शनिवार, 30 सितंबर 2017

वाणी ऐसी बोलिये। मन का आपा खोय।।

*वाणी ऐसी बोलिये।*
*मन का आपा खोय।।*
*औरन को शीतल लगे।*
*आपहु शीतल होय।।*
          एक राजा वन-विहार को निकले। घूमते घूमते सूर्य देवता सिर पर आ गए थे वह भी अपनी सम्पूर्ण प्रचंडता के साथ।रास्ते में साथ लाया पानी भी खत्म हो गया था।राजा के साथ साथ सिपाहियों को भी प्यास के मारे बुरा हाल था।
         राजा ने नजर दौड़ाई तो दूर एक झोपड़ी दिखाई दी।
         सिपाही को भेजा उस झोंपड़ी से जल लाने के लिए।
          जैसे-तैसे सिपाही झोंपड़ी तक पहुँचा,देखा वंहाँ केवल एक ही आदमी था वह भी अंधा।
       सिपाही थका हुआ तो था ही,रौब से बोला,"ऐ अन्धे एक लौटा पानी दे।
     अन्धा भी कम अकड़ू नहीं था,उसने तुरन्त कहा,
    "चल तेरे जैसे सिपाहियों से मैं नहीं डरता। नहीं दूँगा पानी तुझे।"
     आखिर सिपाही निराश लौट पड़ा।
          सिपाही ने राजा को बताया कि झोंपड़ी में एकमात्र अँधा वृद्ध है जो पानी नहीं दे रहा।
        अब राजा ने सेनापति को पानी लाने भेज दिया।
        सेनापति ने समीप जाकर कहा, "ए अन्धे! पैसा मिलेगा, पानी दे।
         अन्धा फिर अकड़ पड़ा। उसने सोचा, पहले वाले का यह सरदार मालूम पड़ता है। फिर भी चुपड़ी बातें बना कर दबाव डालता है। बोला,"जा-जा सरदार! यहाँ से पानी नहीं मिलेगा।"
      सेनापति को भी खाली हाथ लौटता देख राजा स्वयं चल पड़े।
         समीप पहुँचकर वृद्ध जन को सर्वप्रथम नमस्कार किया और कहा,"प्यास से गला सूख रहा है।एक लोटा जल दे सकें तो बड़ी कृपा होगी।"
      अंधे ने सत्कारपूर्वक उन्हें पास बिठाया और कहा,"आपश्री जैसे श्रेष्ठ राजन के लिए जल तो क्या मेरा शरीर भी स्वागत में हाजिर है। कोई और भी सेवा हो तो बतायें।"
       राजा ने शीतल जल से अपनी प्यास बुझाई  नम्र वाणी में पूछा,"आपको तो दिखाई ही पड़ नहीं रहा है, फिर जल माँगने वालों को सिपाही, सरदार और राजा के रूप में कैसे पहचान पाये?"
    अन्धे ने कहा,"हे राजन! वाणी के व्यवहार से हर व्यक्ति के वास्तविक स्तर का पता चल जाता है।”
     राजा ने अपने सिपाही और सेनापति द्वारा किये गए व्यवहार के लिए माफी माँगी तो उस अन्धे वृद्ध ने भी राजा से कह दिया,"हे राजन!माफी मांग कर आप मुझे शर्मिंदा न करें कृपया अपने सिपाही को भेज दें ताकि आपके सभी साथियों की प्यास बुझाने का सौभाग्य मुझे मिल सके।"
     उस समय तो राजा ने अपने सिपाही को पानी लेने भेज दिया ताकि अपने सभी सेवकों की प्यास बुझाई जा सके।
      महल पँहुचते ही राजा ने अपने उस सिपाही और सेनापति को बर्खास्त कर दिया,और दूसरे सिपाही को भेजकर उस अन्धे वृद्ध को सम्मान महल में बुलाकर राज अतिथि घोषित कर उनके महल के ही एक कक्ष में न केवल रहने की व्यवस्था की बल्कि उनकी सेवा सुश्रुषा के लिए दास दासियों को भी नियुक्त कर दिया।
     हम जानते हैं कि इस सारे चमत्कार का कारण केवल वाणी ही थी।
     *वाणी उस तीर की तरह हाेती है,जाे कमान(धनुष) से निकलने के बाद वापस नहीं आती। अतः हम जब भी कुछ बाेलें बहुत सोच-समझ कर बाेलें, वाणी में ऐसी मिठास हाे कि,सुनने वाला गदगद़ हो जाये।*
       *हम अपनी वाणी से  किसी काे भी दुःख न पहुँचाएँ,इसी कामना के साथ..........*

नाविक और पण्ड़ित

            

                  *नाविक और पण्ड़ित*

आज गंगा पार होने के लिए कई लोग एक नौका में बैठे, धीरे-धीरे नौका सवारियों के साथ सामने वाले किनारे की ओर बढ़ रही थी,एक पंडित जी भी उसमें सवार थे। पंडित जी ने नाविक से पूछा “क्या तुमने भूगोल पढ़ी हैं ??" भोला- भाला नाविक बोला “भूगोल क्या है इसका मुझे कुछ पता नहीं।” पंडितजी ने पंडिताई का प्रदर्शन करते कहा, “तुम्हारी पाव भर जिंदगी पानी में गई।" फिर पंडित जी ने दूसरा प्रश्न किया, “क्या इतिहास जानते हो? महारानी लक्ष्मीबाई कब और कहाँ हुई तथा उन्होंने कैसे लडाई की ?”

नाविक ने अपनी अनभिज्ञता जाहिर की तो  पंडित जी ने विजयीमुद्रा में कहा “ ये भी नहीं जानते तुम्हारी तो आधी जिंदगी पानी में गई।” फिर विद्या के मद में पंडित जी ने तीसरा प्रश्न पूछा “महाभारत का भीष्म-नाविक संवाद या रामायण का केवट और भगवान श्रीराम का संवाद जानते हो ?” अनपढ़ नाविक क्या कहे, उसने इशारे में ना कहा, तब पंडित जी मुस्कुराते हुए बोले “तुम्हारी तो पौनी जिंदगी पानी में गई।”

तभी अचानक गंगा में प्रवाह तीव्र होने लगा। नाविक ने सभी को तूफान की चेतावनी दी, और पंडितजी से पूछा “नौका तो तूफान में डूब सकती है, क्या आपको तैरना आता है?” पंडित जी गभराहट में बोले “मुझे तो तैरना-वैरना नहीं आता है ?” नाविक ने स्थिति भांपते हुए कहा ,“तब तो समझो आपकी पूरी जिंदगी पानी में गयी। ” कुछ ही देर में नौका पलट गई। और पंडित जी बह गए।

➡ *शिक्षा* ~
*मित्रों ,विद्या वाद-विवाद के लिए नहीं है और ना ही दूसरों को नीचा दिखाने के लिए है। लेकिन कभी-कभी ज्ञान के अभिमान में कुछ लोग इस बात को भूल जाते हैं और दूसरों का अपमान कर बैठते हैं। याद रखिये शाश्त्रों का ज्ञान समस्याओं के समाधान में प्रयोग होना चाहिए शश्त्र बना कर हिंसा करने के लिए नहीं।*

कहा भी गया है, जो पेड़ फलों से लदा होता है उसकी डालियाँ झुक जाती हैं। धन प्राप्ति होने पर सज्जनों में शालीनता आ जाती है। इसी तरह , विद्या जब विनयी के पास आती है तो वह शोभित हो जाती है। इसीलिए संस्कृत में कहा गया है , ‘विद्या विनयेन शोभते। ’

समय का महत्व

       

                  *समय का महत्व*

यह घटना उस समय की है, जब स्वतंत्रता आंदोलन जोर पकड़ रहा था। गांधीजी घूम-घूमकर लोगों को स्वराज और अहिंसा का संदेश देते थे। एक बार उन्हें एक सभा में बुलाया गया। सभा का संचालन एक स्थानीय नेता को करना था। गांधीजी समय के पाबंद थे। वह निर्धारित समय पर सभास्थल पर पहुंच गए। उन्होंने देखा कि सभास्थल पर सभी लोग पहुंच गए हैं, लेकिन जिन नेता को सभा का संचालन करना था, वह नहीं पहुंच पाए हैं। सभी लोग बेसब्री से उस नेता की प्रतीक्षा करते रहे।

वह पूरे पैंतालीस मिनट बाद सभास्थल पर पहुंचे। उन्होंने देखा कि उनकी अनुपस्थिति में ही सभा चल रही है। यह देखकर वह लज्जित हुए। मंच पर पहुंच कर उन्होंने आयोजकों से पूछा कि उनके बिना सभा कैसे प्रारंभ हुई? इस पर आयोजक कुछ नहीं बोले। गांधीजी नेताजी के हाव-भाव से उनकी बातें समझ गए। वह मंच पर आए और नेताजी की ओर देखते हुए बोले, 'माफ कीजिएगा, लेकिन जिस देश के अग्रगामी नेतागण ही महत्वपूर्ण सभा में पैंतालीस मिनट देर से पहुंचेगे ll

वहां पर स्वराज भी उतनी ही देर से आएगा। नेता के इंतजार में अन्य लोग भी कार्य प्रारंभ नहीं कर सकते। यह सोचकर मैंने सभा शुरू करा दी क्योंकि मुझे डर था कि आपके देर से आने की आदत धीरे-धीरे अन्य लोगों को भी न लग जाए। मेरा मानना है कि लोग एक-दूसरे की अच्छी बातें ही सीखें, बुरी बातें नहीं।' गांधीजी की बात सुनकर नेताजी को शर्मिंदगी महसूस हुई। उन्होंने उसी क्षण संकल्प लिया कि आगे से वह भी वक्त का महत्व समझेंगे और अपना हर कार्य निर्धारित समय पर करेंगे |

➡ *शिक्षा* ~
*उपर्युक्त कथा के माध्यम से हमें भी यह सीख लेनी चाहिये कि हम भी हमारे सभी काम समय से पूरे करें, वक्त का महत्व समझे, समय बरबाद न करें ll*

Smart Work is better than Hard Work

           गाँव में मोहन नाम का एक गरीब लड़का रहता था।
           मोहन बहुत मेहनती था लेकिन थोड़ा कम पढ़ा लिखा होने की वजह से उसे कोई नौकरी नहीं मिल पा रही थी।
           एक दिन भटकता हुआ लकड़ी के एक व्यापारी के पास पहुँचा ।         
          व्यापारी ने लड़के की दशा देखकर उसे जंगल से पेड़ कटाने का काम दिया ।
          नौकरी से मोहन बहुत उत्साहित था , वह जंगल गया और पहले ही दिन 18 पेड़ काट डाले। व्यापारी ने भी मोहन को शाबाशी दी।
         शाबाशी पाकर मोहन गदगद हो गया और अगले दिन और ज्यादा मेहनत से काम किया।
           लेकिन यह क्या?...
        वह केवल 15 पेड़ ही काट पाया।
         तीसरे दिन उसने और ज्यादा जोर लगाया लेकिन केवल 10 पेड़ ही काट सका।
         अब मोहन बड़ा दुखी हुआ लेकिन वह खुद नहीं समझ पा रहा था,क्योंकि       वह पहले से काम और मेहनत ज्यादा करता लेकिन पेड़ कम काट पाता।
        हारकर उसने व्यापारी से ही पूछा,"मैं सारा दिन मेहनत से काम करता हूँ लेकिन फिर भी क्यों पेड़ों की संख्या कम होती जा रही है?"
       व्यापारी ने पूछा,"तुमने अपनी *कुल्हाड़ी को धार* कब लगायी थी?"
       मोहन बोला,"धार! धार लगाने का समय ही नहीं बचता मैं तो सारे दिन पेड़ काटने में व्यस्त रहता हूँ शाम होते होते थककर पस्त हो जाता हूँ,खाना खाकर बिस्तर पर ऐसी नींद आती है जो सुबह ही खुलती है,और सुबह तो फिर वही *मैं,मेरी कुल्हाड़ी और पेड़।*"
    व्यापारी बोला,"बस इसीलिए तुम्हारी पेड़ों की संख्या दिन प्रतिदिन घटती जा रही है।
      यही बात हमारे जीवन पर भी लागू होती है न!

      हम रोज सुबह नौकरी पेशा करने जाते हैं,जम कर काम करते हैं लेकिन हम अपनी  *कुल्हाड़ी*  रूपी *Skills* को *Improve* नहीं करते हैं।
    हम जिंदगी जीने में इतने ज्यादा व्यस्त हो जाते हैं कि अपने शरीर को भी *कुल्हाड़ी* की तरह *धार* नहीं दे पाते और फलस्वरूप हम दुःखी रहते हैं।
       कठिन परिश्रम करना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन हमें ध्यान रखना होगा कि  *Smart Work is better than Hard Work*
     हम और आप अपने *Hard Work*को *Smart Work*

मंगलवार, 26 सितंबर 2017

दृढ़ इच्छाशक्ति

*दृढ़ इच्छाशक्ति*
             एक चिड़िया थी जिसका एक दाना पेड़ के कंदरे में कहीं फंस गया था...
           चिड़िया ने पेड़ से बहुत अनुरोध किया उस दाने को दे देने के लिए लेकिन पेड़ उस छोटी सी चिड़िया की बात भला कहां सुनने वाला था...
               हार कर चिड़िया *बढ़ई* के पास गई और उसने उससे अनुरोध किया कि तुम उस पेड़ को काट दो, क्योंकि वो उसका दाना नहीं दे रहा...
              भला! एक दाने के लिए बढ़ई पेड़ कहां काटने वाला था...
             फिर चिड़िया *राजा* के पास गई और उसने राजा से कहा कि तुम बढ़ई को सजा दो क्योंकि बढ़ई पेड़ नहीं काट रहा और पेड़ दाना नहीं दे रहा...
            राजा ने उस नन्हीं चिड़िया को डांट कर भगा दिया कि कहां एक दाने के लिए वो उस तक पहुंच गई है।
            चिड़िया हार नहीं मानने वाली थी...
           वह *महावत* के पास गई कि अगली बार राजा जब हाथी की पीठ पर बैठेगा तो तुम उसे गिरा देना, क्योंकि
राजा बढ़ई को सजा नहीं देता...
बढ़ई पेड़ नहीं काटता...
पेड़ उसका दाना नहीं देता...
        *महावत* ने भी चिड़िया को डपट कर भगा दिया...
        चिड़िया फिर *हाथी* के पास गई और उसने अपने अनुरोध को दुहराया कि अगली बार जब महावत तुम्हारी पीठ पर बैठे तो तुम उसे गिरा देना क्योंकि
वो राजा को गिराने को तैयार नहीं...
राजा बढ़ई को सजा देने को तैयार नहीं...
बढ़ई पेड़ काटने को तैयार नहीं...
पेड़ दाना देने को राजी नहीं।
हाथी बिगड़ गया...
उसने कहा, ऐ छोटी चिड़िया..
तू इतनी सी बात के लिए मुझे महावत और राजा को गिराने की बात सोच भी कैसे रही है?
चिड़िया आखिर में *चींटी* के पास गई और वही अनुरोध दोहराकर कहा कि तुम हाथी की सूंढ़ में घुस जाओ...
चींटी ने चिड़िया से कहा, "चल भाग यहां से...बड़ी आई हाथी की सूंढ़ में घुसने को बोलने वाली।
अब तक अनुरोध की मुद्रा में रही *चिड़िया ने रौद्र रूप धारण* कर लिया...उसने कहा कि "मैं चाहे पेड़, बढ़ई, राजा, महावत, और हाथी का कुछ न बिगाड़ पाऊं...पर तुझे तो अपनी चोंच में डाल कर खा ही सकती हूँ...
चींटी डर गई...भाग कर वह हाथी के पास गई...हाथी भागता हुआ महावत के पास पहुंचा...महावत राजा के पास कि हुजूर चिड़िया का काम कर दीजिए नहीं तो मैं आपको गिरा दूंगा....राजा ने फौरन बढ़ई को बुलाया...उससे कहा कि पेड़ काट दो नहीं तो सजा दूंगा...बढ़ई पेड़ के पास पहुंचा...बढ़ई को देखते ही पेड़ बिलबिला उठा कि मुझे मत काटो…मैं चिड़िया को दाना लौटा दूंगा...
*अंत में जीत चिड़िया की ही हुई।*
इसी तरह हमें भी अपनी ताकत को पहचानना होगा...
हमें पहचानना होगा कि भले ही हम छोटी सी चिड़िया की तरह होंगे, लेकिन ताकत की कड़ियां कहीं न कहीं हमसे होकर गुजरती होंगी...
हर सेर को सवा सेर मिल सकता है, बशर्ते हम अपनी लड़ाई से घबराएं नहीं...हम यदि किसी काम के पीछे पड़ जाएंगे तो वह *काम होकर रहेगा*

*यकीन करें..हर ताकत के आगे एक और ताकत होती है और अंत में सबसे ताकतवर हम होते हैं...*                                                    हिम्मत, लगन और पक्का इरादा ही हमारी ताकत की बुनियाद है..!!                                             
बड़े सपनो को पाने वाले हर व्यक्ति को *सफलता* और *असफलता* के कई पड़ावों से गुजरना पड़ता है जैसे कि   
  *पहले लोग मजाक*  
   *उड़ाएंगे*
  *फिर लोग साथ छोड़ेंगे*
  *फिर विरोध करेंगे*
और फिर वही लोग कहेंगे कि हम तो पहले से ही जानते थे कि *"एक न एक दिन तुम कुछ बड़ा करोगे!"*
रख हौंसला वो मंज़र भी आयेगा,
प्यासे के पास चलकर समंदर भी आयेगा..!
थक कर ना बैठ, ऐ मंजिल के मुसाफ़िर
मंजिल भी मिलेगी और जीने का मजा भी आयेगा!
         आप और हम *हिम्मत  लग्न और दृढ़ इच्छा शक्ति से मन्ज़िल को प्राप्त करें*

शनिवार, 16 सितंबर 2017

खुशी बांटना


एक आदमी ने दुकानदार से पूछा - केले और सेवफल क्या भाव लगाऐ हैं ? केले 20 रु.दर्जन और सेव 100 रु. किलो । उसी समय एक गरीब सी औरत दुकान में आयी और बोली मुझे एक किलो सेव और एक दर्जन केले चाहिये - क्या भाव है भैया ? दुकानदार: केले 5 रु दर्जन और सेब 25 रु किलो। औरत ने कहा जल्दी से दे दीजिये । दुकान में पहले से मौजूद ग्राहक ने खा जाने वाली निगाहों से घूरकर दुकानदार को देखा । इससे पहले कि वो कुछ कहता - दुकानदार ने ग्राहक को इशारा करते हुये थोड़ा सा इंतजार करने को कहा।

औरत खुशी खुशी खरीदारी करके दुकान से निकलते हुये बड़बड़ाई - हे भगवान  तेरा लाख- लाख शुक्र है , मेरे बच्चे फलों को खाकर बहुत खुश होंगे । औरत के जाने के बाद दुकानदार ने पहले से मौजूद ग्राहक की तरफ देखते हुये कहा : ईश्वर गवाह है भाई साहब ! मैंने आपको कोई धोखा देने की कोशिश नहीं की यह विधवा महिला है जो चार अनाथ बच्चों की मां है । किसी से भी किसी तरह की मदद लेने को तैयार नहीं है। मैंने कई बार कोशिश की है और हर बार नाकामी मिली है।तब मुझे यही तरीकीब सूझी है कि जब कभी ये आए तो  मै उसे कम से कम दाम लगाकर चीज़े दे दूँ। मैं यह चाहता हूँ कि उसका भरम बना रहे और उसे लगे कि वह किसी की मोहताज नहीं है। मैं इस तरह भगवान के बन्दों की पूजा कर लेता हूँ ।

थोड़ा रूक कर दुकानदार बोला : यह औरत हफ्ते में एक बार आती है। भगवान गवाह है जिस दिन यह आ जाती है उस दिन मेरी बिक्री बढ़ जाती है और उस दिन परमात्मा मुझपर मेहरबान होजाता है । ग्राहक की आंखों में आंसू आ गए, उसने आगे बढकर दुकानदार को गले लगा लिया और बिना किसी शिकायत के अपना सौदा खरीदकर खुशी खुशी चला गया ।

*कहानी का मर्म  :-*

*खुशी अगर बांटना चाहो तो तरीका भी मिल जाता है l*

शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

ताली एक हाथ से नहीं बजती

           ताली एक हाथ से नहीं बजती

एक बार गौतम बुद्ध किसी गांव में गए। वहां एक स्त्री ने उनसे पूछा कि आप तो किसी राजकुमार की तरह दिखते हैं, आपने युवावस्था में गेरुआ वस्त्र क्यों धारण किया हैं ?? बुद्ध ने उत्तर दिया कि मैंने तीन प्रश्नों के हल ढूंढने के लिए संन्यास लिया हैं l बुद्ध ने कहा- 'हमारा शरीर युवा और आकर्षक है, लेकिन यह वृद्ध होगा, फिर बीमार होगा और अंत में यह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा।

मुझे वृद्धावस्था, बीमारी और मृत्यु के कारण का ज्ञान प्राप्त करना है। 'बुद्ध की बात सुनकर स्त्री बहुत प्रभावित हो गई और उसने उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया। जैसे ही ये बात गांव के लोगों को मालूम हुई तो सभी ने बुद्ध से कहा कि वे उस स्त्री के यहां न जाए, क्योंकि वह स्त्री चरित्रहीन है। बुद्ध ने गांव के सरपंच से पूछा- 'क्या ये बात सही हैं ??' सरपंच ने भी गांव के लोगों की बात में सहमति जताई।

तब बुद्ध ने सरपंच का एक हाथ पकड़ कर कहा कि अब ताली बजाकर दिखाओ। इस पर सरपंच ने कहा कि यह असंभव है, एक हाथ से ताली नहीं बज सकती। बुद्ध ने कहा- 'ठीक इसी प्रकार कोई स्त्री अकेले ही चरित्रहीन नहीं हो सकती है। यदि इस गांव के पुरुष चरित्रहीन नहीं होते तो वह स्त्री भी चरित्रहीन नहीं होती।' गांव के सभी पुरुष बुद्ध की ये बात सुनकर शर्मिदा हो गए |

➡ *शिक्षा* ~
*ताली एक हाथ से नहीं बजती, अर्थात् कभी भी किसी भी व्यक्ति विशेष में निहित दुर्गुण किसी एक के कारण नहीं होते, उसके पीछे उसी के किसी सम्बन्धी व पडौसियों का भी हाथ होता हैं l अत: अकेले व्यक्ति पर कभी भी इस प्रकार से गलत आरोप लगाने से बचना चाहियें |

अनजाने कर्म का फल

अनजाने कर्म का फल

एक राजा ब्राह्मणों को लंगर में महल के आँगन में भोजन करा रहा था ।
राजा का रसोईया खुले आँगन में भोजन पका रहा था ।
उसी समय एक चील अपने पंजे में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के उपर से गुजरी ।
तब पँजों में दबे साँप ने अपनी आत्म-रक्षा में चील से बचने के लिए अपने फन से ज़हर निकाला ।
तब रसोईया जो लंगर ब्राह्मणो के लिए पका रहा था, उस लंगर में साँप के मुख से निकली जहर की कुछ बूँदें खाने में गिर गई ।
किसी को कुछ पता नहीं चला ।
फल-स्वरूप वह ब्राह्मण जो भोजन करने आये थे उन सब की जहरीला खाना खाते ही मौत हो गयी ।
अब जब राजा को सारे ब्राह्मणों की मृत्यु का पता चला तो ब्रह्म-हत्या होने से उसे बहुत दुख हुआ ।

ऐसे में अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना मुश्किल हो गया कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा .... ???
(1) राजा .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है ....
या
(2 ) रसोईया .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय वह जहरीला हो गया है ....
या
(3) वह चील .... जो जहरीला साँप लिए राजा के उपर से गुजरी ....
या
(4) वह साँप .... जिसने अपनी आत्म-रक्षा में ज़हर निकाला ....

बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका (Pending) रहा ....

फिर कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य मे आए और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा ।
उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया पर रास्ता बताने के साथ-साथ ब्राह्मणों से ये भी कह दिया कि "देखो भाई ....जरा ध्यान रखना .... वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में जहर देकर मार देता है ।"

बस जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे, उसी समय यमराज ने फैसला (decision) ले लिया कि उन मृत ब्राह्मणों की मृत्यु के पाप का फल इस महिला के खाते में जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा ।

यमराज के दूतों ने पूछा - प्रभु ऐसा क्यों ??
जब कि उन मृत ब्राह्मणों की हत्या में उस महिला की कोई भूमिका (role) भी नहीं थी ।
तब यमराज ने कहा - कि भाई देखो, जब कोई व्यक्ति पाप करता हैं तब उसे बड़ा आनन्द मिलता हैं । पर उन मृत ब्राह्मणों की हत्या से ना तो राजा को आनंद मिला .... ना ही उस रसोइया को आनंद मिला .... ना ही उस साँप को आनंद मिला .... और ना ही उस चील को आनंद मिला ।
पर उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के भाव से बखान कर उस महिला को जरूर आनन्द मिला । इसलिये राजा के उस अनजाने पाप-कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा ।

बस इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति जब किसी दूसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से (बुराई) करता हैं तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा उस बुराई करने वाले के खाते में भी डाल दिया जाता हैं ।

अक्सर हम जीवन में सोचते हैं कि हमने जीवन में ऐसा कोई पाप नहीं किया, फिर भी हमारे जीवन में इतना कष्ट क्यों आया .... ??

ये कष्ट और कहीं से नहीं, बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण उनके पाप-कर्मो से आया होता हैं जो बुराई करते ही हमारे खाते में ट्रांसफर हो जाता हैं ....

सौ का नोट

                    *सौ का नोट*

एक अँधा व्यक्ति रोज शाम को सड़क के किनारे खड़े होकर भीख माँगा करता था। जो थोड़े-बहुत पैसे मिल जाते उन्हीं से अपनी गुजर-बसर किया करता था।  एक शाम वहां से एक बहुत बड़े रईस गुजर रहे थे।  उन्होंने उस अंधे को देखा और उन्हें अंधे की फटेहाल होने पर बहुत दया आई l

और उन्होंने सौ रूपये का नोट उसके हाथ में रखते हुए आगे की राह ली। उस अंधे आदमी ने नोट को टटोलकर देखा और समझा कि किसी आदमी ने उसके साथ ठिठोली भरा मजाक किया है क्योंकि उसने सोचा कि अब तक उसे सिर्फ 5 रूपये तक के ही नोट मिला करते थे जो कि हाथ में पकड़ने पर सौ की नोट की अपेक्षा वह बहुत छोटा लगता था

और उसे लगा कि किसी ने सिर्फ कागज़ का टुकड़ा उसके हाथ में थमा दिया है और उसने नोट को खिन्न मन से कागज़ समझकर जमीन पर फेंक दिया। एक सज्जन पुरुष जो वहीँ खड़े ये दृश्य देख रहे थे, उन्होंने नोट को उठाया और अंधे व्यक्ति को देते हुए कहा- “यह सौ रूपये का नोट है! ” तब वह बहुत ही प्रसन्न हुआ और उसने अपनी आवश्यकताएं पूरी कीं।

*शिक्षा* ~
*ज्ञानचक्षुओं के अभाव में हम सब भी भगवान के अपार दान को देखकर यह समझ नहीं पाते और हमेशा यही कहते रहते हैं कि हमारे पास कुछ नहीं है, हमें कुछ नहीं मिला, हम साधनहीन हैं, पर यदि हमें जो नहीं मिला उन सबकी शिकायत करना छोड़कर, जो मिला है उसकी महत्ता को समझें तो हमें मालूम पड़ेगा कि जो हम सबको मिला है वो कम नहीं अद्भुत हैं |*

शनिवार, 2 सितंबर 2017

मन में बैर

*एक बार एक केकड़ा समुद्र किनारे अपनी मस्ती में चला जा रहा था और बीच बीच में रुक कर अपने पैरों के निशान देख कर खुश होता*
*आगे बढ़ता पैरों के निशान देखता और खुश होता,,,,,*
*इतने में एक लहर आई और उसके पैरों के सभी निशान मिट गये*
*इस पर केकड़े को बड़ा गुस्सा आया, उसने लहर से कहा*

*"ए लहर मैं तो तुझे अपना मित्र मानता था, पर ये तूने क्या किया ,मेरे बनाये सुंदर पैरों के निशानों को ही मिटा दिया*
*कैसी दोस्त हो तुम"*

*तब लहर बोली "वो देखो पीछे से मछुआरे पैरों के निशान देख कर केकड़ों को पकड़ने आ रहे हैं*
*हे मित्र, तुमको वो पकड़ न लें ,बस इसीलिए मैंने निशान मिटा दिए*

*ये सुनकर केकड़े की आँखों में आँसू आ गये*

*सच यही है, कई बार हम सामने वाले की बातों को समझ नहीं पाते और अपनी सोच अनुसार उसे गलत समझ लेते हैं*
*जबकि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं*
*अतः मन में बैर लाने से बेहतर है कि हम सोच समझ कर निष्कर्ष निकालें*