भगवान का अस्तित्व –
एक बार एक व्यक्ति नाई की दुकान पर अपने बाल कटवाने गया। नाई और उस व्यक्ति के बीच में ऐसे ही बातें शुरू हो गई और वे लोग बातें करते-करते “भगवान” के विषय पर बातें करने लगे।
तभी नाई ने कहा – “मैं भगवान के अस्तित्व को नहीं मानता और इसीलिए तुम मुझे नास्तिक भी कह सकते हो”
“तुम ऐसा क्यों कह रहे हो” व्यक्ति ने पूछा।
नाई ने कहा – “बाहर जब तुम सड़क पर जाओगे तो तुम समझ जाओगे कि भगवान का अस्तित्व नहीं है। अगर भगवान होते, तो क्या इतने सारे लोग भूखे मरते? क्या इतने सारे लोग बीमार होते? क्या दुनिया में इतनी हिंसा होती? क्या कष्ट या पीड़ा होती? मैं ऐसे निर्दयी ईश्वर की कल्पना नहीं कर सकता जो इन सब की अनुमति दे”
व्यक्ति ने थोड़ा सोचा लेकिन वह वाद-विवाद नहीं करना चाहता था इसलिए चुप रहा और नाई की बातें सुनता रहा।
नाई ने अपना काम खत्म किया और वह व्यक्ति नाई को पैसे देकर दुकान से बाहर आ गया। वह जैसे ही नाई की दुकान से निकला, उसने सड़क पर एक लम्बे-घने बालों वाले एक व्यक्ति को देखा जिसकी दाढ़ी भी बढ़ी हुई थी और ऐसा लगता था शायद उसने कई महीनों तक अपने बाल नहीं कटवाए थे।
वह व्यक्ति वापस मुड़कर नाई की दुकान में दुबारा घुसा और उसने नाई से कहा – “क्या तुम्हें पता है? नाइयों का अस्तित्व नहीं होता”
नाई ने कहा – “तुम कैसी बेकार बातें कर रहे हो? क्या तुम्हे मैं दिखाई नहीं दे रहा? मैं यहाँ हूँ और मैं एक नाई हूँ। और मैंने अभी अभी तुम्हारे बाल काटे है|”
व्यक्ति ने कहा – “नहीं ! नाई नहीं होते हैं। अगर होते तो क्या बाहर उस व्यक्ति के जैसे कोई भी लम्बे बाल व बढ़ी हुई दाढ़ी वाला होता?”
नाई ने कहा – “अगर वह व्यक्ति किसी नाई के पास बाल कटवाने जाएगा ही नहीं तो नाई कैसे उसके बाल काटेगा?”
व्यक्ति ने कहा – “तुम बिल्कुल सही कह रहे हो, यही बात है। भगवान भी होते है लेकिन कुछ लोग भगवान पर विश्वास ही नहीं करते तो भगवान उनकी सहायता करेगा कैसे
विश्वास ही सत्य है जो लोग भगवान् पर विश्वास करते है उन्हें उसकी अनिभूति हर पल होती है और और जो विश्वास नहीं करते उनके लिए वो कंही भी नहीं है।
रविवार, 9 अक्टूबर 2016
विश्वास ही सत्य है
वाणी
*"वाणी"*
वन-विहार के लिये आये हुये राजा का जहाँ पड़ाव था, उसी के पास एक कुएँ पर एक अन्धा
यात्रियों को कुएँ से निकालकर जल पिलाया करता था।
राजा को प्यास लगी। उसने अपने सिपाही को पानी लाने भेजा।
सिपाही वहाँ जाकर बोला- ‘‘ओ रे अन्धे एक लोटा जल इधर दे।”
सूरदास ने कहा- ‘‘जा भाग तुझ जैसे मूर्ख नौकर को पानी नहीं देता।”
सिपाही खीझ कर वापस लौट गया।
अब प्रधान सेनापति स्वयं वहाँ पहुँचे और कहा- ‘‘अन्धे भाई एक लोटा जल शीघ्रता से दे दो।” अन्धे ने उत्तर दिया- ‘‘कपटी मीठा बोलता है, लगता है पहले वाले का सरदार है। मेरे पास तेरे लिये पानी नहीं।”
दोनों ने राजा से शिकायत की, महाराज बुड्ढा पानी नहीं देता।
राजा उन दोनों को लेकर स्वयं वहाँ पहुँचा और नमस्कार कर कहा- ‘‘बाबा जी! प्यास से गला सूख रहा है, थोड़ा जल दें, तो प्यास बुझायें।”
अन्धे ने कहा- ‘‘महाराज! बैठिये अभी जल पिलाता हूँ।”
राजा ने पूछा- ‘‘महात्मन्! आपने चक्षुहीन होकर भी यह कैसे जाना कि एक नौकर, दूसरा सरदार और मैं राजा हूँ।”
बुड्ढे ने हँसकर कहा- ‘‘महाराज! व्यक्ति का वजन वाणी से पता चल जाता है, उसके लिये आँखों की कोई आवश्यकता नहीं।”
✍मंथन✍
सोमवार, 26 सितंबर 2016
दो उपाय
एक कार कंपनी में ऑटोमोबाइल इंजिनियर ने एक वर्ल्ड क्लास कार डिज़ाइन की। कंपनी के मालिक ने कार की डिजाईन बेहद पसंद की और इंजिनियर की खूब तारीफ की।
जब पहली कार की टेस्टिंग होनी थी तो कार को फैक्ट्री से निकालते समय उसे अहसास हुआ कि कार शटर से बाहर निकल ही नहीं सकती थी, क्योंकि कार की ऊंचाई गेट से कुछ इंच ज़्यादा थी। इंजिनियर को निराशा हुई कि उसने इस बात का ख्याल क्यों नहीं किया।
इसके दो उपाय सूझे:
पहला, कार को बाहर निकालते समय गेट की छतसे टकराने के कारण जो कुछ बम्प, स्क्रैच आदि आएं, उन्हें बाहर निकलने के बाद रिपेयर किया जाये। पेंटिंग सेक्शन इंजिनियर ने भी सहमति दे दी, हालाँकि उसे शक था कि कार की खूबसूरती वैसी ही बरक़रार रहेगी।
कंपनी के जनरल मैनेजर ने सलाह दी कि गेट का शटर हटाकर गेट के ऊपरी हिस्से को तोड़ दिया जाय। कार निकलने के पश्चात गेट को रिपेयर करा लेंगे।
यह बात कंपनी का गार्ड सुन रहा था। उसने झिझकते हुए कहा कि अगर आप मुंझे मौका दें तो शायद मैं कुछ हल निकाल सकूँ। मालिक ने बेमन से उसे स्वीकृति दी।
गार्ड ने चारों पहियों की हवा निकाल दी, जिससे कार की ऊंचाई 3-4 इंच कम हो गयी और कार बड़े आराम से बाहर निकल गयी।
Bottomline:
किसी भी समस्या को हमेशा एक्सपर्ट की तरह ही न देखें। एक आम आदमी की तरह भी समस्या का बढ़िया हल निकल सकता है।
ज़िन्दगी के लिए इस कहानी से सबक:
"कभी कभी किसी दोस्त के घर का दरवाजा हमें छोटा लगने लगता है, क्योंकि हम अपने आपको ऊँचा समझते हैं। अगर हम अपने दिमाग से थोड़ी सी हवा (ईगो) निकाल देवें, तो आसानी से हम अंदर जा सकते हैं। ज़िन्दगी सरलता का ही दूसरा नाम है।"
रविवार, 25 सितंबर 2016
ठाकुर जी की सेवा .
ठाकुर जी की सेवा
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एक सासु माँ और बहू थी।
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सासु माँ हर रोज ठाकुर जी की पूरे नियम और श्रद्धा के साथ सेवा करती थी।
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एक दिन शरद रितु मेँ सासु माँ को किसी कारण वश शहर से बाहर जाना पडा।
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सासु माँ ने विचार किया के ठाकुर जी को साथ ले जाने से रास्ते मेँ उनकी सेवा-पूजा नियम से नहीँ हो सकेँगी।
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सासु माँ ने विचार किया के ठाकुर जी की सेवा का कार्य अब बहु को देना पड़ेगा लेकिन बहु को तो कोई अक्कल है ही नहीँ के ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी हैँ।
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सासु माँ ने बहु ने बुलाया ओर समझाया के ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है।
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कैसे ठाकुर जी को लाड लडाना है।
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सासु माँ ने बहु को समझाया के बहु मैँ यात्रा पर जा रही हूँ और अब ठाकुर जी की सेवा पूजा का सारा कार्य तुमको करना है।
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सासु माँ ने बहु को समझाया देख ऐसे तीन बार घंटी बजाकर सुबह ठाकुर जी को जगाना।
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फिर ठाकुर जी को मंगल भोग कराना।
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फिर ठाकुर जी स्नान करवाना।
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ठाकुर जी को कपड़े पहनाना।
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फिर ठाकुर जी का श्रृंगार करना ओर फिर ठाकुर जी को दर्पण दिखाना।
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दर्पण मेँ ठाकुर जी का हंसता हुआ मुख देखना बाद मेँ ठाकुर जी को राजभोग लगाना।
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इस तरह सासु माँ बहु को सारे सेवा नियम समझाकर यात्रा पर चली गई।
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अब बहु ने ठाकुर जी की सेवा कार्य उसी प्रकार शुरु किया जैसा सासु माँ ने समझाया था।
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ठाकुर जी को जगाया नहलाया कपड़े पहनाये श्रृंगार किया और दर्पण दिखाया।
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सासु माँ ने कहा था की दर्पण मेँ ठाकुर जी को हंसता हुआ देखकर ही राजभोग लगाना।
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दर्पण मेँ ठाकुर जी का हंसता हुआ मुख ना देखकर बहु को बड़ा आश्चर्य हुआ।
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बहु ने विचार किया शायद मुझसे सेवा मेँ कही कोई गलती हो गई हैँ तभी दर्पण मे ठाकुर जी का हंसता हुआ मुख नहीँ दिख रहा।
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बहु ने फिर से ठाकुर जी को नहलाया श्रृंगार किया दर्पण दिखाया।
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लेकिन ठाकुर जी का हंसता हुआ मुख नहीँ दिखा।
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बहु ने फिर विचार किया की शायद फिर से कुछ गलती हो गई।
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बहु ने फिर से ठाकुर जी को नहलाया श्रृंगार किया दर्पण दिखाया।
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जब ठाकुर जी का हंसता हुआ मुख नही दिखा बहु ने फिर से ठाकुर जी को नहलाया ।
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ऐसे करते करते बहु ने ठाकुर जी को 12 बार स्नान किया।
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हर बार दर्पण दिखाया मगर ठाकुर जी का हंसता हुआ मुख नहीँ दिखा।
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अब बहु ने 13वी बार फिर से ठाकुर जी को नहलाने की तैयारी की।
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अब ठाकुर जी ने विचार किया की जो इसको हंसता हुआ मुख नहीँ दिखा तो ये तो आज पूरा दिन नहलाती रहेगी।
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अब बहु ने ठाकुर जी को नहलाया कपड़े पहनाये श्रृंगार किया और दर्पण दिखाया।
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अब बहु ने जैसे ही ठाकुर जी को दर्पण दिखाया तो ठाकुर जी अपनी मनमोहनी मंद मंद मुस्कान से हंसे।
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बहु को संतोष हुआ की अब ठाकुर जी ने मेरी सेवा स्वीकार करी।
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अब यह रोज का नियम बन गया ठाकुर जी रोज हंसते।
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सेवा करते करते अब तो ऐसा हो गया के बहु जब भी ठाकुर जी के कमरे मेँ जाती बहु को देखकर ठाकुर जी हँसने लगते।
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कुछ समय बाद सासु माँ वापस आ गई।
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सासु माँ ने ठाकुर जी से कहा की प्रभु क्षमा करना अगर बहु से आपकी सेवा मेँ कोई कमी रह गई हो तो अब मैँ आ गई हूँ आपकी सेवा पूजा बड़े ध्यान से करुंगी।
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तभी सासु माँ ने देखा की ठाकुर जी हंसे और बोले की मैय्या आपकी सेवा भाव मेँ कोई कमी नहीँ हैँ
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आप बहुत सुंदर सेवा करती हैँ लेकिन मैय्या दर्पण दिखाने की सेवा तो आपकी बहु से ही करवानी है इस बहाने मेँ हँस तो लेता हूँ।
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दो भक्त
एक बार एक संत ने अपने दो
भक्तों को बुलाया और कहा आप
को यहाँ से पचास कोस जाना है।
एक भक्त को एक बोरी खाने के
समान से भर कर दी और कहा जो
लायक मिले उसे देते जाना
और एक को ख़ाली बोरी दी उससे
कहा रास्ते मे जो उसे अच्छा मिले
उसे बोरी मे भर कर ले जाए।
दोनो निकल पड़े जिसके कंधे पर
समान था वो धीरे चल पा रहा था
ख़ाली बोरी वाला भक्त आराम से
जा रहा था
थोड़ी दूर उसको एक सोने की ईंट
मिली उसने उसे बोरी मे डाल
लिया
थोड़ी दूर चला फिर ईंट मिली उसे
भी उठा लिया
जैसे जैसे चलता गया उसे सोना
मिलता गया और वो बोरी मे भरता
हुआ चल रहा था
और बोरी का वज़न। बड़ता गया
उसका चलना मुश्किल होता गया
और साँस भी चढ़ने लग गई
एक एक क़दम मुश्किल होता
गया ।
दूसरा भक्त जैसे जैसे चलता गया
रास्ते मै जो भी मिलता उसको
बोरी मे से खाने का कुछ समान
देता गया धीरे धीरे बोरी का वज़न
कम होता गया
और उसका चलना आसान होता
गया।
जो बाँटता गया उसका मंज़िल
तक पहुँचना आसान होता गया
जो ईकठा करता रहा वो रास्ते मे
ही दम तोड़ गया
दिल से सोचना हमने जीवन मे
क्या बाँटा और क्या इकट्ठा किया
हम मंज़िल तक कैसे पहुँच पाएँगे।
जिन्दगी का कडवा सच...
आप को 60 साल की उम्र के बाद
कोई यह नहीं पूछेंगा कि आप का
बैंक बैलेन्स कितना है या आप के
पास कितनी गाड़ियाँ हैं....?
दो ही प्रश्न पूछे जाएंगे ...
1-आप का स्वास्थ्य कैसा है.....?
और
2-आप के बच्चे क्या करते हैं....?
शनिवार, 24 सितंबर 2016
अंधश्रद्धा
पापा पापा धरती किसने बनाई?
बेटा भगवान ने बनाई।
आसमान किसने बनाया?
भगवान ने।
सितारे किसने बनाए?
भगवान ने।
हमें किसने बनाया?
भगवान ने।
पेड़-पौधे कैसे उगते है?
भगवान की मर्जी से।
लोग कैसे मरते है?
भगवान की मर्जी से।
लोग पैदा कैसे होते है?
भगवान की मर्जी से।
रोशनी कैसे मिलती है?
भगवान की कृपा से।
अँधेरा कैसे हो जाता है?
भगवान की इच्छा से।
बेटा इतने सवाल मत पूछो , इस धरती पर, ब्रह्माण्ड में जो भी कुछ होता है सब भगवान की मर्जी से
होता है।
एक दिन बच्चे के विज्ञान टीचर बच्चे के घर आते है। देखिये वर्मा जी, आपका बच्चा पढने में बहोत कमजोर है , पढ़ाई-लिखाई में ध्यान ही नहीं देता है।
टेस्ट में सवाल पूछा गया ,
बल्ब रौशनी कैसे देता है?
जवाब में लिखा, भगवान की मर्जी से।
टेलीफोन किसने बनाया?
भगवान ने बनाया।
धरती पर दिन और रात कैसे होते है?
भगवान की मर्जी से।
माफ़ कीजिये बताते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा लेकिन
आपका लड़का फेल हो गया है।
वर्मा जी ने गुस्से से कांपते हुए लड़के को बुलाया , डांटते हुए, क्यों बे? हमारे लाड-प्यार का नाजायज फायदा उठाता है, पढ़ाई-लिखाई में दिमाग क्यों
नहीं लगाता है? और दो तमाचे रसीद करते हुए बोले,
कमबख्त फेल हो जाएगा तो जिन्दगी में क्या करेगा?
और बेचारा बच्चा समझ ही नहीं पाया कि उससे
गलती कहाँ हुई?
काश! वर्मा जी ये समझ पाते कि बच्चे की जिज्ञासा को
अगर वो भगवान से तुष्ट न करते, तो बच्चा उन सवालों के जवाब विज्ञान में ढूंढता।
उस बच्चे की सारी कल्पनाएं , जिज्ञासाएं ,
खोजी प्रवृत्ति तो एक भगवान पर आकर ही खत्म हो
गयीं, भला इसमें उस बच्चे की क्या गलती
है जो उसे विज्ञान की समझ न आई ?
क्या आप भी चाहते है कि आपके बच्चे फ़ैल हो ?
नहीं ना ?
तो फिर आपके बच्चों को विज्ञान की कहानियां सुनाओ... देवी-देवता और भगवान की नहीं ! उन्हें विज्ञान का रहस्य समझाओ, जूठी-मुठी कहानिया नहीं।
उन्हें तर्क करना सिखाओ...
विज्ञान को धर्म बनाओ... आपका बच्चा अवश्य तरक्की करेगा।
अपना विकास स्वयं करो, आपका उद्धार आपको खुद ही करना होगा। कोई राम, कृष्ण, गणेश या हनुमान आपका उद्धार करने नहीं आनेवाले।
नेक बनो, तर्कशील बनो।
#अंधश्रद्धा भगाओ, देश बचाओ...
शुक्रवार, 23 सितंबर 2016
मैं ही कृष्ण मैं ही कंस।
मैं ही कृष्ण मैं ही कंस।
एक चित्रकार था, जो अद्धभुत चित्र बनाता था। लोग उसकी चित्रकारी की काफी तारीफ़ करते थे।
एक दिन कृष्ण मंदिर के भक्तों ने उनसे कृष्ण और कंस का एक चित्र बनाने की इच्छा प्रगट की। चित्रकार इसके लिये तैयार हो गया आखिर भगवान् का काम था, पर उसने कुछ शर्ते रखी।
उसने कहा मुझे योग्य पात्र चाहिए, अगर वे मिल जाए तो में आसानी से चित्र बना दूंगा। कृष्ण के चित्र लिए एक योग्य नटखट बालक और कंस के लिए एक क्रूर भाव वाला व्यक्ति लाकर दे तब मैं चित्र बनाकर दूंगा।
कृष्ण मंदिर के भक्त एक बालक ले आये, बालक सुन्दर था। चित्रकार ने उसे पसंद किया और उस बालक को सामने रख बालकृष्ण का एक सुंदर चित्र बनाया।
अब बारी कंस की थी पर क्रूर भाव वाले व्यक्ति को ढूंढना थोडा मुश्किल था। जो व्यक्ति कृष्ण मंदिर वालो को पसंद आता वो चित्रकार को पसंद
नहीं आता उसे वो भाव मिल नहीं रहे
थे... वक्त गुजरता गया।
आखिरकार थक-हार कर सालों बाद वो जेल में चित्रकार को ले गए, जहा उम्रकेद काट रहे अपराधी थे। उन अपराधियों में से एक को चित्रकार ने पसंद किया और उसे सामने रखकर उसने कंस का एक चित्र बनाया।
कृष्ण और कंस की वो तस्वीर आज
सालों के बाद पूर्ण हुई। कृष्ण मंदिर के भक्त वो तस्वीरे देखकर मंत्रमुग्ध हो गए।
उस अपराधी ने भी वह तस्वीरे देखने की इच्छा व्यक्त की। उस अपराधी ने जब वो तस्वीरे देखी तो वो फुट-फुटकर रोने लगा। सभी ये देख अचंभित हो गए।
चित्रकार ने उससे इसका कारण बड़े प्यार से पूछा। तब वह अपराधी बोला "शायद आपने मुझे पहचाना नहीं, मैं वो ही बच्चा हुँ जिसे सालों पहले आपने बालकृष्ण के चित्र के लिए पसंद किया था।
मेरे कुकर्मो से आज में कंस बन गया, इस तस्वीर में मैं ही कृष्ण मैं ही कंस हुँ।"
हमारे कर्म ही हमे अच्छा
और बुरा इंसान बनाते है।
रविवार, 18 सितंबर 2016
मार्गदर्शक
अच्छा मार्गदर्शक आपको मंजिल का रास्ता बता सकता है।
पर
मंजिल तो खुद की मेहनत से ही मिलती है।
सफलता केवल कल्पना करने वालों को नहीं मिलती है,
सफलता तो संकल्प लेकर धैर्य के साथ मेहनत करने वालो के साथ चलती है।
आपको गहरी प्यास लगी हो और दूर दूर तक वीराना हो, अचानक आपको किस्मत से एक तालाब दीखता है तो पानी पीने के लिए तालाब तक जाने की मेहनत तो आपको करनी पड़ेगी।
मेहनत रूपी चाबी को किस्मत रूपी ताले में डालते हुए सफलता का द्वार खोलते हमेशा बीते वक़्त आपका।
इच्छापूर्ति वॄक्ष
इच्छापूर्ति वॄक्ष
एक घने जंगल में एक इच्छापूर्ति वृक्ष था.. !!
उसके नीचे बैठ कर किसी भी चीज की इच्छा करने से वह तुरंत पूरी हो जाती थी .. !!
यह बात बहुत कम लोग जानते थे .. !!
क्योंकि उस घने जंगल में जाने की कोई हिम्मत ही नहीं करता था .. !!
*"एक बार संयोग से एक थका हुआ इंसान उस वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए बैठ गया"* .. !!
उसे पता ही नहीं चला, कि कब उसकी नींद लग गई .. !!
जब वह जागा तो उसे बहुत भूख लग रही थी .. !!
उसने आस पास देखकर सोचा .. *"काश कुछ खाने को मिल जाए"* .. !!
तत्काल स्वादिष्ट पकवानों से भरी थाली हवा में तैरती हुई उसके सामने आ गई .. !!
उस इंसान ने भरपेट खाना खाया .. !!
और भूख शांत होने के बाद सोचने लगा .. !!
*"काश कुछ पीने को मिल जाए"* .. !! तत्काल उसके सामने हवा में तैरते हुए कई तरह के शरबत आ गए .. !!
शरबत पीने के बाद वह आराम से बैठ कर सोचने लगा .. !!
हवा में से खाना और पानी प्रकट होते पहले न कभी देखा, न ही सुना .. !!
उसने सोचा *"जरूर इस पेड़ पर कोई भूत रहता है .. जो मुझे खिला पिला कर बाद में मुझे खा लेगा"* .. !!
ऐसा सोचते ही तत्काल उसके सामने एक भूत आया और उसे खा गया .. !!
इस प्रसंग से आप यह सीख सकते है .. !!
कि हमारा मस्तिष्क ही इच्छापूर्ति वृक्ष है, आप जिस चीज की प्रबल कामना करेंगे *"वह आपको अवश्य मिलेगी"* .. !!
अधिकांश लोगों को जीवन में बुरी चीजें इसलिए मिलती हैं .. !!
क्योंकि *"वह बुरी चीजों की ही कामना करते हैं"* .. !!
इंसान ज्यादातर समय सोचता है .. !!
*"कहीं बारिश में भीगने से मै बीमार न हों जाँऊ"* .. !!
और वह बीमार हो जाता हैं .. !!
इंसान सोचता है .. *"कहीं मुझे व्यापार में घाटा न हों जाए"* .. !!
और घाटा हो जाता हैं .. !!
इंसान सोचता है .. *"मेरी किस्मत ही खराब है"* .. !!
और उसकी किस्मत सचमुच खराब हो जाती हैं .. !!
इंसान सोचता है .. *"कहीं मेरा बाँस मुझे नौकरी से न निकाल दे"* .. !!
और बाँस उसे नौकरी से निकाल देता है .. !!
इस तरह आप देखेंगे .. कि आपका अवचेतन मन इच्छापूर्ति वृक्ष की तरह आपकी इच्छाओं को ईमानदारी से पूर्ण करता है .. !!
*"इसलिए आपको अपने मस्तिष्क में विचारों को सावधानी से प्रवेश करने की अनुमति देनी चाहिए"* .. !!
अगर गलत विचार अंदर आ जाएगें तो गलत परिणाम मिलेंगे .. !!
विचारों पर काबू रखना ही अपने जीवन पर काबू करने का रहस्य है .. !!
आपका जीवन *"स्वर्ग बनता है या नरक"* .. !!
*"यह आपके विचार / सोच के उपर निरभर करता है"* .. !!
उनकी ही बदौलत बनता है आपका जीवन .. *"सुखमय या दुख:मय"* .. !!
*"विचार जादूगर की तरह होते है"* .. !!
*"जिन्हें बदलकर आप अपना जीवन बदल सकते है"* .. !!
"जिनकी इच्छा शक्ति दृढ़ होती हैं .. !!
वे सांसारिक दौलत के नुकसान की कभी शिकायत नहीं करते" ..
गुरुवार, 15 सितंबर 2016
महत्वपूर्ण पाठ
एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ...
उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ...
उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ?
हाँ ... आवाज आई ...
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये धीरे - धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये ,
फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ ... कहा
अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे ...
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ .. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा ..
सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित
थोडी सी जगह में सोख ली गई ...
प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया
इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ....
टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं ,
छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और
रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..
अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी ...
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ...
यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ...
मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ...
टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ... पहले तय करो कि क्या जरूरी है ... बाकी सब तो रेत है ..
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे ..
अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ?
प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ...
इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिए।
(अगर अच्छा लगे तो अपने ख़ास मित्रों और निकटजनों को यह विचार तत्काल भेजें.... मैंने तो अभी-अभी यही किया है)
तरबूजे की कहानी
हिंदी दिवस विशेष :
तरबूजे की कहानी, रक्षा मंत्री मनोहर परिकर की जुबानी : जरूर पढ़िए
मैं गोवा के पर्रा गाँव का रहने वाला हू इसलिए हमको पर्रिकर बुलाया जाता है। मेरा गाँव तरबूज के लिए बड़ा प्रचिलित है । जब मैं छोटा था तो वहाँ के किसान तरबूज खाने की प्रतियोगिता करवाते थे। गाव के सभी बच्चो को वह बुलाया जाता था और जितना मन चाहे उतने तरबूज खाने की छूट थी। तरबूज का आकार बहुत बड़ा हुआ करता था ।
कुछ साल बाद मैं आई आई टी मुम्बई में इंजीनियरिंग करने आ गया और पुरे साढ़े 6 साल बाद अपने गाव पंहुचा। सबसे पहले मैं उस तरबूज के मार्केट की खोज में निकला मगर मुझे निराशा हाथ लगी । अब वहां ऐसा कुछ नहीं था और जो कुछ तरबूज थे भी वो बहुत छोटे थे ।
फिर मेरा मन किया की क्यों न उस किसान के घर चला जाये जो वह प्रतियोगिता करवाते थे। अब किसान के बेटे ने खेती अपने हाथ में ले लिया था और वो भी प्रतियोगिता करवाते थे मगर उसमे एक अंतर था ।
पुराने किसान ने प्रतियोगिता कराते समय हमसे ये कहा था की जब भी तरबूज खाओ उसके बीज एक जगह इकठ्ठा करने को कहा और एक भी बीज को दांत से दबाने के लिए मना किया और यही बीज वो अगली बार फसल बोने के लिए इस्तेमाल करते थे । असल में हमे तो पता ही नहीं था की हम बिना वेतन उनके बाल श्रमिक बन गए थे जिसमे दोनों का फायदा था । वह किसान अपने सबसे अच्छे तरबूजों को ही प्रतियोगिता में इस्तेमाल करते थे जिससे अगली बार और भी बड़े तरबूज उगाये जा सके ।
लेकिन जब किसान के बेटे ने अपने हाथ में बागडोर ले लिया तो उन्होंने ज्यादा पैसा कमाने के लिए सबसे बड़े और अच्छे तरबूजों को बेचना शुरू कर दिया और छोटे तरबूज प्रतियोगिता में रखे जाने लगे। धीरे धीरे तरबूज का आकर छोटा होता गया और 6 साल में पर्रा के अंदर अंदर सबसे अच्छे तरबूज ख़त्म हो गए।
मनुष्यो में नई पीढ़ी 25 साल में बदल जाती है और शायद हमे 200 साल लग जाये ये समझने में की हमने अपने बच्चो शिक्षा देने में कहा गलती कर दी । हिंदी हमारी संस्कृति है । आने वाली पीढ़ी को हिंदी जरूर पढ़ायें ।