राजा जनक ब्रह्मज्ञानी थे। उनके राज्य में अक्सर यज्ञों का आयोजन होता रहता था, जिनमें दूर-दूर से प्रकांड पंडित शामिल होने के लिए आते थे। एक बार वरुण ने एक यज्ञ कराना चाहा तो उन्हें उसके लिए कोई योग्य आचार्य नहीं मिले। दरअसल वे सब राजा जनक के लिए यज्ञ करवा रहे थे।यह देख वरुण का पुत्र एक ब्राह्मण के वेश में यज्ञस्थल पर पहुंचा और वहां उपस्थित ब्राह्मणों को शास्त्रार्थ में पराजित कर उन्हें अपने साथ अपने पिता के यज्ञस्थल र ले गया। मुनि कहोड के पुत्र अष्टावक्र को जब पता चला कि उनके पिता को भी वरुणलोक ले जाया गया है, तो उन्होंने वहां पहुंचकर वरुण के पुत्र को शास्त्रार्थ में हराया और सभी विद्वानों को वहां से छुड़ा ले आए। इससे अष्टावक्र को अपने ज्ञान पर बड़ा अभिमान हो गया और यह उनके व्यवहार में भी झलकने लगा।उनके अभिमान को देख राजसभा में पधारी एक तपस्विनी ने कहा - 'आपने वरुण के पुत्र को शास्त्रार्थ में पराजित किया है। अब मेरे प्रश्न का उत्तर दें और बताएं कि वह कौन-सा पद है, जिसे जानने के बाद कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाता, जिससे अमरता प्राप्त होती है और हर चाह मिट जाती है?" इस पर अष्टावक्र ने कहा - 'वह देश-काल से परे अनादि है, जिसके ज्ञान से अविनाशी पद मिलता है। कोई उसे जान नहीं सकता, क्योंकि उसका कोई दूसरा ज्ञाता नहीं।" यह सुनकर तपस्विनी ने कहा - 'आपका कहना ठीक है, लेकिन आपने कहा कि उसे जाना नहीं जा सकता और फिर आप कहते हैं कि उसे जानने से अविनाशी पद मिलता है। इन दो बातों में संगति कैसे होगी? लगता है आपने सिर्फ तर्क-वितर्क में ही प्रवीणता हासिल की है। शास्त्र की दृष्टि से आपने कल्पना तो कर ली, लेकिन अनुभूति-ज्ञान नहीं हुआ।"इस पर अष्टावक्र को कोई जवाब न सूझा और उन्होंने तपस्विनी का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया। दरअसल यथार्थ ज्ञान कोरे तर्क-वितर्क या वाद-विवाद से परे होता है। हजार बार कहने-सुनने या रटने से उसकी प्रतीति नहीं होती। वह अनुभूत किया जाता है। जब ज्ञानी गुरु के मुख से उपदेश लेकर शिष्य विवेक-वैराग्यपूर्वक साधना करता है, तभी उसे ज्ञान की प्राप्ति होती हैं।-
मंगलवार, 12 मई 2015
What you see may not be the reality.
STORY FOR GROWTH:
A lovely little girl was holding two apples with both hands.
Her mum came in and softly asked her little daughter with a smile: my sweetie, could you give your mum one of your two apples?
The girl looked up at her mum for some seconds, then she suddenly took a quick bite on one apple, and then quickly on the other.
The mum felt the smile on her face freeze. She tried hard not to reveal her disappointment.
Then the little girl handed one of her bitten apples to her mum,and said: mummy, here you are. This is the sweeter one.
No matter who you are, how experienced you are, and how knowledgeable you think you are, always delay judgement. Give others the privelege to explain themselves. What you see may not be the reality. Never conclude for others.
सोमवार, 11 मई 2015
A lesson for every son and hope for every father
A son took his old father to a restaurant for an evening dinner.
Father being very old and weak, while eating, dropped food on his shirt and trousers.
Others diners watched him in disgust while his son was calm.
After he finished eating, his son who was not at all embarrassed, quietly took him to the wash room, wiped the food particles, removed the stains, combed his hair and fitted his spectacles firmly. When they came out, the entire restaurant was watching them in dead silence, not able to grasp how someone could embarrass themselves publicly like that.
The son settled the bill and started walking out with his father.
At that time, an old man amongst the diners
called out to the son and asked him, "Don't you think you have left something behind?".
The son replied,
"No sir, I haven't".
The old man retorted, "Yes, you have! You left a lesson for every son and hope for every father".
The restaurant went silent.
बुधवार, 6 मई 2015
तुच्छ प्रलोभन
एक नगर मे रहने वाले एक पंडित जी की ख्याति दूर-दूर तक थी। पास ही के गाँव मे स्थित मंदिर के पुजारी का आकस्मिक निधन होने की वजह से, उन्हें वहाँ का पुजारी नियुक्त किया गया था।
एक बार वे अपने गंतव्य की और जाने के लिए बस मे चढ़े, उन्होंने कंडक्टर को किराए के रुपये दिए और सीट पर जाकर बैठ गए।
कंडक्टर ने जब किराया काटकर उन्हे रुपये वापस दिए तो पंडित जी ने पाया की कंडक्टर ने दस रुपये ज्यादा दे दिए है। पंडित जी ने सोचा कि थोड़ी देर बाद कंडक्टर को रुपये वापस कर दूँगा।
कुछ देर बाद मन मे विचार आया की बेवजह दस रुपये जैसी मामूली रकम को लेकर परेशान हो रहे है, आखिर ये बस कंपनी वाले भी तो लाखों कमाते है, बेहतर है इन रूपयो को भगवान की भेंट समझकर अपने पास ही रख लिया जाए। वह इनका सदुपयोग ही करेंगे।
मन मे चल रहे विचार के बीच उनका गंतव्य स्थल आ गया बस से उतरते ही उनके कदम अचानक ठिठके, उन्होंने जेब मे हाथ डाला और दस का नोट निकाल कर कंडक्टर को देते हुए कहा, "भाई तुमने मुझे किराया काटने के बाद भी दस रुपये ज्यादा दे दिए थे।"
कंडक्टर मुस्कराते हुए बोला, "क्या आप ही गाँव के मंदिर के नए पुजारी है?"
पंडित जी के हामी भरने पर कंडक्टर बोला, "मेरे मन मे कई दिनों से आपके प्रवचन सुनने की इच्छा थी, आपको बस मे देखा तो ख्याल आया कि चलो देखते है कि मैं अगर ज्यादा पैसे दूँ तो आप क्या करते हो! अब मुझे विश्वास हो गया कि आपके प्रवचन जैसा ही आपका आचरण है। जिससे सभी को सीख लेनी चाहिए" बोलते हुए, कंडक्टर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।
पंडित जी बस से उतरकर पसीना पसीना थे। उन्होंने हाथ जोड़कर भगवान का आभार व्यक्त किया, "प्रभु तेरा लाख लाख शुक्र है जो तूने मुझे बचा लिया, मैने तो दस रुपये के लालच मे तेरी शिक्षाओ की बोली लगा दी थी। पर तूने सही समय पर मुझे सम्भलने का अवसर दे दिया।"
कभी कभी हम भी तुच्छ से प्रलोभन में, अपने जीवन भर की चरित्र पूंजी दांव पर लगा देते है।
मंगलवार, 5 मई 2015
Brother like Ravana
A pregnant mother asked her daughter, “What do u want- A brother or a sister?“
Daughter:- Brother
Mother:- Like whom?
Daughter:- Like RAVAN
Mother:- What the hell are you saying? Are you out of your mind?
Daughter:- Why not Mom? He left all his Royalship &
Kingdom, all because his sister was disrespected.
Even after picking up his enemy’s wife, he didn’t ever touch her. Why wouldn’t I want to have a brother like him?
What would I do with a brother like Ram who left his pregnant wife after listening to a “Dhobi” though his wife always stood by his side like a shadow? After giving “Agni Pareeksha” & suffering 14 years of exile.
Mom, you being a wife & sister to someone, until when will you keep on asking for a “RAM” as your son???
Mother was in tears.
Moral:- No one in the world is good or bad. Its just an interpretation about someone. Change Ur perception
Irony of life :
A temple is a very interesting place - The poor beg outside & the rich beg inside...
Ultimate philosophy
शनिवार, 2 मई 2015
विवेकानंद और शादी
महान विचार
मैं आपसे शादी करना चाहती
हूँ"-एक विदेशी महिला ने विवेकानंद से
कहा
विवेकानंद ने पूछा-"क्यों देवी पर मैं तो ब्रह्मचारी हूँ?"
महिला ने जवाब दिया-"क्योंकि मुझे आपके जैसा ही एक पुत्र
चाहिए,
जो पूरी दुनिया में मेरा नाम रौशन करे और वो केवल आपसे शादी
करके
ही मिल सकता है मुझे"
"इसका और एक उपाय है"-विवेकानंद कहते हैं
विदेशी महिला पूछती है-"क्या?"
विवेकानंद ने मुस्कुराते हुए कहा-"आप मुझे ही अपना पुत्र मान
लीजिये
और आप मेरी माँ बन जाइए ऐसे में आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल
जाएगा और मुझे अपना ब्रह्मचर्य भी नही तोड़ना पड़ेगा"
महिला हतप्रभ होकर विवेकानंद को ताकने लगी और रोने लग गयी,
ये होती है महान आत्माओ की विचार धारा ।
"पूरे समुंद्र का पानी भी एक जहाज को नहीं डुबा सकता, जब तक पानी को जहाज अन्दर न आने दे।
इसी तरह दुनिया का कोई भी नकारात्मक विचार आपको नीचे नहीं गिरा सकता, जब तक आप उसे अपने अंदर आने की अनुमति न दें।"
शुक्रवार, 1 मई 2015
पाँच आश्चर्य
श्रीकृष्ण कहते हैं- "तुम पाँचों भाई वन में जाओ
और जो कुछ भी दिखे वह आकर मुझे बताओ।
मैं
तुम्हें उसका प्रभाव बताऊँगा।"
पाँचों भाई वन में गये।
युधिष्ठिर महाराज ने
देखा कि किसी हाथी की दो सूँड
है।
यह देखकर आश्चर्य का पार न रहा।
अर्जुन दूसरी दिशा में गये।
वहाँ उन्होंने देखा कि कोई पक्षी है, उसके पंखों पर
वेद की ऋचाएँ लिखी हुई हैं पर वह
पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है
यह भी आश्चर्य है !
भीम ने तीसरा आश्चर्य देखा कि गाय ने
बछड़े को जन्म दिया है और बछड़े को इतना चाट
रही है कि बछड़ा लहुलुहान हो जाता है।
सहदेव ने चौथा आश्चर्य देखा कि छः सात कुएँ हैं और आसपास
के कुओं में पानी है किन्तु बीच
का कुआँ खाली है। बीच का कुआँ
गहरा है फिर
भी पानी नहीं है।
पाँचवे भाई नकुल ने भी एक अदभुत आश्चर्य
देखा कि एक पहाड़ के ऊपर से एक
बड़ी शिला लुढ़कती-लुढ़कती
आती और कितने ही वृक्षों से टकराई
पर उन वृक्षों के तने उसे रोक न सके।
कितनी ही अन्य शिलाओं के साथ टकराई
पर वह रुक न सकीं। अंत में एक अत्यंत छोटे पौधे
का स्पर्श होते ही वह स्थिर हो गई।
पाँचों भाईयों के आश्चर्यों का कोई पार नहीं ! शाम
को वे श्रीकृष्ण के पास गये और अपने अलग-
अलग दृश्यों का वर्णन किया।
युधिष्ठिर कहते हैं- "मैंने
दो सूँडवाला हाथी देखा तो मेरे आश्चर्य का कोई पार न
रहा।"
त(ब श्री कृष्ण कहते हैं- "कलियुग में ऐसे
लोगों का राज्य होगा जो दोनों ओर से शोषण करेंगे।
बोलेंगे कुछ और करेंगे कुछ।
ऐसे लोगों का राज्य होगा।
इससे तुम पहले राज्य कर लो।
अर्जुन ने आश्चर्य देखा कि पक्षी के पंखों पर वेद
की ऋचाएँ लिखी हुई हैं और
पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है।
इसी प्रकार कलियुग में ऐसे लोग रहेंगे जो बड़े-
बड़े पंडित और विद्वान कहलायेंगे किन्तु वे
यही देखते रहेंगे कि कौन-सा मनुष्य मरे और हमारे
नाम से संपत्ति कर जाये।
"संस्था" के व्यक्ति विचारेंगे कि कौन सा मनुष्य मरे और
संस्था हमारे नाम से हो जाये।
हर जाति धर्म के प्रमुख पद पर बैठे
विचार करेंगे कि कब किसका
श्राद्ध है ?
चाहे कितने भी बड़े लोग होंगे किन्तु
उनकी दृष्टि तो धन के ऊपर (मांस के ऊपर)
ही रहेगी।
परधन परमन हरन को वैश्या बड़ी चतुर।
ऐसे लोगों की बहुतायत होगी, कोई कोई
विरला ही संत पुरूष होगा।
भीम ने तीसरा आश्चर्य देखा कि गाय
अपने बछड़े को इतना चाटती है कि बछड़ा लहुलुहान
हो जाता है।
कलियुग का आदमी शिशुपाल हो जायेगा।
बालकों के लिए इतनी ममता करेगा कि उन्हें अपने
विकास का अवसर ही नहीं मिलेगा।
""किसी का बेटा घर छोड़कर साधु
बनेगा तो हजारों व्यक्ति दर्शन करेंगे....
किन्तु यदि अपना बेटा साधु बनता होगा तो रोयेंगे कि मेरे बेटे
का क्या होगा ?""
इतनी सारी ममता होगी कि उसे
मोहमाया और परिवार में ही बाँधकर रखेंगे और
उसका जीवन वहीं खत्म हो जाएगा।
अंत में बिचारा अनाथ होकर मरेगा।
वास्तव में लड़के तुम्हारे नहीं हैं, वे तो बहुओं
की अमानत हैं,
लड़कियाँ जमाइयों की अमानत हैं और तुम्हारा यह
शरीर मृत्यु की अमानत है।
तुम्हारी आत्मा-परमात्मा की अमानत
है ।
तुम अपने शाश्वत संबंध को जान लो बस !
सहदेव ने चौथा आश्चर्य यह देखा कि पाँच सात भरे कुएँ के
बीच का कुआँ एक दम खाली !
कलियुग में धनाढय लोग लड़के-लड़की के विवाह में,
मकान के उत्सव में, छोटे-बड़े उत्सवों में तो लाखों रूपये खर्च कर
देंगे
परन्तु पड़ोस में ही यदि कोई भूखा प्यासा होगा तो यह
नहीं देखेंगे कि उसका पेट भरा है
या नहीं।
दूसरी और मौज-मौज में, शराब, कबाब, फैशन और
व्यसन में पैसे उड़ा देंगे।
किन्तु किसी के दो आँसूँ पोंछने में
उनकी रूचि न होगी और
जिनकी रूचि होगी उन पर कलियुग
का प्रभाव नहीं होगा, उन पर भगवान का प्रभाव
होगा।
पाँचवा आश्चर्य यह था कि एक बड़ी चट्टान पहाड़
पर से लुढ़की, वृक्षों के तने और चट्टाने उसे रोक न
पाये किन्तु एक छोटे से पौधे से टकराते ही वह
चट्टान रूक गई।
कलियुग में मानव का मन नीचे गिरेगा,
उसका जीवन पतित होगा।
यह पतित जीवन धन की शिलाओं से
नहीं रूकेगा न ही सत्ता के वृक्षों से
रूकेगा।
किन्तु हरिनाम के एक छोटे से पौधे से, हरि कीर्तन
के एक छोटे से पौधे मनुष्य जीवन का पतन
होना रूक जायेगा।
कृष्णम वन्दे जगत गुरु
जय जय श्री राम
पाँच आश्चर्य
श्रीकृष्ण कहते हैं- "तुम पाँचों भाई वन में जाओ
और जो कुछ भी दिखे वह आकर मुझे बताओ।
मैं
तुम्हें उसका प्रभाव बताऊँगा।"
पाँचों भाई वन में गये।
युधिष्ठिर महाराज ने
देखा कि किसी हाथी की दो सूँड
है।
यह देखकर आश्चर्य का पार न रहा।
अर्जुन दूसरी दिशा में गये।
वहाँ उन्होंने देखा कि कोई पक्षी है, उसके पंखों पर
वेद की ऋचाएँ लिखी हुई हैं पर वह
पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है
यह भी आश्चर्य है !
भीम ने तीसरा आश्चर्य देखा कि गाय ने
बछड़े को जन्म दिया है और बछड़े को इतना चाट
रही है कि बछड़ा लहुलुहान हो जाता है।
सहदेव ने चौथा आश्चर्य देखा कि छः सात कुएँ हैं और आसपास
के कुओं में पानी है किन्तु बीच
का कुआँ खाली है। बीच का कुआँ
गहरा है फिर
भी पानी नहीं है।
पाँचवे भाई नकुल ने भी एक अदभुत आश्चर्य
देखा कि एक पहाड़ के ऊपर से एक
बड़ी शिला लुढ़कती-लुढ़कती
आती और कितने ही वृक्षों से टकराई
पर उन वृक्षों के तने उसे रोक न सके।
कितनी ही अन्य शिलाओं के साथ टकराई
पर वह रुक न सकीं। अंत में एक अत्यंत छोटे पौधे
का स्पर्श होते ही वह स्थिर हो गई।
पाँचों भाईयों के आश्चर्यों का कोई पार नहीं ! शाम
को वे श्रीकृष्ण के पास गये और अपने अलग-
अलग दृश्यों का वर्णन किया।
युधिष्ठिर कहते हैं- "मैंने
दो सूँडवाला हाथी देखा तो मेरे आश्चर्य का कोई पार न
रहा।"
त(ब श्री कृष्ण कहते हैं- "कलियुग में ऐसे
लोगों का राज्य होगा जो दोनों ओर से शोषण करेंगे।
बोलेंगे कुछ और करेंगे कुछ।
ऐसे लोगों का राज्य होगा।
इससे तुम पहले राज्य कर लो।
अर्जुन ने आश्चर्य देखा कि पक्षी के पंखों पर वेद
की ऋचाएँ लिखी हुई हैं और
पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है।
इसी प्रकार कलियुग में ऐसे लोग रहेंगे जो बड़े-
बड़े पंडित और विद्वान कहलायेंगे किन्तु वे
यही देखते रहेंगे कि कौन-सा मनुष्य मरे और हमारे
नाम से संपत्ति कर जाये।
"संस्था" के व्यक्ति विचारेंगे कि कौन सा मनुष्य मरे और
संस्था हमारे नाम से हो जाये।
हर जाति धर्म के प्रमुख पद पर बैठे
विचार करेंगे कि कब किसका
श्राद्ध है ?
चाहे कितने भी बड़े लोग होंगे किन्तु
उनकी दृष्टि तो धन के ऊपर (मांस के ऊपर)
ही रहेगी।
परधन परमन हरन को वैश्या बड़ी चतुर।
ऐसे लोगों की बहुतायत होगी, कोई कोई
विरला ही संत पुरूष होगा।
भीम ने तीसरा आश्चर्य देखा कि गाय
अपने बछड़े को इतना चाटती है कि बछड़ा लहुलुहान
हो जाता है।
कलियुग का आदमी शिशुपाल हो जायेगा।
बालकों के लिए इतनी ममता करेगा कि उन्हें अपने
विकास का अवसर ही नहीं मिलेगा।
""किसी का बेटा घर छोड़कर साधु
बनेगा तो हजारों व्यक्ति दर्शन करेंगे....
किन्तु यदि अपना बेटा साधु बनता होगा तो रोयेंगे कि मेरे बेटे
का क्या होगा ?""
इतनी सारी ममता होगी कि उसे
मोहमाया और परिवार में ही बाँधकर रखेंगे और
उसका जीवन वहीं खत्म हो जाएगा।
अंत में बिचारा अनाथ होकर मरेगा।
वास्तव में लड़के तुम्हारे नहीं हैं, वे तो बहुओं
की अमानत हैं,
लड़कियाँ जमाइयों की अमानत हैं और तुम्हारा यह
शरीर मृत्यु की अमानत है।
तुम्हारी आत्मा-परमात्मा की अमानत
है ।
तुम अपने शाश्वत संबंध को जान लो बस !
सहदेव ने चौथा आश्चर्य यह देखा कि पाँच सात भरे कुएँ के
बीच का कुआँ एक दम खाली !
कलियुग में धनाढय लोग लड़के-लड़की के विवाह में,
मकान के उत्सव में, छोटे-बड़े उत्सवों में तो लाखों रूपये खर्च कर
देंगे
परन्तु पड़ोस में ही यदि कोई भूखा प्यासा होगा तो यह
नहीं देखेंगे कि उसका पेट भरा है
या नहीं।
दूसरी और मौज-मौज में, शराब, कबाब, फैशन और
व्यसन में पैसे उड़ा देंगे।
किन्तु किसी के दो आँसूँ पोंछने में
उनकी रूचि न होगी और
जिनकी रूचि होगी उन पर कलियुग
का प्रभाव नहीं होगा, उन पर भगवान का प्रभाव
होगा।
पाँचवा आश्चर्य यह था कि एक बड़ी चट्टान पहाड़
पर से लुढ़की, वृक्षों के तने और चट्टाने उसे रोक न
पाये किन्तु एक छोटे से पौधे से टकराते ही वह
चट्टान रूक गई।
कलियुग में मानव का मन नीचे गिरेगा,
उसका जीवन पतित होगा।
यह पतित जीवन धन की शिलाओं से
नहीं रूकेगा न ही सत्ता के वृक्षों से
रूकेगा।
किन्तु हरिनाम के एक छोटे से पौधे से, हरि कीर्तन
के एक छोटे से पौधे मनुष्य जीवन का पतन
होना रूक जायेगा।
कृष्णम वन्दे जगत गुरु
जय जय श्री राम
पाँच आश्चर्य
श्रीकृष्ण कहते हैं- "तुम पाँचों भाई वन में जाओ
और जो कुछ भी दिखे वह आकर मुझे बताओ।
मैं
तुम्हें उसका प्रभाव बताऊँगा।"
पाँचों भाई वन में गये।
युधिष्ठिर महाराज ने
देखा कि किसी हाथी की दो सूँड
है।
यह देखकर आश्चर्य का पार न रहा।
अर्जुन दूसरी दिशा में गये।
वहाँ उन्होंने देखा कि कोई पक्षी है, उसके पंखों पर
वेद की ऋचाएँ लिखी हुई हैं पर वह
पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है
यह भी आश्चर्य है !
भीम ने तीसरा आश्चर्य देखा कि गाय ने
बछड़े को जन्म दिया है और बछड़े को इतना चाट
रही है कि बछड़ा लहुलुहान हो जाता है।
सहदेव ने चौथा आश्चर्य देखा कि छः सात कुएँ हैं और आसपास
के कुओं में पानी है किन्तु बीच
का कुआँ खाली है। बीच का कुआँ
गहरा है फिर
भी पानी नहीं है।
पाँचवे भाई नकुल ने भी एक अदभुत आश्चर्य
देखा कि एक पहाड़ के ऊपर से एक
बड़ी शिला लुढ़कती-लुढ़कती
आती और कितने ही वृक्षों से टकराई
पर उन वृक्षों के तने उसे रोक न सके।
कितनी ही अन्य शिलाओं के साथ टकराई
पर वह रुक न सकीं। अंत में एक अत्यंत छोटे पौधे
का स्पर्श होते ही वह स्थिर हो गई।
पाँचों भाईयों के आश्चर्यों का कोई पार नहीं ! शाम
को वे श्रीकृष्ण के पास गये और अपने अलग-
अलग दृश्यों का वर्णन किया।
युधिष्ठिर कहते हैं- "मैंने
दो सूँडवाला हाथी देखा तो मेरे आश्चर्य का कोई पार न
रहा।"
त(ब श्री कृष्ण कहते हैं- "कलियुग में ऐसे
लोगों का राज्य होगा जो दोनों ओर से शोषण करेंगे।
बोलेंगे कुछ और करेंगे कुछ।
ऐसे लोगों का राज्य होगा।
इससे तुम पहले राज्य कर लो।
अर्जुन ने आश्चर्य देखा कि पक्षी के पंखों पर वेद
की ऋचाएँ लिखी हुई हैं और
पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है।
इसी प्रकार कलियुग में ऐसे लोग रहेंगे जो बड़े-
बड़े पंडित और विद्वान कहलायेंगे किन्तु वे
यही देखते रहेंगे कि कौन-सा मनुष्य मरे और हमारे
नाम से संपत्ति कर जाये।
"संस्था" के व्यक्ति विचारेंगे कि कौन सा मनुष्य मरे और
संस्था हमारे नाम से हो जाये।
हर जाति धर्म के प्रमुख पद पर बैठे
विचार करेंगे कि कब किसका
श्राद्ध है ?
चाहे कितने भी बड़े लोग होंगे किन्तु
उनकी दृष्टि तो धन के ऊपर (मांस के ऊपर)
ही रहेगी।
परधन परमन हरन को वैश्या बड़ी चतुर।
ऐसे लोगों की बहुतायत होगी, कोई कोई
विरला ही संत पुरूष होगा।
भीम ने तीसरा आश्चर्य देखा कि गाय
अपने बछड़े को इतना चाटती है कि बछड़ा लहुलुहान
हो जाता है।
कलियुग का आदमी शिशुपाल हो जायेगा।
बालकों के लिए इतनी ममता करेगा कि उन्हें अपने
विकास का अवसर ही नहीं मिलेगा।
""किसी का बेटा घर छोड़कर साधु
बनेगा तो हजारों व्यक्ति दर्शन करेंगे....
किन्तु यदि अपना बेटा साधु बनता होगा तो रोयेंगे कि मेरे बेटे
का क्या होगा ?""
इतनी सारी ममता होगी कि उसे
मोहमाया और परिवार में ही बाँधकर रखेंगे और
उसका जीवन वहीं खत्म हो जाएगा।
अंत में बिचारा अनाथ होकर मरेगा।
वास्तव में लड़के तुम्हारे नहीं हैं, वे तो बहुओं
की अमानत हैं,
लड़कियाँ जमाइयों की अमानत हैं और तुम्हारा यह
शरीर मृत्यु की अमानत है।
तुम्हारी आत्मा-परमात्मा की अमानत
है ।
तुम अपने शाश्वत संबंध को जान लो बस !
सहदेव ने चौथा आश्चर्य यह देखा कि पाँच सात भरे कुएँ के
बीच का कुआँ एक दम खाली !
कलियुग में धनाढय लोग लड़के-लड़की के विवाह में,
मकान के उत्सव में, छोटे-बड़े उत्सवों में तो लाखों रूपये खर्च कर
देंगे
परन्तु पड़ोस में ही यदि कोई भूखा प्यासा होगा तो यह
नहीं देखेंगे कि उसका पेट भरा है
या नहीं।
दूसरी और मौज-मौज में, शराब, कबाब, फैशन और
व्यसन में पैसे उड़ा देंगे।
किन्तु किसी के दो आँसूँ पोंछने में
उनकी रूचि न होगी और
जिनकी रूचि होगी उन पर कलियुग
का प्रभाव नहीं होगा, उन पर भगवान का प्रभाव
होगा।
पाँचवा आश्चर्य यह था कि एक बड़ी चट्टान पहाड़
पर से लुढ़की, वृक्षों के तने और चट्टाने उसे रोक न
पाये किन्तु एक छोटे से पौधे से टकराते ही वह
चट्टान रूक गई।
कलियुग में मानव का मन नीचे गिरेगा,
उसका जीवन पतित होगा।
यह पतित जीवन धन की शिलाओं से
नहीं रूकेगा न ही सत्ता के वृक्षों से
रूकेगा।
किन्तु हरिनाम के एक छोटे से पौधे से, हरि कीर्तन
के एक छोटे से पौधे मनुष्य जीवन का पतन
होना रूक जायेगा।
कृष्णम वन्दे जगत गुरु
जय जय श्री राम
Never give up
Once there was a man who did not make it to university. So, his mother got him a wife. After the marriage, he worked as a teacher in a primary school. Due to the lack of experience, he was squashed by the students in less than a week.
When he returned home, his wife dried his tears. She comforted him with these words. 'When one is too full, he could either pour it out what's in him or he just could not pour it out at all. You should not be too sad about it. Probably there is a more suitable job waiting for you out there.'
Later on, he found another job and not for so long, he was fired due to his slowness. This time, the wife commented. 'There are always people who are skilful and non skilful. Some have experience from their years of work. As for you, you were in school all this while. So, how could you acquire these needed skills?'
He went for a number of jobs but never stayed long in those jobs. Each time, he would return home with a dejected spirit. His wife would always comfort him and never for once, she was disappointed or resentful.
He was in his thirties when he aquired a flair in languages. He became a counselor in a school for the deaf and mute. Later on, he opened a school for the disabled. A few years later, he set up chain stores in different cities and provinces selling apparatus & equipment for the disabled. He became a multi-millionaire.
One day he asked his wife. 'When I was looking bleak at my own future, what's the reason that you have so much faith in me?'
His wife gave him a very simple reply. She said, 'When a piece of land is not suitable for planting wheat, we could try planting beans. If the beans are not growing well, we could try planting fruits or gourds. If the vegetation is not economical, we can instead scatter buckwheat seeds. These seeds will one day bloom into flowers. On this land itself, there will be one seed that will germinate and grow.'
After having listened to the wife's explanation, he cried. His wife's faith, love, patience, and persistence in him is liken to the one seed in the land. This is the seed that persists and creates the miracle on this piece of land.
"In this world, there's no one person who is useless. It is just that they have not positioned themselves firmly in right place"
Having read this story, pls do not ignore it. Share it and you will find yourself very happy and be blessed.
8 advices to share herein.
1. When we do not value things, a mountain of gold will not bring us happiness
2. When we are not tolerant, no matter how many friends we have, they will soon leave us.
3. When we have no gratitude, no matter how excellent we are, we would always have difficulties & discontentment in success.
4. When we don't put ourselves into actions, no matter how smart we are, we will never realize our dreams.
5. When we don't cooperate with others, no matter how hard we've worked, we couldn't make it big on our own
6. When we don't know about savings, no matter how rich we strike, we couldn't be wealthy.
7. When we don't know how to be contented, even how wealthy we are, we are still not blissful.
8. When we don't understand wellness, any advanced medical treatment will not bring longevity.
Hopefully the above had brought true meaning to your mind and soul
रविवार, 26 अप्रैल 2015
भस्मासुर
एक जंगली बकरी के पीछे शिकारी कुत्ते दौड़े। बकरी जान बचाकर अंगूरों की झाड़ीमें घुस गयी। कुत्ते आगे निकल गए। बकरी ने निश्चिंतापूर्वक अँगूर की बेले खानी शुरु कर दी और जमीन से लेकर अपनी गर्दन पहुचे उतनी दूरी तक के सारे पत्ते खा लिए। पत्ते झाडी में नही रहे। छिपने का सहारा समाप्त् हो जाने पर कुत्तो ने उसे देख लिया और मार डाला !!
सहारा देने वाले को जो नष्ट करता है , उसकी ऐसी ही दुर्गति होती है।
मनुष्य भी आज सहारा देने वाले पेड़ पौधो, जानवर, गाय, पर्वतो आदि को नुकसान पंहुचा रहा है और इन सभी का परिणाम भी अनेक आपदाओ के रूप में भोग रहा है।
गुरुवार, 23 अप्रैल 2015
जीवन के लिए खर्च
" पिज़्ज़ा या खुशियाँ "
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पत्नी ने कहा - आज धोने के लिए ज्यादा कपड़े मत
निकालना…
पति - क्यों?
उसने कहा..- अपनी काम वाली बाई दो दिन नहीं आएगी…
पति- क्यों?
पत्नी - गणपति के लिए अपने नाती से मिलने बेटी के यहाँ जा रही है, बोली थी…
पति - ठीक है, अधिक कपड़े नहीं निकालता…
पत्नी - और हाँ!!! गणपति के लिए पाँच सौ रूपए दे दूँ
उसे? त्यौहार का बोनस..
पति - क्यों? अभी दिवाली आ ही रही है, तब दे देंगे…
पत्नी - अरे नहीं बाबा!! गरीब है बेचारी, बेटी - नाती के यहाँ जा रही है, तो उसे भी अच्छा लगेगा … और इस महँगाई के दौर में उसकी पगार से त्यौहार कैसे मनाएगी बेचारी!!
पति - तुम भी ना… जरूरत से ज्यादा ही भावुक हो जाती हो …
पत्नी - अरे नहीं… चिंता मत करो… मैं आज का पिज़्ज़ा खाने का कार्यक्रम रद्द कर देती हूँ…
खामख्वाह पाँच सौ रूपए उड़ जाएँगे, बासी पाव के उन आठ टुकड़ों के पीछे…
पति - वाह, वाह … क्या कहने !! हमारे मुँह से पिज़्ज़ा छीनकर बाई की थाली में !
तीन दिन बाद …
पोंछा लगाती हुई कामवाली बाई
से पति ने पूछा ...
पति - क्या बाई, कैसी रही छुट्टी?
बाई - बहुत बढ़िया हुई साहब … दीदी ने पाँच सौ रूपए दिए थे ना .. त्यौहार का बोनस ..
पति - तो जा आई बेटी के यहाँ … मिल ली अपने नाती से … ?
बाई - हाँ साब … मजा आया, दो दिन में 500 रूपए खर्च कर दिए …
पति - अच्छा !! मतलब क्या किया 500 रूपए का?
बाई - नाती के लिए 150 रूपए का शर्ट, 40 रूपए की गुड़िया, बेटी को 50 रूपए के पेढे लिए, 50 रूपए के पेढे मंदिर में प्रसाद चढ़ाया, 60 रूपए किराए के लग गए.. 25 रूपए की चूड़ियाँ बेटी के लिए और जमाई के लिए
50 रूपए का बेल्ट लिया अच्छा सा … बचे हुए 75 रूपए
नाती को दे दिए कॉपी - पेन्सिल खरीदने के लिए …
झाड़ू - पोंछा करते हुए पूरा हिसाब उसकी ज़बान पर
रटा हुआ था…
पति - 500 रूपए में इतना कुछ...???
वह आश्चर्य से मन ही मन विचार करने लगा ... उसकी
आँखों के सामने आठ टुकड़े किया हुआ बड़ा सा पिज़्ज़ा घूमने लगा, एक-एक टुकड़ा उसके दिमाग में हथौड़ा मारने लगा … अपने एक पिज़्ज़ा के खर्च की तुलना वह कामवाली बाई के त्यौहारी खर्च से करने
लगा …
पहला टुकड़ा बच्चे की ड्रेस का, दूसरा टुकड़ा पेढे का,
तीसरा टुकड़ा मंदिर का प्रसाद, चौथा किराए का,
पाँचवाँ गुड़िया का,
छठवां टुकड़ा चूडियों का, सातवाँ जमाई के बेल्ट का और आठवाँ टुकड़ा बच्चे की कॉपी - पेन्सिल का ... आज तक उसने
हमेशा पिज़्ज़ा की एक ही बाजू देखी थी, कभी पलटाकर नहीं देखा था कि पिज़्ज़ा पीछे से कैसा दिखता है …
लेकिन आज कामवाली बाई ने उसे पिज़्ज़ा की दूसरी बाजू दिखा दी थी …
पिज़्ज़ा के आठ टुकड़े उसे जीवन का अर्थ समझा गए थे …
“जीवन के लिए खर्च” या “खर्च के लिए जीवन” का नवीन अर्थ एक झटके में उसे समझ आ
गया…'