प्रेरक प्रसंग
Heart touching short handpicked stories
शनिवार, 11 मई 2024
अहंकार
गुरुवार, 28 सितंबर 2023
ओबव्वा और चित्रदुर्ग किला
सोमवार, 11 अप्रैल 2022
क्रोध
सोमवार, 25 जनवरी 2021
आचरण की सीख
शुक्रवार, 18 सितंबर 2020
निवाला
गुरुवार, 17 सितंबर 2020
लालच
शनिवार, 25 अप्रैल 2020
भगवान पर भरोसा
मंगलवार, 21 अप्रैल 2020
सबसे ऊँची प्रार्थना
बुधवार, 24 अप्रैल 2019
सतगुरु
कथा के अंत में सबको कहता कि ‘राम कहे तो बंधन टूटे’।
तभी पिंजरे में बंद तोता बोलता, ‘यूं मत कहो रे पंडित झूठे’।
पंडित को क्रोध आता कि ये सब क्या सोचेंगे, रानी क्या सोचेगी।
पंडित अपने गुरु के पास गया, गुरु को सब हाल बताया।
गुरु तोते के पास गया और पूछा तुम ऐसा क्यों कहते हो?
तोते ने कहा- ‘मैं पहले खुले आकाश में उड़ता था।
एक बार मैं एक आश्रम में जहां सब साधू-संत राम-राम-राम बोल रहे थे, वहां बैठा तो मैंने भी राम-राम बोलना शुरू कर दिया।
एक दिन मैं उसी आश्रम में राम-राम बोल रहा था, तभी एक संत ने मुझे पकड़ कर पिंजरे में बंद कर लिया, फिर मुझे एक-दो श्लोक सिखाये।
आश्रम में एक सेठ ने मुझे संत को कुछ पैसे देकर खरीद लिया।
अब सेठ ने मुझे चांदी के पिंजरे में रखा, मेरा बंधन बढ़ता गया।
निकलने की कोई संभावना न रही।
एक दिन उस सेठ ने राजा से अपना काम निकलवाने के लिए मुझे राजा को गिफ्ट कर दिया, राजा ने खुशी-खुशी मुझे ले लिया, क्योंकि मैं राम-राम बोलता था।
रानी धार्मिक प्रवृत्ति की थी तो राजा ने रानी को दे दिया।
अब मैं कैसे कहूं कि ‘राम-राम कहे तो बंधन छूटे’।
तोते ने गुरु से कहा आप ही कोई युक्ति बताएं, जिससे मेरा बंधन छूट जाए।
गुरु बोले- आज तुम चुपचाप सो जाओ, हिलना भी नहीं।
रानी समझेगी मर गया और छोड़ देगी। ऐसा ही हुआ।
दूसरे दिन कथा के बाद जब तोता नहीं बोला, तब संत ने आराम की सांस ली,
रानी ने सोचा तोता तो गुमसुम पढ़ा है, शायद मर गया।
रानी ने पिंजरा खोल दिया, तभी तोता पिंजरे से निकलकर आकाश में उड़ते हुए बोलने लगा ‘सतगुरु मिले तो बंधन छूटे’।
अतः शास्त्र कितना भी पढ़ लो, कितना भी जाप कर लो, लेकिन सच्चे गुरु के बिना बंधन नहीं छूटता।
शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019
मृत्यु का पल
एक बार मेरे शहर में एक प्रसिद्ध बनारसी विद्वान् ज्योतिषी का आगमन हुआ.. माना जाता है कि उनकी वाणी में सरस्वती विराजमान है । वे जो भी बताते है वह 100% सच होता है ।
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501/- रुपये देते हुए वर्मा जी ने अपना दाहिना हाथ आगे बढ़ाते हुए ज्योतिषी को कहा..
महाराज, मेरी मृत्यु कब, कहॉ और किन परिस्थितियों में होगी ?
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ज्योतिषी ने वर्मा जी की हस्त रेखाऐं देखीं, चेहरे और माथे को अपलक निहारते रहे । स्लेट पर कुछ अंक लिख कर जोड़ते–घटाते रहे । बहुत देर बाद वे गंभीर स्वर में बोले..
वर्मा जी आपकी भाग्य रेखाएँ कहती है कि जितनी आयु आपके पिता को प्राप्त होगी उतनी ही आयु आप भी पाएँगे । जिन परिस्थितियों में और जहाँ आपके पिता की मृत्यु होगी, उसी स्थान पर और उसी तरह, आपकी भी मृत्यु होगी
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यह सुन कर वर्मा जी भयभीत हो उठे और चल पड़े......
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एक घण्टे बाद ...
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वर्मा जी वृद्धाश्रम से अपने वृद्ध पिता को साथ लेकर घर लौट रहे थे..!!
मित्रो व्यक्ति को जिस पल यह अहसास हो जाये जो वह बो रहा है वही काटना है । तो वह वही बोयेगा जो उसे भविष्य में चाहिए ।
जिन माता पिता की बदौलत हम इस संसार में आये । जिन्होंने हमें अपनी क्षमता से इस संसार में रहने काबिल बनाया उन्हें दुःख पहुँचा के कोई सुखी न ही रह पाया है ।
शनिवार, 19 जनवरी 2019
मुस्कुराइए
एक औरत बहुत महँगे कपड़े में अपने मनोचिकित्सक के पास गई और बोली
"डॉ साहब ! मुझे लगता है कि मेरा पूरा जीवन बेकार है, उसका कोई अर्थ नहीं है। क्या आप मेरी खुशियाँ ढूँढने में मदद करेंगें?"
मनोचिकित्सक ने एक बूढ़ी औरत को बुलाया जो वहाँ साफ़-सफाई का काम करती थी और उस अमीर औरत से बोला - "मैं इस बूढी औरत से तुम्हें यह बताने के लिए कहूँगा कि कैसे उसने अपने जीवन में खुशियाँ ढूँढी। मैं चाहता हूँ कि आप उसे ध्यान से सुनें।"
तब उस बूढ़ी औरत ने अपना झाड़ू नीचे रखा, कुर्सी पर बैठ गई और बताने लगी - "मेरे पति की मलेरिया से मृत्यु हो गई और उसके 3 महीने बाद ही मेरे बेटे की भी सड़क हादसे में मौत हो गई। मेरे पास कोई नहीं था। मेरे जीवन में कुछ नहीं बचा था। मैं सो नहीं पाती थी, खा नहीं पाती थी, मैंने मुस्कुराना बंद कर दिया था।"
मैं स्वयं के जीवन को समाप्त करने की तरकीबें सोचने लगी थी। तब एक दिन,एक छोटा बिल्ली का बच्चा मेरे पीछे लग गया जब मैं काम से घर आ रही थी। बाहर बहुत ठंड थी इसलिए मैंने उस बच्चे को अंदर आने दिया। उस बिल्ली के बच्चे के लिए थोड़े से दूध का इंतजाम किया और वह सारी प्लेट सफाचट कर गया। फिर वह मेरे पैरों से लिपट गया और चाटने लगा।"
"उस दिन बहुत महीनों बाद मैं मुस्कुराई। तब मैंने सोचा यदि इस बिल्ली के बच्चे की सहायता करने से मुझे ख़ुशी मिल सकती है,तो हो सकता है कि दूसरों के लिए कुछ करके मुझे और भी ख़ुशी मिले। इसलिए अगले दिन मैं अपने पड़ोसी, जो कि बीमार था,के लिए कुछ बिस्किट्स बना कर ले गई।"
"हर दिन मैं कुछ नया और कुछ ऐसा करती थी जिससे दूसरों को ख़ुशी मिले और उन्हें खुश देख कर मुझे ख़ुशी मिलती थी।"
"आज,मैंने खुशियाँ ढूँढी हैं, दूसरों को ख़ुशी देकर।"
यह सुन कर वह अमीर औरत रोने लगी। उसके पास वह सब था जो वह पैसे से खरीद सकती थी।
लेकिन उसने वह चीज खो दी थी जो पैसे से नहीं खरीदी जा सकती।
मित्रों! हमारा जीवन इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम कितने खुश हैं अपितु इस बात पर निर्भर करता है कि हमारी वजह से कितने लोग खुश हैं।
तो आईये आज शुभारम्भ करें इस संकल्प के साथ कि आज हम भी किसी न किसी की खुशी का कारण बनें।
मुस्कुराहट का महत्व
अगर आप एक अध्यापक हैं और जब आप मुस्कुराते हुए कक्षा में प्रवेश करेंगे तो देखिये सारे बच्चों के चेहरों पर मुस्कान छा जाएगी।
अगर आप डॉक्टर हैं और मुस्कराते हुए मरीज का इलाज करेंगे तो मरीज का आत्मविश्वास दोगुना हो जायेगा।
अगर आप एक ग्रहणी है तो मुस्कुराते हुए घर का हर काम किजिये फिर देखना पूरे परिवार में खुशियों का माहौल बन जायेगा।
अगर आप घर के मुखिया है तो मुस्कुराते हुए शाम को घर में घुसेंगे तो देखना पूरे परिवार में खुशियों का माहौल बन जायेगा।
अगर आप एक बिजनेसमैन हैं और आप खुश होकर कंपनी में घुसते हैं तो देखिये सारे कर्मचारियों के मन का प्रेशर कम हो जायेगा और माहौल खुशनुमा हो जायेगा।
अगर आप दुकानदार हैं और मुस्कुराकर अपने ग्राहक का सम्मान करेंगे तो ग्राहक खुश होकर आपकी दुकान से ही सामान लेगा।
कभी सड़क पर चलते हुए अनजान आदमी को देखकर मुस्कुराएं, देखिये उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ जाएगी।
मुस्कुराइए
क्यूंकि मुस्कराहट के पैसे नहीं लगते ये तो ख़ुशी और संपन्नता की पहचान है।
मुस्कुराइए
क्यूंकि आपकी मुस्कराहट कई चेहरों पर मुस्कान लाएगी।
मुस्कुराइए
क्यूंकि ये जीवन आपको दोबारा नहीं मिलेगा।
मुस्कुराइए
क्योंकि क्रोध में दिया गया आशीर्वाद भी बुरा लगता है और मुस्कुराकर कहे गए बुरे शब्द भी अच्छे लगते हैं।
मुस्कुराइए
क्योंकि दुनिया का हर आदमी खिले फूलों और खिले चेहरों को पसंद करता है।
मुस्कुराइए
क्योंकि आपकी हँसी किसी की ख़ुशी का कारण बन सकती है।
मुस्कुराइए
क्योंकि परिवार में रिश्ते तभी तक कायम रह पाते हैं जब तक हम एक दूसरे को देख कर मुस्कुराते रहते है
और सबसे बड़ी बात
मुस्कुराइए
क्योंकि यह मनुष्य होने की पहचान है। एक पशु कभी भी मुस्कुरा नही सकता।
इसलिए स्वयं भी मुस्कुराए और औरों के चहरे पर भी मुस्कुराहट लाएं.
यही जीवन है।
आनंद ही जीवन है।।
सोमवार, 15 अक्तूबर 2018
मुकाबला
एक दफा एक घोड़ा एक गहरी गढ्ढा मे जा गिरा और जोर जोर से आवाज निकालने लगा......
घोड़े का मालिक किसान था जो किनारे पर खड़ा उसे बचाने की तरकीबे सोच रहा था??????
जब उसे कोइ तरीका नही सुझा तो हार मान कर दिल को तसल्ली देने लगा के घोड़ा तो अब बूढा हो चुका है वह अब मेरे काम का भी नही रहा चलो उसे यूही छोड़ देते है ...............
और आखिरकार गढ्ढे को एक दीन बन्द करना ही पड़ेगा इसलिए इसे बचाकर भी कोइ खास फायदा नही
यह सोच कर उसने अपने पड़ोसी की मदद ली और गढ्ढा बन्द करना शुरू कर दीया
सबके हाथ मे एक एक बेलचा था जिस से मिट्टी , कुड़ा करकट डाल रहे थे .
घोड़ा यह देख कर बहुत परेशान हुआ
उसने और तेज आवाज निकालनी शुरू कर दी
कुछ ही लम्हे बाद घोड़ा बिल्कुल खामोश हो गया ..
जब किसान ने झाँका तो यह देख कर हैरान रह गया के जब जब घोड़े के उपर मिट्टी और कचरा फेंका जाता है तब तब वह झटक कर अपने जिस्म से निचे गिरा देता है और गिरी हुइ मिट्टी पर खड़ा हो जाता है
ये सिलसीला काफी देर तक चलता रहा
किसान अपने पड़ोसियों के साथ मिट्टी और कचरा फेंकता गया और घोड़ा उसे अपने बदन से हटा हटा कर उपर आता गया और देखते ही देखते उपर तक आ गया आखिरकार बाहर निकल आया
ये मंजर देख कर किसान और उसके पड़ोसी हैरत मे आ गये
जिन्दगी मे हमारे साथ भी एसा मसला हो सकता है के हमारे उपर कचरा उछाला जाए , हमे बदनाम किया जाए , हमारी दामन को दागदार किया जाए , हमे चन्द मसलो मे फंसा कर हमे निशाना बनाया जाए
लेकीन गन्दगी के उस गढ्ढे से बचने का तरीका ये नही के हम उन गन्दगी के तह मे दफन हो कर रह जाए
बल्की हमे भी उन बेकार चीजो का मुकाबला करते हुवे उपर की तरफ और आगे के सिम्त बढते रहना चाहिए
हमारे रास्ते मे भी कोइ कचरा डालता है तो डालने दो एक अक्लमंद इंसान अपना रास्ता कभी नही बदलता क्यो की जिन्दगी मे जो भी मुशकिलात आती है या तो हमारे लिए चेतावनी होती है या फिर सबक
सोमवार, 24 सितंबर 2018
परिवर्तन
परिवर्तन
एक राजा को राज भोगते हुए काफी समय हो गया था । बाल भी सफ़ेद होने लगे थे । एक दिन उसने अपने दरबार में एक उत्सव रखा और अपने गुरुदेव एवं मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया । उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया ।
राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्रायें अपने गुरु जी को भी दीं, ताकि यदि वे चाहें तो नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे उसे पुरस्कृत कर सकें । सारी रात नृत्य चलता रहा । ब्रह्म मुहूर्त की बेला आयी । नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है, उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक दोहा पढ़ा -
*"बहु बीती, थोड़ी रही, पल पल गयी बिताय।
*एक पलक के कारने, क्यों कलंक लग जाय ।
अब इस दोहे का अलग-अलग व्यक्तियों ने अपने अनुरुप अलग-अलग अर्थ निकाला । तबले वाला सतर्क होकर बजाने लगा ।
जब यह बात गुरु जी ने सुनी तो उन्होंने सारी मोहरें उस नर्तकी के सामने फैंक दीं ।
वही दोहा नर्तकी ने फिर पढ़ा तो राजा की लड़की ने अपना नवलखा हार नर्तकी को भेंट कर दिया ।
उसने फिर वही दोहा दोहराया तो राजा के पुत्र युवराज ने अपना मुकट उतारकर नर्तकी को समर्पित कर दिया ।
नर्तकी फिर वही दोहा दोहराने लगी तो राजा ने कहा - "बस कर, एक दोहे से तुमने वैश्या होकर भी सबको लूट लिया है ।"
जब यह बात राजा के गुरु ने सुनी तो गुरु के नेत्रों में आँसू आ गए और गुरु जी कहने लगे - "राजा ! इसको तू वैश्या मत कह, ये तो अब मेरी गुरु बन गयी है । इसने मेरी आँखें खोल दी हैं । यह कह रही है कि मैं सारी उम्र संयमपूर्वक भक्ति करता रहा और आखिरी समय में नर्तकी का मुज़रा देखकर अपनी साधना नष्ट करने यहाँ चला आया हूँ, भाई ! मैं तो चला ।" यह कहकर गुरु जी तो अपना कमण्डल उठाकर जंगल की ओर चल पड़े ।
राजा की लड़की ने कहा - "पिता जी ! मैं जवान हो गयी हूँ । आप आँखें बन्द किए बैठे हैं, मेरी शादी नहीं कर रहे थे और आज रात मैंने आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद कर लेना था । लेकिन इस नर्तकी ने मुझे सुमति दी है कि जल्दबाजी मत कर कभी तो तेरी शादी होगी ही । क्यों अपने पिता को कलंकित करने पर तुली है ?"
युवराज ने कहा - "पिता जी ! आप वृद्ध हो चले हैं, फिर भी मुझे राज नहीं दे रहे थे । मैंने आज रात ही आपके सिपाहियों से मिलकर आपका कत्ल करवा देना था । लेकिन इस नर्तकी ने समझाया कि पगले ! आज नहीं तो कल आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है, क्यों अपने पिता के खून का कलंक अपने सिर पर लेता है । धैर्य रख ।"
जब ये सब बातें राजा ने सुनी तो राजा को भी आत्म ज्ञान हो गया । राजा के मन में वैराग्य आ गया । राजा ने तुरन्त फैसला लिया - "क्यों न मैं अभी युवराज का राजतिलक कर दूँ ।" फिर क्या था, उसी समय राजा ने युवराज का राजतिलक किया और अपनी पुत्री को कहा - "पुत्री ! दरबार में एक से एक राजकुमार आये हुए हैं । तुम अपनी इच्छा से किसी भी राजकुमार के गले में वरमाला डालकर पति रुप में चुन सकती हो ।" राजकुमारी ने ऐसा ही किया और राजा सब त्याग कर जंगल में गुरु की शरण में चला गया ।
यह सब देखकर नर्तकी ने सोचा - "मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, लेकिन मैं क्यूँ नहीं सुधर पायी ?" उसी समय नर्तकी में भी वैराग्य आ गया । उसने उसी समय निर्णय लिया कि आज से मैं अपना बुरा धंधा बन्द करती हूँ और कहा कि "हे प्रभु ! मेरे पापों से मुझे क्षमा करना । बस, आज से मैं सिर्फ तेरा नाम सुमिरन करुँगी ।"
समझ आने की बात है, दुनिया बदलते देर नहीं लगती । एक दोहे की दो लाईनों से भी हृदय परिवर्तन हो सकता है । बस, केवल थोड़ा धैर्य रखकर चिन्तन करने की आवश्यकता है ।
प्रशंसा से पिघलना नहीं चाहिए, आलोचना से उबलना नहीं चाहिए । नि:स्वार्थ भाव से कर्म करते रहें । क्योंकि इस धरा का, इस धरा पर, सब धरा रह जायेगा.
सोमवार, 27 अगस्त 2018
परमात्मा की लाठी
परमात्मा की लाठी
एक साधु वर्षा के जल में प्रेम और मस्ती से भरा चला जा रहा था, कि उसने एक मिठाई की दुकान को देखा जहां एक कढ़ाई में गरम दूध उबाला जा रहा था तो मौसम के हिसाब से दूसरी कढ़ाई में गरमा गरम जलेबियां तैयार हो रही थीं। साधु कुछ क्षणों के लिए वहाँ रुक गया, शायद भूख का एहसास हो रहा था या मौसम का असर था। साधु हलवाई की भट्ठी को बड़े गौर से देखने लगा साधु कुछ खाना चाहता था लेकिन साधु की जेब ही नहीं थी तो पैसे भला कहां से होते, साधु कुछ पल भट्ठी से हाथ सेंकनें के बाद चला ही जाना चाहता था कि नेक दिल हलवाई से रहा न गया और एक प्याला गरम दूध और कुछ जलेबियां साधु को दे दीं। मलंग ने गरम जलेबियां गरम दूध के साथ खाई और फिर हाथों को ऊपर की ओर उठाकर हलवाई के लिए प्रार्थना की, फिर आगे चल दिया। साधु बाबा का पेट भर चुका था दुनिया के दु:खों से बेपरवाह, वो फिर एक नए जोश से बारिश के गंदले पानी के छींटे उड़ाता चला जा रहा था।
वह इस बात से बेखबर था कि एक युवा नव विवाहिता जोड़ा भी वर्षा के जल से बचता बचाता उसके पीछे चला आ रहा है। एक बार इस मस्त साधु ने बारिश के गंदले पानी में जोर से लात मारी। बारिश का पानी उड़ता हुआ सीधा पीछे आने वाली युवती के कपड़ों को भिगो गया उस औरत के कीमती कपड़े कीचड़ से लथपथ हो गये। उसके युवा पति से यह बात बर्दाश्त नहीं हुई।
इसलिए वह आस्तीन चढ़ाकर आगे बढ़ा और साधु के कपड़ो को पकड़ कर खींच कर कहने लगा -"अंधा है?तुमको नज़र नहीं आता तेरी हरकत की वजह से मेरी पत्नी के कपड़े गीले हो गऐ हैं और कीचड़ से भर गऐ हैं?"
साधु हक्का-बक्का सा खड़ा था जबकि इस युवा को साधु का चुप रहना नाखुशगवार गुज़र रहा था।
महिला ने आगे बढ़कर युवा के हाथों से साधु को छुड़ाना भी चाहा, लेकिन युवा की आंखों से निकलती नफरत की चिंगारी देख वह भी फिर पीछे खिसकने पर मजबूर हो गई।
राह चलते राहगीर भी उदासीनता से यह सब दृश्य देख रहे थे लेकिन युवा के गुस्से को देखकर किसी में इतनी हिम्मत नहीं हुई कि उसे रोक पाते और आख़िर जवानी के नशे मे चूर इस युवक ने, एक जोरदार थप्पड़ साधु के चेहरे पर जड़ दिया। बूढ़ा मलंग थप्पड़ की ताब ना झेलता हुआ लड़खड़ाता हुआ कीचड़ में जा गिरा।
युवक ने जब साधु को नीचे गिरता देखा तो मुस्कुराते हुए वहां से चल दिया।
बूढ़े साधु ने आकाश की ओर देखा और उसके होठों से निकला वाह मेरे भगवान कभी गरम दूध जलेबियां और कभी गरम थप्पड़!!!
लेकिन जो तू चाहे मुझे भी वही पसंद है।
यह कहता हुआ वह एक बार फिर अपने रास्ते पर चल दिया।
दूसरी ओर वह युवा जोड़ा अपनी मस्ती को समर्पित अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हो गया। थोड़ी ही दूर चलने के बाद वे एक मकान के सामने पहुंचकर रुका। वह अपने घर पहुंच गए थे।
वो युवा अपनी जेब से चाबी निकाल कर अपनी पत्नी से हंसी मजाक करते हुए ऊपर घर की सीढ़ियों तय कर रहा था। बारिश के कारण सीढ़ियों पर फिसलन हो गई थी। अचानक युवा का पैर फिसल गया और वह सीढ़ियों से नीचे गिरने लगा।
महिला ने बहुत जोर से शोर मचा कर लोगों का ध्यान अपने पति की ओर आकर्षित करने लगी जिसकी वजह से काफी लोग तुरंत सहायता के लिये युवा की ओर लपक, लेकिन देर हो चुकी थी।
युवक का सिर फट गया था और कुछ ही देर में ज्यादा खून बह जाने के कारण इस नौजवान युवक की मौत हो चुकी थी। कुछ लोगों ने दूर से आते साधु बाबा को देखा तो आपस में कानाफूसी होने लगी कि निश्चित रूप से इस साधु बाबा ने थप्पड़ खाकर युवा को श्राप दिया है अन्यथा ऐसे नौजवान युवक का केवल सीढ़ियों से गिर कर मर जाना बड़े अचम्भे की बात लगती है। कुछ मनचले युवकों ने यह बात सुनकर साधु बाबा को घेर लिया।
एक युवा कहने लगा कि
- "आप कैसे भगवान के भक्त हैं जो केवल एक थप्पड़ के कारण युवा को श्राप दे बैठे। भगवान के भक्त में रोष व गुस्सा हरगिज़ नहीं होता। आप तो जरा सी असुविधा पर भी धैर्य न कर सकें।" साधु बाबा कहने लगा -"भगवान की क़सम! मैंने इस युवा को श्राप नहीं दिया।" -"अगर आप ने श्राप नहीं दिया तो ऐसा नौजवान युवा सीढ़ियों से गिरकर कैसे मर गया?"
तब साधु बाबा ने दर्शकों से एक अनोखा सवाल किया कि
-"आप में से कोई इस सब घटना का चश्मदीद गवाह मौजूद है?"
एक युवक ने आगे बढ़कर कहा -"हाँ! मैं इस सब घटना का चश्मदीद गवाह हूँ।"
साधु ने अगला सवाल किया-"मेरे क़दमों से जो कीचड़ उछला था क्या उसने युवा के कपड़ों को दागी किया था?"
युवा बोला- "नहीं। लेकिन महिला के कपड़े जरूर खराब हुए थे।"
मलंग ने युवक की बाँहों को थामते हुए पूछा- "फिर युवक ने मुझे क्यों मारा?" युवा कहने लगा
- "क्योंकि वह युवा इस महिला का प्रेमी था और यह बर्दाश्त नहीं कर सका कि कोई उसके प्रेमी के कपड़ों को गंदा करे। इसलिए उस युवक ने आपको मारा।"
युवा की बात सुनकर साधु बाबा ने एक जोरदार ठहाका बुलंद किया और यह कहता हुआ वहाँ से विदा हो गया.....
तो! भगवान की क़सम! मैंने श्राप कभी किसी को नहीं दिया लेकिन कोई है जो मुझसे प्रेम रखता है।अगर उसका यार सहन नहीं कर सका तो मेरे यार को कैसे बर्दाश्त होगा कि कोई मुझे मारे? और वो मेरा यार इतना शक्तिशाली है कि दुनिया का बड़े से बड़ा राजा भी उसकी लाठी से डरता है।
सच है। उस परमात्मा की लाठी दीख़ती नहीं और आवाज भी नहीं करती लेकिन पड़ती है तो बहुत दर्द देती है। हमारे कर्म ही हमें उसकी लाठी से बचाते हैं, बस कर्म अच्छे होने चाहियें।
मंगलवार, 19 जून 2018
वृन्दावन के चींटें
वृन्दावन के चींटें
एक सच्ची घटना सुनिए एक संत की
वे एक बार वृन्दावन गए वहाँ कुछ दिन घूमे फिरे दर्शन किए
जब वापस लौटने का मन किया तो सोचा भगवान् को भोग लगा कर कुछ प्रसाद लेता चलूँ..
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संत ने रामदाने के कुछ लड्डू ख़रीदे मंदिर गए.. प्रसाद चढ़ाया और आश्रम में आकर सो गए.. सुबह ट्रेन पकड़नी थी
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अगले दिन ट्रेन से चले.. सुबह वृन्दावन से चली ट्रेन को मुगलसराय स्टेशन तक आने में शाम हो गयी..
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संत ने सोचा.. अभी पटना तक जाने में तीन चार घंटे और लगेंगे.. भूख लग रही है.. मुगलसराय में ट्रेन आधे घंटे रूकती है..
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चलो हाथ पैर धोकर संध्या वंदन करके कुछ पा लिया जाय..
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संत ने हाथ पैर धोया और लड्डू खाने के लिए डिब्बा खोला..
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उन्होंने देखा लड्डू में चींटे लगे हुए थे.. उन्होंने चींटों को हटाकर एक दो लड्डू खा लिए
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बाकी बचे लड्डू प्रसाद बाँट दूंगा ये सोच कर छोड़ दिए
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पर कहते हैं न संत ह्रदय नवनीत समाना
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बेचारे को लड्डुओं से अधिक उन चींटों की चिंता सताने लगी..
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सोचने लगे.. ये चींटें वृन्दावन से इस मिठाई के डिब्बे में आए हैं..
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बेचारे इतनी दूर तक ट्रेन में मुगलसराय तक आ गए
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कितने भाग्यशाली थे.. इनका जन्म वृन्दावन में हुआ था,
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अब इतनी दूर से पता नहीं कितने दिन या कितने जन्म लग जाएँगे इनको वापस पहुंचने में..!
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पता नहीं ब्रज की धूल इनको फिर कभी मिल भी पाएगी या नहीं..!!
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मैंने कितना बड़ा पाप कर दिया.. इनका वृन्दावन छुड़वा दिया
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नहीं मुझे वापस जाना होगा..
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और संत ने उन चींटों को वापस उसी मिठाई के डिब्बे में सावधानी से रखा.. और वृन्दावन की ट्रेन पकड़ ली।
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उसी मिठाई की दूकान के पास गए डिब्बा धरती पर रखा.. और हाथ जोड़ लिए
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मेरे भाग्य में नहीं कि तेरे ब्रज में रह सकूँ तो मुझे कोई अधिकार भी नहीं कि जिसके भाग्य में ब्रज की धूल लिखी है उसे दूर कर सकूँ
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दूकानदार ने देखा तो आया..
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महाराज चीटें लग गए तो कोई बात नहीं आप दूसरी मिठाई तौलवा लो..
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संत ने कहा.. भईया मिठाई में कोई कमी नहीं थी
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इन हाथों से पाप होते होते रह गया उसी का प्रायश्चित कर रहा हूँ..!
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दुकानदार ने जब सारी बात जानी तो उस संत के पैरों के पास बैठ गया.. भावुक हो गया
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इधर दुकानदार रो रहा था... उधर संत की आँखें गीली हो रही थीं!!
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बात भाव की है.. बात उस निर्मल मन की है.. बात ब्रज की है.. बात मेरे वृन्दावन की है..
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बात मेरे नटवर नागर और उनकी राधारानी की है.. बात मेरे कृष्ण की राजधानी की है।
बूझो तो बहुत कुछ है.. नहीं तो बस पागलपन है.. बस एक कहानी
घर से जब भी बाहर जाये
तो घर में विराजमान अपने प्रभु से जरूर
मिलकर जाएं
और
जब लौट कर आए तो उनसे जरूर मिले
क्योंकि
उनको भी आपके घर लौटने का इंतजार
रहता है
*"घर" में यह नियम बनाइए की जब भी आप घर से बाहर निकले तो घर में मंदिर के पास दो घड़ी खड़े रह कर कहें *
"प्रभु चलिए..
आपको साथ में रहना हैं"..!
*ऐसा बोल कर ही घर से निकले *
* क्यूँकिआप भले ही*
"लाखों की घड़ी" हाथ में क्यूँ ना पहने हो
पर
* "समय" तो "प्रभु के ही हाथ" में हैं न*