शनिवार, 30 सितंबर 2017

Smart Work is better than Hard Work

           गाँव में मोहन नाम का एक गरीब लड़का रहता था।
           मोहन बहुत मेहनती था लेकिन थोड़ा कम पढ़ा लिखा होने की वजह से उसे कोई नौकरी नहीं मिल पा रही थी।
           एक दिन भटकता हुआ लकड़ी के एक व्यापारी के पास पहुँचा ।         
          व्यापारी ने लड़के की दशा देखकर उसे जंगल से पेड़ कटाने का काम दिया ।
          नौकरी से मोहन बहुत उत्साहित था , वह जंगल गया और पहले ही दिन 18 पेड़ काट डाले। व्यापारी ने भी मोहन को शाबाशी दी।
         शाबाशी पाकर मोहन गदगद हो गया और अगले दिन और ज्यादा मेहनत से काम किया।
           लेकिन यह क्या?...
        वह केवल 15 पेड़ ही काट पाया।
         तीसरे दिन उसने और ज्यादा जोर लगाया लेकिन केवल 10 पेड़ ही काट सका।
         अब मोहन बड़ा दुखी हुआ लेकिन वह खुद नहीं समझ पा रहा था,क्योंकि       वह पहले से काम और मेहनत ज्यादा करता लेकिन पेड़ कम काट पाता।
        हारकर उसने व्यापारी से ही पूछा,"मैं सारा दिन मेहनत से काम करता हूँ लेकिन फिर भी क्यों पेड़ों की संख्या कम होती जा रही है?"
       व्यापारी ने पूछा,"तुमने अपनी *कुल्हाड़ी को धार* कब लगायी थी?"
       मोहन बोला,"धार! धार लगाने का समय ही नहीं बचता मैं तो सारे दिन पेड़ काटने में व्यस्त रहता हूँ शाम होते होते थककर पस्त हो जाता हूँ,खाना खाकर बिस्तर पर ऐसी नींद आती है जो सुबह ही खुलती है,और सुबह तो फिर वही *मैं,मेरी कुल्हाड़ी और पेड़।*"
    व्यापारी बोला,"बस इसीलिए तुम्हारी पेड़ों की संख्या दिन प्रतिदिन घटती जा रही है।
      यही बात हमारे जीवन पर भी लागू होती है न!

      हम रोज सुबह नौकरी पेशा करने जाते हैं,जम कर काम करते हैं लेकिन हम अपनी  *कुल्हाड़ी*  रूपी *Skills* को *Improve* नहीं करते हैं।
    हम जिंदगी जीने में इतने ज्यादा व्यस्त हो जाते हैं कि अपने शरीर को भी *कुल्हाड़ी* की तरह *धार* नहीं दे पाते और फलस्वरूप हम दुःखी रहते हैं।
       कठिन परिश्रम करना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन हमें ध्यान रखना होगा कि  *Smart Work is better than Hard Work*
     हम और आप अपने *Hard Work*को *Smart Work*

मंगलवार, 26 सितंबर 2017

दृढ़ इच्छाशक्ति

*दृढ़ इच्छाशक्ति*
             एक चिड़िया थी जिसका एक दाना पेड़ के कंदरे में कहीं फंस गया था...
           चिड़िया ने पेड़ से बहुत अनुरोध किया उस दाने को दे देने के लिए लेकिन पेड़ उस छोटी सी चिड़िया की बात भला कहां सुनने वाला था...
               हार कर चिड़िया *बढ़ई* के पास गई और उसने उससे अनुरोध किया कि तुम उस पेड़ को काट दो, क्योंकि वो उसका दाना नहीं दे रहा...
              भला! एक दाने के लिए बढ़ई पेड़ कहां काटने वाला था...
             फिर चिड़िया *राजा* के पास गई और उसने राजा से कहा कि तुम बढ़ई को सजा दो क्योंकि बढ़ई पेड़ नहीं काट रहा और पेड़ दाना नहीं दे रहा...
            राजा ने उस नन्हीं चिड़िया को डांट कर भगा दिया कि कहां एक दाने के लिए वो उस तक पहुंच गई है।
            चिड़िया हार नहीं मानने वाली थी...
           वह *महावत* के पास गई कि अगली बार राजा जब हाथी की पीठ पर बैठेगा तो तुम उसे गिरा देना, क्योंकि
राजा बढ़ई को सजा नहीं देता...
बढ़ई पेड़ नहीं काटता...
पेड़ उसका दाना नहीं देता...
        *महावत* ने भी चिड़िया को डपट कर भगा दिया...
        चिड़िया फिर *हाथी* के पास गई और उसने अपने अनुरोध को दुहराया कि अगली बार जब महावत तुम्हारी पीठ पर बैठे तो तुम उसे गिरा देना क्योंकि
वो राजा को गिराने को तैयार नहीं...
राजा बढ़ई को सजा देने को तैयार नहीं...
बढ़ई पेड़ काटने को तैयार नहीं...
पेड़ दाना देने को राजी नहीं।
हाथी बिगड़ गया...
उसने कहा, ऐ छोटी चिड़िया..
तू इतनी सी बात के लिए मुझे महावत और राजा को गिराने की बात सोच भी कैसे रही है?
चिड़िया आखिर में *चींटी* के पास गई और वही अनुरोध दोहराकर कहा कि तुम हाथी की सूंढ़ में घुस जाओ...
चींटी ने चिड़िया से कहा, "चल भाग यहां से...बड़ी आई हाथी की सूंढ़ में घुसने को बोलने वाली।
अब तक अनुरोध की मुद्रा में रही *चिड़िया ने रौद्र रूप धारण* कर लिया...उसने कहा कि "मैं चाहे पेड़, बढ़ई, राजा, महावत, और हाथी का कुछ न बिगाड़ पाऊं...पर तुझे तो अपनी चोंच में डाल कर खा ही सकती हूँ...
चींटी डर गई...भाग कर वह हाथी के पास गई...हाथी भागता हुआ महावत के पास पहुंचा...महावत राजा के पास कि हुजूर चिड़िया का काम कर दीजिए नहीं तो मैं आपको गिरा दूंगा....राजा ने फौरन बढ़ई को बुलाया...उससे कहा कि पेड़ काट दो नहीं तो सजा दूंगा...बढ़ई पेड़ के पास पहुंचा...बढ़ई को देखते ही पेड़ बिलबिला उठा कि मुझे मत काटो…मैं चिड़िया को दाना लौटा दूंगा...
*अंत में जीत चिड़िया की ही हुई।*
इसी तरह हमें भी अपनी ताकत को पहचानना होगा...
हमें पहचानना होगा कि भले ही हम छोटी सी चिड़िया की तरह होंगे, लेकिन ताकत की कड़ियां कहीं न कहीं हमसे होकर गुजरती होंगी...
हर सेर को सवा सेर मिल सकता है, बशर्ते हम अपनी लड़ाई से घबराएं नहीं...हम यदि किसी काम के पीछे पड़ जाएंगे तो वह *काम होकर रहेगा*

*यकीन करें..हर ताकत के आगे एक और ताकत होती है और अंत में सबसे ताकतवर हम होते हैं...*                                                    हिम्मत, लगन और पक्का इरादा ही हमारी ताकत की बुनियाद है..!!                                             
बड़े सपनो को पाने वाले हर व्यक्ति को *सफलता* और *असफलता* के कई पड़ावों से गुजरना पड़ता है जैसे कि   
  *पहले लोग मजाक*  
   *उड़ाएंगे*
  *फिर लोग साथ छोड़ेंगे*
  *फिर विरोध करेंगे*
और फिर वही लोग कहेंगे कि हम तो पहले से ही जानते थे कि *"एक न एक दिन तुम कुछ बड़ा करोगे!"*
रख हौंसला वो मंज़र भी आयेगा,
प्यासे के पास चलकर समंदर भी आयेगा..!
थक कर ना बैठ, ऐ मंजिल के मुसाफ़िर
मंजिल भी मिलेगी और जीने का मजा भी आयेगा!
         आप और हम *हिम्मत  लग्न और दृढ़ इच्छा शक्ति से मन्ज़िल को प्राप्त करें*

शनिवार, 16 सितंबर 2017

खुशी बांटना


एक आदमी ने दुकानदार से पूछा - केले और सेवफल क्या भाव लगाऐ हैं ? केले 20 रु.दर्जन और सेव 100 रु. किलो । उसी समय एक गरीब सी औरत दुकान में आयी और बोली मुझे एक किलो सेव और एक दर्जन केले चाहिये - क्या भाव है भैया ? दुकानदार: केले 5 रु दर्जन और सेब 25 रु किलो। औरत ने कहा जल्दी से दे दीजिये । दुकान में पहले से मौजूद ग्राहक ने खा जाने वाली निगाहों से घूरकर दुकानदार को देखा । इससे पहले कि वो कुछ कहता - दुकानदार ने ग्राहक को इशारा करते हुये थोड़ा सा इंतजार करने को कहा।

औरत खुशी खुशी खरीदारी करके दुकान से निकलते हुये बड़बड़ाई - हे भगवान  तेरा लाख- लाख शुक्र है , मेरे बच्चे फलों को खाकर बहुत खुश होंगे । औरत के जाने के बाद दुकानदार ने पहले से मौजूद ग्राहक की तरफ देखते हुये कहा : ईश्वर गवाह है भाई साहब ! मैंने आपको कोई धोखा देने की कोशिश नहीं की यह विधवा महिला है जो चार अनाथ बच्चों की मां है । किसी से भी किसी तरह की मदद लेने को तैयार नहीं है। मैंने कई बार कोशिश की है और हर बार नाकामी मिली है।तब मुझे यही तरीकीब सूझी है कि जब कभी ये आए तो  मै उसे कम से कम दाम लगाकर चीज़े दे दूँ। मैं यह चाहता हूँ कि उसका भरम बना रहे और उसे लगे कि वह किसी की मोहताज नहीं है। मैं इस तरह भगवान के बन्दों की पूजा कर लेता हूँ ।

थोड़ा रूक कर दुकानदार बोला : यह औरत हफ्ते में एक बार आती है। भगवान गवाह है जिस दिन यह आ जाती है उस दिन मेरी बिक्री बढ़ जाती है और उस दिन परमात्मा मुझपर मेहरबान होजाता है । ग्राहक की आंखों में आंसू आ गए, उसने आगे बढकर दुकानदार को गले लगा लिया और बिना किसी शिकायत के अपना सौदा खरीदकर खुशी खुशी चला गया ।

*कहानी का मर्म  :-*

*खुशी अगर बांटना चाहो तो तरीका भी मिल जाता है l*

शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

ताली एक हाथ से नहीं बजती

           ताली एक हाथ से नहीं बजती

एक बार गौतम बुद्ध किसी गांव में गए। वहां एक स्त्री ने उनसे पूछा कि आप तो किसी राजकुमार की तरह दिखते हैं, आपने युवावस्था में गेरुआ वस्त्र क्यों धारण किया हैं ?? बुद्ध ने उत्तर दिया कि मैंने तीन प्रश्नों के हल ढूंढने के लिए संन्यास लिया हैं l बुद्ध ने कहा- 'हमारा शरीर युवा और आकर्षक है, लेकिन यह वृद्ध होगा, फिर बीमार होगा और अंत में यह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा।

मुझे वृद्धावस्था, बीमारी और मृत्यु के कारण का ज्ञान प्राप्त करना है। 'बुद्ध की बात सुनकर स्त्री बहुत प्रभावित हो गई और उसने उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया। जैसे ही ये बात गांव के लोगों को मालूम हुई तो सभी ने बुद्ध से कहा कि वे उस स्त्री के यहां न जाए, क्योंकि वह स्त्री चरित्रहीन है। बुद्ध ने गांव के सरपंच से पूछा- 'क्या ये बात सही हैं ??' सरपंच ने भी गांव के लोगों की बात में सहमति जताई।

तब बुद्ध ने सरपंच का एक हाथ पकड़ कर कहा कि अब ताली बजाकर दिखाओ। इस पर सरपंच ने कहा कि यह असंभव है, एक हाथ से ताली नहीं बज सकती। बुद्ध ने कहा- 'ठीक इसी प्रकार कोई स्त्री अकेले ही चरित्रहीन नहीं हो सकती है। यदि इस गांव के पुरुष चरित्रहीन नहीं होते तो वह स्त्री भी चरित्रहीन नहीं होती।' गांव के सभी पुरुष बुद्ध की ये बात सुनकर शर्मिदा हो गए |

➡ *शिक्षा* ~
*ताली एक हाथ से नहीं बजती, अर्थात् कभी भी किसी भी व्यक्ति विशेष में निहित दुर्गुण किसी एक के कारण नहीं होते, उसके पीछे उसी के किसी सम्बन्धी व पडौसियों का भी हाथ होता हैं l अत: अकेले व्यक्ति पर कभी भी इस प्रकार से गलत आरोप लगाने से बचना चाहियें |

अनजाने कर्म का फल

अनजाने कर्म का फल

एक राजा ब्राह्मणों को लंगर में महल के आँगन में भोजन करा रहा था ।
राजा का रसोईया खुले आँगन में भोजन पका रहा था ।
उसी समय एक चील अपने पंजे में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के उपर से गुजरी ।
तब पँजों में दबे साँप ने अपनी आत्म-रक्षा में चील से बचने के लिए अपने फन से ज़हर निकाला ।
तब रसोईया जो लंगर ब्राह्मणो के लिए पका रहा था, उस लंगर में साँप के मुख से निकली जहर की कुछ बूँदें खाने में गिर गई ।
किसी को कुछ पता नहीं चला ।
फल-स्वरूप वह ब्राह्मण जो भोजन करने आये थे उन सब की जहरीला खाना खाते ही मौत हो गयी ।
अब जब राजा को सारे ब्राह्मणों की मृत्यु का पता चला तो ब्रह्म-हत्या होने से उसे बहुत दुख हुआ ।

ऐसे में अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना मुश्किल हो गया कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा .... ???
(1) राजा .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है ....
या
(2 ) रसोईया .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय वह जहरीला हो गया है ....
या
(3) वह चील .... जो जहरीला साँप लिए राजा के उपर से गुजरी ....
या
(4) वह साँप .... जिसने अपनी आत्म-रक्षा में ज़हर निकाला ....

बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका (Pending) रहा ....

फिर कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य मे आए और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा ।
उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया पर रास्ता बताने के साथ-साथ ब्राह्मणों से ये भी कह दिया कि "देखो भाई ....जरा ध्यान रखना .... वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में जहर देकर मार देता है ।"

बस जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे, उसी समय यमराज ने फैसला (decision) ले लिया कि उन मृत ब्राह्मणों की मृत्यु के पाप का फल इस महिला के खाते में जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा ।

यमराज के दूतों ने पूछा - प्रभु ऐसा क्यों ??
जब कि उन मृत ब्राह्मणों की हत्या में उस महिला की कोई भूमिका (role) भी नहीं थी ।
तब यमराज ने कहा - कि भाई देखो, जब कोई व्यक्ति पाप करता हैं तब उसे बड़ा आनन्द मिलता हैं । पर उन मृत ब्राह्मणों की हत्या से ना तो राजा को आनंद मिला .... ना ही उस रसोइया को आनंद मिला .... ना ही उस साँप को आनंद मिला .... और ना ही उस चील को आनंद मिला ।
पर उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के भाव से बखान कर उस महिला को जरूर आनन्द मिला । इसलिये राजा के उस अनजाने पाप-कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा ।

बस इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति जब किसी दूसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से (बुराई) करता हैं तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा उस बुराई करने वाले के खाते में भी डाल दिया जाता हैं ।

अक्सर हम जीवन में सोचते हैं कि हमने जीवन में ऐसा कोई पाप नहीं किया, फिर भी हमारे जीवन में इतना कष्ट क्यों आया .... ??

ये कष्ट और कहीं से नहीं, बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण उनके पाप-कर्मो से आया होता हैं जो बुराई करते ही हमारे खाते में ट्रांसफर हो जाता हैं ....

सौ का नोट

                    *सौ का नोट*

एक अँधा व्यक्ति रोज शाम को सड़क के किनारे खड़े होकर भीख माँगा करता था। जो थोड़े-बहुत पैसे मिल जाते उन्हीं से अपनी गुजर-बसर किया करता था।  एक शाम वहां से एक बहुत बड़े रईस गुजर रहे थे।  उन्होंने उस अंधे को देखा और उन्हें अंधे की फटेहाल होने पर बहुत दया आई l

और उन्होंने सौ रूपये का नोट उसके हाथ में रखते हुए आगे की राह ली। उस अंधे आदमी ने नोट को टटोलकर देखा और समझा कि किसी आदमी ने उसके साथ ठिठोली भरा मजाक किया है क्योंकि उसने सोचा कि अब तक उसे सिर्फ 5 रूपये तक के ही नोट मिला करते थे जो कि हाथ में पकड़ने पर सौ की नोट की अपेक्षा वह बहुत छोटा लगता था

और उसे लगा कि किसी ने सिर्फ कागज़ का टुकड़ा उसके हाथ में थमा दिया है और उसने नोट को खिन्न मन से कागज़ समझकर जमीन पर फेंक दिया। एक सज्जन पुरुष जो वहीँ खड़े ये दृश्य देख रहे थे, उन्होंने नोट को उठाया और अंधे व्यक्ति को देते हुए कहा- “यह सौ रूपये का नोट है! ” तब वह बहुत ही प्रसन्न हुआ और उसने अपनी आवश्यकताएं पूरी कीं।

*शिक्षा* ~
*ज्ञानचक्षुओं के अभाव में हम सब भी भगवान के अपार दान को देखकर यह समझ नहीं पाते और हमेशा यही कहते रहते हैं कि हमारे पास कुछ नहीं है, हमें कुछ नहीं मिला, हम साधनहीन हैं, पर यदि हमें जो नहीं मिला उन सबकी शिकायत करना छोड़कर, जो मिला है उसकी महत्ता को समझें तो हमें मालूम पड़ेगा कि जो हम सबको मिला है वो कम नहीं अद्भुत हैं |*

शनिवार, 2 सितंबर 2017

मन में बैर

*एक बार एक केकड़ा समुद्र किनारे अपनी मस्ती में चला जा रहा था और बीच बीच में रुक कर अपने पैरों के निशान देख कर खुश होता*
*आगे बढ़ता पैरों के निशान देखता और खुश होता,,,,,*
*इतने में एक लहर आई और उसके पैरों के सभी निशान मिट गये*
*इस पर केकड़े को बड़ा गुस्सा आया, उसने लहर से कहा*

*"ए लहर मैं तो तुझे अपना मित्र मानता था, पर ये तूने क्या किया ,मेरे बनाये सुंदर पैरों के निशानों को ही मिटा दिया*
*कैसी दोस्त हो तुम"*

*तब लहर बोली "वो देखो पीछे से मछुआरे पैरों के निशान देख कर केकड़ों को पकड़ने आ रहे हैं*
*हे मित्र, तुमको वो पकड़ न लें ,बस इसीलिए मैंने निशान मिटा दिए*

*ये सुनकर केकड़े की आँखों में आँसू आ गये*

*सच यही है, कई बार हम सामने वाले की बातों को समझ नहीं पाते और अपनी सोच अनुसार उसे गलत समझ लेते हैं*
*जबकि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं*
*अतः मन में बैर लाने से बेहतर है कि हम सोच समझ कर निष्कर्ष निकालें*

शनिवार, 26 अगस्त 2017

मांस का मूल्य

*मांस का मूल्य*

मगध सम्राट बिंन्दुसार ने एक बार अपनी सभा मे पूछा :
देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए *सबसे सस्ती वस्तु क्या है ?*
मंत्री परिषद् तथा अन्य सदस्य सोच में पड़ गये ! चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि तो बहुत श्रम के बाद मिलते हैं और वह भी तब, जब प्रकृति का प्रकोप न हो, ऎसी हालत में अन्न तो सस्ता हो ही नहीं सकता !

तब शिकार का शौक पालने वाले एक सामंत ने कहा :
राजन, *सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ मांस है,* इसे पाने मे मेहनत कम लगती है और पौष्टिक वस्तु खाने को मिल जाती है । सभी ने इस बात का समर्थन किया, लेकिन प्रधान मंत्री चाणक्य चुप थे ।
तब सम्राट ने उनसे पूछा : आपका इस बारे में क्या मत है ? चाणक्य ने कहा : मैं अपने विचार कल आपके समक्ष रखूंगा !

रात होने पर प्रधानमंत्री उस सामंत के महल पहुंचे, सामन्त ने द्वार खोला, इतनी रात गये प्रधानमंत्री को देखकर घबरा गया ।

प्रधानमंत्री ने कहा : शाम को महाराज एकाएक बीमार हो गये हैं, राजवैद्य ने कहा है कि किसी बड़े आदमी के हृदय का दो तोला मांस मिल जाए तो राजा के प्राण बच सकते हैं, इसलिए मैं आपके पास आपके हृदय का सिर्फ दो तोला मांस लेने आया हूं । इसके लिए आप एक लाख स्वर्ण मुद्रायें ले लें ।

यह सुनते ही सामंत के चेहरे का रंग उड़ गया, उसने प्रधानमंत्री के पैर पकड़ कर माफी मांगी और *उल्टे एक लाख स्वर्ण मुद्रायें देकर कहा कि इस धन से वह किसी और सामन्त के हृदय का मांस खरीद लें ।*
प्रधानमंत्री बारी-बारी सभी सामंतों, सेनाधिकारियों के यहां पहुंचे और *सभी से उनके हृदय का दो तोला मांस मांगा, लेकिन कोई भी राजी न हुआ, उल्टे सभी ने अपने बचाव के लिये प्रधानमंत्री को एक लाख, दो लाख, पांच लाख तक स्वर्ण मुद्रायें दीं ।*

इस प्रकार करीब दो करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का संग्रह कर प्रधानमंत्री सवेरा होने से पहले वापस अपने महल पहुंचे और समय पर राजसभा में प्रधानमंत्री ने राजा के समक्ष दो करोड़ स्वर्ण मुद्रायें रख दीं ।

सम्राट ने पूछा : यह सब क्या है ? तब प्रधानमंत्री ने बताया कि दो तोला मांस खरिदने के लिए *इतनी धनराशि इकट्ठी हो गई फिर भी दो तोला मांस नही मिला ।* राजन ! अब आप स्वयं विचार करें कि मांस कितना सस्ता है ?

जीवन अमूल्य है, हम यह न भूलें कि जिस तरह हमें अपनी जान प्यारी है, उसी तरह सभी जीवों को भी अपनी जान उतनी ही प्यारी है । किंतु अंतर बस इतना है कि मनुष्य अपने प्राण बचाने हेतु हर सम्भव प्रयास कर सकता है । बोलकर, रिझाकर, डराकर, रिश्वत देकर आदि आदि । *पशु न तो बोल सकते हैं, न ही अपनी व्यथा बता सकते हैं । तो क्या बस इसी कारण उनस जीने का अधिकार छीन लिया जाय ।*

हिन्दू धर्म के अनुसार हर किसी को स्वेच्छा से जीने का अधिकार है, प्राणी मात्र की रक्षा हमारा धर्म है..!

*शुद्ध आहार, शाकाहार !*
*मानव आहार, शाकाहार !*

तीन कसौटियाँ

                      *तीन कसौटियाँ*

प्राचीन यूनान में सुकरात अपने ज्ञान और विद्वता के लिए बहुत प्रसिद्ध था। सुकरात के पास एक दिन उसका एक परिचित व्यक्ति आया और बोला, “मैंने आपके एक मित्र के बारे में कुछ सुना है।” यह सुनते ही सुकरात ने कहा, “दो पल रूकों” l “मुझे कुछ बताने से पहले मैं चाहता हूँ कि हम एक छोटा सा परीक्षण कर लें जिसे मैं ‘तीन कसौटियों का परीक्षण’ कहता हूँ।” “तीन कसौटियाँ ?? कैसी कसौटियाँ ??”, परिचित ने पूछा।

“हाँ”, सुकरात ने कहा, “मुझे मेरे मित्र के बारे में कुछ बताने से पहले हमें यह तय कर लेना चाहिए कि आप कैसी बात कहने जा रहे हैं, इसलिए किसी भी बात को जानने से पहले मैं इन कसौटियों से परीक्षण करता हूँ। इसमें पहली कसौटी सत्य की कसौटी है। क्या आप सौ फीसदी दावे से यह कह सकते हो कि जो बात आप मुझे बताने जा रहे हो वह पूर्णतः सत्य हैं ??

“नहीं”, परिचित ने कहा, “दरअसल मैंने सुना है कि…” “ठीक है”, सुकरात ने कहा, “इसका अर्थ यह है कि आप आश्वस्त नहीं हो कि वह बात पूर्णतः सत्य है। चलिए, अब दूसरी कसौटी का प्रयोग करते हैं जिसे मैं अच्छाई की कसौटी कहता हूँ। मेरे मित्र के बारे में आप जो भी बताने जा रहे हो क्या उसमें कोई अच्छी बात हैं ??

“नहीं, बल्कि वह तो…”, परिचित ने कहा. “अच्छा”, सुकरात ने कहा, “इसका मतलब यह है कि आप मुझे जो कुछ सुनाने वाले थे उसमें कोई भलाई की बात नहीं है और आप यह भी नहीं जानते कि वह सच है या झूठ। लेकिन हमें अभी भी आस नहीं खोनी चाहिए क्योंकि आखिरी यानि तीसरी कसौटी का एक परीक्षण अभी बचा हुआ है; और वह है उपयोगिता की कसौटी।

जो बात आप मुझे बतानेवाले थे, क्या वह मेरे किसी काम की हैं ??” “नहीं, ऐसा तो नहीं है”, परिचित ने असहज होते हुए कहा। “बस, हो गया”, सुकरात ने कहा, “जो बात आप मुझे बतानेवाले थे वह न तो सत्य है, न ही भली है, और न ही मेरे काम की है, तो मैं उसे जानने में अपना कीमती समय क्यों नष्ट करूं ??”

➡ *शिक्षा* ~
*दोस्तों आज के नकारात्मक परिवेश में हमें अक्सर ऐसे लोगों से पाला पड़ता है जो हमेशा किसी न किसी की बुराईयों का ग्रन्थ लेकर घूमते रहते हैं, और हमारे बीच मतभेद पैदा करने की कोशिश करते रहते हैं,  इनसे निबटने के लिए सुकरात द्वारा बताई गयी इन तीन कसौटियों, सत्य, अच्छाई और उपयोगिता की कसौटियों को आप भी अपने जीवन में अपनाकर अपना जीवन सरल और खुशहाल बना सकते हैं ll*

            

गुरुवार, 10 अगस्त 2017

मोह-माया

एक सेठ और सेठानी रोज प्रवचन सुनने में जाते थे सेठजी के घर एक पिंजरे में तोता पला हुआ था। तोता एक दिन पूछता हैं कि सेठजी आप रोज कहाँ जाते है?
सेठजी बोले कि प्रवचन में ज्ञान सुनने जाते है तोता कहता है, सेठजी संत महाराजजी से एक बात पूछना कि मैं आजाद कब होऊंगा सेठजी प्रवचन समाप्त होने के पश्चात महाराजजी से पूछते है कि महाराज हमारे घर पे एक तोता है उसने पूछा है कि वो आजाद कब होगा........?
महाराज जी ऐसा सुनते हीं बेहोश होकर गिर जाते है। सेठजी महाराज जी की हालत देख कर चुप-चाप वहाँ से निकल जाते है। घर आते ही तोता सेठजी से पूछता है कि सेठजी महाराज जी ने क्या कहा। सेठजी कहते है कि तेरी किस्मत ही खराब है जो तेरी आजादी की बात पूछते ही वो बेहोश हो गए। तोता कहता है कोई बात नही सेठजी मै सब समझ गया।
दूसरे दिन सेठजी प्रवचन में जाने लगते है तब तोता पिंजरे में जानबूझ कर बेहोश होकर गिर जाता है सेठजी उसे मरा हुआ मानकर जैसे ही उसे पिंजरे से बाहर निकालते है, तो वो उड़ जाता है।
प्रवचन को जाते ही महाराज जी सेठजी से पूछते है कि कल आप उस तोते के बारे में पूछ रहे थे ना,अब वो कहाँ हैं। सेठजी कहते हैं, हाँ महाराज आज सुबह-सुबह वो जानबूझ कर बेहोश हो गया , मैंने देखा कि वो मर गया है इसलिये मैंने उसे जैसे ही बाहर निकाला तो वो उड़ गया।
तब महाराज ने सेठजी से कहा की देखो तुम इतने समय से प्रवचन सुनकर भी आज तक संसारिक मोह-माया के पिंजरे में फंसे हुए हो और उस तोते को देखो बिना प्रवचन में आये मेरा एक इशारा समझ कर आजाद हो गया। इस कहानी से
तात्पर्य :- ये है कि हम प्रवचन में तो जाते हैं ज्ञान की बाते करते हैं या सुनते भी हैं, पर हमारा मन हमेशा संसारिक बातों में हीं उलझा रहता हैं। प्रवचन में भी हम सिर्फ उन बातों को पसंद करते है जिसमें हमारा स्वार्थ सिद्ध होता हैं जबकि प्रवचन जाकर हमें सत्य को स्वीकार कर सभी बातों को महत्व देना चाहिये और जिस असत्य, झूठ और अहंकार को हम धारण किये हुए हैं उसे साहस के साथ मन से उतार कर सत्य को स्वीकार करना चाहिए ।
नही तो हमारी स्थिति
" पढ़ पढ़ के पंडित भये , ज्ञानी भये अपार।
आत्मज्ञान की खबर नही सब नकटी का श्रृंगार।।