शनिवार, 2 सितंबर 2017

मन में बैर

*एक बार एक केकड़ा समुद्र किनारे अपनी मस्ती में चला जा रहा था और बीच बीच में रुक कर अपने पैरों के निशान देख कर खुश होता*
*आगे बढ़ता पैरों के निशान देखता और खुश होता,,,,,*
*इतने में एक लहर आई और उसके पैरों के सभी निशान मिट गये*
*इस पर केकड़े को बड़ा गुस्सा आया, उसने लहर से कहा*

*"ए लहर मैं तो तुझे अपना मित्र मानता था, पर ये तूने क्या किया ,मेरे बनाये सुंदर पैरों के निशानों को ही मिटा दिया*
*कैसी दोस्त हो तुम"*

*तब लहर बोली "वो देखो पीछे से मछुआरे पैरों के निशान देख कर केकड़ों को पकड़ने आ रहे हैं*
*हे मित्र, तुमको वो पकड़ न लें ,बस इसीलिए मैंने निशान मिटा दिए*

*ये सुनकर केकड़े की आँखों में आँसू आ गये*

*सच यही है, कई बार हम सामने वाले की बातों को समझ नहीं पाते और अपनी सोच अनुसार उसे गलत समझ लेते हैं*
*जबकि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं*
*अतः मन में बैर लाने से बेहतर है कि हम सोच समझ कर निष्कर्ष निकालें*

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