रविवार, 25 मार्च 2018

जीवन के अंतिम क्षण

पूर्व रक्षा मंत्री और गोवा के मुख्यमंत्री
मनोहर परिकर जी कैंसर से जूझ रहे हैं, अस्पताल के विस्तर से उनका यह संदेश बहुत मार्मिक है, आप भी पढ़ें...

"मैंने राजनैतिक क्षेत्र में सफलता के  अनेक शिखरों को छुआ :::
दूसरों के नजरिए में मेरा जीवन और यश एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं :::;::;
फिर भी मेरे काम के अतिरिक्त अगर किसी आनंद की बात हो तो शायद ही मुझे कभी प्राप्त हुआ :::
आखिर क्यो ?
तो जिस political status  जिसमें मैं आदतन  रम रहा था ::: आदी हो गया था  वही मेरे जीवन की हकीकत बन कर रह गई::;
इस समय जब मैं बीमारी के कारण बिस्तर पर सिमटा हुआ हूं, मेरा अतीत स्मृतिपटल पर तैर रहा है ::: जिस ख्याति प्रसिद्धि और धन संपत्ति को मैंने सर्वस्व माना और उसी के व्यर्थ अहंकार में पलता रहा::: आज जब खुद को मौत के दरवाजे पर खड़ा  देख रहा हूँ तो वो सब धूमिल होता दिखाई दे रहा है साथ ही उसकी निर्थकता बड़ी शिद्दत से महसूस कर रहा हूं::;

आज जब मृत्यु पल पल मेरे निकट आ रही है, मेरे आस पास चारों तरफ हरे प्रकाश से टिमटिमाते जीवन ज्योति बढ़ाने वाले अनेक मेडिकल उपकरण  देख रहा हूँ । उन यंत्रों से निकलती ध्वनियां भी सुन  रहा हूं : इसके साथ साथ अपने आगोश में लपेटने के लिए निकट आ रही मृत्यु की पदचाप भी सुनाई दे रही है::::

अब ध्यान में आ रहा है कि भविष्य के लिए आवश्यक पूंजी जमा होने के पश्चात दौलत संपत्ति से जो अधिक महत्वपूर्ण है वो करना चाहिए। वो शायद रिश्ते नाते संभालना सहेजना या समाजसेवा करना हो सकता है।

निरंतर केवल राजनीति के पीछे भागते रहने से व्यक्ति अंदर से सिर्फ और सिर्फ पिसता :: खोखला बनता जाता है ::: बिल्कुल मेरी तरह।

उम्र भर मैंने जो संपत्ति और राजनैतिक मान सम्मान कमाया वो मैं कदापि साथ नहीं ले जा सकूंगा ::;

दुनिया का सबसे महंगा बिछौना कौन सा है, पता है ?  ::: "बीमारी का बिछौना" :::

गाड़ी चलाने के लिए ड्राइवर रख सकते हैं :: पैसे कमा कर देने वाले मैनेजर मिनिस्टर रखे जा सकते हैं परंतु :::: अपनी बीमारी को सहने के लिए हम दूसरे किसी अन्य को कभी नियुक्त नहीं कर सकते हैं:::::

खोई हुई वस्तु मिल सकती है । मगर एक ही चीज ऐसी है जो एक बार हाथ से छूटने के बाद किसी भी उपाय से वापस नहीं मिल सकती है। वो है :::: अपना "आयुष्य" :: "काल" ::: "समय"

ऑपरेशन टेबल पर लेटे व्यक्ति को एक बात जरूर ध्यान में आती है कि उससे  केवल एक ही पुस्तक पढ़नी शेष रह गई थी और  वो पुस्तक है "निरोगी जीवन जीने की पुस्तक" ;::::

फिलहाल आप जीवन की किसी भी स्थिति-  उमर के दौर से गुजर रहे हों तो भी एक न एक दिन काल एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है कि सामने नाटक का अंतिम भाग स्पष्ट दिखने लगता है :::

स्वयं की उपेक्षा मत कीजिए::: स्वयं ही स्वयं का आदर कीजिए ::::दूसरों के साथ भी प्रेमपूर्ण बर्ताव कीजिए :::

लोग मनुष्यों को इस्तेमाल ( use ) करना सीखते हैं और पैसा संभालना सीखते हैं। वास्तव में पैसा इस्तेमाल करना सीखना चाहिए व मनुष्यों को संभालना सीखना चाहिए ::: अपने जीवन की शुरुआत हमारे रोने से होती है और जीवन का समापन दूसरो के रोने से होता है:::: इन दोनों के बीच में जीवन का जो भाग है वह भरपूर हंस कर बिताएं और उसके लिए सदैव आनंदित रहिए व औरों को भी आनंदित रखिए :::"

(स्वादुपिंड के) कैंसर से पीड़ित अस्पताल में जीवन के लिए जूझ रहे मनोहर पर्रिकर का आत्मचिंतन ::::

मूल मराठी :: अनुवाद पुखराज सावंतवाडी
द्वारा कुमार निखिल

शुक्रवार, 23 मार्च 2018

धैर्य

इंसान के जीवन मे धैर्य का विशेष महत्व होता है। जिस इंसान में धैर्य की कमी होती है वह अपने जीवन मे अच्छे और बड़े मौके हाथ से गवां बैठते है। उनके जीवन मे केवल पछतावा रह जाता है। बड़ी सफलता केवल उसी को मिलेगी जो धैर्यशील होगा।

एक राज्य में एक धनवान राजा शासन करता था। वह प्रातः सुबह मंदिर दर्शन करने जाता था। मंदिर के बाहर दो भिखारी बैठे रहते थे। उसमे से एक भिखारी कहता- हे भगवान। तूने राजा को बहुत कुछ दिया। मुझे भी दे दे जबकि दूसरा भिखारी कहता- हे राजन। तुझे भगवान ने बहुत कुछ दिया। मुझे भी कुछ दे दे।

एक भिखारी भगवान से मांग रहा है और एक भिखारी राजा से मांग रहा है। दोनों भिखारी आपस मे बात कर रहे थे। एक भिखारी ने दूसरे से कहा- चुप कर बेवकूफ। तूने आज तक भगवान से मांगा। तुझे क्या मिला? मैं राजा से मांगता हूँ। देखना मुझे कितना मिल जाएगा। यह बात राजा ने सुन ली।

दूसरे दिन राजा ने अपने मंत्री को खीर के एक बड़े कटोरे में सोने के 10 सिक्के डाल कर भिखारी के पास भेज दिया। भिखारी बड़ा प्रसन्न हुआ। वह पहले भिखारी को चिढ़ाते हुए बोला- देख, तेरे भगवान ने तुझे क्या दिया है। मुझे तो राजन ने मेवे से भरपूर खीर भेजी है। इतना कहकर वह स्वादिष्ट खीर खाने लगा।

खीर मात्रा में बहुत ज्यादा थी। जब उसका पेट भर गया तो उसने पहले भिखारी को वह खीर खाने के लिए दे दी। दूसरे दिन राजा मंदिर में आये और देखा कि पहले वाला भिखारी गायब था। राजा ने पूछा- आपका साथी आज कहाँ है?

दूसरे भिखारी ने जवाब दिया- राजन। वह बेवकूफ पता नही कहाँ गया है? केवल भगवान से मांगता रहता है। मैने आपसे मांगा तो मुझे भरपेट स्वादिष्ट खीर मिली। राजा ने सिर पकड़ लिया और कहा- बेवकूफ वो नही, असली बेवकूफ तो तू है। वह ईश्वर से मांगता है और तू मुझसे मांगता है।

*शिक्षा- धैर्य रखने वाला इंसान सदा सफल होता है। बिना धैर्य के इंसान का मन सदा अशांत ही रहेगा।

रविवार, 4 मार्च 2018

भलाई का कार्य

एक आदमी ने एक पेंटर को बुलाया और अपनी नाव दिखाकर कहा कि इसको पेंट कर दो। वो पेंटर पेंट ले कर उस नाव को पेंट कर दिया, लाल रंग से जैसा कि, नाव का मालिक चाहता था। फिर पेंटर ने अपने पैसे लिए और चला गया।
अगले दिन, पेंटर के घर पर वो नाव का मालिक पहुँच गया, और उसने एक बहुत बड़ी धनराशी का चेक दिया उस पेंटर को। पेंटर भौंचक्का हो गया, और पूछा कि ये किस बात के इतने पैसे हैं ? मेरे पैसे तो आपने कल ही दे दिया था।
मालिक ने कहा कि "ये पेंट का पैसा नहीं है, बल्कि ये उस नाव में जो "छेद" था, उसको रिपेयर करने का पैसा है।"
पेंटर ने कहा,. "अरे साहब, वो तो एक छोटा सा छेद था, सो मैंने बंद कर दिया था। उस छोटे से छेद के लिए इतना पैसा मुझे, ठीक नहीं लग रहा है।"
मालिक ने कहा,.. "दोस्त, तुम समझे नहीं मेरी बात, अच्छा विस्तार से समझाता हूँ। जब मैंने तुम्हें पेंट के लिए कहा, तो जल्दबाजी में तुम्हें ये बताना भूल गया कि नाव में एक छेद है, उसको रिपेयर कर देना। और जब पेंट सूख गया, तो मेरे दोनों बच्चे उस नाव को समुद्र में लेकर मछली मारने की ट्रिप पर निकल गए।
मैं उस वक़्त घर पर नहीं था, लेकिन जब लौट कर आया और अपनी पत्नी से ये सुना कि बच्चे नाव को लेकर, नौकायन पर निकल गए हैं, .. तो मैं बदहवास हो गया। क्योंकि मुझे याद आया कि नाव में तो छेद है। मैं गिरता पड़ता भागा उस तरफ, जिधर मेरे प्यारे बच्चे गए थे। लेकिन थोड़ी दूर पर मुझे मेरे बच्चे दिख गए, जो सकुशल वापस आ रहे थे। अब मेरी ख़ुशी और प्रसन्नता का आलम तुम समझ सकते हो। फिर मैंने छेद चेक किया, तो पता चला कि मुझे बिना बताये तुम उसको रिपेयर कर चुके हो। तो  ..मेरे दोस्त,.. उस महान कार्य के लिए, तो ये पैसे भी बहुत थोड़े हैं। मेरी औकात नहीं कि उस कार्य के बदले तुम्हे ठीक ठाक पैसे दे पाऊं।"
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*इस कहानी से हमें यही समझना चाहिए कि भलाई का कार्य हमेशा "कर देना" चाहिए, भले ही वो बहुत छोटा सा कार्य हो। क्योंकि वो छोटा सा कार्य किसी के लिए "अमूल्य" हो सकता है।*