मंगलवार, 17 मार्च 2015

लगन का फल

एक मित्र द्वारा भेजा एक संस्मरण

जिन दिनों मेरी शादी हुई थी मेरी सास दिल्ली के एक
प्राइमरी सरकारी स्कूल में टीचर थीं। मैं अक्सर उन्हें गर्मी, सर्दी, बरसात
में भागते हुए स्कूल जाते देखता। एक तो सरकारी स्कूल, ऊपर से
प्राइमरी स्कूल। मैं बहुत बार सोचता कि एक प्राइमरी स्कूल में अगर टीचर
समय पर न भी पहुंचे तो कौन सा तूफान आ जाने वाला है। एकाध दफा तो मैं
उनके घर गया होता और वो मेरे जागने से पहले ही स्कूल जा चुकी होती थीं। डाइनिंग टेबल पर मेरे लिए आलू परांठे, लस्सी, चटनी सब ताजा बना कर
वो सुबह-सुबह स्कूल चली जातीं और दोपहर में घर चली आतीं। एक तो ससुराल, दूसरे पंजाबी ससुराल। मेरे पल्ले आज तक ये बात
नहीं पड़ी कि पंजाबी लोग तले हुए परांठे के ऊपर मक्खन क्यों लगाते हैं।
मक्खन के साथ-साथ फुल साइज गिलास में मलाई मार के लस्सी और फिर
दोपहर में पनीर की सब्जी पर इतना ज़ोर क्यों देते हैं। मैं तो शुरू-शुरू में इस
बात पर हंस-हंस कर पागल हो जाता था कि दोपहर के खाने में मां (माह)
की दाल, राजमा, पालक-पनीर, मटर-पनीर और शाही पनीर के बिना पंजाबियों की मेहमानवजी अधूरी क्यों रह जाती है। खैर
इसका नतीजा ये हुआ कि शादी में मैं कुल जो 62 किलो का था, शादी के
साल भर बाद 74 किलो का हो गया। लगने वाले
को तो दिल्ली का पानी भी लग जाता है, मैं तो सीधे-सीधे ससुराल
का घी पी रहा था। खैर, आज की कहानी ससुराल सेवा की अमर गाथा सुनाने के लिए नहीं लिख
रहा। आज कहानी का सारांश इस तरह है कि मेरी सास बिना नागा, बिना देर किए
रोज स्कूल पहुंच जाती थीं। उस सरकारी स्कूल में जिसे सरकार
भी सीरियसली नहीं लेती थी। जिस स्कूल को स्कूल का चपरासी तक
सीरियसली न लेता हो उस स्कूल में मेरी सास ने कभी बिन बताए
छुट्टी नहीं लीं, कभी देर से नहीं पहुंचीं। एक दिन मैंने अपनी सास को बताया कि मेरे स्कूल में ओम प्रकाश मास्टर
कई बार नहीं आते थे तो कोई ऐक्शन नहीं लिया जाता था, फिर आप
प्राइमरी स्कूल के बच्चों को पढ़ाई को इतनी गंभीरता से क्यों लेती हैं?
एकाध दफा देर हो जाए तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा? वैसे
भी सरकारी स्कूल में कौन सी पढ़ाई होती है जो इतनी माथा-
पच्ची की जाए? मेरी सास ने मेरे सवाल का जवाब देने से पहले मुझसे सवाल किया, "उस
ओमप्रकाश मास्टर के बच्चे क्या करते हैं?" मैंने दिमाग पर बहुत ज़ोर डाला। फिर बताया कि उनके बच्चे क्या कर रहे
हैं, ये तो नहीं पता लेकिन उनकी बड़ी बेटी दसवीं तक ही पढ़ाई कर पाई थी,
फिर उसकी पढ़ाई छूट गई थी। बेटा भी ठीक से नहीं पढ़ पाया तो छोटा-
मोटा काम पकड़ लिया था। मेरी सास ने फिर कहा, "उन सभी मास्टरों को याद करो जिन्होंने अपने
काम को ईमानदारी से अंजाम नहीं दिया, मेरा मतलब, पढ़ाने में
कोताही बरती, बच्चों को पढ़ाने की जगह स्वेटर बुनने या घर के काम
कराने में समय खर्च किया, या ट्यूशन आदि पर अधिक ध्यान दिया।"
मैंने फिर दिमाग पर जोर डाला। पंडित मास्टर जी की याद आई। संस्कृत
पढ़ाते थे। पढ़ाते क्या थे बातें बनाते थे। बच्चों से कद्दू, पपीता, केला बतौर उपहार लेकर कॉपी में नंबर दिया करते थे। उस पंडित मास्टर
की बेटी पता नहीं क्यों छठी के बाद ही स्कूल छोड़ गई थी। बहुत बाद में
पता चला कि उसकी शादी हो गई थी, पर पति ने उसे भी छोड़ दिया था। फिर एक-एक कर मैंने बहुत से मास्टरों को याद किया। उन
मास्टरों को भी याद किया जो सचमुच बहुत ईमानदारी से पढ़ाते थे। जिन्होंने
कभी बेवजह नागा नहीं किया। याद आया गणित वाले पारस नाथ सिंह मास्टर
का बेटा तब इंजीनियर बन कर अमेरिका गया था, जब
अमेरिका का दरवाजा सबके लिए नहीं खुला था। हिंदी वाले उपेंद्र राय
मास्टर की बेटी तो मेरी आंखों के आगे डॉक्टर बनी थी। मैं अपनी यादों में डूबा था, मेरी सास ने मुझे टोका, "कहां खो गए,
बेटा जी?" "मैं अपने मास्टरों को याद कर रहा हूं।" "क्या याद किया?" यही कि ओमप्रकाश मास्टर के बच्चे ठीक से नहीं पढ़ पाए। संस्कृत के
मास्टर की बिटिया का भी यही हाल था। पारस नाथ सिंह और उपेंद्र मास्टर
की कहानी भी मैने सुनाई। मेरी सास मुस्कुराईं। उन्होंने कहा कि मैंने इसीलिए आपको याद करने
को कहा था। जो मास्टर बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करता है, दरअसल
किस्मत उसके साथ खिलवाड़ कर देती है। जिन बच्चों को स्कूल पढ़ने के
लिए भेजा जाता है, या जो बच्चे स्कूल सिर्फ पढ़ने के लिए आते हैं, उन्हें
ईमानदारी से पढ़ाना चाहिए। जो लोग ये सोचते हैं कि कुछ भी करें, काम
तो चल जाएगा, उनका अपना काम अटक जाता है। अक्सर ज्यादातर शिक्षक के बच्चे ही नहीं पढ़ पाते। मैंने एक भी दिन बच्चों के साथ बेईमानी नहीं की। देख लो,
दोनों बेटियां पढ़ाई में कैसी निकलीं।
मेरी दोनों बेटियां स्कूल-कॉलेज में टॉप करती रहीं। मतलब ये कि जैसे करम करोगे, वैसा फल मिलेगा। जो अपने काम
को ईमानदारी से अंजाम नहीं देते, उनके साथ ज़िंदगी कब बेईमानी कर
बैठती है, पता भी नहीं चलता। पता नहीं कहां-कहां से ठंड में, गर्मी में,
बरसात में बच्चे स्कूल पढ़ने के लिए आते हैं, ज्ञान की प्राप्ति के लिए
आते हैं, मां-बाप की मुराद पूरी करने आते हैं। उनके अनजान भविष्य से
कभी खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। तो बेटा जी, आपके सवाल का जवाब इतना ही है कि मैं हर रोज समय पर
स्कूल इसलिए जाती हूं ताकि किसी बच्चे की उम्मीदें अधूरी न रह जाएं,
ताकि मेरे बच्चों के भविष्य के साथ कोई मास्टर या मास्टरनी खिलवाड़ न
करे। जो हमें अपने लिए नहीं पसंद, उसे हम दूसरों के साथ क्यों करें? काम वही सफल होता है जो पवित्र भाव से संपूर्ण मनोयोग से किया जाता है।
मैं स्कूल समय पर जाती हूं ताकि जो पैसा घर आए वो तन और मन
दोनों को लगे। आपके पिताजी ने भी तो यही सिखाया था न
आपको कि पैसा कितना कमाया उससे ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि पैसा कैसे
कमाया। तो मैं भी, जितनी भी सैलरी मिलती है, उसे मेहनत और
ईमानदारी का बना कर घर लाना चाहती हूं। छोटे बच्चों को धोखा देकर लाया गया पैसा कितना सफल होता? वो कह रही थीं, वैसे तो सभी कामों में आदमी को ईमादार होना चाहिए,
लेकिन पढ़ाने के काम में तो पक्के तौर पर। आखिर ये देश के भविष्य
का सवाल है। जो शिक्षक अपने काम में बेईमानी करते हैं, उन्हें भगवान
भी माफ नहीं करता। मैं चुप था। सचमुच अगर सारे टीचर ऐसा सोचते तो हम कुछ और होते। कुछ और। नए साल पर मैं हर बार कुछ न कुछ प्रतिज्ञा करता हूं, इस बार
की प्रतिज्ञा है, जो भी करुंगा लगन से करुंगा। संपूर्ण मन से
करुंगा ताकि भूल कर भी कोई भूल हो न।

सोमवार, 16 मार्च 2015

सादा जीवन

एक पुराना ग्रुप कॉलेज छोड़ने
के बहुत दिनों बाद मिला।

वे सभी अच्छे केरियर के साथ
खूब पैसे ✈कमा रहे थे।

वे अपने सबसे फेवरेट प्रोफेसर
के घर जाकर मिले।

प्रोफेसर साहब उनके काम
के बारे में पूछने लगे।
धीरे-धीरे बात लाइफ में
बढ़ती स्ट्रेस और काम
के प्रेशर पर आ गयी।

इस मुद्दे पर सभी एक मत थे कि,
भले वे अब आर्थिक रूप से
बहुत मजबूत हों पर
उनकी लाइफ में अब
वो मजा नहीं रह गया
जो पहले हुआ करता था।

प्रोफेसर साहब बड़े ध्यान से
उनकी बातें सुन रहे थे,
वे अचानक ही उठे और
थोड़ी देर बाद किचन से
लौटे और बोले,

”डीयर स्टूडेंट्स,
मैं आपके लिए गरमा-गरम ☕
कॉफ़ी ☕बना कर आया हूँ ,
लेकिन प्लीज आप सब
किचन में जाकर अपने-अपने
लिए कप्स लेते आइये।"

लड़के तेजी से अंदर गए,
वहाँ कई तरह के कप रखे हुए थे,
सभी अपने लिए अच्छा से अच्छा
कप उठाने में लग गये,

किसी ने क्रिस्टल का
शानदार कप उठाया
तो किसी ने पोर्सिलेन का
कप सेलेक्ट किया,
तो किसी ने शीशे का कप उठाया।

सभी के हाथों में कॉफी ⚓आ गयी
तो प्रोफ़ेसर साहब बोले, 
"अगर आपने ध्यान दिया हो तो,
जो कप दिखने में अच्छे और महंगे थे
आपने उन्हें ही चुना और
साधारण दिखने वाले कप्स
की तरफ ध्यान नहीं दिया।

जहाँ एक तरफ अपने लिए
सबसे अच्छे की चाह रखना
एक नॉर्मल बात है
वहीँ दूसरी तरफ ये
हमारी लाइफ में प्रोब्लम्स
और स्ट्रेस लेकर आता है।

फ्रेंड्स, ये तो पक्का है कि
कप, कॉफी  ☕की क्वालिटी
में कोई बदलाव नहीं लाता।
ये तो बस एक जरिया है
जिसके माध्यम से आप कॉफी  ☕पीते है।
असल में जो आपको चाहिए था
वो बस कॉफ़ी थी, कप नहीं,

पर फिर भी आप सब
सबसे अच्छे कप के पीछे ही गए
और अपना लेने के बाद
दूसरों के कप ☕निहारने लगे।"

अब इस बात को ध्यान से सुनिये ...
"ये लाइफ कॉफ़ी ☕की तरह है ;
हमारी नौकरी, पैसा,
पोजीशन, कप की तरह हैं।
ये बस लाइफ जीने के साधन हैं,
खुद लाइफ नहीं ! और
हमारे पास कौन सा कप है
ये न हमारी लाइफ को
डिफाइन करता है
और ना ही उसे चेंज करता है।
कॉफी की चिंता करिये कप की नहीं।"

"दुनिया के सबसे खुशहाल लोग
वो नहीं होते जिनके पास
सबकुछ सबसे बढ़िया होता है,
पर वे होते हैं, जिनके पास जो होता है
बस उसका सबसे अच्छे से यूज़ करते हैं.
एन्जॉय करते हैं और भरपूर जीवन जीते हैं!

सादगी से जियो।
सबसे प्रेम करो।
सबकी केअर करो।
जीवन का आनन्द लो,
यही असली जीना है।

शनिवार, 14 मार्च 2015

गलतफहमी

पानी ने दूध से मित्रता की और उसमे समा गया,
जब दूध ने पानी का समर्पण देखा तो उसने कहा,
मित्र तुमने अपने स्वरुप का त्याग कर मेरे स्वरुप
को धारण किया है अब मैं
भी मित्रता निभाऊंगा और तुम्हे अपने मोल
बिकवाऊंगा,
दूध बिकने के बाद जब उसे उबाला जाता है तब
पानी कहता है अब मेरी बारी है मै
मित्रता निभाऊंगा और तुमसे पहले मै
चला जाऊँगा और दूध से पहले
पानी उड़ता जाता है जब दूध मित्र को अलग
होते देखता है तो उफन कर गिरता है और आग
को बुझाने लगता है,
जब पानी की बूंदे उस पर छींट कर उसे अपने मित्र से
मिलाया जाता है तब वह फिर शांत
हो जाता है पर इस अगाध प्रेम में
थोड़ी सी खटास (निम्बू की दो चार बूँद ) डाल
दी जाए तो दूध और पानी अलग हो जाते हैं
थोड़ी सी मन कI खटास अटूट प्रेम
को भी मिटा सकती है...
दोस्तों कभी भी कुछ हो जाये रिश्तो में मन
मुटाव ना आने दे छोटी सी गलतफहमी भी आपके
रिश्तो में दरार ला सकती हैं।

Fresh and lively बने

ध्यान से पढ़ें.....

जापान में, हमेशा से ही मछलियाँ, खाने का एक खास हिस्सा रही हैं ।

और ये जितनी ताज़ी होतीं हैं लोग उसे उतना ही पसंद करते हैं ।

लेकिन जापान के तटों के आस-पास इतनी मछलियाँ नहीं होतीं की उनसे लोगों की डिमांड पूरी की जा सके ।

नतीजतन मछुआरों को दूर समुंद्र में जाकर मछलियाँ  पकड़नी पड़ती हैं।

जब इस तरह से मछलियाँ पकड़ने की शुरुआत हुई तो मछुआरों के सामने एक गंभीर समस्या सामने आई ।

वे जितनी दूर मछली पक़डने जाते उन्हें लौटने मे उतना ही अधिक समय लगता

और मछलियाँ बाजार तक पहुँचते-पहुँचते  बासी हो जातीँ , ओर फिर कोई उन्हें खरीदना  नहीं चाहता ।

इस समस्या से निपटने के लिए  मछुआरों ने अपनी बोट्स पर फ्रीज़र लगवा  लिये । वे मछलियाँ पकड़ते और उन्हें फ्रीजर में डाल देते ।

इस तरह से वे और भी देर तक मछलियाँ पकड़ सकते थे और उसे बाजार तक पहुंचा सकते थे ।

पर इसमें भी एक समस्या आ गयी ।

जापानी फ्रोजेन फिश ओर फ्रेश फिश में आसनी से अंतर कर लेते और फ्रोजेन मछलियों को खरीदने से कतराते ,

उन्हें तो किसी भी कीमत पर ताज़ी मछलियाँ  ही चाहिए होतीं ।

एक बार फिर मछुआरों ने इस समस्या से निपटने की सोची और इस बार एक शानदार तरीका निकाला ,

उन्होंने अपनी बड़े – बड़े जहाजों पर
फिश टैंक्स बनवा लिए ओर अब वे
मछलियाँ पकड़ते और उन्हें पानी से
भरे टैंकों मे डाल देते ।

टैंक में डालने के बाद कुछ देर तो
मछलियाँ इधर उधर भागती पर जगह
कम होने के कारण वे जल्द ही एक
जगह स्थिर हो जातीं ,और जब ये मछलियाँ बाजार पहुँचती तो भले वे ही सांस ले रही होतीं लकिन उनमेँ वो बात नहीं होती जो आज़ाद घूम रही ताज़ी मछलियों मे होती ! ओर जापानी चख कर इन मछलियों में भी अंतर कर लेते ।

तो इतना कुछ करने के बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई थी।

अब मछुवारे क्या करते ?

वे कौन सा उपाय लगाते कि ताज़ी मछलियाँ लोगोँ तक पहुँच पाती ?

नहीं,

उन्होंने कुछ नया नहीं किया , वें अभी भी मछलियाँ टैंक्स में ही रखते , पर इस बार  वो हर एक टैंक मे एक छोटी सी शार्क मछली भी ङाल देते।

शार्क कुछ मछलियों को जरूर खा जाती  पर ज्यादातर मछलियाँ बिलकुल ताज़ी  पहुंचती।

ऐसा क्यों होता ?

क्योंकि शार्क बाकी मछलियों की लिए एक चैलेंज की तरह थी।

उसकी मौज़ूदगी बाक़ी मछलियों को हमेशा चौकन्ना रखती ओर अपनी जान बचाने के लिए वे हमेशा अलर्ट रहती।

इसीलिए कई दिनों तक टैंक में रह्ने के
बावज़ूद उनमे स्फूर्ति ओर ताजापन बना रहता। 

Friends, आज बहुत से लोगों की जिंदगी टैंक मे पड़ी उन मछलियों
की तरह हो गयी है जिन्हे जगाने की लिए कोई shark मौज़ूद नहीं है।

और अगर unfortunately आपके साथ भी ऐसा ही है तो आपको भी आपने life में नये challenges
accept करने होंगे।

आप जिस रूटीन के आदि हो चुकें हैँ
उससे कुछ अलग़ करना होगा, आपको
अपना दायरा बढ़ाना होगा

और एक बार फिर जिंदगी में रोमांच और नयापन लाना होगा।

नहीं तो , बासी मछलियों की तरह आपका भी मोल कम हो जायेगा

और लोग आप से मिलने-जुलने की बजाय बचते नजर आएंगे।

और दूसरी तरफ अगर आपकी लाइफ में चैलेंजेज हैँ , बाधाएं हैँ

तो उन्हें कोसते मत रहिये

कहीं ना कहीं ये आपको fresh
and lively बनाये रखती हैँ

इन्हेँ  accept करिये, इन्हें overcome करिये और अपना  तेज बनाये रखिये।

शुक्रवार, 13 मार्च 2015

मच्छर का इलाज


             एक इंजीनियर था
  उसके घर पर बहुत मच्छर हो गये,
    तो उनसे परेशान होकर उसने
     मच्छरदानी लगानी शुरू की,

                अब हुआ यूँ कि,
भाई साहब की मच्छरदानी में एक छेद
  हो गया अब उसमें से मच्छर अन्दर   
               आते और काटते,
      सो तकलीफ जैसी की तैसी रही

      सिलाई करना आता नहीं था,
           अब करे तो करे क्या ?
  आखिर उसके इंजीनियर दिमाग ने
         एक उपाय ढूंढही निकाला,
          उसने उस छेद के सामने
        एक और छेद कर दिया और
एक छोटी पाइप लेकर आरपार रख दी,

      अब मच्छर एक छेद में से जाते
                दुसरे में से बाहर..
       ये कहानी तो यहाँ पूरी हो गयी !!

        लेकिन काश हम भी अपने
दिमाग में एक ऐसी खिड़की रख सकें,
एक ऐसी आरपार वाली पाइप रख सके ..
                 हमें चुभने वाले,
                    काटने वाले ..
       परेशान करने वाले विचारों को
            ऐसे ही बायपास कर दे ..
         तो जीवन कितना सुन्दर हो ।
    

गुरुवार, 12 मार्च 2015

असली दौलत

कल रात मैंने एक "सपना" देखा.!!
सपने में मैं और मेरी Family
शिमला घूमने गए.!!
हम सब शिमला की रंगीन
वादियों में कुदरती नजारा
देख रहे थे.!!
जैसे ही हमारी Car
Sunset Point की ओर
निकली..... अचानक गाडी के Breakफेल हो गए और हम सब
करीबन 1500 फिट गहरी
खाई में जा गिरे.!!

मेरी तो on the spot Death हो गई.!!

जीवन में कुछ अच्छे कर्म किये होंगे इसलिये यमराज मुझे स्वर्ग में ले गये.!!

देवराज इंद्र ने मुस्कुराकर
मेरा स्वागत किया.!! मेरे हाथ में Bag देखकर पूछने लगे

इसमें क्या है.?

मैंने कहा इसमें मेरे जीवन भर
की कमाई है, पांच करोड़ रूपये हैं ।  इन्द्र ने SVG 6767934 नम्बर के Locker की ओर इशारा करते हुए कहा-
आपकी अमानत इसमें रख
दीजिये.!!

मैंने Bag रख दी.!!

मुझे एक Room भी दिया.!!
मैं Fresh होकर Market में
निकला.!! देवलोक के Shopping मॉल
मे अदभूत वस्तुएं देखकर मेरा मन ललचा गया.!!

मैंने कुछ चीजें पसन्द करके
Basket में डाली, और काउंटर
पर जाकर उन्हें हजार हजार के
करारे नोटें देने लगा.!!

Manager ने नोटों को देखकर
कहा यह करेंसी यहाँ नहीं चलती.!!

यह सुनकर मैं हैरान रह गया.!!
मैंने इंद्र के पास Complaint की इंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा कि
आप व्यापारी होकर इतना भी
नहीं जानते? कि आपकी करेंसी
बाजु के मुल्क पाकिस्तान, श्रीलंका और बांगलादेश में भी नही चलती.?
और आप मृत्यूलोक की करेंसी
स्वर्गलोक में चलाने की मूर्खता
कर रहे हो.!! यह सब सुनकर मुझे मानो साँप सूंघ गया.!!

मैं जोर जोर से दहाड़े मारकर
रोने लगा.!! और परमात्मा से
दरखास्त करने लगा, हे भगवान् ये क्या हो गया.? मैंने कितनी मेहनत से ये पैसा कमाया.?
दिन नही देखा, रात नही देखा, पैसा कमाया.!! माँ बाप की सेवा नही की, पैसा कमाया
बच्चों की परवरीश नही की,
पैसा कमाया.!! पत्नी की सेहत की ओर ध्यान नही दिया, पैसा कमाया.!!

रिश्तेदार, भाईबन्द, परिवार और
यार दोस्तों से भी किसी तरह की
हमदर्दी न रखते हुए पैसा
कमाया.!!
जीवन भर हाय पैसा
हाय पैसा किया.!!
ना चैन से सोया, ना चैन से खाया.... बस, जिंदगी भर पैसा कमाया.!
और यह सब व्यर्थ गया....

हाय राम, अब क्या होगा....

इंद्र ने कहा,-
रोने से कुछ हासिल होने वाला
नहीं है.!! जिन जिन लोगो ने यहाँ जितना भी पैसा लाया, सब रद्दी हो गया।

जमशेद जी टाटा के 55 हजार करोड़ रूपये, बिरला जी के 47 हजार करोड़ रूपये, धीरू भाई
अम्बानी के 29 हजार करोड़
अमेरिकन डॉलर....  सबका पैसा यहां पड़ा है.!!

मैंने इंद्र से पूछा-
फिर यहां पर कौनसी करेंसी
चलती है.??
इंद्र ने कहा-
धरती पर अगर कुछ अच्छे कर्म
किये है. जैसे किसी दुखियारे को
मदद की, किसी रोते हुए को
हसाया, किसी गरीब बच्ची की
शादी कर दी, किसी अनाथ बच्चे को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया.!! किसी को व्यसनमुक्त किया.!! किसी अपंग स्कुल, वृद्धाश्रम या मंदिरों में दान धर्म किया....

ऐसे पूण्य कर्म करने वालों को
यहाँ पर एक Credit Card
मिलता है....
और उसे वापर कर आप यहाँ
स्वर्गीय सुख का उपभोग ले
सकते है.!!

मैंने कहा भगवन, मुझे यह पता
नहीं था. इसलिए मैंने अपना जीवन व्यर्थ गँवा दिया.!!

हे प्रभु, मुझे थोडा आयुष्य दीजिये... और मैं गिड़गिड़ाने लगा.!! इंद्र को मुझ पर दया आ गई.!!

इंद्र ने तथास्तु कहा और मेरी नींद खुल गयी...

मैं जाग गया....

अब मैं वो दौलत कमाऊँगा
जो वहाँ चलेगी.....

मंगलवार, 10 मार्च 2015

दोहरा व्यक्तित्व

आदमी का दोहरा व्यक्तित्व हो गया है। एक जो ऊपर से दिखाई पड़ने लगता है। और एक, एक जो भीतर होता है।

इस द्वैत में इतना तनाव है, इतनी अशांति है, इतनी कानफ्लिक्ट है। होगी ही, क्योंकि जब एक आदमी दो हिस्सों में टूट जाएगा--एक जैसा वह है, और एक जैसा वह लोगों को 
दिखलाता है कि मैं हूं।

मैंने सुना है कि शहर में एक अदभुत फोटोग्राफर था , उसने अपने स्टूडियो के सामने एक तख्ती लगा रखी थी। उस तख्ती पर उसने फोटो उतारने के दाम की सूची लिख रखी थी। उस पर उसने लिख रखा था: जैसे आप हैं, अगर वैसा ही फोटो उतरवाना है तो पांच रुपया , दस रुपया में एक दम बेहतरीन फोटो और जैसा आप चाहते हैं आप कि जो कल्पना है , अगर वैसी फोटो उतरवानी है तो पंद्रह रुपया ।

एक गांव का ग्रामीण पहुंचा। वह भी चित्र उतरवाना चाहता था। वह हैरान हुआ कि चित्र भी क्या तीन प्रकार के हो सकते हैं। और उसने उस फोटोग्राफर से पूछा कि क्या पांच रुपए को छोड़कर कोई दस और पंद्रह का फोटो भी उतरवाने आता है?

उस फोटोग्राफर ने कहा, तुम पहले आदमी हो, जो पांच रुपए वाला फोटो उतरवाने का विचार कर रहे हो। अब तक तो यहां कोई पांच रुपए वाला फोटो उतरवाने नहीं आया। जिनके पास पैसे होते हैं, वे पंद्रह रुपए वाला ही उतरवाते हैं। मजबूरी, पैसे कम हों तो दस रुपए वाला उतरवाते हैं। लेकिन मन उनका पंद्रह वाला ही रहता है कि उतरे तो अच्छा। पांच रुपए वाला तो कोई मिलता नहीं। जो जैसा है, वैसा चित्र कोई भी उतरवाना नहीं चाहता है।

हम अपने व्यक्तित्व को ऐसी पर्त-पर्त ढांके हुए हैं। इससे एक पाखंड पैदा हुआ है। इस पाखंड से सारा मनुष्य-चित्त रुग्ण हो गया है ।

नकली कारतूस

इंटेलिजेंस ब्यूरो में एक उच्च पद हेतु भर्ती की प्रक्रिया चल रही थी।

अंतिम तौर पर केवल तीन उम्मीदवार बचे थे जिनमें से किसी एक का चयन किया जाना था।

इनमें दो पुरुष थे और एक महिला... उनको क्रमशः उनकी पत्नियों एवं पति के साथ बुलाया गया था ।

फाइनल परीक्षा के रूप में कर्तव्य के प्रति उनकी निष्ठा की जांच की जानी थी...

पहले आदमी को एक कमरे में ले जाकर परीक्षक ने कहा –”हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि तुम हर हाल में हमारे निर्देशों का पालन करोगे चाहे कोई भी परिस्थिति क्यों न हो।”

फिर उसने उसके हाथ में एक बंदूक पकड़ाई और दूसरे कमरे की ओर इशारा करते हुये कहा – ”उस कमरे में तुम्हारी पत्नी बैठी है। जाओ और उसे गोली मार दो।”

”मैं अपनी पत्नी को किसी भी हालत में गोली नहीं मार सकता” आदमी ने कहा।”

तो फिर तुम हमारे किसी काम के नहीं हो। तुम जा सकते हो।” – परीक्षक ने कहा।

अब दूसरे आदमी को बुलाया गया।”
.
.
परीक्षक ने उसके हाथ में एक बंदूक पकड़ाई और दूसरे कमरे की ओर इशारा करते हुये कहा – ”उस कमरे में तुम्हारी पत्नी बैठी है। जाओ और उसे गोली मार दो।”

आदमी उस कमरे में गया और पांच मिनट बाद आंखों में आंसू लिये वापस आ गया।

”मैं अपनी प्यारी पत्नी को गोली नहीं मार सका। मुझे माफ कर दीजिये। मैं इस पद के योग्य नहीं हूं।”

अब अंतिम उम्मीदवार के रूप में केवल महिला बची थी। उन्होंने उसे भी बंदूक पकड़ाई और उसी कमरे की तरफ इशारा करते हुये कहा – ”उस कमरे में तुम्हारा पति बैठा है। जाओ और जाकर उसे गोली से उड़ा दो।”

महिला ने बंदूक ली और कमरे के अंदर चली गई।

कमरे के अंदर घुसते ही फायरिंग की आवाजें आने लगीं ।

लगभग 11 राउंड फायर के बाद कमरे से चीख पुकार, उठा पटक की आवाजें आनी शुरू हो गईं। यह क्रम लगभग पन्द्रह मिनटों तक चला ,उसके बाद खामोशी छा गई। लगभग पांच मिनट बाद कमरे का दरवाजा खुला और माथे से पसीना पोंछते हुये महिला बाहर आई।

वो बोली – ”तुम लोगों ने मुझे बताया नहीं था कि बंदूक में कारतूस नकली हैं। मजबूरन मुझे उसे पीट-पीट कर मारना पड़ा।”

परीक्षक बेहोश

माँ भाई कब मरेगा....??

एक गरीब FAMILY THI जिसमे 5 लोग थे.....
माँ बाप और 3 बच्चे
बाप हमेशा बीमार रहता था |
एक दिन वो मर गया !
3 दिन तक पड़ोसियों ने खाना भेजा बाद में भूखे
रहने के दिन आ गए.....|
माँ ने कुछ दिन तक जैसे-तैसे
बच्चों को खाना खिलाया |
लेकिन कब तक आखिर फिर से भूखे रहना पड़ा !
जिसकी वजह से 8 साल का बेटा बीमार
हो गया और बिस्तर पकड़ लिया......
एक दिन 5 साल की बच्ची ने माँ के कान में पूछा।
"
माँ भाई कब मरेगा....??
.
माँ ने तड़प कर पूछा ऐसा क्यों पूछ रही हो.....??
.
बच्ची ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया,
जिसे सुन कर आप की आँखों में आँसु आ जायेंगे.......
.
.
बच्ची का जवाब था |
"माँ भाई मरेगा तो घर में खाना आएगा ना !"....
.
.
.

सोमवार, 9 मार्च 2015

ईमानदारी का फल


इस साल मेरा बेटा
दूसरी कक्षा मैं प्रवेश पा गया ....
क्लास मैं हमेशा से अव्वल
आता रहा है !

पिछले दिनों तनख्वाह मिली तो
मैं उसे नयी स्कूल ड्रेस और
जूते दिलवाने के लिए बाज़ार ले  गया !

बेटे ने जूते लेने से ये कह कर
मना कर दिया की पुराने जूतों
को बस थोड़ी-सी मरम्मत की
जरुरत है वो अभी इस साल
काम दे सकते हैं!

अपने जूतों की बजाये उसने
मुझे अपने दादा की कमजोर हो
चुकी नज़र के लिए नया चश्मा
बनवाने को कहा !

मैंने सोचा बेटा अपने दादा से
शायद बहुत प्यार करता है
इसलिए अपने जूतों की बजाय
उनके चश्मे को ज्यादा जरूरी
समझ रहा है !

खैर मैंने कुछ कहना जरुरी
नहीं समझा और उसे लेकर
ड्रेस की दुकान पर पहुंचा.....
दुकानदार ने बेटे के साइज़
की सफ़ेद शर्ट निकाली ...
डाल कर देखने पर शर्ट एक दम
फिट थी.....
फिर भी बेटे ने थोड़ी लम्बी शर्ट
दिखाने को कहा !!!!

मैंने बेटे से कहा :
बेटा ये शर्ट तुम्हें बिल्कुल सही है
तो फिर और लम्बी क्यों ?

बेटे ने कहा :पिता जी मुझे शर्ट
निक्कर के अंदर ही डालनी होती है
इसलिए थोड़ी लम्बी भी होगी तो
कोई फर्क नहीं पड़ेगा.......
लेकिन यही शर्ट मुझे अगली
क्लास में भी काम आ जाएगी ......
पिछली वाली शर्ट भी अभी
नयी जैसी ही पड़ी है लेकिन
छोटी होने की वजह से मैं उसे
पहन नहीं पा रहा !

मैं खामोश रहा !!

घर आते वक़्त मैंने बेटे से पूछा :
तुम्हे ये सब बातें कौन सिखाता है
बेटा ?

बेटे ने कहा:
पिता जी मैं अक्सर देखता था
कि कभी माँ अपनी साडी छोड़कर
तो कभी आप अपने जूतों को
छोडकर हमेशा मेरी किताबों
और कपड़ो पैर पैसे खर्च कर
दिया करते हैं !

गली- मोहल्ले में सब लोग कहते
हैं के आप बहुत ईमानदार
आदमी हैं और हमारे साथ वाले
राजू के पापा को सब लोग
चोर, कुत्ता, बे-ईमान, रिश्वतखोर
और जाने क्या क्या कहते हैं,
जबकि आप दोनों एक ही
ऑफिस में काम करते हैं.....

जब सब लोग आपकी तारीफ
करते हैं तो मुझे बड़ा अच्छा
लगता है.....
मम्मी और दादा जी भी आपकी
तारीफ करते हैं !

पिता जी मैं चाहता हूँ कि मुझे
कभी जीवन में नए कपडे,
नए जूते मिले या न मिले
लेकिन कोई आपको
चोर, बे-ईमान, रिश्वतखोर या
कुत्ता न कहे !!!!!

मैं आपकी ताक़त बनना चाहता हूँ
पिता जी,
आपकी कमजोरी नहीं !

बेटे की बात सुनकर मैं निरुतर था!
आज मुझे पहली बार मुझे
मेरी ईमानदारी का इनाम मिला था !!

आज बहुत दिनों बाद आँखों में
ख़ुशी, गर्व और सम्मान के
आंसू थे...