शनिवार, 26 अगस्त 2017

मांस का मूल्य

*मांस का मूल्य*

मगध सम्राट बिंन्दुसार ने एक बार अपनी सभा मे पूछा :
देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए *सबसे सस्ती वस्तु क्या है ?*
मंत्री परिषद् तथा अन्य सदस्य सोच में पड़ गये ! चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि तो बहुत श्रम के बाद मिलते हैं और वह भी तब, जब प्रकृति का प्रकोप न हो, ऎसी हालत में अन्न तो सस्ता हो ही नहीं सकता !

तब शिकार का शौक पालने वाले एक सामंत ने कहा :
राजन, *सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ मांस है,* इसे पाने मे मेहनत कम लगती है और पौष्टिक वस्तु खाने को मिल जाती है । सभी ने इस बात का समर्थन किया, लेकिन प्रधान मंत्री चाणक्य चुप थे ।
तब सम्राट ने उनसे पूछा : आपका इस बारे में क्या मत है ? चाणक्य ने कहा : मैं अपने विचार कल आपके समक्ष रखूंगा !

रात होने पर प्रधानमंत्री उस सामंत के महल पहुंचे, सामन्त ने द्वार खोला, इतनी रात गये प्रधानमंत्री को देखकर घबरा गया ।

प्रधानमंत्री ने कहा : शाम को महाराज एकाएक बीमार हो गये हैं, राजवैद्य ने कहा है कि किसी बड़े आदमी के हृदय का दो तोला मांस मिल जाए तो राजा के प्राण बच सकते हैं, इसलिए मैं आपके पास आपके हृदय का सिर्फ दो तोला मांस लेने आया हूं । इसके लिए आप एक लाख स्वर्ण मुद्रायें ले लें ।

यह सुनते ही सामंत के चेहरे का रंग उड़ गया, उसने प्रधानमंत्री के पैर पकड़ कर माफी मांगी और *उल्टे एक लाख स्वर्ण मुद्रायें देकर कहा कि इस धन से वह किसी और सामन्त के हृदय का मांस खरीद लें ।*
प्रधानमंत्री बारी-बारी सभी सामंतों, सेनाधिकारियों के यहां पहुंचे और *सभी से उनके हृदय का दो तोला मांस मांगा, लेकिन कोई भी राजी न हुआ, उल्टे सभी ने अपने बचाव के लिये प्रधानमंत्री को एक लाख, दो लाख, पांच लाख तक स्वर्ण मुद्रायें दीं ।*

इस प्रकार करीब दो करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का संग्रह कर प्रधानमंत्री सवेरा होने से पहले वापस अपने महल पहुंचे और समय पर राजसभा में प्रधानमंत्री ने राजा के समक्ष दो करोड़ स्वर्ण मुद्रायें रख दीं ।

सम्राट ने पूछा : यह सब क्या है ? तब प्रधानमंत्री ने बताया कि दो तोला मांस खरिदने के लिए *इतनी धनराशि इकट्ठी हो गई फिर भी दो तोला मांस नही मिला ।* राजन ! अब आप स्वयं विचार करें कि मांस कितना सस्ता है ?

जीवन अमूल्य है, हम यह न भूलें कि जिस तरह हमें अपनी जान प्यारी है, उसी तरह सभी जीवों को भी अपनी जान उतनी ही प्यारी है । किंतु अंतर बस इतना है कि मनुष्य अपने प्राण बचाने हेतु हर सम्भव प्रयास कर सकता है । बोलकर, रिझाकर, डराकर, रिश्वत देकर आदि आदि । *पशु न तो बोल सकते हैं, न ही अपनी व्यथा बता सकते हैं । तो क्या बस इसी कारण उनस जीने का अधिकार छीन लिया जाय ।*

हिन्दू धर्म के अनुसार हर किसी को स्वेच्छा से जीने का अधिकार है, प्राणी मात्र की रक्षा हमारा धर्म है..!

*शुद्ध आहार, शाकाहार !*
*मानव आहार, शाकाहार !*

तीन कसौटियाँ

                      *तीन कसौटियाँ*

प्राचीन यूनान में सुकरात अपने ज्ञान और विद्वता के लिए बहुत प्रसिद्ध था। सुकरात के पास एक दिन उसका एक परिचित व्यक्ति आया और बोला, “मैंने आपके एक मित्र के बारे में कुछ सुना है।” यह सुनते ही सुकरात ने कहा, “दो पल रूकों” l “मुझे कुछ बताने से पहले मैं चाहता हूँ कि हम एक छोटा सा परीक्षण कर लें जिसे मैं ‘तीन कसौटियों का परीक्षण’ कहता हूँ।” “तीन कसौटियाँ ?? कैसी कसौटियाँ ??”, परिचित ने पूछा।

“हाँ”, सुकरात ने कहा, “मुझे मेरे मित्र के बारे में कुछ बताने से पहले हमें यह तय कर लेना चाहिए कि आप कैसी बात कहने जा रहे हैं, इसलिए किसी भी बात को जानने से पहले मैं इन कसौटियों से परीक्षण करता हूँ। इसमें पहली कसौटी सत्य की कसौटी है। क्या आप सौ फीसदी दावे से यह कह सकते हो कि जो बात आप मुझे बताने जा रहे हो वह पूर्णतः सत्य हैं ??

“नहीं”, परिचित ने कहा, “दरअसल मैंने सुना है कि…” “ठीक है”, सुकरात ने कहा, “इसका अर्थ यह है कि आप आश्वस्त नहीं हो कि वह बात पूर्णतः सत्य है। चलिए, अब दूसरी कसौटी का प्रयोग करते हैं जिसे मैं अच्छाई की कसौटी कहता हूँ। मेरे मित्र के बारे में आप जो भी बताने जा रहे हो क्या उसमें कोई अच्छी बात हैं ??

“नहीं, बल्कि वह तो…”, परिचित ने कहा. “अच्छा”, सुकरात ने कहा, “इसका मतलब यह है कि आप मुझे जो कुछ सुनाने वाले थे उसमें कोई भलाई की बात नहीं है और आप यह भी नहीं जानते कि वह सच है या झूठ। लेकिन हमें अभी भी आस नहीं खोनी चाहिए क्योंकि आखिरी यानि तीसरी कसौटी का एक परीक्षण अभी बचा हुआ है; और वह है उपयोगिता की कसौटी।

जो बात आप मुझे बतानेवाले थे, क्या वह मेरे किसी काम की हैं ??” “नहीं, ऐसा तो नहीं है”, परिचित ने असहज होते हुए कहा। “बस, हो गया”, सुकरात ने कहा, “जो बात आप मुझे बतानेवाले थे वह न तो सत्य है, न ही भली है, और न ही मेरे काम की है, तो मैं उसे जानने में अपना कीमती समय क्यों नष्ट करूं ??”

➡ *शिक्षा* ~
*दोस्तों आज के नकारात्मक परिवेश में हमें अक्सर ऐसे लोगों से पाला पड़ता है जो हमेशा किसी न किसी की बुराईयों का ग्रन्थ लेकर घूमते रहते हैं, और हमारे बीच मतभेद पैदा करने की कोशिश करते रहते हैं,  इनसे निबटने के लिए सुकरात द्वारा बताई गयी इन तीन कसौटियों, सत्य, अच्छाई और उपयोगिता की कसौटियों को आप भी अपने जीवन में अपनाकर अपना जीवन सरल और खुशहाल बना सकते हैं ll*

            

गुरुवार, 10 अगस्त 2017

मोह-माया

एक सेठ और सेठानी रोज प्रवचन सुनने में जाते थे सेठजी के घर एक पिंजरे में तोता पला हुआ था। तोता एक दिन पूछता हैं कि सेठजी आप रोज कहाँ जाते है?
सेठजी बोले कि प्रवचन में ज्ञान सुनने जाते है तोता कहता है, सेठजी संत महाराजजी से एक बात पूछना कि मैं आजाद कब होऊंगा सेठजी प्रवचन समाप्त होने के पश्चात महाराजजी से पूछते है कि महाराज हमारे घर पे एक तोता है उसने पूछा है कि वो आजाद कब होगा........?
महाराज जी ऐसा सुनते हीं बेहोश होकर गिर जाते है। सेठजी महाराज जी की हालत देख कर चुप-चाप वहाँ से निकल जाते है। घर आते ही तोता सेठजी से पूछता है कि सेठजी महाराज जी ने क्या कहा। सेठजी कहते है कि तेरी किस्मत ही खराब है जो तेरी आजादी की बात पूछते ही वो बेहोश हो गए। तोता कहता है कोई बात नही सेठजी मै सब समझ गया।
दूसरे दिन सेठजी प्रवचन में जाने लगते है तब तोता पिंजरे में जानबूझ कर बेहोश होकर गिर जाता है सेठजी उसे मरा हुआ मानकर जैसे ही उसे पिंजरे से बाहर निकालते है, तो वो उड़ जाता है।
प्रवचन को जाते ही महाराज जी सेठजी से पूछते है कि कल आप उस तोते के बारे में पूछ रहे थे ना,अब वो कहाँ हैं। सेठजी कहते हैं, हाँ महाराज आज सुबह-सुबह वो जानबूझ कर बेहोश हो गया , मैंने देखा कि वो मर गया है इसलिये मैंने उसे जैसे ही बाहर निकाला तो वो उड़ गया।
तब महाराज ने सेठजी से कहा की देखो तुम इतने समय से प्रवचन सुनकर भी आज तक संसारिक मोह-माया के पिंजरे में फंसे हुए हो और उस तोते को देखो बिना प्रवचन में आये मेरा एक इशारा समझ कर आजाद हो गया। इस कहानी से
तात्पर्य :- ये है कि हम प्रवचन में तो जाते हैं ज्ञान की बाते करते हैं या सुनते भी हैं, पर हमारा मन हमेशा संसारिक बातों में हीं उलझा रहता हैं। प्रवचन में भी हम सिर्फ उन बातों को पसंद करते है जिसमें हमारा स्वार्थ सिद्ध होता हैं जबकि प्रवचन जाकर हमें सत्य को स्वीकार कर सभी बातों को महत्व देना चाहिये और जिस असत्य, झूठ और अहंकार को हम धारण किये हुए हैं उसे साहस के साथ मन से उतार कर सत्य को स्वीकार करना चाहिए ।
नही तो हमारी स्थिति
" पढ़ पढ़ के पंडित भये , ज्ञानी भये अपार।
आत्मज्ञान की खबर नही सब नकटी का श्रृंगार।।

उड़ान

उड़ान

              घने जंगल में गिद्धों का एक झुण्ड रहता था। गिद्ध झुण्ड बनाकर लम्बी उड़ान भरते और शिकार की तलाश किया करते थे। एक बार गिद्धों का झुण्ड उड़ते उड़ते एक ऐसे टापू पर पहुँच गया जहां पर बहुत ज्यादा मछली और मेंढक खाने को थे।
             इस टापू पर गिद्धों को रहने के लिए सारी सुविधाएँ मौजूद थीं। अब तो सारे गिद्ध बड़े खुश हुए, मजे से वो उसी टापू पर रहने लगे, अब ना ही रोज शिकार की तलाश में जाना पड़ता और ना ही कुछ मेहनत करनी पड़ती। दिन रात गिद्ध बिना कोई काम किये मौज करते और आलस्य में पड़े रहते थे।
          उस झुण्ड में एक बूढ़ा गिद्ध भी था, बूढ़े गिद्ध को अपने साथियों की ऐसी दशा देखकर बहुत चिंता हुई। वो गिद्धों को चेतावनी देते हुए बोला, "मित्रों! हम गिद्धों को ऊँची उड़ान और अचूक निशाने और उत्तम शिकारी के रूप में जाना जाता है। लेकिन इस टापू पर आकर सभी गिद्धों को आराम की आदत हो गई है और कुछ तो कई दिन से उड़े ही नहीं हैं। यह हमारी क्षमता और हमारे भविष्य के लिए घातक हो सकता है। अतः हमें अपने पुराने जंगलों में ही वापस लौट जाना चाहिये।
             अब सारे गिद्ध उस बूढ़े गिद्ध की हंसी उड़ाने लगे कि, "यह बूढ़े हो चुके हैं इनका दिमाग काम नहीं कर रहा है, यहाँ हम कितनी मौज मस्ती से रह रहे हैं वापस वहां जंगल में क्यों जाएँ?"
              यही सोचकर सभी गिद्धों ने जाने से मना कर दिया।
             लेकिन बूढ़ा गिद्ध वापस चला गया।
                  कुछ दिन बाद जंगल में रहते रहते उस बूढ़े गिद्ध ने सोचा कि, मेरा जीवन अब बहुत थोड़ा ही बचा है तो क्यों ना अपने सगे सम्बन्धियों से मिल लिया जाये।
        गिद्ध ने ऊँची उड़ान भरी और पहुँच गया उसी टापू पर जँहा अपने साथियों को छोड़ा था।
           लेकिन यह क्या?
पूरे टापू पर उसके साथयों की क्षत-विक्षत लाशें पड़ीं थीं।कुछ साथी बुरी तरह घायल अवस्था में कराह रहे थे।
           अचानक उसकी नज़र एक घायल गिद्ध पर पड़ी। उसने बताया कि, "कुछ दिन पहले चीतों का एक झुण्ड आया। जब चीतों ने हम पर हमला किया तो हम लोगों ने उड़ना चाहा लेकिन हम ऊँचा उड़ ही नहीं पाए और ना ही हमारे पंजों में इतनी ताकत थी कि हम उनका मुकाबला कर पाते।"
           चीतों ने एक एक कर सारे गिद्धों को घायल कर दिया और कुछ को मारकर खा गए।जो घायलावस्था में बचे वे भी शक्ति क्षीण होने के कारण धीरे धीरे काल के मुँह में समाते जा रहें हैं।"
           बूढे गिद्ध ने घायलों की सार-सम्भाल की और उन्हें पुनः उड़ान के लिए प्रेरित कर अपने साथ पुराने जंगल में ले गया।

           *मित्रों! हमारे जीवन में भी कुछ ऐसा ही होता है,यदि हम अपनी शक्तियों का लगातार प्रयोग नहीं करते हैं तो हम कमजोर पड़ते जाते हैं और एक दिन हमारी शक्तियां हमारे काम की ही नहीं रहतीं।*
          *यदि हम अज्ञानता या लालच के वशीभूत होकर अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं करते हैं तो हमारे दिमाग की क्षमता घटने लगती है।*
            *हम अपने शरीर का उपयोग नहीं करते हैं तो हमारी ताकत भी घटने लग जाती है।*
            *धीरे धीरे हमारी शक्तियां ही हमारी कमजोरियां बनती चली जाती हैं।*
        

डाल

   _*बहुत समय पहले की बात है ,*_

_एक राजा को उपहार में किसी ने बाज के दो बच्चे भेंट किये ।_

_वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे ,  और राजा ने कभी इससे पहले इतने शानदार बाज नहीं देखे थे।_

_राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक अनुभवी आदमी को नियुक्त कर दिया।_

_जब कुछ महीने बीत गए तो राजा ने बाजों को देखने का मन बनाया ,और उस जगह पहुँच गए जहाँ उन्हें पाला जा रहा था।_

_राजा ने देखा कि दोनों बाज काफी बड़े हो चुके थे और अब पहले से भी शानदार लग रहे थे ।_

_राजा ने बाजों की देखभाल कर रहे
आदमी से कहा,_
_” मैं इनकी उड़ान देखना चाहता हूँ , तुम इन्हे उड़ने का इशारा करो ।_

_“ आदमी ने ऐसा ही किया। इशारा मिलते ही दोनों बाज उड़ान भरने लगे ,_

_पर जहाँ एक बाज आसमान की ऊंचाइयों को छू रहा था ,_
_वहीँ दूसरा , कुछ ऊपर जाकर वापस उसी डाल पर आकर बैठ गया_

_जिससे वो उड़ा था। ये देख , राजा को कुछ अजीब लगा._

_“क्या बात है जहाँ एक बाज इतनी अच्छी उड़ान भर रहा है वहीँ ये दूसरा बाज उड़ना ही नहीं चाह रहा ?”,_

_राजा ने सवाल किया।_

_*” जी हुजूर , इस बाज के साथ शुरू से यही समस्या है , वो इस डाल को छोड़ता ही नहीं।”*_

_राजा को दोनों ही बाज प्रिय थे , और वो दूसरे बाज को भी उसी तरह उड़ना देखना चाहते थे।_

_अगले दिन पूरे राज्य में ऐलान करा दिया गया,कि जो व्यक्ति इस बाज को ऊँचा उड़ाने में कामयाब होगा उसे ढेरों इनाम दिया जाएगा।_

_फिर क्या था , एक से एक विद्वान् आये और बाज को उड़ाने का प्रयास करने लगे ,_

_पर हफ़्तों बीत जाने के बाद भी बाज
का वही हाल था, वो थोडा सा उड़ता और वापस डाल पर आकर बैठ जाता।_

_फिर एक दिन कुछ अनोखा हुआ , राजा ने देखा कि उसके दोनों बाज आसमान में उड़ रहे हैं।_

_उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ और उन्होंने तुरंत उस व्यक्ति का पता लगाने को कहा जिसने ये कारनामा कर दिखाया था।_

_वह व्यक्ति एक किसान था। अगले दिन वह दरबार में हाजिर हुआ। उसे इनाम में स्वर्ण मुद्राएं भेंट करने के बाद राजा ने कहा ,_

_” मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ , बस तुम
इतना बताओ कि जो काम बड़े-बड़े
विद्वान् नहीं कर पाये वो तुमने कैसे
कर दिखाया।_

_“ “मालिक !_ _मैं तो एक साधारण सा किसान हूँ , मैं ज्ञान की ज्यादा बातें नहीं जानता , मैंने तो बस वो डाल काट दी जिसपर बैठने का बाज आदि हो चुका था, और जब वो डाल ही नहीं रही तो वो भी अपने साथी के साथ ऊपर उड़ने लगा।_

_“दोस्तों, हम सभी ऊँचा उड़ने के लिए ही बने हैं।_

_लेकिन कई बार हम जो कर रहे होते है उसके इतने आदि हो जाते हैं कि अपनी ऊँची उड़ान भरने की , कुछ_
_बड़ा करने की काबिलियत को, भूल जाते हैं।_

_यदि आप भी सालों से किसी ऐसे ही काम में लगे हैं जो आपके सही potential के मुताबिक नहीं है तो एक बार ज़रूर सोचिये_

_कि कहीं आपको भी उस डाल को काटने की ज़रुरत तो नहीं जिसपर आप बैठे हैं ?_

_"Luck is what happens when"_
_"preparation meets opportunity

घमंड और साधना

घमंड और साधना
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संत कबीर गांव के बाहर झोपड़ी बनाकर अपने पुत्र कमाल के साथ रहते थे. संत कबीर जी का रोज का नियम था- नदी में स्नान करके गांव के सभी मंदिरों में जल चढाकर दोपहर बाद भजन में बैठते, शाम को देर से घर लौटते.
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वह अपने नित्य नियम से गांव में निकले थे. इधर पास के गांव के जमींदार का एक ही जवान लडका था जो रात को अचानक मर गया. रात भर रोना-धोना चला.
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आखिर में किसी ने सुझाया कि गांव के बाहर जो बाबा रहते हैं उनके पास ले चलो. शायद वह कुछ कर दें. सब तैयार हो गए. लाश को लेकर पहुंचे कुटिया पर. देखा बाबा तो हैं नहीं, अब क्या करें ?
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तभी कमाल आ गए. उनसे पूछा कि बाबा कब तक आएंगे ? कमाल ने बताया कि अब उनकी उम्र हो गई है. सब मंदिरों के दर्शन करके लौटते-लौटते रात हो जाती है. आप काम बोलो क्या है ?
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लोगों ने लड़के के मरने की बात बता दी. कमाल ने सोचा कोई बीमारी होती तो ठीक था पर ये तो मर गया है. अब क्या करें ! फिर भी सोचा लाओ कुछ करके देखते हैं. शायद बात बन जाए.
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कमाल ने कमंडल उठाया. लाश की तीन परिक्रमा की. फिर तीन बार गंगा जल का कमंडल से छींटी मारा और तीन बार राम नाम का उच्चारण किया. लडका देखते ही देखते उठकर खड़ा हो गया. लोगों की खुशी की सीमा न रही.
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इधर कबीर जी को किसी ने बताया कि आपके कुटिया की ओर गांव के जमींदार और सभी लोग गए हैं. कबीर जी झटकते कदमों से बढ़ने लगे. उन्हें रास्ते में ही लोग नाचते कूदते मिले. कबीर जी कुछ समझ नही पाए.
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आकर कमाल से पूछा कया बात हुई ? तो कमाल तो कुछ ओर ही बताने लगा. बोला- गुरु जी बहुत दिन से आप बोल रहे थे ना की तीर्थ यात्रा पर जाना है तो अब आप जाओ यहां तो मैं सब संभाल लूंगा.
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कबीर जी ने पूछा क्या संभाल लेगा ? कमाल बोला- बस यही मरे को जिंदा करना, बीमार को ठीक करना. ये तो सब अब मैं ही कर लूंगा. अब आप तो यात्रा पर जाओ जब तक आप की इच्छा हो.
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कबीर ने मन ही मन सोचा- चेले को सिद्धि तो प्राप्त हो गई है पर सिद्धि के साथ ही साथ इसे घमंड भी आ गया है. पहले तो इसका ही इलाज करना पडेगा बाद मे तीर्थ यात्रा होगी क्योंकि साधक में घमंड आया तो साधना समाप्त हो जाती है.
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कबीर जी ने कहा ठीक है. आने वाली पूर्णमासी को एक भजन का आयोजन करके फिर निकल जाउंगा यात्रा पर. तब तक तुम आस-पास के दो चार संतो को मेरी चिट्ठी जाकर दे आओ. भजन में आने का निमंत्रण भी देना.
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कबीर जी ने चिट्ठी मे लिखा था-
कमाल भयो कपूत,
कबीर को कुल गयो डूब.
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कमाल चिट्ठी लेकर गया एक संत के पास. उनको चिट्ठी दी. चिट्ठी पढ के वह समझ गए. उन्होंने कमाल का मन टटोला और पूछा कि अचानक ये भजन के आयोजन का विचार कैसे हुआ ?
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कमाल ने अहं के साथ बताया- कुछ नहीं. गुरू जी की लंबे समय से तीर्थ पर जाने की इच्छा थी. अब मैं सब कर ही लेता हूं तो मैने उन्हें कहा कि अब आप जाओ यात्रा कर आओ. तो वह जा रहे है ओर जाने से पहले भजन का आयोजन है.
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संत दोहे का अर्थ समझ गए. उन्होंने कमाल से पूछा- तुम क्या क्या कर लेते हो ? तो बोला वही मरे को जिंदा करना बीमार को ठीक करना जैसे काम.
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संत जी ने कहा आज रूको और शाम को यहां भी थोडा चमत्कार दिखा दो. उन्होंने गांव में खबर करा दी. थोडी देर में दो तीन सौ लोगों की लाईन लग गई. सब नाना प्रकार की बीमारी वाले. संत जी ने कमाल से कहा- चलो इन सबकी बीमारी को ठीक कर दो.
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कमाल तो देख के चौंक गया. अरे, इतने सारे लोग हैं. इतने लोगों को कैसे ठीक करूं. यह मेरे बस का नहीं है. संत जी ने कहा- कोई बात नहीं. अब ये आए हैं तो निराश लौटाना ठीक नहीं. तुम बैठो.
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संत जी ने लोटे में जल लिया और राम नाम का एक बार उच्चारण करके छींट दिया. एक लाईन में खड़े सारे लोग ठीक हो गए. फिर दूसरी लाइन पर छींटा मारा वे भी ठीक. बस दो बार जल के छींटे मार कर दो बार राम बोला तो सभी ठीक हो के चले गए.
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संत जी ने कहा- अच्छी बात है कमाल. हम भजन में आएंगे. पास के गांव में एक सूरदास जी रहते हैं. उनको भी जाकर बुला लाओ फिर सभी इक्ठ्ठे होकर चलते हैं भजन में.
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कमाल चल दिया सूरदास जी को बुलाने. सारे रास्ते सोचता रहा कि ये कैसे हुआ कि एक बार राम कहते ही इतने सारे बीमार लोग ठीक हो गए. मैंने तीन बार प्रदक्षिणा की. तीन बार गंगा जल छिड़क कर तीन बार राम नाम लिया तब बात बनी.
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यही सोचते-सोचते सूरदास जी की कुटिया पर पहुंच गया. जाके सब बात बताई कि क्यों आना हुआ. कमाल सुना ही रहा था कि इतने में सूरदास बोले- बेटा जल्दी से दौड के जा. टेकरी के पीछे नदी में कोई बहा जा रहा है. जल्दी से उसे बचा ले.
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कमाल दौड के गया. टेकरी पर से देखा नदी में एक लडका बहा आ रहा था. कमाल नदी में कूद गया और लडके को बाहर निकाल कर अपनी पीठ जी लादके कुटिया की तरफ चलने लगा.
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चलते- चलते उसे विचार आया कि अरे सूरदास जी तो अंधे हैं. फिर उन्हें नदी और उसमें बहता लडका कैसे दिख गया. उसका दिमाग सुन्न हो गया था. लडके को भूमि पर रखा तो देखा कि लडका मर चुका था.
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सूरदास ने जल का छींटा मारा और बोला- “रा”. तब तक लडका उठ के चल दिया. अब तो कमाल अचंभित की अरे इन्हें तो पूरा राम भी नहीं बोला. खाली रा बोलते ही लडका जिंदा हो गया.
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तब कमाल ने वह चिट्ठी खोल के खुद पढी की इसमें क्या लिखा है जब उसने पढा तो सब समझ मे आ गया.
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वापस आ के कबीर जी से बोला गुरु जी संसार मे एक से एक सिद्ध हैं उनके आगे मैं कुछ नहीं हूं. गुरु जी आप तो यहीं रहिए. अभी मुझे जाकर भ्रमण करके बहुत कुछ सीखने समझने की जरूरत है.
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कथा का तात्पर्य कि गुरू की कृपा से सिद्धियां मिलती हैं. उनका आशीर्वाद होता है तो साक्षात ईश्वर आपके साथ खड़े होते हैं. गुरू, गुरू ही रहेंगे. वह शिष्य के मन के सारे भाव पढ़ लेते हैं और मार्गदर्शक बनकर उन्हें पतन से बचाते हैं.
हरी ऊं श्री राम