शनिवार, 20 जून 2015

टेढ़े मेढ़े नटखट कान्हा

टेढ़े मेढ़े नटखट कान्हा की बहूत ही सुंदर कथा ~

एक बार की बात है बॄन्दावन का एक साधु अयोध्या की गलियों मे राधेकृष्ण राधेकृष्ण जप रहा था तो एक अयोध्या का साधु बोला -अरे भाई क्या राधेकृष्ण लगा रखा है, अरे नाम ही जपना है तो सीताराम, सीताराम जपो ना। क्या उस टेढ़े मेढ़े का नाम लेते हो?
यह सुन कर बृंदावन वाला साधु भड़क गया और बोला,भाई जुबान संभाल कर बात कीजिए,ये जुबान पान भी खिलाती है और लात भी खिलाती है,आपने मेरे इष्टदेव को टेढ़ा कैसे बोला?
अयोध्या का साधु बोला :-भाई ये बिल्कुल सत्य है कि सच्चाई बहूत कड़वी होती है,लोग सहन नही कर पाते हैं,देखिए ना सच सुन कर आप कितने बौखला गये?लेकिन,
सच्चाई छुप नही सकती बनावट के उसूलों से ,
कि खुश्बू आ नही सकती कभी कागज के फूलों से।
भाई हम यह साबित कर सकते हैं कि आपके कृष्ण तो टेढ़े मेढ़े हैं ही, उनका कुछ भी सीधा नही है। उसका नाम टेढ़ा,उसका धाम टेढ़ा,उसका काम टेढ़ा,और वो खुद भी टेढ़ा है,और मेरे राम को देखो कितने सीधे और कितने सरल हैं?
बृंदावन वाला साधु -अरे..अरे,ये आपने क्या कह दिया! नाम टेढ़ा,धाम टेढ़ा,काम टेढ़ा।?
अयोध्या वाला साधु :- बिल्कुल, आप खुद ये काग़ज़ और कलम लो और कृष्ण लिख कर देख लो………अब बताओ ये नाम टेढ़ा है कि नही?
बृंदावन वाला साधु:- सो तो है!
अयोध्या वाला साधु :- ठीक इसी तरह उसका धाम भी टेढ़ा है विश्वास नहीं है तो बृंदावन लिख कर देख लो।
बृंदावन का साधु बोला- चलो हम मानते हैं कि नाम और धाम टेढ़ा है लेकिन उनका काम टेढ़ा है और वो खुद भी टेढ़े है ये आपने कैसे कहा?
अयोध्या का साधु बोला-प्यारे……….ये भी बताना पड़ेगा, अरे भाई जमुना मे नहाती गोपियों के वस्त्र चुराना,रास रचाना, माखन चुराना ये सब कोई शरीफों का सीधा सादा काम है क्या,और आज तक कोई हमे ये बता दें कि किसी ने भी उनको सीधे खड़े देखा है क्या?
फिर क्या था, बृंदावन के साधु को अपने कृष्ण से बहुत नाराज़गी हुई।वो सीधे बृंदावन पहुँचा और बाँकेबिहारी से लड़ाई तान दी। बोला खूब ऊल्लू बनाया मुझे इतने दिनों तक, यह लो अपनी लकुट कमरिया, यह लो अपनी सोटी। अब हम तो चले अयोध्या सीधे सादे राम की शरण में।
कृष्ण मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले-लगता है तुम्हें किसी ने भड़का दिया है, ठीक है जाना चाहते हो तो जाओ पर यह बता तो दो कि हम टेढ़े और राम सीधे कैसे हुए,और कृष्ण कुँए पर नहाने के लिए चल पड़े ?
बृंदावन वाला साधु बोला:-अजी आपका नाम टेढ़ा है आपका धाम टेढ़ा है और आपका तो सारा
काम भी टेढ़ा है आप खुद भी तो टेढ़े हो कभी आपको किसी ने सावधान में खड़े नही देखा होगा।
कृष्ण मंद मंद मुस्कुराते हुए कुँए से पानी निकाल रहे थे कि अचानक पानी निकालने वाली बाल्टी कुएँ में गिर जाती है, कृष्ण अपने नाराज भक्त को आश्रम से एक सरिया लाने को कहते है, साधु सरिया लाकर देता है, और कृष्ण उस सरिए से बाल्टी को निकालने की कोशिश करते हैं।
यह देखकर बृंदावन का साधु बोला- आज मुझे मालूम हुआ कि आप को अक्ल भी कोई खास नही है।अजी सीधे सरिए से बाल्टी कैसे निकलेगी, इतनी देर से परेशान हो रहे हो,सरिए को थोड़ा टेढ़ा कर
लो,फिर देखो बाल्टी कैसे बाहर आ जाती है?
कृष्ण अपने स्वाभाविक रूप से मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले :- जरा सोचो जब सीधापन इस छोटे से कुएँ से एक छोटी सी बाल्टी को नही निकाल सकता, तो तुम्हें इतने बड़े भवसागर से कैसे निकाल पायेगा। अरे आजकल के इंसानो तुम सब तो इतने गहरे पाप के सागर मेँ गिर चुके हो कि इससे तुम्हें निकाल पाना मेरे जैसे टेढ़े का ही काम रह गया है
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बोलिए बाँके बिहारी लाल की जय

मंगलवार, 16 जून 2015

बकरा और घास

किसी राजा के पास एक बकरा था ।
एक बार उसने एलान किया की जो कोई
इस बकरे को जंगल में चराकर तृप्त करेगा मैं उसे आधा राज्य दे दूंगा।
किंतु बकरे का पेट पूरा भरा है या नहीं
इसकी परीक्षा मैं खुद करूँगा।
इस एलान को सुनकर एक मनुष्य राजा के पास
आकर कहने लगा कि बकरा चराना कोई बड़ी बात नहीं है।
वह बकरे को लेकर जंगल में गया और सारे दिन
उसे घास चराता रहा,, शाम तक उसने बकरे को खूब घास खिलाई
और फिर सोचा की सारे दिन इसने इतनी घास खाई है
अब तो इसका पेट भर गया होगा तो अब इसको राजा के पास ले चलूँ,,
बकरे के साथ वह राजा के पास गया,,
राजा ने थोड़ी सी हरी घास बकरे के सामने रखी तो बकरा उसे खाने लगा।
इस पर राजा ने उस मनुष्य से कहा की तूने
उसे पेट भर खिलाया ही नहीं वर्ना वह घास क्यों खाने लगता।
बहुत जनो ने बकरे का पेट भरने का प्रयत्न किया
किंतु ज्यों ही दरबार में उसके सामने घास डाली जाती तो
वह फिर से खाने लगता।
एक विद्वान् ब्राह्मण ने सोचा इस एलान का कोई तो रहस्य है, तत्व है,,
मैं युक्ति से काम लूँगा,, वह बकरे को चराने के लिए ले गया।
जब भी बकरा घास खाने के लिए जाता तो वह उसे लकड़ी से मारता,,
सारे दिन में ऐसा कई बार हुआ,, अंत में बकरे ने सोचा की यदि
मैं घास खाने का प्रयत्न करूँगा तो मार खानी पड़ेगी।
शाम को वह ब्राह्मण बकरे को लेकर राजदरबार में लौटा,,
बकरे को तो उसने बिलकुल घास नहीं खिलाई थी
फिर भी राजा से कहा मैंने इसको भरपेट खिलाया है।
अत: यह अब बिलकुल घास नहीं खायेगा,,
लो कर लीजिये परीक्षा....
राजा ने घास डाली लेकिन उस बकरे ने उसे खाया तो क्या
देखा और सूंघा तक नहीं....
बकरे के मन में यह बात बैठ गयी थी कि अगर
घास खाऊंगा तो मार पड़ेगी....अत: उसने घास नहीं खाई....

मित्रों " यह बकरा हमारा मन ही है "

बकरे को घास चराने ले जाने वाला ब्राह्मण " आत्मा" है।

राजा "परमात्मा" है।

मन को मारो नहीं,,, मन पर अंकुश रखो....
मन सुधरेगा तो जीवन भी सुधरेगा।

अतः मन को विवेक रूपी लकड़ी से रोज पीटो..

प्रेम, धन और सफलता

एक दिन एक औरत अपने घर के बाहर आई
और उसने तीन संतों को अपने घर के सामने
देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी।

औरत ने कहा –
“कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।”

संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?”

औरत – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।”

संत –“हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर
          हों।”
शाम को उस औरत का पति घर आया और
औरत ने उसे यह सब बताया।

पति – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर
आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।”

औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के
लिए कहा।
संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ
नहीं जाते।”

“पर क्यों?” – औरत ने पूछा।

उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है” 
फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा –
“इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं।
हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है।

आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर
लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।”

औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब
बताया। उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और

बोला –“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित
करना चाहिए। हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।”

पत्नी – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को
             आमंत्रित करना चाहिए।”

उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी।
वह उनके पास आई और बोली –
“मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना
चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।”

“तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम
को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने
कहा।
औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा –
“आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में
प्रवेश कर भोजन गृहण करें।”

प्रेम घर की ओर बढ़ चले। बाकी के दो संत भी उनके
पीछे चलने लगे।

औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – “मैंने
तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था। आप लोग
भीतर क्यों जा रहे हैं?”

उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और
सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता
तो केवल वही भीतर जाता।
आपने प्रेम को आमंत्रित किया है।

प्रेम कभी अकेला नहीं जाता।
प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता याद
उसके पीछे जाते हैं।

गुरुवार, 4 जून 2015

अहंकार

श्रीकृष्ण द्वारका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे,
निकट ही गरुड़ और सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे।
तीनों के चेहरे पर दिव्य तेज झलक रहा  था।
बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा कि
हे प्रभु, आपने त्रेता युग में राम के रूप में अवतार लिया था,
सीता आपकी पत्नी थीं।
क्या वे मुझसे भी ज्यादा सुंदर थीं?
द्वारकाधीश समझ गए कि सत्यभामा को अपने रूप का अभिमान हो गया है।
तभी गरुड़ ने कहा कि भगवान क्या दुनिया में मुझसे भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है।

इधर सुदर्शन चक्र से भी रहा नहीं गया और वह भी कह उठे कि भगवान, मैंने बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है।
क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है?

भगवान मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। वे जान रहे थे कि उनके इन तीनों भक्तों को अहंकार  हो गया है और इनका अहंकार नष्ट होने का समय आ गया है।
ऐसा सोचकर उन्होंने गरुड़ से कहा कि हे गरुड़! तुम हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान राम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
गरुड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने चले गए।
इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि  देवी आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं और स्वयं द्वारकाधीश ने राम का रूप धारण कर लिया।
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मधुसूदन ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा देते हुए कहा कि
तुम महल के प्रवेश द्वार पर पहरा दो। और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के बिना महल में कोई प्रवेश न करे।
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भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश द्वार पर तैनात हो गए।
गरुड़ ने हनुमान के पास पहुंच कर कहा कि हे वानरश्रेष्ठ! भगवान राम माता सीता के साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं।
आप मेरे साथ चलें। मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा।
हनुमान ने विनयपूर्वक गरुड़ से कहा, आप चलिए, मैं आता हूं। गरुड़ ने सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब पहुंचेगा।
खैर मैं भगवान के पास चलता हूं।
यह सोचकर गरुड़ शीघ्रता से द्वारका की ओर उड़े।
पर यह क्या, महल में पहुंचकर गरुड़ देखते हैं कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु के सामने बैठे हैं।
गरुड़ का सिर लज्जा से झुक गया।
����तभी श्रीराम ने हनुमान से कहा कि पवन पुत्र तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए?
क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं?
हनुमान ने  हाथ जोड़ते हुए सिर झुका कर अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकाल कर प्रभु के सामने रख दिया।
हनुमान ने कहा कि प्रभु आपसे मिलने से मुझे इस चक्र ने रोका था, इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे मिलने आ गया।
मुझे क्षमा करें।
भगवान मंद-मंद मुस्कुराने लगे। हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न किया हे प्रभु! आज आपने माता सीता के स्थान पर किस दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान है।

अब रानी सत्यभामा के अहंकार भंग होने की बारी थी।
उन्हें सुंदरता का अहंकार था, जो पलभर में चूर हो गया था।
रानी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र व गरुड़ तीनों का गर्व चूर-चूर हो गया था।
वे भगवान की लीला समझ रहे थे। तीनों की आंख से आंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक गए।
अद्भुत लीला है प्रभु की। अपने भक्तों के अंहकार को अपने भक्त द्वारा ही दूर किया।
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बुधवार, 3 जून 2015

क्रोध पर पश्चाताप

एक 12-13 साल के लड़के को बहुत क्रोध आता था।
उसके पिता ने उसे ढेर सारी कीलें दीं और कहा कि जब भी उसे क्रोध आए
वो घर के सामने लगे पेड़ में वह कीलें ठोंक दे। पहले दिन लड़के ने पेड़ में
30 कीलें ठोंकी। अगले कुछ हफ्तों में उसे अपने क्रोध पर धीरे-धीरे नियंत्रण
करना आ गया। अब वह पेड़ में प्रतिदिन इक्का-दुक्का कीलें ही ठोंकता था।
उसे यह समझ में आ गया था कि पेड़ में कीलें ठोंकने के बजाय क्रोध पर
नियंत्रण करना आसान था। एक दिन ऐसा भी आया जब उसने पेड़ में एक
भी कील नहीं ठोंकी। जब उसने अपने पिता को यह बताया तो पिता ने उससे
कहा कि वह सारी कीलों को पेड़ से निकाल दे। लड़के ने बड़ी मेहनत करके
जैसे-तैसे पेड़ से सारी कीलें खींचकर निकाल दीं। जब उसने अपने पिता को काम
पूरा हो जाने के बारे में बताया तो पिता बेटे का हाथ थामकर उसे पेड़ के पास
लेकर गया। पिता ने पेड़ को देखते हुए बेटे से कहा – “तुमने बहुत अच्छा काम
किया, मेरे बेटे, लेकिन पेड़ के तने पर बने सैकडों कीलों के इन निशानों को देखो।
अब यह पेड़ इतना खूबसूरत नहीं रहा। हर बार जब तुम क्रोध किया करते थे तब
इसी तरह के निशान दूसरों के मन पर बन जाते थे। अगर तुम किसी के पेट में
छुरा घोंपकर बाद में हजारों बार माफी मांग भी लो तब भी घाव का निशान वहां
हमेशा बना रहेगा। अपने मन-वचन-कर्म से कभी भी ऐसा कृत्य न करो
जिसके लिए तुम्हें सदैव पछताना पड़े…!!-

शनिवार, 30 मई 2015

नारदजी का अभिमान

✳वीणा बजाते हुए नारदमुनि भगवान श्रीराम के द्वार पर पहुँचे।

नारायण नारायण !!

नारदजी ने देखा कि द्वार पर हनुमान जी पहरा दे रहे है।फ

हनुमान जी ने पूछा: नारद मुनि ! कहाँ जा रहे हो ?

नारदजी बोले: मैं प्रभु से मिलने आया हूँ। नारदजी ने हनुमानजी से पूछा प्रभु इस समय क्या कर रहे है?

हनुमानजी बोले: पता नहीं पर कुछ बही खाते का काम कर रहे है ,प्रभु बही खाते में कुछ लिख रहे है।

नारदजी: अच्छा क्या लिखा पढ़ी कर रहे है ?

हनुमानजी बोले: मुझे पता नही , मुनिवर आप खुद ही देख आना।

नारद मुनि गए प्रभु के पास और देखा कि प्रभु कुछ लिख रहे है।

नारद जी बोले: प्रभु आप बही खाते का काम कर रहे है ? ये काम तो किसी मुनीम को दे दीजिए।

प्रभु बोले: नही नारद , मेरा काम मुझे ही करना पड़ता है। ये काम मैं किसी और को नही सौंप सकता।

नारद जी: अच्छा प्रभु ऐसा क्या काम है ?ऐसा आप इस बही खाते में क्या लिख रहे हो?

प्रभु बोले: तुम क्या करोगे देखकर , जाने दो।

नारद जी बोले: नही प्रभु बताईये ऐसा आप इस बही खाते में क्या लिखते है?

प्रभु बोले: नारद इस बही खाते में उन भक्तों के नाम है जो मुझे हर पल भजते हैं। मैं उनकी नित्य हाजरी लगाता हूँ ।

नारद जी: अच्छा प्रभु जरा बताईये तो मेरा नाम कहाँ पर है ? नारदमुनि ने बही खाते को खोल कर देखा तो उनका नाम सबसे ऊपर था। नारद जी को गर्व हो गया कि देखो मुझे मेरे प्रभु सबसे ज्यादा भक्त मानते है। पर नारद जी ने देखा कि हनुमान जी का नाम उस बही खाते में कहीं नही है? नारद जी सोचने लगे कि हनुमान जी तो प्रभु श्रीराम जी के खास भक्त है फिर उनका नाम, इस बही खाते में क्यों नही है? क्या प्रभु उनको भूल गए है?

नारद मुनि आये हनुमान जी के पास बोले: हनुमान ! प्रभु के बही खाते में उन सब भक्तो के नाम है जो नित्य प्रभु को भजते है पर आप का नाम उस में कहीं नही है?

हनुमानजी ने कहा कि: मुनिवर,! होगा, आप ने शायद ठीक से नही देखा होगा?

नारदजी बोले: नहीं नहीं मैंने ध्यान से देखा पर आप का नाम कहीं नही था।

हनुमानजी ने कहा: अच्छा कोई बात नही। शायद प्रभु ने मुझे इस लायक नही समझा होगा जो मेरा नाम उस बही खाते में लिखा जाये। पर नारद जी प्रभु एक डायरी भी रखते है उस में भी वे नित्य कुछ लिखते है।

नारदजी बोले:अच्छा ?

हनुमानजी ने कहा:हाँ !

नारदमुनि फिर गये प्रभु श्रीराम के पास और बोले प्रभु ! सुना है कि आप अपनी डायरी भी रखते है ! उसमे आप क्या लिखते है ?

प्रभु श्रीराम बोले: हाँ! पर वो तुम्हारे काम की नही है।

नारदजी: ''प्रभु ! बताईये ना , मैं देखना चाहता हूँ कि आप उसमे क्या लिखते है।

प्रभु मुस्कुराये और बोले मुनिवर मैं इन में उन भक्तों के नाम लिखता हूँ जिन को मैं नित्य भजता हूँ।

नारदजी ने डायरी खोल कर देखा तो उसमे सबसे ऊपर हनुमान जी का नाम था। ये देख कर नारदजी का अभिमान टूट गया।

✳कहने का तात्पर्य यह है कि जो भगवान को सिर्फ जीवा से भजते है उनको प्रभु अपना भक्त मानते हैं और जो ह्रदय से भजते है । ऐसे भक्तो ।को प्रभु अपनी ह्रदय रूपी डायरी में रखते हैं...!!!

सौ  ऊंट

एक आदमी  राजस्थान  के  किसी  शहर  में  रहता  था . वह  ग्रेजुएट  था  और  एक  प्राइवेट  कंपनी  में  जॉब  करता  था .
पर वो  अपनी  ज़िन्दगी  से  खुश  नहीं  था , हर  समय  वो  किसी  न  किसी  समस्या  से  परेशान  रहता  था  और  उसी  के बारे  में  सोचता  रहता  था .

एक बार  शहर  से  कुछ  दूरी  पर  एक  एक महात्मा  का  काफिला  रुका  हुआ  था . शहर  में  चारों  और  उन्ही की चर्चा  थी ,
बहुत  से  लोग  अपनी  समस्याएं  लेकर  उनके  पास  पहुँचने  लगे ,
उस आदमी  को  भी  इस  बारे  में  पता चला, और  उसने  भी  महात्मा  के  दर्शन  करने  का  निश्चय  किया .

छुट्टी के दिन  सुबह -सुबह ही उनके  काफिले  तक  पहुंचा .
वहां  सैकड़ों  लोगों  की  भीड़  जुटी  हुई  थी , बहुत इंतज़ार  के  बाद उसका  का  नंबर  आया .

वह  बाबा  से  बोला  ,” बाबा , मैं  अपने  जीवन  से  बहुत  दुखी  हूँ ,
हर  समय  समस्याएं  मुझे  घेरी  रहती  हैं , कभी ऑफिस  की  टेंशन  रहती  है ,
तो  कभी  घर  पर  अनबन  हो  जाती  है , और  कभी  अपने  सेहत  को  लेकर  परेशान रहता  हूँ ….
बाबा  कोई  ऐसा  उपाय  बताइये  कि  मेरे  जीवन  से  सभी  समस्याएं  ख़त्म  हो  जाएं  और  मैं  चैन  से  जी सकूँ ?

बाबा  मुस्कुराये  और  बोले , “ पुत्र  , आज  बहुत देर  हो  गयी  है  मैं  तुम्हारे  प्रश्न  का  उत्तर  कल  सुबह दूंगा …
लेकिन क्या  तुम  मेरा  एक  छोटा  सा  काम  करोगे …?”

“ज़रूर  करूँगा ..”, वो आदमी उत्साह  के  साथ  बोला .

“देखो  बेटा , हमारे  काफिले  में  सौ ऊंट  हैं  ,
और  इनकी  देखभाल  करने  वाला  आज  बीमार  पड़  गया  है , मैं  चाहता हूँ  कि  आज  रात  तुम  इनका  खयाल  रखो …
और  जब  सौ  के  सौ  ऊंट   बैठ  जाएं  तो  तुम   भी  सो  जाना …”,
ऐसा कहते  हुए   महात्मा  अपने  तम्बू  में  चले  गए ..

अगली  सुबह  महात्मा उस आदमी  से  मिले  और  पुछा , “ कहो  बेटा , नींद  अच्छी  आई .”

“कहाँ  बाबा , मैं  तो  एक  पल  भी  नहीं  सो  पाया , मैंने  बहुत  कोशिश  की  पर  मैं  सभी  ऊंटों  को  नहीं  बैठा  पाया ,
कोई  न  कोई  ऊंट खड़ा  हो  ही  जाता …!!!”,  वो  दुखी  होते  हुए  बोला .”

“ मैं  जानता  था  यही  होगा …
आज  तक  कभी  ऐसा  नहीं  हुआ  है  कि  ये  सारे  ऊंट  एक  साथ  बैठ  जाएं …!!!”,
“ बाबा  बोले .

आदमी नाराज़गी  के  स्वर  में  बोला , “ तो  फिर  आपने  मुझे  ऐसा  करने  को  क्यों  कहा ”

बाबा बोले  , “ बेटा , कल  रात  तुमने  क्या  अनुभव  किया ,
यही  ना  कि  चाहे  कितनी  भी  कोशिश  कर  लो  सारे  ऊंट एक  साथ  नहीं  बैठ  सकते …
तुम  एक  को  बैठाओगे  तो  कहीं  और  कोई  दूसरा  खड़ा  हो  जाएगा 

इसी  तरह  तुम एक  समस्या  का  समाधान  करोगे  तो  किसी  कारणवश  दूसरी खड़ी हो  जाएगी ..

पुत्र  जब  तक  जीवन  है  ये समस्याएं  तो  बनी  ही  रहती  हैं … कभी  कम  तो  कभी  ज्यादा ….”

“तो  हमें  क्या  करना चाहिए  ?” , आदमी  ने  जिज्ञासावश  पुछा .

“इन  समस्याओं  के  बावजूद  जीवन  का  आनंद  लेना  सीखो …
कल  रात  क्या  हुआ   , कई  ऊंट   रात होते -होते  खुद ही  बैठ  गए  ,
कई  तुमने  अपने  प्रयास  से  बैठा  दिए , पर  बहुत  से  ऊंट तुम्हारे  प्रयास  के  बाद  भी  नहीं बैठे …
और जब  बाद  में  तुमने  देखा  तो  पाया  कि तुम्हारे  जाने  के  बाद उनमे से कुछ खुद ही  बैठ  गए ….
कुछ  समझे ….

"समस्याएं  भी  ऐसी  ही  होती  हैं , कुछ  तो  अपने आप ही ख़त्म  हो  जाती  हैं ,
  कुछ  को  तुम  अपने  प्रयास  से  हल  कर लेते  हो …
और  कुछ  तुम्हारे  बहुत  कोशिश  करने  पर   भी  हल  नहीं  होतीं ,
ऐसी  समस्याओं  को   समय  पर  छोड़  दो …

उचित  समय  पर  वे खुद  ही  ख़त्म  हो  जाती  हैं ….
और  जैसा  कि मैंने  पहले  कहा … जीवन  है
  तो  कुछ समस्याएं रहेंगी  ही  रहेंगी ….
पर  इसका  ये  मतलब  नहीं  की  तुम  दिन  रात  उन्ही  के  बारे  में  सोचते  रहो …

ऐसा होता तो ऊंटों की देखभाल करने वाला कभी सो नहीं पाता….
समस्याओं को  एक  तरफ  रखो  और  जीवन  का  आनंद  लो…

चैन की नींद सो …

जब  उनका  समय  आएगा  वो  खुद  ही  हल  हो  जाएँगी"...

 
         बिंदास मुस्कुराओ क्या ग़म हे,..

         ज़िन्दगी में टेंशन किसको कम हे..

          अच्छा या बुरा तो केवल भ्रम हे..

   जिन्दगी का नाम ही कभी ख़ुशी कभी गम हैं ।

   

बुधवार, 27 मई 2015

नारदजी का अभिमान

✳वीणा बजाते हुए नारदमुनि भगवान श्रीराम के द्वार पर पहुँचे।

नारायण नारायण !!

नारदजी ने देखा कि द्वार पर हनुमान जी पहरा दे रहे है।फ

हनुमान जी ने पूछा: नारद मुनि ! कहाँ जा रहे हो ?

नारदजी बोले: मैं प्रभु से मिलने आया हूँ। नारदजी ने हनुमानजी से पूछा प्रभु इस समय क्या कर रहे है?

हनुमानजी बोले: पता नहीं पर कुछ बही खाते का काम कर रहे है ,प्रभु बही खाते में कुछ लिख रहे है।

नारदजी: अच्छा क्या लिखा पढ़ी कर रहे है ?

हनुमानजी बोले: मुझे पता नही , मुनिवर आप खुद ही देख आना।

नारद मुनि गए प्रभु के पास और देखा कि प्रभु कुछ लिख रहे है।

नारद जी बोले: प्रभु आप बही खाते का काम कर रहे है ? ये काम तो किसी मुनीम को दे दीजिए।

प्रभु बोले: नही नारद , मेरा काम मुझे ही करना पड़ता है। ये काम मैं किसी और को नही सौंप सकता।

नारद जी: अच्छा प्रभु ऐसा क्या काम है ?ऐसा आप इस बही खाते में क्या लिख रहे हो?

प्रभु बोले: तुम क्या करोगे देखकर , जाने दो।

नारद जी बोले: नही प्रभु बताईये ऐसा आप इस बही खाते में क्या लिखते है?

प्रभु बोले: नारद इस बही खाते में उन भक्तों के नाम है जो मुझे हर पल भजते हैं। मैं उनकी नित्य हाजरी लगाता हूँ ।

नारद जी: अच्छा प्रभु जरा बताईये तो मेरा नाम कहाँ पर है ? नारदमुनि ने बही खाते को खोल कर देखा तो उनका नाम सबसे ऊपर था। नारद जी को गर्व हो गया कि देखो मुझे मेरे प्रभु सबसे ज्यादा भक्त मानते है। पर नारद जी ने देखा कि हनुमान जी का नाम उस बही खाते में कहीं नही है? नारद जी सोचने लगे कि हनुमान जी तो प्रभु श्रीराम जी के खास भक्त है फिर उनका नाम, इस बही खाते में क्यों नही है? क्या प्रभु उनको भूल गए है?

नारद मुनि आये हनुमान जी के पास बोले: हनुमान ! प्रभु के बही खाते में उन सब भक्तो के नाम है जो नित्य प्रभु को भजते है पर आप का नाम उस में कहीं नही है?

हनुमानजी ने कहा कि: मुनिवर,! होगा, आप ने शायद ठीक से नही देखा होगा?

नारदजी बोले: नहीं नहीं मैंने ध्यान से देखा पर आप का नाम कहीं नही था।

हनुमानजी ने कहा: अच्छा कोई बात नही। शायद प्रभु ने मुझे इस लायक नही समझा होगा जो मेरा नाम उस बही खाते में लिखा जाये। पर नारद जी प्रभु एक डायरी भी रखते है उस में भी वे नित्य कुछ लिखते है।

नारदजी बोले:अच्छा ?

हनुमानजी ने कहा:हाँ !

नारदमुनि फिर गये प्रभु श्रीराम के पास और बोले प्रभु ! सुना है कि आप अपनी डायरी भी रखते है ! उसमे आप क्या लिखते है ?

प्रभु श्रीराम बोले: हाँ! पर वो तुम्हारे काम की नही है।

नारदजी: ''प्रभु ! बताईये ना , मैं देखना चाहता हूँ कि आप उसमे क्या लिखते है।

प्रभु मुस्कुराये और बोले मुनिवर मैं इन में उन भक्तों के नाम लिखता हूँ जिन को मैं नित्य भजता हूँ।

नारदजी ने डायरी खोल कर देखा तो उसमे सबसे ऊपर हनुमान जी का नाम था। ये देख कर नारदजी का अभिमान टूट गया।

✳कहने का तात्पर्य यह है कि जो भगवान को सिर्फ जीवा से भजते है उनको प्रभु अपना भक्त मानते हैं और जो ह्रदय से भजते है । ऐसे भक्तो ।को प्रभु अपनी ह्रदय रूपी डायरी में रखते हैं...!!!

नाथालाल सेठ

पुराने जमाने की बात है। किसी गाँव में एक सेठ रहेता था। उसका नाम था नाथालाल सेठ। वो जब भी गाँव के बाज़ार से निकलता था तब लोग उसे नमस्ते या सलाम करते थे , वो उसके जवाब में मुस्कुरा कर अपना सिर हिला देता था और  बहुत धीरे से बोलता था की " घर जाकर बोल दूंगा "

एक बार किसी परिचित व्यक्ति ने सेठ को ये बोलते हुये सुन लिया। तो उसने कुतूहल वश सेठ को पूछ लिया कि सेठजी आप ऐसा क्यों बोलते हो के " घर जाकर बोल दूंगा "

तब सेठ ने उस व्यक्ति को कहा, में पहले धनवान नहीं था उस समय लोग मुझे 'नाथू ' कहकर बुलाते थे और आज के समय में धनवान हूँ तो लोग मुझे 'नाथालाल सेठ' कहकर बुलाते है। ये इज्जत मुझे नहीं धन को दे रहे है ,

इस लिए में रोज़ घर जाकर तिज़ोरी खोल कर लक्ष्मीजी (धन) को ये बता देता हूँ कि आज तुमको कितने लोगो ने नमस्ते या सलाम किया। इससे मेरे मन में अभिमान या गलतफहमी नहीं आती कि लोग मुझे मान या इज्जत दे रहे हैं। ... इज्जत सिर्फ पैसे की है इंसान की नहीं ..