शनिवार, 7 मार्च 2015

देवदूत की भूल


मृत्यु के देवता ने अपने एक दूत को भेजा पृथ्वी पर। एक स्त्री मर गयी थी, उसकी आत्मा को लाना था। देवदूत आया, लेकिन चिंता में पड़ गया। क्योंकि तीन छोटी-छोटी लड़कियां जुड़वां--एक अभी भी उस मृत स्त्री के स्तन से लगी है। एक चीख रही है, पुकार रही है। एक रोते-रोते सो गयी है, उसके आंसू उसकी आंखों के पास सूख गए हैं--तीन छोटी जुड़वां बच्चियां और स्त्री मर गयी है, और कोई देखने वाला नहीं है। पति पहले मर चुका है। परिवार में और कोई भी नहीं है। इन तीन छोटी बच्चियों का क्या होगा ?

उस देवदूत को यह खयाल आ गया, तो वह खाली हाथ वापस लौट गया। उसने जा कर अपने प्रधान को कहा कि मैं न ला सका, मुझे क्षमा करें, लेकिन आपको स्थिति का पता ही नहीं है। तीन जुड़वां बच्चियां हैं--छोटी-छोटी, दूध पीती। एक अभी भी मृत स्तन से लगी है, एक रोते-रोते सो गयी है, दूसरी अभी चीख-पुकार रही है। हृदय मेरा ला न सका। क्या यह नहीं हो सकता कि इस स्त्री को कुछ दिन और जीवन के दे दिए जाएं? कम से कम लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएं। और कोई देखने वाला नहीं है।

मृत्यु के देवता ने कहा, तो तू फिर समझदार हो गया; उससे ज्यादा, जिसकी मर्जी से मौत होती है, जिसकी मर्जी से जीवन होता है! तो तूने पहला पाप कर दिया, और इसकी तुझे सजा मिलेगी। और सजा यह है कि तुझे पृथ्वी पर चले जाना पड़ेगा। और जब तक तू तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर, तब तक वापस न आ सकेगा।

इसे थोड़ा समझना। तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर--क्योंकि दूसरे की मूर्खता पर तो अहंकार हंसता है। जब तुम अपनी मूर्खता पर हंसते हो तब अहंकार टूटता है।

देवदूत को लगा नहीं। वह राजी हो गया दंड भोगने को, लेकिन फिर भी उसे लगा कि सही तो मैं ही हूं। और हंसने का मौका कैसे आएगा?

उसे जमीन पर फेंक दिया गया। एक चमार, सर्दियों के दिन करीब आ रहे थे और बच्चों के लिए कोट और कंबल खरीदने शहर गया था, कुछ रुपए इकट्ठे कर के। जब वह शहर जा रहा था तो उसने राह के किनारे एक नंगे आदमी को पड़े हुए, ठिठुरते हुए देखा। यह नंगा आदमी वही देवदूत है जो पृथ्वी पर फेंक दिया गया था। उस चमार को दया आ गयी। और बजाय अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीदने के, उसने इस आदमी के लिए कंबल और कपड़े खरीद लिए। इस आदमी को कुछ खाने-पीने को भी न था, घर भी न था, छप्पर भी न था जहां रुक सके। तो चमार ने कहा कि अब तुम मेरे साथ ही आ जाओ। लेकिन अगर मेरी पत्नी नाराज हो--जो कि वह निश्चित होगी, क्योंकि बच्चों के लिए कपड़े खरीदने लाया था, वह पैसे तो खर्च हो गए--वह अगर नाराज हो, चिल्लाए, तो तुम परेशान मत होना। थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा।

उस देवदूत को ले कर चमार घर लौटा। न तो चमार को पता है कि देवदूत घर में आ रहा है, न पत्नी को पता है। जैसे ही देवदूत को ले कर चमार घर में पहुंचा, पत्नी एकदम पागल हो गयी। बहुत नाराज हुई, बहुत चीखी-चिल्लायी।

और देवदूत पहली दफा हंसा। चमार ने उससे कहा, हंसते हो, बात क्या है? उसने कहा, मैं जब तीन बार हंस लूंगा तब बता दूंगा।

देवदूत हंसा पहली बार, क्योंकि उसने देखा कि इस पत्नी को पता ही नहीं है कि चमार देवदूत को घर में ले आया है, जिसके आते ही घर में हजारों खुशियां आ जाएंगी। लेकिन आदमी देख ही कितनी दूर तक सकता है! पत्नी तो इतना ही देख पा रही है कि एक कंबल और बच्चों के पकड़े नहीं बचे। जो खो गया है वह देख पा रही है, जो मिला है उसका उसे अंदाज ही नहीं है--मुफ्त! घर में देवदूत आ गया है। जिसके आते ही हजारों खुशियों के द्वार खुल जाएंगे। तो देवदूत हंसा। उसे लगा, अपनी मूर्खता--क्योंकि यह पत्नी भी नहीं देख पा रही है कि क्या घट रहा है!

जल्दी ही, क्योंकि वह देवदूत था, सात दिन में ही उसने चमार का सब काम सीख लिया। और उसके जूते इतने प्रसिद्ध हो गए कि चमार महीनों के भीतर धनी होने लगा। आधा साल होते-होते तो उसकी ख्याति सारे लोक में पहुंच गयी कि उस जैसा जूते बनाने वाला कोई भी नहीं, क्योंकि वह जूते देवदूत बनाता था। सम्राटों के जूते वहां बनने लगे। धन अपरंपार बरसने लगा।

एक दिन सम्राट का आदमी आया। और उसने कहा कि यह चमड़ा बहुत कीमती है, आसानी से मिलता नहीं, कोई भूल-चूक नहीं करना। जूते ठीक इस तरह के बनने हैं। और ध्यान रखना जूते बनाने हैं, स्लीपर नहीं। क्योंकि रूस में जब कोई आदमी मर जाता है तब उसको स्लीपर पहना कर मरघट तक ले जाते हैं। चमार ने भी देवदूत को कहा कि स्लीपर मत बना देना। जूते बनाने हैं, स्पष्ट आज्ञा है, और चमड़ा इतना ही है। अगर गड़बड़ हो गयी तो हम मुसीबत में फंसेंगे।

लेकिन फिर भी देवदूत ने स्लीपर ही बनाए। जब चमार ने देखे कि स्लीपर बने हैं तो वह क्रोध से आगबबूला हो गया। वह लकड़ी उठा कर उसको मारने को तैयार हो गया कि तू हमारी फांसी लगवा देगा! और तुझे बार-बार कहा था कि स्लीपर बनाने ही नहीं हैं, फिर स्लीपर किसलिए?

देवदूत फिर खिलखिला कर हंसा। तभी आदमी सम्राट के घर से भागा हुआ आया। उसने कहा, जूते मत बनाना, स्लीपर बनाना। क्योंकि सम्राट की मृत्यु हो गयी है।

भविष्य अज्ञात है। सिवाय उसके और किसी को ज्ञात नहीं। और आदमी तो अतीत के आधार पर निर्णय लेता है। सम्राट जिंदा था तो जूते चाहिए थे, मर गया तो स्लीपर चाहिए। तब वह चमार उसके पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा कि मुझे माफ कर दे, मैंने तुझे मारा। पर उसने कहा, कोई हर्ज नहीं। मैं अपना दंड भोग रहा हूं।

लेकिन वह हंसा आज दुबारा। चमार ने फिर पूछा कि हंसी का कारण? उसने कहा कि जब मैं तीन बार हंस लूं...।

दुबारा हंसा इसलिए कि भविष्य हमें ज्ञात नहीं है। इसलिए हम आकांक्षाएं करते हैं जो कि व्यर्थ हैं। हम अभीप्साएं करते हैं जो कि कभी पूरी न होंगी। हम मांगते हैं जो कभी नहीं घटेगा। क्योंकि कुछ और ही घटना तय है। हमसे बिना पूछे हमारी नियति घूम रही है। और हम व्यर्थ ही बीच में शोरगुल मचाते हैं। चाहिए स्लीपर और हम जूते बनवाते हैं। मरने का वक्त करीब आ रहा है और जिंदगी का हम आयोजन करते हैं।

तो देवदूत को लगा कि वे बच्चियां! मुझे क्या पता, भविष्य उनका क्या होने वाला है? मैं नाहक बीच में आया।

और तीसरी घटना घटी कि एक दिन तीन लड़कियां आयीं जवान। उन तीनों की शादी हो रही थी। और उन तीनों ने जूतों के आर्डर दिए कि उनके लिए जूते बनाए जाएं। एक बूढ़ी महिला उनके साथ आयी थी जो बड़ी धनी थी। देवदूत पहचान गया, ये वे ही तीन लड़कियां हैं, जिनको वह मृत मां के पास छोड़ गया था और जिनकी वजह से वह दंड भोग रहा है। वे सब स्वस्थ हैं, सुंदर हैं। उसने पूछा कि क्या हुआ? यह बूढ़ी औरत कौन है? उस बूढ़ी औरत ने कहा कि ये मेरी पड़ोसिन की लड़कियां हैं। गरीब औरत थी, उसके शरीर में दूध भी न था। उसके पास पैसे-लत्ते भी नहीं थे। और तीन बच्चे जुड़वां। वह इन्हीं को दूध पिलाते-पिलाते मर गयी। लेकिन मुझे दया आ गयी, मेरे कोई बच्चे नहीं हैं, और मैंने इन तीनों बच्चियों को पाल लिया।

अगर मां जिंदा रहती तो ये तीनों बच्चियां गरीबी, भूख और दीनता और दरिद्रता में बड़ी होतीं। मां मर गयी, इसलिए ये बच्चियां तीनों बहुत बड़े धन-वैभव में, संपदा में पलीं। और अब उस बूढ़ी की सारी संपदा की ये ही तीन मालिक हैं। और इनका सम्राट के परिवार में विवाह हो रहा है।

देवदूत तीसरी बार हंसा। और चमार को उसने कहा कि ये तीन कारण हैं। भूल मेरी थी। नियति बड़ी है। और हम उतना ही देख पाते हैं, जितना देख पाते हैं। जो नहीं देख पाते, बहुत विस्तार है उसका। और हम जो देख पाते हैं उससे हम कोई अंदाज नहीं लगा सकते, जो होने वाला है, जो होगा। मैं अपनी मूर्खता पर तीन बार हंस लिया हूं। अब मेरा दंड पूरा हो गया और अब मैं जाता हूं।

शुक्रवार, 6 मार्च 2015

किसान की बेटी

एक नौजवान आदमी एक किसान की बेटी से शादी की इच्छा लेकर किसान के पास गया. किसान ने उसकी ओर देखा और कहा, ” युवक, खेत में जाओ. मैं एक एक करके तीन बैल छोड़ने वाला हूँ. अगर तुम तीनों बैलों में से किसी भी एक की पूँछ पकड़ लो तो मैं अपनी बेटी की शादी तुमसे कर दूंगा.”

नौजवान खेत में बैल की पूँछ पकड़ने की मुद्रा लेकर खडा हो गया. किसान ने खेत में स्थित घर का दरवाजा खोला और एक बहुत ही बड़ा और खतरनाक बैल उसमे से निकला. नौजवान ने ऐसा बैल पहले कभी नहीं देखा था. उससे डर कर नौजवान ने निर्णय लिया कि वह अगले बैल का इंतज़ार करेगा और वह एक तरफ हो गया जिससे बैल उसके पास से होकर निकल गया.

दरवाजा फिर खुला. आश्चर्यजनक रूप से इस बार पहले से भी बड़ा और भयंकर बैल निकला. नौजवान ने सोचा कि इससे तो पहला वाला बैल ठीक था. फिर उसने एक ओर होकर बैल को निकल जाने दिया.

दरवाजा तीसरी बार खुला. नौजवान के चहरे पर मुस्कान आ गई. इस बार एक छोटा और मरियल बैल निकला. जैसे ही बैल नौजवान के पास आने लगा, नौजवान ने उसकी पूँछ पकड़ने के लिए मुद्रा बना ली ताकि उसकी पूँछ सही समय पर पकड़ ले. पर उस बैल की पूँछ थी ही नहीं………………..

कहानी से सीख……
जिन्दगी अवसरों से भरी हुई है. कुछ सरल हैं और कुछ कठिन. पर अगर एक बार अवसर गवां दिया तो फिर वह अवसर दुबारा नहीं मिलेगा. अतः हमेशा प्रथम अवसर को हासिल करने का प्रयास करना चाहिए.

गुमनाम लिफाफा

नई नई शादी के बाद पति और पत्नी जब
घर आये तो उन्हे एक लिफाफा मिला खोल
कर देखा तो सिनेमा के
दो टिकट ।
लेकिन भेजने वाले का नाम नही
लिखा था ।
पति बोला यह जरूर मेरे किसी दोस्त ने
भेजा होगा l
पत्नी बोली ना जी मेरी सहेली ने
भेजी होगी ।
पति - खैर छोडो किसी ने भेजा हो हमे
क्या । फिल्म का वक्त हो गया है हमे
जल्दी चलना चाहिये ।
जब दोनो फिल्म देखकर वापस आये तो घर
का सारा बहुमुल्य समान
चोरी हो गया था ll
.
वही एक लिफाफा मिला जिसमे
लिखा था कि-
.
अब तो पता चल गया होगा कि टिकट
किसने
भेजा था ll

गुरुवार, 5 मार्च 2015

होली के गूढ़ भाव


ओशो...

होली हिंदुस्तान की गहरी प्रज्ञा से उपजा हुआ त्योहार है। उसमें पुराण
कथा एक आवरण है, जिसमें लपेटकर मनोविज्ञान
की घुट्टी पिलाई गई है। सभ्य मनुष्य के मन पर
नैतिकता का इतना बोझ होता है कि उसका रेचन करना जरूरी है,
अन्यथा वह पागल हो जाएगा। इसी को ध्यान में रखते हुए
होली के नाम पर रेचन की सहूलियत दी गई है। पुराणों में इसके बारे
में जो कहानी है, उसकी कई गहरी परतें हैं।
हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद कभी हुए या नहीं, इससे प्रयोजन नहीं है।
लेकिन पुराण में जिस तरफ इशारा है, आस्तिक और नास्तिक
का संघर्ष- वह रोज होता है, प्रतिपल होता है। पुराण इतिहास
नहीं है, वह मनुष्य के जीवन का अंतर्निहित सत्य है। इसमें
आस्तिकता और नास्तिकता का संघर्ष है, पिता और पुत्र का,
कल और आज का, शुभ और अशुभ का संघर्ष है।
होली की कहानी का प्रतीक देखें तो हिरण्यकश्यप पिता है।
पिता बीज है, पुत्र उसी का अंकुर है। हिरण्यकश्यप
जैसी दुष्टात्मा को पता नहीं कि मेरे घर आस्तिक पैदा होगा, मेरे
प्राणों से आस्तिकता जन्मेगी। इसका विरोधाभास देखें। इधर
नास्तिकता के घर आस्तिकता प्रकट हुई और हिरण्यकश्यप
घबड़ा गया। जीवन की मान्यताएं, जीवन की धारणाएं दांव पर
लग गईं।
ओशो ने इस कहानी में छिपे हुए प्रतीक को सुंदरता से खोला है, 'हर
बाप बेटे से लड़ता है। हर बेटा बाप के खिलाफ बगावत करता है। और
ऐसा बाप और बेटे का ही सवाल नहीं है -हर 'आज' 'बीते कल' के
खिलाफ बगावत है। वर्तमान अतीत से छुटकारे की चेष्टा करता है।
अतीत पिता है, वर्तमान पुत्र है। हिरण्यकश्यप मनुष्य  बाहर
नहीं है, न ही प्रहलाद बाहर है। हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद
दो नहीं हैं - प्रत्येक व्यक्ति के भीतर घटने वाली दो घटनाएं हैं।
जब तक मन में संदेह है, हिरण्यकश्यप मौजूद है। तब तक अपने भीतर उठते
श्रद्धा के अंकुरों को तुम पहाड़ों से गिराओगे, पत्थरों से दबाओगे,
पानी में डुबाओगे, आग में जलाओगे- लेकिन तुम जला न पाओगे।
जहां संदेह के राजपथ हैं; वहां भीड़ साथ है।
जहां श्रद्धा की पगडंडियां हैं; वहां तुम एकदम अकेले हो जाते हो,
एकाकी। संदेह की क्षमता सिर्फ विध्वंस की है, सृजन की नहीं है।
संदेह मिटा सकता है, बना नहीं सकता। संदेह के पास सृजनात्मक
ऊर्जा नहीं है।
आस्तिकता और श्रद्धा कितनी ही छोटी क्यों न हो,
शक्तिशाली होती है। प्रह्लाद के भक्ति गीत हिरण्यकश्यप
को बहुत बेचैन करने लगे होंगे। उसे
एकबारगी वही सूझा जो सूझता है- नकार, मिटा देने की इच्छा।
नास्तिकता विध्वंसात्मक है, उसकी सहोदर है आग। इसलिए
हिरण्यकश्यप की बहन है अग्नि, होलिका। लेकिन अग्नि सिर्फ
अशुभ को जला सकती है, शुद्ध तो उसमें से कुंदन की तरह निखरकर
बाहर आता है। इसीलिए आग की गोद में बैठा प्रह्लाद अनजला बच
गया।
उस परम विजय के दिन को हमने अपनी जीवन शैली में उत्सव
की तरह शामिल कर लिया। फिर जन सामान्य ने उसमें
रंगों की बौछार जोड़ दी। बड़ा सतरंगी उत्सव है। पहले अग्नि में मन
का कचरा जलाओ, उसके बाद प्रेम रंग की बरसात करो। यह
होली का मूल स्वरूप था। इसके पीछे मनोविज्ञान है अचेतन मन
की सफाई करना। इस सफाई को पाश्चात्य मनोविज्ञान में
कैथार्सिस या रेचन कहते हैं।
साइकोथेरेपी का अनिवार्य हिस्सा होता है मन में
छिपी गंदगी की सफाई। उसके बाद ही भीतर प्रवेश हो सकता है।
ओशो ने अपनी ध्यान विधियां इसी की बुनियाद पर बनाई हैं।
होली जैसे वैज्ञानिक पर्व का हम थोड़ी बुद्धिमानी से उपयोग
कर सकें तो इस एक दिन में बरसों की सफाई हो सकती है। फिर
निर्मल मन के पात्र में, सद्दवों की सुगंध में घोलकर रंग खेलें
तो होली वैसी होगी जैसी मीराबाई ने खेली थी :
बिन सुर राग छत्तीसों गावै, रोम-रोम रस कार रे
होली खेल मना रे।।

पीला है महंगा रंग

आज मुझसे मेरे ऑफिस पर किसी क्लाइंट ने पूछा
कि सबसे महंगा और अच्छा रंग कौनसा होता है?

मैंने कहा कीमत में तो कई रंग है जो महंगे होते हैं :

उनमे से एक रंग है ....“लाल ❤“

तभी एक अन्य बुजुर्ग साहब जो मेरे ऑफिस आये थे  ,

उन्होंने कहा बेटा सबसे महँगा रंग “ पीला ��“ होता है ,

मैंने कहा वो कैसे ,

उन्होंने जो जवाब दिया वो बहुत ही लाजवाब था ...!!

उन्होंने मेरे सर पर हाथ रख कर
बड़े ही प्यार से कहा ...!!

बेटा जब अपनी “प्यारी बिटिया “ के हाथ पीले करोगे तब तुम्हे पता चलेगा के कौनसा रंग सबसे
अच्छा और महँगा होता है .......!!

मेरे पास कोई जवाब नहीं था .......

बुधवार, 4 मार्च 2015

गरीब की खुशियाँ

पिचकारी की दुकान से दूर हाथों मे,
कुछ सिक्के गिनते मैने उसे देखा.

एक गरीब बच्चे की आखों मे,
मैने होली को मरते देखा.

थी चाह उसे भी नए कपडे पहनने की...

पर उन्ही पुराने कपडो को मैने उसे साफ करते देखा.

हम करते है सदा अपने ग़मो की नुमाईश...

उसे चुपचाप ग़मो को पीते देखा.

थे नही माँ-बाप उसके..

उसे माँ का प्यार और पापा के
हाथों की कमी महसूस करते देखा.

जब मैने कहा, "बच्चे, क्या चहिये तुम्हे"?

तो उसे चुप-चाप मुस्कुरा कर "ना" मे सिर हिलाते देखा.

थी वह उम्र बहुत छोटी अभी...

पर उसके अंदर मैने ज़मीर को पलते देखा

सारे शहर के लोगो के रंगे पुते चेहरे मे...

मैने उसके हँसते, मगर बेबस चेहरे को देखा.

हम तो जिंदा है अभी शान से यहाँ

पर उसे जीते जी शान से मरते देखा.

नामकूल रही होली मेरी...

जब मैने ज़िन्दगी के इस दूसरे अजीब पहलू को देखा.

मैने वो देखा..

जो हम सब ने देख कर भी नही देखा.

होली पर किसी गरीब बच्चे
की जिन्दगी मे खुशियो का रंग घोल कर देखे

यकीन मानिये आप का ये रंगो का त्योहार और निखर
आयेगा

आप पैसे देकर या नये कपडे दिला कर किसी गरीब
या अनाथ बच्चे की होली रंगो से सजा सकते है

"इस बार होली कुछ यू मनाये

किसी गरीब की खुशियाँ रंगो
से सजाये"

मंगलवार, 3 मार्च 2015

बुद्धि और क्रोध

एक आदमी जंगल से गुजर रहा था । उसे चार स्त्रियां मिली।

उसने पहली से पूछा - बहन तुम्हारा नाम क्या हैं ?
उसने कहा "बुद्धि "
तुम कहां रहती हो?
मनुष्य के दिमाग में।

दूसरी स्त्री से पूछा - बहन तुम्हारा नाम क्या हैं ?
" लज्जा "।
तुम कहां रहती हो ?
आंख में ।

तीसरी से पूछा - तुम्हारा क्या नाम हैं ?
"हिम्मत"
कहां रहती हो ?
दिल में ।

चौथी से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ?
"तंदुरूस्ती"
कहां रहती हो ?
पेट में।

वह आदमी अब थोडा आगे बढा तों फिर उसे चार पुरूष मिले।

उसने पहले पुरूष से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ?
" क्रोध "
कहां रहतें हो ?
दिमाग में,
दिमाग में तो बुद्धि रहती हैं,
तुम कैसे रहते हो?
जब मैं वहां रहता हुं तो बुद्धि वहां से विदा हो जाती हैं।

दूसरे पुरूष से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ?
उसने कहां -" लोभ"।
कहां रहते हो?
आंख में।
आंख में तो लज्जा रहती हैं तुम कैसे रहते हो।
जब मैं आता हूं तो लज्जा वहां से प्रस्थान कर जाती हैं ।

तीसरें से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ?
जबाब मिला "भय"।
कहां रहते हो?
दिल में।
दिल में तो हिम्मत रहती हैं तुम कैसे रहते हो?
जब मैं आता हूं तो हिम्मत वहां से नौ दो ग्यारह हो जाती हैं।

चौथे से पूछा तुम्हारा नाम क्या हैं?
उसने कहा - "रोग"।
कहां रहतें हो?
पेट में।
पेट में तो तंदरूस्ती रहती हैं?
जब मैं आता हूं तो तंदरूस्ती वहां से रवाना हो जाती हैं।


जीवन की हर विपरीत परिस्थिथि में यदि हम उपरोक्त वर्णित बातो को याद रखे तो कई चीजे टाली जा सकती है ।


जरा मुस्कुरा के देखे,
दुनिया हसती नजर आएगी!


सुबह सैर कर के तो देखे,
सेहत ठीक हो जाएगी!


व्यसन छोड के तो देखे,
इज्जत बन जाएगी!


खर्च घटा कर के तो देखे,
अच्छी नीँद आएगी!


मेहनत कर के तो देखे,
पैसे की तंगी चली जाएगी!

संसार की अच्छाई तो देखे,
बुराई भाग जाएगी!


ईश्वर का ध्यान कर के तो देखे,
उलझने दुर हो जाएगी!


माता पिता की बात मान कर तो
देखे,
जिन्दगी संवर जाएगी!



यदि खुबसूरत लगा हो तो अपने अन्य मित्रों को भी प्रेषित करें।।।।।

जान है तो जहान है

एक सेठ था, वो दिन-रात
काम-धँधा बढ़ाने में लगा रहता था,
उसको शहर का सबसे
अमीर आदमी बनना था।
धीरे-धीरे वह नगर सेठ बन गया।
इस कामयाबी की ख़ुशी में
उसने एक शानदार घर बनवाया।
गृह प्रवेश के दिन
उसने एक बहुत बड़ी पार्टी दी
और जब सारे मेहमान चले गए तो
वो अपने कमरे में सोने के लिए गया।
वो जैसे ही बिस्तर पर लेटा
एक आवाज़ उसके कानो में पड़ी..
मैं तुम्हारी आत्मा हूँ,
और अब मैं तुम्हारा
शरीर छोड़ कर जा रही हूँ !
सेठ घबरा के बोला,
अरे तुम ऐसा नहीं कर सकती,
तुम्हारे बिना तो मैं तो मर ही जाऊँगा,
देखो मैंने कितनी बड़ी
कामयाबी हांसिल की है,
तुम्हारे लिए करोड़ों रूपये का
घर बनवाया है,
इतनी सारी सुख-सुविधाएं
सिर्फ तुम्हारे लिए ही तो हे।
यहाँ से मत जाओ।
आत्मा बोली,
मेरा घर तो तुम्हारा स्वस्थ शरीर था,
पर करोड़ों कमाने के चक्कर में
तुमने इस अमूल्य शरीर का ही
नाश कर डाला,
तुम्हें ब्लड प्रेशर, डायबिटीज,
थायरॉइड, मोटापा, कमर दर्द
आदि बीमारियों ने घेर लिया है।
तुम ठीक से चल नहीं पाते,
रात को तुम्हे नींद नहीं आती,
तुम्हारा दिल भी कमजोर हो चुका है, ⏰तनाव
की वजह से ना जाने
⏰और कितनी बीमारियों का
⏰घर बन चुका है
तुम्हारा शरीर।तुम ही बताओ
क्या तुम ऐसे किसी घर में
रहना चाहोगे जहाँ
चारो तरफ कमजोर दिवारें हो,
गंदगी हो, जिसकी छत टपक रही हो,
जिसके खिड़की दरवाजे टूटे हों,
नहीं रहना चाहोगे ना!!...
इसलिए मैं भी
ऐसी जगह नहीं रह सकती।...
और ऐसा कहते हुए आत्मा
सेठ के शरीर से निकल गयी...
सेठ की मृत्यु हो गयी।
⛵मित्रों, ये कहानी
⛵बहुत से लोगों की हकीकत है,
⛵ऐसा नहीं हे कि आप
☎अपनी मंजिल पर मत पहुँचिये,
☎पर जो भी करिये
☎स्वास्थ्य को सबसे ऊपर रखिये,
नहीं तो सेठ की तरह
मंजिल पा लेने के बाद भी
अपनी सफलता का लुत्फ नहीं उठा पाएँगे
। ॥आनंदम्
O

दुनियाँ के लिए आप
एक व्यक्ति हैं ।
लेकिन परिवार के लिए आप
पूरी दुनियाँ हैं ।।
....आप अपना ख्याल रखें.j

रविवार, 1 मार्च 2015

कलयुग की संताने

पिता : ओ बेवकूफ़।
मैंने तुमको गीता दी थी पढ़ने के लिए
क्या तुमने गीता पढ़ी ? कुछ। दिमाग मे  घुसा।

पुत्र : हाँ पिताजी पढ़ ली।
और
अब
आप

मरने के लिए तैयार हो जाओ  ( कनपटी पर तमंचारख देता है ) ।

पिता : बेटा ये क्या कर रहे हो ? मैं तुम्हारा बाप हूँ ।

पुत्र: पिताजी , ना कोई किसी का बाप है और ना कोई किसी का बेटा । ऐसा गीता में लिखा है ।

पिता : बेटा मैं मर जाऊंगा ।

पुत्र : पिताजी शरीर मरता है ।
आत्मा कभी नही मरती!
आत्मा अजर है,
अमर है ।

पिता : बेटा मजाक मत करो गोली चल जाएगी और मुझको दर्द से तड़पाकर मार देगी ।

पुत्र : क्यों व्यर्थ चिंता करते हो ? किससे तुम डरते हो ।
गीता में लिखा है-
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि,
नैनं दहति पावकः
आत्मा को ना पानी भिगो सकता है
और
ना ही तलवार काट सकती,
ना ही आग जला सकती ।
किसलिए डरते हो तुम ।

पिता : बेटा! अपने भाई बहनों के बारे में तो सोच, अपनी माता के बारे में भी सोच ।

पुत्र : इस दुनिया में कोई
किसी का नही होता ।
संसार के सारे रिश्ते स्वार्थों पर टिके है ।
ये भी गीता में ही लिखा है ।

पिता : बेटा मुझको मारने से तुझे क्या मिलेगा ?

बेटा : अगर इस धर्मयुद्ध में आप मारे गए तो आपको स्वर्ग प्राप्ति होगी ।
मुझको आपकी संपत्ति प्राप्त
होगी । अगर मर गया तो स्वर्ग प्राप्त होगा ।

पिता : बेटा ऐसा जुर्म मत कर ।

पुत्र : पिताजी आप चिंता ना करें।

जिस प्रकार आत्मा पुराने जर्जर शरीर को त्यागकर नया शरीर
धारण करती है, उसी प्रकार आप भी पुराने जर्जर शरीर
को त्यागकर नया शरीर धारण करने की तयारी करें ।

अलविदा ।

Moral-
कलयुग की औलादों को सतयुग, त्रेतायुग या द्वापर युग की शिक्षा नहीं दे.

परेशानी और होंसला

एक छोटा सा वाक्या हैं
एक माता - पिता अपने 5 साल  के बच्चे "अंकित"  के  साथ play group school annual function programme में गये
school वालों ने वहां parents के लिऐ एक 200 मीटर की race का आयोजन किया था ताकि बच्चों के मन में  parents को लेकर तथा खेल को लेकर एक अच्छी सोच develope हो
बच्चे छोटे छोटे थे इसलिऐ school वालों ने first prize  एक toy car रखी थी
"अकित" को वह toy car आपनी  2 साल की छोटी बहन के लिऐ जम गयी (वह car पाना बन गया था "लक्ष्य")

उसने अपने पिता से कहा "पापा मुझे वह car चाहिऐ , आप race में first आना" (वह थी उसकी पिता से car दिलाने की "उम्मीद")
पिता ने निराशा से अपनी पत्नी की तरफ देखा
पत्नी अपने पति का दर्द समझ गयी
उसने अंकित से कहा "अकित, पापा race में भाग नहीं ले पाऐगें  एक हफ्ता पहले पापा को टांग में fracture हुआ था, वो अभी ठीक नहीं हुआ हैं( यह थी "परेशानी")
अंकित ने अपने पापा की आंखो में देखा और बोला " please पापा आप कर सकते हो; मुझे वह car अपनी बहन को gift करनी हैं" (वह थे "जज्बात" और "विश्वास")
बच्चा यह कहकर  चुप हो गया
पिता ने अपने पैर पर बंधा  plaster देखा
और थोङा निराश हुआ
मां बोली "तुम्हे हम दुसरी car खरीद देगें"
बच्चे ने पिता से कहा" पापा मुझे यही वाली चाहिऐ"
पिता ने आसमान की तरफ देखा
"और बोला, हे ईश्वर यह कैसी व्यथा दे रहे हो, race में भाग में ले सकता नहीं और इस बच्चे का दिल में तोङ सकता नही (वह था "ईरादा ")
race के लिऐ announcement हुई
अचानक पिता कुर्सी से खङा हुआ और stick के सहारे race में participate करने पहुचां
पत्नी ने मना किया वह नहीं माना ( वह थी "जिद्द")
race शुरु हुई और पिता लंगङाकर दौङा
दस कदम पर ही दर्द के मारे गि रने को हुआ

अचानक उसे अपने बच्चे अंकित की आवाज सुनाई पङी
" I love you पापा आप जीत जाओगे आप दौङो" यह थी "प्रेरणा")

न जाने कैसे पिता में असीम शक्ति आयी
वह लङखङाता, लगंङाता पुरे जोश से एक टांग पर कुदता - फांदता दौङा और अपने बच्चे की ईच्छा के लिऐ दिल से दौङा

और हुआ चमत्कार
वह जाने कैसे लोगों से आगे निकलते हुऐ race जीत गया"

और हांफता हुआ  थक कर जमीन पर गिर गया
अंकित दौङकर अपने पापा के पास पहुंचा और बोला" ye हम जीत गये"
पिता को दर्द हो रहा था फिर भी मुस्कुराया और उसने आसमान की तरफ  देखा और बोला " हे ईश्वर हम जीते नहीं तुमने जीता दिया"
(यह था ईश्वर को "धन्यवाद")

moral
कोई भी परेशानी हमारे होंसले से ज्यादा बङी नहीं होती
ईरादे नेक रखोगे तो ईश्वर स्वयं मदद करेगें ।

अब मैं वो दौलत कमाऊँगा जो वहाँ चलेगी.

~~~"मेरा सपना"~~~
कल रात मैंने एक "सपना" देखा.!!
सपने में मैं और मेरी Family
सिमला घूमने गए.!!
हम सब सिमला की रंगीन
वादियों में कुदरती नजारा
देख रहे थे.!!
जैसे ही हमारी Car
Sunset Point की ओर
निकली.....
अचानक गाडी के Break
फेल हो गए;और हम सब
करीबन 1500 फ़ीट गहरी
खाई में जा गिरे.!!
मेरी तो on the spot
Death हो गई.!!
जीवन में कुछ अच्छे कर्म
किये होंगे इसलिये यमराज
मुझे स्वर्ग में ले गये.!!
देवराज इंद्र ने मुस्कुराकर
मेरा स्वागत किया.!!
मेरे हाथ में Bag देखकर
पूछने लगे-
इसमें क्या है.?
मैंने कहा इसमें मेरे जीवनभर
की कमाई है, पांच करोड़ रूपये.!!
इन्द्र ने SVG 6767934 नम्बर
के Locker की ओर इशारा
करते हुए कहा-
आपकी अमानत इसमें रख
दीजिये.!! मैंने Bag रख दी.!!
मुझे एक Room भी दिया.!!
मैं Fresh होकर Market में
निकला.!!
देवलोक के Shopping मॉल
मे अदभूत वस्तुएं देखकर मेरा मन
ललचा गया.!!
मैंने कुछ चीजें पसन्त करके
Basket में डाली, और काउंटर
पर जाकर उन्हें हजार हजार की
कोरी कोरी नोटें देने लगा.!!
Manager ने नोटों को देखकर
कहा-
यह करेंसी यहाँ नहीं चलती.!!
यह सुनकर मैं हैरान रह गया.!!
मैंने इंद्र के पास Complaint की.!!
इंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा-
आप व्यापारी होकर इतना भी
नहीं जानते?की आपकी करेंसी
बाजुके मुल्क पाकिस्तान, श्रीलंका
और बांगलादेश में नही चलती.?
और आप मृत्यूलोक की करेंसी
स्वर्गलोक में चलाने की मूर्खता
कर रहे हो.!!
यह सब सुनकर मुझे मानो
साँप सूंघ गया.!!
मैं जोर जोर से दहाड़े मारकर
रोने लगा.!! और परमात्मा से
दरखास्त करने लगा,-
हे भगवान् ये क्या हो गया.?
मैंने कितनी मेहनत से ये पैसा
कमाया.? दिन नही देखा,रात
नही देखा, पैसा कमाया.!!
माँ बाप की सेवा नही की,पैसा
कमाया.!! बच्चोंकी परवरीश
नही की,पैसा कमाया.!!
पत्नी की सेहत की ओर ध्यान
नही दिया,पैसा कमाया.!!
रिश्तेदार,भाईबन्द,परिवार और
यार दोस्तों से भी किसी तरह की
हमदर्दी न रखते हुए पैसा
कमाया.!! जीवनभर हाय पैसा
हाय पैसा किया.!! ना चैन से
सोया,ना चैन से खाया....
बस,जिंदगीभर पैसा कमाया.!!
और यह सब व्यर्थ गया.???
हाय राम,अब क्या होगा.???
इंद्र ने कहा,-
रोनेसे कुछ हासिल होनेवाला
नहीं है.!!
जिन जिन लोगोने यहाँ जितना
भी पैसा लाया,सब रद्दी हो गया
जमशेदजी टाटा ने 55 हजार करोड़
रूपये, बिरलाजी ने 47 हजार करोड़
रूपये,धीरूभाई
अम्बानी ने 29 हजार करोड़
अमेरिकन डॉलर लाये थे.!!
सबका पैसा यहां पड़ा है.!!
मैंने इंद्र से पूछा-
फिर यहांपर कौनसी करेंसी
चलती है.??
इंद्र ने कहा-
धरतीपर अगर कुछ अच्छे कर्म
किये है. जैसे किसी दुखियारे को
मदत की, किसी रोते हुए को
हसाया, किसी गरीब बच्ची की
शादी कर दी,
किसी अनाथ बच्चे को पढ़ा लिखा
कर काबिल बनाया.!!
किसी को व्यसनमुक्त किया.!!
किसी अपंग स्कुल, वृद्धाश्रम
या मंदिरों में दान धर्म किया.
ऐसे पूण्य कर्म करनेवालों को
यहाँपर एक Credit Card
मिलता है.!!
और उसे वापरकर आप यहाँ
स्वर्गीय सुखका उपभोग ले
सकते है.!!
मैंने कहा भगवन,मुझे यह पता
नहीं था.
इसलिए मैंने अपना जीवन व्यर्थ
गँवादिया.!!
हे प्रभु, मुझे थोडा आयुष्य दीजिये...
और मैं गिड़गिड़ाने लगा.!!
इंद्र को मुझपर दया आ गई.!!
इंद्र ने तथास्तु कहा.!!
और मेरी नींद खुल गयी.!!
मैं जाग गया.!!
अब मैं वो दौलत कमाऊँगा
जो वहाँ चलेगी.!!

The boss and food bag

Read this beautiful story till the end...✨✨            

My boss drove a luxury car everyday and it was my duty to greet him and to open the gates for him, as I worked as a watchman in his villa.

But he never responded back to my greetings.

One day he saw me opening the garbage bags outside the villa in search for any left over food. But, as usual he never even looked at me, it was like as if he never saw anything!

The very next day I saw a paper bag at the same place, but it was clean and the food inside was covered well. It was fresh and good food like someone had just brought it from the supermarket.

I didn't bother as to where it came from, I just took the paper bag and I was so happy about it.

Every day I found this paper bag at the same place with fresh vegetables and all that we needed for home. This became my daily routine. I was eating and sharing this food with my wife and kids.

I was wondering who this fool could be?! To forget his paper bag full of fresh food everyday.

One day there was a big problem in the villa and I was told that my boss has died.

There were too many guests coming to the villa that day and I didn't get any food that day. So I thought that one of the guests must have taken it.

But the same thing happened the 2nd day, the 3rd day and the 4th day.

It went on like this for a few weeks and I found it difficult to provide food for my family. So I decided to ask the wife of my boss for a raise in my salary or else I would quit my job as a watchman.

After I told her, she was shocked, and asked me, how come you never complained about your salary for the last 2 years? And why is this salary not enough for you now?!

I gave her so many excuses, but she was never convinced!

Finally in the end, I decided to tell her the truth. I told her the entire story of the bag of groceries, and as to how it was my daily provision..

She then asked me as to when this stopped? I told her after the death of her husband. And then I realised that I stopped seeing the paper bag immediately after the death of my boss!

Why didn't I ever think of this before? That it was my boss who was providing this for me!

I guess it was because I never thought that a person who never replied to my greetings could ever be this generous!

His wife started to cry and I told her to please stop crying and that I'm really sorry that I asked for a raise, I didn't know that it was your husband who was providing me with the meals, I'll remain as a watchman and be happy to provide my service.

His wife told me, I'm crying because I've finally found the 7th person my husband was giving this bag full of food. I knew my husband was giving 7 people everyday, I had already found the 6 people, and all these days I was searching for the 7th person. And today I found out.

From that day onwards, I started to receive the bag full of food again, but this time his son was bringing it to my house and giving it to my hand.

But whenever I thanked him, he never replied! Just like his dad!

One day, I told him THANK YOU in a very loud voice! He replied back to me to please not be offended when he doesn't reply, because he has a hearing problem, just like his dad!

May God forgive us all, for we have all, as humans, judged another person without knowing the real story behind their actions..

May God forgive us all and guide us towards the right path in life.