गुरुवार, 28 सितंबर 2023

ओबव्वा और चित्रदुर्ग किला

ओबव्वा और चित्रदुर्ग किला

1777 में हैदर अली ने चित्रदुर्ग किले को घेर लिया और तमाम प्रयत्नों के बाद भी वे किले में घुस नही पा रहे थे तब उन्होंने एक महिला को देखा जो एक छेद से निकल कर जा रही थी

उन्हे शीघ्र ही मालूम हो गया कि ये चित्रदुर्ग किले का गुप्त मार्ग है, हैदर अली की आरंभ से रणनीति किले में रक्तपात करना था ताकि बिना सैन्य टकराव के वे युद्ध को जीत जाए

चित्रदुर्ग किले के शासक मदकरी नायक ने मराठों और पड़ोसी राज्यों के विरुद्ध कई अभियानों में हैदर अली की सहायता की थी बावजूद हैदर अली की नजर चित्रदुर्ग किले में थी

जब मराठों और निजाम की संयुक्त सेना के युद्ध की संभावना बढ़ी तो हैदर की दुष्ट नीति को समझ मदकरी नायक ने अभियान में साथ नही दिया और स्वतंत्र नीति अपनाई

इससे क्रोधित हो हैदर अली ने चित्रदुर्ग पर भारी भरकम जुर्माना लगाया जिसे चुकाने से मदकरी नायक ने अस्वीकार कर दिया, इसी पर हैदर अली ने चित्रदुर्ग किले को जीतने के लिए सेना भेज दी थी

सभी सैनिक उस छोटे से मार्ग से जिसमे केवल एक एक करके ही जाया जा सकता था, जा रहे थे

वहां के पहरेदार हनुमा जो भोजन करने गए थे, उसकी पत्नी ओबव्वा पानी की व्यवस्था के लिए तालाब गई थी उन्होंने सैनिकों को देख लिया

राष्ट्र पर संकट देख एक सामान्य सी नारी ओबव्वा, मूसल जिससे धान कुटा जाता है उसे लेकर मार्ग के अंत में जाकर खड़ी हो गई और जैसे ही कोई सैनिक आता तो उसके सर में प्रहार करती

इसी प्रकार उसने सैकड़ों सैनिकों को ढेर कर दिया, पानी लाने में देर होता देख ओबव्वा के पति जब उसे ढूंढता हुआ आया तो वो अवाक सा रह गया

बाद में ओबव्वा का भी निधन उसी दिन हो गया कुछ इतिहासकार इसे सदमा मानते है तो कुछ शत्रु के द्वारा

अपने बहादुरी के इस कृत्य से उसने किले और राज्य को उस दिन बचा लिया 

1779 में पालेयगार के सेवाओं में कार्यरत मुस्लिम अधिकारियों की गद्दारी के कारण अंततः चित्रदुर्ग पराजित हो गया और उनके राजा को बंदी बना लिया गया 

ओबव्वा को उनके महान कृत्य के कारण उन्हे कन्नड़ का गौरव कहा जाता है, चित्रदुर्ग में उनके नाम पर एक खेल स्टेडियम भी है "वीर वनीथे ओंके स्टेडियम"। इसके अलावा उनकी एक प्रतिमा का भी अनावरण किया गया है

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