शनिवार, 21 मार्च 2015

मोर पंख की कथा

मोर पंख की कथा
एक समय गोकुल में एक मोर रहता था
वह रोज़ जब कृष्ण भगवान आते और जाते तो उनके द्वार पर बैठा एक ही भजन गाता
"मेरा कोई ना सहारा बिना तेरे
गोपाल सांवरिया मेरे
माँ बाप सांवरिया मेरे"
वो इस तरहा रोज़ यही गुनगुनाता रहता
एक दिन हो गया 2 दिन हो गये
इसी तरहा 1 साल व्यतीत हो गया
परन्तु कृष्ण ने एक ना सुनी
तब वहा से एक मैना उडती जा रही थी
उसने मोर को रोता हुआ देखा और अचम्भा किया
उसे मोर के रोने पर अचम्भा नही हुआ ,उसे ये देख के अचम्भा हुआ की क्रष्ण के दर पर कोई रो रहा है

वो मोर से बोली
मैना: हे मोर तू क्यों रोता हैं
तो मोर ने बताया की
मोर :पिछले एक साल से में इस छलिये को रिझा रहा हु परन्तु इसने आज तक मुझे पानी भी नही पिलाया

ये सुन मैना बोली
मैना: में बरसना से आई हु
तू भी वहा चल
और वो दोनों उड़ चले और उड़ते उड़ते बरसाने पहुच गये
जब मैना वहा पहुची तो उसने गाना शुरू किया
श्री राधे राधे राधे बरसाने वाली राधे
परन्तु मोर तो बरसाने में आकर भी यही दोहरा रहा था 
मेरा कोई ना सहारा बिना तेरे
गोपाल सांवरिया मेरे
माँ बाप सांवरिया मेरे"
जब राधा ने ये सुना तो वो दोड़ी चली आई और मोर को गले लगा लिया
राधा: तू कहा से आया हैं
तो मोर ने बोला
मोर: जय हो राधा रानी आज तक सुना था की तू करुणामयी हो और आज साबित हो गया
राधा: वो कैसे
मोर: में पिछले 1 साल से श्याम नाम की बिन बजा रहा हु और उसने पानी भी नही पिलाया
राधा: ठीक हैं अब तुम गोकुल जाओ और यही रटो
जय राधे राधे राधे
बरसाने वाली राधे
मोर फिर गोकुल आता हैं और
गाता हैंजय राधे राधे....
जब कृष्ण ने ये सुना तो भागते हुए आये और बोले
कृष्ण : हे मोर तू कहा से आया हैं
मोर: वाह छलिये जब एक साल से तेरे नाम की बिन बजा रहा था तो पानी भी नही पूछा और जब आज party बदली तो भागता हुआ आगया
कृष्ण: अरे बातो में मत उलझा बात बता
मोर: में पिछले एक साल से तेरे द्वार पर यही गा रहा हु
मेरा कोई ना सहारा बिना तेरे
गोपाल सांवरिया मेरे
माँ बाप सांवरिया मेरे"
कृष्ण  : तूने  राधा का नाम लिया ये तेरा वरदान हैं
और मेने पानी नही पूछा ये मेरे लिए श्राप हैं
इसलिए जब तक ये स्रष्टि रहेगी तेरा पंख सदेव मेरे शीश पर विराजमान होगा
और जो राधा का नाम लेगा वो भी मेरे शीश पर रहेगा
जय हो मोर मुकुट बंशी वाले की

   राधे राधे

गुरुवार, 19 मार्च 2015

Dad loves you but Mother knows you..!

Cute story! 

There was a family with one kid.

One day the Mom was out and Dad was in charge of the kid.

Someone had given the kid a little 'tea set' as a birthday gift and it was one of his favorite toys.

Daddy was in the living room when the kid brought Daddy a little cup of 'tea', which was just water.

After several cups of tea and lots of praise from his Dad for such yummy tea, kid’s Mom came home.

Dad made her wait in the living room to watch the kid bring him a cup of tea, because it was 'just the cutest thing !!'

Mom waited, and sure enough, the kid comes down the hall with a cup of tea for Daddy and she watches him drink it up,

Then she says to him,
"Did it ever come to your mind that the only place that baby can reach to get water is the toilet comode ?"

MORAL : Dad loves you but Mother knows you..!

बुधवार, 18 मार्च 2015

वो पर्स

बड़े गुस्से से मैं घर से
चला आया ....
इतना गुस्सा था की गलती से पापा के
जूते पहने गए ....
मैं आज बस घर छोड़ दूंगा ....
और तभी लौटूंगा जब
बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा ...
जब मोटर साइकिल नहीं दिलवा सकते थे ,
तो क्यूँ इंजीनियर बनाने के सपने देखतें है .....
आज मैं पापा का पर्स भी उठा लाया था ....
जिसे किसी को हाथ तक न लगाने देते थे ...
मुझे पता है
जरुर
इस पर्स मैं जरुर पैसो के हिसाब
की डायरी होगी ....
पता तो चले कितना माल छुपाया है .....
माँ से भी ...
इसीलिए हाथ नहीं लगाने देते किसी को..
जैसे ही मैं कच्चे
रास्ते से सड़क पर आया ...
मुझे लगा जूतों में कुछ चुभ रहा है ....
मैंने जूता निकाल कर देखा .....
मेरी एडी से थोडा सा खून रिस आया था ...
जूते की कोई कील निकली हुयी थी दर्द तो हुआ
पर
गुस्सा बहुत था .....
और मुझे जाना ही था ...
घर छोड़कर ...
जैसे ही कुछ दूर चला ....
मुझे पांवो में गिला गिला लगा.....
सड़क पर पानी बिखरा पड़ा था ....
पाँव उठा के देखा तो जूते के तला टुटा था .....
जैसे तेसे
लंगडाकर बस स्टॉप पहुंचा .......
पता चला एक घंटे तक कोई
बस नहीं थी .....
मैंने सोचा ......
क्यों न पर्स
की तलाशी ली जाये ....
मैंने पर्स खोला ....
एक पर्ची दिखाई दी ......
लिखा था
लैपटॉप के लिए 40
हजार उधार लिए
पर लैपटॉप तो घर मैं मेरे पास है ?
दूसरा एक मुड़ा हुआ पन्ना देखा ........उसमे उनके
ऑफिस
की किसी हॉबी डे का लिखा था उन्होंने
हॉबी लिखी अच्छे जूते पहनना ......ओह....अच्छे जुते
पहनना ???
पर उनके जुते तो ...........!!!!
माँ पिछले चार
महीने से हर पहली को कहती है नए जुते ले लो ...
और वे हर बार कहते .....
अभी तो 6 महीने जूते और चलेंगे ..
मैं अब समझा कितने चलेंगे
......तीसरी पर्ची ..........
पुराना स्कूटर दीजिये एक्सचेंज में नयी मोटर
साइकिल
ले
जाइये ...
पढ़ते ही दिमाग घूम
गया.....
पापा का स्कूटर .............
ओह्ह्ह्ह
मैं घर की और
भागा........
अब पांवो मैं वो कील न चुभ
रही थी ....
मैं घर पहुंचा .....
न पापा थे न स्कूटर ..............
ओह्ह्ह नही
मैं समझ गया कहाँ गए ....
मैं दौड़ा .....
और
एजेंसी पर पहुंचा......
# पापा वहीँ थे ...............
मैंने उनको गले से लगा लिया ...
और आंसुओ से
उनका कन्धा भिगो दिया
.....नहीं...पापा नहीं........
मुझे नहीं चाहिए मोटर साइकिल.........
बस आप नए जुते ले
लो और
मुझे अब बड़ा आदमी बनना है
वो भी आपके तरीके से ......

      

मंगलवार, 17 मार्च 2015

चार पैर

एक भक्त था वह परमात्मा को बहुत मानता था,
बड़े प्रेम और भाव से उनकी सेवा
किया करता था ।

एक दिन भगवान से
कहने लगा –

मैं आपकी इतनी भक्ति करता हूँ पर आज तक मुझे आपकी अनुभूति नहीं हुई ।

मैं चाहता हूँ कि आप भले ही मुझे दर्शन ना दे पर ऐसा कुछ कीजिये की मुझे ये अनुभव हो की आप हो।

भगवान ने कहा ठीक है,
तुम रोज सुबह समुद्र के किनारे सैर पर जाते हो,
जब तुम रेत पर
चलोगे तो तुम्हे दो पैरो की जगह चार पैर दिखाई देंगे ।
दो तुम्हारे पैर होंगे और दो पैरो के निशान मेरे होंगे ।

इस तरह तुम्हे मेरी
अनुभूति होगी ।

अगले दिन वह सैर पर गया,
जब वह रेत पर चलने लगा तो उसे अपने पैरों के साथ-साथ दो पैर और भी दिखाई दिये वह बड़ा खुश हुआ ।

अब रोज ऐसा होने लगा ।

एक बार उसे व्यापार में घाटा हुआ सब कुछ चला गया,
वह रोड़ पर आ गया उसके अपनो ने उसका साथ छोड दिया ।

देखो यही इस दुनिया की प्रॉब्लम है, मुसीबत में सब साथ छोड़ देते है ।

अब वह सैर पर गया तो उसे चार पैरों की जगह दो पैर दिखाई दिये ।

उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि बुरे वक्त में भगवान ने भी साथ छोड दिया।

धीरे-धीरे सब कुछ ठीक होने लगा फिर सब लोग उसके
पास वापस आने लगे ।

एक दिन जब वह सैर
पर गया तो उसने देखा कि चार पैर वापस दिखाई देने लगे ।

उससे अब रहा नही गया,
वह बोला-

भगवान जब मेरा बुरा वक्त था तो सब ने मेरा साथ छोड़ दिया था पर मुझे इस बात का गम नहीं था क्योकि इस दुनिया में ऐसा ही होता है,
पर आप ने भी उस समय मेरा साथ छोड़ दिया था,
ऐसा क्यों किया?

भगवान ने कहा –

तुमने ये कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हारा साथ छोड़ दूँगा,
तुम्हारे बुरे वक्त में जो रेत पर तुमने दो पैर के निशान देखे वे तुम्हारे पैरों के नहीं मेरे पैरों के थे,

उस समय में तुम्हे अपनी गोद में उठाकर चलता था और आज जब तुम्हारा बुरा वक्त खत्म हो गया तो मैंने तुम्हे नीचे उतार दिया है ।

इसलिए तुम्हे फिर से चार पैर दिखाई दे रहे ।

So moral is never loose faith on God. U believe in him, he will look after u forever.

✔जब भी बड़ो के साथ बैठो तो परमात्मा का धन्यवाद , क्योंकि कुछ लोग इन लम्हों को तरसते हैं ।

✔जब भी अपने काम पर जाओ तो परमात्मा का धन्यवाद , क्योंकि बहुत से लोग बेरोजगार हैं ।

✔परमात्मा का धन्यवाद कहो जब तुम तन्दुरुस्त हो , क्योंकि बीमार किसी भी कीमत पर सेहत खरीदने की ख्वाहिश रखते हैं ।

✔ परमात्मा का धन्यवाद कहो की तुम जिन्दा हो , क्योंकि मरे हुए लोगों से पूछो जिंदगी कीमत ।

महावीर का दुःख

महावीर स्वामी पेड़ के नीचे ध्यानमग्न बैठे थे। पेड़ पर आम लटक रहे
थे।
बच्चों ने आम तोड़ने के लिए पत्थर फेंके। कुछ पत्थर आम को लगे
और एक महावीर स्वामी को लगा।
बच्चों ने कहा - प्रभु! हमें
क्षमा करें, हमारे कारण आपको कष्ट हुआ
है।
प्रभु बोले - नहीं, मुझे कोई कष्ट नहीं हुआ।
बच्चों ने पूछा - तो फिर आपकी आंखों में आंसू क्यों?
महावीर ने कहा - पेड़ को तुमने पत्थर मारा तो इसने तुम्हें मीठे फल
दिए, पर मुझे पत्थर मारा तो मैं तुम्हें कुछ नहीं दे सका, इसलिए मैं
दुखी हूँ

लगन का फल

एक मित्र द्वारा भेजा एक संस्मरण

जिन दिनों मेरी शादी हुई थी मेरी सास दिल्ली के एक
प्राइमरी सरकारी स्कूल में टीचर थीं। मैं अक्सर उन्हें गर्मी, सर्दी, बरसात
में भागते हुए स्कूल जाते देखता। एक तो सरकारी स्कूल, ऊपर से
प्राइमरी स्कूल। मैं बहुत बार सोचता कि एक प्राइमरी स्कूल में अगर टीचर
समय पर न भी पहुंचे तो कौन सा तूफान आ जाने वाला है। एकाध दफा तो मैं
उनके घर गया होता और वो मेरे जागने से पहले ही स्कूल जा चुकी होती थीं। डाइनिंग टेबल पर मेरे लिए आलू परांठे, लस्सी, चटनी सब ताजा बना कर
वो सुबह-सुबह स्कूल चली जातीं और दोपहर में घर चली आतीं। एक तो ससुराल, दूसरे पंजाबी ससुराल। मेरे पल्ले आज तक ये बात
नहीं पड़ी कि पंजाबी लोग तले हुए परांठे के ऊपर मक्खन क्यों लगाते हैं।
मक्खन के साथ-साथ फुल साइज गिलास में मलाई मार के लस्सी और फिर
दोपहर में पनीर की सब्जी पर इतना ज़ोर क्यों देते हैं। मैं तो शुरू-शुरू में इस
बात पर हंस-हंस कर पागल हो जाता था कि दोपहर के खाने में मां (माह)
की दाल, राजमा, पालक-पनीर, मटर-पनीर और शाही पनीर के बिना पंजाबियों की मेहमानवजी अधूरी क्यों रह जाती है। खैर
इसका नतीजा ये हुआ कि शादी में मैं कुल जो 62 किलो का था, शादी के
साल भर बाद 74 किलो का हो गया। लगने वाले
को तो दिल्ली का पानी भी लग जाता है, मैं तो सीधे-सीधे ससुराल
का घी पी रहा था। खैर, आज की कहानी ससुराल सेवा की अमर गाथा सुनाने के लिए नहीं लिख
रहा। आज कहानी का सारांश इस तरह है कि मेरी सास बिना नागा, बिना देर किए
रोज स्कूल पहुंच जाती थीं। उस सरकारी स्कूल में जिसे सरकार
भी सीरियसली नहीं लेती थी। जिस स्कूल को स्कूल का चपरासी तक
सीरियसली न लेता हो उस स्कूल में मेरी सास ने कभी बिन बताए
छुट्टी नहीं लीं, कभी देर से नहीं पहुंचीं। एक दिन मैंने अपनी सास को बताया कि मेरे स्कूल में ओम प्रकाश मास्टर
कई बार नहीं आते थे तो कोई ऐक्शन नहीं लिया जाता था, फिर आप
प्राइमरी स्कूल के बच्चों को पढ़ाई को इतनी गंभीरता से क्यों लेती हैं?
एकाध दफा देर हो जाए तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा? वैसे
भी सरकारी स्कूल में कौन सी पढ़ाई होती है जो इतनी माथा-
पच्ची की जाए? मेरी सास ने मेरे सवाल का जवाब देने से पहले मुझसे सवाल किया, "उस
ओमप्रकाश मास्टर के बच्चे क्या करते हैं?" मैंने दिमाग पर बहुत ज़ोर डाला। फिर बताया कि उनके बच्चे क्या कर रहे
हैं, ये तो नहीं पता लेकिन उनकी बड़ी बेटी दसवीं तक ही पढ़ाई कर पाई थी,
फिर उसकी पढ़ाई छूट गई थी। बेटा भी ठीक से नहीं पढ़ पाया तो छोटा-
मोटा काम पकड़ लिया था। मेरी सास ने फिर कहा, "उन सभी मास्टरों को याद करो जिन्होंने अपने
काम को ईमानदारी से अंजाम नहीं दिया, मेरा मतलब, पढ़ाने में
कोताही बरती, बच्चों को पढ़ाने की जगह स्वेटर बुनने या घर के काम
कराने में समय खर्च किया, या ट्यूशन आदि पर अधिक ध्यान दिया।"
मैंने फिर दिमाग पर जोर डाला। पंडित मास्टर जी की याद आई। संस्कृत
पढ़ाते थे। पढ़ाते क्या थे बातें बनाते थे। बच्चों से कद्दू, पपीता, केला बतौर उपहार लेकर कॉपी में नंबर दिया करते थे। उस पंडित मास्टर
की बेटी पता नहीं क्यों छठी के बाद ही स्कूल छोड़ गई थी। बहुत बाद में
पता चला कि उसकी शादी हो गई थी, पर पति ने उसे भी छोड़ दिया था। फिर एक-एक कर मैंने बहुत से मास्टरों को याद किया। उन
मास्टरों को भी याद किया जो सचमुच बहुत ईमानदारी से पढ़ाते थे। जिन्होंने
कभी बेवजह नागा नहीं किया। याद आया गणित वाले पारस नाथ सिंह मास्टर
का बेटा तब इंजीनियर बन कर अमेरिका गया था, जब
अमेरिका का दरवाजा सबके लिए नहीं खुला था। हिंदी वाले उपेंद्र राय
मास्टर की बेटी तो मेरी आंखों के आगे डॉक्टर बनी थी। मैं अपनी यादों में डूबा था, मेरी सास ने मुझे टोका, "कहां खो गए,
बेटा जी?" "मैं अपने मास्टरों को याद कर रहा हूं।" "क्या याद किया?" यही कि ओमप्रकाश मास्टर के बच्चे ठीक से नहीं पढ़ पाए। संस्कृत के
मास्टर की बिटिया का भी यही हाल था। पारस नाथ सिंह और उपेंद्र मास्टर
की कहानी भी मैने सुनाई। मेरी सास मुस्कुराईं। उन्होंने कहा कि मैंने इसीलिए आपको याद करने
को कहा था। जो मास्टर बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करता है, दरअसल
किस्मत उसके साथ खिलवाड़ कर देती है। जिन बच्चों को स्कूल पढ़ने के
लिए भेजा जाता है, या जो बच्चे स्कूल सिर्फ पढ़ने के लिए आते हैं, उन्हें
ईमानदारी से पढ़ाना चाहिए। जो लोग ये सोचते हैं कि कुछ भी करें, काम
तो चल जाएगा, उनका अपना काम अटक जाता है। अक्सर ज्यादातर शिक्षक के बच्चे ही नहीं पढ़ पाते। मैंने एक भी दिन बच्चों के साथ बेईमानी नहीं की। देख लो,
दोनों बेटियां पढ़ाई में कैसी निकलीं।
मेरी दोनों बेटियां स्कूल-कॉलेज में टॉप करती रहीं। मतलब ये कि जैसे करम करोगे, वैसा फल मिलेगा। जो अपने काम
को ईमानदारी से अंजाम नहीं देते, उनके साथ ज़िंदगी कब बेईमानी कर
बैठती है, पता भी नहीं चलता। पता नहीं कहां-कहां से ठंड में, गर्मी में,
बरसात में बच्चे स्कूल पढ़ने के लिए आते हैं, ज्ञान की प्राप्ति के लिए
आते हैं, मां-बाप की मुराद पूरी करने आते हैं। उनके अनजान भविष्य से
कभी खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। तो बेटा जी, आपके सवाल का जवाब इतना ही है कि मैं हर रोज समय पर
स्कूल इसलिए जाती हूं ताकि किसी बच्चे की उम्मीदें अधूरी न रह जाएं,
ताकि मेरे बच्चों के भविष्य के साथ कोई मास्टर या मास्टरनी खिलवाड़ न
करे। जो हमें अपने लिए नहीं पसंद, उसे हम दूसरों के साथ क्यों करें? काम वही सफल होता है जो पवित्र भाव से संपूर्ण मनोयोग से किया जाता है।
मैं स्कूल समय पर जाती हूं ताकि जो पैसा घर आए वो तन और मन
दोनों को लगे। आपके पिताजी ने भी तो यही सिखाया था न
आपको कि पैसा कितना कमाया उससे ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि पैसा कैसे
कमाया। तो मैं भी, जितनी भी सैलरी मिलती है, उसे मेहनत और
ईमानदारी का बना कर घर लाना चाहती हूं। छोटे बच्चों को धोखा देकर लाया गया पैसा कितना सफल होता? वो कह रही थीं, वैसे तो सभी कामों में आदमी को ईमादार होना चाहिए,
लेकिन पढ़ाने के काम में तो पक्के तौर पर। आखिर ये देश के भविष्य
का सवाल है। जो शिक्षक अपने काम में बेईमानी करते हैं, उन्हें भगवान
भी माफ नहीं करता। मैं चुप था। सचमुच अगर सारे टीचर ऐसा सोचते तो हम कुछ और होते। कुछ और। नए साल पर मैं हर बार कुछ न कुछ प्रतिज्ञा करता हूं, इस बार
की प्रतिज्ञा है, जो भी करुंगा लगन से करुंगा। संपूर्ण मन से
करुंगा ताकि भूल कर भी कोई भूल हो न।

सोमवार, 16 मार्च 2015

सादा जीवन

एक पुराना ग्रुप कॉलेज छोड़ने
के बहुत दिनों बाद मिला।

वे सभी अच्छे केरियर के साथ
खूब पैसे ✈कमा रहे थे।

वे अपने सबसे फेवरेट प्रोफेसर
के घर जाकर मिले।

प्रोफेसर साहब उनके काम
के बारे में पूछने लगे।
धीरे-धीरे बात लाइफ में
बढ़ती स्ट्रेस और काम
के प्रेशर पर आ गयी।

इस मुद्दे पर सभी एक मत थे कि,
भले वे अब आर्थिक रूप से
बहुत मजबूत हों पर
उनकी लाइफ में अब
वो मजा नहीं रह गया
जो पहले हुआ करता था।

प्रोफेसर साहब बड़े ध्यान से
उनकी बातें सुन रहे थे,
वे अचानक ही उठे और
थोड़ी देर बाद किचन से
लौटे और बोले,

”डीयर स्टूडेंट्स,
मैं आपके लिए गरमा-गरम ☕
कॉफ़ी ☕बना कर आया हूँ ,
लेकिन प्लीज आप सब
किचन में जाकर अपने-अपने
लिए कप्स लेते आइये।"

लड़के तेजी से अंदर गए,
वहाँ कई तरह के कप रखे हुए थे,
सभी अपने लिए अच्छा से अच्छा
कप उठाने में लग गये,

किसी ने क्रिस्टल का
शानदार कप उठाया
तो किसी ने पोर्सिलेन का
कप सेलेक्ट किया,
तो किसी ने शीशे का कप उठाया।

सभी के हाथों में कॉफी ⚓आ गयी
तो प्रोफ़ेसर साहब बोले, 
"अगर आपने ध्यान दिया हो तो,
जो कप दिखने में अच्छे और महंगे थे
आपने उन्हें ही चुना और
साधारण दिखने वाले कप्स
की तरफ ध्यान नहीं दिया।

जहाँ एक तरफ अपने लिए
सबसे अच्छे की चाह रखना
एक नॉर्मल बात है
वहीँ दूसरी तरफ ये
हमारी लाइफ में प्रोब्लम्स
और स्ट्रेस लेकर आता है।

फ्रेंड्स, ये तो पक्का है कि
कप, कॉफी  ☕की क्वालिटी
में कोई बदलाव नहीं लाता।
ये तो बस एक जरिया है
जिसके माध्यम से आप कॉफी  ☕पीते है।
असल में जो आपको चाहिए था
वो बस कॉफ़ी थी, कप नहीं,

पर फिर भी आप सब
सबसे अच्छे कप के पीछे ही गए
और अपना लेने के बाद
दूसरों के कप ☕निहारने लगे।"

अब इस बात को ध्यान से सुनिये ...
"ये लाइफ कॉफ़ी ☕की तरह है ;
हमारी नौकरी, पैसा,
पोजीशन, कप की तरह हैं।
ये बस लाइफ जीने के साधन हैं,
खुद लाइफ नहीं ! और
हमारे पास कौन सा कप है
ये न हमारी लाइफ को
डिफाइन करता है
और ना ही उसे चेंज करता है।
कॉफी की चिंता करिये कप की नहीं।"

"दुनिया के सबसे खुशहाल लोग
वो नहीं होते जिनके पास
सबकुछ सबसे बढ़िया होता है,
पर वे होते हैं, जिनके पास जो होता है
बस उसका सबसे अच्छे से यूज़ करते हैं.
एन्जॉय करते हैं और भरपूर जीवन जीते हैं!

सादगी से जियो।
सबसे प्रेम करो।
सबकी केअर करो।
जीवन का आनन्द लो,
यही असली जीना है।

शनिवार, 14 मार्च 2015

गलतफहमी

पानी ने दूध से मित्रता की और उसमे समा गया,
जब दूध ने पानी का समर्पण देखा तो उसने कहा,
मित्र तुमने अपने स्वरुप का त्याग कर मेरे स्वरुप
को धारण किया है अब मैं
भी मित्रता निभाऊंगा और तुम्हे अपने मोल
बिकवाऊंगा,
दूध बिकने के बाद जब उसे उबाला जाता है तब
पानी कहता है अब मेरी बारी है मै
मित्रता निभाऊंगा और तुमसे पहले मै
चला जाऊँगा और दूध से पहले
पानी उड़ता जाता है जब दूध मित्र को अलग
होते देखता है तो उफन कर गिरता है और आग
को बुझाने लगता है,
जब पानी की बूंदे उस पर छींट कर उसे अपने मित्र से
मिलाया जाता है तब वह फिर शांत
हो जाता है पर इस अगाध प्रेम में
थोड़ी सी खटास (निम्बू की दो चार बूँद ) डाल
दी जाए तो दूध और पानी अलग हो जाते हैं
थोड़ी सी मन कI खटास अटूट प्रेम
को भी मिटा सकती है...
दोस्तों कभी भी कुछ हो जाये रिश्तो में मन
मुटाव ना आने दे छोटी सी गलतफहमी भी आपके
रिश्तो में दरार ला सकती हैं।

Fresh and lively बने

ध्यान से पढ़ें.....

जापान में, हमेशा से ही मछलियाँ, खाने का एक खास हिस्सा रही हैं ।

और ये जितनी ताज़ी होतीं हैं लोग उसे उतना ही पसंद करते हैं ।

लेकिन जापान के तटों के आस-पास इतनी मछलियाँ नहीं होतीं की उनसे लोगों की डिमांड पूरी की जा सके ।

नतीजतन मछुआरों को दूर समुंद्र में जाकर मछलियाँ  पकड़नी पड़ती हैं।

जब इस तरह से मछलियाँ पकड़ने की शुरुआत हुई तो मछुआरों के सामने एक गंभीर समस्या सामने आई ।

वे जितनी दूर मछली पक़डने जाते उन्हें लौटने मे उतना ही अधिक समय लगता

और मछलियाँ बाजार तक पहुँचते-पहुँचते  बासी हो जातीँ , ओर फिर कोई उन्हें खरीदना  नहीं चाहता ।

इस समस्या से निपटने के लिए  मछुआरों ने अपनी बोट्स पर फ्रीज़र लगवा  लिये । वे मछलियाँ पकड़ते और उन्हें फ्रीजर में डाल देते ।

इस तरह से वे और भी देर तक मछलियाँ पकड़ सकते थे और उसे बाजार तक पहुंचा सकते थे ।

पर इसमें भी एक समस्या आ गयी ।

जापानी फ्रोजेन फिश ओर फ्रेश फिश में आसनी से अंतर कर लेते और फ्रोजेन मछलियों को खरीदने से कतराते ,

उन्हें तो किसी भी कीमत पर ताज़ी मछलियाँ  ही चाहिए होतीं ।

एक बार फिर मछुआरों ने इस समस्या से निपटने की सोची और इस बार एक शानदार तरीका निकाला ,

उन्होंने अपनी बड़े – बड़े जहाजों पर
फिश टैंक्स बनवा लिए ओर अब वे
मछलियाँ पकड़ते और उन्हें पानी से
भरे टैंकों मे डाल देते ।

टैंक में डालने के बाद कुछ देर तो
मछलियाँ इधर उधर भागती पर जगह
कम होने के कारण वे जल्द ही एक
जगह स्थिर हो जातीं ,और जब ये मछलियाँ बाजार पहुँचती तो भले वे ही सांस ले रही होतीं लकिन उनमेँ वो बात नहीं होती जो आज़ाद घूम रही ताज़ी मछलियों मे होती ! ओर जापानी चख कर इन मछलियों में भी अंतर कर लेते ।

तो इतना कुछ करने के बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई थी।

अब मछुवारे क्या करते ?

वे कौन सा उपाय लगाते कि ताज़ी मछलियाँ लोगोँ तक पहुँच पाती ?

नहीं,

उन्होंने कुछ नया नहीं किया , वें अभी भी मछलियाँ टैंक्स में ही रखते , पर इस बार  वो हर एक टैंक मे एक छोटी सी शार्क मछली भी ङाल देते।

शार्क कुछ मछलियों को जरूर खा जाती  पर ज्यादातर मछलियाँ बिलकुल ताज़ी  पहुंचती।

ऐसा क्यों होता ?

क्योंकि शार्क बाकी मछलियों की लिए एक चैलेंज की तरह थी।

उसकी मौज़ूदगी बाक़ी मछलियों को हमेशा चौकन्ना रखती ओर अपनी जान बचाने के लिए वे हमेशा अलर्ट रहती।

इसीलिए कई दिनों तक टैंक में रह्ने के
बावज़ूद उनमे स्फूर्ति ओर ताजापन बना रहता। 

Friends, आज बहुत से लोगों की जिंदगी टैंक मे पड़ी उन मछलियों
की तरह हो गयी है जिन्हे जगाने की लिए कोई shark मौज़ूद नहीं है।

और अगर unfortunately आपके साथ भी ऐसा ही है तो आपको भी आपने life में नये challenges
accept करने होंगे।

आप जिस रूटीन के आदि हो चुकें हैँ
उससे कुछ अलग़ करना होगा, आपको
अपना दायरा बढ़ाना होगा

और एक बार फिर जिंदगी में रोमांच और नयापन लाना होगा।

नहीं तो , बासी मछलियों की तरह आपका भी मोल कम हो जायेगा

और लोग आप से मिलने-जुलने की बजाय बचते नजर आएंगे।

और दूसरी तरफ अगर आपकी लाइफ में चैलेंजेज हैँ , बाधाएं हैँ

तो उन्हें कोसते मत रहिये

कहीं ना कहीं ये आपको fresh
and lively बनाये रखती हैँ

इन्हेँ  accept करिये, इन्हें overcome करिये और अपना  तेज बनाये रखिये।

शुक्रवार, 13 मार्च 2015

मच्छर का इलाज


             एक इंजीनियर था
  उसके घर पर बहुत मच्छर हो गये,
    तो उनसे परेशान होकर उसने
     मच्छरदानी लगानी शुरू की,

                अब हुआ यूँ कि,
भाई साहब की मच्छरदानी में एक छेद
  हो गया अब उसमें से मच्छर अन्दर   
               आते और काटते,
      सो तकलीफ जैसी की तैसी रही

      सिलाई करना आता नहीं था,
           अब करे तो करे क्या ?
  आखिर उसके इंजीनियर दिमाग ने
         एक उपाय ढूंढही निकाला,
          उसने उस छेद के सामने
        एक और छेद कर दिया और
एक छोटी पाइप लेकर आरपार रख दी,

      अब मच्छर एक छेद में से जाते
                दुसरे में से बाहर..
       ये कहानी तो यहाँ पूरी हो गयी !!

        लेकिन काश हम भी अपने
दिमाग में एक ऐसी खिड़की रख सकें,
एक ऐसी आरपार वाली पाइप रख सके ..
                 हमें चुभने वाले,
                    काटने वाले ..
       परेशान करने वाले विचारों को
            ऐसे ही बायपास कर दे ..
         तो जीवन कितना सुन्दर हो ।