मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

कुबड़े की भलमनसाहत

एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी..।
वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था..।
एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"
दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा..
वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।"
वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी की- "कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।"
एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली- "मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी.।"
और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली- "हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दिया..। एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी..।
हर रोज़ कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी ले के: "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया..।
इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..।
हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था..। महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी..।
ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है.. वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है.. अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है..।
वह पतला और दुबला हो गया था.. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था..।
जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ.. आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया.. मैं मर गया होता..।
लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था.. उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया.. भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे.. मैंने उससे खाने को कुछ माँगा.. उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- "मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है.. सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो.।"
जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लीया..।
उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..?
और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।।
             " निष्कर्ष "
              ==========
हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..।
               ==========

पूर्ण विराम का आतंक

गांव में एक स्त्री थी । उसके पति फ़ौज मे कार्यरत थे। वह
आपने पति को पत्र लिखना चाहती थी, पर अल्प शिक्षित
होने के कारण उसे यह पता नहीं था कि पूर्णविराम (Full
Stop) कहां लगेगा ।
इसीलिये उसका जहां मन करता था वहीं पूर्णविराम
लगा देती थी ।
तो एक बार उसने अपने पति को कुछ इस प्रकार
चिठ्ठी लिखी:
देखिए पूर्ण विराम का आतंक:-
मेरे प्यारे जीवनसाथी मेरा प्रणाम आपके चरणो मे।
आप ने अभी तक चिट्टी नहीं लिखी मेरी सहेली को ।
नौकरी मिल गयी है हमारी गाय को । बछडा दिया है दादाजी ने
। शराब की लत लगाली है मैने । तुमको बहुत खत लिखे पर
तुम नहीं आये कुत्ते के बच्चे । भेड़िया खा गया दो महीने
का राशन । छुट्टी पर आते समय ले आना एक खूबसूरत
औरत । मेरी सहेली बन गई है । और इस समय टीवी पर
गाना गा रही है हमारी बकरी । बेच दी गयी है तुम्हारी मां ।
तुमको बहुत याद कर रही है एक पडोसन । हमें बहुत तंग
करती है।
तुम्हारी चंदा ।
परिणाम:-
पति का हार्ट फ़ेल।

मौत का रहस्य

मुम्बई के एक बड़े हॉस्पिटल के आई सी यु में
हर रविवार एक
ही बिस्तर पे ठीक 11 बजे
किसी एक मरीज की मौत हो रही थी ।
उस बेड पर जिस भी मरीज को लिटाया जाता वह रविवार को ठीक 11 बजे मर जाता था ।
हर रविवार उसी बेड पर ठीक
उसी समय हो रही मौत डॉक्टरों की समझ से परे थी ।
अंत में डॉक्टर ये मानने को मजबूर हो गए की ज़रूर ये
किसी अलौकिक शक्ति या भूत प्रेत या चुड़ैल की
वजह से हो रहा है ।
मौत के कारण का पता
लगाने के लिए
विश्वस्तरीय डॉक्टरों की
एक टीम गठित
की गई  ।
टीम को अगले रविवार का बेसब्री से इंतज़ार था ।
अगले रविवार सुबह 11 बजे से
कुछ मिनट पहले ही सारे डॉक्टर और नर्स और बेड के चारों ओर खड़े हो गए ।
सब के सब मौत का कारण जानने  के  लिए  अत्यंत उत्सुक  थे ।
भूत प्रेत का भय उनके चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रहा था ।
किसी अनहोनी की आशंका से उन सब की बोलती बंद हो गई थी ।
11 बजने ही वाले थे ..........
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तभी
अचानक
आई . सी . यू .
के
दरवाजे
के
हैंडिल
खटकने
की
आवाज
हुई ।
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सबकी 
जान 
सांसों 
में
अटक
गई ।
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चरमराहट 
की
आवाज
के
साथ
दरवाजा
खुला  ।
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सभी
लोगों
के
बदन
पसीने
से
नहा
चुके
थे
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दरवाजे
के
अंदर
एक
सफ़ेद
साडी
में
लिपटी
औरत
ने
प्रवेश
किया
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सभी
देखने
वालो
के
गले
के
नीचे
थूक
तक
नहीं
उतर
रहा
था
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और वह पार्ट टाइम स्वीपर
आई . सी .  यू .  में दाखिल होती है , और उस बेड के लाइफ
सपोर्ट सिस्टम का प्लग हटाकर
अपना मोबाइल चार्ज पे लगा देती है.

ओह माय गॉड और pk पर कोर्ट में केस

ओह माय गॉड और pk पर कोर्ट में केस चला कांजी भाई और pk कोर्ट में हाजिर हुए >>

वकील : हाँ तो आप दोनों का कहना है कि इन्सान डर के कारण मंदिर जाता है और मूर्ति पूजा गलत है।
कांजी भाई : जी बिलकुल। ईश्वर तो सभी जगह है उसको मंदिर में ढूँढने की क्या आवश्यकता है।
वकील : आप का मतलब है कि मंदिर में नहीं है।
कांजी भाई : वहां भी है।
वकील : तो फिर आप लोगो को मंदिर जाना क्यों पाखंड लगता है?
कांजी भाई : हमारा मतलब है मंदिर ही क्यों जाना मूर्ति में ही क्यों?? जब सभी जगह है तो जरूरत ही क्या है पूजा करने की बस मन में ही पूजा कर लो।
वकील-'हा हा हा हा '
कांजी भाई- इसमें हंसने की क्या बात है??
वकील दोनो को घूरते हुए आगे बड़ा और पुछा- एक बात बताइए आप पानी केसे पीते है?
'पानी कैसे पीते है?
ये कैसा पागलो जासा सवाल है जज साहब?कांजी बोला'
वकील लगभग चिल्लाते हुए - मैं पूछता हूँ आप पानी कैसे पीते है ?
कांजी भाई हडबडाते हुए - ज ज ज जी ग्लास से।
पॉइंट टू बी नोटेड मी लार्ड कांजी भाई ग्लास से पानी पीते है
और ये pk तो इस ग्रह का आदमी नहीं है फिर भी पूछ लेते है।
क्यों भाई तुम पानी कैसे पीते हो?
pk- जी मैं भी ग्लास से पीता हूँ।
वकील कांजी भाई की और मुड़ते हुए - कांजी भाई एक बात बताइए जब पानी हाइड्रोजन और आक्सीजन के रूप में इस हवा में भी मोजूद है तो आप हवा में से सूंघकर पानी क्यों नहीं पी लेते?
और ऐसा कहकर वकील ने हवा में लगभग नाक को तीन बार अलग अलग घुसेड़ते हुए बताया मानो हवा से नाक से पानी पी रहा हो।
कांजी भाई झुंझलाकर बोला - जज साहब वकील साहब कैसी बाते कर रहे है?भला इस प्रकार हवा से सूंघकर पानी कैसे पिया जा सकता है ?पानी पीने के लिए किसी ग्लास की जरूरत तो पड़ेगी ही।
और वकील जेसे कांजी पर टूट पड़ा हो- इसी प्रकार कांजी भाई जैसे आप यह जानते हुए भी कि पानी सभी जगह मोजूद है आप को पानी पीने के लिए ग्लास की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार यह जानते हुए भी कि ईश्वर सभी जगह मोजूद है उसके बावजूद हमें मूर्ति ,मंदिर या तीर्थस्थल की आवश्यकता होती है ताकि हम ईश्वर की सरलता से ध्यान लगाकर आराधना कर सके ।
कांजी भाई चुप।
और अब pk को भी बात समझ में आ चुकि थी की आदमी मंदिर क्यों जाता है। .

हाथ के घाव

कहानी - किस्से आपने खूब पढ़े होंगे मगर जो बात मैं आपसे कहने जा रहा हूं वह अगर आपके मर्म को छू जाए तो अपने बच्चों को अवश्य बताएं : -

पढ़ाई पूरी करने के बाद एक छात्र किसी बड़ी कंपनी में नौकरी पाने की चाह में इंटरव्यू देने के लिए पहुंचा....

छात्र ने बड़ी आसानी से पहला इंटरव्यू पास कर लिया...

अब फाइनल इंटरव्यू
कंपनी के डायरेक्टर को लेना था...

और डायरेक्टर को ही तय
करना था कि उस छात्र को नौकरी पर रखा जाए या नहीं...

डायरेक्टर ने छात्र का सीवी (curricular vitae)  देखा और पाया  कि पढ़ाई के साथ- साथ यह  छात्र ईसी (extra curricular activities)  में भी हमेशा अव्वल रहा...

डायरेक्टर- "क्या तुम्हें  पढ़ाई के दौरान
कभी छात्रवृत्ति (scholarship)  मिली...?"

छात्र- "जी नहीं..."

डायरेक्टर- "इसका मतलब स्कूल-कॉलेज  की फीस तुम्हारे पिता अदा करते थे.."

छात्र- "जी हाँ , श्रीमान ।"

डायरेक्टर- "तुम्हारे पिताजी  क्या काम  करते  है?"

छात्र- "जी वो लोगों के कपड़े धोते हैं..."

यह सुनकर कंपनी के डायरेक्टर ने कहा- "ज़रा अपने हाथ तो दिखाना..."

छात्र के हाथ रेशम की तरह मुलायम और नाज़ुक थे...

डायरेक्टर- "क्या तुमने कभी  कपड़े धोने में अपने  पिताजी की मदद की...?"

छात्र- "जी नहीं, मेरे  पिता हमेशा यही चाहते थे
कि मैं पढ़ाई  करूं और ज़्यादा से ज़्यादा किताबें
पढ़ूं...

हां , एक बात और, मेरे पिता बड़ी तेजी  से कपड़े धोते हैं..."

डायरेक्टर- "क्या मैं तुम्हें  एक काम कह सकता हूं...?"

छात्र- "जी, आदेश कीजिए..."

डायरेक्टर- "आज घर वापस जाने के बाद अपने पिताजी के हाथ धोना...
फिर कल सुबह मुझसे आकर मिलना..."

छात्र यह सुनकर प्रसन्न हो गया...
उसे लगा कि अब नौकरी  मिलना तो पक्का है,

तभी तो  डायरेक्टर ने कल फिर बुलाया है...

छात्र ने घर आकर खुशी-खुशी अपने पिता को ये सारी बातें बताईं और अपने हाथ दिखाने को कहा...

पिता को थोड़ी हैरानी हुई...
लेकिन फिर भी उसने बेटे
की इच्छा का मान करते हुए अपने दोनों हाथ उसके
हाथों में दे दिए...

छात्र ने पिता के हाथों को धीरे-धीरे धोना शुरू किया.

साथ ही उसकी आंखों से आंसू भी झर-झर बहने लगे...

पिता के हाथ रेगमाल (emery paper) की तरह सख्त और जगह-जगह से कटे हुए थे...

यहां तक कि जब भी वह  कटे के निशानों पर  पानी डालता, चुभन का अहसास
पिता के चेहरे पर साफ़ झलक जाता था...।

छात्र को ज़िंदगी में पहली बार एहसास हुआ कि ये
वही हाथ हैं जो रोज़ लोगों के कपड़े धो-धोकर उसके
लिए अच्छे खाने, कपड़ों और स्कूल की फीस का इंतज़ाम करते थे...

पिता के हाथ का हर छाला सबूत था उसके एकेडैमिक कैरियर की एक-एक
कामयाबी का...

पिता के हाथ धोने के बाद छात्र को पता ही नहीं चला कि उसने  उस दिन के बचे हुए सारे कपड़े भी एक-एक कर धो डाले...

उसके पिता रोकते ही रह गए , लेकिन छात्र अपनी धुन में कपड़े धोता चला गया...

उस रात बाप- बेटे ने काफ़ी देर तक बातें कीं ...

अगली सुबह छात्र फिर नौकरी  के लिए कंपनी के  डायरेक्टर के ऑफिस में था...

डायरेक्टर का सामना करते हुए छात्र की आंखें गीली थीं...

डायरेक्टर- "हूं , तो फिर कैसा रहा कल घर पर ?
क्या तुम अपना अनुभव मेरे साथ शेयर करना पसंद करोगे....?"

छात्र- " जी हाँ , श्रीमान कल मैंने जिंदगी का एक वास्तविक अनुभव सीखा...

नंबर एक... मैंने सीखा कि सराहना क्या होती है...
मेरे पिता न होते तो मैं पढ़ाई में इतनी आगे नहीं आ सकता था...

नंबर दो... पिता की मदद करने से मुझे पता चला कि किसी काम को करना कितना सख्त और मुश्किल होता है...

नंबर तीन.. . मैंने रिश्तों की अहमियत पहली बार
इतनी शिद्दत के साथ महसूस की..."

डायरेक्टर- "यही सब है जो मैं अपने मैनेजर में देखना चाहता हूं...

मैं यह नौकरी केवल उसे  देना चाहता हूं जो दूसरों की मदद की कद्र करे,
ऐसा व्यक्ति जो काम किए जाने के दौरान दूसरों की तकलीफ भी महसूस करे...

ऐसा शख्स जिसने
सिर्फ पैसे को ही जीवन का ध्येय न बना रखा हो...

मुबारक हो, तुम इस नौकरी  के पूरे हक़दार हो..."

आप अपने बच्चों को बड़ा मकान दें, बढ़िया खाना दें,
बड़ा टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर सब कुछ दें...

लेकिन साथ ही  अपने बच्चों को यह अनुभव भी हासिल करने दें कि उन्हें पता चले कि घास काटते हुए कैसा लगता है ?

उन्हें  भी अपने हाथों से ये  काम करने दें...

खाने के बाद कभी बर्तनों को धोने का अनुभव भी अपने साथ घर के सब बच्चों को मिलकर करने दें...

ऐसा इसलिए
नहीं कि आप मेड पर पैसा खर्च नहीं कर सकते,
बल्कि इसलिए कि आप अपने बच्चों से सही प्यार करते हैं...

आप उन्हें समझाते हैं कि पिता कितने भी अमीर
क्यों न हो, एक दिन उनके बाल सफेद होने ही हैं...

सबसे अहम हैं आप के बच्चे किसी काम को करने
की कोशिश की कद्र करना सीखें...

एक दूसरे का हाथ
बंटाते हुए काम करने का जज्ब़ा अपने अंदर
लाएं...

यही है सबसे बड़ी सीख..............

आप सभी  से निवेदन है  कि  उक्त कहानी से सीख लें और अपने परिवार पर इसका प्रयोग कर अपने बच्चों को सर्वोच्च शिक्षा प्रदान करें।

स्पेशल बेटी

अपनी शादी के पहले दिन पति और
पत्नी के बीच
शर्त रखी जाती है
कि किसी के लिए
भी दरवाजा नहीं खोला जायेगा !
..
...
उसी दिन उस लड़के के माता पिता आये और
अन्दर जाने के
लिए दरवाजा खट खटाया !
..
...
पति पत्नी एक दुसरे की तरफ देखते है।
...
..
पति अपने माता पिता के लिए
दरवजा खोलना चाहता है लेकिन उसे शर्त
याद आ जाती है। वह
दरवाज़ा नहीं खोलता है ओर उसके
माता पिता चले जाते है ।
...
......
कुछ समय के बाद उसी दिन लड़की के
माता पिता आते है और अन्दर जाने के लिए
दरवाजा ख़त खटाते है ।
..
...
पति पत्नी फिर एक दुसरे की तरफ देखते है
और उस समय भी वो शर्त याद करते है ।
..
...
पत्नी की आँखों में आंसू आ जाते हे वो अपने
आंसू पूछते हुए कहती हे : मै अपने माता पिता के
लिए
ऐसा नहीं कर सकती और दरवाजा खोल
देती है ।
..
पति कुछ नहीं कहता है ।।
..
...
कुछ समय के बाद उनके दो पुत्र जन्म लेते है ।
...
.....
इसके बाद उनको तीसरा बच्चा होता है जो एक
लड़की (बेटी) होती है ।।
..
...
वह पति अपनी पुत्री के जन्म लेने के
अवसर पर एक बहुत बड़ी और शानदार
पार्टी का आयोजन करता है और अपने
सभी दोस्तों और रिश्तेदारों को बुलाता है ।
..
....
...
फिर उसकी पत्नी उससे
पूछती है कि क्या कारण था जो उसने बेटी के
जन्म पर
इतनी बड़ी पार्टी का आयोजन
किया जबकि इससे पहले दोनों दोनों भाइयो के
जन्म पर ऐसा कुछ
नहीं किया ।।
...
....
पति अपने साधारण से शब्दों में बड़े प्यार से
उत्तर देता है :
क्योकि यही वो है जो एक दिन मेरे लिए
दरवाजा खोलेगी ।।
...
.....
"बेटिया बहुत स्पेशल होती है,
आपकी छोटी सी बेटी भले
ही आपके साथ कुछ समय के लिए
ही रहे .... लेकिन उसका दिल और प्यार
जीवनभर अपने माता पिता के लिए रहता है ।।"

सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

Hearing problem


Rakesh was worried that his wife was having an hearing problem and he thought she might need a  hearing aid.

Not quite sure how to approach her, he called the family Doctor to discuss the problem.

The Doctor told him there is a simple informal test the husband could perform to give the Doctor a better idea about her hearing loss.

"Here's what you do,"
said the Doctor,
"stand about 40 feet away from her, and in a normal conversational speaking tone see if she hears you.
If not, go to 30 feet,
then 20 feet,
and so on until you get a response.."

That evening,
his wife was in the kitchen cooking dinner,
and Rakesh thought of testing the same.
He says to himself,
"I'm about 40 feet away, let's see what happens.?"

Then in a normal tone he asks,
"Honey, what's for dinner?"

No response....

So he moves closer to the kitchen,
about 30 feet from his wife and repeats,
"Honey, what's for dinner?"

Still No response...

Next he moves to the dining room where he is about 20 feet from his Wife and asks,
"Honey, what's for dinner?"

Again he gets No response...

So, he walks up to the kitchen door,
about 10 feet away.
"Honey, what's for dinner?"

Again there is No response....

So he walks right up behind her,
"Honey, what's for dinner?"

(You'll Love this)











"For God's sake Rakesh,
its  the FIFTH time I am telling you,
its 'AALOO PARATHA'.!"
so husband is not always correct.

नन्ही लड़की की गुड़िया

शायद लिखने वाले ने अपना कलेजा निकाल कर रख दिया है   मैं एक दुकान में
खरीददारी कर रहा था,
तभी मैंने उस दुकान के कैशियर को एक 5-6
साल की लड़की से
बात करते हुए देखा |

कैशियर बोला :~
"माफ़ करना बेटी,
लेकिन इस गुड़िया को
खरीदने के लिए
तुम्हारे पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं|"

फिर उस छोटी सी
लड़की ने मेरी ओर
मुड़ कर मुझसे पूछा:~

"अंकल,
क्या आपको भी यही लगता है
कि मेरे पास पूरे पैसे नहीं हैं?''

मैंने उसके पैसे गिने
और उससे कहा:~
"हाँ बेटे,
यह सच है कि तुम्हारे पास
इस गुड़िया को खरीदने के लिए पूरे पैसे
नहीं हैं"|

वह नन्ही सी लड़की
अभी भी अपने
हाथों में गुड़िया थामे हुए खड़ी थी |
मुझसे रहा नहीं गया |
इसके बाद मैंने उसके पास जाकर उससे
पूछा कि यह गुड़िया वह किसे
देना चाहती है?

इस पर उसने
उत्तर दिया कि यह
वो गुड़िया है,
जो उसकी बहन को
बहुत प्यारी है |
और वह इसे,
उसके जन्मदिन के लिए उपहार
में देना चाहती है |

बच्ची ने कहा यह गुड़िया पहले मुझे
मेरी मम्मी को देना है,
जो कि बाद में मम्मी
जाकर मेरी बहन को दे देंगी"|

यह कहते-कहते
उसकी आँखें नम हो आईं थी
मेरी बहन भगवान के घर गयी है...

और मेरे पापा कहते हैं
कि मेरी मम्मी भी जल्दी-ही भगवान से
मिलने जाने वाली हैं|
तो, मैंने सोचा कि
क्यों ना वो इस
गुड़िया को अपने साथ ले जाकर, मेरी बहन
को दे दें...|"

मेरा दिल धक्क-सा रह गया था |

उसने ये सारी बातें
एक साँस में ही कह डालीं
और फिर मेरी ओर देखकर बोली -
"मैंने पापा से कह दिया है कि मम्मी से
कहना कि वो अभी ना जाएँ|

वो मेरा,
दुकान से लौटने तक का
इंतजार
करें|

फिर उसने मुझे एक बहुत प्यारा-
सा फोटो दिखाया जिसमें वह
खिलखिला कर हँस
रही थी |

इसके बाद उसने मुझसे कहा:~
"मैं चाहती हूँ कि मेरी मम्मी,
मेरी यह
फोटो भी अपने साथ ले जायें,
ताकि मेरी बहन मुझे भूल नहीं पाए|
मैं अपनी मम्मी से बहुत प्यार करती हूँ और
मुझे नहीं लगता कि वो मुझे ऐसे छोड़ने के
लिए राजी होंगी,
पर पापा कहते हैं कि
मम्मी को मेरी छोटी
बहन के साथ रहने के
लिए जाना ही पड़ेगा क्योंकि वो बहुत छोटी है, मुझसे भी छोटी है | उसने धीमी आवाज मैं बोला।

इसके बाद फिर से उसने उस
गुड़िया को ग़मगीन आँखों-से खामोशी-से
देखा|

मेरे हाथ जल्दी से
अपने बटुए ( पर्स ) तक
पहुँचे और मैंने उससे कहा:~

"चलो एक बार
और गिनती करके देखते हैं
कि तुम्हारे पास गुड़िया के
लिए पर्याप्त पैसे हैं या नहीं?''

उसने कहा-:"ठीक है|
पर मुझे लगता है
शायद मेरे पास पूरे पैसे हैं"|

इसके बाद मैंने
उससे नजरें बचाकर
कुछ पैसे
उसमें जोड़ दिए और
फिर हमने उन्हें
गिनना शुरू किया |

ये पैसे उसकी
गुड़िया के लिए काफी थे
यही नहीं,
कुछ पैसे अतिरिक्त
बच भी गए
थेl |

नन्ही-सी लड़की ने कहा:~
"भगवान्
का लाख-लाख शुक्र है
मुझे इतने सारे पैसे
देने के लिए!

फिर उसने
मेरी ओर देख कर
कहा कि मैंने कल
रात सोने से पहले भगवान् से
प्रार्थना की थी कि मुझे इस
गुड़िया को खरीदने के
लिए पैसे दे देना,
ताकि मम्मी इसे
मेरी बहन को दे सकें |
और भगवान् ने मेरी बात सुन ली|

इसके अलावा
मुझे मम्मी के लिए
एक सफ़ेद गुलाब
खरीदने के लिए भी पैसे चाहिए थे, पर मैं भगवान से
इतने ज्यादा पैसे मांगने
की हिम्मत नहीं कर पायी थी
पर भगवान् ने तो
मुझे इतने पैसे दे दिए हैं
कि अब मैं गुड़िया के साथ-साथ एक सफ़ेद
गुलाब भी खरीद सकती हूँ !
मेरी मम्मी को सफेद गुलाब बहुत पसंद हैं|

"फिर हम वहा से निकल गए |
मैं अपने दिमाग से उस छोटी-
सी लड़की को
निकाल नहीं पा रहा था |

फिर,मुझे दो दिन पहले
स्थानीय समाचार
पत्र में छपी एक
घटना याद आ गयी
जिसमें
एक शराबी
ट्रक ड्राईवर के बारे में
लिखा था|

जिसने नशे की हालत में
मोबाईल फोन पर
बात करते हुए एक कार-चालक
महिला की कार को
टक्कर मार दी थी,
जिसमें उसकी 3 साल
की बेटी की
घटनास्थल पर ही
मृत्यु
हो गयी थी
और वह महिला कोमा में
चली गयी थी|
अब एक महत्वपूर्ण निर्णय उस परिवार
को ये लेना था कि,
उस महिला को जीवन
रक्षक मशीन पर बनाए रखना है
अथवा नहीं?
क्योंकि वह कोमा से बाहर
आकर,
स्वस्थ हो सकने की
अवस्था में
नहीं थी | दोनों पैर , एक हाथ,आधा चेहरा कट चुका था । आॅखें जा चुकी थी ।

"क्या वह परिवार इसी छोटी-
लड़की का ही था?"

मेरा मन रोम-रोम काँप उठा |
मेरी उस नन्ही लड़की
के साथ हुई मुलाक़ात के 2 दिनों बाद मैंने अखबार में
पढ़ा कि उस
महिला को बचाया नहीं जा सका,

मैं अपने आप को
रोक नहीं सका और अखबार
में दिए पते पर जा पहुँचा,
जहाँ उस महिला को
अंतिम दर्शन के लिए
रखा गया था
वह महिला श्वेत धवल
कपड़ों में थी-
अपने हाथ में
एक सफ़ेद गुलाब
और उस छोटी-सी लड़की का वही हॅसता हुआ
फोटो लिए हुए और उसके सीने पर रखी हुई
थी -
वही गुड़िया |
मेरी आँखे नम हो गयी । दुकान में मिली बच्ची और सामने मृत ये महिला से मेरा तो कोई वास्ता नही था लेकिन हूं तो इंसान ही ।ये सब देखने के बाद अपने आप को सभांलना एक बडी चुनौती थी
मैं नम आँखें लेकर वहाँ से लौटा|

उस नन्ही-सी लड़की का
अपनी माँ और
उसकी बहन के लिए
जो बेपनाह अगाध प्यार था,
वह शब्दों में
बयान करना मुश्किल है |

और ऐसे में,
एक शराबी चालक ने
अपनी घोर
लापरवाही से क्षण-भर में
उस लड़की से
उसका सब कुछ
छीन लिया था....!!!

ये दुख रोज कितने परिवारों की सच्चाइ बनता है मुझे पता नहीं!!!!  शायद ये मार्मिक घटना
सिर्फ
एक पैग़ाम
देना चाहती है कि:::::::::::::

कृपया~~~

कभी भी शराब
पीकर और
मोबाइल पर बात
करते समय
वाहन ना चलायें
क्यूँकि आपका आनन्द
किसी के लिए
श्राप साबित हो सकता हैँ।

इस पोस्ट को
पढ़कर यदि आप
'भावुक' हुऐ
हों तो किसी भी एक व्यक्ति को शेयर'
जरूर करें .........!!

रविवार, 22 फ़रवरी 2015

You owned just your moments

Beautiful message which I wanted everyone to know the meaning of life !!!

A man died...

When he realized it, he saw God coming closer with a suitcase in his hand.

Dialog between God and Dead Man:

God: Alright son, it’s time to go

Man: So soon? I had a lot of plans...

God: I am sorry but, it’s time to go

Man: What do you have in that suitcase?

God: Your belongings

Man: My belongings? You mean my things... Clothes... money...

God: Those things were never yours, they belong to the Earth

Man: Is it my memories?

God: No. They belong to Time

Man: Is it my talent?

God: No. They belong to Circumstance

Man: Is it my friends and family?

God: No son. They belong to the Path you travelled

Man: Is it my wife and children?

God: No. they belong to your Heart

Man: Then it must be my body

God: No No... It belongs to Dust

Man: Then surely it must be my Soul!

God: You are sadly mistaken son. Your Soul belongs to me.

Man with tears in his eyes and full of fear took the suitcase from the God's hand and opened it...

Empty...

With heartbroken and tears down his cheek he asks God...

Man: I never owned anything?

God: That’s Right. You never owned anything.

Man: Then? What was mine?

God: your MOMENTS.
Every moment you lived was yours.

Life is just a Moment.

Live it...
Love it...
Enjoy it...��

सुपुत्र कौन

गाँव के कुएँ से चार महिला ऐ पानी भर रही थी.
एक महिला का पुत्र वहा से निकला उसे देख कर वह
महिला बोली देखो वह मेरा पुत्र हे यहाँ का सबसे
बड़ा पहलवान है.
.
फिर दूसरी महिला का पुत्र वहा से गुजरा जिसे देख कर
वो महिला बोली देखो ये मेरा पुत्र बड़ा विद्वान है.
.
उसके बाद तीसरी महिला का पुत्र वहा से निकला उसे देख
के वह महिला बोली देखो मेरा सुपुत्र यहाँ का सबसे
बड़ा व्यापारी है.
.
तभी चौथी महिला का पुत्र वहा से निकला माँ को देख
कर माँ के पास आया, पानी का घड़ा उठा लिया और
बोला चलो माँ घर चले.
.
उस माँ की ख़ुशी भरी आँखों के सामने उन तीनो महिलाओ
की नज़रे झुक गयी वो समझ चुकी थी की सुपुत्र कौन है

प्रेम को आमंत्रण

एक दिन एक औरत अपने घर के बाहर आई
और उसने तीन संतों को अपने घर के सामने
देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी।

औरत ने कहा –
“कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।”

संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?”

औरत – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।”

संत –“हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर
          हों।”
शाम को उस औरत का पति घर आया और
औरत ने उसे यह सब बताया।

पति – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर
आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।”

औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के
लिए कहा।
संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ
नहीं जाते।”

“पर क्यों?” – औरत ने पूछा।

उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है” 
फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा –
“इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं।
हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है।

आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर
लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।”

औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब
बताया। उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और

बोला –“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित
करना चाहिए। हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।”

पत्नी – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को
             आमंत्रित करना चाहिए।”

उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी।
वह उनके पास आई और बोली –
“मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना
चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।”

“तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम
को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने
कहा।
औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा –
“आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में
प्रवेश कर भोजन गृहण करें।”

प्रेम घर की ओर बढ़ चले। बाकी के दो संत भी उनके
पीछे चलने लगे।

औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – “मैंने
तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था। आप लोग
भीतर क्यों जा रहे हैं?”

उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और
सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता
तो केवल वही भीतर जाता।
आपने प्रेम को आमंत्रित किया है।

प्रेम कभी अकेला नहीं जाता।
प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता
उसके पीछे जाते हैं।

इस कहानी को एक बार, 2 बार, 3 बार
पढ़ें ........अच्छा लगे तो प्रेम के साथ रहें,
प्रेम बाटें, प्रेम दें और प्रेम लें क्योंकि प्रेम ही
सफल जीवन का राज है।
निम्न चीजो का साथ छोड दें
जीवन खुद बखुद सफल, सुखद, सरल,सुगम,
संयम, स्वस्थ, एवम मार्यादित बना रहेगा -

छोड दें - दूसरों को निचा दिखाना।
छोड दें - दुसरो की सफलता से जलना।
छोड दें - दूसरों के धन से जलना।
छोड दें - दूसरों की चुगली करना।
छोड दें - दूसरों की सफलता पर इर्ष्या करना।

शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

नई रोशनी

एक 18 साल का लड़का ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर
बैठा था। अचानक वो ख़ुशी में जोर से चिल्लाया "पिताजी,
वो देखो, पेड़ पीछे जा रहा हैं"। उसके पिता ने स्नेह से उसके सिर
पर हाथ फिराया।
वो लड़का फिर चिल्लाया "पिताजी वो देखो, आसमान में बादल
भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं"। पिता की आँखों से आंसू
निकल गए।
पास बैठा आदमी ये सब देख रहा था। उसने कहा इतना बड़ा होने
के बाद भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर रहा हैं। आप
इसको किसी अच्छे डॉक्टर से क्यों नहीं दिखाते?? पिता ने
कहा की वो लोग डॉक्टर के पास से ही आ रहे हैं। मेरा बेटा जन्म
से अँधा था। आज ही उसको नयी आँखे मिली हैं।
...
नेत्रदान करे। किसी के जीवन में रौशनी भरे।
...

अन्धत्व की पीड़ा

अन्धत्व की पीड़ा

शिष्य- हे प्रभो, मैं दिन-रात प्रवचन सुनता हूं, तत्वचर्चा करता हूं, कर्इ शिविरों में भी मैं सम्मिलित हुआ हूं। ऐसा करते-करते दसियों साल गुजर गये, फिर भी मुझे आजतक मेरी निज-वस्तु की प्राप्ति नहीं हुर्इ है, सो क्या कारण है?
सदगुरू - वत्स, आपका प्रश्न बहुत सामयिक है। अधिकांश जिज्ञासु जीवों की भी यह उलझन होती है। इसको समझने के लिए निम्न उदाहरण दृष्टव्य है-
बहुत समय पूर्व की बात है; जेम्स नामक एक व्यक्ति अफ्रीका के घने जंगलो में सोने की खदानों की खोज करने निकलता है। एक दिन कुछ खराबी आ जाने से उसका हेलीकाप्टर एक पहाड़ी प्रदेश में गिर जाता है। जेम्स किसी तरह पैराशूट के सहारे बाहर छलांग लगा देता है। उतरते समय पेड़ों से टकराते-टकराते वह किसी तरह जमीन पर गिरता है और बेहोश हो जाता है।

वह क्षेत्र बड़ा ही विकट था। वहा पर उंचे-उंचे पहाड़, नदियां ओैर खाइयां थी। उस क्षेत्र में कुछ जहरीले पौधे थे जिनसे रिसने वाली विषैली गैस वहां पर रहने वाले सभी जीवों को अंधा बना देती थी। इस कारण जेम्स भी होश में आने पर अपने आपको अंधा पाता है।
ऐसी विकट स्थिति में वह काफी डर जाता है और जोर-जोर से चिल्लाता है कि बचाओ-बचाओ। किन्तु कोर्इ भी उसे बचाने वाला नहीं आता है। तब वह थोड़ी हिम्मत जुटाकर धीरे-धीरे टटोल-टटोलकर आगे बढ़ता है। काफी चलने पर उसे कुछ आवाजें सुनार्इ देती हैं। वह बड़ी मुश्किल से उन लोगो के पास पहुंचता है और उन्हें अपनी विपदा सुनाता है।
तब उस गांव वाले उसे बताते हैं कि वे भी बचपन से ही अंधे हैं लेकिन इस अंधत्व के साथ रहना उन्होनें सीख लिया है और अब उन्हें द्रष्टि की कोर्इ आवश्यकता महसूस नहीं होती है।
अधिकांश अंधे अपनी इसी स्थिति में खुश रहते हैं और अपने घर गृहस्थी के कामों मे ही मग्न रहते हैं। कुछ अंधे भगवान की भक्ति-पूजा में अपने आपको लगाये रखते हैं।
कुछ अंधे द्रष्टि मिलने के फायदों पर भी दिन-रात चर्चा करते रहते हैं किन्तु उसे पाने की कोर्इ इच्छा-शक्ति उनमें नहीं दिखती है।
जेम्स कुछ दिन वहां रुककर विश्राम करता है, किन्तु उसे हर समय अपने अंधत्व की पीड़ा सताती रहती है। जैसे ही उसकी अवस्था कुछ सुधरती है, वह उस क्षेत्र से बाहर निकलने की सोचता है।
खाने पीने रहने आदि की कोर्इ कमी न होते हुये भी वह उस स्थान को शीध्र छोड़ना चाहता है; ताकि वह बाहर निकलकर अपनी आंखो का इलाज करवा सके। वह दिन-रात अपने घर की यादो में, उसके वैभवों में ही खोया रहता है। सपने भी उसे अपने घर परिवार के ही आते रहते हैं।
वह प्रत्येक गांव वाले से वहां से बाहर निकलने का मार्ग पूछता है किन्तु वे कहते हैं कि वे स्वयं अंधे हैं, अत: उन्हें बाहर निकलने का मार्ग नहीं पता है।
एक-दो अंधे ऐसे भी मिलते हैं, जिन्हें मार्ग मालूम नहीं होने पर भी वे इसे मार्ग बताने का ढोंग करते हैं और गलत मार्ग बता देते हैं।

उस मार्ग पर आगे उसे रास्ता नहीं मिलता है और फिर उसे अत्यन्त परेशान होकर, निराश होकर वापस आना पडत़ा है।
लेकिन उसके मन में वहां से निकलने की सच्ची लगन थी और अंदर ही अंदर उसे अपना अंधत्व कचोट रहा था। अत: देवयोग से उसे एक दिन एक ऐसा व्यक्ति मिलता है जो उसे बताता है कि वह वहां से निकलने का मार्ग जानता हैं ओैर चूंकि उसने विषैली गैस से बचाने वाला चश्मा पहन रखा है, इसलिये उस क्षेत्र में घूमते हुये भी वह अंधा नहीं होता है ।
उस व्यक्ति को उस क्षेत्र में रहने वाले अंधे जीवों पर अत्यन्त करूणा है और इसलिये वे उन्हें बार-बार समझाते रहते हैं कि इस क्षेत्र से बाहर निकलकर अपनी आंखो का इलाज करवा लो और चश्मा लगा लो। फिर आपकी इच्छा हो तो इस क्षेत्र में घूमो, क्योकि तब तुम्हे कोर्इ भी नुकसान नहीं होगा।
कर्इ लोग उस व्यक्ति से वहां से निकलने का मार्ग तो पूछ लेते हैं किन्तु अंदर से उन्हें वहाँ से निकलने की कोर्इ लगन नहीं होने से वे वहां से जाना ही नहीं चाहते हैं।
ऐसे ही व्यक्ति बाद में खुद को मार्ग का ज्ञानी बताकर दूसरों को मार्ग समझाने लगते हैं। लेकिन किसी भी अंधे के बताये गये मार्ग पर चलने से कभी किसी का भला संभव हो सकता है क्या?
हमारे नायक जेम्स को वह व्यक्ति भगवान स्वरूप लगने लगता है। वह उसके चरण पकड़ लेता है और कहता है कि मुझे शीध्र ही इस स्थान से निकाल बाहर कर दो। मैं अब एक पल भी यहां नहीं रहना चाहता हूं। मैं इस अंधत्व से अत्यन्त परेशान हूं।
तब करूणा-मूर्ति ऐसे वह सदगुरू जेम्स को अपने साथ बाहर ले जाते हैं और उसका इलाज करवाकर उसे द्रष्टि प्रदान करवा देते हैं। इसके पश्चात जेम्स शीध्र ही अपने देश चला जाता है और वहां पर अपने परिवार के साथ सुखपूर्वक रहने लगता है।
हे प्रभो, इस दृष्टांत में कर्इ गंभीर भाव भरे हुये हैं जिन्हें आपको बहुत गहरार्इ से विचार करना चाहिये।
इस कथा में आया गांव चतुर्गति रूपी इस संसार को दर्शाता है, जहां पर तरह-तरह के जीव निवास करते
हैं।
समस्त केवलज्ञानी भगवन्त देख व जान रहे हैं कि ये जीव अनादि से अंधे हैं लेकिन ये जीव स्वयं को अंधा न मानकर कभी कुछ मानते हैं कभी कुछ। एक जन्म के बाद दूसरे जन्म में भ्रमण के साथ इनकी मान्यता भी बदलती रहती हैं। इनका विवरण निम्नानुसार है:-
एक इन्द्रिय से पंचेन्द्रीय असंज्ञी अवस्था में अनन्तानन्त जीव राशि रह रही है। उन्हें अपने अंधेत्वपने का भान ही नहीं है तो वे उसे दूर करने का उपाय किस तरह कर सकते हैं।
उपरोक्त जीवराशि का अनन्तवां भाग ही पंचेन्द्रिय संज्ञी-पना में आता है और उसमें भी सामान्यत: देव भव, तिर्यन्च भव व नरक भव में अपने अंधत्व पर द्रष्टि ही नहीं जाती है। अत: वे उसे दूर नहीं कर पाते हैं।
उपरोक्त पंचेन्द्रिय संज्ञी जीव राशि के असंख्यवें भाग को ही महाभाग्य से मनुष्यपना मिलता है।
अब इस मनुष्यभव के अंधे जीवों को निम्न भागों में बांटा जा सकता है -
1:    अधिकांश मनुष्य तो अपने संसार के रागादि के कार्यों में ही मग्न रहते हैं। उन्हें होश ही नहीं रहता है। वे तो उपरोक्त कथा में आये अधिकांश अंधे गांव वालों की तरह ही अपना जीवन खाने, कमाने और परिवार को सम्भालने में व्यतीत कर देते हैं।
2:    कुछ अंधे जीव भक्ति-पूजा, जप-तप, स्वाध्याय आदि में संतुष्ट रहकर अपना भला मानते हैं और सोचते हैं कि इस तरह करने पर उन्हें दिव्य द्रष्टि प्राप्त होगी लेकिन उन्हें वर्तमान के अंधत्व की कोर्इ बैचेनी या पीड़ा नहीं रहती है।
3:    अत्यल्प संख्या में कुछ अंधे ऐसे भी हैं जिन्होंने किसी द्रष्टिवान व्यक्ति से आँख या चक्षु होने के फायदे सुन रखे होते हैं या पढ़ रखे होते हैं. अत: वे इस द्रष्टि रूपी आत्मा के मिलने से होने वाले लाभों की ही दिन-रात चर्चा करते हुये अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत कर देते हैं; किन्तु उन्हें भी वर्तमान में अंधत्व की कोर्इ पीड़ा महसूस नहीं होती है।
सुख से संतुष्ट एवं दुख से असंतुष्ट रहते हुये वे आत्मा की लाटरी खुलने की इच्छा, प्रतीक्षा करते रहते हैं।
4:    बहुत थोड़े अंधे जीव ऐसे भी होते हैं जिन्हें खुद तो मार्ग दिखार्इ नहीं देता है फिर भी वे दूसरों को मार्ग बताने का छल करते रहते हैं।
उन्होने आत्मा के बारे में किसी सदगुरू से सुना होता है या ग्रंथों में पढ़ा होता है लेकिन रूचि नहीं होने से उन्हें उसकी प्राप्ति नहीं होती है। अत: उनके बताये मार्ग पर चलकर उनके अनुयायी लोग भटकते ही रहते हैं.
5:    कुछ ऐसे भी प्राणी होते हैं जो होते तो अंधे हैं, परन्तु घोषणा करते हैं कि मैं द्रष्टिवान हूं, मुझे मार्ग स्पष्ट दिखार्इ दे रहा है। मेरे बताये मार्ग पर अगर आप चलोगे तो आपको अपने आत्मा की प्राप्ति अवश्य होगी।
ऐसे जीव खुद तो डूबते ही हैं, दूसरों को भी डुबोते हैं।
हे प्रभो, कोई भी अंधा व्यक्ति कितना भी सम्भलकर चलने का प्रयत्न करे, किन्तु वह खुद तो ठोकर खायेगा ही, साथ ही उसके शिष्य भी भटकेंगे ही।
अत: उपरोक्त पांचों तरह के मनुष्य भव आपने अनन्त बार धारण किये हैं, फिर भी आपका अनादिकाल से अभी तक भव-भ्रमण का अंत नहीं हुआ है। अत: अब तो आपके नीचे की भूमि खिसक जानी चाहिये और आपको लगना चाहिये कि आप मिथ्यात्व रूपी अंधत्व की अनन्त गहरार्इ में गिरते जा रहे हो और कोर्इ आपको सम्भालने वाला नहीं है।
ऐसे ही दशा हमारी इस कथा के नायक जेम्स की होती है जो अंधत्व की पीड़ा से इतना परेशान रहता है कि उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता है और वह इसे दूर करने का उपाय ढूंढ़ता रहता है।
हे प्रभो, निश्चय से मान लो कि आपका परिवार तो आपका चेतन द्रव्य और उसके अनन्त गुण हैं।
इनमें से प्रत्येक गुण में अनन्त शक्ति भरी हुर्इ है, जो आपको सदाकाल अक्षत सुख पहुंचाने में समर्थ है।
फिर भी आप अपने इस परिवार को छोड़कर पर में सुख प्राप्ति की आशा में घनघोर अंधकार रूपी इस संसार में इधर-उधर भटक रहे हो और आप अपनी ही निज वस्तु अपनी आत्मा और उसके वैभव को ही देख नहीं पा रहे हो।
यही आपके निज स्वरूप की प्राप्ति में बाधा पहुंचाने वाला मुख्य कारण है।
इस अंधत्व की पीड़ा को जो जिज्ञासु जानता है, मानता है और अनुभव करता है, वही उसे दूर करने का उपाय कर सकता है।
अन्य सभी अंधे जीव उपरोक्त तरह से इस संसार रूपी रंगमंच में बारी-बारी से प्रत्येक भूमिका में अनन्त बार आते रहे हैं ओैर आगे भी आते रहेंगे।