मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

फिर शांती से जिऊँगा

एक संत बहुत दिनों से नदी के किनारे बैठा था। एक दिन किसी व्यक्ति ने उससे पूछा - आप नदी के किनारे बैठे-बैठे क्या कर रहे हो? संत ने कहा - नदी का सारा जल बह जाए, इसका इंतजार कर रहा हूँ। व्यक्ति ने कहा - यह कैसे हो सकता है? नदी तो बहती ही रहती है। सारा पानी अगर बह भी जाए, तो भी आपको क्या करना !
संत ने कहा - मुझे दूसरे पार जाना है । सारा जल बह जाएगा, तो मैं चल कर उस पार जाऊँगा।
उस व्यक्ति ने गुस्से में कहा - आप पागल और नासमझ जैसी बात कर रहे हैं। ऐसा तो हो ही नही सकता।
तब संत ने हँसते हुए कहा - यह काम तुम लोगों को देख कर ही सीखा है। तुम लोग हमेशा सोचते रहते हो कि जीवन मे थोड़ी बाधाएं कम हो जायें, बच्चों की पढ़ाई पूरी हो जाय, बच्चों की शादी हो जाय, मकान हो जाय, कुछ बुढ़ापे के लिए धन ईक्कठा कर लुँ, काम खत्म हो जाए...............
*फिर शांती से जिऊँगा*
जीवन भी तो नदी के समान है। जीवन से तुम भी यही आशा लगाये बैठे हो तो मैं इस नदी के सारे पानी के बह जाने का इंतजार क्यों न करूँ?

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