एक युवक....
मैं तकरीबन 20 साल के बाद अपने शहर लौटा था!
बाज़ार में घुमते हुए सहसा मेरी नज़रें सब्जी का ठेला
लगाये एक बूढे पर जा टिकीं, बहुत कोशिश के बावजूद
भी मैं उसको पहचान नहीं पा रहा था !
लेकिन न जाने बार बार ऐसा क्यों लग रहा था की मैं
उसे बड़ी अच्छी तरह से जनता हूँ !
मेरी उत्सुकता उस बूढ़े से भी छुपी न रही , उसके
चेहरे पर आई अचानक मुस्कान से मैं समझ गया था
कि उसने मुझे पहचान लिया था !
काफी देर की जेहनी कशमकश के बाद जब मैंने उसे
पहचाना तो मेरे पाँव के नीचे से मानो ज़मीन खिसक
गई !
जब मैं विदेश गया था तो इसकी एक बहुत बड़ी आटा
मिल हुआ करती थी नौकर चाकर आगे पीछे घूमा करते
थे ! धर्म कर्म, दान पुण्य में सब से अग्रणी इस
दानवीर पुरुष को मैं ताऊजी कह कर बुलाया करता था !
वही आटा मिल का मालिक और
आज सब्जी का ठेला लगाने पर मजबूर?
मुझसे रहा नहीं गया और मैं उसके पास जा पहुँचा और
बहुत मुश्किल से रुंधे गले से पूछा :
"ताऊ जी, ये सब कैसे हो गया?"
भरी ऑंखें लिए मेरे कंधे पर हाथ रख उसने उत्तर
दिया:-
"बच्चे बड़े हो गए हैं बेटा".
मंगलवार, 14 अप्रैल 2015
बच्चे बड़े हो गए हैं बेटा
रविवार, 12 अप्रैल 2015
कैरियर का सबक
एक पुराना ग्रुप कॉलेज छोड़ने
के बहुत दिनों बाद मिला।
वे सभी अच्छे केरियर के साथ
खूब पैसे ✈कमा रहे थे।
वे अपने सबसे फेवरेट प्रोफेसर
के घर जाकर मिले।
प्रोफेसर साहब उनके काम
के बारे में पूछने लगे।
धीरे-धीरे बात लाइफ में
बढ़ती स्ट्रेस और काम
के प्रेशर पर आ गयी।
इस मुद्दे पर सभी एक मत थे कि,
भले वे अब आर्थिक रूप से
बहुत मजबूत हों पर
उनकी लाइफ में अब
वो मजा नहीं रह गया
जो पहले हुआ करता था।
प्रोफेसर साहब बड़े ध्यान से
उनकी बातें सुन रहे थे,
वे अचानक ही उठे और
थोड़ी देर बाद किचन से
लौटे और बोले,
”डीयर स्टूडेंट्स,
मैं आपके लिए गरमा-गरम ☕
कॉफ़ी ☕बना कर आया हूँ ,
लेकिन प्लीज आप सब
किचन में जाकर अपने-अपने
लिए कप्स लेते आइये।"
लड़के तेजी से अंदर गए,
वहाँ कई तरह के कप रखे हुए थे,
सभी अपने लिए अच्छा से अच्छा
कप उठाने में लग गये,
किसी ने क्रिस्टल का
शानदार कप उठाया
तो किसी ने पोर्सिलेन का
कप सेलेक्ट किया,
तो किसी ने शीशे का कप उठाया।
सभी के हाथों में कॉफी ⚓आ गयी
तो प्रोफ़ेसर साहब बोले,
"अगर आपने ध्यान दिया हो तो,
जो कप दिखने में अच्छे और महंगे थे
आपने उन्हें ही चुना और
साधारण दिखने वाले कप्स
की तरफ ध्यान नहीं दिया।
जहाँ एक तरफ अपने लिए
सबसे अच्छे की चाह रखना
एक नॉर्मल बात है
वहीँ दूसरी तरफ ये
हमारी लाइफ में प्रोब्लम्स
और स्ट्रेस लेकर आता है।
फ्रेंड्स, ये तो पक्का है कि
कप, कॉफी ☕की क्वालिटी
में कोई बदलाव नहीं लाता।
ये तो बस एक जरिया है
जिसके माध्यम से आप कॉफी ☕पीते है।
असल में जो आपको चाहिए था
वो बस कॉफ़ी थी, कप नहीं,
पर फिर भी आप सब
सबसे अच्छे कप के पीछे ही गए
और अपना लेने के बाद
दूसरों के कप ☕निहारने लगे।"
अब इस बात को ध्यान से सुनिये ...
"ये लाइफ कॉफ़ी ☕की तरह है ;
हमारी नौकरी, पैसा,
पोजीशन, कप की तरह हैं।
ये बस लाइफ जीने के साधन हैं,
खुद लाइफ नहीं ! और
हमारे पास कौन सा कप है
ये न हमारी लाइफ को
डिफाइन करता है
और ना ही उसे चेंज करता है।
कॉफी की चिंता करिये कप की नहीं।"
"दुनिया के सबसे खुशहाल लोग
वो नहीं होते जिनके पास
सबकुछ सबसे बढ़िया होता है,
पर वे होते हैं, जिनके पास जो होता है
बस उसका सबसे अच्छे से यूज़ करते हैं.
एन्जॉय करते हैं और भरपूर जीवन जीते हैं!
सादगी से जियो।
सबसे प्रेम करो।
सबकी केअर करो।
जीवन का आनन्द लो,
यही असली जीना है।
सच के वस्त्र
एक बार सच और झूठ नदी में स्नान करने
पहुंचे। दोनो ने अपने-अपने कपड़े उतार
कर नदी के तट पर रख दिए और झट-पट
नदी में कूद पड़े। सबसे पहले झूठ नहाकर
नदी से बाहर आया और सच के कपड़े पहनकर
चला गया। सच अभी भी नहा रहा था। जब वह
स्नान कर बाहर निकला तो उसके कपड़े गायब थे।
वहां तो झूठ के कपड़े पड़े थे। भला सच उसके कपड़े
कैसे पहनता?
कहते हैं तब से सच नंगा है और झूठ सच के कपड़े पहनकर सच के रूप में प्रतिष्ठित है।
स्वर्ग यहीं हैं.
लोहे की एक छड़ का मूल्य होता है 250 रूपये.
इससे घोड़े की नाल बना दी जाये
तो इसका मूल्य हो जाता है 1000 रूपये.
इससे सुईयां बना दी जायें तो इसका मूल्य हो जाता है 10,000 रूपये.
इससे घड़ियों के बैलेंस स्प्रिंग बना दिए जायें तो इसका मूल्य हो जाता है 1,00,000 रूपये... --
"आपका अपना मूल्य-- इससे निर्धारित नहीं होता कि आप क्या है बल्कि इससे निर्धारित होता है कि आप में खुद को क्या बनाने की क्षमता है"!!!!
इतने छोटे बनिए कि
हर कोई आपके साथ बैठे,
..ओर इतने बड़े बनिए कि
आप खड़े हो तो कोई बैठा न रहे..!!
कभी कभी
आप अपनी जिंदगी से
निराश हो जाते हैं,
जबकि
दुनिया में उसी समय
कुछ लोग
आपकी जैसी जिंदगी
जीने का सपना देख रहे होते हैं।
घर पर खेत में खड़ा बच्चा
आकाश में उड़ते हवाई जहाज
को देखकर
उड़ने का सपना देख रहा होता है,
परंतु
उसी समय
उसी हवाई जहाज का पायलट
खेत ओर बच्चे को देख
घर लौटने का सपना
देख रहा होता है।
यही जिंदगी है।
जो तुम्हारे पास है उसका मजा लो।
अगर धन-दौलत रूपया पैसा ही
खुशहाल होने का सीक्रेट होता,
तो अमीर लोग नाचते दिखाई पड़ते,
लेकिन सिर्फ गरीब बच्चे
ऐसा करते दिखाई देते हैं।
अगर पाॅवर (शक्ति) मिलने से
सुरक्षा आ जाती
तो
नेता अधिकारी
बिना सिक्युरिटी के नजर आते।
परन्तु
जो सामान्य जीवन जीते हैं,
वे चैन की नींद सोते हैं।
अगर खुबसुरती और प्रसिद्धि
मजबूत रिश्ते कायम कर सकती
तो
सेलीब्रिटीज् की शादियाँ
सबसे सफल होती।
जबकि इनके तलाक
सबसे सफल होते हैं
इसलिए दोस्तों,
यह जिंदगी ......
सभी के लिए खुबसुरत है
इसको जी भरकर जीयों,
इसका भरपूर लुत्फ़ उठाओ
क्योंकि
जिदंगी ना मिलेगी दोबारा...
सामान्य जीवन जियें...
विनम्रता से चलें ...
और
ईमानदारी पूर्वक प्यार करें...
स्वर्ग यहीं हैं...
शनिवार, 11 अप्रैल 2015
चुड़ैल और आदमी
एक शैतानी चुड़ैल ने 60 साल के हस्बैंड
एंड वाइफ से कहा ..
मैं तुम दोनों की एक एक विश पूरी कर सकती
हूँ ..
Wife :- मैं अपने पति के साथ सारी
दुनिया घूमना चाहती हूँ ।
चुड़ैल ने चुटकी बजायी और 2 टिकट्स आ
गए,
फिर हस्बैंड से पूछा
तुम बोलो क्या चाहते हो ??
Husband :- मुझे अपने से 30 साल छोटी
वाइफ चाहिए ..
चुड़ैल ने चुटकी बजायी और हस्बैंड को
90 साल का कर दिआ !!
Moral :- आदमी को याद रखना चाहिए के
चुड़ैल भी औरत ही होती है .
बुधवार, 8 अप्रैल 2015
क्या यही जिंदगी है
ज़िंदगी के 20 वर्ष हवा की तरह उड़ जाते हैं. फिर शुरू होती है नौकरी की खोज . ये नहीं वो , दूर नहीं पास . ऐसा करते 2-3 नौकरीयां छोड़ते पकड़ते , अंत में एक तय होती है. और ज़िंदगी में थोड़ी स्थिरता की शुरूआत होती है.
और हाथ में आता है पहली तनख्वाह का चेक , वह बैंक में जमा होता है और शुरू होता है अकाउंट में जमा होने वाले कुछ शून्यों का अंतहीन खेल.
इस तरह 2-3 वर्ष निकल जाते हैँ . 'वो' स्थिर होता है. बैंक में कुछ और शून्य जमा हो जाते हैं. इतने में आयु पच्चीस वर्ष हो जाते हैं.
विवाह की चर्चा शुरू हो जाती है. एक खुद की या माता पिता की पसंद की लड़की से यथा समय विवाह होता है और ज़िंदगी की राम कहानी शुरू हो जाती है.
शादी के पहले 2-3 साल नर्म , गुलाबी , रसीले और सपनीले गुज़रते हैं .
हाथों में हाथ डालकर बातें और रंग बिरंगे सपने . पर ये दिन जल्दी ही उड़ जाते हैं. और इसी समय शायद बैंक में कुछ शून्य कम होते हैं. क्योंकि थोड़ी मौजमस्ती, घूमनाफिरना , खरीदी होती है.
और फिर धीरे से बच्चे के आने की आहट होती है और वर्ष भर में पालना झूलने लगता है.
सारा ध्यान अब बच्चे पर केंद्रित हो जाता है. उसका खाना पीना , उठना बैठना , शु शु पाॅटी , उसके खिलौने, कपड़े और उसका लाड़ दुलार. समय कैसे फटाफट निकल जाता है.
इन सब में कब इसका हाथ उसके हाथ से निकल गया, बातें करना , घूमना फिरना कब बंद हो गया, दोनों को ही पता नहीं चला ?
इसी तरह उसकी सुबह होती गयी और. बच्चा बड़ा होता गया. .. वो बच्चे में व्यस्त होती गई और ये अपने काम में. घर की किस्त , गाड़ी की किस्त और बच्चे कि ज़िम्मेदारी . उसकी शिक्षा और भविष्य की सुविधा. और साथ ही बैंक में शून्य बढ़ाने का टेंशन. उसने पूरी तरह से अपने आप को काम में झोंक दिया.
बच्चे का स्कूल में एॅडमिशन हुआ और वह बड़ा होने लगा . उसका पूरा समय बच्चे के साथ बीतने लगा.
इतने में वो पैंतीस का हो गया. खूद का घर , गाड़ी और बैंक में कई सारे शून्य. फिर भी कुछ कमी है, पर वो क्या है समझ में नहीं आता. इस तरह उसकी चिढ़ चिढ़ बढ़ती जाती है और ये भी उदासीन रहने लगा.
दिन पर दिन बीतते गए , बच्चा बड़ा होता गया और उसका खुद का एक संसार तैयार हो गया. उसकी दसवीं आई और चली गयी. तब तक दोनों ही चालीस के हो गए. बैंक में शून्य बढ़ता ही जा रहा है.
एक नितांत एकांत क्षण में उसे गुज़रे दिन याद आते हैं और वो मौका देखकर उससे कहता है '
अरे ज़रा यहां आओ ,
पास बैठो .
चलो फिर एक बार हाथों में हाथ ले कर बातें करें , कहीं घूम के आएं .... उसने अजीब नज़रों से उसको देखा और कहा " तुम्हें कभी भी कुछ भी सूझता है . मुझे ढेर सा काम पड़ा है और तुम्हें बातों की सूझ रही है " . कमर में पल्लू खोंस कर वो निकल गई .
और फिर आता है पैंतालीसवां साल , आंखों पर चश्मा लग गया .बाल अपना काला रंग छोड़ने लगे, दिमाग में कुछ उलझनें शुरू ही थीं. . . . . बेटा अब काॅलेज में है. बैंक में शून्य बढ़ रहे हैं. उसने अपना नाम कीर्तन मंडली में डाल दिया और . . . .
बेटे का college खत्म हो गया , अपने पैरों पर खड़ा हो गया. अब उसके पर फूट गये और वो एक दिन परदेस उड़ गया...
अब उसके बालों का काला रंग और कभी कभी दिमाग भी साथ छोड़ने लगा.... उसे भी चश्मा लग गया था. अब वो उसे उम्र दराज़ लगने लगी क्योंकि वो खुद भी बूढ़ा हो रहा था.
पचपन के बाद साठ की ओर बढ़ना शुरू था. बैंक में अब कितने शून्य हो गए, उसे कुछ खबर नहीं है. बाहर आने जाने के कार्यक्रम अपने आप बंद होने लगे ।
गोली -दवाइयों का दिन और समय निश्चित होने लगा . डाॅक्टरों की तारीखें भी तय होने लगीं. बच्चे बड़े होंगे ये सोचकर लिया गया घर भी अब बोझ लगने लगा. बच्चे कब वापस आएंगे , अब बस यही हाथ रह गया था .
और फिर वो एक दिन आता है. वो सोफे पर लेटा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था . वो शाम की दिया-बाती कर रही थी . वो देख रही थी कि वो सोफे पर लेटा है. इतने में फोन की घंटी बजी , उसने लपक के फोन उठाया . उस तरफ बेटा था. बेटा अपनी शादी की जानकारी देता है और बताता है कि अब वह परदेस में ही रहेगा. उसने बेटे से बैंक के शून्य के बारे में क्या करना यह पूछा. अब चूंकि विदेश के शून्य की तुलना में उसके शून्य बेटे के लिये शून्य हैं इसलिए उसने पिता को सलाह दी " एक काम करिये , इन पैसों का ट्रस्ट बनाकर वृद्धाश्रम को दे दीजिए और खुद भी वहीं रहीये". कुछ औपचारिक बातें करके बेटे ने फोन रख दिया.
वो पुनः सोफे पर आ कर बैठ गया. उसकी भी दिया बाती खत्म होने आई थी. उसने उसे आवाज़ दी " चलो आज फिर हाथों में हाथ ले के बातें करें "
वो तुरंत बोली " बस अभी आई " उसे विश्वास नहीं हुआ , चेहरा खुशी से चमक उठा , आंखें भर आईं , उसकी आंखों से गिरने लगे और गाल भीग गए .
अचानक आंखों की चमक फीकी हो गई और वो निस्तेज हो गया.
उसने शेष पूजा की और उसके पास आ कर बैठ गई, कहा " बोलो क्या बोल रहे थे " पर उसने कुछ नहीं कहा . उसने उसके शरीर को छू कर देखा . शरीर बिल्कुल ठंडा पड़ गया था और वो एकटक उसे देख रहा था .
क्षण भर को वो शून्य हो गई, क्या करूं उसे समझ में नहीं आया . लेकिन एक-दो मिनट में ही वो चैतन्य हो गई, धीरे से उठी और पूजाघर में गई . एक अगरबत्ती जलाई और ईश्वर को प्रणाम किया और फिर से सोफे पे आकर बैठ गई.
उसका ठंडा हाथ हाथों में लिया और बोली " चलो कहां घूमने जाना है और क्या बातें करनी हैं तम्हे " बोलो !! ऐसा कहते हुए उसकी आँखें भर आईं. वो एकटक उसे देखती रही , आंखों से अश्रुधारा बह निकली .
उसका सिर उसके कंधों पर गिर गया. ठंडी हवा का धीमा झोंका अभी भी चल रहा था ................
यही जिंदगी है
मंगलवार, 7 अप्रैल 2015
बच्चे के हाथ
एक बच्चा अपनी माँ के साथ एक दुकान पर शॉपिंग
करने गया तो दुकानदार ने उसकी मासूमियत देखकर
उसको सारी टॉफियों के डिब्बे खोलकर कहा-:
"लो बेटा टॉफियाँ ले लो...!!!"
पर उस बच्चे ने भी बड़े प्यार से उन्हें मना कर
दिया. उसके बावजूद उस दुकानदार ने और
उसकी माँ ने भी उसे बहुत कहा पर
वो मना करता रहा. हारकर उस दुकानदार ने खुद
अपने हाथ से टॉफियाँ निकाल कर उसको दीं तो उसने
ले लीं और अपनी जेब में डाल ली....!!!!
वापस आते हुऐ उसकी माँ ने पूछा कि"जब अंकल
तुम्हारे सामने डिब्बा खोल कर टाँफी दे रहे थे , तब
तुमने नही ली और जब उन्होंने अपने हाथों से
दीं तो ले ली..!! ऐसा क्यों..??"
तब उस बच्चे ने बहुत खूबसूरत प्यारा जवाब
दिया -: "माँ मेरे हाथ छोटे-छोटे हैं... अगर मैंh
टॉफियाँ लेता तो दो तीन
टाँफियाँ ही आती जबकि अंकल के हाथ बड़े हैं
इसलिये ज्यादा टॉफियाँ मिल गईं....!!!!!"
बिल्कुल इसी तरह जब भगवान हमें देता है
तो वो अपनी मर्जी से देता है और वो हमारी सोच से
परे होता है,
हमें हमेशा उसकी मर्जी में खुश रहना चाहिये....!!!
क्या पता..??
वो किसी दिन हमें पूरा समंदर देना चाहता हो और हम
हाथ में चम्मच लेकर खड़े हों...
रविवार, 5 अप्रैल 2015
अच्छे दिन
एक गाँव में एक काणा रहता था,
सब लोग उसकी एक आँख होने की वजह से "काणा" "काणा" कह कर चिढाते थे..
उसे इस बात से बहौत तकलीफ होती थी..
उसने एक दिन सोचा की इन गाँव वालो को सबक सिखाता हूँ..
उसने रात को 12 बजे अपनी दूसरी आँख भी फोड़ ली और पुरे गाँव में चिल्लाता हुआ दोड़ने लगा
"मुझे भगवान दिखाई दे रहें हैं
अच्छे दिन दिखाई दे रहे हैं"..
ये सुनकर गाँव वाले बोले,
“अबे काणे तुझे कहाँ से भगवान या अच्छे दिन दिखाई दे रहें हैं”???
तो उसने कहा की रात को मेरे सपने में भगवान ने दर्शन दिया और बोले की अगर तू अपनी दुसरी आँख भी फोड़ ले तो "अच्छे दिन" दिखाई देंगे..
इतना सुनकर गाँव के सरपंच ने
कहा, की मुझे अच्छे दिन देखने हैं..
तो अँधा बोला की दोनों आँखे फोडोगे तभी दिखाई देंगे "अच्छे दिन"..
सरपंच ने हिम्मत करके अपनी दोनों आँखे फोड़ लीं..
पर ये क्या अच्छे दिन तो दूर अब तो उसे दुनिया दिखाई देना भी बंद हो गई..
सरपंच ने अँधे से कान में कहा की "अच्छे दिन तो दिखाई नहीं दे रहे"..
तो अँधा बोला "सरपंच जी सबके सामने ये सच मत बोलना, नहीं तो सब आप को मुर्ख कहेंगे, इसलिए
बोलो अच्छे दिन आ गए..
इतना सुनकर सरपंच ने ज़ोर
से बोला "मुझे भी अच्छे दिन दिखाई दे रहे हैं"..
इसके बाद एक एक करके पुरे गांव वालों ने अपनी आँखे फोड़ डालीं और मजबूरी में वही बोल रहे थे जो सरपंच ने कहा..
"अच्छे दिन आ गये"..!
यही हाल अच्छे दिन के समर्थक "भक्तगणों" का है..
☺☺☺☺
आँखे तो फोड़ ली हैं अपने ही हाथों से, अब तो मजबूरी में बोलना ही पड़ेगा -
"अच्छे दिन आ गए"
जय हिन्द..
Think Beyond Infinity...
अमेरिका की बात हैं. एक युवक को व्यापार में बहुत नुकसान उठाना पड़ा.
उसपर बहुत कर्ज चढ़ गया, तमाम जमीन जायदाद गिरवी रखना पड़ी . दोस्तों ने भी मुंह फेर लिया,
जाहिर हैं वह बहुत हताश था. कही से कोई राह नहीं सूझ रही थी.
आशा की कोई किरण दिखाई न देती थी.
एक दिन वह एक park में बैठा अपनी परिस्थितियो पर चिंता कर रहा था.
तभी एक बुजुर्ग वहां पहुंचे. कपड़ो से और चेहरे से वे काफी अमीर लग रहे थे.
बुजुर्ग ने चिंता का कारण पूछा तो उसने अपनी सारी कहानी बता दी.
बुजुर्ग बोले -” चिंता मत करो. मेरा नाम John D. Rockefeller है.
मैं तुम्हे नहीं जानता,पर तुम मुझे सच्चे और ईमानदार लग रहे हो. इसलिए मैं तुम्हे दस लाख डॉलर का कर्ज देने को तैयार हूँ.”
फिर जेब से checkbook निकाल कर उन्होंने रकम दर्ज की और उस व्यक्ति को देते हुए बोले, “नौजवान, आज से ठीक एक साल बाद हम ठीक इसी जगह मिलेंगे. तब तुम मेरा कर्ज चुका देना.”
इतना कहकर वो चले गए.
युवक shocked था. Rockefeller
तब america के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक थे.
युवक को तो भरोसा ही नहीं हो रहा था की उसकी लगभग सारी मुश्किल हल हो गयी.
उसके पैरो को पंख लग गये.
घर पहुंचकर वह अपने कर्जो का हिसाब लगाने लगा.
बीसवी सदी की शुरुआत में 10 लाख डॉलर बहुत बड़ी धनराशि होती थी और आज भी है.
अचानक उसके मन में ख्याल आया. उसने सोचा एक अपरिचित व्यक्ति ने मुझपे भरोसा किया,
पर मैं खुद पर भरोसा नहीं कर रहा हूँ.
यह ख्याल आते ही उसने चेक को संभाल कर रख लिया.
उसने निश्चय कर लिया की पहले वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेगा,
पूरी मेहनत करेगा की इस मुश्किल से
निकल जाए. उसके बाद भी अगर कोई चारा न बचे तो वो check use करेगा.
उस दिन के बाद युवक ने खुद को झोंक दिया.
बस एक ही धुन थी,
किसी तरह सारे कर्ज चुकाकर अपनी प्रतिष्ठा को फिर से पाना हैं.
उसकी कोशिशे रंग लाने लगी. कारोबार उबरने लगा, कर्ज चुकने लगा. साल भर बाद तो वो पहले से भी अच्छी स्तिथि में था.
निर्धारित दिन ठीक समय वह बगीचे में पहुँच गया.
वह चेक लेकर Rockefeller की राह देख रहा था
की वे दूर से आते दिखे.
जब वे पास पहुंचे तो युवक ने बड़ी श्रद्धा से उनका अभिवादन किया.
उनकी ओर चेक बढाकर उसने कुछ कहने के लिए मुंह खोल ही था की एक नर्स भागते हुए आई
और
झपट्टा मरकर वृद्ध को पकड़ लिया.
युवक हैरान रह गया.
नर्स बोली, “यह पागल बार बार पागलखाने से भाग जाता हैं
और
लोगो को जॉन डी . Rockefeller के रूप में check बाँटता फिरता हैं. ”
अब वह युवक पहले से भी ज्यादा हैरान रह गया.
जिस check के बल पर उसने अपना पूरा डूबता कारोबार फिर से खड़ा किया,वह
फर्जी था.
पर यह बात जरुर साबित हुई की वास्तविक जीत हमारे इरादे , हौंसले और प्रयास में ही होती हैं.
हम सभी यदि खुद पर विश्वास रखे तो यक़ीनन
किसी भी असुविधा से, situation से निपट सकते है.
" हमेशा हँसते रहिये,
एक दिन ज़िंदगी भी
आपको परेशान
करते करते थक जाएगी ।"
Think Beyond Infinity...
मज़ारे गधर्भ
किसी मज़ार पर एक फकीर रहते थे।
सैकड़ों भक्त उस मज़ार पर आकर दान-दक्षिणा चढ़ाते थे।
उन भक्तों में एक बंजारा भी था।
वह बहुत गरीब था,
फिर भी, नियमानुसार आकर माथा टेकता,
फकीर की सेवा करता,
और
फिर अपने काम पर जाता,
उसका कपड़े का व्यवसाय था,
कपड़ों की भारी पोटली कंधों पर लिए सुबह से लेकर शाम तक गलियों में फेरी लगाता,
कपड़े बेचता।
एक दिन उस फकीर को उस
पर दया आ गई,
उसने अपना गधा उसे भेंट कर दिया।
अब तो बंजारे की आधी समस्याएं हल हो गईं।
वह सारे कपड़े गधे पर लादता और जब थक जाता
तो
खुद भी गधे पर बैठ जाता।
यूं ही कुछ महीने बीत गए,,
एक दिन गधे की मृत्यु हो गई।
बंजारा बहुत दुखी हुआ,
उसने उसे उचित स्थान पर दफनाया,
उसकी कब्र बनाई
और
फूट-फूट कर रोने लगा।
समीप से जा रहे किसी व्यक्ति ने
जब यह दृश्य देखा,
तो सोचा
जरूर किसी संत की मज़ार होगी।
तभी यह
बंजारा यहां बैठकर अपना दुख रो रहा है।
यह सोचकर उस व्यक्ति ने कब्र पर
माथा टेका और अपनी मन्नत हेतु वहां प्रार्थना की कुछ पैसे चढ़ाकर वहां से चला गया।
कुछ दिनों के उपरांत ही उस
व्यक्ति की कामना पूर्ण हो गई। उसने
खुशी के मारे सारे गांव में
डंका बजाया कि अमुक स्थान पर एक पूर्ण फकीर की मज़ार है।
वहां जाकर जो अरदास करो वह पूर्ण होती है।
मनचाही मुरादे बख्शी जाती हैं वहां।
उस दिन से उस कब्र पर
भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया।
दूर-दराज से भक्त अपनी मुरादे बख्शाने वहां आने लगे।
बंजारे की तो चांदी हो गई,
बैठे-बैठे उसे कमाई
का साधन मिल गया था।
एक दिन वही फकीर
जिन्होंने बंजारे
को अपना गधा भेंट स्वरूप
दिया था वहां से गुजर रहे थे।
उन्हें देखते ही बंजारे ने उनके चरण पकड़ लिए और बोला-
"आपके गधे ने
तो मेरी जिंदगी बना दी। जब तक जीवित था
तब तक मेरे रोजगार में मेरी मदद करता था
और
मरने के बाद
मेरी जीविका का साधन बन
गया है।"
फकीर हंसते हुए बोले,
"बच्चा!
जिस मज़ार
पर तू नित्य माथा टेकने आता था,
वह मज़ार इस गधे की मां की थी।"
गुरुवार, 2 अप्रैल 2015
अकबर बीरबल और 5 मूर्ख
अकबर बीरबल सभा मे बैठ कर आपस मे बात कर रहे थे !
अकबर : मुझे इस राज्य से 5 मूर्ख ढूंढ कर दिखाओ.!!
बीरबल ने खोज शुरू की.
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एक महीने बाद वापस आये सिर्फ 2 लोगों के साथ।
अकबर ने कहा मैने 5 मूर्ख लाने के लिये कहा था !!
बीरबल ने कहा हुजुर लाया हूँ। पेश करने का मौका दिया जाय..
आदेश मिल गया।
बीरबल ने कहा- हुजुर यह पहला मूर्ख है। मैने इसे बैलगाडी पर बैठ कर भी बैग सर पर ढोते हुए देखा और पूछने पर जवाब मिला के कहीं बैल के उपर ज्यादा लोड
ना हो जाए इस्लिये बैग सिर पर ढो रहा हुँ!!
इस हिसाब से यह पहला मूर्ख है!!
दूसरा मूर्ख यह आदमी है जो आप के सामने खडा है. मैने देखा इसके घर के ऊपर छत पर घास निकली थी. अपनी भैंस को छत पर ले जाकर घास खिला रहा था. मैने देखा और पूछा तो जवाब मिला के घास छत पर जम जाती है तो भैंस को ऊपर ले जाकर घास खिला देता हूँ. हुजुर
जो आदमी अपने घर की छत पर जमी घास को काटकर फेक नहीं सकता और भैंस को उस छत पर ले जाकर घास खिलाय तो उससे बडा मूर्ख और कौन हो सकता है!!!
तीसरा मूर्ख: बीरबल ने आगे कहा. जहाँपनाह अपने राज्य मे इतना काम है. पूरी नीति मुझे सम्हालना है. फिर भी मै मूर्खों को ढूढने मेने एक महीना बर्बाद किया इसलिये तीसरा मूर्ख मै
ही हूँ.
चौथा मूर्ख.. जहाँपनाह. पूरे राज्य की जिम्मेदारी आप के ऊपर है.
दिमाग वालों से सारा काम होने वाला है. मूर्खों से कुछ होने वाला नहीं है. फिर भी आप मूर्खों को ढूढ रहे हैं. इस लिये चौथा मूर्ख जहाँपनाह आप हुए।
पांचवा मूर्ख...जहाँ पनाह मै बताना चाहता हूँ कि आफिस मे बहुत काम है. दुनिया भर के काम धाम को छोड़कर. घर परिवार को छोड़कर. बीवी बच्चों पर ध्यान ना देकर व्हाट्सएप्प पर लगा है और पाँचवें मूर्ख को जानने के लिए अब भी पोस्ट पढ़ रहा है वही पाँचवा मूर्ख है