सोमवार, 19 जून 2017

संत तिरुवल्लुवर


बहुत पुरानी बात है। प्रसिद्ध संत तिरुवल्लुवर एक बार अपने शिष्यों के साथ कहीं चले जा रहे थे। रास्ते में आने-जाने वाले लोग उनके चरण स्पर्श करते हुए आगे की ओर बढ़ते जा रहे थे।
तभी, एक शराबी झूमता हुआ उनके सामने आया और खड़ा हो गया।
फिर उसने संत तिरुवल्लुवर से कहा, आप लोगों से यह क्यों कहते फिरते हैं कि शराब खराब चीज है, मत पिया करो।
क्या अंगूर खराब होते हैं, क्या चावल बुरी चीज है? अगर ये दोनों चीजें अच्छी हैं तो इनसे बनने वाली शराब कैसे बुरी हो गई?
लोग उस शराबी की ओर हिकारत भरी नजरों से देखने लगे कि संत तिरुवल्लुवर इस पर क्या जवाब देते हैं।
संत मुस्कराकर बोले, भाई, अगर तुम पर मुट्ठी भरकर कोई मिट्टी फेंके या कटोरा भर कर पानी डाल दे तो क्या इससे तुम्हें चोट लगेगी?
शराबी ने ना में सिर हिलाया तो संत ने फिर कहा, लेकिन इसी मिट्टी में पानी मिलाकर उसकी ईंट बनाकर तुम पर फेंकी जाए तब....?
शराबी ने कहा, जाहिर सी बात है, उससे तो मैं घायल हो जाऊंगा।
संत तिरुवल्लुवर ने शराबी को फिर समझाते हुए कहा,जब मिट्टी में पानी मिलाकर उसकी ईंट बनाकर तुम पर फेंकी जाए तब तुम उससे घायल हो जाओगे, इसी प्रकार अंगूर और चावल भी अपने आप में बुरे नहीं हैं, मगर यदि इन्हें मिलाकर शराब बनाकर सेवन किया जाए तो यह मनुष्य के लिए नुकसानदेह है।
यह स्वास्थ्य को खराब करती है। इससे व्यक्ति की सोचने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। इसके कारण तो परिवार नष्ट हो जाते हैं। संत की इस बात का उस शराबी पर गहरा असर पड़ा और उसने उस दिन से शराब से तौबा कर ली।

संक्षेप में:-
*कई वस्तुओं के बारे में जानकरी अनुभव से मिलती है। यदि आप अपने मत के अनुसार ही दुनिया की यात्रा पर निकलेंगे तो कई तरह के संकटों से सामना करना पड़ेगा। कोशिश कीजिए कि सत्संग और सद्पुरुषों द्वारा दिए गए अनमोल वचन का अनुसरण करते हुए आगे बढ़ते रहें। एक न एक दिन आपको जरूर सफलता मिलेगी।*

*शेक्षिक समाचार*

बुधवार, 7 जून 2017

बाज़ और डाल

   _*बहुत समय पहले की बात है ,*_

_एक राजा को उपहार में किसी ने बाज के दो बच्चे भेंट किये ।_

_वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे ,  और राजा ने कभी इससे पहले इतने शानदार बाज नहीं देखे थे।_

_राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक अनुभवी आदमी को नियुक्त कर दिया।_

_जब कुछ महीने बीत गए तो राजा ने बाजों को देखने का मन बनाया ,और उस जगह पहुँच गए जहाँ उन्हें पाला जा रहा था।_

_राजा ने देखा कि दोनों बाज काफी बड़े हो चुके थे और अब पहले से भी शानदार लग रहे थे ।_

_राजा ने बाजों की देखभाल कर रहे
आदमी से कहा,_
_” मैं इनकी उड़ान देखना चाहता हूँ , तुम इन्हे उड़ने का इशारा करो ।_

_“ आदमी ने ऐसा ही किया। इशारा मिलते ही दोनों बाज उड़ान भरने लगे ,_

_पर जहाँ एक बाज आसमान की ऊंचाइयों को छू रहा था ,_
_वहीँ दूसरा , कुछ ऊपर जाकर वापस उसी डाल पर आकर बैठ गया_

_जिससे वो उड़ा था। ये देख , राजा को कुछ अजीब लगा._

_“क्या बात है जहाँ एक बाज इतनी अच्छी उड़ान भर रहा है वहीँ ये दूसरा बाज उड़ना ही नहीं चाह रहा ?”,_

_राजा ने सवाल किया।_

_*” जी हुजूर , इस बाज के साथ शुरू से यही समस्या है , वो इस डाल को छोड़ता ही नहीं।”*_

_राजा को दोनों ही बाज प्रिय थे , और वो दूसरे बाज को भी उसी तरह उड़ना देखना चाहते थे।_

_अगले दिन पूरे राज्य में ऐलान करा दिया गया,कि जो व्यक्ति इस बाज को ऊँचा उड़ाने में कामयाब होगा उसे ढेरों इनाम दिया जाएगा।_

_फिर क्या था , एक से एक विद्वान् आये और बाज को उड़ाने का प्रयास करने लगे ,_

_पर हफ़्तों बीत जाने के बाद भी बाज
का वही हाल था, वो थोडा सा उड़ता और वापस डाल पर आकर बैठ जाता।_

_फिर एक दिन कुछ अनोखा हुआ , राजा ने देखा कि उसके दोनों बाज आसमान में उड़ रहे हैं।_

_उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ और उन्होंने तुरंत उस व्यक्ति का पता लगाने को कहा जिसने ये कारनामा कर दिखाया था।_

_वह व्यक्ति एक किसान था। अगले दिन वह दरबार में हाजिर हुआ। उसे इनाम में स्वर्ण मुद्राएं भेंट करने के बाद राजा ने कहा ,_

_” मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ , बस तुम
इतना बताओ कि जो काम बड़े-बड़े
विद्वान् नहीं कर पाये वो तुमने कैसे
कर दिखाया।_

_“ “मालिक !_ _मैं तो एक साधारण सा किसान हूँ , मैं ज्ञान की ज्यादा बातें नहीं जानता , मैंने तो बस वो डाल काट दी जिसपर बैठने का बाज आदि हो चुका था, और जब वो डाल ही नहीं रही तो वो भी अपने साथी के साथ ऊपर उड़ने लगा।_

_“दोस्तों, हम सभी ऊँचा उड़ने के लिए ही बने हैं।_

_लेकिन कई बार हम जो कर रहे होते है उसके इतने आदि हो जाते हैं कि अपनी ऊँची उड़ान भरने की , कुछ_
_बड़ा करने की काबिलियत को, भूल जाते हैं।_

_यदि आप भी सालों से किसी ऐसे ही काम में लगे हैं जो आपके सही potential के मुताबिक नहीं है तो एक बार ज़रूर सोचिये_

_कि कहीं आपको भी उस डाल को काटने की ज़रुरत तो नहीं जिसपर आप बैठे हैं ?_

_"Luck is what happens when"_
_"preparation meets opportunity

शनिवार, 3 जून 2017

पातक मनुष्य

*एक समय की बात है...*

*एक सन्त*
*प्रात: काल भ्रमण हेतु*
*समुद्र के तट पर पहुँचे...*

*समुद्र के तट पर*
*उन्होने एक पुरुष को देखा जो एक स्त्री की गोद में सर रख कर सोया हुआ था.*

*पास में शराब की खाली बोतल पड़ी हुई थी.*
*सन्त बहुत दु:खी हुए.*

*उन्होने विचार किया कि ये मनुष्य कितना तामसिक और विलासी है, जो प्रात:काल शराब सेवन करके स्त्री की गोद में सर रख कर प्रेमालाप कर रहा है.*

*थोड़ी देर बाद समुद्र से बचाओ, बचाओ की आवाज आई,*

*सन्त ने देखा एक मनुष्य समुद्र में डूब रहा है,*
*मगर स्वयं तैरना नहीं आने के कारण सन्त देखते रहने के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे.*

*स्त्री की गोद में सिर रख कर सोया हुआ व्यक्ति उठा और डूबने वाले को बचाने हेतु पानी में कूद गया.*

*थोड़ी देर में उसने डूबने वाले को बचा लिया और किनारे ले आया.*

*सन्त विचार में पड़ गए की इस व्यक्ति को बुरा कहें या भला.*

*वो उसके पास गए और बोले भाई तुम कौन हो, और यहाँ क्या कर रहे हो...?*

*उस व्यक्ति ने उत्तर दिया : —*

*मैं एक मछुआरा हूँ*
*मछली मारने का काम करता हूँ.आज कई दिनों बाद समुद्र से मछली पकड़ कर प्रात: जल्दी यहाँ लौटा हूँ.*

*मेरी माँ मुझे लेने के लिए आई थी और साथ में(घर में कोई दूसरा बर्तन नहीं होने पर)इस मदिरा की बोतल में पानी ले आई.*

*कई दिनों की यात्रा से मैं थका हुआ था*
*और भोर के सुहावने वातावरण में ये पानी पी कर थकान कम करने माँ की गोद में सिर रख कर ऐसे ही सो गया.*

*सन्त की आँखों में आँसू आ गए कि मैं कैसा पातक मनुष्य हूँ, जो देखा उसके बारे में*
*मैंने गलत विचार किया जबकि वास्तविकता अलग थी.*

*कोई भी बात जो हम देखते हैं, हमेशा जैसी दिखती है वैसी नहीं होती है उसका एक दूसरा पहलू भी हो सकता है.*

*किसी के प्रति*
*कोई निर्णय लेने से पहले*
*सौ बार सोचें और तब फैसला करें.*

गुरुवार, 25 मई 2017

सत्य धर्म क्या है

कर्ण ने कृष्ण से पूछा  -  मेरा जन्म होते ही मेरी माँ ने मुझे त्यज दिया। क्या अवैध संतान होना मेरा दोष था ?
द्रोणाचार्य ने मुझे सिखाया नहीं क्योंकि मैं क्षत्रिय पुत्र नहीं था।
परशुराम जी ने मुझे सिखाया तो सही परंतु श्राप दे दिया कि जिस वक्त मुझे उस विद्या की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, मुझे उसका विस्मरण होगा।- क्योंकि उनके अनुसार मैं क्षत्रिय ही था ।
केवल संयोगवश एक गाय को मेरा बाण लगा और उसके स्वामी ने मुझे श्राप दिया जबकि मेरा कोई दोष नहीं था ।
द्रौपदी स्वयंवर में मेरा अपमान किया गया ।
माता कुंती ने मुझे आखिर में मेरा जन्म रहस्य बताया भी तो अपने अन्य बेटों को बचाने के लिए।
जो भी मुझे प्राप्त हुआ है, दुर्योधन के दातृत्व से ही हुआ है ।
तो, अगर मैं उसकी तरफ से लड़ूँ तो मैं गलत कहाँ हूँ ?

कृष्ण ने उत्तर दिया:

कर्ण, मेरा जन्म कारागार में हुआ ।
जन्म से पहले ही मृत्यु मेरी प्रतीक्षा में घात लगाए बैठा था।
जिस रात मेरा जन्म हुआ, उसी रात मातापिता से दूर किया गया ।
तुम्हारा बचपन खड्ग, रथ, घोड़े, धनुष्य और बाण के बीच उनकी ध्वनि सुनते बीता । मुझे ग्वाले की गौशाला मिली, गोबर मिला और खड़ा होकर चल भी पाया उसके पहले ही कई प्राणघातक हमले झेलने पड़े ।

कोई सेना नहीं, कोई शिक्षा नहीं। लोगों से ताने ही मिले कि उनकी समस्याओं का कारण मैं हूँ। तुम्हारे गुरु जब तुम्हारे शौर्य की तारीफ कर रहे थे, मुझे उस उम्र में कोई शिक्षा भी नहीं मिली थी।  जब मैं सोलह वर्षों का हुआ तब कहीं जाकर ऋषि सांदीपन के गुरुकुल पहुंचा ।

तुम अपनी पसंद की कन्या से विवाह कर सके ।
जिस कन्या से मैंने प्रेम किया वो मुझे नहीं मिली और उनसे विवाह करने पड़े जिन्हें मेरी चाहत थी या जिनको मैंने राक्षसों से बचाया था ।
मेरे पूरे समाज को यमुना के किनारे से हटाकर एक दूर समुद्र के किनारे बसाना पड़ा,  उन्हें जरासंध से बचाने के लिए । रण से पलायन के कारण मुझे भीरु भी कहा गया ।

कल अगर दुर्योधन युद्ध जीतता है तो तुम्हें बहुत श्रेय मिलेगा ।

धर्मराज अगर जीतता है तो मुझे क्या मिलेगा ?
मुझे केवल युद्ध और युद्ध से निर्माण हुई समस्याओं के लिए दोष दिया जाएगा।
एक बात का स्मरण रहे कर्ण -
हर किसी को जिंदगी चुनौतियाँ देती है, जिंदगी किसी के भी साथ न्याय नहीं करती। दुर्योधन ने अन्याय का सामना किया है तो युधिष्ठिर ने भी अन्याय भुगता है ।

लेकिन सत्य धर्म क्या है यह तुम जानते हो ।

कोई बात नहीं अगर कितना ही अपमान हो, जो हमारा अधिकार है वो हमें ना मिल पाये...महत्व इस बात का है कि तुम उस समय उस संकट का सामना कैसे करते हो ।

रोना धोना बंद करो कर्ण,  जिंदगी न्याय नहीं करती इसका मतलब यह नहीं होता कि तुम्हें अधर्म के पथ पर चलने की अनुमति है ।

ज्येष्ठ अमावस्या का ज्ञान

आज ज्येष्ठ अमावस्या का ज्ञान :

एक किसान था. वह एक बड़े से खेत में खेती किया करता था. उस खेत के बीचो-बीच पत्थर का एक हिस्सा ज़मीन से ऊपर निकला हुआ था जिससे ठोकर खाकर वह कई बार गिर चुका था और ना जाने कितनी ही बार उससे टकराकर खेती के औजार भी टूट चुके थे.।

रोजाना की तरह वह सुबह-सुबह खेती करने पहुंचा पर जो सालों से होता आ रहा था एक वही हुआ , एक बार फिर किसान का हल पत्थर से टकराकर टूट गया ।

किसान बिल्कुल क्रोधित हो उठा , और उसने मन ही मन सोचा की आज जो भी हो जाए वह इस चट्टान को ज़मीन से निकाल कर इस खेत के बाहर फ़ेंक देगा। वह तुरंत भागा और गाँव से ४-५ लोगों को बुला लाया और सभी को लेकर वह उस पत्त्थर के पास पहुंचा ।

” मित्रों “, किसान बोला , ” ये देखो ज़मीन से निकले चट्टान के इस हिस्से ने मेरा बहुत नुक्सान किया है, और आज हम सभी को मिलकर इसे जड़ से निकालना है और खेत के बाहर फ़ेंक देना है.”

और ऐसा कहते ही वह फावड़े से पत्थर के किनार वार करने लगा, पर ये क्या ! अभी उसने एक-दो बार ही मारा था की पूरा-का पूरा पत्थर ज़मीन से बाहर निकल आया।

साथ खड़े लोग भी अचरज में पड़ गए और उन्ही में से एक ने हँसते हुए पूछा ,” क्यों भाई , तुम तो कहते थे कि तुम्हारे खेत के बीच में एक बड़ी सी चट्टान दबी हुई है , पर ये तो एक मामूली सा पत्थर निकला ??”

किसान भी आश्चर्य में पड़ गया सालों से जिसे वह एक भारी-भरकम चट्टान समझ रहा था दरअसल वह बस एक छोटा सा पत्थर था !! उसे पछतावा हुआ कि काश उसने पहले ही इसे निकालने का प्रयास किया होता तो ना उसे इतना नुक्सान उठाना पड़ता और ना ही दोस्तों के सामने उसका मज़ाक बनता ।

दोस्तों,  इस किसान की तरह ही हम भी कई बार ज़िन्दगी में आने वाली छोटी-छोटी बाधाओं को बहुत बड़ा समझ लेते हैं और उनसे निपटने की बजाये तकलीफ उठाते रहते हैं। ज़रुरत इस बात की है कि हम बिना समय गंवाएं उन मुसीबतों से लडें , और जब हम ऐसा करेंगे तो कुछ ही समय में चट्टान सी दिखने वाली समस्या एक छोटे से पत्थर के समान दिखने लगेगी जिसे हम आसानी से ठोकर मार कर आगे बढ़ सकते हैं ।

सोमवार, 1 मई 2017

इच्छापूर्ति वॄक्ष

*इच्छापूर्ति वॄक्ष*

                 एक घने जंगल में एक *इच्छापूर्ति वृक्ष* था, उसके नीचे बैठ कर कोई भी *इच्छा* करने से वह *तुरंत पूरी* हो जाती थी।
                यह बात बहुत कम लोग जानते थे..क्योंकि उस घने जंगल में जाने की कोई *हिम्मत ही नहीं* करता था।
                  एक बार संयोग से एक थका हुआ *व्यापारी* उस वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए बैठ गया उसे पता ही नहीं चला कि कब उसकी नींद लग गई।
                 *जागते ही* उसे बहुत *भूख लगी* ,उसने आस पास देखकर सोचा- ' काश *कुछ खाने को मिल जाए !*' तत्काल स्वादिष्ट *पकवानों से भरी थाली* हवा में तैरती हुई उसके सामने आ गई।
                   व्यापारी ने *भरपेट खाना* खाया और भूख शांत होने के बाद सोचने लगा..
                *काश कुछ पीने को मिल जाए..*' तत्काल उसके सामने हवा में तैरते हुए अनेक *शरबत* आ गए।
                  *शरबत* पीने के बाद वह आराम से बैठ कर सोचने लगा-   ' *कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूँ।*
            हवा में से खाना पानी प्रकट होते पहले कभी नहीं देखा न ही सुना..जरूर इस *पेड़ पर कोई भूत* रहता है जो मुझे खिला पिला कर बाद में *मुझे खा लेगा*  ऐसा सोचते ही तत्काल उसके सामने एक *भूत आया और उसे खा गया।*
              इस प्रसंग से आप यह सीख सकते है कि *हमारा मस्तिष्क ही इच्छापूर्ति वृक्ष है आप जिस चीज की प्रबल कामना करेंगे  वह आपको अवश्य मिलेगी।*
               अधिकांश लोगों को जीवन में बुरी चीजें इसलिए मिलतीहैं.....
क्योंकि वे *बुरी चीजों की ही कामना* करते हैं।
                   इंसान ज्यादातर समय सोचता है-कहीं बारिश में भीगने से मै *बीमार न हों जाँऊ* ..और वह *बीमार हो जाता हैं*..!
             
                इंसान सोचता है - मेरी *किस्मत ही खराब* है .. और उसकी *किस्मत सचमुच खराब* हो जाती हैं ..!
      
              इस तरह आप देखेंगे कि आपका *अवचेतन मन* इच्छापूर्ति वृक्ष की तरह आपकी *इच्छाओं को ईमानदारी से पूर्ण* करता है..!
                इसलिए आपको अपने मस्तिष्क में *विचारों को सावधानी से प्रवेश* करने की *अनुमति देनी चाहिए।*
               यदि *गलत विचार* अंदर आ जाएगे तो *गलत परिणाम* मिलेंगे। *विचारों पर काबू* रखना ही अपने *जीवन पर काबू* करने का रहस्य है..!
            आपके *विचारों से ही* आपका  *जीवन* या तो..
*स्वर्ग* बनता है या *नरक*..उनकी बदौलत ही आपका *जीवन सुखमय या दुख:मय* बनता है..
              *विचार जादूगर* की तरह होते है , जिन्हें *बदलकर* आप अपना *जीवन बदल* सकते है..!
           इसलिये सदा *सकारात्मक सोच* रखें .. यदि आप *अच्छा सोचने लगते है*तो पूरी *कायनात* आपको और अच्छा *देने में लग जाती है।*
          

FAIL

                *सकारात्मकता*

*FAIL* होने पर कभी भी हार न मानें क्योंकि *F.A.I.L. (First Attempt In Learning)* का अर्थ होता है "सीखने की आपकी पहली कोशिश"...

*END* भी अंत नहीं होता, क्योंकि *E.N.D.(Effort Never Dies)* का अर्थ होता है "कोशिश कभी बेकार नहीं जाती"...

*NO* में आपको जवाब मिलता है, तो भी कोई
बात नहीं क्योंकि *N.O.(Next Opportunity)* का अर्थ होता है "अगला अवसर"|

इसलिए हमेशा *POSITIVE* बने रहिए...

– *ए.पी.जे. अब्दुल कलाम*

शनिवार, 22 अप्रैल 2017

संगत का प्रभाव

संगत का प्रभाव

एक राजा का तोता मर गया। उन्होंने अपने मंत्री से कहा-- मंत्रीवर हमारा पिंजरा सूना हो गया इसमें पालने के लिए एक तोता लाओ। तोते सदैव तो मिलते नहीं। राजा पीछे पड़ गये तो मंत्री एक संत के पास गये और कहा-- भगवन्! राजा साहब एक तोता लाने की जिद कर रहे हैं। आप अपना तोता दे दें तो बड़ी कृपा होगी। संत ने कहा- ठीक है, ले जाओ।

         राजा ने सोने के पिंजरे में बड़े स्नेह से तोते की सुख-सुविधा का प्रबन्ध किया। ब्रह्ममुहूर्त में तोता बोलने लगा-- ओम् तत्सत्....ओम् तत्सत् ... उठो राजा! उठो महारानी! दुर्लभ मानव-तन मिला है। यह सोने के लिए नहीं, भजन करने के लिए मिला है।

'चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर। तुलसीदास चंदन घिसै तिलक देत रघुबीर।।'

         कभी रामायण की चौपाई तो कभी गीता के श्लोक उसके मुँह से निकलते। पूरा राजपरिवार बड़े सवेरे उठकर उसकी बातें सुना करता था। राजा कहते थे कि सुग्गा क्या मिला, एक संत मिल गये।

       हर जीव‍‍‍ की एक निश्चित आयु होती है। एक दिन वह सुग्गा मर गया। राजा, रानी, राजपरिवार और पूरे राष्ट्र ने हफ़्तों शोक मनाया। झण्डा झुका दिया गया। किसी प्रकार राजपरिवार ने शोक संवरण किया और राजकाज में लग गये। पुनः राजा साहब ने कहा-- मंत्रीवर! खाली पिंजरा सूना-सूना लगता है, एक तोते की व्यवस्था हो जाती!

      मंत्री ने इधर-उधर देखा, एक कसाई के यहाँ वैसा ही तोता एक पिंजरे में टँगा था। मंत्री ने कहा कि इसे राजा साहब चाहते हैं। कसाई ने कहा कि आपके राज्य में ही तो हम रहते हैं। हम नहीं देंगे तब भी आप उठा के  ले जायेंगे। मंत्री ने कहा-- नहीं, हम तो प्रार्थना करेंगे। कसाई ने बताया कि किसी बहेलिये ने एक वृक्ष से दो सुग्गे पकड़े थे। एक को उसने महात्माजी को दे दिया था और दूसरा मैंने खरीद लिया था। राजा को चाहिये तो आप ले जायँ।

         अब कसाईवाला तोता राजा के पिंजरे में पहुँच गया। राजपरिवार बहुत प्रसन्न हुआ। सबको लगा कि वही तोता जीवित होकर चला आया है। दोनों की नासिका, पंख, आकार, चितवन सब एक जैसे थे। लेकिन बड़े सवेरे तोता उसी प्रकार राजा को बुलाने लगा जैसे वह कसाई अपने नौकरों को उठाता था कि उठ! आलसी कामचोर ! राजा बन बैठा है। मेरे लिए ला अण्डे, नहीं तो पड़ेंगे डण्डे!

       राजा को इतना क्रोध आया कि उसने तोते को पिंजरे से निकाला और गर्दन मरोड़कर किले से बाहर फेंक दिया।

        दोनों सुग्गे सगे भाई थे। एक की गर्दन मरोड़ दी गयी, तो दूसरे के लिए झण्डे झुक गये, भण्डारा किया गया, शोक मनाया गया। आखिर भूल कहाँ   हो गयी? अन्तर था तो संगति का! सत्संगकी कमी थी।

*'संगत ही गुण होत है, संगत ही गुण जाय।*

बाँस फाँस अरु मीसरी, एकै भाव बिकाय।।'

बाबा(paramatma)कहते है कि संग तारे कुसंग बोरे   
सत्य☑ क्या है और असत्य✖ क्या है? उस सत्य की संगति कैसे करें? यही सब समझने‍♀की बात है

                 ॐशांति.
*जय श्री राधे कृष्णा*

उपकार

जंगल में शेर शेरनी शिकार के लिये दूर तक गये अपने बच्चों को अकेला छोडकर।
देर तक नही लौटे तो बच्चे भूख से छटपटाने लगे उसी समय एक बकरी आई उसे दया आई और उन बच्चों को दूध पिलाया फिर बच्चे मस्ती करने लगे तभी शेर शेरनी आये बकरी को देख लाल पीले होकर हमला करता उससे पहले बच्चों ने कहा इसने हमें दूध पिलाकर बड़ा उपकार किया है नही तो हम मर जाते।
अब शेर खुश हुआ और कृतज्ञता के भाव से बोला हम तुम्हारा उपकार कभी नही भूलेंगे जाओ आजादी के साथ जंगल मे घूमो फिरो मौज करो।
अब बकरी जंगल में निर्भयता के साथ रहने लगी यहाँ तक कि शेर के पीठ पर बैठकर भी कभी कभी पेडो के पत्ते खाती थी।
यह दृश्य चील ने देखा तो हैरानी से बकरी को पूछा तब उसे पता चला कि उपकार का कितना महत्व है।
चील ने यह सोचकर कि एक प्रयोग मैं भी करता हूँ चूहों के छोटे छोटे बच्चे दलदल मे फंसे थे निकलने का प्रयास करते पर कोशिश बेकार ।
चील ने उनको पकड पकड कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया बच्चे भीगे थे सर्दी से कांप रहे थे तब चील ने अपने पंखों में छुपाया, बच्चों को बेहद राहत मिली
काफी समय बाद चील उडकर जाने लगी तो हैरान हो उठी चूहों के बच्चों ने उसके पंख कुतर डाले थे।
चील ने यह घटना बकरी को सुनाई तुमने भी उपकार किया और मैंने भी फिर यह फल अलग क्यों? ?
बकरी हंसी फिर गंभीरता से कहा
उपकार भी शेर जैसो पर किया जाए चूहों पर नही।
चूहों (कायर) हमेशा उपकार को स्मरण नही रखेंगे वो तो भूलना बहादुरी समझते है और शेर(बहादुर )उपकार कभी नही भूलेंगे ।
सनद रहे की पिछले वर्ष कश्मीरियों को सेना ने बाढ़ में डूबने से बचाया था और आज वो ही एहसान फरामोश सेना पे पत्थर और ग्रेनेड फेंक रहे हे ।
बहुत ही विचारणीय है

रविवार, 2 अप्रैल 2017

कर्म की गत न्यारी

"" कर्म की गत न्यारी ""❗❗
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖

एक बार एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों और ज्योतिष प्रेमियों की सभा बुलाकर प्रश्न किया !!!

मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था,मैं राजा बना, किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होगा जो राजा नहीं  बन सके क्यों..........❓❓❓

इसका क्या कारण है●●●●❓❓❓

राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर हो गये.
क्या जबाब दें कि एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके
भाग्य अलग अलग क्यों हैं ।

सब सोच में पड़ गये ।

अचानक एक वृद्ध खड़े हुये...?

और बोले महाराज की जय हो !
आपके प्रश्न का उत्तर भला कौन
दे सकता है,
आप यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में यदि जाएँ तो वहां पर आपको एक महात्मा मिलेंगे उनसे आपको उत्तर मिल सकता है ।
राजा की जिज्ञासा बढ़ी............★★
घनघोर जंगल में जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठ कर अंगार (गरमा गरम कोयला ) खाने में
व्यस्त हैं,
सहमे हुए राजा ने......
महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा महात्मा ने क्रोधित होकर कहा,
तेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए मेरे पास समय नहीं है ...?
मैं भूख से पीड़ित हूँ ।
तेरे प्रश्न का उत्तर यहां से कुछ आगे पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा हैं,बह दे सकते हैं ।

राजा की जिज्ञासा बढ़ गयी,
पुनः अंधकार और पहाड़ी मार्ग पार कर बड़ी कठिनाइयों से चलते-चलते,
राजा दूसरे महात्मा के पास
पहुंचा किन्तु यह क्या महात्मा को देखकर राजा हक्का बक्का रह गया,
दृश्य ही कुछ ऐसा था,

वे महात्मा अपना ही माँस चिमटे
से नोच नोच कर खा रहे थे ।

राजा को देखते ही महात्मा ने डांटते हुए कहा,
मैं भूख से बेचैन हूँ मेरे पास इतना समय नहीं है,
आगे जाओ पहाड़ियों के उस
पार एक आदिवासी गाँव में एक
बालक जन्म लेने वाला है,
जो कुछ ही देर तक जिन्दा रहेगा सूर्योदय से पूर्व वहाँ पहुँचो वह बालक तेरे प्रश्न का उत्तर का दे सकता है......?

सुन कर राजा बड़ा बेचैन हुआ बड़ी अजब पहेली बन गया मेरा प्रश्न, उत्सुकता प्रबल थी,कुछ भी हो यहाँ तक पहुँच चुका हूँ वहाँ भी जाकर देखता हूँ क्या होता है ।

राजा पुनः कठिन मार्ग पार कर
किसी तरह प्रातः होने तक  उस गाँव में पहुंचा, गाँव में पता किया,
उस दंपति के घर पहुंचकर सारी बात कही और शीघ्रता से बच्चा लाने को  कहा जैसे ही बच्चा हुआ  दम्पत्ति ने नाल सहित बालक राजा के सम्मुख उपस्थित किया ।

राजा को देखते ही बालक ने हँसते हुए कहा हे ! राजन्
मेरे पास भी समय नहीं है,
किन्तु अपना उत्तर सुनो लो

तुम,मैं और दोनों महात्मा पूर्व जन्म में हम चारों भाई व राजकुमार थे ।

एकबार शिकार खेलते खेलते हम जंगल में भटक गए।
तीन दिन तक भूखे प्यासे भटकते रहे ।
अचानक हम चारों  भाइयों को आटे की एक पोटली मिली जैसे-तैसे हमने चार बाटी सेकीं और अपनी अपनी बाटी लेकर खाने बैठे ही थे, कि भूख प्यास से तड़पते हुए एक महात्मा आ गये ।

अंगार खाने वाले भइया से उन्होंने कहा " बेटा " मैं दस दिन से भूखा हूँ,
अपनी बाटी में से मुझे भी कुछ
दे दो, मुझ पर दया करो....?जिससे मेरा भी जीवन बच जाय, इस घोर जंगल से पार निकलने की मुझमेंभी कुछ सामर्थ्य आ जायेगी
इतना सुनते ही भइया गुस्से से
भड़क उठे और बोले,
तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या आग
खाऊंगा......?
चलो भागो यहां से ! ! !

वे महात्मा जी फिर मांस खाने वाले भइया के निकट आये,

उनसे भी अपनी बात कही किन्तु उन भइया ने भी महात्मा से गुस्से में आकर कहा,
कि  बड़ी मुश्किल से प्राप्त ये बाटी तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या अपना मांस नोचकर खाऊंगा........! ! !

भूख से लाचार वे महात्मा  मेरे
पास भी आये,
मुझसे भी बाटी मांगी,

तथा दया करने को कहा किन्तु मैंने भी भूख में धैर्य खोकर कह
दिया,
कि चलो आगे बढ़ो मैं क्या भूखा
मरुँ.......! ! !

बालक बोला " अंतिम "आशा लिये
वो महात्मा हे ! राजन !
आपके पास आये,
आपसे भी दया की याचना की,
सुनते ही आपने उनकी दशा पर दया करते हुये हिस्से से अपनी बाटी में से आधी बाटी आदर सहित उन महात्मा को दे दी..........! ! !

बाटी पाकर महात्मा बड़े खुश
हुए और जाते हुए बोले ! ! !
"" तुम्हारा भविष्य "" तुम्हारे कर्म और व्यवहार से फलेगा ! ! !

बालक ने कहा इस प्रकार हे ! राजन !
उस घटना के आधार पर हम अपना भोग, भोग रहे हैं.....
धरती पर एक समय में अनेकों फूल  खिलते हैं ! !
किन्तु सबके फल  रूप, गुण, आकार-प्रकार, स्वाद  में भिन्न होते हैं ! ! !

इतना कहकर वह बालक मर गया !
राजा अपने महल में पहुंचा और माना कि ज्योतिष शास्त्र, कर्तव्य शास्त्र और व्यवहार शास्त्र है ! ! !

एक ही मुहूर्त में अनेकों जातक जन्म लेते हैं, किन्तु सब अपना  किया, दिया, लिया ही पाते हैं ! ! !

जैसा भोग भोगना होगा वैसे ही
योग बनेंगे ! ! !
जैसा योग  होगा वैसा ही भोग भोगना पड़ेगा,

शांत समय मे एक बार पुनः पड़ें  ! ! !