बुधवार, 31 जनवरी 2018

रोटी....

बहुत सुंदर कथा ..

*एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी..।*

*वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था..।*

*एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"*

*दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा..*

*वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता - "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।"*

*वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी की-"कितना अजीब व्यक्ति है,एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।"*

*एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली-"मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी।"*

*और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली- "हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दिया..। एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी..।*

*हर रोज़ कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी ले के: "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया..।*

*इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..।*

*हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था..। महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी..।*

*ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है.. वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है.. अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है..।*

*वह पतला और दुबला हो गया था.. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था..।*

*जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ.. आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया.. मैं मर गया होता..।*

*लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था.. उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया.. भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे.. मैंने उससे खाने को कुछ माँगा.. उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- "मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है.. सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो.।"*

*जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लीया..।*

*उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..?*

*और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था-*
*जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा,और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा।।*

              *" निष्कर्ष "*
           ==========
*हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..।*
            ========

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मैं आपसे दावे के साथ कह सकता हूँ कि ये बहुत से लोगों के जीवन को छुएगी व बदलेगी.
🙏🏻🙏🏻

सोमवार, 22 जनवरी 2018

जिंदगी कैसे जीनी चाहिए ?


आज मैंने अपने आप से पूछा कि जिंदगी कैसे जीनी चाहिए ?
मुझे मेरा पूरा कमरा ही जवाब देने लगा
*छत ने कहा* – ऊंचा सोंचो
*पंखे ने कहा* – दिमाग ठंडा रक्खो
*घड़ी ने कहा* – समय की कदर करो
*कैलेंडर ने कहा* – वक्त के साथ चलो
*पर्स ने कहा* – भविष्य के लिए बचाओ
*शीशे ने कहा* – अपने आप को देखो
*दीवार ने कहा* – दूसरों का बोझ बांटो
*खिड़की ने कहा* – अपने देखने का दायरा बढ़ाओ
*फर्श ने कहा* – जमीन से जुड़ कर रहो
.
फिर मैंने बिस्तर की तरफ देखा और *बिस्तर ने कहा* –
,
चादर ओढ़ कर सो जा   पागल ठंड बहुत है।
बाकी सब मोह माया है।

बहाने (Excuses) बनाम (Vs) सफलता  (Success)

बहाने (Excuses) बनाम (Vs) सफलता  (Success)

बहाना 1 :- मेरे पास *धन नहीं है।*
जवाब :- इन्फोसिस के पूर्व चेयरमैन *नारायणमूर्ति* के पास भी *धन नहीं था* उन्हें अपनी *पत्नी के गहने बेचने पड़े थे...*

बहाना 2 :- मुझे *बचपन से परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ी...*
जवाब :- *लता मंगेशकर* को भी *बचपन से परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ी थी...*

बहाना 3 :- मैं *अत्यंत गरीब घर से हूँ...*
जवाब :- पूर्व राष्ट्रपति *अब्दुल कलाम भी गरीब घर से थे...*

बहाना 4 :- बचपन में ही मेरे *पिता का देहांत हो गया था...*
जवाब :- प्रख्यात संगीतकार *एआर रहमान के पिता का भी देहांत बचपन में हो गया था...*

बहाना 5 :- मुझे *उचित शिक्षा लेने का अवसर नहीं मिला...*
जवाब :- *उचित शिक्षा का अवसर फोर्ड मोटर्स के मालिक हेनरी फोर्ड को भी नहीं मिला...*

बहाना 6 :- मेरी *उम्र बहुत ज्यादा है...*
जवाब :- *विश्व प्रसिद्ध केंटुकी फ्राइड चिकेन के मालिक ने 60 साल की उम्र मे पहला रेस्तरां खोला था...*

बहाना 7 :- मेरी *लंबाई बहुत कम है...*
जवाब :- *सचिन तेंदुलकर की भी लंबाई कम है...*

बहाना 8 :- *बचपन से ही अस्वस्थ था...*
जवाब :- *आस्कर विजेता अभिनेत्री मरली मेटलिन भी बचपन से बहरी व अस्वस्थ थीं...*

बहाना 9 :- मैं *इतनी बार हार चुका हूं कि अब हिम्मत नहीं...*
जवाब :- *अब्राहम लिंकन 15 बार चुनाव हारने के बाद राष्ट्रपति बने...*

बहाना 10 :- *एक दुर्घटना में अपाहिज होने के बाद मेरी हिम्मत चली गयी...*
जवाब :- *प्रख्यात नृत्यांगना सुधा चन्द्रन के पैर नकली हैं...*

बहाना 11 :- मुझे *ढेरों बीमारियां हैं...*
जवाब :- *वर्जिन एयरलाइंस के प्रमुख भी अनेक बीमारियां थीं। राष्ट्रपति रुजवेल्ट के दोनों पैर काम नहीं करते थे...*

बहाना 12 :- मैंने *साइकिल पर घूमकर आधी ज़िंदगी गुजारी है...*
जवाब :- *निरमा के करसन भाई पटेल ने भी साइकिल पर निरमा बेचकर आधी ज़िंदगी गुजारी...*

बहाना 13 :- मुझे *बचपन से मंद बुद्धि कहा जाता है...*
जवाब :- *थामस अल्वा एडीसन को भी बचपन से मंदबुद्धि कहा जाता था...*

बहाना 14 :- मैं *एक छोटी-सी नौकरी करता हूँ, इससे क्या होगा...*
जवाब :- *धीरु भाई अंबानी भी छोटी नौकरी करते थे...*

बहाना 15 :- मेरी *कम्पनी एक बार दिवालिया हो चुकी है, अब मुझ पर कौन भरोसा करेगा...*
जवाब :- *दुनिया की सबसे बड़ी शीतल पेय निर्माता पेप्सी कोला भी दो बार दिवालिया हो चुकी है...*

बहाना 16 :- मेरा *दो बार नर्वस ब्रेकडाउन हो चुका है, अब क्या कर पाऊंगा...*
जवाब :- *डिज्नीलैंड बनाने के पहले वाल्ट डिज्नी का तीन बार नर्वस ब्रेकडाउन हुआ था...*

बहाना 17 :- मेरे पास *बहुमूल्य आइडिया है पर लोग अस्वीकार कर देते हैं...*
जवाब :- *जेराक्स फोटो कॉपी मशीन के आइडिया को भी ढेरो कंपनियों ने अस्वीकार किया था,* लेकिन आज परिणाम सबके सामने है...

आज आप जहाँ भी हैं या कल जहाँ भी होंगे इसके लिए आप किसी और को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते, इसलिए आज ही चुनाव कीजिए,
सफलता और सपने चाहिए या खोखले बहाने..??

*आप अपनी जेब में या तो बहाने रख सकते हैं या फिर रुपये*

शनिवार, 13 जनवरी 2018

जश्न-ऐ-मौत- मृत्यु भोज,

(मृत्यु भोज पर एक लघु लेख  ,ऐसी सामाजिक कुरीति पर शानदार कटाक्ष है)

_जश्न-ऐ-मौत।मृत्यु भोज, एक सामाजिक कलंक !!!_
         
         _इंसान स्वार्थ व खाने के लालच में कितना गिरता है उसका नमूना होती है सामाजिक कुरीतियां। ऐसी ही एक पीड़ा देने वाली कुरीति वर्षों पहले कुछ स्वार्थी लोगों ने भोले-भाले इंसानों में फैलाई गई थी वो है -मृत्युभोज!!! मानव विकास के रास्ते में यह गंदगी कैसे पनप गयी, समझ से परे है। जानवर भी अपने किसी साथी के मरने पर मिलकर दुःख प्रकट करते हैं, इंसानी बेईमान दिमाग की करतूतें देखो कि यहाँ किसी व्यक्ति के मरने पर उसके साथी, सगे-सम्बन्धी भोज करते हैं। मिठाईयाँ खाते हैं। किसी घर में खुशी का मौका हो, तो समझ आता है कि मिठाई बनाकर, खिलाकर खुशी का इजहार करें, खुशी जाहिर करें। लेकिन किसी व्यक्ति के मरने पर मिठाईयाँ परोसी जायें, खाई जायें, इस शर्मनाक परम्परा को मानवता की किस श्रेणी में रखें? इंसान की गिरावट को मापने का पैमाना कहाँ खोजे? इस भोज के भी अलग-अलग तरीके  हैं। कहीं पर यह एक ही दिन में किया जाता है।  कहीं तीसरे दिन से शुरू होकर बारहवें-तेहरवें दिन तक चलता है। कई लोग श्मशान घाट से ही सीधे मृत्युभोज का सामान लाने निकल पड़ते हैं। मैंने तो ऐसे लोगों को सलाह भी दी कि क्यों न वे श्मशान घाट पर ही टेंट लगाकर जीम लें ताकि अन्य जानवर आपको गिद्ध से अलग समझने की भूल न कर बैठे !

रिश्तेदारों को तो छोड़ो, पूरा गांव का गाँव व आसपास का पूरा क्षेत्र टूट पड़ता है खाने को! तब यह हैसियत दिखाने का अवसर बन जाता है। आस-पास के कई गाँवों से ट्रेक्टर-ट्रोलियों में गिद्धों की भांति जनता इस घृणित भोज पर टूट पड़ती है।

             जब मैंने समाज के बुजुर्गों से बात की व इस कुरीति के चलन के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि उनके जमाने में ऐसा नहीं था। रिश्तेदार ही घर पर मिलने आते थे। उन्हें पड़ोसी भोजन के लिए ले जाया करते थे। सादा भोजन करवा देते थे। मृत व्यक्ति के घर बारह दिन तक कोई भोजन नहीं बनता था। 13 वें दिन कुछ सादे क्रियाकर्म होते थे। परिजन बिछुड़ने के गम को भूलने के लिए मानसिक सहारा दिया जाता था। लेकिन हम कहाँ पहुंच गए! परिजन के बिछुड़ने के बाद उनके परिवार वालों को जिंदगीभर के लिए एक और जख्म दे देते है।जीते जी चाहे इलाज के लिए 2,00 रुपये उधार न दिए हो लेकिन मृत्युभोज के लिए 6-7 लाख का कर्जा ओढ़ा देते है। ऐसा नहीं करो तो समाज में इज्जत नहीं बचेगी! क्या गजब पैमाने बनाये हैं हमने इज्जत के? इंसानियत को शर्मसार करके, परिवार को बर्बाद करके इज्जत पाने का पैमाना! कहीं-कहीं पर तो इस अवसर पर अफीम की मनुहार भी करनी पड़ती है। इसका खर्च मृत्युभोज के बराबर ही पड़ता है। जिनके कंधों पर इस कुरीति को रोकने का जिम्मा है वो नेता-अफसर खुद अफीम का जश्न मनाते नजर आते है। कपड़ों का लेन-देन भी ऐसे अवसरों पर जमकर होता है। कपड़े, केवल दिखाने के, पहनने लायक नहीं। बरबादी का ऐसा नंगा नाच, जिस समाज में चल रहा हो, वहाँ पर पूँजी कहाँ बचेगी? बच्चे कैसे पढ़ेंगे?बीमारों का इलाज कैसे होगा?

         घिन्न आती है जब यह देखते हैं कि जवान मौतों पर भी समाज के लोग जानवर बनकर मिठाईयाँ उड़ा रहे होते हैं। गिद्ध भी गिद्ध को नहीं खाता! पंजे वाले जानवर पंजे वाले जानवर को खाने से बचते है। लेकिन इंसानी चोला पहनकर घूम रहे ये दोपाया जानवरों को शर्म भी नहीं आती जब जवान बाप या माँ के मरने पर उनके बच्चे अनाथ होकर, सिर मुंडाये आस-पास घूम रहे होते हैं। और समाज के प्रतिष्ठित लोग उस परिवार की मदद करने के स्थान पर भोज कर रहे होते हैं।

जब भी बात करते है कि इस घिनौने कृत्य को बंद करो तो समाज के ऐसे-ऐसे कुतर्क शास्त्री खड़े हो जाते है कि मन करता है कि इसी के सिर से सिर टकराकर फोड़ दूं! इनके तर्क देखिए.....

A) माँ-बाप जीवन भर तुम्हारे लिए कमाकर गये हैं, तो उनके लिए हम कुछ नहीं करोगे ??

इमोशनल अत्याचार शुरू कर देते है! चाहे अपना बाप घर के कोने में भूखा पड़ा हो लेकिन यहां ज्ञान बांटने जरूर आ जाता है! हकीकत तो यह है कि आजकल अधिकांश माँ-बाप कर्ज ही छोड़ कर जा रहे हैं। उनकी जीवन भर की कमाई भी तो कुरीतियों और दिखावे की भेंट चढ़ गयी। फिर अगर कुछ पैसा उन्होंने हमारे लिए रखा भी है, तो यह उनका फर्ज था। हम यही कर सकते हैं कि जीते जी उनकी सेवा कर लें। लेकिन जीते जी तो हम उनसे ठीक से बात नहीं करते। वे खोंसते रहते हैं, हम उठकर दवाई नहीं दे पाते हैं। अचरज होता है कि वही लोग बड़ा मृत्युभोज या दिखावा करते हैं, जिनके माँ-बाप जीवन भर तिरस्कृत रहे। खैर! चलिए, अगर माँ-बाप ने हमारे लिए कमाया है, तो उनकी याद में हम कई जनहित के कार्य कर सकते हैं, पुण्य कर सकते हैं। जरूरतमंदो की मदद कर दें, अस्पताल-स्कूल के कमरे बना दें, पेड़ लगा दें।परन्तु हट्टे-कट्टे लोगों को भोजन करवाने से कैसा पुण्य होगा? कुछ बुजुर्ग तो दो साल पहले इस चिंता के कारण मर जाते है कि मेरी मौत पर मेरा समाज ही मेरे बच्चों को नोंच डालेगा! मरने वाले को भी शांति से नहीं मरने देते हो! कैसा फर्ज व कैसा धर्म है तुम्हारा ??

B) आये मेहमानों को भूखा ही भेज दें ??

पहली बात को शोक प्रकट करने आने वाले रिश्तेदार और मित्र, मेहमान नहीं होते हैं। उनको भी सोचना चाहिये कि शोक संतृप्त परिवार को और दुखी क्यों करें ?? अब तो साधन भी बहुत हैं। सुबह से शाम तक वापिस अपने घर पहुँचा जा सकता है। इस घिसे-पिटे तर्क को किनारे रख दें। मेहमाननवाजी खुशी के मौकों पर की जाती है, मौत पर नहीं!! बेहतर यही होगा कि हम जब शोक प्रकट करने जायें, तो खुद ही भोजन या अन्य मनुहार को नकार दें। समस्या ही खत्म हो जायेगी।

C) तुमने भी तो खाया था तो खिलाना पड़ेगा !!

यह मुर्ग़ी पहले आई या अंडा पहले आया वाला नाटक बंद करो। यह समस्या कभी नहीं सुलझेगी! अब आप बुला लो, फिर वे बुलायेंगे। फिर कुछ और लोग जोड़ दो। इनसानियत पहले से ही इस कृत्य पर शर्मिंदा है, अब और मत करो। किसी व्यक्ति के मरने पर उसके घर पर जाकर भोजन करना ही इंसानी बेईमानी की पराकाष्ठा है और अब इतनी पढ़ाई-लिखाई के बाद तो यह चीज प्रत्येक समझदार व्यक्ति को मान लेनी चाहिए। गाँव और क़स्बों में गिद्धों की तरह मृत व्यक्तियों के घरों में मिठाईयों पर टूट पड़ते लोगों की तस्वीरें अब दिखाई नहीं देनी चाहिए।.......✍

भारतीयों की सूझ-बूझ

  भारतीयों की सूझ-बूझ

प्रसंग उस वक्त का है जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंग्लैंड में आईसीएस का इंटरव्यू देने गए। वहां उनका इंटरव्यू लेने वाले सभी अधिकारी अंग्रेज थे। दरअसल, वे भारतीयों को किसी उच्च पद पर नहीं देखना चाहते थे। इसलिए इंटरव्यू में अजीबो-गरीब और कठिन से कठिन प्रश्न पूछकर भारतीयों को नीचा दिखाने का प्रयास करते रहते थे और उन्हें रिजेक्ट करने का मौका तलाशते रहते थे।

जब नेताजी की बारी आई तो वे इंटरव्यू के लिए अंग्रेज अधिकारियों के समक्ष बैठ गए। एक अधिकारी ने उन्हें देखकर व्यंग्य से मुस्कराते हुए पूछा,'बताओ, उस छत के पंखे में कुल कितनी पंखुड़ियां हैं।'इस अटपटे प्रश्न को सुनकर नेताजी की नजर पंखे पर चली गई। पंखा काफी तेज गति से चल रहा था। उन्हें पंखे की ओर देखता पाकर अंग्रेज मुस्कराते हुए एक-दूसरे की ओर देखने लगे।

तभी दूसरा अंग्रेज बोला,'यदि तुम पंखुड़ियों की सही संख्या नहीं बता पाए तो इस इंटरव्यू में फेल हो जाओगे।' एक और सदस्य बोला,'भारतीयों में बुद्धि होती ही कहां हैं ?? उनकी बातें सुनकर सुभाष निर्भीकता से बोले, 'अगर मैंने इसका सही जवाब दे दिया तो आप भी मुझसे दूसरा प्रश्न नहीं पूछ पाएंगे। और साथ ही मेरे सामने यह भी स्वीकार करेंगे कि भारतीय न सिर्फ बुद्धिमान होते हैं l

बल्कि वे निर्भीकता और धैर्य से हर प्रश्न का हल खोज लेते हैं।' अंग्रेजों ने उनकी बात मान ली और उन्हें उत्तर देने के लिए कहा। इसके बाद सुभाष तेजी से अपने स्थान से उठे। उन्होंने चलता पंखा बंद कर दिया और पंखा रुकते ही पंखुड़ियों की संख्या गिन ली।

इसके बाद पंखुड़ियों की सही संख्या उन्होंने अधिकारियों को बता दी। सुभाष की विलक्ष्ण बुद्धि, सामयिक सूझबूझ और साहस को देखकर इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों के सिर शर्म से झुक गए। वे फिर उनसे आगे कोई प्रश्न नहीं पूछ पाए। उन्हें इस बात को भी स्वीकार करना पड़ा कि भारतीय साहस, बुद्धिमानी और आत्मविश्वास से हर मुसीबत का हल खोज लेते हैं। 

➡ *शिक्षा* ~
*भारतीयों की सूझ-बूझ" कहानी के माध्यम से हमें यह शिक्षा मिलती हैं कि हमें भी नेताजी बोस की तरह विपत्तियों को देखकर घबराना नहीं चाहियें l बल्कि साहस व धैर्य के साथ उनका सामना करना चाहियें l हमें हर विपत्ति का साहस, बुद्धिमानी व आत्मविश्वास से हल खोजना चाहियें, विपक्षी व मुसीबतों से घबराना नहीं चाहियें |

खाली पेट

खाली पेट  (लघुकथा)

लगभग दस साल का बालक राधा का गेट बजा रहा है।
राधा ने बाहर आकर पूंछा
"क्या है ? "
"आंटी जी क्या मैं आपका गार्डन साफ कर दूं ?"
"नहीं, हमें नहीं करवाना।"
हाथ जोड़ते हुए दयनीय स्वर में "प्लीज आंटी जी करा लीजिये न, अच्छे से साफ करूंगा।"
द्रवित होते हुए "अच्छा ठीक है, कितने पैसा लेगा ?"
"पैसा नहीं आंटी जी, खाना दे देना।"
" ओह !! अच्छे से काम करना।"
"लगता है, बेचारा भूखा है।पहले खाना दे देती हूँ। राधा बुदबुदायी।"
"ऐ
लड़के ! पहले खाना खा ले, फिर काम करना।
"नहीं आंटी जी, पहले काम कर लूँ फिर आप खाना दे देना।"
"ठीक है ! कहकर राधा अपने काम में लग गयी।"
एक घंटे बाद "आंटी जी देख लीजिए, सफाई अच्छे से हुई कि नहीं।"
"अरे वाह! तूने तो बहुत बढ़िया सफाई की है, गमले भी करीने से जमा दिए।यहाॅं बैठ, मैं खाना लाती हूँ।"
जैसे ही राधा ने उसे खाना दिया वह जेब से पन्नी निकाल कर उसमें खाना रखने लगा।"
"भूखे काम किया है, अब खाना तो यहीं बैठकर खा ले।जरूरत होगी तो और दे दूंगी।"
"नहीं आंटी, मेरी बीमार माँ घर पर है।सरकारी अस्पताल से दवा तो मिल गयी है,पर डाॅ साहब ने कहा है दवा खाली पेट नहीं खाना है।"
राधा रो पड़ी..
और अपने हाथों से मासुम को उसकी दुसरी माँ बनकर खाना खिलाया..
फिर... उसकी माँ के लिए रोटियां बनाई .. और साथ उसके घर जाकर उसकी माँ को रोटियां दे आयी ..
और कह आयी .. बहन आप बहुत अमीर हो ..
जो दौलत आपने अपने बेटे को दी है वो हम अपने बच्चो को भी नहीं दे पाते ..
खुद्धारी की ...

इस दुनिया में कोई गरीब नही

इस दुनिया में कोई गरीब नहीं

*एक समय की बात है* भगवान गौतम बुद्ध एक गाँव में धर्म सभा को संबोधित कर रहे थे।

लोग अपनी विभिन्न परेशानियों को लेकर उनके पास जाते और उसका हल लेकरखुशी-खुशी वहां से लौटते।उसी गांव के सड़क के किनारे

एक गरीब व्यक्ति बैठा रहता तथा महात्मा बुद्ध के उपदेश शिविर में आने जाने वाले लोगों को बड़े ध्यान से देखता।

उसे बड़ा आश्चर्य होता कि लोग अंदर तो बड़े दुःखी चेहरें लेकर जाते है लेकिन जब वापस आते है

तो बड़े खुश और प्रसन्न दिखाई देते है।उस गरीब को लगा कि क्यों न वो भी अपनी समस्या को भगवान के समक्ष रखे?

मन में यह विचार लिए वह भी महात्मा बुद्ध के पास पहुंचा। लोग पंक्तिबध खड़े होकर अपनी समस्या को बता रहे थे।

जब उसकी बारी आई तो उसने सबसे पहले महात्ममा बुद्धको प्रणाम किया और फिर कहा - 'भगवान इस गाँव में लगभग सभी लोग खुश और समृध है। फिर मैं ही क्यो गरीबहूं?

'इस पर उन्होने मुस्कुराते हुए कहा - 'तुम गरीब और निर्धन इसलिए हो क्योंकि तुमने आज तक किसी को कुछ दिया ही नहीं।

इस पर वह गरीब व्यक्ति बड़ा आर्श्चयचकित हुआ और बोला - 'भगवान, मेरे पास भला दूसरों को देने के लिए क्या होगा। मेरा तो स्वयं का गुजारा बहुत मुश्किल से हो पाता है।

लोगों से भीख मांग कर अपना पेट भरताहूं।'भगवान बुद्ध कुछ देर शांत रहे, फिर बोले- तुम बड़े अज्ञानी हो। औरो के साथ बाटने के लिए ईश्वर ने तुम्हे बहुत कुछ दिया है। मुस्कुराहट दी है जिससे तुम लोगों में आशा का संचार कर सकते हो। मुख दिया है
ताकि लोगों से दो मीठे शब्द बोल सकते है, उनकी प्रशंसा कर सकते हो। दो हाथ दिये है लोगों की मदद कर सकते हो।

ईश्वर ने जिसको ये तीन चीजें दी है वह कभी गरीब और निर्धन हो ही नहीं सकता। निर्धनता का विचार आदमी के मन में होता है,
यह तो एक भ्रम है इसेनिकाल दो।कभी भी मन में निर्धनता का भाव उत्पन्न न होने दो गरीबी अपने आप दूर हो जाएगी।

*कहानी का सार*

*भगवान बुद्ध का संदेशसुनकर उस आदमी का चेहरा चमक उठा और उसने इस उपदेश को अपने जीवन में उतारा जिससे वह फिर कभी दुखी नहीं हुआ।*

बिल गेट्स का प्रसंग

किसी समय दुनिया के सबसे धनवान व्यक्ति बिल गेट्स से किसी न पूछा - 'क्या इस धरती पर आपसे भी अमीर कोई है ?

बिल गेट्स ने जवाब दिया - हां, एक व्यक्ति इस दुनिया में मुझसे भी अमीर है !

कौन !

बिल गेट्स ने बताया - एक समय में जब मेरी प्रसिद्धि और  अमीरी के दिन नहीं थे, न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर था ! वहां सुबह सुबह अखबार देख कर, मैंने एक अखबार खरीदना चाहा,पर मेरे पास छुट्टे पैसे नहीं थे !

सो, मैंने अखबार लेने का विचार त्याग कर उसे वापस रख दिया अखबार बेचने वाले काले लड़के ने मुझे देखा, तो मैंने छुट्टे पैसे/सिक्के न होने की बात कही !

लड़के ने अखबार देते हुए कहा - यह मैं आपको मुफ्त में देता हूँ !

बात आई-गई हो गई कोई तीन माह बाद संयोगवश उसी एयरपोर्ट पर मैं फिर उतरा और अखबार के लिए फिर मेरे पास सिक्के नहीं थे !

उस लड़के ने मुझे फिर से अखबार दिया, तो मैंने मना कर दिया - मैं ये नहीं ले सकता !

उस लड़के ने कहा -आप इसे ले सकते हैं,मैं इसे अपने प्रॉफिट के हिस्से से दे रहा हूँ.. मुझे नुकसान नहीं होगा !

मैंने अखबार ले लिया 19 साल बाद अपने प्रसिद्ध हो जाने के बाद एक दिन मुझे उस लड़के की याद आयी और मैन उसे ढूंढना शुरू किया !

कोई डेढ़ महीने खोजने के बाद आखिरकार वह मिल गया !

मैंने पूछा - क्या तुम मुझे पहचानते हो ?

लड़का - हां, आप मि. बिल गेट्स हैं !

गेट्स - तुम्हे याद है, कभी तुमने मुझे फ्री में अखबार दिए थे ?

लड़का - जी हां, बिल्कुल ऐसा दो बार हुआ था !

गेट्स - मैं तुम्हारे उस किये हुए की कीमत अदा करना चाहता हूँ  तुम अपनी जिंदगी में जो कुछ चाहते हो, बताओ, मैं तुम्हारी हर जरूरत पूरी करूंगा !

लड़का - सर, लेकिन क्या आप को नहीं लगता कि, ऐसा कर के आप मेरे काम की कीमत अदा नहीं कर पाएंगे !

गेट्स - क्यूं !

लड़का - मैंने जब आपकी मदद की थी, मैं एक गरीब लड़का था, जो अखबार बेचता था आप मेरी मदद तब कर रहे हैं, जब आप इस दुनिया के सबसे अमीर और सामर्थ्य वाले व्यक्ति हैं फिर, आप मेरी मदद की बराबरी कैसे करेंगे !

बिल गेट्स की नजर में, वह व्यक्ति दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति से भी अमीर था !

क्योंकि"किसी की मदद करने के लिए, उसने अमीर होने का इंतजार नहीं किया था"