शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

 सौ  ऊंट


अजय  राजस्थान  के  किसी  शहर  में  रहता  था . वह  ग्रेजुएट  था  और  एक  प्राइवेट  कंपनी  में  जॉब  करता  था . पर वो  अपनी  ज़िन्दगी  से  खुश  नहीं  था , हर  समय  वो  किसी  न  किसी  समस्या  से  परेशान  रहता  था  और  उसी  के बारे  में  सोचता  रहता  था .

एक बार  अजय  के  शहर  से  कुछ  दूरी  पर  एक  फ़कीर  बाबा  का  काफिला  रुका  हुआ  था . शहर  में  चारों  और  उन्ही की चर्चा  थी , बहुत  से  लोग  अपनी  समस्याएं  लेकर  उनके  पास  पहुँचने  लगे , अजय  को  भी  इस  बारे  में  पता चला, और  उसने  भी  फ़कीर  बाबा  के  दर्शन  करने  का  निश्चय  किया .

छुट्टी के दिन  सुबह -सुबह ही  अजय  उनके  काफिले  तक  पहुंचा . वहां  सैकड़ों  लोगों  की  भीड़  जुटी  हुई  थी , बहुत इंतज़ार  के  बाद अजय  का  नंबर  आया .

वह  बाबा  से  बोला  ,” बाबा , मैं  अपने  जीवन  से  बहुत  दुखी  हूँ , हर  समय  समस्याएं  मुझे  घेरी  रहती  हैं , कभी ऑफिस  की  टेंशन  रहती  है , तो  कभी  घर  पर  अनबन  हो  जाती  है , और  कभी  अपने  सेहत  को  लेकर  परेशान रहता  हूँ …. बाबा  कोई  ऐसा  उपाय  बताइये  कि  मेरे  जीवन  से  सभी  समस्याएं  ख़त्म  हो  जाएं  और  मैं  चैन  से  जी सकूँ ?

बाबा  मुस्कुराये  और  बोले , “ पुत्र  , आज  बहुत देर  हो  गयी  है  मैं  तुम्हारे  प्रश्न  का  उत्तर  कल  सुबह दूंगा …लेकिन क्या  तुम  मेरा  एक  छोटा  सा  काम  करोगे …?”

“ज़रूर  करूँगा ..”, अजय  उत्साह  के  साथ  बोला .

“देखो  बेटा , हमारे  काफिले  में  सौ ऊंट  हैं  , और  इनकी  देखभाल  करने  वाला  आज  बीमार  पड़  गया  है , मैं  चाहता हूँ  कि  आज  रात  तुम  इनका  खयाल  रखो …और  जब  सौ  के  सौ  ऊंट  बैठ  जाएं  तो  तुम   भी  सो  जाना …”, ऐसा कहते  हुए  बाबा  अपने  तम्बू  में  चले  गए ..

अगली  सुबह  बाबा  अजय  से  मिले  और  पुछा , “ कहो  बेटा , नींद  अच्छी  आई .”

“कहाँ  बाबा , मैं  तो  एक  पल  भी  नहीं  सो  पाया , मैंने  बहुत  कोशिश  की  पर  मैं  सभी  ऊंटों  को  नहीं  बैठा  पाया , कोई  न  कोई  ऊंट  खड़ा  हो  ही  जाता …!!!”, अजय  दुखी  होते  हुए  बोला .”

“ मैं  जानता  था  यही  होगा …आज  तक  कभी  ऐसा  नहीं  हुआ  है  कि  ये  सारे  ऊंट  एक  साथ  बैठ  जाएं …!!!”, “ बाबा  बोले .

अजय  नाराज़गी  के  स्वर  में  बोला , “ तो  फिर  आपने  मुझे  ऐसा  करने  को  क्यों  कहा ”

बाबा बोले  , “ बेटा , कल  रात  तुमने  क्या  अनुभव  किया , यही  ना  कि  चाहे  कितनी  भी  कोशिश  कर  लो  सारे  ऊंट एक  साथ  नहीं  बैठ  सकते … तुम  एक  को  बैठाओगे  तो  कहीं  और  कोई  दूसरा  खड़ा  हो  जाएगा  इसी  तरह  तुम एक  समस्या  का  समाधान  करोगे  तो  किसी  कारणवश  दूसरी खड़ी हो  जाएगी .. पुत्र  जब  तक  जीवन  है  ये समस्याएं  तो  बनी  ही  रहती  हैं … कभी  कम  तो  कभी  ज्यादा ….”

“तो  हमें  क्या  करना चाहिए  ?” , अजय  ने  जिज्ञासावश  पुछा .

“इन  समस्याओं  के  बावजूद  जीवन  का  आनंद  लेना  सीखो … कल  रात  क्या  हुआ   , कई  ऊंट   रात होते -होते  खुद ही  बैठ  गए  , कई  तुमने  अपने  प्रयास  से  बैठा  दिए , पर  बहुत  से  ऊंट तुम्हारे  प्रयास  के  बाद  भी  नहीं बैठे …और जब  बाद  में  तुमने  देखा  तो  पाया  कि तुम्हारे  जाने  के  बाद उनमे से कुछ खुद ही  बैठ  गए …. कुछ  समझे ….

"समस्याएं  भी  ऐसी  ही  होती  हैं , कुछ  तो  अपने आप ही ख़त्म  हो  जाती  हैं ,  कुछ  को  तुम  अपने  प्रयास  से  हल  कर लेते  हो …और  कुछ  तुम्हारे  बहुत  कोशिश  करने  पर   भी  हल  नहीं  होतीं , ऐसी  समस्याओं  को   समय  पर  छोड़  दो … उचित  समय  पर  वे खुद  ही  ख़त्म  हो  जाती  हैं …. और  जैसा  कि मैंने  पहले  कहा … जीवन  है  तो  कुछ समस्याएं रहेंगी  ही  रहेंगी …. पर  इसका  ये  मतलब  नहीं  की  तुम  दिन  रात  उन्ही  के  बारे  में  सोचते  रहो … ऐसा होता तो ऊंटों की देखभाल करने वाला कभी सो नहीं पाता…. समस्याओं को  एक  तरफ  रखो  और  जीवन  का  आनंद  लो ....!!!!!

घर का चिराग

हैलो माँ ... में रवि बोल रहा हूँ....,कैसी हो माँ....?

मैं.... मैं…ठीक हूँ बेटे.....,ये बताओ तुम और बहू दोनों कैसे हो?

हम दोनों ठीक है

माँ...आपकी बहुत याद आती है…, ..अच्छा सुनो माँ,में अगले महीने इंडिया आ रहा हूँ.....तुम्हें लेने।

क्या...? हाँ माँ....,अब हम सब साथ ही रहेंगे....,

नीतू कह रही थी माज़ी को ✈अमेरिका ले आओ वहाँ अकेली बहुत परेशान हो रही होंगी।

हैलो ....सुनरही हो माँ...?“हाँ...ह ाँ बेटे...“,बूढ़ी आंखो से खुशी की अश्रुधारा बह निकली,बेटे और बहू का प्यार नस नस में दौड़ने लगा।

जीवन के सत्तर साल गुजार चुकी सावित्री ने जल्दी से अपने पल्लू से आँसू पोंछे और बेटे से बात करने लगी।

पूरे दो साल बाद बेटा घर आ रहा था।

बूढ़ी सावित्री ने मोहल्ले भरमे दौड़ दौड़ कर ये खबर सबको सुना दी।

सभी खुश थे की चलो बुढ़ापा चैनसे बेटे और बहू के साथ गुजर जाएगा।

रवि अकेला आया था,उसने कहा की माँ हमे जल्दी ही वापिस जाना है इसलिए जो भी रुपया पैसा किसी से लेना है वो लेकर रखलों और तब तक मे किसी प्रोपेर्टी डीलर से मकान की बात करता हूँ।

“मकान...?”, माँ ने पूछा। हाँ माँ,अब ये मकान बेचना पड़ेगा वरना कौन इसकी देखभाल करेगा।

हम सबतो अब अमेरिका मे ही रहेंगे।बूढ़ी आंखो ने मकान के कोने कोने को ऐसे निहारा जैसे किसी अबोध बच्चे को सहला रही हो।

आनन फानन और औने-पौने दाम मे रवि ने मकान बेच दिया।

सावित्री देवी ने वो जरूरी सामान समेटा जिस से उनको बहुत ज्यादा लगाव था।

रवि टैक्सी मँगवा चुका था। एयरपोर्ट पहुँचकर रवि ने कहा,”माँ तुम यहाँ बैठो मे अंदर जाकर सामान की जांच और बोर्डिंग और विजा का काम निपटा लेता हूँ।

““ठीक है बेटे।“,सावित्री देवी वही पास की बेंच पर बैठ गई।

काफी समय बीत चुका था। बाहर बैठी सावित्री देवी बार बार उस दरवाजे की तरफ देख रही थी जिसमे रवि गया था लेकिन अभी तक बाहर नहीं आया।‘

शायद अंदर बहुत भीड़ होगी...’,सोचकर बूढ़ी आंखे फिर से टकट की लगाए देखने लगती।

अंधेरा हो चुका था। एयरपोर्ट के बाहरगहमागहमी कम हो चुकी थी।

“माजी...,किस से मिलना है?”,एक कर्मचारी नेवृद्धा से
पूछा ।

“मेरा बेटा अंदर गया था.....टिकिट लेने,वो मुझे ✈अमेरिका लेकर जा रहा है ....”,सावित्री देबी ने घबराकर कहा।

“लेकिन अंदर तो कोई पैसेंजर नहीं है,अमेरिका जाने वाली ✈फ्लाइट तो ☀दोपहर मे ही चली गई। क्या नाम था आपके बेटे
का?” ,कर्मचारी ने सवाल किया।

“र....रवि. ...”, सावित्री के चेहरे पे चिंता की लकीरें उभर आई।

कर्मचारी अंदर गया और कुछ देर बाद बाहर आकर बोला,“माजी....

आपका बेटा रवि तो अमेरिका जाने वाली✈ फ्लाइट से कब का जा चुका...।”“क्या. ? ”

वृद्धा कि आखो से आँसुओं का सैलाब फुट पड़ा।

बूढ़ी माँ का रोम रोम कांप उठा। किसी तरह वापिस घर पहुंची जो अब बिक चुका था।

रात में घर के बाहर चबूतरे पर ही ⛺सो गई।सुबह हुई तो दयालु मकान मालिक ने एक कमरा रहने को दे दिया।

पति की पेंशन से घर का किराया और खाने का काम चलने
लगा।

समय गुजरने लगा। एक दिन मकान मालिक ने वृद्धा से पूछा।

“माजी... क्यों नही आप अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ चली जाए,अब आपकी उम्र भी बहुत हो गई,अकेली कब तक रह पाएँगी।“

“हाँ,चली तो जाऊँ,लेकिन कल को मेरा बेटा आया तो..?,
यहाँ फिर कौन उसका ख्याल रखेगा?“......

आखँ से आसू आने लग गए दोस्तों ....!!!

माँ बाप का दिल कभी मत दुखाना दोस्तों मेरी आपसे ये हाथ जोड़कर विनती है

ये पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करे ।।

धन्यवाद आप सबका जो आपने अपना कीमती समय निकाल कर इस पोस्ट को दिया

'माँ' तो 'माँ' होती है...
••••••••••••••••••••••

काम का गणित

दो वर्ष तक नौकरी करने के बाद एक व्यक्ति को समझ में आया कि इन दो सालों में न कोई प्रमोशन, ना ट्रांसफ़र, ना कोई तनख्वाह वृद्धि, और कम्पनी इस बारे में कुछ नहीं कर रही है.. 

--- 
--- 

उसने फ़ैसला किया कि वह HR मैनेजर से मिलेगा और अपनी बात रखेगा... लंच टाईम में वह HR मैनेजर से मिला और उसने अपनी समस्या रखी.. 

--- 
HR मैनेजर बोला, मेरे बच्चे तुमने इस कम्पनी में एक दिन भी काम नहीं किया है... 

कर्मचारी भौंचक्का हो गया और बोला - ऐसा कैसे.. ? पिछले दो वर्ष से मैं यहाँ काम कर रहा हूँ.. 

HR मैनेजर बोला - देखो मैं समझाता हूँ... एक साल में कितने दिन होते हैं ? 

कर्मचारी - 365 या 366 

मैनेजर - एक दिन में कितने घंटे होते हैं ? 

कर्मचारी - 24 घंटे 

मैनेजर - तुम दिन में कितने घंटे काम करते हो ? 

कर्मचारी - सुबह 8.00 से शाम 4.00 तक, मतलब आठ घंटे.. 

मैनेजर - मतलब दिन का कितना भाग तुम काम करते हो ? 

कर्मचारी - (हिसाब लगाता है) 24/8= 3 एक तिहाई भाग 

मैनेजर - बहुत बढिया..अब साल भर के 366 दिनों का एक-तिहाई कितना होता है ? 

कर्मचारी - (???) 366/3 = 122 दिन.. 

मैनेजर - तुम "वीक-एण्ड" पर काम करते हो ? 

कर्मचारी - नहीं 

मैनेजर - साल भर में कितने वीक-एण्ड के दिन होते हैं ? 

कर्मचारी - 52 शनिवार और 52 रविवार, कुल 104 

मैनेजर - बढिया, अब 122 में से 104 गये तो कितने बचे ? 

कर्मचारी - 18 दिन 

मैनेजर - एक साल में दो सप्ताह की"सिक लीव" मैं तुम्हें देता हूँ, ठीक ? 

कर्मचारी - जी 

मैनेजर - 18 में से 14 गये, तो बचे 4 दिन, ठीक ? 

कर्मचारी - जी 

मैनेजर - क्या तुम मई दिवस पर काम करते हो ? 

कर्मचारी - नहीं.. 

मैनेजर - क्या तुम 15 अगस्त,26 जनवरी और 2 अक्टूबर को काम करते हो ? 

कर्मचारी - नहीं.. 

मैनेजर - जब तुमने एक दिन भी काम नहीं किया, फ़िर किस बात की शिकायत कर रहे हो भाई. 
Hari Bol...

वो एक माँ थी

आधी रात को बहुत बारिश हो रही थी।
अजय और उसकी बीवी प्रिया एक मित्र के
यहाँ पर्व मनाकर अपनी गाडी से घर वापस लौट
रहे थे।
काफी रात हो चुकी थी ।
और बारिश की वजह से अजय बहुत धीमी गति से
गाड़ी चला रहा था।
तभी अचानक बिजली गिर गई।
बिजली की रोशनी मे अजय को गाड़ी के सामने
कुछ दिखाई दिया
उसने गाड़ी रोक दी।
गाड़ी रुकने पर उसकी बीवी ने कहा क्या हुआ
गाड़ी क्यों रोक दी?
अजय ने आगे कि ओर इशारा किया।
प्रिया ने आगे देखा तो वो डर गयी।
क्यों कि गाड़ी के सामने एक औरत खड़ी थी।
वो औरत गाड़ी के पास आयी।और हाथ से
गाड़ी का शीशा नीचे करने का इशारा करने
लगी।अजय की बीवी प्रिया काफी डर
गयी थी।उसने अजय को गाडी चलाने को कहा।
लेकिन गाड़ी भी स्टार्ट नही हुईं।गाड़ी के बाहर
खडी औरत बारिश की वजह से भीग गयी थी।
वो हाथ जोडकर गाड़ी का शीशा नीचे करने
का इशारा कर रही थी।
अजय को लगा कि वो औरत किसी मुसीबत मे है।
इसलिए उसने गाड़ी का शीशा नीचे किया।
वो औरत हाथ जोडकर बोली 'भाई साहब
मेरी मदत कीजिये।
तेज बारिश कि वजह से मेरी गाड़ी का एक्सीटेंड
हुआ है।
मेरी गाड़ी नीचे गिर गयी है।
उसमें मेरा छोटा बच्चा है।
प्लीज उसे बचाईये।
अजय गाड़ी से उतरा और उस औरत के पीछे गया।
उस औरत की गाड़ी काफी नीचे गिर गयी थी।
अजय ने नीचे उतरकर उस गाडी मे रो रहे बच्चे
को बाहर निकाला।
अजय को लगा की ड्रायवर की सीट पर भी कोई
है।जब अजय ने ड्राइवर की सीट पर देखा तो उसके
होश उड गये।
क्योंकि ड्राइवर की सीट पर वही औरत खून से
लथपत मरी पडी थी।
अजय को अब सब समझ मे आया।
वो बच्चे को लेकर अपनी गाड़ी के पास आया।
बच्चे को अपनी बीवी प्रिया को देने
लगा तो उसकी बीवी बोली
'वो औरत कहां है?
'वह कौन थीं?
'अजय बोला...'वो एक माँ थी।

इन्सानियत

एक डॉक्टर को जैसे ही एक
urgent सर्जरी के बारे में फोन करके बताया गया.
वो जितना जल्दी वहाँ आ
सकते थे आ गए.
वो तुरंत हि कपडे बदल
कर ऑपरेशन थिएटर की और बढे.
डॉक्टर को वहाँ उस लड़के के पिता दिखाई दिए
जिसका इलाज होना था.
पिता डॉक्टर को देखते ही भड़क उठे,
और चिल्लाने लगे.. "आखिर इतनी देर तक कहाँ थे आप?
क्या आपको पता नहीं है की मेरे बच्चे की जिंदगी खतरे में है .
क्या आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती..
आप का कोई कर्तव्य है
या नहीं ? ”
डॉक्टर ने हलकी सी मुस्कराहट के साथ कहा- “मुझे माफ़
कीजिये, मैं
हॉस्पिटल में नहीं था.
मुझे जैसे ही पता लगा,
जितनी जल्दी हो सका मैं
आ गया..
अब आप शांत हो जाइए, गुस्से से कुछ नहीं होगा”
ये सुनकर पिता का गुस्सा और चढ़ गया.
भला अपने बेटे की इस नाजुक हालत में वो शांत कैसे रह सकते थे…
उन्होंने कहा- “ऐसे समय में दूसरों
को संयम रखने का कहना बहुत आसान है.
आपको क्या पता की मेरे मन में क्या चल रहा है.. अगर
आपका बेटा इस तरह मर रहा होता तो क्या आप
इतनी देर करते..
यदि आपका बेटा मर जाए
अभी, तो आप शांत रहेगे?
कहिये..”
डॉक्टर ने स्थिति को भांपा और कहा- “किसी की मौत और
जिंदगी ईश्वर
के हाथ में है.
हम केवल उसे बचाने का प्रयास कर सकते है.. आप ईश्वर से
प्राथना कीजिये.. और मैं अन्दर जाकर ऑपरेशन करता हूँ…” ये
कहकर डॉक्टर अंदर चले गए..
करीब 3 घंटो तक ऑपरेशन चला..
लड़के के पिता भी धीरज के साथ बाहर बैठे रहे..
ऑपरेशन के बाद जैसे
ही डाक्टर बाहर निकले..
वे मुस्कुराते हुए, सीधे पिता के पास गए..
और उन्हें कहा- “ईश्वर का बहुत ही आशीर्वाद है.
आपका बेटा अब ठीक है.. अब आपको जो
भी सवाल पूछना हो पीछे आ रही नर्स से पूछ लीजियेगा..
ये कहकर वो जल्दी में चले गए..
उनके बेटे की जान बच
गयी इसके लिए वो बहुत खुश तो हुए..
पर जैसे ही नर्स उनके पास आई.. वे बोले.. “ये कैसे डॉक्टर है..
इन्हें किस बात का गुरुर है.. इनके पास हमारे लिए
जरा भी समय नहीं है..”
तब नर्स ने उन्हें बताया..
कि ये वही डॉक्टर है जिसके
बेटे के साथ आपके बेटे का एक्सीडेँट हो गया था.....
उस दुर्घटना में इनके बेटे
की मृत्यु हो गयी..
और हमने जब उन्हें फोन किया गया..
तो वे उसके क्रियाकर्म कर
रहे थे…
और सब कुछ जानते हुए भी वो यहाँ आए और आपके बेटे का इलाज
किया...
नर्स की बाते सुनकर बाप की आँखो मेँ खामोस आँसू
बहने लगे ।
मित्रो ये होती है इन्सानियत ""

क़ाबिलियत

बहुत समय पहले की बात है , एक
राजा को उपहार में किसी ने बाज
के दो बच्चे भेंट किये ।

वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे , और
राजा ने कभी इससे पहले इतने
शानदार बाज नहीं देखे थे।

राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक
अनुभवी आदमी को नियुक्त कर
दिया।

जब कुछ महीने बीत गए
तो राजा ने बाजों को देखने का मन
बनाया , और उस जगह पहुँच गए
जहाँ उन्हें पाला जा रहा था।

राजा ने देखा कि दोनों बाज
काफी बड़े हो चुके थे और अब पहले से
भी शानदार लग रहे थे ।

राजा ने बाजों की देखभाल कर रहे
आदमी से कहा, ” मैं इनकी उड़ान
देखना चाहता हूँ , तुम इन्हे उड़ने का इशारा करो ।

“ आदमी ने
ऐसा ही किया।
इशारा मिलते ही दोनों बाज
उड़ान भरने लगे , पर जहाँ एक बाज
आसमान की ऊंचाइयों को छू
रहा था , वहीँ दूसरा , कुछ ऊपर जाकर वापस उसी डाल पर आकर बैठ
गया जिससे वो उड़ा था।

ये देख ,
राजा को कुछ अजीब लगा.
“क्या बात है जहाँ एक बाज
इतनी अच्छी उड़ान भर रहा है वहीँ ये
दूसरा बाज उड़ना ही नहीं चाह रहा ?”,
राजा ने सवाल किया।

” जी हुजूर ,
इस बाज के साथ शुरू से
यही समस्या है , वो इस डाल
को छोड़ता ही नहीं।”

राजा को दोनों ही बाज प्रिय थे , और वो दुसरे बाज
को भी उसी तरह
उड़ना देखना चाहते थे।

अगले दिन पूरे
राज्य में ऐलान
करा दिया गया कि जो व्यक्ति इस
बाज को ऊँचा उड़ाने में कामयाब होगा उसे ढेरों इनाम
दिया जाएगा।

फिर क्या था , एक
से एक विद्वान् आये और बाज
को उड़ाने का प्रयास करने लगे , पर
हफ़्तों बीत जाने के बाद भी बाज
का वही हाल था, वो थोडा सा उड़ता और वापस
डाल पर आकर बैठ जाता।

फिर एक
दिन कुछ अनोखा हुआ , राजा ने
देखा कि उसके दोनों बाज आसमान
में उड़ रहे हैं। उन्हें अपनी आँखों पर
यकीन नहीं हुआ और उन्होंने तुरंत उस व्यक्ति का पता लगाने
को कहा जिसने ये कारनामा कर
दिखाया था। वह व्यक्ति एक
किसान था।

अगले दिन वह दरबार में
हाजिर हुआ। उसे इनाम में स्वर्ण
मुद्राएं भेंट करने के बाद राजा ने कहा , ” मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ , बस तुम
इतना बताओ कि जो काम बड़े-बड़े
विद्वान् नहीं कर पाये वो तुमने कैसे
कर दिखाया।

“ “मालिक ! मैं तो एक
साधारण सा किसान हूँ , मैं ज्ञान
की ज्यादा बातें नहीं जानता , मैंने तो बस वो डाल काट दी जिसपर
बैठने का बाज आदि हो चुका था,
और जब वो डाल
ही नहीं रही तो वो भी अपने
साथी के साथ ऊपर उड़ने लगा। “

दोस्तों, हम सभी ऊँचा उड़ने के लिए ही बने हैं। लेकिन कई बार हम जो कर
रहे होते है उसके इतने आदि हो जाते हैं
कि अपनी ऊँची उड़ान भरने की , कुछ
बड़ा करने की काबिलियत को भूल
जाते हैं।

यदि आप भी सालों से
किसी ऐसे ही काम में लगे हैं जो आपके सही potential के मुताबिक
नहीं है तो एक बार ज़रूर सोचिये
कि कहीं आपको भी उस डाल
को काटने की ज़रुरत
तो नहीं जिसपर आप बैठे हैं ?
"Luck is what happens when preparation meets opportunity.".

अपने logic और guts की सुनिए

एक बार कुछ scientists ने एक बड़ा ही interesting
experiment किया..
उन्होंने 5 बंदरों को एक बड़े से cage में बंद कर
दिया और बीचों -बीच एक
सीढ़ी लगा दी जिसके ऊपर केले लटक रहे थे..
जैसा की expected था, जैसे ही एक बन्दर की नज़र
केलों पर पड़ी वो उन्हें खाने के लिए दौड़ा..
पर जैसे ही उसने कुछ सीढ़ियां चढ़ीं उस पर ठण्डे
पानी की तेज धार डाल दी गयी और उसे उतर कर
भागना पड़ा..
पर experimenters यहीं नहीं रुके,
उन्होंने एक बन्दर के किये गए
की सजा बाकी बंदरों को भी दे डाली और
सभी को ठन्डे पानी से भिगो दिया..
बेचारे बन्दर हक्के-बक्के एक कोने में दुबक कर बैठ गए..
पर वे कब तक बैठे रहते,
कुछ समय बाद एक दूसरे बन्दर को केले खाने का मन
किया..
और वो उछलता कूदता सीढ़ी की तरफ दौड़ा..
अभी उसने चढ़ना शुरू
ही किया था कि पानी की तेज धार से उसे
नीचे गिरा दिया गया..
और इस बार भी इस बन्दर के
गुस्ताखी की सज़ा बाकी बंदरों को भी दी गयी..
एक बार फिर बेचारे बन्दर सहमे हुए एक जगह बैठ गए...
थोड़ी देर बाद जब तीसरा बन्दर केलों के लिए
लपका तो एक अजीब वाक्य हुआ..
बाकी के बन्दर उस पर टूट पड़े और उसे केले खाने से
रोक दिया,
ताकि एक बार फिर उन्हें ठन्डे
पानी की सज़ा ना भुगतनी पड़े..
अब experimenters ने एक और interesting चीज़ की..
अंदर बंद बंदरों में से एक को बाहर निकाल
दिया और एक नया बन्दर अंदर डाल दिया..
नया बन्दर वहां के rules क्या जाने..
वो तुरंत ही केलों की तरफ लपका..
पर बाकी बंदरों ने झट से उसकी पिटाई कर दी..
उसे समझ नहीं आया कि आख़िर क्यों ये बन्दर ख़ुद
भी केले नहीं खा रहे और उसे भी नहीं खाने दे रहे..
ख़ैर उसे भी समझ आ गया कि केले सिर्फ देखने के
लिए हैं खाने के लिए नहीं..
इसके बाद experimenters ने एक और पुराने बन्दर
को निकाला और नया अंदर कर दिया..
इस बार भी वही हुआ नया बन्दर केलों की तरफ
लपका पर बाकी के बंदरों ने उसकी धुनाई कर
दी और मज़ेदार बात ये है कि पिछली बार
आया नया बन्दर भी धुनाई करने में शामिल था..
जबकि उसके ऊपर एक बार
भी ठंडा पानी नहीं डाला गया था!
experiment के अंत में सभी पुराने बन्दर बाहर जा चुके
थे और नए बन्दर अंदर थे जिनके ऊपर एक बार
भी ठंडा पानी नहीं डाला गया था..
पर उनका behaviour भी पुराने बंदरों की तरह
ही था..
वे भी किसी नए बन्दर को केलों को नहीं छूने देते..
Friends, हमारी society में भी ये behaviour
देखा जा सकता है..
जब भी कोई नया काम शुरू करने की कोशिश
करता है,
चाहे वो पढ़ाई , खेल , एंटरटेनमेंट, business,
राजनीती, समाजसेवा या किसी और field से
related हो, उसके आस पास के लोग उसे ऐसा करने से
रोकते हैं..
उसे failure का डर दिखाया जाता है..
और interesting बात ये है कि उसे रोकने वाले
maximum log वो होते हैं जिन्होंने ख़ुद उस field में
कभी हाथ भी नहीं आज़माया होता..
इसलिए यदि आप भी कुछ नया करने की सोच रहे हैं
और आपको भी समाज या आस पास के
लोगों का opposition face करना पड़ रहा है
तो थोड़ा संभल कर रहिये..
अपने logic और guts की सुनिए..
ख़ुद पर और अपने लक्ष्य पर विश्वास क़ायम रखिये..
और बढ़ते रहिये..
कुछ बंदरों की ज़िद्द के आगे आप भी बन्दर मत बन
जाइए..
सभी साथियों को शुभकामनाएँ
सु प्रभात
आपका दिन मंगलमय हो

ईश्वर को धन्यवाद

एक दिन किसी निर्माण के दौरान
भवन
की छटी मंजिल से सुपर वाईजर ने
नीचे
कार्य करने वाले मजदूर को आवाज दी.
निर्माण कार्य की तेज आवाज के
कारण
नीचे काम करने वाला मजदूर कुछ समझ
नहीं सका की उसका सुपरवाईजर उसे
आवाज दे रहा है.
फिर
सुपरवाईजर ने उसका ध्यान आकर्षित
करने के लिए एक १० रु का नोट नीचे
फैंका,
जो ठीक मजदूर के सामने जा कर गिरा
मजदूर ने नोट उठाया और अपनी जेब मे
रख
लिया, और फिर अपने काम मे लग
गया .
अब उसका ध्यान खींचने के लिए सुपर
वाईजर ने पुन: एक ५०० रु का नोट
नीचे
फैंका .
उस मजदूर ने फिर वही किया और नोट
जेब
मे रख कर अपने काम मे लग गया .
ये देख अब सुपर वाईजर ने एक
छोटा सा पत्थर का टुकड़ा लिया और
मजदूर
के उपर फैंका जो सीधा मजदूर के सिर
पर
लगा. अब मजदूर ने ऊपर देखा और
उसकी सुपर वाईजर से बात चालू
हो गयी.
ये वैसा ही है
जो हमारी जिन्दगी मे
होता है.....
भगवान् हमसे संपर्क
करना ,मिलना चाहता है, लेकिन हम
दुनियादारी के कामो मे व्यस्त रहते
है, अत:
भगवान् को याद नहीं करते.
भगवान् हमें छोटी छोटी खुशियों के
रूप मे
उपहार देता रहता है, लेकिन हम उसे
याद
नहीं करते, और वो खुशियां और उपहार
कहाँ से आये ये ना देखते
हुए,उनका उपयोग
कर लेते है, और भगवान् को याद
नहीं करते.
भगवान् हमें और
भी खुशियों रूपी उपहार
भेजता है, लेकिन उसे भी हम
हमारा भाग्य
समझ कर रख लेते है, भगवान्
का धन्यवाद
नहीं करते ,उसे भूल जाते है.
तब भगवान् हम पर एक
छोटा सा पत्थर
फैंकते है , जिसे हम कठिनाई कहते है,
और
तुरंत उसके निराकरण के लिए भगवान्
की और देखते है,याद करते है.
यही जिन्दगी मे हो रहा है.
यदि हम हमारी छोटी से
छोटी ख़ुशी भी भगवान् के साथ
उसका धन्यवाद देते हुए बाँटें, तो हमें
भगवान्
के द्वारा फैंके हुए पत्थर का इन्तजार
ही नहीं करना पड़ेगा...!!!

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015

नीलम का हार

एक जौहरी था उसके देहांत के बाद उसके परिवार पर
बहुत बड़ा सन्कट आ गया।खाने के भी लाले पड गए
एक दिन उसकी पत्नी ने अपने बेटे को एक
नीलम का हार दे कर कहा बेटा इसे अपने
चाचा की दुकान पर लेकर जाओ और कहना कि इसे बेच
कर कुछ रुपए दो वह उस हार को लेकर चाचा जी के पास
गया। चाचा जी ने हार को अच्छी तरह से
देख परख कर कहा कि बेटा अपनी माँ से
कहना कि अभी बाज़ार बहुत मन्दा हैं थोड़ा रुककर
बेचना अच्छे दाम मिलेगे और थोड़े से रुपये देकर कहा कि तुम कल से
दुकान पर आ कर बैठना। अगले दिन से वह लड़का रोज दुकान पर
जाने लगा और वहां पर हीरो की परख करने
लगा एक दिन वह हीरो का बहुत
बड़ा पारखी बन गया लोग दूर दूर से अपने
हीरो की परख कराने आने लगे।एक दिन
उसके चाचा जी ने कहा कि बेटा अपनी माँ से
वह हार लेकर आना और कहना कि अब बाज़ार बहुत तेज है
उसके अब अच्छे दाम मिल जाएगे ।बेटा हार लेने घर गया और मा से
हार लेकर परख कर देखा कि यह तो artificial हैं और उसको घर
पर ही छोड़ कर वापस लौट
आया तो चाचा जी ने पूछा कि हार नहीं लाए
तो उसने कहा कि वह हार तो नकली था। तब
चाचा जी ने कहा कि जब पहली बार लेकर
आए थे अगर मैं उस समय हार को नकली बताता तो तुम
सोचते कि आज हम पर बुरा वक्त
आया तो हमारी चीज़
को नकली बताने लगे आज जब तुम्हें खुद ज्ञान
हो गया तो पता चल गया कि यह नकली हैं ।
इससे हमें
यही शिक्षा मिलती है कि ज्ञान के बिना इस
सन्सार मे हम जो भी सोचते हैं देखते हैं जानते हैं
सब गलत है
अगर हम दुखी हैं या अभाव ग्रस्त है तो इसका एक
ही कारण है अज्ञानता ।
अज्ञान के
ही कारण डर हैं सब कुछ पाना आसान है दुर्लभ है
सन्सार मे एक यथार्थ ज्ञान।