शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

निवाला

निवाला 

 सच्ची घटना पर आधारित..

बड़ी बेचैनी से रात कटी। 
बमुश्किल सुबह एक रोटी खाकर, घर से अपने शोरूम के लिए निकला। 
आज किसी के पेट पर पहली बार लात मारने जा रहा हूँ।
 ये बात अंदर ही अंदर कचोट रही है।
ज़िंदगी में यही फ़लसफ़ा रहा मेरा कि, अपने आस पास किसी को, रोटी के लिए तरसना ना पड़े,
 पर इस विकट काल मे अपने पेट पर ही आन पड़ी है। 
दो साल पहले ही अपनी सारी जमा पूंजी लगाकर कपड़े का शोरूम खोला था,मगर दुकान के सामान की बिक्री अब आधी हो गई है।अपने कपड़े के शोरूम में दो लड़के और दो लड़कियों को रखा है मैंने ग्राहकों को कपड़े दिखाने के लिए। लेडीज डिपार्टमेंट की दोनों लड़कियों को निकाल नहीं सकता। एक तो कपड़ो की बिक्री उन्हीं की ज्यादा है, दूसरे वो दोनों बहुत गरीब हैं। दो लड़कों में से एक पुराना है, और वो घर में इकलौता कमाने वाला है।
 जो नया वाला लड़का है दीपक, मैंने विचार उसी पर किया है। शायद उसका एक भाई भी है, जो अच्छी जगह नौकरी करता है और वो खुद तेजतर्रार और हँसमुख भी है। उसे कहीं और भी काम मिल सकता है। 
इन सात महीनों में मैं बिलकुल टूट चुका हूँ।
 स्थिति को देखते हुए एक वर्कर कम करना मेरी मजबूरी है। 
यही सब सोचता दुकान पर पहुंचा। चारो आ चुके थे, मैंने चारो को बुलाया और बड़ी उदास हो बोल पड़ा..
"देखो, दुकान की अभी की स्थिति तुम सब को पता है, मैं तुमसब को काम पर नहीं रख सकता"
उन चारों के माथे पर चिंता की लकीरें, मेरी बातों के साथ गहरी होती चली गईं। 
मैंने बोतल  के पानी से अपने गले को तर किया
"किसी एक का..हिसाब आज.. कर देता हूँ!
दीपक तुम्हें कहीं और काम ढूंढना होगा"
"जी अंकल"  उसे पहली बार इतना उदास देखा। 
बाकियों के चेहरे पर भी कोई खास प्रसन्नता नहीं थी।
 एक लड़की जो शायद उसी के मोहल्ले से आती है, कुछ कहते कहते रुक गई। 
"क्या बात है, बेटी? तुम कुछ कह रही थी?
"अंकल जी, इसके भाई का भी काम कुछ एक महीने पहले छूट गया है, इसकी मम्मी बीमार रहती है"
नज़र दीपक के चेहरे पर गई। आँखों में ज़िम्मेदारी के आँसू थे। जो वो अपने हँसमुख चेहरे से छुपा रहा था। मैं कुछ बोलता कि तभी एक और दूसरी लड़की बोल पड़ी
"अंकल! बुरा ना माने तो एक बात बोलूं?"
"हाँ..हाँ बोलो ना!" 
"किसी को निकालने से अच्छा है, हमारे पैसे कम कर दो..बारह हजार की जगह नौ हजार कर दो आप" 
मैंने बाकियों की तरफ देखा
"हाँ साहब! हम इतने से ही काम चला लेंगे"
बच्चों ने मेरी परेशानी को, आपस में बांटने का सोच, मेरे मन के बोझ को कम जरूर कर दिया था।
"पर तुमलोगों को ये कम तो नहीं पड़ेगा न?"
"नहीं साहब! कोई साथी भूखा रहे..इससे अच्छा है, हमसब अपना निवाला थोड़ा कम कर दें"
मेरी आँखों में आंसू छोड़,ये बच्चे अपने काम पर लग गए, मेरी नज़रों में, मुझसे कहीं ज्यादा बड़े बनकर..!                     

गुरुवार, 17 सितंबर 2020

लालच



किसी गाँव में एक धनी सेठ रहता था उसके बंगले के पास एक जूते सिलने वाले गरीब मोची की छोटी सी दुकान थी। उस मोची की एक खास आदत थी कि जो जब भी जूते सिलता तो भगवान के भजन गुनगुनाता रहता था लेकिन सेठ ने कभी उसके भजनों की तरफ ध्यान नहीं दिया ।

एक दिन सेठ व्यापार के सिलसिले में विदेश गया और घर लौटते वक्त उसकी तबियत बहुत ख़राब हो गयी । लेकिन पैसे की कोई कमी तो थी नहीं सो देश विदेशों से डॉक्टर, वैद्य, हकीमों को बुलाया गया लेकिन कोई भी सेठ की बीमारी का इलाज नहीं कर सका । अब सेठ की तबियत दिन प्रतिदिन ख़राब होती जा रही थी। वह चल फिर भी नहीं पाता था|

एक दिन वह घर में अपने बिस्तर पे लेटा था अचानक उसके कान में मोची के भजन गाने की आवाज सुनाई दी, आज मोची के भजन कुछ अच्छे लग लग रहे थे सेठ को, कुछ ही देर में सेठ इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि उसे ऐसा लगा जैसे वो साक्षात परमात्मा से मिलन कर रहा हो। मोची के भजन सेठ को उसकी बीमारी से दूर लेते जा रहे थे कुछ देर के लिए सेठ भूल गया कि वह बीमार है उसे अपार आनंद की प्राप्ति हुई ।

कुछ दिन तक यही सिलसिला चलता रहा, अब धीरे धीरे सेठ के स्वास्थ्य में सुधार आने लगा। एक दिन उसने मोची को बुलाया और कहा – मेरी बीमारी का इलाज बड़े बड़े डॉक्टर नहीं कर पाये लेकिन तुम्हारे भजन ने मेरा स्वास्थ्य सुधार दिया ये लो 1000 रुपये इनाम, मोची खुश होते हुए पैसे लेकर चला गया ।

लेकिन उस रात मोची को बिल्कुल नींद नहीं आई वो सारी रात यही सोचता रहा कि इतने सारे पैसों को कहाँ छुपा कर रखूं और इनसे क्या क्या खरीदना है? इसी सोच की वजह से वो इतना परेशान हुआ कि अगले दिन काम पे भी नहीं जा पाया। अब भजन गाना तो जैसे वो भूल ही गया था, मन में खुशी थी पैसे की।

अब तो उसने काम पर जाना ही बंद कर दिया और धीरे धीरे उसकी दुकानदारी भी चौपट होने लगी । इधर सेठ की बीमारी फिर से बढ़ती जा रही थी ।

एक दिन मोची सेठ के बंगले में आया और बोला सेठ जी आप अपने ये पैसे वापस रख लीजिये, इस धन की वजह से मेरा धंधा चौपट हो गया, मैं भजन गाना ही भूल गया। इस धन ने तो मेरा परमात्मा से नाता ही तुड़वा दिया। मोची पैसे वापस करके फिर से अपने काम में लग गया ।

मित्रों ये एक कहानी मात्र नहीं है ये एक सीख है कि किस तरह हम पैसों का लालच हमको अपनों से दूर ले जाता है हम भूल जाते हैं कि कोई ऐसी शक्ति भी है जिसने हमें बनाया है।


शनिवार, 25 अप्रैल 2020

भगवान पर भरोसा

  भगवान पर भरोसा

सर्दी के दिन थे और शाम हो गयी थी। आसमान में बादल छाये हुए थे। एक नीम के पेड़ पर बहुत से कौवे  बैठे हुए थे। वे सब बार- बार कॉव–कॉव कर रहे थे एवं एक दूसरे से झगड़ भी रहे थे। इसी समय एक छोटी मैना (Starling) आई व उसी नीम के पेड़ पर जा बैठी।  मैना को देखते ही कई कौवे उस पर टूट पड़े। बेचारी मैना ने कहा- ‘बादल बहुत है, कृपया कर मुझे आज रात यही रहने दो।’ कौवे ने कहा- ‘नहीं, यह हमारा पेड़ है।  तुम यहाँ से चली जाओ।’ 

मैना Said  – भाई ‘पेड़ तो सब भगवान् के हैं। मैं बहुत छोटी हूँ और तुम्हारी बहन हूँ इसलिए मुझ पर दया करो और मुझे यहीं रहने दो।’ कौवे ने कहा – ‘हमें तुम्हारी जैसी बहन नहीं चाहिए। तुम बहुत भगवान् का नाम लेती हो तो फिर भगवान के भरोसे तुम यहाँ से चली क्यों नहीं जाती ?’ कौवे तो झगडालू होते ही हैं। जब वे शाम को घर आते हैं, लड़े बिना उनसे रहा नहीं जाता है। कौवों को झगड़ते देख मैना वहाँ से चली गई और थोड़ी दूर जाकर आम के पेड़ पर जा बैठी।  

रात को आँधी आई बादल गरजे बड़े-बड़े ओले भी पड़े। कौएं  कॉव – कॉव चिल्लाए व ओले की मार से सब नीचे गिर गये। मैना जिस आम के पेड़ पर थीं उसकी डाल भीतर से एकदम सड़ गई थी और गीली हो गई थी। डाल टूटने पर उसकी जड़ के पास पेड़ में एक खण्डहर हो गया। छोटी मैना उसमें घुस गई व रात भर सुरक्षित रही। उसे एक ओला भी नहीं लगा। सुबह हुआ धूप निकली मैना अपने पंख फैलाकर उड़ गई तथा भगवान को प्रणाम किया। 

पृथ्वी पर पड़े कौवे को देखकर वह बोली – कि तुम्हें मेरी सहायता करनी चाहिए थी। कौओं ने पूछा – तुम कहा थीं रात भर। तुम्हें ओले की मार से किसने बचाया ? मैना ने बताया – ‘मैं आम के पेड़ पर बैठकर भगवान से प्रार्थना करती रही और भगवान् ने मुझे बचा लिया।  आखिर भगवान् के अलावा मुझे बचाता ही कौन ?’ लेकिन उन्होंने सिर्फ मुझे ही नहीं बचाया। जो लोग भगवान् के ऊपर विश्वास करते हैं, उसकी भगवान् हमेशा रक्षा करते हैं।
शिक्षा – हमें हर मुसीबत में फँसे व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए।



मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

सबसे ऊँची प्रार्थना


सबसे ऊँची प्रार्थना

एक व्यक्ति जो मृत्यु के करीब था, मृत्यु से पहले अपने बेटे को चाँदी के सिक्कों से भरा थैला देता है और बताता है की "जब भी इस थैले से चाँदी के सिक्के खत्म हो जाएँ तो मैं तुम्हें एक प्रार्थना बताता हूँ, उसे दोहराने से चाँदी के सिक्के फिर से भरने लग जाएँगे । उसने बेटे के कान में चार शब्दों की प्रार्थना कही और वह मर गया । अब बेटा चाँदी के सिक्कों से भरा थैला पाकर आनंदित हो उठा और उसे खर्च करने में लग गया । वह थैला इतना बड़ा था की उसे खर्च करने में कई साल बीत गए, इस बीच वह प्रार्थना भूल गया । 

जब थैला खत्म होने को आया तब उसे याद आया कि "अरे! वह चार शब्दों की प्रार्थना क्या थी ।" उसने बहुत याद किया, उसे याद ही नहीं आया ।अब वह लोगों से पूँछने लगा । पहले पड़ोसी से पूछता है की "ऐसी कोई प्रार्थना तुम जानते हो क्या, जिसमें चार शब्द हैं । पड़ोसी ने कहा, "हाँ, एक चार शब्दों की प्रार्थना मुझे मालूम है, "ईश्वर मेरी मदद करो ।" उसने सुना और उसे लगा की ये वे शब्द नहीं थे, कुछ अलग थे । कुछ सुना होता है तो हमें जाना-पहचाना सा लगता है । फिर भी उसने वह शब्द बहुत बार दोहराए, लेकिन चाँदी के सिक्के नहीं बढ़े तो वह बहुत दुःखी हुआ । फिर एक ब्राह्मण से मिला, उन्होंने बताया की "ईश्वर तुम महान हो" ये चार शब्दों की प्रार्थना हो सकती है, मगर इसके दोहराने से भी थैला नहीं भरा । वह एक धनिक से मिला, उसने कहा "ईश्वर मुझे धन दो" यह प्रार्थना भी कारगर साबित नहीं हुई । वह बहुत उदास हुआ उसने सभी से मिलकर देखा मगर उसे वह प्रार्थना नहीं मिली, जो पिताजी ने बताई थी।

वह उदास होकर घर में बैठा हुआ था तब एक भिखारी साधु उसके दरवाजे पर आया । उसने कहा, "सुबह से कुछ नहीं खाया, खाने के लिए कुछ हो तो दो ।" उस लड़के ने बचा हुआ खाना भिखारी साधु  को दे दिया । उस भिखारी साधु ने खाना खाकर बर्तन वापस लौटाया और ईश्वर से प्रार्थना की, *"हे ईश्वर ! तुम्हारा धन्यवाद ।"* अचानक वह चौंक पड़ा और चिल्लाया की "अरे! यही तो वह चार शब्द थे ।" उसने वे शब्द दोहराने शुरू किए-"हे ईश्वर तुम्हारा धन्यवाद"........और उसके सिक्के बढ़ते गए... बढ़ते गए... इस तरह उसका पूरा थैला भर गया । *इससे समझें की जब उसने किसी की मदद की तब उसे वह मंत्र फिर से मिल गया । "हे ईश्वर ! तुम्हारा धन्यवाद ।"*

यही उच्च प्रार्थना है क्योंकि जिस चीज के प्रति हम धन्यवाद देते हैं, वह चीज बढ़ती है । अगर पैसे के लिए धन्यवाद देते हैं तो पैसा बढ़ता है, प्रेम के लिए धन्यवाद देते हैं तो प्रेम बढ़ता है । ईश्वर या गुरूजी के प्रति धन्यवाद के भाव निकलते हैं की ऐसा ज्ञान सुनने तथा पढ़ने का मौका हमें प्राप्त हुआ है । बिना किसी प्रयास से यह ज्ञान हमारे जीवन में उतर रहा है वर्ना ऐसे अनेक लोग हैं, जो झूठी मान्यताओं में जीते हैं और उन्हीं मान्यताओं में ही मरते हैं । मरते वक्त भी उन्हें सत्य का पता नहीं चलता । उसी अंधेरे में जीते हैं, मरते हैं ।

ऊपर दी गई कहानी से समझें की *"हे ईश्वर ! तुम्हारा धन्यवाद"* ये चार शब्द, शब्द नहीं प्रार्थना की शक्ति हैं । अगर यह चार शब्द दोहराना किसी के लिए कठिन है तो इसे तीन शब्दों में कह सकते हैं, *"ईश्वर तुम्हार धन्यवाद ।"* ये तीन शब्द भी ज्यादा लग रहे हों तो दो शब्द कहें, *"ईश्वर धन्यवाद !"* और दो शब्द भी ज्यादा लग रहे हों तो सिर्फ एक ही शब्द कह सकते हैं, "धन्यवाद ।"

आइए, हम सब मिलकर एक साथ धन्यवाद दें उस ईश्वर को, जिसने हमें मनुष्य जन्म दिया और उसमें दी दो बातें - पहली *"साँस का चलना"* दूसरी *"सत्य की प्यास ।"* यही प्यास हमें खोजी से भक्त बनाएगी । भक्ति और प्रार्थना से होगा आनंद, परम आनंद,.
सदैव प्रसन्न रहिये!!
जो प्राप्त है-पर्याप्त है!!