बुधवार, 23 मई 2018

करमो पर भरोसा

एक संत थे। एक दिन वे एक जाट के घर गए। जाट ने उनकी बड़ी सेवा की। सन्त ने उसे कहा कि रोजाना नाम -जप करने का कुछ नियम ले लो।
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जाट ने कहा बाबा, हमारे को वक्त नहीं मिलता। सन्त ने कहा कि अच्छा, रोजाना सतगुरु की तस्वीर के दर्शन कर आया करो।
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जाट ने कहा मैं तो खेत में रहता हूं, कैसे करूँ ?
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संत ने उसे कई साधन बताये, कि वह कुछ -न-कुछ नियम ले लें। पर वह यही कहता रहा कि मेरे से यह बनेगा नहीं, मैं खेत में काम करू या  जप करूँ। इतना समय मेरे पास कहाँ है ?
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बाल -बच्चों का पालन पोषण करना है। आपके जैसे free थोड़े ही हूँ। कि बैठकर भजन करूँ।
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संत ने कहा कि अच्छा तू क्या कर सकता है ? जाट बोला कि पड़ोस में एक कुम्हार रहता है। उसके साथ मेरी मित्रता है। उसके और मेरे खेत भी पास -पास है।
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और घर भी पास -पास है। रोजाना एक बार उसको देख लिया करूगाँ। सन्त ने कहा कि ठीक है। उसको देखे बिना भोजन मत करना।
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जाट ने स्वीकार कर लिया। जब उसकी पत्नी कहती कि भोजन कर लो। तो वह चट बाड़ पर चढ़कर कुम्हार को देख लेता। और भोजन कर लेता।
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इस नियम में वह पक्का रहा। एक दिन जाट को खेत में जल्दी जाना था। इसलिए भोजन जल्दी तैयार कर लिया।
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उसने बाड़ पर चढ़कर देखा तो कुम्हार दीखा नहीं। पूछने पर पता लगा कि वह तो मिट्टी खोदने बाहर गया है। जाट बोला कि कहां मर गया, कम से कम देख तो लेता।
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अब जाट उसको देखने के लिए तेजी से भागा। उधर कुम्हार को मिट्टी खोदते -खोदते एक हाँडी मिल गई। जिसमें तरह -तरह के रत्न, अशर्फियाँ भरी हुई थी।
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उसके मन में आया कि कोई देख लेगा तो मुश्किल हो जायेगी। अतः वह देखने के लिए ऊपर चढा तो सामने वह जाट आ गया।
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कुम्हार को देखते ही जाट वापस भागा। तो कुम्हार ने समझा कि उसने वह हाँडी देख ली। और अब वह आफत पैदा करेगा।
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कुम्हार ने उसे रूकने के लिए आवाज लगाई। जाट बोला कि बस देख लिया, देख लिया।
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कुम्हार बोला कि अच्छा, देख लिया तो आधा तेरा आधा मेरा, पर किसी से कहना मत। जाट वापस आया तो उसको धन मिल गया।
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उसके मन में विचार आया कि संत से अपना मनचाहा नियम लेने में इतनी बात है। अगर सदा उनकी आज्ञा का पालन करू तो कितना लाभ है।
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ऐसा विचार करके वह जाट और उसका मित्र कुम्हार दोनों ही भगवान् की साधना में लग गए।
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मेरे सतगुरु ,,,,,,,,,
मुझे मेरे  करमो पर भरोसा नहीं
पर तेरी रहमतो पर भरोसा है
मेरे करमों में कमी रह सकती है
लेकिन तेरी रहमतों में नही....
गुरू प्यारी साध संगत जी सभी सतसंगी भाई बहनों और दोस्तों को हाथ जोड़ कर प्यार भरी राधा सवामी जी...

मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

एक और एक ग्यारह

        
एक और एक ग्यारह
एक जंगल में एक वृक्ष की शाखा पर चिड़ा-चिड़ी का जोड़ा रहता था। चिड़ी ने शाखा पर बने घोंसले में अंडे दिए थे। एक दिन एक मतवाला हाथी उसी वृक्ष की छाया में विश्राम करने लगा। जाने से पहले पत्तियां खाने के लिए उसने अपनी सूंड से वह शाखा तोड़ दी जिस पर घोंसला था। अंडे जमीन पर गिरकर टूट गए। चिड़िया टूटे अंडे देखकर बहुत दुःखी हुई।
उनका विलाप देखकर उनका मित्र कठफोड़वा वहां आकर उन्हें समझाने लगा। चिड़िया ने कहा, "यदि तू हमारा सच्चा मित्र है तो हाथी को सबक सिखाने में हमारी सहायता कर।"
कठफोड़वे ने कहा, "यह इतना आसान नहीं है। एक चालाक मक्खी मेरी मित्र है। चलो उसके पास चलें।"
 
उन्होंने मक्खी के पास जाकर अपनी पूरी कहानी सुनाई और उससे मदद मांगी। मक्खी ने उन्हें मदद का आश्वासन दिया और अपने मित्र मेढक के पास ले गई। उसे भी पूरी कहानी सुनाई गई।
सारी बात सुनकर मेढक ने युक्ति बताई। उसने कहा - जैसा बताता हूं वैसा करो। पहले मक्खी हाथी के कान में वीणा सदृश मीठे स्वर में आलाप करे। हाथी मस्त होकर अपनी आंख बंद कर लेगा। उसी समय कठफोड़वा चोंच मारकर आंखें फोड़ देगा। अंध हाथी पानी की खोज में भागेगा। मैं दलदल में बैठकर आवाज करूंगा। मेरी आवाज सुनकर हाथी पानी-पीने आएगा और दलदल में फस जाएगा। यह उसकी हार होगी।
सभी इस युक्ति पर सहमत हो गए। मक्खी ने आलाप किया, कठफोड़वे ने आंख फोड़ी, मेढ़क ने पानी की ओर बुलाया और हाथी दलदल में फसकर और फंसता चला गया। चिड़िया का बदला पूरा हो गया था। उन्होंने अपने मित्रों को धन्यवाद दिया किया और नया घोंसला बनाने में जुट गई।
*शिक्षा (Panchatantra Story's Moral): साथ में बहुत शक्ति होती है। बड़े से बड़ा काम भी आसान हो जाता है।*

थकान का राज

थकान का राज
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एक किसान के घर एक दिन
उसका कोई परिचित मिलने
आया।
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उस समय वह घर पर नहीं
था। उसकी पत्नी ने कहा-
वह खेत पर गए हैं।
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मैं बच्चे को बुलाने के लिए
भेजती हूं। तब तक आप
इंतजार करें।'
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कुछ ही देर में किसान खेत से
अपने घर आ पहुंचा। उसके
साथ साथ उसका पालतू कुत्ता
भी आया।
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कुत्ता जोरों से हांफ रहा था।
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उसकी यह हालत देख, मिलने
आए व्यक्ति ने किसान से पूछा
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क्या तुम्हारा खेत बहुत दूर है ?
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किसान ने कहा- नहीं, पास ही
है। लेकिन आप ऐसा क्यों पूछ
रहे हैं ?
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उस व्यक्ति ने कहा- मुझे यह
देखकर आश्चर्य हो रहा है कि
तुम और तुम्हारा कुत्ता दोनों
साथ-साथ आए,
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लेकिन तुम्हारे चेहरे पर रंच
मात्र थकान नहीं जबकि कुत्ता
बुरी तरह से हांफ रहा है।
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किसान ने कहा- मैं और कुत्ता
एक ही रास्ते से घर आए हैं।
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मेरा खेत भी कोई खास दूर
नहीं है। मैं थका नहीं हूं। मेरा
कुत्ता थक गया है।
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इसका कारण यह है कि मैं
सीधे रास्ते से चलकर घर
आया हूं, मगर कुत्ता अपनी
आदत से मजबूर है।
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वह आसपास दूसरे कुत्ते
देखकर उनको भगाने के
लिए उसके पीछे दौड़ता था
और भौंकता हुआ वापस
मेरे पास आ जाता था।
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फिर जैसे ही उसे और कोई
कुत्ता नजर आता, वह उसके
पीछे दौड़ने लगता।
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अपनी आदत के अनुसार
उसका यह क्रम रास्ते भर
जारी रहा। इसलिए वह थक
गया है।
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देखा जाए तो यही स्थिति
आज के इंसान की भी है।
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जीवन के लक्ष्य तक पहुंचना
यूं तो कठिन नहीं है,
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लेकिन लोभ, मोह अहंकार
और ईर्ष्या जीव को उसके
जीवन की सीधी और सरल
राह से भटका रही है।
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अपनी क्षमता के अनुसार
जिसके  पास जितना है, उससे
वह संतुष्ट नहीं।
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आज लखपति, कल करोड़
पति, फिर अरबपति बनने
की चाह में उलझकर इंसान
दौड़ रहा है।
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अनेक लोग ऐसे हैं जिनके
पास सब कुछ है। भरा- पूरा
परिवार, कोठी, बंगला, एक
से एक बढ़िया कारें, क्या
कुछ नहीं है।
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फिर भी उनमें बहुत से दुखी
रहते हैं।
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बड़ा आदमी बनना, धनवान
बनना बुरी बात नहीं, बनना
चाहिए। यह हसरत सबकी
रहती है।
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उसके लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा
होगी तो थकान नहीं होगी।
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लेकिन दूसरों के सामने खुद
को बड़ा दिखाने की चाह के
चलते आदमी राह से भटक
रहा है और यह भटकाव ही
इंसान को थका रहा है।

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2018

चार मित्र


किसी गाँव में चार मित्र रहते थे।
चारों में इतनी घनी मित्रता थी कि हर समय साथ रहते उठते बैठते, योजनाएँ बनाते।
एक ब्राह्मण
एक ठाकुर
एक बनिया और
एक नाई था
पर कभी भी चारों में जाति का भाव नहीं था गज़ब की एकता थी।

इसी एकता के चलते वे गाँव के किसानों के खेत से गन्ने
चने
आदि चीजे उखाड़ कर खाते थे।

एक दिन इन चारों ने किसी किसान के खेत से चने के झाड़ उखाड़े और खेत में ही बैठकर हरी हरी फलियों का स्वाद लेने लगे।

खेत का मालिक किसान आया
चारों की दावत देखी उसे बहुत क्रोध आया
उसका मन किया कि लट्ठ उठाकर चारों को पीटे
पर चार के आगे एक?
वो स्वयं पिट जाता
सो उसने एक युक्ति सोची।

चारों के पास गया,
ब्राह्मण के पाँव छुए,
ठाकुर साहब की जयकार की
बनिया महाजन से राम जुहार और फिर
नाई से बोला--
देख भाई
ब्राह्मण देवता धरती के देव हैं,
ठाकुर साहब तो सबके मालिक हैं अन्नदाता हैं,
महाजन सबको उधारी दिया करते हैं
ये तीनों तो श्रेष्ठ हैं
तो भाई इन तीनों ने चने उखाड़े सो उखाड़े पर तू? तू तो ठहरा नाई तूने चने क्यों उखाड़े?
इतना कहकर उसने नाई के दो तीन लट्ठ रसीद किये।
बाकी तीनों ने कोई विरोध नहीं किया क्योंकि उनकी तो प्रशंसा हो चुकी थी।

अब किसान बनिए के पास आया और बोला-
तू साहूकार होगा तो अपने घर का
पण्डित जी और ठाकुर साहब तो नहीं है ना! तूने चने क्यों उखाड़े?
बनिये के भी दो तीन तगड़े तगड़े लट्ठ जमाए।

पण्डित और ठाकुर ने कुछ नहीं कहा।

अब किसान ने ठाकुर से कहा--
ठाकुर साहब
माना आप अन्नदाता हो पर किसी का अन्न छीनना तो ग़लत बात है
अरे पण्डित महाराज की बात दीगर है
उनके हिस्से जो भी चला जाये दान पुन्य हो जाता है
पर आपने तो बटमारी की! ठाकुर साहब को भी लट्ठ का प्रसाद दिया,

पण्डित जी बोले नहीं,

नाई और बनिया अभी तक अपनी चोट सहला रहे थे।
जब ये तीनों पिट चुके
तब किसान पण्डितजी के पास गया और बोला--
माना आप भूदेव हैं
पर इन तीनों के गुरु घण्टाल आप ही हैं
आपको छोड़ दूँ
ये तो अन्याय होगा
तो दो लट्ठ आपके भी पड़ने चाहिए।
मार खा चुके बाकी तीनों बोले
हाँ हाँ, पण्डित जी को भी दण्ड मिलना चाहिए।
अब क्या पण्डित जी भी पीटे गए।

किसान ने इस तरह चारों को अलग अलग करके पीटा
किसी ने किसी के पक्ष में कुछ नहीं कहा,
उसके बाद से चारों कभी भी एक साथ नहीं देखे गये।

मित्रों पिछली दो तीन सदियों से हिंदुओं के साथ यही होता आया है,
कहानी सच्ची लगी हो तो समझने का प्रयास करो और
अगर कहानी केवल कहानी लगी हो
तो आने वाले समय के लट्ठ तैयार हैं।

रविवार, 25 मार्च 2018

जीवन के अंतिम क्षण

पूर्व रक्षा मंत्री और गोवा के मुख्यमंत्री
मनोहर परिकर जी कैंसर से जूझ रहे हैं, अस्पताल के विस्तर से उनका यह संदेश बहुत मार्मिक है, आप भी पढ़ें...

"मैंने राजनैतिक क्षेत्र में सफलता के  अनेक शिखरों को छुआ :::
दूसरों के नजरिए में मेरा जीवन और यश एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं :::;::;
फिर भी मेरे काम के अतिरिक्त अगर किसी आनंद की बात हो तो शायद ही मुझे कभी प्राप्त हुआ :::
आखिर क्यो ?
तो जिस political status  जिसमें मैं आदतन  रम रहा था ::: आदी हो गया था  वही मेरे जीवन की हकीकत बन कर रह गई::;
इस समय जब मैं बीमारी के कारण बिस्तर पर सिमटा हुआ हूं, मेरा अतीत स्मृतिपटल पर तैर रहा है ::: जिस ख्याति प्रसिद्धि और धन संपत्ति को मैंने सर्वस्व माना और उसी के व्यर्थ अहंकार में पलता रहा::: आज जब खुद को मौत के दरवाजे पर खड़ा  देख रहा हूँ तो वो सब धूमिल होता दिखाई दे रहा है साथ ही उसकी निर्थकता बड़ी शिद्दत से महसूस कर रहा हूं::;

आज जब मृत्यु पल पल मेरे निकट आ रही है, मेरे आस पास चारों तरफ हरे प्रकाश से टिमटिमाते जीवन ज्योति बढ़ाने वाले अनेक मेडिकल उपकरण  देख रहा हूँ । उन यंत्रों से निकलती ध्वनियां भी सुन  रहा हूं : इसके साथ साथ अपने आगोश में लपेटने के लिए निकट आ रही मृत्यु की पदचाप भी सुनाई दे रही है::::

अब ध्यान में आ रहा है कि भविष्य के लिए आवश्यक पूंजी जमा होने के पश्चात दौलत संपत्ति से जो अधिक महत्वपूर्ण है वो करना चाहिए। वो शायद रिश्ते नाते संभालना सहेजना या समाजसेवा करना हो सकता है।

निरंतर केवल राजनीति के पीछे भागते रहने से व्यक्ति अंदर से सिर्फ और सिर्फ पिसता :: खोखला बनता जाता है ::: बिल्कुल मेरी तरह।

उम्र भर मैंने जो संपत्ति और राजनैतिक मान सम्मान कमाया वो मैं कदापि साथ नहीं ले जा सकूंगा ::;

दुनिया का सबसे महंगा बिछौना कौन सा है, पता है ?  ::: "बीमारी का बिछौना" :::

गाड़ी चलाने के लिए ड्राइवर रख सकते हैं :: पैसे कमा कर देने वाले मैनेजर मिनिस्टर रखे जा सकते हैं परंतु :::: अपनी बीमारी को सहने के लिए हम दूसरे किसी अन्य को कभी नियुक्त नहीं कर सकते हैं:::::

खोई हुई वस्तु मिल सकती है । मगर एक ही चीज ऐसी है जो एक बार हाथ से छूटने के बाद किसी भी उपाय से वापस नहीं मिल सकती है। वो है :::: अपना "आयुष्य" :: "काल" ::: "समय"

ऑपरेशन टेबल पर लेटे व्यक्ति को एक बात जरूर ध्यान में आती है कि उससे  केवल एक ही पुस्तक पढ़नी शेष रह गई थी और  वो पुस्तक है "निरोगी जीवन जीने की पुस्तक" ;::::

फिलहाल आप जीवन की किसी भी स्थिति-  उमर के दौर से गुजर रहे हों तो भी एक न एक दिन काल एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है कि सामने नाटक का अंतिम भाग स्पष्ट दिखने लगता है :::

स्वयं की उपेक्षा मत कीजिए::: स्वयं ही स्वयं का आदर कीजिए ::::दूसरों के साथ भी प्रेमपूर्ण बर्ताव कीजिए :::

लोग मनुष्यों को इस्तेमाल ( use ) करना सीखते हैं और पैसा संभालना सीखते हैं। वास्तव में पैसा इस्तेमाल करना सीखना चाहिए व मनुष्यों को संभालना सीखना चाहिए ::: अपने जीवन की शुरुआत हमारे रोने से होती है और जीवन का समापन दूसरो के रोने से होता है:::: इन दोनों के बीच में जीवन का जो भाग है वह भरपूर हंस कर बिताएं और उसके लिए सदैव आनंदित रहिए व औरों को भी आनंदित रखिए :::"

(स्वादुपिंड के) कैंसर से पीड़ित अस्पताल में जीवन के लिए जूझ रहे मनोहर पर्रिकर का आत्मचिंतन ::::

मूल मराठी :: अनुवाद पुखराज सावंतवाडी
द्वारा कुमार निखिल

शुक्रवार, 23 मार्च 2018

धैर्य

इंसान के जीवन मे धैर्य का विशेष महत्व होता है। जिस इंसान में धैर्य की कमी होती है वह अपने जीवन मे अच्छे और बड़े मौके हाथ से गवां बैठते है। उनके जीवन मे केवल पछतावा रह जाता है। बड़ी सफलता केवल उसी को मिलेगी जो धैर्यशील होगा।

एक राज्य में एक धनवान राजा शासन करता था। वह प्रातः सुबह मंदिर दर्शन करने जाता था। मंदिर के बाहर दो भिखारी बैठे रहते थे। उसमे से एक भिखारी कहता- हे भगवान। तूने राजा को बहुत कुछ दिया। मुझे भी दे दे जबकि दूसरा भिखारी कहता- हे राजन। तुझे भगवान ने बहुत कुछ दिया। मुझे भी कुछ दे दे।

एक भिखारी भगवान से मांग रहा है और एक भिखारी राजा से मांग रहा है। दोनों भिखारी आपस मे बात कर रहे थे। एक भिखारी ने दूसरे से कहा- चुप कर बेवकूफ। तूने आज तक भगवान से मांगा। तुझे क्या मिला? मैं राजा से मांगता हूँ। देखना मुझे कितना मिल जाएगा। यह बात राजा ने सुन ली।

दूसरे दिन राजा ने अपने मंत्री को खीर के एक बड़े कटोरे में सोने के 10 सिक्के डाल कर भिखारी के पास भेज दिया। भिखारी बड़ा प्रसन्न हुआ। वह पहले भिखारी को चिढ़ाते हुए बोला- देख, तेरे भगवान ने तुझे क्या दिया है। मुझे तो राजन ने मेवे से भरपूर खीर भेजी है। इतना कहकर वह स्वादिष्ट खीर खाने लगा।

खीर मात्रा में बहुत ज्यादा थी। जब उसका पेट भर गया तो उसने पहले भिखारी को वह खीर खाने के लिए दे दी। दूसरे दिन राजा मंदिर में आये और देखा कि पहले वाला भिखारी गायब था। राजा ने पूछा- आपका साथी आज कहाँ है?

दूसरे भिखारी ने जवाब दिया- राजन। वह बेवकूफ पता नही कहाँ गया है? केवल भगवान से मांगता रहता है। मैने आपसे मांगा तो मुझे भरपेट स्वादिष्ट खीर मिली। राजा ने सिर पकड़ लिया और कहा- बेवकूफ वो नही, असली बेवकूफ तो तू है। वह ईश्वर से मांगता है और तू मुझसे मांगता है।

*शिक्षा- धैर्य रखने वाला इंसान सदा सफल होता है। बिना धैर्य के इंसान का मन सदा अशांत ही रहेगा।

रविवार, 4 मार्च 2018

भलाई का कार्य

एक आदमी ने एक पेंटर को बुलाया और अपनी नाव दिखाकर कहा कि इसको पेंट कर दो। वो पेंटर पेंट ले कर उस नाव को पेंट कर दिया, लाल रंग से जैसा कि, नाव का मालिक चाहता था। फिर पेंटर ने अपने पैसे लिए और चला गया।
अगले दिन, पेंटर के घर पर वो नाव का मालिक पहुँच गया, और उसने एक बहुत बड़ी धनराशी का चेक दिया उस पेंटर को। पेंटर भौंचक्का हो गया, और पूछा कि ये किस बात के इतने पैसे हैं ? मेरे पैसे तो आपने कल ही दे दिया था।
मालिक ने कहा कि "ये पेंट का पैसा नहीं है, बल्कि ये उस नाव में जो "छेद" था, उसको रिपेयर करने का पैसा है।"
पेंटर ने कहा,. "अरे साहब, वो तो एक छोटा सा छेद था, सो मैंने बंद कर दिया था। उस छोटे से छेद के लिए इतना पैसा मुझे, ठीक नहीं लग रहा है।"
मालिक ने कहा,.. "दोस्त, तुम समझे नहीं मेरी बात, अच्छा विस्तार से समझाता हूँ। जब मैंने तुम्हें पेंट के लिए कहा, तो जल्दबाजी में तुम्हें ये बताना भूल गया कि नाव में एक छेद है, उसको रिपेयर कर देना। और जब पेंट सूख गया, तो मेरे दोनों बच्चे उस नाव को समुद्र में लेकर मछली मारने की ट्रिप पर निकल गए।
मैं उस वक़्त घर पर नहीं था, लेकिन जब लौट कर आया और अपनी पत्नी से ये सुना कि बच्चे नाव को लेकर, नौकायन पर निकल गए हैं, .. तो मैं बदहवास हो गया। क्योंकि मुझे याद आया कि नाव में तो छेद है। मैं गिरता पड़ता भागा उस तरफ, जिधर मेरे प्यारे बच्चे गए थे। लेकिन थोड़ी दूर पर मुझे मेरे बच्चे दिख गए, जो सकुशल वापस आ रहे थे। अब मेरी ख़ुशी और प्रसन्नता का आलम तुम समझ सकते हो। फिर मैंने छेद चेक किया, तो पता चला कि मुझे बिना बताये तुम उसको रिपेयर कर चुके हो। तो  ..मेरे दोस्त,.. उस महान कार्य के लिए, तो ये पैसे भी बहुत थोड़े हैं। मेरी औकात नहीं कि उस कार्य के बदले तुम्हे ठीक ठाक पैसे दे पाऊं।"
========
*इस कहानी से हमें यही समझना चाहिए कि भलाई का कार्य हमेशा "कर देना" चाहिए, भले ही वो बहुत छोटा सा कार्य हो। क्योंकि वो छोटा सा कार्य किसी के लिए "अमूल्य" हो सकता है।*

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

परनिंदा के दुष्परिणाम

परनिंदा के दुष्परिणाम

दूसरे की निंदा करिए और अपना घड़ा भरिए
हम जाने-अनजाने अपने आसपास के व्यक्तियों की निंदा करते रहते हैं: जबकि हमें उनकी वास्तविक परिस्थितियों का तनिक भी ज्ञान नही होता। निंदा रस का स्वाद बहुत ही रुचिकर होता है सो लगभग हर व्यक्ति इस स्वाद लेने को आतुर रहता है।
वास्तव में निंदा एक ऐसा  मानवीय गुण है जो सभी व्यक्तियों में कुछ न कुछ मात्रा में अवश्य पाया जाता है। यदि हमें ज्ञान हो जाये कि पर निंदा का परिणाम कितना भयानक होता है तो हम इस पाप से आसानी से बच सकते हैं।
राजा पृथु एक दिन सुबह सुबह घोड़ों के तबेलें में जा पहुंचे। तभी वहीं एक साधु भिक्षा मांगने आ पहुंचा। सुबह सुबह साधु को भिक्षा मांगते देख पृथु क्रोध से भर उठे। उन्होंने साधु की निंदा करते हुए बिना विचारे तबेलें से घोडें की लीद उठाई और उसके पात्र में डाल दी। साधु भी शांत स्वभाव का था सो भिक्षा ले वहाँ से चला गया और वह लीद कुटिया के बाहर एक कोने में डाल दी। कुछ समय उपरान्त राजा पृथु शिकार के लिए गए। पृथु ने जब जंगल में देखा एक कुटिया के बाहर घोड़े की लीद का बड़ा सा ढेर लगा हुआ है उन्होंने देखा कि यहाँ तो न कोई तबेला है और न ही दूर-दूर तक कोई घोडें दिखाई दे रहे हैं। वह आश्चर्यचकित हो कुटिया में गए और साधु से बोले "महाराज! आप हमें एक बात बताइए यहाँ कोई घोड़ा भी नहीं न ही तबेला है तो यह इतनी सारी घोड़े की लीद कहा से आई !" साधु ने कहा " राजन्! यह लीद मुझे एक राजा ने भिक्षा में दी है अब समय आने पर यह लीद उसी को खाना पड़ेगी। यह सुन राजा पृथु को पूरी घटना याद आ गई। वे साधु के पैरों में गिर क्षमा मांगने लगे। उन्होंने साधु से प्रश्न किया हमने तो थोड़ी-सी लीद दी थी पर यह तो बहुत अधिक हो गई? साधु ने कहा "हम किसी को जो भी देते है वह दिन-प्रतिदिन प्रफुल्लित होता जाता है और समय आने पर हमारे पास लौट कर आ जाता है, यह उसी का परिणाम है।" यह सुनकर पृथु की आँखों में अश्रु भर आये। वे साधु से विनती कर बोले "महाराज! मुझे क्षमा कर दीजिए मैं आइन्दा मैं ऐसी गलती कभी नहीं करूँगा।" कृपया कोई ऐसा उपाय बता दीजिए! जिससे मैं अपने दुष्ट कर्मों का प्रायश्चित कर सकूँ!" राजा की ऐसी दुखमयी हालात देख कर साधु बोला- "राजन्! एक उपाय है आपको कोई ऐसा कार्य करना है जो देखने मे तो गलत हो पर वास्तव में गलत न हो। जब लोग आपको गलत देखेंगे तो आपकी निंदा करेंगे जितने ज्यादा लोग आपकी निंदा करेंगे आपका पाप उतना हल्का होता जाएगा। आपका अपराध निंदा करने वालों के हिस्से में आ जायेगा।
यह सुन राजा पृथु ने महल में आ काफी सोच-विचार किया और अगले दिन सुबह  से शराब की बोतल लेकर चौराहे पर बैठ गए। सुबह सुबह राजा को इस हाल में देखकर सब लोग आपस में राजा की निंदा करने लगे कि कैसा राजा है कितना निंदनीय कृत्य कर रहा है क्या यह शोभनीय है ??  आदि आदि!! निंदा की परवाह किये बिना राजा पूरे दिन शराबियों की तरह अभिनय करते रहे।
इस पूरे कृत्य के पश्चात जब राजा पृथु पुनः साधु के पास पहुंचे तो लीद का ढेर के स्थान पर एक मुट्ठी लीद देख आश्चर्य से बोले "महाराज! यह कैसे हुआ? इतना बड़ा ढेर कहाँ गायब हो गया!!"
साधू ने कहा "यह आप की अनुचित निंदा के कारण हुआ है राजन्। जिन जिन लोगों ने आपकी अनुचित निंदा की है, आप का पाप उन सबमे बराबर बराबर बट गया है।
  जब हम किसी की बेवजह निंदा करते है तो हमें उसके पाप का बोझ भी उठाना पड़ता है तथा हमे अपना किये गए कर्मो का फल तो भुगतना ही पड़ता है, अब चाहे हँस के भुगतें  या रो कर। हम जैसा देंगें वैसा ही लौट कर वापिस आएगा!

सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

मन का राजा....

मन का राजा....
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राजा भोज वन में शिकार करने गए लेकिन घूमते हुए अपने सैनिकों से बिछुड़ गए और अकेले पड़ गए।
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वह एक वृक्ष के नीचे बैठकर सुस्ताने लगे।  तभी उनके सामने से एक लकड़हारा सिर पर बोझा उठाए गुजरा।
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वह अपनी धुन में मस्त था। उसने राजा भोज को देखा पर प्रणाम करना तो दूर, तुरंत मुंह फेरकर जाने लगा।
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भोज को उसके व्यवहार पर आश्चर्य हुआ। उन्होंने लकड़हारे को रोककर पूछा,
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तुम कौन हो ?
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लकड़हारे ने कहा, मैं अपने मन का राजा हूं।
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भोज ने पूछा, अगर तुम राजा हो तो तुम्हारी आमदनी भी बहुत होगी। कितना कमाते हो ?
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लकड़हारा बोला, मैं छह स्वर्ण मुद्राएं रोज कमाता हूं और आनंद से रहता हूं।
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भोज ने पूछा, तुम इन मुद्राओं को खर्च कैसे करते हो ?
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लकड़हारे ने उत्तर दिया, मैं प्रतिदिन एक मुद्रा अपने ऋणदाता को देता हूं। वह हैं मेरे माता पिता। उन्होंने मुझे पाल पोस कर बड़ा किया, मेरे लिए हर कष्ट सहा।
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दूसरी मुद्रा मैं अपने ग्राहक असामी को देता हूं, वह हैं मेरे बालक। मैं उन्हें यह ऋण इसलिए देता हूं ताकि मेरे बूढ़े हो जाने पर वह मुझे इसे लौटाएं।
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तीसरी मुद्रा मैं अपने मंत्री को देता हूं। भला पत्नी से अच्छा मंत्री कौन हो सकता है, जो राजा को उचित सलाह देता है, सुख दुख का साथी होता है।
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चौथी मुद्रा मैं खजाने में देता हूं।
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पांचवीं मुद्रा का उपयोग स्वयं के खाने पीने पर खर्च करता हूं क्योंकि मैं अथक परिश्रम करता हूं।
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छठी मुद्रा मैं अतिथि सत्कार के लिए सुरक्षित रखता हूं क्योंकि अतिथि कभी भी किसी भी समय आ सकता है। उसका सत्कार करना हमारा परम धर्म है।
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राजा भोज सोचने लगे, मेरे पास तो लाखों मुद्राएं है पर जीवन के आनंद से वंचित हूं।
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लकड़हारा जाने लगा तो बोला, राजन् मैं पहचान गया था कि तुम राजा भोज हो पर मुझे तुमसे क्या सरोकार। भोज दंग रह गए।

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

धैर्य की पराकाष्ठा

धैर्य की पराकाष्ठा

बाल गंगाधर तिलक भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी थे पर साथ ही साथ वे अद्वितीय कीर्तन कार, तत्वचिंतक, गणितज्ञ, धर्म प्रवर्तक और दार्शनिक भी थे। हिंदुस्तान में राजकीय असंतोष मचाने वाले इस करारी और निग्रही महापुरुष को अंग्रेज़ सरकार ने मंडाले के कारागृह में छह साल के लिए भेज दिया। यहीं से उनके तत्व चिंतन का प्रारंभ हुआ।

दुख और यातना सहते-सहते शरीर को व्याधियों ने घेर लिया था। ऐसे में ही उन्हें अपने पत्नी के मृत्यु की ख़बर मिली। उन्होंने अपने घर एक खत लिखा "आपका तार मिला। मन को धक्का तो ज़रूर लगा है। हमेशा आए हुए संकटों का सामना मैंने धैर्य के साथ किया है। लेकिन इस ख़बर से मैं थोड़ा उदास ज़रूर हो गया हूँ। हम हिंदू लोग मानते हैं कि पति से पहले पत्नी को मृत्यु आती है तो वह भाग्यवान है, उसके साथ भी ऐसे ही हुआ है।

उसकी मृत्यु के समय मैं वहाँ उसके क़रीब नहीं था इसका मुझे बहुत अफ़सोस है। होनी को कौन टाल सकता है? परंतु मैं अपने दुख भरे विचार सुनाकर आप सबको और दुखी करना नहीं चाहता। मेरी ग़ैरमौजूदगी में बच्चों को ज़्यादा दुख होना स्वाभाविक है। उन्हें मेरा संदेशा पहुँचा दीजिए कि जो होना था वह हो चुका है। इस दुख से अपनी और किसी तरह की हानि न होने दें l

पढ़ने में ध्यान दें, विद्या ग्रहण करने में कोई कसर ना छोड़ें। मेरे माता पिता के देहांत के समय मैं उनसे भी कम उम्र का था। संकटों की वजह से ही स्वावलंबन सीखने में सहायता मिलती है। दुख करने में समय का दुरुपयोग होता है। जो हुआ है उस परिस्थिति का धीरज का सामना करें।"अत्यंत कष्ट के समय पर भी पत्नी के निधन का समाचार एक कठिन परीक्षा के समान था।

किंतु बाल गंगाधर तिलक ने अपना धीरज न खोते हुए परिवार वालों को धैर्य बँधाया व इस परीक्षा को सफलता से पार किया। जीवन भर उन्होंने कर्मयोग का चिंतन किया था वो ऐसे ही तो नहीं! 'गीता' जैसे तात्विक और अलौकिक ग्रंथ पर आधारित 'गीता रहस्य' उन्होंने इसी मंडाले के कारागृह में लिखा था |

🏆➡ *शिक्षा*  ~
*उपर्युक्त कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती हैं कि जब हम मुसीबतों या परेशानियों में हो तब हमें धैर्य व साहस से काम लेना चाहियें l संकट के समय धैर्य बनाये रखना चाहियें l यही इस कहानी का सार हैं ll*