एक करोड़पति मर गया और स्वर्ग का दरवाजा खटखटाने लगा. देव: कौन हो तुम..? करोड़पति- मैं धरती पर करोड़पति था..!! मुझे स्वर्ग में प्रवेश चाहिए..! देव- स्वर्ग में रहने लायक तुमने कौन सा काम किया है..? करोड़पति- एक बार मैंने भूखी भिखारिन को दो रूपये दिये थे..। एक बार मेरी कार से टकराकर घायल हुए एक बच्चे को एक रूपया दिया था.. देव- और कुछ किया ? करोड़पति- और कुछ तो याद नही आता.. देव (दूसरे देव से) भाई क्या करे इसका..? दूसरे देव – इसके तीन रूपये लौटाकर इसे नरक भेज दो..।।
रविवार, 26 जुलाई 2015
शनिवार, 18 जुलाई 2015
"गोल गप्पे वाला"
"गोल गप्पे वाला"
रविवार का दिन था, पत्नी जी की डिमांड हुई की आज गोल गप्पे खाने की इच्छा है । मैंने भी कह दिया चलो शाम को 6 बजे चलते है ।
शाम के 6 बजे गोलगप्पे का ठेला जो की हमारी कॉलोनी के बहार रोड पर ही खड़ा रहता है वहीँ चले गए और देखा तो वहाँ काफी भीड़ थी...लोग हाथ में प्लेट लेकर line में लगे हुए थे।
तकरीबन 15 मिनिट के बाद हमारा भी नम्बर आ गया.... लेकिन उस 15 मिनिट के दौरान में यह सोचता रहा की बेचारा क्या कमाता होगा ??
बेचारा बड़ी मेहनत करता है ??
बेचारा घर का गुजारा कैसे चलाता होगा ??
जब हमारी बारी आई तो मैंने गोल गप्पे वाले से यूँही पूछ लिया -" भाई क्या कमा लेते हो दिन भर में" (मुझे यह उम्मीद थी की 300-400₹ बन जाता होगा गरीब आदमी का )
गोल गप्पे वाला - "साहब जी भगवान की कृपा से माल पूरा लग जाता है "
मैंने पुछा - "में समझा नही भाई, मतलब जरा अच्छे से समझाओ"
गोल गप्पे वाला - " साहब हम सुबह में 7 बजे घर से 3000 खाली गोलगप्पे की पूरिया लेकर के निकलते है और शाम को 7 बजने से पहले भगवान की किरपा से सब माल लग जाता है "
मैंने हिसाब लगाया की यह 10 ₹ में 6 गोल गप्पे खिलाता है मतलब की 3000 गोल गप्पे बिकने पर उसको 5000 ₹ मिलते होंगे और अगर 50 % उसका प्रॉफिट समझे तो वह दिन के 2500 ₹ या उससे भी ज्यादा कमा लेता है...!!!
यानी की महीने के 75,000 ₹ !!!
यह सोचकर तो मेरा दिमाग चकराने लगा.... अब मुझे गोलगप्पे वाला बेचारा नजर नही आ रहा था...बेचारा तो में हो गया था...!!
एक 7-8 क्लास पढ़ा इन्सान इज्जत के साथ महीने के 75,000 ₹ कमा रहा है... उसने अपना 45 लाख का घर ले लिया है...और 4 दुकाने खरीद कर किराये पर दे रखी है जिनका महीने का किराया 30,000₹ आता है...।
और हमने बरशों तक पढ़ाई की, उसके बाद 20-25 हजार की नौकरी कर रहे है.... किराये के मकान में रह रहे है... यूँही टाई बांधकर झुठी शानमें घूम रहे हैं...
दिल तो किया की उसी गोलगप्पे में कूदकर डूब जाऊं...
किसी ने सही कहा है ...
"DON'T UNDER ESTIMATE POWER OF THE COMMON MAN "
बुधवार, 8 जुलाई 2015
Nanha krishna
बहुत समय पहले की बात है वृन्दावन में
श्रीबांके
बिहारी जी के मंदिर में रोज
पुजारी जी बड़े भाव से सेवा
करते थे। वे रोज बिहारी जी की
आरती करते , भोग
लगाते और उन्हें शयन कराते और रोज चार लड्डू
भगवान के बिस्तर के पास रख देते थे। उनका यह भाव
था कि बिहारी जी को यदि रात में भूख
लगेगी तो वे उठ
कर खा लेंगे। और जब वे सुबह मंदिर के पट खोलते थे
तो भगवान के बिस्तर पर प्रसाद बिखरा मिलता था।
इसी भाव से वे रोज ऐसा करते थे।
एक दिन बिहारी जी को शयन कराने के बाद
वे चार
लड्डू रखना भूल गए। उन्होंने पट बंद किए और चले
गए। रात में करीब एक-दो बजे , जिस दुकान से वे
बूंदी
के लड्डू आते थे , उन बाबा की दुकान
खुली थी। वे घर
जाने ही वाले थे तभी एक छोटा सा बालक
आया और
बोला बाबा मुझे बूंदी के लड्डू चाहिए।
बाबा ने कहा - लाला लड्डू तो सारे ख़त्म हो गए। अब
तो मैं दुकान बंद करने जा रहा हूँ। वह बोला आप अंदर
जाकर देखो आपके पास चार लड्डू रखे हैं। उसके हठ
करने पर बाबा ने अंदर जाकर देखा तो उन्हें चार लड्डू
मिल गए क्यों कि वे आज मंदिर नहीं गए थे। बाबा ने
कहा - पैसे दो।
बालक ने कहा - मेरे पास पैसे तो नहीं हैं और तुरंत
अपने हाथ से सोने का कंगन उतारा और बाबा को देने
लगे। तो बाबा ने कहा - लाला पैसे नहीं हैं तो रहने दो
,
कल अपने बाबा से कह देना , मैं उनसे ले लूँगा। पर वह
बालक नहीं माना और कंगन दुकान में फैंक कर भाग
गया। सुबह जब पुजारी जी ने पट खोला तो
उन्होंने देखा
कि बिहारी जी के हाथ में कंगन
नहीं है। यदि चोर भी
चुराता तो केवल कंगन ही क्यों चुराता। थोड़ी
देर बाद
ये बात सारे मंदिर में फ़ैल गई।
जब उस दुकान वाले को पता चला तो उसे रात की बात
याद आई। उसने अपनी दुकान में कंगन ढूंढा और
पुजारी
जी को दिखाया और सारी बात सुनाई। तब
पुजारी जी
को याद आया कि रात में , मैं लड्डू रखना ही भूल गया
था। इसलिए बिहारी जी स्वयं लड्डू लेने
गए थे।
यदि भक्ति में भक्त कोई सेवा भूल भी जाता है तो
भगवान अपनी तरफ से पूरा कर लेते हैं।
शुभ-दिवस
राधे-राधे.
मांगी थी इक कली उतार कर
हार दे दिया
चाही थी एक धुन अपना सितार दे दिया
झोली बहुत ही छोटी
थी मेरी "कृष्णा"
तुमने तो कन्हैया हंस कर सारा संसार दे दिया
"""""""जय जय श्री राधे कृष्णा"""""
रविवार, 5 जुलाई 2015
श्रीनाथजी
Really Touching...
श्रीनाथजी : - "जय श्री कृष्ण.....
माखनचोर नटखट श्री कृष्ण को रंगे हाथों पकड़ने के लिये एक ग्वालिन ने एक अनोखी जुगत भिड़ाई।उसने माखन की मटकी के साथ एक घंटी बाँध दी कि जैसे ही बाल कृष्ण माखन-मटकी को हाथ लगायेगा,घंटी बज उठेगी और मैं उसे रंगे हाथों पकड़ लूँगी।
बाल कृष्ण अपने सखाओं के साथ दबे पाँव घर में घुसे। श्री दामा की दृष्टि तुरन्त घंटी पर पड़ गई और उन्होंने बाल कृष्ण को संकेत किया। बाल कृष्ण ने सभी को निश्चिंत रहने का संकेत करते हुये, घंटी से फुसफसाते हुये कहा-'देखो घंटी, हम माखन चुरायेंगे, तुम बिल्कुल मत बजना।,
घंटी बोली-'जैसी आज्ञा प्रभु, नहीं बजूँगी।'
बाल कृष्ण ने ख़ूब माखन चुराया, अपने सखाओं को खिलाया-घंटी नहीं बजी। ख़ूब बंदरों को खिलाया- घंटी नहीं बजी। अंत में ज्यों हीं बाल कृष्ण ने माखन से भरा हाथ अपने मुँह से लगाया, त्यों ही घंटी बज उठी। घंटी की आवाज़ सुन कर ग्वालिन दौड़ी आई। ग्वाल बालों में भगदड़ मच गई। सारे भाग गये बस श्री कृष्ण पकड़ाई में आ गये।
बाल कृष्ण बोले-'तनिक ठहर गोपी,तुझे जो सज़ा देनी है वो दे दीजो, पर उससे पहले मैं ज़रा इस घंटी से निबट लूँ। क्यों री घंटी! तू बजी क्यो? मैंने मना किया था न।'
घंटी क्षमा माँगती हुई बोली-'प्रभु आपके सखाओं ने माखन खाया, मैं नहीं बजी। आपने बंदरों को ख़ूब माखन खिलाया, मैं नहीं बजी, किन्तु जैसे ही आपने माखन खाया तब तो मुझे बजना ही था,मुझे आदत पड़ी हुई है प्रभु! मंदिर में जब पुजारी भगवान को भोग लगाते हैं तब घंटियाँ बजाते हैं। इसलिये प्रभु मैं आदतन बज उठी।
श्री गिरिराज धरण की जय .....
सोमवार, 29 जून 2015
Swami vivekanand and maya
मुंशीं फैज अली ने स्वामी विवेकानन्द से पूछा :
स्वामी जी हमें बताया गया है कि अल्लाह एक ही है।
यदि वह एक ही है, तो फिर संसार उसी ने बनाया होगा ?
स्वामी जी बोले, "सत्य है।".
मुशी जी बोले ,"तो फिर इतने प्रकार के मनुष्य क्यों बनाये।
जैसे कि हिन्दु, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई और सभी को अलग-अलग धार्मिक ग्रंथ भी दिये।
एक ही जैसे इंसान बनाने में उसे यानि की अल्लाह को क्या एतराज था।
सब एक होते तो न कोई लङाई और न कोई झगङा होता।
स्वामी हँसते हुए बोले, "मुंशी जी वो सृष्टी कैसी होती जिसमें एक ही प्रकार के फूल होते।
केवल गुलाब होता, कमल या रंजनिगंधा या गेंदा जैसे फूल न होते!".
फैज अली ने कहा सच कहा आपने यदि एक ही दाल होती तो खाने का स्वाद भी एक ही होता।
दुनिया तो बङी फीकी सी हो जाती!
स्वामी जी ने कहा, मुंशीजी! इसीलिये तो ऊपर वाले ने अनेक प्रकार के जीव-जंतु और इंसान बनाए ताकि हम पिंजरे का भेद भूलकर जीव की एकता को पहचाने।
मुंशी जी ने पूछा, इतने मजहब क्यों ?
स्वामी जी ने कहा, " मजहब तो मनुष्य ने बनाए हैं,
प्रभु ने तो केवल धर्म बनाया है।
मुंशी जी ने कहा कि, "ऐसा क्यों है कि एक मजहब में कहा गया है कि गाय और सुअर खाओ और दूसरे में कहा गया है कि गाय मत खाओ, सुअर खाओ एवं तीसरे में कहा गया कि गाय खाओ सुअर न खाओ;
इतना ही नही कुछ लोग तो ये भी कहते हैं कि मना करने पर जो इसे खाये उसे अपना दुश्मन समझो।"
स्वामी जी जोर से हँसते हुए मुंशी जी से पूछे कि, "क्या ये सब प्रभु ने कहा है ?"
मुंशी जी बोले नही, "मजहबी लोग यही कहते हैं।"
स्वामी जी बोले, "मित्र! किसी भी देश या प्रदेश का भोजन वहाँ की जलवायु की देन है।
सागरतट पर बसने वाला व्यक्ति वहाँ खेती नही कर सकता, वह सागर से पकङ कर मछलियां ही खायेगा।
उपजाऊ भूमि के प्रदेश में खेती हो सकती है।
वहाँ अन्न फल एवं शाक-भाजी उगाई जा सकती है।
उन्हे अपनी खेती के लिए गाय और बैल बहुत उपयोगी लगे।
उन्होने गाय को अपनी माता माना, धरती को अपनी माता माना और नदी को माता माना ।
क्योंकि ये सब उनका पालन पोषण माता के समान ही करती हैं।"
अब जहाँ मरुभूमि है वहाँ खेती कैसे होगी?
खेती नही होगी तो वे गाय और बैल का क्या करेंगे? अन्न है नही तो खाद्य के रूप में पशु को ही खायेंगे।
तिब्बत में कोई शाकाहारी कैसे हो सकता है?
वही स्थिति अरब देशों में है। जापान में भी इतनी भूमि नही है कि कृषि पर निर्भर रह सकें।
स्वामी जी फैज अलि की तरफ मुखातिब होते हुए बोले, " हिन्दु कहते हैं कि मंदिर में जाने से पहले या पूजा करने से पहले स्नान करो।
मुसलमान नमाज पढने से पहले वाजु करते हैं।
क्या अल्लाह ने कहा है कि नहाओ मत, केवल लोटे भर पानी से हांथ-मुँह धो लो?
फैज अलि बोला, क्या पता कहा ही होगा!
स्वामी जी ने आगे कहा,नहीं, अल्लहा ने नही कहा!
अरब देश में इतना पानी कहाँ है कि वहाँ पाँच समय नहाया जाए।
जहाँ पीने के लिए पानी बङी मुश्किल से मिलता हो वहाँ कोई पाँच समय कैसे नहा सकता है।
यह तो भारत में ही संभव है, जहाँ नदियां बहती हैं,
झरने बहते हैं, कुएँ जल देते हैं।
तिब्बत में यदि पानीहो तो वहाँ पाँच बार व्यक्ति यदि नहाता है तो ठंड के कारण ही मर जायेगा।
यह सब प्रकृति ने सबको समझाने के लिये किया है।
स्वामी विवेकानंद जी ने आगे समझाते हुए कहा कि," मनुष्य की मृत्यु होती है।
उसके शव का अंतिम संस्कार करना होता है। अरब देशों में वृक्ष नही होते थे, केवल रेत थी। अतः वहाँ मृतिका समाधी का प्रचलन हुआ, जिसे आप दफनाना कहते हैं।
भारत में वृक्ष बहुत बङी संख्या में थे, लकडी.पर्याप्त उपलब्ध थी अतः भारत में अग्नि संस्कार का प्रचलन हुआ।
जिस देश में जो सुविधा थी वहाँ उसी का प्रचलन बढा।
वहाँ जो मजहब पनपा उसने उसे अपने दर्शन से जोङ लिया।
फैज अलि विस्मित होते हुए बोला!
स्वामी जी इसका मतलब है कि हमें शव का अंतिम संस्कार प्रदेश और देश के अनुसार करना चाहिये। मजहब के अनुसार नही।
"स्वामी जी बोले, "हाँ! यही उचित है।"
किन्तु अब लोगों ने उसके साथ धर्म को जोङ दिया। मुसलमान ये मानता है कि उसका ये शरीर कयामत के दिन उठेगा इसलिए वह शरीर को जलाकर समाप्त नही करना चाहता।
हिन्दू मानता है कि उसकी आत्मा फिर से नया शरीर धारण करेगी इसलिए उसे मृत शरीर से एक क्षंण भी मोह नही होता।
फैज अलि ने पूछा कि, "एक मुसलमान के शव को जलाया जाए और एक हिन्दु के शव को दफनाया जाए तो क्या प्रभु नाराज नही होंगे?
स्वामी जी ने कहा," प्रकृति के नियम ही प्रभु का आदेश हैं।
वैसे प्रभु कभी रुष्ट नही होते वे प्रेमसागर हैं, करुणा सागर है।
फैज अलि ने पूछा तो हमें उनसे डरना नही चाहिए?
स्वामी जी बोले, "नही! हमें तो ईश्वर से प्रेम करना चाहिए वो तो पिता समान है, दया का सागर है फिर उससे भय कैसा।
डरते तो उससे हैं हम जिससे हम प्यार नही करते।
फैज अलि ने हाँथ जोङकर स्वामी विवेकानंद जी से पूछा, "तो फिर मजहबों के कठघरों से मुक्त कैसे हुआ जा सकता है?
"स्वामी जी ने फैज अलि की तरफ देखते हुए मुस्कराकर कहा,
"क्या तुम सचमुच कठघरों से मुक्त होना चाहते हो?"
फैज अलि ने स्वीकार करने की स्थिति में अपना सर हिला दिया।
स्वामी जी ने आगे समझाते हुए कहा, "फल की दुकान पर जाओ, तुम देखोगे वहाँ आम, नारियल, केले, संतरे,अंगूर आदि अनेक फल बिकते हैं; किंतु वो दुकान तो फल की दुकान ही कहलाती है।
वहाँ अलग-अलग नाम से फल ही रखे होते हैं।
"फैज अलि ने हाँ में सर हिला दिया।
स्वामी विवेकानंद जी ने आगे कहा कि, "अंश से अंशी की ओर चलो।
तुम पाओगे कि सब उसी प्रभु के रूप हैं।"
फैज अलि अविरल आश्चर्य से स्वामी विवेकानंद जी को देखते रहे और बोले "स्वामी जी मनुष्य ये सब क्यों नही समझता?" स्वामी विवेकानंद जी ने शांत स्वर में कहा, मित्र! प्रभु की माया को कोई नही समझता।
मेरा मानना तो यही है कि, "सभी धर्मों का गंतव्य स्थान एक है।
जिस प्रकार विभिन्न मार्गो से बहती हुई नदियां समुंद्र में जाकर गिरती हैं, उसी प्रकार सब मतमतान्तर परमात्मा की ओर ले जाते हैं।
मानव धर्म एक है, मानव जाति एक है।"...
शुक्रवार, 26 जून 2015
उल्लू और हंस
एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये!
हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ??
यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !
भटकते भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !
रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था।
वह जोर से चिल्लाने लगा।
हंसिनी ने हंस से कहा- अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते।
ये उल्लू चिल्ला रहा है।
हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ??
ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।
पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था।
सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।
हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद!
यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा
पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।
हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी ??
अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है,मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है!
उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।
दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये।
कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी।
पंचलोग भी आ गये!
बोले- भाई किस बात का विवाद है ??
लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है!
लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे।
हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है।
इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना चाहिए!
फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है!
यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया।
उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली!
रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको!
हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ??
पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ?
उल्लू ने कहा- नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी!
लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है!
मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है।
यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं!
शायद 65 साल की आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने उम्मीदवार की योग्यता न देखते हुए, हमेशा ये हमारी जाति का है. ये हमारी पार्टी का है के आधार पर अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है, देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैँ!
अतीत सदा याद रहता है
अतीत सदा याद रहता है
बिल गेटस सुबह के नाश्ते के लिए एक रेस्टोरेंट में पहुंचे।
जब उन्होंने नाश्ता समाप्त कर लिया और वेटर बिल ले आया, तब उन्होंने भुगतान के अलावा पांच डालर बतौर टिप टृे में रख दिए।
वेटर ने टिप तो ले लिया पर उसके मुंह पर आया हुआ आश्चर्य का भाव गेटस की दृष्टि से ओझल न रह सका।
उसी को भांपते हुए उनहोंने पूछा–क्या कोई खास बात है?
वेटर ने कहा– जी, अभी दो दिन पहले की बात है इसी मेज पर आपकी बेटी ने लंच किया और मुझे बतौर टिप पांच सौ डालर दिये थे और आप उनके पिता दुनिया के सबसे अमीर आदमी होने के बावजूद मुझे केवल पांच डालर दिये हैं।
मुस्कुराते हुए गेटस बोले– हां, क्योंकि वह दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति की बेटी है और मैं एक लकडहारे का बेटा हुं।
मुझे अपना अतीत सदा याद रहता है,
क्योंकि वह मेरा सर्वोत्तम मार्गदर्शक है।
(एक मैगजीन से)
बुधवार, 24 जून 2015
Sir Alexander Fleming.
मंगलवार, 23 जून 2015
आपसी विश्वास
=आपसी विश्वास=
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संत कबीर रोज सत्संग किया करते थे। दूर-दूर से लोग उनकी बात सुनने आते थे।
एक दिन सत्संग खत्म होने पर भी एक आदमी बैठा ही रहा।
कबीर ने इसका कारण पूछा तो वह बोला, ‘मुझे आपसे कुछ पूछना है।
मैं गृहस्थ हूं, घर में सभी लोगों से मेरा झगड़ा होता रहता है। मैं जानना चाहता हूं कि मेरे यहां गृह क्लेश क्यों होता है और वह कैसे दूर हो सकता है?’
कबीर थोड़ी देर चुप रहे, फिर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, ‘लालटेन जलाकर लाओ’।
कबीर की पत्नी लालटेन जलाकर ले आई।
वह आदमी भौंचक देखता रहा। सोचने लगा इतनी दोपहर में कबीर ने लालटेन क्यों मंगाई।
थोड़ी देर बाद कबीर बोले, ‘कुछ मीठा दे जाना।’
इस बार उनकी पत्नी मीठे के बजाय नमकीन देकर चली गई।
उस आदमी ने सोचा कि यह तो शायद पागलों का घर है। मीठा के बदले नमकीन, दिन में लालटेन।
वह बोला, ‘कबीर जी मैं चलता हूं।’
कबीर ने पूछा, ‘आपको अपनी समस्या का समाधान मिला या अभी कुछ संशय बाकी है?’
वह व्यक्ति बोला, ‘मेरी समझ में कुछ नहीं आया।’
कबीर ने कहा, ‘जैसे मैंने लालटेन मंगवाई तो मेरी घरवाली कह सकती थी कि तुम क्या सठिया गए हो।
इतनी दोपहर में लालटेन की क्या जरूरत। लेकिन नहीं, उसने सोचा कि जरूर किसी काम के लिए लालटेन मंगवाई होगी।
मीठा मंगवाया तो नमकीन देकर चली गई। हो सकता है घर में कोई मीठी वस्तु न हो। यह सोचकर मैं चुप रहा।
इसमें तकरार क्या?
आपसी विश्वास बढ़ाने और तकरार में न फंसने से विषम परिस्थिति अपने आप दूर हो गई।’
उस आदमी को हैरानी हुई। वह समझ गया कि कबीर ने यह सब उसे बताने के लिए किया था।
कबीर ने फिर कहा,’ गृहस्थी में आपसी विश्वास से ही तालमेल बनता है।
आदमी से गलती हो तो औरत संभाल ले और औरत से कोई त्रुटि हो जाए तो पति उसे नजरअंदाज कर दे।
यही गृहस्थी का मूल मंत्र है।’
All married must read it.
शनिवार, 20 जून 2015
टेढ़े मेढ़े नटखट कान्हा
टेढ़े मेढ़े नटखट कान्हा की बहूत ही सुंदर कथा ~
एक बार की बात है बॄन्दावन का एक साधु अयोध्या की गलियों मे राधेकृष्ण राधेकृष्ण जप रहा था तो एक अयोध्या का साधु बोला -अरे भाई क्या राधेकृष्ण लगा रखा है, अरे नाम ही जपना है तो सीताराम, सीताराम जपो ना। क्या उस टेढ़े मेढ़े का नाम लेते हो?
यह सुन कर बृंदावन वाला साधु भड़क गया और बोला,भाई जुबान संभाल कर बात कीजिए,ये जुबान पान भी खिलाती है और लात भी खिलाती है,आपने मेरे इष्टदेव को टेढ़ा कैसे बोला?
अयोध्या का साधु बोला :-भाई ये बिल्कुल सत्य है कि सच्चाई बहूत कड़वी होती है,लोग सहन नही कर पाते हैं,देखिए ना सच सुन कर आप कितने बौखला गये?लेकिन,
सच्चाई छुप नही सकती बनावट के उसूलों से ,
कि खुश्बू आ नही सकती कभी कागज के फूलों से।
भाई हम यह साबित कर सकते हैं कि आपके कृष्ण तो टेढ़े मेढ़े हैं ही, उनका कुछ भी सीधा नही है। उसका नाम टेढ़ा,उसका धाम टेढ़ा,उसका काम टेढ़ा,और वो खुद भी टेढ़ा है,और मेरे राम को देखो कितने सीधे और कितने सरल हैं?
बृंदावन वाला साधु -अरे..अरे,ये आपने क्या कह दिया! नाम टेढ़ा,धाम टेढ़ा,काम टेढ़ा।?
अयोध्या वाला साधु :- बिल्कुल, आप खुद ये काग़ज़ और कलम लो और कृष्ण लिख कर देख लो………अब बताओ ये नाम टेढ़ा है कि नही?
बृंदावन वाला साधु:- सो तो है!
अयोध्या वाला साधु :- ठीक इसी तरह उसका धाम भी टेढ़ा है विश्वास नहीं है तो बृंदावन लिख कर देख लो।
बृंदावन का साधु बोला- चलो हम मानते हैं कि नाम और धाम टेढ़ा है लेकिन उनका काम टेढ़ा है और वो खुद भी टेढ़े है ये आपने कैसे कहा?
अयोध्या का साधु बोला-प्यारे……….ये भी बताना पड़ेगा, अरे भाई जमुना मे नहाती गोपियों के वस्त्र चुराना,रास रचाना, माखन चुराना ये सब कोई शरीफों का सीधा सादा काम है क्या,और आज तक कोई हमे ये बता दें कि किसी ने भी उनको सीधे खड़े देखा है क्या?
फिर क्या था, बृंदावन के साधु को अपने कृष्ण से बहुत नाराज़गी हुई।वो सीधे बृंदावन पहुँचा और बाँकेबिहारी से लड़ाई तान दी। बोला खूब ऊल्लू बनाया मुझे इतने दिनों तक, यह लो अपनी लकुट कमरिया, यह लो अपनी सोटी। अब हम तो चले अयोध्या सीधे सादे राम की शरण में।
कृष्ण मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले-लगता है तुम्हें किसी ने भड़का दिया है, ठीक है जाना चाहते हो तो जाओ पर यह बता तो दो कि हम टेढ़े और राम सीधे कैसे हुए,और कृष्ण कुँए पर नहाने के लिए चल पड़े ?
बृंदावन वाला साधु बोला:-अजी आपका नाम टेढ़ा है आपका धाम टेढ़ा है और आपका तो सारा
काम भी टेढ़ा है आप खुद भी तो टेढ़े हो कभी आपको किसी ने सावधान में खड़े नही देखा होगा।
कृष्ण मंद मंद मुस्कुराते हुए कुँए से पानी निकाल रहे थे कि अचानक पानी निकालने वाली बाल्टी कुएँ में गिर जाती है, कृष्ण अपने नाराज भक्त को आश्रम से एक सरिया लाने को कहते है, साधु सरिया लाकर देता है, और कृष्ण उस सरिए से बाल्टी को निकालने की कोशिश करते हैं।
यह देखकर बृंदावन का साधु बोला- आज मुझे मालूम हुआ कि आप को अक्ल भी कोई खास नही है।अजी सीधे सरिए से बाल्टी कैसे निकलेगी, इतनी देर से परेशान हो रहे हो,सरिए को थोड़ा टेढ़ा कर
लो,फिर देखो बाल्टी कैसे बाहर आ जाती है?
कृष्ण अपने स्वाभाविक रूप से मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले :- जरा सोचो जब सीधापन इस छोटे से कुएँ से एक छोटी सी बाल्टी को नही निकाल सकता, तो तुम्हें इतने बड़े भवसागर से कैसे निकाल पायेगा। अरे आजकल के इंसानो तुम सब तो इतने गहरे पाप के सागर मेँ गिर चुके हो कि इससे तुम्हें निकाल पाना मेरे जैसे टेढ़े का ही काम रह गया है
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बोलिए बाँके बिहारी लाल की जय