रविवार, 26 अप्रैल 2015

भस्मासुर


एक जंगली बकरी के पीछे शिकारी कुत्ते दौड़े। बकरी जान बचाकर अंगूरों की झाड़ीमें घुस गयी। कुत्ते आगे निकल गए। बकरी ने निश्चिंतापूर्वक अँगूर की बेले खानी शुरु कर दी और जमीन से लेकर अपनी गर्दन पहुचे उतनी दूरी तक के सारे पत्ते खा लिए। पत्ते झाडी में नही रहे। छिपने का सहारा समाप्त् हो जाने पर कुत्तो ने उसे देख लिया और मार डाला !!
सहारा देने वाले को जो नष्ट करता है , उसकी ऐसी ही दुर्गति होती है।
मनुष्य भी आज सहारा देने वाले पेड़ पौधो, जानवर, गाय, पर्वतो आदि को नुकसान पंहुचा रहा है और इन सभी का परिणाम भी अनेक आपदाओ के रूप में भोग रहा है।

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

जीवन के लिए खर्च

" पिज़्ज़ा या खुशियाँ "
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पत्नी ने कहा - आज धोने के लिए ज्यादा कपड़े मत
निकालना…

पति - क्यों? 

उसने कहा..- अपनी काम वाली बाई दो दिन नहीं आएगी…

पति- क्यों?

पत्नी - गणपति के लिए अपने नाती से मिलने बेटी के यहाँ जा रही है, बोली थी…

पति - ठीक है, अधिक कपड़े नहीं निकालता…

पत्नी - और हाँ!!! गणपति के लिए पाँच सौ रूपए दे दूँ
उसे? त्यौहार का बोनस..

पति - क्यों? अभी दिवाली आ ही रही है, तब दे देंगे…

पत्नी - अरे नहीं बाबा!! गरीब है बेचारी, बेटी - नाती के यहाँ जा रही है, तो उसे भी अच्छा लगेगा … और इस महँगाई के दौर में उसकी पगार से त्यौहार कैसे मनाएगी बेचारी!!

पति - तुम भी ना… जरूरत से ज्यादा ही भावुक हो जाती हो …

पत्नी - अरे नहीं… चिंता मत करो… मैं आज का पिज़्ज़ा खाने का कार्यक्रम रद्द कर देती हूँ…
खामख्वाह पाँच सौ रूपए उड़ जाएँगे, बासी पाव के उन आठ टुकड़ों के पीछे…

पति - वाह, वाह … क्या कहने !! हमारे मुँह से पिज़्ज़ा छीनकर बाई की थाली में !

तीन दिन बाद …

पोंछा लगाती हुई कामवाली बाई
से पति ने पूछा ...

पति - क्या बाई, कैसी रही छुट्टी?

बाई - बहुत बढ़िया हुई साहब … दीदी ने पाँच सौ रूपए दिए थे ना .. त्यौहार का बोनस ..

पति - तो जा आई बेटी के यहाँ … मिल ली अपने नाती से … ?

बाई - हाँ साब … मजा आया, दो दिन में 500 रूपए खर्च कर दिए …
पति - अच्छा !! मतलब क्या किया 500 रूपए का?

बाई - नाती के लिए 150 रूपए का शर्ट, 40 रूपए की गुड़िया, बेटी को 50 रूपए के पेढे लिए, 50 रूपए के पेढे मंदिर में प्रसाद चढ़ाया, 60 रूपए किराए के लग गए.. 25 रूपए की चूड़ियाँ बेटी के लिए और जमाई के लिए
50 रूपए का बेल्ट लिया अच्छा सा … बचे हुए 75 रूपए
नाती को दे दिए कॉपी - पेन्सिल खरीदने के लिए …
झाड़ू - पोंछा करते हुए पूरा हिसाब उसकी ज़बान पर
रटा हुआ था…

पति - 500 रूपए में इतना कुछ...???

वह आश्चर्य से मन ही मन विचार करने लगा ... उसकी
आँखों के सामने आठ टुकड़े किया हुआ बड़ा सा पिज़्ज़ा घूमने लगा, एक-एक टुकड़ा उसके दिमाग में हथौड़ा मारने लगा … अपने एक पिज़्ज़ा के खर्च की तुलना वह कामवाली बाई के त्यौहारी खर्च से करने
लगा …
पहला टुकड़ा बच्चे की ड्रेस का, दूसरा टुकड़ा पेढे का,
तीसरा टुकड़ा मंदिर का प्रसाद, चौथा किराए का,
पाँचवाँ गुड़िया का,
छठवां टुकड़ा चूडियों का, सातवाँ जमाई के बेल्ट का और आठवाँ टुकड़ा बच्चे की कॉपी - पेन्सिल का ... आज तक उसने
हमेशा पिज़्ज़ा की एक ही बाजू देखी थी, कभी पलटाकर नहीं देखा था कि पिज़्ज़ा पीछे से कैसा दिखता है …
लेकिन आज कामवाली बाई ने उसे पिज़्ज़ा की दूसरी बाजू दिखा दी थी …
पिज़्ज़ा के आठ टुकड़े उसे जीवन का अर्थ समझा गए थे …
“जीवन के लिए खर्च” या “खर्च के लिए जीवन” का नवीन अर्थ एक झटके में उसे समझ आ
गया…'

मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

भगवान को समझ क्या रखा है

चिंतनीय प्रसंग

आज मंदिर में बहुत भीड़ थी,
एक लड़का दर्शन के लिए लगी लम्बी लाइन को कुतुहल से देख रहा था।
तभी पास में एक पंडित जी आ गए और बोले-"आज बहुत लम्बी कतार है,
यूँ दर्शन नहीं हो पाएंगे,
विशिष्ट व्यक्तियों के लिए विशेष व्यवस्था है, 501 रू दो
में सीधे दर्शन करवा दूँगा !

"लड़का बोला-"
में 5100 दूंगा,
भगवान से कहो
बाहर आकर मिल लें,
कहना- मैं आया हूँ !

"पंडितजी बोले-" मजाक करते हो, भगवान भी कभी मंदिर से बाहर आते हैं क्या तुम हो कौन ?"

लड़का फिर बोला-"
मैं 51000 दूंगा, उनसे कहो
मुझ से मेरे घर पर आकर मिल लें

"पंडितजी (सकपका गए और) बोले-"तुमने भगवान को समझ क्या रखा रखा है

"लड़का बोला-"
वही तो मैं भी पूछना चाहता हूँ
कि आपने भगवान को
समझ क्या रखा है ??

रविवार, 19 अप्रैल 2015

बिटिया

घर आने पर दौड़ कर जो पास आये, उसे कहते हैं "बिटिया"
थक जाने पर प्यार से जो माथा सहलाए, उसे कहते हैं "बिटिया"
"कल दिला देंगे" कहने पर जो मान जाये, उसे कहते हैं "बिटिया"
हर रोज़ समय पर दवा की जो याद दिलाये, उसे कहते हैं "बिटिया"
घर को मन से फूल सा जो सजाये, उसे कहते हैं "बिटिया"
सहते हुए भी अपने दुख जो छुपा जाये, उसे कहते हैं "बिटिया"
दूर जाने पर जो बहुत रुलाये, उसे कहते हैं "बिटिया"
पति की होकर भी पिता को जो ना भूल पाये, उसे कहते हैं "बिटिया"
मीलों दूर होकर भी पास होने का जो एहसास दिलाये, उसे कहते हैं "बिटिया"
"अनमोल हीरा" जो कहलाये, उसे कहते हैं "बिटिया" भगवान हर पिता को एक बेटी जरुर दे।।।एक पापा।।

करम फूटे

हरप्रीत सिंह इंग्लैंड में रहता था।

उसके साथ उसकी माँ और बाबूजी भी रहा करते थे।
अचानक उसकी माँ चल बसी
तो उसने माँ का पार्थिव शरीर बक्से में पैक करवा कर अपने गाँव भेजा।

गाँव में उसके भाई मनप्रीत सिंह ने बक्सा खोला तो देखा कि बक्से में माँ की लाश तो थी, लेकिन एक इंच जगह भी खाली नहीं थी। माँ के हाथ छाती पर थे और अंगुलियों में एक चिट्ठी फँसी थी।

मनप्रीत ने ऊँची आवाज़ में वह चिट्ठी पढ़नी शुरू की।

"प्यारे भाई मनप्रीत, जसप्रीत, सुखविंदर और परमिंदर,
माफ़ करना मैं ख़ुद नहीं आ सका क्योंकि मेरी तनख़्वाह काट दी जाती।

मैं माँ को बक्से में इसलिए भेज रहा हूँ, क्योंकि वह चाहती थी कि उसका क्रियाकर्म गाँव में ही हो।

लाश के नीचे इंपोर्टेड चॉकलेट के कई पैकेट रखे हैं, इसे बच्चों में बाँट देना।

यहाँ अखरोट अच्छे मिलते हैं इसलिए तुम्हें बक्से में अखरोट के भी दो बड़े पैकेट मिलेंगे।

माँ के पैरों में तुम्हें दो जोड़े सैंडल के और एक जोड़ा रीबॉक जूतों का बंधा मिलेगा।
सैंडल संतो मौसी और राजवंत कौर के लिए हैं, और जूते मोहिंदर के लिए हैं। शायद साइज़ ठीक ही होगा।

माँ ने चार जींस पहनी हुई हैं,

एक तुम्हारे लिए, एक जसप्रीत और बाक़ी दोनों सुखविंदर और परमिंदर के लिए है।

माँ के एक हाथ में स्विस घड़ी होगी,

जिसे प्रीतो भाभी ने मंगाया था।

जीतो ने जो नेकलेस मंगाया था वह माँ के गले में है,

पम्मी ने जो कान की बालियाँ मंगाई थीं वह माँ के कानों में हैं।
उन्हें ये सारी चीज़ें निकाल कर दे देना।

माँ कै पैरो में छः जोड़ी मोज़े हैं,

उन्हें मेरे भतीजों के बीच बाँट देना।

माँ ने छः टी-शर्ट भी पहन रखे हैं,

उन्हें मेरे सालों को दे देना।

अगर किसी और चीज़ की ज़रूरत हो तो मुझे बता देना,

आजकल बाबूजी की तबीयत भी ज़रा ठीक नहीं रहती"।

Buddha and thirst

Once Buddha was traveling with a few of his followers.
While they were passing a lake, Buddha told one of his disciples, "I am thirsty. Do get me some water from the lake."

The disciple walked up to the lake.
At that moment, a bullock cart started crossing through the lake.
As a result, the water became very muddy and turbid.

The disciple thought, "How can I give this muddy water to Buddha to drink?"

So he came back and told Buddha, "The water in there is very muddy. I don't think it is fit to drink."

After about half an hour, again Buddha asked the same disciple to go back
to the lake.

The disciple went back, and found that the water was still muddy.

He returned and informed Buddha about the same.

After sometime, again Buddha asked the same disciple to go back.

This time, the disciple found the mud had settled down, and the water was clean and clear.

So he collected some water in a pot and brought it to Buddha.

Buddha looked at the water, and then he looked up at the disciple and said, "See what you did to make the water clean. You let it be, and the mud settled down on its own, and you have clear water."

Your mind is like that too ! When it is disturbed, just let it be. Give it a little time. It will settle down on its own.

You don't have to put in any effort to calm it down.
It will happen. It is effortless."

Having 'Peace of Mind' is not a strenuous job, it is an effortless process??so keep ur mind cool and have a grt life ahead...

Never leave Your close ones.
If you find few faults in them just close Your eyes
'n Remembr the best time You spent together
because affection is More Important than Perfection..!
Neither you can hug yourself nor you can cry on your own shoulder.

Life is all about living for one another, so live with those who love you the most...

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

Maths में बातें


पप्पू: सर जी लोग हिंदी या इंग्लिश म ही बात करते है। मैथ्स में क्यों नही..?

टीचर : ज्यादा 3-5 न कर, 9-2-11 हो जा, वरना 5-7 खीच के दूंगा 6 के 36 नज़र आयेंगे और 32 के 32  बहार आ जायेंगे।।

पप्पू : बस सर..... हिंदी और इंग्लिश ही ठीक है। मैथ्स वाकई खोफनाक सब्जेक्ट है।।

बच्चे बड़े हो गए हैं बेटा

एक युवक....
मैं तकरीबन 20 साल के बाद अपने शहर लौटा था!
बाज़ार में घुमते हुए सहसा मेरी नज़रें सब्जी का ठेला
लगाये एक बूढे पर जा टिकीं, बहुत कोशिश के बावजूद
भी मैं उसको पहचान नहीं पा रहा था !
लेकिन न जाने बार बार ऐसा क्यों लग रहा था की मैं
उसे बड़ी अच्छी तरह से जनता हूँ !
मेरी उत्सुकता उस बूढ़े से भी छुपी न रही , उसके
चेहरे पर आई अचानक मुस्कान से मैं समझ गया था
कि उसने मुझे पहचान लिया था !
काफी देर की जेहनी कशमकश के बाद जब मैंने उसे
पहचाना तो मेरे पाँव के नीचे से मानो ज़मीन खिसक
गई !
जब मैं विदेश गया था तो इसकी एक बहुत बड़ी आटा
मिल हुआ करती थी नौकर चाकर आगे पीछे घूमा करते
थे ! धर्म कर्म, दान पुण्य में सब से अग्रणी इस
दानवीर पुरुष को मैं ताऊजी कह कर बुलाया करता था !
वही आटा मिल का मालिक और
आज सब्जी का ठेला लगाने पर मजबूर?
मुझसे रहा नहीं गया और मैं उसके पास जा पहुँचा और
बहुत मुश्किल से रुंधे गले से पूछा :
"ताऊ जी, ये सब कैसे हो गया?"
भरी ऑंखें लिए मेरे कंधे पर हाथ रख उसने उत्तर
दिया:-
"बच्चे बड़े हो गए हैं बेटा".

रविवार, 12 अप्रैल 2015

कैरियर का सबक

एक पुराना ग्रुप कॉलेज छोड़ने
के बहुत दिनों बाद मिला।

वे सभी अच्छे केरियर के साथ
खूब पैसे ✈कमा रहे थे।

वे अपने सबसे फेवरेट प्रोफेसर
के घर जाकर मिले।

प्रोफेसर साहब उनके काम
के बारे में पूछने लगे।
धीरे-धीरे बात लाइफ में
बढ़ती स्ट्रेस और काम
के प्रेशर पर आ गयी।

इस मुद्दे पर सभी एक मत थे कि,
भले वे अब आर्थिक रूप से
बहुत मजबूत हों पर
उनकी लाइफ में अब
वो मजा नहीं रह गया
जो पहले हुआ करता था।

प्रोफेसर साहब बड़े ध्यान से
उनकी बातें सुन रहे थे,
वे अचानक ही उठे और
थोड़ी देर बाद किचन से
लौटे और बोले,

”डीयर स्टूडेंट्स,
मैं आपके लिए गरमा-गरम ☕
कॉफ़ी ☕बना कर आया हूँ ,
लेकिन प्लीज आप सब
किचन में जाकर अपने-अपने
लिए कप्स लेते आइये।"

लड़के तेजी से अंदर गए,
वहाँ कई तरह के कप रखे हुए थे,
सभी अपने लिए अच्छा से अच्छा
कप उठाने में लग गये,

किसी ने क्रिस्टल का
शानदार कप उठाया
तो किसी ने पोर्सिलेन का
कप सेलेक्ट किया,
तो किसी ने शीशे का कप उठाया।

सभी के हाथों में कॉफी ⚓आ गयी
तो प्रोफ़ेसर साहब बोले, 
"अगर आपने ध्यान दिया हो तो,
जो कप दिखने में अच्छे और महंगे थे
आपने उन्हें ही चुना और
साधारण दिखने वाले कप्स
की तरफ ध्यान नहीं दिया।

जहाँ एक तरफ अपने लिए
सबसे अच्छे की चाह रखना
एक नॉर्मल बात है
वहीँ दूसरी तरफ ये
हमारी लाइफ में प्रोब्लम्स
और स्ट्रेस लेकर आता है।

फ्रेंड्स, ये तो पक्का है कि
कप, कॉफी  ☕की क्वालिटी
में कोई बदलाव नहीं लाता।
ये तो बस एक जरिया है
जिसके माध्यम से आप कॉफी  ☕पीते है।
असल में जो आपको चाहिए था
वो बस कॉफ़ी थी, कप नहीं,

पर फिर भी आप सब
सबसे अच्छे कप के पीछे ही गए
और अपना लेने के बाद
दूसरों के कप ☕निहारने लगे।"

अब इस बात को ध्यान से सुनिये ...
"ये लाइफ कॉफ़ी ☕की तरह है ;
हमारी नौकरी, पैसा,
पोजीशन, कप की तरह हैं।
ये बस लाइफ जीने के साधन हैं,
खुद लाइफ नहीं ! और
हमारे पास कौन सा कप है
ये न हमारी लाइफ को
डिफाइन करता है
और ना ही उसे चेंज करता है।
कॉफी की चिंता करिये कप की नहीं।"

"दुनिया के सबसे खुशहाल लोग
वो नहीं होते जिनके पास
सबकुछ सबसे बढ़िया होता है,
पर वे होते हैं, जिनके पास जो होता है
बस उसका सबसे अच्छे से यूज़ करते हैं.
एन्जॉय करते हैं और भरपूर जीवन जीते हैं!

सादगी से जियो।
सबसे प्रेम करो।
सबकी केअर करो।
जीवन का आनन्द लो,
यही असली जीना है।

सच के वस्त्र

एक बार सच और झूठ नदी में स्नान करने
पहुंचे। दोनो ने अपने-अपने कपड़े उतार
कर नदी के तट पर रख दिए और झट-पट
नदी में कूद पड़े। सबसे पहले झूठ नहाकर
नदी से बाहर आया और सच के कपड़े पहनकर
चला गया। सच अभी भी नहा रहा था। जब वह
स्नान कर बाहर निकला तो उसके कपड़े गायब थे।
वहां तो झूठ के कपड़े पड़े थे। भला सच उसके कपड़े
कैसे पहनता?
कहते हैं तब से सच नंगा है और झूठ सच के कपड़े पहनकर सच के रूप में प्रतिष्ठित है।

स्वर्ग यहीं हैं.

लोहे की एक छड़ का मूल्य होता है 250 रूपये.
इससे घोड़े की नाल बना दी जाये
तो इसका मूल्य हो जाता है 1000 रूपये.
इससे सुईयां बना दी जायें तो इसका मूल्य हो जाता है 10,000 रूपये.

इससे घड़ियों के बैलेंस स्प्रिंग बना दिए जायें तो इसका मूल्य हो जाता है 1,00,000 रूपये... --

"आपका अपना मूल्य-- इससे निर्धारित नहीं होता कि आप क्या है बल्कि इससे निर्धारित होता है कि आप में खुद को क्या बनाने की क्षमता है"!!!!
इतने छोटे बनिए कि
हर कोई आपके साथ बैठे,
..ओर इतने बड़े बनिए कि
आप खड़े हो तो कोई बैठा न रहे..!!

कभी कभी
आप अपनी जिंदगी से
निराश हो जाते हैं,
जबकि
दुनिया में उसी समय
कुछ लोग
आपकी जैसी जिंदगी
जीने का सपना देख रहे होते हैं।

घर पर खेत में खड़ा बच्चा
आकाश में उड़ते हवाई जहाज
को देखकर
उड़ने का सपना देख रहा होता है,
परंतु
उसी समय
उसी हवाई जहाज का पायलट
खेत ओर बच्चे को देख
घर लौटने का सपना
देख रहा होता है।

यही जिंदगी है।
जो तुम्हारे पास है उसका मजा लो।

अगर धन-दौलत रूपया पैसा ही
खुशहाल होने का सीक्रेट होता,
तो अमीर लोग नाचते दिखाई पड़ते,
लेकिन सिर्फ गरीब बच्चे
ऐसा करते दिखाई देते हैं।

अगर पाॅवर (शक्ति) मिलने से
सुरक्षा आ जाती
तो
नेता अधिकारी
बिना सिक्युरिटी के नजर आते।
परन्तु
जो सामान्य जीवन जीते हैं,
वे चैन की नींद सोते हैं।

अगर खुबसुरती और प्रसिद्धि
मजबूत रिश्ते कायम कर सकती
तो
सेलीब्रिटीज् की शादियाँ
सबसे सफल होती।
जबकि इनके तलाक
सबसे सफल होते हैं

इसलिए दोस्तों,
यह जिंदगी ......

सभी के लिए खुबसुरत है
इसको जी भरकर जीयों,
इसका भरपूर लुत्फ़ उठाओ
क्योंकि
जिदंगी ना मिलेगी दोबारा...

सामान्य जीवन जियें...
विनम्रता से चलें ...
और
ईमानदारी पूर्वक प्यार करें...

स्वर्ग यहीं हैं...

शनिवार, 11 अप्रैल 2015

चुड़ैल और आदमी

एक शैतानी चुड़ैल ने 60 साल के हस्बैंड
एंड वाइफ से कहा ..
मैं तुम दोनों की एक एक विश पूरी कर सकती
हूँ ..
Wife :- मैं अपने पति के साथ सारी
दुनिया घूमना चाहती हूँ ।
चुड़ैल ने चुटकी बजायी और 2 टिकट्स आ
गए,
फिर हस्बैंड से पूछा
तुम बोलो क्या चाहते हो ??
Husband :- मुझे अपने से 30 साल छोटी
वाइफ चाहिए ..
चुड़ैल ने चुटकी बजायी और हस्बैंड को
90 साल का कर दिआ !!
Moral :- आदमी को याद रखना चाहिए के
चुड़ैल भी औरत ही होती है .

बुधवार, 8 अप्रैल 2015

क्या यही जिंदगी है

ज़िंदगी के 20 वर्ष हवा की तरह उड़ जाते हैं. फिर शुरू होती है नौकरी की खोज .  ये नहीं वो , दूर नहीं पास . ऐसा करते 2-3 नौकरीयां छोड़ते पकड़ते , अंत में एक तय होती है. और ज़िंदगी में थोड़ी स्थिरता की शुरूआत होती है.

और हाथ में आता है पहली तनख्वाह का चेक , वह बैंक में जमा होता है और शुरू होता है अकाउंट में जमा होने वाले कुछ शून्यों का अंतहीन खेल.

इस तरह 2-3 वर्ष निकल जाते हैँ  .  'वो' स्थिर होता है. बैंक में कुछ और शून्य जमा हो जाते हैं. इतने में  आयु पच्चीस वर्ष हो जाते हैं.

विवाह की चर्चा शुरू हो जाती है. एक खुद की या माता पिता की पसंद की लड़की से यथा समय विवाह होता है और ज़िंदगी की राम कहानी शुरू हो जाती है.

शादी के पहले 2-3 साल नर्म , गुलाबी , रसीले और सपनीले गुज़रते हैं .
हाथों में हाथ डालकर बातें और रंग बिरंगे सपने . पर ये दिन जल्दी ही उड़ जाते हैं. और इसी समय शायद बैंक में कुछ शून्य कम होते हैं. क्योंकि थोड़ी मौजमस्ती, घूमनाफिरना , खरीदी होती है.

और फिर धीरे से बच्चे के आने की आहट होती है और वर्ष भर में पालना झूलने लगता है.

सारा ध्यान अब बच्चे पर केंद्रित हो जाता है.  उसका खाना पीना , उठना बैठना , शु शु पाॅटी , उसके खिलौने, कपड़े और उसका लाड़ दुलार.  समय कैसे फटाफट निकल जाता है.

इन सब में कब इसका हाथ उसके हाथ से निकल गया, बातें करना , घूमना फिरना कब बंद हो गया, दोनों को ही पता नहीं चला ?

इसी तरह उसकी सुबह होती गयी   और. बच्चा बड़ा होता गया. .. वो बच्चे में व्यस्त होती गई और ये अपने काम में.  घर की किस्त , गाड़ी की किस्त और बच्चे कि ज़िम्मेदारी . उसकी शिक्षा और भविष्य की सुविधा. और साथ ही बैंक में शून्य  बढ़ाने का टेंशन. उसने पूरी तरह से अपने आप को काम में झोंक दिया. 
बच्चे का स्कूल में एॅडमिशन हुआ और वह बड़ा होने लगा . उसका पूरा समय बच्चे के साथ बीतने लगा.

इतने में वो पैंतीस का हो गया.  खूद का घर , गाड़ी और बैंक में कई सारे शून्य. फिर भी कुछ कमी है, पर वो क्या है समझ में नहीं आता.  इस तरह उसकी चिढ़ चिढ़ बढ़ती जाती है और ये भी उदासीन रहने लगा.

दिन पर दिन बीतते गए , बच्चा बड़ा होता गया और उसका खुद का एक संसार तैयार हो गया. उसकी दसवीं आई और चली गयी. तब तक दोनों ही चालीस के हो गए. बैंक में शून्य बढ़ता ही जा रहा है.

एक नितांत एकांत क्षण में उसे गुज़रे दिन याद आते हैं और वो मौका देखकर उससे कहता है '
अरे ज़रा यहां आओ ,
पास बैठो .
चलो फिर एक बार हाथों में हाथ ले कर बातें करें , कहीं घूम के आएं .... उसने अजीब नज़रों से उसको देखा और कहा " तुम्हें कभी भी कुछ भी सूझता है . मुझे ढेर सा काम पड़ा है और तुम्हें बातों की सूझ रही है " . कमर में पल्लू खोंस कर वो निकल गई .

और फिर आता है पैंतालीसवां साल , आंखों पर चश्मा लग गया .बाल अपना काला रंग छोड़ने लगे,  दिमाग में कुछ उलझनें शुरू ही थीं. . . . . बेटा अब काॅलेज में है. बैंक में शून्य बढ़ रहे हैं. उसने अपना नाम कीर्तन मंडली में डाल दिया और . . . .

बेटे का college खत्म हो गया , अपने पैरों पर खड़ा हो गया.  अब उसके पर फूट गये और वो एक दिन परदेस उड़ गया...

अब उसके बालों का काला रंग और कभी कभी दिमाग भी साथ छोड़ने लगा.... उसे भी चश्मा लग गया था. अब वो उसे उम्र दराज़ लगने लगी क्योंकि वो खुद भी बूढ़ा  हो रहा था.

पचपन  के बाद साठ की ओर बढ़ना शुरू था. बैंक में अब कितने शून्य हो गए, उसे कुछ खबर नहीं है. बाहर आने जाने के कार्यक्रम अपने आप बंद होने लगे ।

गोली -दवाइयों का दिन और समय निश्चित होने लगा . डाॅक्टरों की तारीखें भी तय होने लगीं. बच्चे  बड़े होंगे ये सोचकर लिया गया घर भी अब बोझ लगने लगा. बच्चे कब वापस आएंगे , अब बस यही हाथ रह गया था .

और फिर वो एक दिन आता है. वो सोफे पर लेटा  ठंडी हवा का आनंद ले रहा था . वो शाम की दिया-बाती कर रही थी . वो देख रही थी कि वो सोफे पर लेटा है. इतने में फोन की घंटी बजी , उसने लपक के फोन उठाया . उस तरफ बेटा था. बेटा अपनी शादी की जानकारी देता है और बताता है कि  अब वह परदेस में ही रहेगा. उसने बेटे से बैंक के शून्य के बारे में क्या करना यह पूछा. अब चूंकि विदेश के शून्य की तुलना में उसके शून्य बेटे के लिये शून्य हैं इसलिए उसने पिता को सलाह दी " एक काम करिये , इन पैसों का ट्रस्ट बनाकर वृद्धाश्रम को दे दीजिए और खुद भी वहीं रहीये". कुछ औपचारिक बातें करके बेटे ने फोन रख दिया.

वो पुनः सोफे पर आ कर बैठ गया. उसकी भी दिया बाती खत्म होने आई थी. उसने उसे आवाज़ दी " चलो आज फिर हाथों में हाथ ले के बातें करें "
वो तुरंत बोली " बस अभी आई " उसे विश्वास नहीं हुआ , चेहरा खुशी से चमक उठा , आंखें भर आईं , उसकी आंखों से गिरने लगे और गाल भीग गए .
अचानक आंखों की चमक फीकी हो गई और वो निस्तेज हो गया.

उसने शेष पूजा की और उसके पास आ कर बैठ गई,  कहा " बोलो क्या बोल रहे थे " पर उसने कुछ नहीं कहा . उसने उसके शरीर को छू कर देखा . शरीर बिल्कुल ठंडा पड़ गया था और वो एकटक उसे देख रहा था .

क्षण भर को वो शून्य हो गई,  क्या करूं उसे समझ में नहीं आया . लेकिन एक-दो मिनट में ही वो चैतन्य हो गई,  धीरे से उठी और पूजाघर में गई . एक अगरबत्ती जलाई और ईश्वर को प्रणाम किया  और फिर से सोफे पे आकर बैठ गई.

उसका ठंडा हाथ हाथों में लिया और बोली " चलो कहां घूमने जाना है और क्या बातें करनी हैं तम्हे " बोलो !! ऐसा कहते हुए उसकी आँखें भर आईं. वो एकटक उसे देखती रही , आंखों से अश्रुधारा बह निकली .
उसका सिर उसके कंधों पर गिर गया. ठंडी हवा का धीमा झोंका अभी भी चल रहा था ................

यही जिंदगी है   

मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

बच्चे के हाथ

एक बच्चा अपनी माँ के साथ एक दुकान पर शॉपिंग
करने गया तो दुकानदार ने उसकी मासूमियत देखकर
उसको सारी टॉफियों के डिब्बे खोलकर कहा-:
"लो बेटा टॉफियाँ ले लो...!!!"
पर उस बच्चे ने भी बड़े प्यार से उन्हें मना कर
दिया. उसके बावजूद उस दुकानदार ने और
उसकी माँ ने भी उसे बहुत कहा पर
वो मना करता रहा. हारकर उस दुकानदार ने खुद
अपने हाथ से टॉफियाँ निकाल कर उसको दीं तो उसने
ले लीं और अपनी जेब में डाल ली....!!!!
वापस आते हुऐ उसकी माँ ने पूछा कि"जब अंकल
तुम्हारे सामने डिब्बा खोल कर टाँफी दे रहे थे , तब
तुमने नही ली और जब उन्होंने अपने हाथों से
दीं तो ले ली..!! ऐसा क्यों..??"
तब उस बच्चे ने बहुत खूबसूरत प्यारा जवाब
दिया -: "माँ मेरे हाथ छोटे-छोटे हैं... अगर मैंh
टॉफियाँ लेता तो दो तीन
टाँफियाँ ही आती जबकि अंकल के हाथ बड़े हैं
इसलिये ज्यादा टॉफियाँ मिल गईं....!!!!!"
बिल्कुल इसी तरह जब भगवान हमें देता है
तो वो अपनी मर्जी से देता है और वो हमारी सोच से
परे होता है,
हमें हमेशा उसकी मर्जी में खुश रहना चाहिये....!!!
क्या पता..??
वो किसी दिन हमें पूरा समंदर देना चाहता हो और हम
हाथ में चम्मच लेकर खड़े हों...

रविवार, 5 अप्रैल 2015

अच्छे दिन

एक गाँव में एक काणा रहता था,
सब लोग उसकी एक आँख होने की वजह से "काणा" "काणा" कह कर चिढाते थे..
उसे इस बात से बहौत तकलीफ होती थी..

उसने एक दिन सोचा की इन गाँव वालो को सबक सिखाता हूँ..

उसने रात को 12 बजे अपनी दूसरी आँख भी फोड़ ली और पुरे गाँव में चिल्लाता हुआ दोड़ने लगा
"मुझे भगवान दिखाई दे रहें हैं
अच्छे दिन दिखाई दे रहे हैं"..

ये सुनकर गाँव वाले बोले,
“अबे काणे तुझे कहाँ से भगवान या अच्छे दिन दिखाई दे रहें हैं”???

तो उसने कहा की रात को मेरे सपने में भगवान ने दर्शन दिया और बोले की अगर तू अपनी दुसरी आँख भी फोड़ ले तो "अच्छे दिन" दिखाई देंगे..

इतना सुनकर गाँव के सरपंच ने
कहा, की मुझे अच्छे दिन देखने हैं..

तो अँधा बोला की दोनों आँखे फोडोगे तभी दिखाई देंगे "अच्छे दिन"..

सरपंच ने हिम्मत करके अपनी दोनों आँखे फोड़ लीं..

पर ये क्या अच्छे दिन तो दूर अब तो उसे दुनिया दिखाई देना भी बंद हो गई..

सरपंच ने अँधे से कान में कहा की "अच्छे दिन तो दिखाई नहीं दे रहे"..

तो अँधा बोला "सरपंच जी सबके सामने ये सच मत बोलना, नहीं तो सब आप को मुर्ख कहेंगे, इसलिए
बोलो अच्छे दिन आ गए..

इतना सुनकर सरपंच ने ज़ोर
से बोला "मुझे भी अच्छे दिन दिखाई दे रहे हैं"..

इसके बाद एक एक करके पुरे गांव वालों ने अपनी आँखे फोड़ डालीं और मजबूरी में वही बोल रहे थे जो सरपंच ने कहा..
"अच्छे दिन आ गये"..!

यही हाल अच्छे दिन के समर्थक "भक्तगणों" का है..
☺☺☺☺

आँखे तो फोड़ ली हैं अपने ही हाथों से, अब तो मजबूरी में बोलना ही पड़ेगा -
"अच्छे दिन आ गए"

जय हिन्द..