप भेड़, बकरियां, खाने पीने की चीजें देते हैं...ये चलन बादशाह के बेटे का नही,  किसी चरवाहे के बेटे का ही हो सकता है।"
किसी इंसान के पास कितनी धन दौलत, सुख समृद्धि, रुतबा, इल्म, बाहुबल हैं ये सब बाहरी चरित्र हैं ।
इंसान की असलियत, उस के खून की किस्म उसके व्यवहार, उसकी नीयत से होती हैं ।
एक इंसान बहुत आर्थिक, शारीरिक, सामाजिक और राजनैतिक रूप से बहुत शक्तिशाली होने के उपरांत भी अगर वह छोटी छोटी चीजों के लिए नियत खराब कर लेता हैं, इंसाफ और सच की कदर नहीं करता,   अपने पर उपकार और विश्वास करने वालों के साथ दगाबाजी कर देता हैं, या अपने तुच्छ फायदे और स्वार्थ पूर्ति के लिए दूसरे इंसान को बड़ा नुकसान पहुंचाने की लिए तैयार हो जाता हैं, तो समझ लीजिए, खून में बहुत बड़ी खराबी हैं । बाकी सब तो पीतल पर चढ़ा हुआ सोने का पानी हैं ।
( एक अरबी कहानी )
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शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018

आदतें नस्लों का पता देती हैं...

आदतें नस्लों का पता देती हैं...

एक बादशाह के दरबार मे एक अजनबी नौकरी  के लिए हाज़िर हुआ ।
क़ाबलियत पूछी गई, कहा, "सियासी हूँ ।" ( अरबी में सियासी , अक्ल से मामला हल करने वाले को कहते हैं ।)
बादशाह के पास राजदरबारियों की भरमार थी, उसे खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना लिया।
चंद दिनों बाद बादशाह ने उस से अपने सब से महंगे और अज़ीज़ घोड़े के बारे में पूछा,
उसने कहा, "नस्ली नही  हैं ।"
बादशाह को ताज्जुब हुआ, उसने जंगल से घोड़े की जानकारी वालो को बुला कर जांच कराई..
उसने बताया, घोड़ा नस्ली हैं, लेकिन इसकी पैदायश पर इसकी मां मर गई थी, ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला है।
बादशाह ने अपने सियासी को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं ?"

""उसने कहा "जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता हैं ।"""

बादशाह उसकी परख से बहुत खुश हुआ, उसने सियासी के घर अनाज ,घी, भुने और अच्छा मांस बतौर इनाम भिजवाया।

और उसे रानी के महल में तैनात कर दिया।
चंद दिनो बाद , बादशाह ने उस से बेगम के बारे में राय मांगी, उसने कहा, "तौर तरीके तो रानी जैसे हैं लेकिन राजकुमारी नहीं हैं ।"

बादशाह के पैरों तले जमीन निकल गई, हवास दुरुस्त हुए तो अपनी सास को बुलाया, मामला उसको बताया, सास ने कहा "हक़ीक़त ये हैं,  कि आपके पिता ने मेरे पति से हमारी बेटी की पैदायश पर ही रिश्ता मांग लिया था, लेकिन हमारी बेटी 6 माह में ही मर गई थी, लिहाज़ा हम ने आपकी बादशाहत से करीबी रिश्ते क़ायम करने के लिए किसी और कि बच्ची को अपनी बेटी बना लिया।"

बादशाह ने अपने सियासी से पूछा "तुम को कैसे जानकारी हुई ?"

""उसने कहा, "उसका नौकरोंं के साथ सुलूक मूर्खो से भी बदतर हैं । एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का एक तरीका एक शिष्टाचार होता हैं, जो रानी में बिल्कुल नहीं । """

बादशाह फिर उसकी परख से खुश हुआ और बहुत से अनाज , भेड़ बकरियां बतौर इनाम दीं साथ ही उसे अपने दरबार मे शामिल कर लिया।

कुछ वक्त गुज़रा, सियासी को बुलाया,अपने बारे में जानकारी चाही।
सियासी ने कहा "जान की खैर हो तो बताऊ ।"

बादशाह ने वादा किया । उसने कहा, "न तो आप बादशाह के पुत्र हो न आपका चलन बादशाहों वाला है।"

बादशाह को ताव आया, मगर जान की खैर दे चुका था, सीधा अपनी माँ के महल पहुंचा ।

माँ ने कहा, "ये सच है, तुम एक चरवाहे के बेटे हो, हमारी औलाद नहीं थी तो तुम्हे लेकर हम ने पाला ।"

बादशाह ने सियासी को बुलाया और पूछा , बता, "तुझे कैसे पता हुआ ????"

उसने कहा "बादशाह जब किसी को "इनाम " दिया करते हैं, तो हीरे मोती जवाहरात की शक्ल में देते हैं....लेकिन आप भेड़, बकरियां, खाने पीने की चीजें देते हैं...ये चलन बादशाह के बेटे का नही,  किसी चरवाहे के बेटे का ही हो सकता है।"

किसी इंसान के पास कितनी धन दौलत, सुख समृद्धि, रुतबा, इल्म, बाहुबल हैं ये सब बाहरी चरित्र हैं ।
इंसान की असलियत, उस के खून की किस्म उसके व्यवहार, उसकी नीयत से होती हैं ।

एक इंसान बहुत आर्थिक, शारीरिक, सामाजिक और राजनैतिक रूप से बहुत शक्तिशाली होने के उपरांत भी अगर वह छोटी छोटी चीजों के लिए नियत खराब कर लेता हैं, इंसाफ और सच की कदर नहीं करता,   अपने पर उपकार और विश्वास करने वालों के साथ दगाबाजी कर देता हैं, या अपने तुच्छ फायदे और स्वार्थ पूर्ति के लिए दूसरे इंसान को बड़ा नुकसान पहुंचाने की लिए तैयार हो जाता हैं, तो समझ लीजिए, खून में बहुत बड़ी खराबी हैं । बाकी सब तो पीतल पर चढ़ा हुआ सोने का पानी हैं ।
( एक अरबी कहानी )

गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

अनोखा पात्र

अनोखा पात्र

एक राजमहल के द्वार पर बड़ी भीड़ लगी थी।
किसी फकीर ने सम्राट से भिक्षा मांगी थी। सम्राट ने उससे कहा, "जो भी चाहते हो, मांग लो।"

दिवस के प्रथम याचक की कोई भी इच्छा पूरी करने का उसका नियम था।

उस फकीर ने अपने छोटे से भिक्षापात्र को आगे बढ़ाया और कहा, "बस इसे स्वर्ण मुद्राओं से भर दें।"

सम्राट ने सोचा इससे सरल बात और क्या हो सकती है! लेकिन जब उस भिक्षा पात्र में स्वर्ण मुद्राएं डाली गई, तो ज्ञात हुआ कि उसे भरना असंभव था।

वह तो जादुई था। जितनी अधिक मुद्राएं उसमें डाली गई, वह उतना ही अधिक खाली होता गया!

सम्राट को दुखी देख वह फकीर बोला, "न भर सकें तो वैसा कह दें। मैं खाली पात्र को ही लेकर चला जाऊंगा!ज्यादा से ज्यादा इतना ही होगा कि लोग कहेंगे कि सम्राट अपना वचन पूरा नहीं कर सके !"

सम्राट ने अपना सारा खजाना खाली कर दिया, उसके पास जो कुछ भी था, सभी उस पात्र में डाल दिया गया, लेकिन अद्भुत पात्र न भरा, सो न भरा।

तब उस सम्राट ने पूछा,"भिक्षु, तुम्हारा पात्र साधारण नहीं है। उसे भरना मेरी सामर्थ्य से बाहर है। क्या मैं पूछ सकता हूं कि इस अद्भुत पात्र का रहस्य क्या है?"

वह फकीर हंसने लगा और बोला, "कोई विशेष रहस्य नहीं। यह पात्र मनुष्य के हृदय से बनाया गया है।

*क्या आपको ज्ञात नहीं है कि मनुष्य का हृदय कभी भी भरा नहीं जा सकता?धन से, पद से, ज्ञान से किसी से भी भरो,वह खाली ही रहेगा, क्योंकि इन चीजों से भरने के लिए वह बना ही नहीं है। इस सत्य को न जानने के कारण ही मनुष्य जितना पाता है,उतना ही दरिद्र होता जाता है। हृदय की इच्छाएं कुछ भी पाकर शांत नहीं होती हैं। क्यों? क्योंकि, हृदय तो परमात्मा को पाने के लिए बना है।*

शांति चाहते हो? संतृप्ति चाहते हो? तो अपने संकल्प को कहने दो कि परमात्मा के अतिरिक्त और मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।

मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

सहनशीलता


सहनशीलता

एक दरोगा संत दादू की ईश्वर भक्ति और सिद्धि से बहुत प्रभावित था। उन्हें गुरु मानने की इच्छा से वह उनकी खोज में निकल पड़ा। लगभग आधा जंगल पार करने के बाद दरोगा को केवल धोती पहने एक साधारण-सा व्यक्ति दिखाई दिया। वह उसके पास जाकर बोला, "क्यों बे तुझे मालूम है कि संत दादू का आश्रम कहाँ है?"

वह व्यक्ति दरोगा की बात अनसुनी कर के अपना काम करता रहा। भला दरोगा को यह सब कैसे सहन होता? लोग तो उसके नाम से ही थर-थर काँपते थे उसने आव देखा न ताव लगा ग़रीब की धुनाई करने। इस पर भी जब वह व्यक्ति मौन धारण किए अपना काम करता ही रहा तो दरोगा ने आग बबूला होते हुए एक ठोकर मारी और आगे बढ़ गया।

थोड़ा आगे जाने पर दरोगा को एक और आदमी मिला। दरोगा ने उसे भी रोक कर पूछा, ''क्या तुम्हें मालूम है संत दादू कहाँ रहते है?''

''उन्हें भला कौन नहीं जानता, वे तो उधर ही रहते हैं जिधर से आप आ रहे हैं। यहाँ से थोड़ी ही दूर पर उनका आश्रम है। मैं भी उनके दर्शन के लिए ही जा रहा था। आप मेरे साथ ही चलिए।'' वह व्यक्ति बोला।

दरोगा मन ही मन प्रसन्न होते हुए साथ चल दिया। राहगीर जिस व्यक्ति के पास दरोगा को ले गया उसे देख कर वह लज्जित हो उठा क्यों संत दादू वही व्यक्ति थे जिसको दरोगा ने मामूली आदमी समझ कर अपमानित किया था। वह दादू के चरणों में गिर कर क्षमा माँगने लगा। बोला, ''महात्मन् मुझे क्षमा कर दीजिए, मुझसे अनजाने में अपराध हो गया।''

दरोगा की बात सुनकर संत दादू हँसते हुए बोले, ''भाई, इसमें बुरा मानने की क्या बात? कोई मिट्टी का एक घड़ा भी ख़रीदता है तो ठोक बजा कर देख लेता है। फिर तुम तो मुझे गुरु बनाने आए थे।''

संत दादू की सहिष्णुता के आगे दरोगा नतमस्तक हो गया।

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

खाया - पीया है इसने 

ये मोबाइल यूँ ही हट्टा कट्टा नहीं
                     
बहुत कुछ खाया - पीया है इसने 
                 मसलन 
       ये हाथ की घड़ी खा गया 
        ये टॉर्च - लाईटे खा गया 
        ये चिट्ठी पत्रियाँ खा गया 
        ये    किताब    खा  गया
        ये     रेडियो    खा  गया
        ये टेप रिकॉर्डर  खा गया
          ये कैमरा     खा    गया
          ये कैल्क्युलेटर खा गया
       ये परोस की दोस्ती खा गया 
        ये मेल  - मिलाप खा गया
          ये हमारा वक्त खा गया 
         ये हमारा सुकून खा गया 
               ये पैसे खा गया
              ये रिश्ते खा गया
            ये यादास्त खा गया
           ये तंदुरूस्ती खा गया
                 कमबख्त
  इतना कुछ खाकर ही स्मार्ट बना
   बदलती दुनिया का ऐसा असर       
                 होने लगा
   आदमी पागल और फोन स्मार्ट
                होने लगा
   जब तक फोन वायर से बंधा था
          इंसान आजाद था
   जब से फोन आजाद हुआ है
     इंसान फोन से बंध गया है
    ऊँगलिया ही निभा रही रिश्ते
               आजकल
जुवान से निभाने का वक्त कहाँ है
          सब टच में बिजी है
        पर टच में कोई नहीं है   ।