गुरुवार, 12 मार्च 2015

असली दौलत

कल रात मैंने एक "सपना" देखा.!!
सपने में मैं और मेरी Family
शिमला घूमने गए.!!
हम सब शिमला की रंगीन
वादियों में कुदरती नजारा
देख रहे थे.!!
जैसे ही हमारी Car
Sunset Point की ओर
निकली..... अचानक गाडी के Breakफेल हो गए और हम सब
करीबन 1500 फिट गहरी
खाई में जा गिरे.!!

मेरी तो on the spot Death हो गई.!!

जीवन में कुछ अच्छे कर्म किये होंगे इसलिये यमराज मुझे स्वर्ग में ले गये.!!

देवराज इंद्र ने मुस्कुराकर
मेरा स्वागत किया.!! मेरे हाथ में Bag देखकर पूछने लगे

इसमें क्या है.?

मैंने कहा इसमें मेरे जीवन भर
की कमाई है, पांच करोड़ रूपये हैं ।  इन्द्र ने SVG 6767934 नम्बर के Locker की ओर इशारा करते हुए कहा-
आपकी अमानत इसमें रख
दीजिये.!!

मैंने Bag रख दी.!!

मुझे एक Room भी दिया.!!
मैं Fresh होकर Market में
निकला.!! देवलोक के Shopping मॉल
मे अदभूत वस्तुएं देखकर मेरा मन ललचा गया.!!

मैंने कुछ चीजें पसन्द करके
Basket में डाली, और काउंटर
पर जाकर उन्हें हजार हजार के
करारे नोटें देने लगा.!!

Manager ने नोटों को देखकर
कहा यह करेंसी यहाँ नहीं चलती.!!

यह सुनकर मैं हैरान रह गया.!!
मैंने इंद्र के पास Complaint की इंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा कि
आप व्यापारी होकर इतना भी
नहीं जानते? कि आपकी करेंसी
बाजु के मुल्क पाकिस्तान, श्रीलंका और बांगलादेश में भी नही चलती.?
और आप मृत्यूलोक की करेंसी
स्वर्गलोक में चलाने की मूर्खता
कर रहे हो.!! यह सब सुनकर मुझे मानो साँप सूंघ गया.!!

मैं जोर जोर से दहाड़े मारकर
रोने लगा.!! और परमात्मा से
दरखास्त करने लगा, हे भगवान् ये क्या हो गया.? मैंने कितनी मेहनत से ये पैसा कमाया.?
दिन नही देखा, रात नही देखा, पैसा कमाया.!! माँ बाप की सेवा नही की, पैसा कमाया
बच्चों की परवरीश नही की,
पैसा कमाया.!! पत्नी की सेहत की ओर ध्यान नही दिया, पैसा कमाया.!!

रिश्तेदार, भाईबन्द, परिवार और
यार दोस्तों से भी किसी तरह की
हमदर्दी न रखते हुए पैसा
कमाया.!!
जीवन भर हाय पैसा
हाय पैसा किया.!!
ना चैन से सोया, ना चैन से खाया.... बस, जिंदगी भर पैसा कमाया.!
और यह सब व्यर्थ गया....

हाय राम, अब क्या होगा....

इंद्र ने कहा,-
रोने से कुछ हासिल होने वाला
नहीं है.!! जिन जिन लोगो ने यहाँ जितना भी पैसा लाया, सब रद्दी हो गया।

जमशेद जी टाटा के 55 हजार करोड़ रूपये, बिरला जी के 47 हजार करोड़ रूपये, धीरू भाई
अम्बानी के 29 हजार करोड़
अमेरिकन डॉलर....  सबका पैसा यहां पड़ा है.!!

मैंने इंद्र से पूछा-
फिर यहां पर कौनसी करेंसी
चलती है.??
इंद्र ने कहा-
धरती पर अगर कुछ अच्छे कर्म
किये है. जैसे किसी दुखियारे को
मदद की, किसी रोते हुए को
हसाया, किसी गरीब बच्ची की
शादी कर दी, किसी अनाथ बच्चे को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया.!! किसी को व्यसनमुक्त किया.!! किसी अपंग स्कुल, वृद्धाश्रम या मंदिरों में दान धर्म किया....

ऐसे पूण्य कर्म करने वालों को
यहाँ पर एक Credit Card
मिलता है....
और उसे वापर कर आप यहाँ
स्वर्गीय सुख का उपभोग ले
सकते है.!!

मैंने कहा भगवन, मुझे यह पता
नहीं था. इसलिए मैंने अपना जीवन व्यर्थ गँवा दिया.!!

हे प्रभु, मुझे थोडा आयुष्य दीजिये... और मैं गिड़गिड़ाने लगा.!! इंद्र को मुझ पर दया आ गई.!!

इंद्र ने तथास्तु कहा और मेरी नींद खुल गयी...

मैं जाग गया....

अब मैं वो दौलत कमाऊँगा
जो वहाँ चलेगी.....

मंगलवार, 10 मार्च 2015

दोहरा व्यक्तित्व

आदमी का दोहरा व्यक्तित्व हो गया है। एक जो ऊपर से दिखाई पड़ने लगता है। और एक, एक जो भीतर होता है।

इस द्वैत में इतना तनाव है, इतनी अशांति है, इतनी कानफ्लिक्ट है। होगी ही, क्योंकि जब एक आदमी दो हिस्सों में टूट जाएगा--एक जैसा वह है, और एक जैसा वह लोगों को 
दिखलाता है कि मैं हूं।

मैंने सुना है कि शहर में एक अदभुत फोटोग्राफर था , उसने अपने स्टूडियो के सामने एक तख्ती लगा रखी थी। उस तख्ती पर उसने फोटो उतारने के दाम की सूची लिख रखी थी। उस पर उसने लिख रखा था: जैसे आप हैं, अगर वैसा ही फोटो उतरवाना है तो पांच रुपया , दस रुपया में एक दम बेहतरीन फोटो और जैसा आप चाहते हैं आप कि जो कल्पना है , अगर वैसी फोटो उतरवानी है तो पंद्रह रुपया ।

एक गांव का ग्रामीण पहुंचा। वह भी चित्र उतरवाना चाहता था। वह हैरान हुआ कि चित्र भी क्या तीन प्रकार के हो सकते हैं। और उसने उस फोटोग्राफर से पूछा कि क्या पांच रुपए को छोड़कर कोई दस और पंद्रह का फोटो भी उतरवाने आता है?

उस फोटोग्राफर ने कहा, तुम पहले आदमी हो, जो पांच रुपए वाला फोटो उतरवाने का विचार कर रहे हो। अब तक तो यहां कोई पांच रुपए वाला फोटो उतरवाने नहीं आया। जिनके पास पैसे होते हैं, वे पंद्रह रुपए वाला ही उतरवाते हैं। मजबूरी, पैसे कम हों तो दस रुपए वाला उतरवाते हैं। लेकिन मन उनका पंद्रह वाला ही रहता है कि उतरे तो अच्छा। पांच रुपए वाला तो कोई मिलता नहीं। जो जैसा है, वैसा चित्र कोई भी उतरवाना नहीं चाहता है।

हम अपने व्यक्तित्व को ऐसी पर्त-पर्त ढांके हुए हैं। इससे एक पाखंड पैदा हुआ है। इस पाखंड से सारा मनुष्य-चित्त रुग्ण हो गया है ।

नकली कारतूस

इंटेलिजेंस ब्यूरो में एक उच्च पद हेतु भर्ती की प्रक्रिया चल रही थी।

अंतिम तौर पर केवल तीन उम्मीदवार बचे थे जिनमें से किसी एक का चयन किया जाना था।

इनमें दो पुरुष थे और एक महिला... उनको क्रमशः उनकी पत्नियों एवं पति के साथ बुलाया गया था ।

फाइनल परीक्षा के रूप में कर्तव्य के प्रति उनकी निष्ठा की जांच की जानी थी...

पहले आदमी को एक कमरे में ले जाकर परीक्षक ने कहा –”हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि तुम हर हाल में हमारे निर्देशों का पालन करोगे चाहे कोई भी परिस्थिति क्यों न हो।”

फिर उसने उसके हाथ में एक बंदूक पकड़ाई और दूसरे कमरे की ओर इशारा करते हुये कहा – ”उस कमरे में तुम्हारी पत्नी बैठी है। जाओ और उसे गोली मार दो।”

”मैं अपनी पत्नी को किसी भी हालत में गोली नहीं मार सकता” आदमी ने कहा।”

तो फिर तुम हमारे किसी काम के नहीं हो। तुम जा सकते हो।” – परीक्षक ने कहा।

अब दूसरे आदमी को बुलाया गया।”
.
.
परीक्षक ने उसके हाथ में एक बंदूक पकड़ाई और दूसरे कमरे की ओर इशारा करते हुये कहा – ”उस कमरे में तुम्हारी पत्नी बैठी है। जाओ और उसे गोली मार दो।”

आदमी उस कमरे में गया और पांच मिनट बाद आंखों में आंसू लिये वापस आ गया।

”मैं अपनी प्यारी पत्नी को गोली नहीं मार सका। मुझे माफ कर दीजिये। मैं इस पद के योग्य नहीं हूं।”

अब अंतिम उम्मीदवार के रूप में केवल महिला बची थी। उन्होंने उसे भी बंदूक पकड़ाई और उसी कमरे की तरफ इशारा करते हुये कहा – ”उस कमरे में तुम्हारा पति बैठा है। जाओ और जाकर उसे गोली से उड़ा दो।”

महिला ने बंदूक ली और कमरे के अंदर चली गई।

कमरे के अंदर घुसते ही फायरिंग की आवाजें आने लगीं ।

लगभग 11 राउंड फायर के बाद कमरे से चीख पुकार, उठा पटक की आवाजें आनी शुरू हो गईं। यह क्रम लगभग पन्द्रह मिनटों तक चला ,उसके बाद खामोशी छा गई। लगभग पांच मिनट बाद कमरे का दरवाजा खुला और माथे से पसीना पोंछते हुये महिला बाहर आई।

वो बोली – ”तुम लोगों ने मुझे बताया नहीं था कि बंदूक में कारतूस नकली हैं। मजबूरन मुझे उसे पीट-पीट कर मारना पड़ा।”

परीक्षक बेहोश

माँ भाई कब मरेगा....??

एक गरीब FAMILY THI जिसमे 5 लोग थे.....
माँ बाप और 3 बच्चे
बाप हमेशा बीमार रहता था |
एक दिन वो मर गया !
3 दिन तक पड़ोसियों ने खाना भेजा बाद में भूखे
रहने के दिन आ गए.....|
माँ ने कुछ दिन तक जैसे-तैसे
बच्चों को खाना खिलाया |
लेकिन कब तक आखिर फिर से भूखे रहना पड़ा !
जिसकी वजह से 8 साल का बेटा बीमार
हो गया और बिस्तर पकड़ लिया......
एक दिन 5 साल की बच्ची ने माँ के कान में पूछा।
"
माँ भाई कब मरेगा....??
.
माँ ने तड़प कर पूछा ऐसा क्यों पूछ रही हो.....??
.
बच्ची ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया,
जिसे सुन कर आप की आँखों में आँसु आ जायेंगे.......
.
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बच्ची का जवाब था |
"माँ भाई मरेगा तो घर में खाना आएगा ना !"....
.
.
.

सोमवार, 9 मार्च 2015

ईमानदारी का फल


इस साल मेरा बेटा
दूसरी कक्षा मैं प्रवेश पा गया ....
क्लास मैं हमेशा से अव्वल
आता रहा है !

पिछले दिनों तनख्वाह मिली तो
मैं उसे नयी स्कूल ड्रेस और
जूते दिलवाने के लिए बाज़ार ले  गया !

बेटे ने जूते लेने से ये कह कर
मना कर दिया की पुराने जूतों
को बस थोड़ी-सी मरम्मत की
जरुरत है वो अभी इस साल
काम दे सकते हैं!

अपने जूतों की बजाये उसने
मुझे अपने दादा की कमजोर हो
चुकी नज़र के लिए नया चश्मा
बनवाने को कहा !

मैंने सोचा बेटा अपने दादा से
शायद बहुत प्यार करता है
इसलिए अपने जूतों की बजाय
उनके चश्मे को ज्यादा जरूरी
समझ रहा है !

खैर मैंने कुछ कहना जरुरी
नहीं समझा और उसे लेकर
ड्रेस की दुकान पर पहुंचा.....
दुकानदार ने बेटे के साइज़
की सफ़ेद शर्ट निकाली ...
डाल कर देखने पर शर्ट एक दम
फिट थी.....
फिर भी बेटे ने थोड़ी लम्बी शर्ट
दिखाने को कहा !!!!

मैंने बेटे से कहा :
बेटा ये शर्ट तुम्हें बिल्कुल सही है
तो फिर और लम्बी क्यों ?

बेटे ने कहा :पिता जी मुझे शर्ट
निक्कर के अंदर ही डालनी होती है
इसलिए थोड़ी लम्बी भी होगी तो
कोई फर्क नहीं पड़ेगा.......
लेकिन यही शर्ट मुझे अगली
क्लास में भी काम आ जाएगी ......
पिछली वाली शर्ट भी अभी
नयी जैसी ही पड़ी है लेकिन
छोटी होने की वजह से मैं उसे
पहन नहीं पा रहा !

मैं खामोश रहा !!

घर आते वक़्त मैंने बेटे से पूछा :
तुम्हे ये सब बातें कौन सिखाता है
बेटा ?

बेटे ने कहा:
पिता जी मैं अक्सर देखता था
कि कभी माँ अपनी साडी छोड़कर
तो कभी आप अपने जूतों को
छोडकर हमेशा मेरी किताबों
और कपड़ो पैर पैसे खर्च कर
दिया करते हैं !

गली- मोहल्ले में सब लोग कहते
हैं के आप बहुत ईमानदार
आदमी हैं और हमारे साथ वाले
राजू के पापा को सब लोग
चोर, कुत्ता, बे-ईमान, रिश्वतखोर
और जाने क्या क्या कहते हैं,
जबकि आप दोनों एक ही
ऑफिस में काम करते हैं.....

जब सब लोग आपकी तारीफ
करते हैं तो मुझे बड़ा अच्छा
लगता है.....
मम्मी और दादा जी भी आपकी
तारीफ करते हैं !

पिता जी मैं चाहता हूँ कि मुझे
कभी जीवन में नए कपडे,
नए जूते मिले या न मिले
लेकिन कोई आपको
चोर, बे-ईमान, रिश्वतखोर या
कुत्ता न कहे !!!!!

मैं आपकी ताक़त बनना चाहता हूँ
पिता जी,
आपकी कमजोरी नहीं !

बेटे की बात सुनकर मैं निरुतर था!
आज मुझे पहली बार मुझे
मेरी ईमानदारी का इनाम मिला था !!

आज बहुत दिनों बाद आँखों में
ख़ुशी, गर्व और सम्मान के
आंसू थे...

शनिवार, 7 मार्च 2015

देवदूत की भूल


मृत्यु के देवता ने अपने एक दूत को भेजा पृथ्वी पर। एक स्त्री मर गयी थी, उसकी आत्मा को लाना था। देवदूत आया, लेकिन चिंता में पड़ गया। क्योंकि तीन छोटी-छोटी लड़कियां जुड़वां--एक अभी भी उस मृत स्त्री के स्तन से लगी है। एक चीख रही है, पुकार रही है। एक रोते-रोते सो गयी है, उसके आंसू उसकी आंखों के पास सूख गए हैं--तीन छोटी जुड़वां बच्चियां और स्त्री मर गयी है, और कोई देखने वाला नहीं है। पति पहले मर चुका है। परिवार में और कोई भी नहीं है। इन तीन छोटी बच्चियों का क्या होगा ?

उस देवदूत को यह खयाल आ गया, तो वह खाली हाथ वापस लौट गया। उसने जा कर अपने प्रधान को कहा कि मैं न ला सका, मुझे क्षमा करें, लेकिन आपको स्थिति का पता ही नहीं है। तीन जुड़वां बच्चियां हैं--छोटी-छोटी, दूध पीती। एक अभी भी मृत स्तन से लगी है, एक रोते-रोते सो गयी है, दूसरी अभी चीख-पुकार रही है। हृदय मेरा ला न सका। क्या यह नहीं हो सकता कि इस स्त्री को कुछ दिन और जीवन के दे दिए जाएं? कम से कम लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएं। और कोई देखने वाला नहीं है।

मृत्यु के देवता ने कहा, तो तू फिर समझदार हो गया; उससे ज्यादा, जिसकी मर्जी से मौत होती है, जिसकी मर्जी से जीवन होता है! तो तूने पहला पाप कर दिया, और इसकी तुझे सजा मिलेगी। और सजा यह है कि तुझे पृथ्वी पर चले जाना पड़ेगा। और जब तक तू तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर, तब तक वापस न आ सकेगा।

इसे थोड़ा समझना। तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर--क्योंकि दूसरे की मूर्खता पर तो अहंकार हंसता है। जब तुम अपनी मूर्खता पर हंसते हो तब अहंकार टूटता है।

देवदूत को लगा नहीं। वह राजी हो गया दंड भोगने को, लेकिन फिर भी उसे लगा कि सही तो मैं ही हूं। और हंसने का मौका कैसे आएगा?

उसे जमीन पर फेंक दिया गया। एक चमार, सर्दियों के दिन करीब आ रहे थे और बच्चों के लिए कोट और कंबल खरीदने शहर गया था, कुछ रुपए इकट्ठे कर के। जब वह शहर जा रहा था तो उसने राह के किनारे एक नंगे आदमी को पड़े हुए, ठिठुरते हुए देखा। यह नंगा आदमी वही देवदूत है जो पृथ्वी पर फेंक दिया गया था। उस चमार को दया आ गयी। और बजाय अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीदने के, उसने इस आदमी के लिए कंबल और कपड़े खरीद लिए। इस आदमी को कुछ खाने-पीने को भी न था, घर भी न था, छप्पर भी न था जहां रुक सके। तो चमार ने कहा कि अब तुम मेरे साथ ही आ जाओ। लेकिन अगर मेरी पत्नी नाराज हो--जो कि वह निश्चित होगी, क्योंकि बच्चों के लिए कपड़े खरीदने लाया था, वह पैसे तो खर्च हो गए--वह अगर नाराज हो, चिल्लाए, तो तुम परेशान मत होना। थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा।

उस देवदूत को ले कर चमार घर लौटा। न तो चमार को पता है कि देवदूत घर में आ रहा है, न पत्नी को पता है। जैसे ही देवदूत को ले कर चमार घर में पहुंचा, पत्नी एकदम पागल हो गयी। बहुत नाराज हुई, बहुत चीखी-चिल्लायी।

और देवदूत पहली दफा हंसा। चमार ने उससे कहा, हंसते हो, बात क्या है? उसने कहा, मैं जब तीन बार हंस लूंगा तब बता दूंगा।

देवदूत हंसा पहली बार, क्योंकि उसने देखा कि इस पत्नी को पता ही नहीं है कि चमार देवदूत को घर में ले आया है, जिसके आते ही घर में हजारों खुशियां आ जाएंगी। लेकिन आदमी देख ही कितनी दूर तक सकता है! पत्नी तो इतना ही देख पा रही है कि एक कंबल और बच्चों के पकड़े नहीं बचे। जो खो गया है वह देख पा रही है, जो मिला है उसका उसे अंदाज ही नहीं है--मुफ्त! घर में देवदूत आ गया है। जिसके आते ही हजारों खुशियों के द्वार खुल जाएंगे। तो देवदूत हंसा। उसे लगा, अपनी मूर्खता--क्योंकि यह पत्नी भी नहीं देख पा रही है कि क्या घट रहा है!

जल्दी ही, क्योंकि वह देवदूत था, सात दिन में ही उसने चमार का सब काम सीख लिया। और उसके जूते इतने प्रसिद्ध हो गए कि चमार महीनों के भीतर धनी होने लगा। आधा साल होते-होते तो उसकी ख्याति सारे लोक में पहुंच गयी कि उस जैसा जूते बनाने वाला कोई भी नहीं, क्योंकि वह जूते देवदूत बनाता था। सम्राटों के जूते वहां बनने लगे। धन अपरंपार बरसने लगा।

एक दिन सम्राट का आदमी आया। और उसने कहा कि यह चमड़ा बहुत कीमती है, आसानी से मिलता नहीं, कोई भूल-चूक नहीं करना। जूते ठीक इस तरह के बनने हैं। और ध्यान रखना जूते बनाने हैं, स्लीपर नहीं। क्योंकि रूस में जब कोई आदमी मर जाता है तब उसको स्लीपर पहना कर मरघट तक ले जाते हैं। चमार ने भी देवदूत को कहा कि स्लीपर मत बना देना। जूते बनाने हैं, स्पष्ट आज्ञा है, और चमड़ा इतना ही है। अगर गड़बड़ हो गयी तो हम मुसीबत में फंसेंगे।

लेकिन फिर भी देवदूत ने स्लीपर ही बनाए। जब चमार ने देखे कि स्लीपर बने हैं तो वह क्रोध से आगबबूला हो गया। वह लकड़ी उठा कर उसको मारने को तैयार हो गया कि तू हमारी फांसी लगवा देगा! और तुझे बार-बार कहा था कि स्लीपर बनाने ही नहीं हैं, फिर स्लीपर किसलिए?

देवदूत फिर खिलखिला कर हंसा। तभी आदमी सम्राट के घर से भागा हुआ आया। उसने कहा, जूते मत बनाना, स्लीपर बनाना। क्योंकि सम्राट की मृत्यु हो गयी है।

भविष्य अज्ञात है। सिवाय उसके और किसी को ज्ञात नहीं। और आदमी तो अतीत के आधार पर निर्णय लेता है। सम्राट जिंदा था तो जूते चाहिए थे, मर गया तो स्लीपर चाहिए। तब वह चमार उसके पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा कि मुझे माफ कर दे, मैंने तुझे मारा। पर उसने कहा, कोई हर्ज नहीं। मैं अपना दंड भोग रहा हूं।

लेकिन वह हंसा आज दुबारा। चमार ने फिर पूछा कि हंसी का कारण? उसने कहा कि जब मैं तीन बार हंस लूं...।

दुबारा हंसा इसलिए कि भविष्य हमें ज्ञात नहीं है। इसलिए हम आकांक्षाएं करते हैं जो कि व्यर्थ हैं। हम अभीप्साएं करते हैं जो कि कभी पूरी न होंगी। हम मांगते हैं जो कभी नहीं घटेगा। क्योंकि कुछ और ही घटना तय है। हमसे बिना पूछे हमारी नियति घूम रही है। और हम व्यर्थ ही बीच में शोरगुल मचाते हैं। चाहिए स्लीपर और हम जूते बनवाते हैं। मरने का वक्त करीब आ रहा है और जिंदगी का हम आयोजन करते हैं।

तो देवदूत को लगा कि वे बच्चियां! मुझे क्या पता, भविष्य उनका क्या होने वाला है? मैं नाहक बीच में आया।

और तीसरी घटना घटी कि एक दिन तीन लड़कियां आयीं जवान। उन तीनों की शादी हो रही थी। और उन तीनों ने जूतों के आर्डर दिए कि उनके लिए जूते बनाए जाएं। एक बूढ़ी महिला उनके साथ आयी थी जो बड़ी धनी थी। देवदूत पहचान गया, ये वे ही तीन लड़कियां हैं, जिनको वह मृत मां के पास छोड़ गया था और जिनकी वजह से वह दंड भोग रहा है। वे सब स्वस्थ हैं, सुंदर हैं। उसने पूछा कि क्या हुआ? यह बूढ़ी औरत कौन है? उस बूढ़ी औरत ने कहा कि ये मेरी पड़ोसिन की लड़कियां हैं। गरीब औरत थी, उसके शरीर में दूध भी न था। उसके पास पैसे-लत्ते भी नहीं थे। और तीन बच्चे जुड़वां। वह इन्हीं को दूध पिलाते-पिलाते मर गयी। लेकिन मुझे दया आ गयी, मेरे कोई बच्चे नहीं हैं, और मैंने इन तीनों बच्चियों को पाल लिया।

अगर मां जिंदा रहती तो ये तीनों बच्चियां गरीबी, भूख और दीनता और दरिद्रता में बड़ी होतीं। मां मर गयी, इसलिए ये बच्चियां तीनों बहुत बड़े धन-वैभव में, संपदा में पलीं। और अब उस बूढ़ी की सारी संपदा की ये ही तीन मालिक हैं। और इनका सम्राट के परिवार में विवाह हो रहा है।

देवदूत तीसरी बार हंसा। और चमार को उसने कहा कि ये तीन कारण हैं। भूल मेरी थी। नियति बड़ी है। और हम उतना ही देख पाते हैं, जितना देख पाते हैं। जो नहीं देख पाते, बहुत विस्तार है उसका। और हम जो देख पाते हैं उससे हम कोई अंदाज नहीं लगा सकते, जो होने वाला है, जो होगा। मैं अपनी मूर्खता पर तीन बार हंस लिया हूं। अब मेरा दंड पूरा हो गया और अब मैं जाता हूं।

शुक्रवार, 6 मार्च 2015

किसान की बेटी

एक नौजवान आदमी एक किसान की बेटी से शादी की इच्छा लेकर किसान के पास गया. किसान ने उसकी ओर देखा और कहा, ” युवक, खेत में जाओ. मैं एक एक करके तीन बैल छोड़ने वाला हूँ. अगर तुम तीनों बैलों में से किसी भी एक की पूँछ पकड़ लो तो मैं अपनी बेटी की शादी तुमसे कर दूंगा.”

नौजवान खेत में बैल की पूँछ पकड़ने की मुद्रा लेकर खडा हो गया. किसान ने खेत में स्थित घर का दरवाजा खोला और एक बहुत ही बड़ा और खतरनाक बैल उसमे से निकला. नौजवान ने ऐसा बैल पहले कभी नहीं देखा था. उससे डर कर नौजवान ने निर्णय लिया कि वह अगले बैल का इंतज़ार करेगा और वह एक तरफ हो गया जिससे बैल उसके पास से होकर निकल गया.

दरवाजा फिर खुला. आश्चर्यजनक रूप से इस बार पहले से भी बड़ा और भयंकर बैल निकला. नौजवान ने सोचा कि इससे तो पहला वाला बैल ठीक था. फिर उसने एक ओर होकर बैल को निकल जाने दिया.

दरवाजा तीसरी बार खुला. नौजवान के चहरे पर मुस्कान आ गई. इस बार एक छोटा और मरियल बैल निकला. जैसे ही बैल नौजवान के पास आने लगा, नौजवान ने उसकी पूँछ पकड़ने के लिए मुद्रा बना ली ताकि उसकी पूँछ सही समय पर पकड़ ले. पर उस बैल की पूँछ थी ही नहीं………………..

कहानी से सीख……
जिन्दगी अवसरों से भरी हुई है. कुछ सरल हैं और कुछ कठिन. पर अगर एक बार अवसर गवां दिया तो फिर वह अवसर दुबारा नहीं मिलेगा. अतः हमेशा प्रथम अवसर को हासिल करने का प्रयास करना चाहिए.

गुमनाम लिफाफा

नई नई शादी के बाद पति और पत्नी जब
घर आये तो उन्हे एक लिफाफा मिला खोल
कर देखा तो सिनेमा के
दो टिकट ।
लेकिन भेजने वाले का नाम नही
लिखा था ।
पति बोला यह जरूर मेरे किसी दोस्त ने
भेजा होगा l
पत्नी बोली ना जी मेरी सहेली ने
भेजी होगी ।
पति - खैर छोडो किसी ने भेजा हो हमे
क्या । फिल्म का वक्त हो गया है हमे
जल्दी चलना चाहिये ।
जब दोनो फिल्म देखकर वापस आये तो घर
का सारा बहुमुल्य समान
चोरी हो गया था ll
.
वही एक लिफाफा मिला जिसमे
लिखा था कि-
.
अब तो पता चल गया होगा कि टिकट
किसने
भेजा था ll

गुरुवार, 5 मार्च 2015

होली के गूढ़ भाव


ओशो...

होली हिंदुस्तान की गहरी प्रज्ञा से उपजा हुआ त्योहार है। उसमें पुराण
कथा एक आवरण है, जिसमें लपेटकर मनोविज्ञान
की घुट्टी पिलाई गई है। सभ्य मनुष्य के मन पर
नैतिकता का इतना बोझ होता है कि उसका रेचन करना जरूरी है,
अन्यथा वह पागल हो जाएगा। इसी को ध्यान में रखते हुए
होली के नाम पर रेचन की सहूलियत दी गई है। पुराणों में इसके बारे
में जो कहानी है, उसकी कई गहरी परतें हैं।
हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद कभी हुए या नहीं, इससे प्रयोजन नहीं है।
लेकिन पुराण में जिस तरफ इशारा है, आस्तिक और नास्तिक
का संघर्ष- वह रोज होता है, प्रतिपल होता है। पुराण इतिहास
नहीं है, वह मनुष्य के जीवन का अंतर्निहित सत्य है। इसमें
आस्तिकता और नास्तिकता का संघर्ष है, पिता और पुत्र का,
कल और आज का, शुभ और अशुभ का संघर्ष है।
होली की कहानी का प्रतीक देखें तो हिरण्यकश्यप पिता है।
पिता बीज है, पुत्र उसी का अंकुर है। हिरण्यकश्यप
जैसी दुष्टात्मा को पता नहीं कि मेरे घर आस्तिक पैदा होगा, मेरे
प्राणों से आस्तिकता जन्मेगी। इसका विरोधाभास देखें। इधर
नास्तिकता के घर आस्तिकता प्रकट हुई और हिरण्यकश्यप
घबड़ा गया। जीवन की मान्यताएं, जीवन की धारणाएं दांव पर
लग गईं।
ओशो ने इस कहानी में छिपे हुए प्रतीक को सुंदरता से खोला है, 'हर
बाप बेटे से लड़ता है। हर बेटा बाप के खिलाफ बगावत करता है। और
ऐसा बाप और बेटे का ही सवाल नहीं है -हर 'आज' 'बीते कल' के
खिलाफ बगावत है। वर्तमान अतीत से छुटकारे की चेष्टा करता है।
अतीत पिता है, वर्तमान पुत्र है। हिरण्यकश्यप मनुष्य  बाहर
नहीं है, न ही प्रहलाद बाहर है। हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद
दो नहीं हैं - प्रत्येक व्यक्ति के भीतर घटने वाली दो घटनाएं हैं।
जब तक मन में संदेह है, हिरण्यकश्यप मौजूद है। तब तक अपने भीतर उठते
श्रद्धा के अंकुरों को तुम पहाड़ों से गिराओगे, पत्थरों से दबाओगे,
पानी में डुबाओगे, आग में जलाओगे- लेकिन तुम जला न पाओगे।
जहां संदेह के राजपथ हैं; वहां भीड़ साथ है।
जहां श्रद्धा की पगडंडियां हैं; वहां तुम एकदम अकेले हो जाते हो,
एकाकी। संदेह की क्षमता सिर्फ विध्वंस की है, सृजन की नहीं है।
संदेह मिटा सकता है, बना नहीं सकता। संदेह के पास सृजनात्मक
ऊर्जा नहीं है।
आस्तिकता और श्रद्धा कितनी ही छोटी क्यों न हो,
शक्तिशाली होती है। प्रह्लाद के भक्ति गीत हिरण्यकश्यप
को बहुत बेचैन करने लगे होंगे। उसे
एकबारगी वही सूझा जो सूझता है- नकार, मिटा देने की इच्छा।
नास्तिकता विध्वंसात्मक है, उसकी सहोदर है आग। इसलिए
हिरण्यकश्यप की बहन है अग्नि, होलिका। लेकिन अग्नि सिर्फ
अशुभ को जला सकती है, शुद्ध तो उसमें से कुंदन की तरह निखरकर
बाहर आता है। इसीलिए आग की गोद में बैठा प्रह्लाद अनजला बच
गया।
उस परम विजय के दिन को हमने अपनी जीवन शैली में उत्सव
की तरह शामिल कर लिया। फिर जन सामान्य ने उसमें
रंगों की बौछार जोड़ दी। बड़ा सतरंगी उत्सव है। पहले अग्नि में मन
का कचरा जलाओ, उसके बाद प्रेम रंग की बरसात करो। यह
होली का मूल स्वरूप था। इसके पीछे मनोविज्ञान है अचेतन मन
की सफाई करना। इस सफाई को पाश्चात्य मनोविज्ञान में
कैथार्सिस या रेचन कहते हैं।
साइकोथेरेपी का अनिवार्य हिस्सा होता है मन में
छिपी गंदगी की सफाई। उसके बाद ही भीतर प्रवेश हो सकता है।
ओशो ने अपनी ध्यान विधियां इसी की बुनियाद पर बनाई हैं।
होली जैसे वैज्ञानिक पर्व का हम थोड़ी बुद्धिमानी से उपयोग
कर सकें तो इस एक दिन में बरसों की सफाई हो सकती है। फिर
निर्मल मन के पात्र में, सद्दवों की सुगंध में घोलकर रंग खेलें
तो होली वैसी होगी जैसी मीराबाई ने खेली थी :
बिन सुर राग छत्तीसों गावै, रोम-रोम रस कार रे
होली खेल मना रे।।