मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

एक और एक ग्यारह

        
एक और एक ग्यारह
एक जंगल में एक वृक्ष की शाखा पर चिड़ा-चिड़ी का जोड़ा रहता था। चिड़ी ने शाखा पर बने घोंसले में अंडे दिए थे। एक दिन एक मतवाला हाथी उसी वृक्ष की छाया में विश्राम करने लगा। जाने से पहले पत्तियां खाने के लिए उसने अपनी सूंड से वह शाखा तोड़ दी जिस पर घोंसला था। अंडे जमीन पर गिरकर टूट गए। चिड़िया टूटे अंडे देखकर बहुत दुःखी हुई।
उनका विलाप देखकर उनका मित्र कठफोड़वा वहां आकर उन्हें समझाने लगा। चिड़िया ने कहा, "यदि तू हमारा सच्चा मित्र है तो हाथी को सबक सिखाने में हमारी सहायता कर।"
कठफोड़वे ने कहा, "यह इतना आसान नहीं है। एक चालाक मक्खी मेरी मित्र है। चलो उसके पास चलें।"
 
उन्होंने मक्खी के पास जाकर अपनी पूरी कहानी सुनाई और उससे मदद मांगी। मक्खी ने उन्हें मदद का आश्वासन दिया और अपने मित्र मेढक के पास ले गई। उसे भी पूरी कहानी सुनाई गई।
सारी बात सुनकर मेढक ने युक्ति बताई। उसने कहा - जैसा बताता हूं वैसा करो। पहले मक्खी हाथी के कान में वीणा सदृश मीठे स्वर में आलाप करे। हाथी मस्त होकर अपनी आंख बंद कर लेगा। उसी समय कठफोड़वा चोंच मारकर आंखें फोड़ देगा। अंध हाथी पानी की खोज में भागेगा। मैं दलदल में बैठकर आवाज करूंगा। मेरी आवाज सुनकर हाथी पानी-पीने आएगा और दलदल में फस जाएगा। यह उसकी हार होगी।
सभी इस युक्ति पर सहमत हो गए। मक्खी ने आलाप किया, कठफोड़वे ने आंख फोड़ी, मेढ़क ने पानी की ओर बुलाया और हाथी दलदल में फसकर और फंसता चला गया। चिड़िया का बदला पूरा हो गया था। उन्होंने अपने मित्रों को धन्यवाद दिया किया और नया घोंसला बनाने में जुट गई।
*शिक्षा (Panchatantra Story's Moral): साथ में बहुत शक्ति होती है। बड़े से बड़ा काम भी आसान हो जाता है।*

थकान का राज

थकान का राज
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एक किसान के घर एक दिन
उसका कोई परिचित मिलने
आया।
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उस समय वह घर पर नहीं
था। उसकी पत्नी ने कहा-
वह खेत पर गए हैं।
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मैं बच्चे को बुलाने के लिए
भेजती हूं। तब तक आप
इंतजार करें।'
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कुछ ही देर में किसान खेत से
अपने घर आ पहुंचा। उसके
साथ साथ उसका पालतू कुत्ता
भी आया।
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कुत्ता जोरों से हांफ रहा था।
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उसकी यह हालत देख, मिलने
आए व्यक्ति ने किसान से पूछा
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क्या तुम्हारा खेत बहुत दूर है ?
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किसान ने कहा- नहीं, पास ही
है। लेकिन आप ऐसा क्यों पूछ
रहे हैं ?
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उस व्यक्ति ने कहा- मुझे यह
देखकर आश्चर्य हो रहा है कि
तुम और तुम्हारा कुत्ता दोनों
साथ-साथ आए,
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लेकिन तुम्हारे चेहरे पर रंच
मात्र थकान नहीं जबकि कुत्ता
बुरी तरह से हांफ रहा है।
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किसान ने कहा- मैं और कुत्ता
एक ही रास्ते से घर आए हैं।
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मेरा खेत भी कोई खास दूर
नहीं है। मैं थका नहीं हूं। मेरा
कुत्ता थक गया है।
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इसका कारण यह है कि मैं
सीधे रास्ते से चलकर घर
आया हूं, मगर कुत्ता अपनी
आदत से मजबूर है।
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वह आसपास दूसरे कुत्ते
देखकर उनको भगाने के
लिए उसके पीछे दौड़ता था
और भौंकता हुआ वापस
मेरे पास आ जाता था।
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फिर जैसे ही उसे और कोई
कुत्ता नजर आता, वह उसके
पीछे दौड़ने लगता।
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अपनी आदत के अनुसार
उसका यह क्रम रास्ते भर
जारी रहा। इसलिए वह थक
गया है।
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देखा जाए तो यही स्थिति
आज के इंसान की भी है।
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जीवन के लक्ष्य तक पहुंचना
यूं तो कठिन नहीं है,
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लेकिन लोभ, मोह अहंकार
और ईर्ष्या जीव को उसके
जीवन की सीधी और सरल
राह से भटका रही है।
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अपनी क्षमता के अनुसार
जिसके  पास जितना है, उससे
वह संतुष्ट नहीं।
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आज लखपति, कल करोड़
पति, फिर अरबपति बनने
की चाह में उलझकर इंसान
दौड़ रहा है।
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अनेक लोग ऐसे हैं जिनके
पास सब कुछ है। भरा- पूरा
परिवार, कोठी, बंगला, एक
से एक बढ़िया कारें, क्या
कुछ नहीं है।
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फिर भी उनमें बहुत से दुखी
रहते हैं।
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बड़ा आदमी बनना, धनवान
बनना बुरी बात नहीं, बनना
चाहिए। यह हसरत सबकी
रहती है।
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उसके लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा
होगी तो थकान नहीं होगी।
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लेकिन दूसरों के सामने खुद
को बड़ा दिखाने की चाह के
चलते आदमी राह से भटक
रहा है और यह भटकाव ही
इंसान को थका रहा है।

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2018

चार मित्र


किसी गाँव में चार मित्र रहते थे।
चारों में इतनी घनी मित्रता थी कि हर समय साथ रहते उठते बैठते, योजनाएँ बनाते।
एक ब्राह्मण
एक ठाकुर
एक बनिया और
एक नाई था
पर कभी भी चारों में जाति का भाव नहीं था गज़ब की एकता थी।

इसी एकता के चलते वे गाँव के किसानों के खेत से गन्ने
चने
आदि चीजे उखाड़ कर खाते थे।

एक दिन इन चारों ने किसी किसान के खेत से चने के झाड़ उखाड़े और खेत में ही बैठकर हरी हरी फलियों का स्वाद लेने लगे।

खेत का मालिक किसान आया
चारों की दावत देखी उसे बहुत क्रोध आया
उसका मन किया कि लट्ठ उठाकर चारों को पीटे
पर चार के आगे एक?
वो स्वयं पिट जाता
सो उसने एक युक्ति सोची।

चारों के पास गया,
ब्राह्मण के पाँव छुए,
ठाकुर साहब की जयकार की
बनिया महाजन से राम जुहार और फिर
नाई से बोला--
देख भाई
ब्राह्मण देवता धरती के देव हैं,
ठाकुर साहब तो सबके मालिक हैं अन्नदाता हैं,
महाजन सबको उधारी दिया करते हैं
ये तीनों तो श्रेष्ठ हैं
तो भाई इन तीनों ने चने उखाड़े सो उखाड़े पर तू? तू तो ठहरा नाई तूने चने क्यों उखाड़े?
इतना कहकर उसने नाई के दो तीन लट्ठ रसीद किये।
बाकी तीनों ने कोई विरोध नहीं किया क्योंकि उनकी तो प्रशंसा हो चुकी थी।

अब किसान बनिए के पास आया और बोला-
तू साहूकार होगा तो अपने घर का
पण्डित जी और ठाकुर साहब तो नहीं है ना! तूने चने क्यों उखाड़े?
बनिये के भी दो तीन तगड़े तगड़े लट्ठ जमाए।

पण्डित और ठाकुर ने कुछ नहीं कहा।

अब किसान ने ठाकुर से कहा--
ठाकुर साहब
माना आप अन्नदाता हो पर किसी का अन्न छीनना तो ग़लत बात है
अरे पण्डित महाराज की बात दीगर है
उनके हिस्से जो भी चला जाये दान पुन्य हो जाता है
पर आपने तो बटमारी की! ठाकुर साहब को भी लट्ठ का प्रसाद दिया,

पण्डित जी बोले नहीं,

नाई और बनिया अभी तक अपनी चोट सहला रहे थे।
जब ये तीनों पिट चुके
तब किसान पण्डितजी के पास गया और बोला--
माना आप भूदेव हैं
पर इन तीनों के गुरु घण्टाल आप ही हैं
आपको छोड़ दूँ
ये तो अन्याय होगा
तो दो लट्ठ आपके भी पड़ने चाहिए।
मार खा चुके बाकी तीनों बोले
हाँ हाँ, पण्डित जी को भी दण्ड मिलना चाहिए।
अब क्या पण्डित जी भी पीटे गए।

किसान ने इस तरह चारों को अलग अलग करके पीटा
किसी ने किसी के पक्ष में कुछ नहीं कहा,
उसके बाद से चारों कभी भी एक साथ नहीं देखे गये।

मित्रों पिछली दो तीन सदियों से हिंदुओं के साथ यही होता आया है,
कहानी सच्ची लगी हो तो समझने का प्रयास करो और
अगर कहानी केवल कहानी लगी हो
तो आने वाले समय के लट्ठ तैयार हैं।