सोमवार, 25 जनवरी 2021

आचरण की सीख

।।आचरण की सीख।।

प्राचीन समय की बात है कि एक बार ऋषिमुनि महर्षि एक रास्ते से होकर गुजर रहे थे।उन्होंने देखा कि एक छोटा-सा कीड़ा बड़ी तेजी से चल रहा है। महर्षि ने उस कीड़े से कहा कि,"तुम इतनी तेजी क्यों चल रहे हो।"
कीड़े ने कहा कि," इस रास्ते से बैलगाड़ी गुजरने वाली है,मैं उसके नीचे दबकर मर न जाऊं, इसलिए तेजी से चल रहा हूँ।"

महर्षि ने उस कीड़े से कहा कि," तुम क्षुद्र हो,यदि तुम मर भी जाओंगे तो इससे अच्छी योनि में तुम्हारा जन्म होगा।"
कीड़े ने कहा कि," यह मैं नही जानता हूँ लेकिन मैं यह जरूर जानता हूँ कि मैं अपनी कीड़े की योनि के अनुरूप आचरण कर रहा हूँ लेकिन ऐसे असंख्य प्राणी है जिन्हें विधाता ने तन तो मानव का दिया है परंतु वे मुझसे भी गया-गुजरा आचरण कर रहे हैं। वे श्रेष्ठ मानव शरीरधारी होकर भी ज्ञान से विमुख होकर कीड़ो की तरह आचरण कर रहे हैं।"

महर्षि ने कीड़े से कहा,"नन्हे जीव!चलो हम तुम्हारी सहायता कर देते है।तुम्हे उस पीछे आने वाली बैलगाड़ी से दूर पहुँचा देता हूँ।"

कीड़ा बोला,"हे मानव, श्रम रहित पराश्रित जीवन विकास के द्वार बंद कर देता है।"

कीड़े के कथन ने महर्षि को ज्ञान का नया सन्देश दिया।

इस प्रेरक प्रसंग से सीख मिलती है कि विधाता ने मनुष्य को श्रेष्ठ बुद्धिमान प्राणी के रूप में जीवन प्रदान किया है  तो वह इस मनुष्य जीवन की महत्ता को समझे और श्रेष्ठ मानव का आचरण करे और श्रम से मुंह न मोड़े। मनुष्य जीवन की सार्थकता सच्चे आचरण में निहित है ।श्रेष्ठ आचरण और सदाचार ही मनुष्य के व्यक्तित्व को  प्रतिबिंबित करता है ।

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